084 सबसे सच्चा है परमेश्वर का प्यार इंसान के लिये
कलीसिया का भजन Ⅰ प्यारी गुड़िया, मेरी आँख का तारा है तू। तेरी ख़ुशियों के लिये ही बस जीती हूँ मैं। तुझे पढ़ने के लिये कहती रहती हूँ मैं, ताकि जग में नाम कमाये तू। Ⅱ जानती हूँ, तेरा प्यार, दुलार माँ, मगर उम्मीदें और दबाव बहुत ज़्यादा हैं माँ। दिल दुखता है मेरा, तेरी ख़्वाहिशें पूरी नहीं कर पाती हूँ। मैं मौत में ही बचने की राह ढूँढ़ती हूँ माँ। Ⅲ मैं समझ नहीं पाती हूँ तुझे। दर्द से गुज़री है तू, माफ़ कर देना मुझे। जानती हूँ, मेरा भला चाहती थी तू, मगर लोग इस तरह क्यों जीते हैं माँ? पढ़े हैं मैंने ईश्वर के वचन। अब जानती हूँ सत्य को मैं, जानती हूँ इंसान कितना भ्रष्ट है: मौज-मस्ती, धन-दौलत, शोहरत के पीछे भागता है, जानता नहीं, उसकी नियति को परमेश्वर चलाता है। परमेश्वर के वचनों से जागी हूँ मैं। दौलत-शोहरत के पीछे भागना फ़िज़ूल है! राह दिखाते हैं परमेश्वर के वचन मुझे। इंसानी ज़िंदगी आती सत्य को जानने से। ईश्वर के वचनों का सुख लेते हम, उसके आगे निभाते अपना फ़र्ज़ हम। हैं रोशनी में हम। उसकी मौजूदगी में, ख़ुश रहते हम। भ्रष्ट देह, नियति, छोड़ें हम, अपनी आज़ादी से आनंदित हैं हम। परमेश्वर से सत्य और जीवन पाते हैं हम। मसीह का राज्य है घर हमारा। ईश्वर के वचनों का सुख लेते हम, उसके आगे निभाते अपना फ़र्ज़ हम। हैं रोशनी में हम। उसकी मौजूदगी में, ख़ुश रहते हम। भ्रष्ट देह, नियति, छोड़ें हम, अपनी आज़ादी से आनंदित हैं हम। परमेश्वर से सत्य और जीवन पाते हैं हम। मसीह का राज्य है घर हमारा।