अय्यूब के बारे में (II)

29 मई, 2018

अय्यूब की तर्कशक्ति

अय्यूब के वास्तविक अनुभवों और उसकी खरी और सच्ची मानवता का अर्थ था कि उसने अपनी संपत्तियाँ और अपने बच्चे गँवा बैठने पर सर्वाधिक तर्कसंगत निर्णय और चुनाव किए थे। ऐसे तर्कसंगत चुनाव उसके दैनिक अनुसरणों और परमेश्वर के कर्मों से अवियोज्य थे जिन्हें वह अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन के दौरान जानने लगा था। अय्यूब की ईमानदारी ने उसे यह विश्वास कर पाने में समर्थ बनाया कि यहोवा का हाथ सभी चीज़ों पर शासन करता है; उसके विश्वास ने उसे सभी चीज़ों के ऊपर यहोवा परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य को जानने दिया; उसके ज्ञान ने उसे यहोवा परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं को मानने का इच्छुक और समर्थ बनाया; उसकी आज्ञाकारिता ने उसे यहोवा परमेश्वर के प्रति अपने भय में अधिकाधिक सच्चा होने में समर्थ बनाया; उसके भय ने उसे बुराई से दूर रहने में अधिकाधिक वास्तविक बनाया; अंततः, परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के कारण अय्यूब पूर्ण बन गया; उसकी पूर्णता ने उसे बुद्धिमान बनाया, और उसे उच्चतम तर्कशक्ति प्रदान की।

हमें इस "तर्कशक्ति" शब्द को कैसे समझना चाहिए? एक शाब्दिक व्याख्या यह है कि इसका अर्थ है अच्छी समझ का होना, अपनी सोच में तार्किक और समझदार होना, अच्छी वाणी, चाल-चलन, और परख का होना, और अच्छे तथा नियमित नैतिक मानदण्ड धारण करना। फिर भी अय्यूब की तर्कशीलता समझा पाना इतना आसान नहीं है। यहाँ जब कहा जाता है कि अय्यूब उच्चतम तर्कशक्ति से युक्त था, तो यह उसकी मानवता और परमेश्वर के समक्ष उसके आचरण के संबंध में कहा जाता है। चूँकि अय्यूब ईमानदार था, इसलिए वह परमेश्वर की संप्रभुता में विश्वास और उसका पालन कर पाता था, जिसने उसे ऐसा ज्ञान दिया जो दूसरों द्वारा अप्राप्य था, और इस ज्ञान ने उसे उस सबको जो उसके ऊपर बीता था अधिक सटीकता से पहचनाने, परखने, और परिभाषित करने में समर्थ बनाया, जिसने उसे अधिक सटीकता और चतुराई से यह चुनने में समर्थ बनाया कि उसे क्या करना है और किसे दृढ़ता से थामे रहना है। कहने का तात्पर्य यह है कि उसके वचन, व्यवहार, उसके कार्यकलापों के पीछे के सिद्धांत, और वह संहिता जिसके अनुसार उसने कार्य किया, सब नियमित, सुस्पष्ट और विनिर्दिष्ट थे, और अंधाधुँध, आवेगपूर्ण या भावनात्मक नहीं थे। वह जानता था कि उस पर जो भी बीते उससे कैसे पेश आना है, वह जानता था कि जटिल घटनाओं के बीच संबंधों को कैसे संतुलित करना और सँभालना है, वह जानता था कि जिस मार्ग को दृढ़ता से थामे रखना चाहिए उसे कैसे थामे रखना है, और, इतना ही नहीं, वह जानता था कि यहोवा परमेश्वर के देने और ले लेने के साथ कैसे पेश आना है। यही अय्यूब की तर्कशक्ति थी। जब वह अपनी संपत्तियों और पुत्रों और पुत्रियों से हाथ धो बैठा, उस समय ठीक इसीलिए कि अय्यूब ऐसी तर्कशक्ति से सुसज्जित था उसने कहा, "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है।"

जब अय्यूब ने शरीर की अत्यधिक पीड़ा का, और अपने कुटुंबियों और मित्रों के उलाहनों का सामना किया, और जब उसने मृत्यु का सामना किया, तो उसके वास्तविक आचरण ने एक बार फिर लोगों को उसका सच्चा चेहरा दिखाया।

अय्यूब का वास्तविक चेहरा : सच्चा, शुद्ध, और असत्यता से रहित

आओ हम अय्यूब 2:7-8 पढ़ें : "तब शैतान यहोवा के सामने से निकला, और अय्यूब को पाँव के तलवे से ले सिर की चोटी तक बड़े बड़े फोड़ों से पीड़ित किया। तब अय्यूब खुजलाने के लिये एक ठीकरा लेकर राख पर बैठ गया।" यह अय्यूब के उस समय के आचरण का वर्णन है जब उसके शरीर पर दर्दनाक़ फोड़े निकल आए थे। इस समय, अय्यूब राख पर बैठ गया और पीड़ा सहता रहा। किसी ने उसका उपचार नहीं किया, और उसके शरीर का दर्द कम करने में किसी ने उसकी सहायता नहीं की; इसके बजाय, उसने पीड़ादायक फोड़ों के ऊपरी भाग को खुजाने के लिए एक ठीकरे का उपयोग किया। सतही तौर पर, यह अय्यूब की यंत्रणा का एक चरण मात्र था, और इसका उसकी मानवता और परमेश्वर के भय से कोई नाता नहीं है, क्योंकि इस समय अय्यूब ने अपनी मनोदशा और विचार व्यक्त करने के लिए कोई वचन नहीं बोले थे। फिर भी, अय्यूब के कार्यकलाप और उसका आचरण अब भी उसकी मानवता की सच्ची अभिव्यक्ति है। पिछले अध्याय के अभिलेख में हमने पढ़ा था कि अय्यूब पूर्वी देशों के सभी मनुष्यों में सबसे बड़ा था। इस बीच, दूसरे अध्याय का यह अंश हमें दिखाता है कि पूर्व के इस महान मनुष्य ने वास्तव में राख में बैठकर अपने आपको खुजाने के लिए एक ठीकरा लिया। क्या इन दोनों वर्णनों के बीच स्पष्ट अंतर्विरोध नहीं है? यह ऐसा अंतर्विरोध है जो हमें अय्यूब के सच्चे आत्म का दर्शन कराता है : अपनी प्रतिष्ठापूर्ण हैसियत और रुतबे के बावज़ूद, उसने इन चीज़ों से न कभी प्रेम किया था और न ही कभी उन पर ध्यान दिया था; उसने परवाह नहीं की कि दूसरे उसकी प्रतिष्ठा को कैसे देखते हैं, न ही वह अपने कार्यकलापों और आचरण का अपनी प्रतिष्ठा पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ने या न पड़ने के विषय में चिंतित था; वह प्रतिष्ठा के आशीषों में लिप्त नहीं हुआ, न ही उसने हैसियत और प्रतिष्ठा के साथ आने वाली महिमा का आनंद उठाया। उसने केवल यहोवा परमेश्वर की नज़रों में अपने मूल्य और अपने जीवन जीने के महत्व की परवाह की। अय्यूब का सच्चा आत्म ही उसका सार था : वह प्रसिद्धि और सौभाग्य से प्रेम नहीं करता था, और वह प्रसिद्धि और सौभाग्य के लिए नहीं जीता था; वह सच्चा, और शुद्ध और असत्यता से रहित था।

अय्यूब द्वारा प्रेम और घृणा का विभाजन

अय्यूब की मानवता का एक और पहलू उसके और उसकी पत्नी के बीच इस संवाद में प्रदर्शित होता है : "तब उसकी स्त्री उससे कहने लगी, 'क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा।' उसने उससे कहा, 'तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है, क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दु:ख न लें?'" (अय्यूब 2:9-10)। वह जो यंत्रणा भुगत रहा था उसे देखकर, अय्यूब की पत्नी ने उसे इस यंत्रणा से बच निकलने में सहायता करने के लिए सलाह देने की कोशिश की, तो भी उसके "भले इरादों" को अय्यूब की स्वीकृति प्राप्त नहीं हुई; इसके बजाय, उन्होंने उसका क्रोध भड़का दिया, क्योंकि उसने यहोवा परमेश्वर में उसके विश्वास और उसके प्रति उसकी आज्ञाकारिता को नकारा था, और यहोवा परमेश्वर के अस्तित्व को भी नकारा था। यह अय्यूब के लिए असहनीय था, क्योंकि उसने, दूसरों की तो बात ही छोड़ दें, स्वयं अपने को भी कभी ऐसा कुछ नहीं करने दिया था जो परमेश्वर का विरोध करता हो या उसे ठेस पहुँचाता हो। उस समय वह कैसे चुपचाप रह सकता था जब उसने दूसरों को ऐसे वचन बोलते देखा जो परमेश्वर की निंदा और उसका अपमान करते थे? इस प्रकार उसने अपनी पत्नी को "मूढ़ स्त्री" कहा। अपनी पत्नी के प्रति अय्यूब की प्रवृत्ति क्रोध और घृणा, और साथ ही भर्त्सना और फटकार की थी। यह अय्यूब की मानवता की—प्रेम और घृणा के बीच अंतर करने की—स्वाभाविक अभिव्यक्ति थी, और उसकी खरी मानवता का सच्चा निरूपण था। अय्यूब में न्याय की एक समझ थी—ऐसी समझ जिसकी बदौलत वह दुष्टता की हवाओं और ज्वारों से नफ़रत करता था, और अनर्गल मतांतरों, बेतुके तर्कों, और हास्यास्पद दावों से घृणा, उनकी भर्त्सना और उन्हें अस्वीकार करता था, और वह स्वयं अपने, सही सिद्धांतों और रवैये को उस समय सच्चाई से थामे रह सका जब उसे भीड़ के द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था और उन लोगों द्वारा छोड़ दिया गया था जो उसके क़रीबी थे।

अय्यूब की उदार हृदयता और शुद्ध हृदयता

चूँकि, अय्यूब के आचरण से, हम उसकी मानवता के विभिन्न पहलुओं को व्यक्त होते देख पाते हैं, तो जब उसने अपने जन्म के दिन को कोसने के लिए अपना मुँह खोला तब हम अय्यूब की मानवता का कौन-सा पहलू देखते हैं? यही वह विषय है जिसे हम नीचे साझा करेंगे।

ऊपर, मैंने अय्यूब द्वारा अपने जन्म के दिन को कोसने की उत्पत्तियों के बारे में बात की है। तुम लोग इसमें क्या देखते हो? यदि अय्यूब कठोर हृदय और प्रेम से रहित होता, यदि वह उत्साहहीन और भावनाहीन होता, और मानवता से वंचित होता, तो क्या वह परमेश्वर के हृदय की इच्छा की परवाह कर सकता था? चूँकि वह परमेश्वर के हृदय की परवाह करता था, क्या इसलिए स्वयं अपने जन्म के दिन का तिरस्कार कर सकता था? दूसरे शब्दों में, यदि अय्यूब कठोर हृदय और मानवता से पूर्णतया रहित होता, तो क्या वह परमेश्वर की पीड़ा से संतप्त हुआ हो सकता था? क्या वह अपने जन्म के दिन को इसलिए कोस सकता था क्योंकि परमेश्वर उसके द्वारा व्यथित हुआ था? उत्तर है, बिल्कुल नहीं! क्योंकि वह दयालु हृदय था, इसलिए अय्यूब ने परमेश्वर के हृदय की परवाह की थी; क्योंकि उसने परमेश्वर के हृदय की परवाह की थी, इसलिए अय्यूब ने परमेश्वर की पीड़ा समझ ली थी; क्योंकि वह दयालु हृदय था, इसलिए उसने परमेश्वर की पीड़ा को समझ लेने के परिणामस्वरूप और अधिक यंत्रणा भुगती; क्योंकि उसने परमेश्वर की पीड़ा समझ ली थी, इसलिए वह अपने जन्म के दिन से घृणा करने लगा, और इसलिए उसने अपने जन्म के दिन को कोसा। बाहरी लोगों के लिए, अय्यूब की परीक्षा के दौरान उसका समूचा आचरण अनुकरणीय है। उसका केवल अपने जन्म के दिन को कोसना ही उसकी पूर्णता और खरेपन पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, या एक भिन्न आँकलन प्रस्तुत करता है। वास्तव में, यह अय्यूब की मानवता के सार की सबसे सच्ची अभिव्यक्ति थी। उसकी मानवता का सार छिपा या बंद नहीं था, या किसी अन्य के द्वारा संशोधित नहीं था। जब उसने अपने जन्म के दिन को कोसा, तो उसने अपने हृदय की गहराई में उदार हृदयता और शुद्ध हृदयता का प्रदर्शन किया; वह उस जलसोत के समान था जिसका पानी इतना साफ़ और पारदर्शी था कि उसका तल दिखाई देता था।

अय्यूब के बारे में यह सब जानने के बाद, निस्संदेह अधिकांश लोगों के पास अय्यूब की मानवता के सार का समुचित रूप से सटीक और वस्तुनिष्ठ आँकलन होगा। उनके पास अय्यूब की उस पूर्णता और खरेपन की गहरी, व्यावहारिक, और अधिक उन्नत समझ और सराहना भी होनी चाहिए जिसके बारे में परमेश्वर द्वारा कहा गया था। आशा करनी चाहिए कि यह समझ और सराहना परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग पर चलने की शुरुआत करने में लोगों की सहायता करेगी।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

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