परमेश्वर के राज्य का मार्ग हमेशा आसान नहीं होता (II)

19 जुलाई, 2022

सेनें, भारत

पादरी की यह बात सुनकर, मेरे मन पर बहुत दबाव पडा, क्योंकि मुझे पता था कि एक बार कलीसिया की सुप्रीम काउंसिल द्वारा पूछताछ हो जाने पर, वे मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे। अगर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण नहीं छोड़ा, तो भविष्य में किसी प्रमाणपत्र की जरूरत होने पर ग्राम प्रमुख मेरे लिए उस पर हस्ताक्षर नहीं करेगा, और शायद मुझे कोई नौकरी भी न मिले। मेरे माता-पिता ने मुझे कॉलेज इसलिए भेजा था ताकि स्नातक होने के बाद कोई अच्छी नौकारी मिल जाएगी। अगर मुझे नौकरी नहीं मिली, तो मेरे माता-पिता सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने से मुझे यकीनन और भी ज्यादा रोकेंगे। मैंने अभी-अभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया है, अब भी सत्य को बहुत कम ही समझता हूँ। अगर वे मुझे पूछताछ के लिए ले गये, और मुझ पर हमला करनेवाले लोगों के समूह से मेरा सामना हुआ, तो क्या मैं झेल पाऊँगा? अगर मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने पर अड़ा रहा, तो क्या वे मुझे स्कूल से निकाल देंगे? क्या वे दूसरे सभी विश्वासियों से कहेंगे कि मुझे ठुकरा दें? इस बारे में सोचकर मैं बहुत परेशान हो गया, मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, मुझे रास्ता दिखाने की विनती की, कहा कि मैं दृढ़ता से उसकी गवाही देना चाहता हूँ।

प्रार्थना के बाद, मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का यह वचन याद आया। "तुम लोगों को जागते रहना चाहिए और हर समय प्रतीक्षा करनी चाहिए, और तुम लोगों को मेरे सामने अधिक बार प्रार्थना करनी चाहिए। तुम्हें शैतान की विभिन्न साजिशों और चालाक योजनाओं को पहचानना चाहिए, आत्माओं को पहचानना चाहिए, लोगों को जानना चाहिए और सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों को समझने में सक्षम होना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 17)। "शैतान हमेशा उपस्थित रहकर मेरे बारे में लोगों के हृदय में मौजूद ज्ञान भस्म कर रहा है, और दाँत पीसते हुए और अपने पंजे खोलते-बंद करते हुए अपनी मृत्यु के अंतिम समय के संघर्ष में लगा हुआ है। क्या तुम लोग इस समय उसके कपटपूर्ण षड्यंत्रों में फँसना चाहते हो? क्या तुम लोग ऐसे वक्त में अपना जीवन बरबाद कर लेना चाहते हो, जब मेरा कार्य अंतत: पूरा हो गया है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचन से मैंने समझा कि मेरे साथ जो कुछ घट रहा था, वह शैतान की चाल थी। शैतान मुझे परेशान कर परमेश्वर का अनुसरण करने से रोकना चाहता था। वैसे तो मेरा आध्यात्मिक कद छोटा था, मैं बहुत कम सत्य जानता था, मगर शैतान को नीचा दिखाने के लिए, अडिग रहकर परमेश्वर पर भरोसा करने को तैयार था। इसलिए मैंने पादरी से कहा, "मैं सभाओं में जाना बंद नहीं करूँगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करता रहूँगा।" जब मैंने पादरी की बात नहीं मानी, तो मेरे माता-पिता बहुत नाराज हो गए। मेरे डैड आँखें लाल करके मुझ पर चिल्लाए, "तूने 'ना' कहने की हिम्मत कैसे की? पादरी के जाने से पहले, तुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास न रखने की कसम खानी होगी!" पादरी ने भी मुझे यह कहकर धमकी दी, कि अगर हफ्ते भर के अंदर सभाओं में जाना बंद नहीं किया, तो पूछताछ के लिए मुझे सुप्रीम काउंसिल में ले जाना पड़ेगा। मगर, मुझे कोई खेद नहीं था, क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता था कि मेरा फैसला सही था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारने से पहले, मैं परमेश्वर में विश्वास रखता था, लेकिन मुझे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश की जरूरतों की समझ नहीं थी। कभी तो मेरा मन फंतासियों से भरा होता, और कभी उलझन में, क्योंकि मैं अक्सर पाप करता और नहीं जानता था कि मैं राज्य में प्रवेश कर पाऊँगा या नहीं। अब मैंने समझ लिया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कारण ही मैं इस दुष्ट संसार को स्पष्ट रूप से देख और समझ रहा था कि शैतान इंसान को कैसे भ्रष्ट करता है। अगर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन न पढ़े होते, तो बिल्कुल नहीं जान पाता कि पाप के बंधनों से, या शैतान की भ्रष्टता से कैसे बच निकलूँ। इसलिए वे मुझे कैसे भी रोकें, मैं कभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण नहीं छोडूँगा। पादरी समझ गया कि छोड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं था, तो वह गुस्से से चला गया। मेरे माता-पिता भी बहुत नाराज थे कि मैंने पादरी को ठुकरा दिया, वे आग बबूला होकर बोले, "तूने पादरी को नकारने और कलीसिया द्वारा मना किया गया काम करने की हिम्मत की। रिवाज के अनुसार, तो तुझे गाँव से निकाल देना चाहिए। अगर गाँववाले तुझे ठुकरा दें, तो भविष्य में तुझे प्रमाणपत्र की जरूरत होने पर, ग्राम प्रमुख तेरे लिए दस्तखत नहीं करेगा। तुझे नौकरी भी नहीं मिलेगी। क्या तूने इन परिणामों के बारे में सोचा है? तब तू कहाँ जाएगा? तू महज एक छात्र है। तेरे पास रहने की जगह नहीं है, तुझे काम नहीं मिलेगा। तू जियेगा कैसे?" मेरे पिता ने यह भी कहा कि मेरे जैसा बेटा पाकर वे शर्मिंदा हैं। वे बोले कि मैंने उन्हें बहुत शर्मिंदा किया, और मैं भविष्य में उनका बेटा न बनूँ। मेरे पूरे जीवन में, पहली बार मेरे पिता ने मुझे इस तरह डांटा था। उन्होंने बेरुखी से यह भी कहा कि मैं अब उनका बेटा नहीं रहा। यकीन नहीं हुआ कि मेरे माता-पिता ऐसी बातें कह सकते हैं। मैं इतना दुखी था कि कुछ नहीं बोला। मेरे पिता बोलते रहे, "मैं फिर से कहता हूँ, अगर तू अब भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखता रहेगा, तो बेहतर होगा कि तू वो सारा पैसा मुझे लौटा दे जो मैंने तुझे बड़ा करने पर खर्च किया!" जब गाँववालों के सामने मेरे पिता ने यह कहा, तो मैंने बहुत अपमानित और दुखी महसूस किया। मेरे माता-पिता पहले मुझसे अच्छा बर्ताव करते थे। अपने दस बच्चों में से, वे मुझे सबसे ज्यादा पसंद करते थे, मुझसे उन्हें सबसे ज्यादा उम्मीदें थीं। आज तक मुझसे उन्होंने ऐसी कड़वी बातें नहीं कीं, लेकिन अब उनका रवैया पूरी तरह बदल गया था। मुझे माता-पिता की दयालुता की कमी खलने लगी, मैं उनके साथ कोई मुश्किल नहीं चाहता था। मैं बहुत कमजोर महसूस करने लगा, समझ नहीं आया क्या करूँ, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, इस माहौल को झेलने में मेरी अगुआई करने की विनती की। फिर, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया। "तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक घिनौना जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रेरणा दी। मैं समझ गया सत्य हासिल करने के लिए कष्ट झेलने होंगे। हालाँकि मेरे परिवार ने मेरा विरोध किया, पादरी ने रुकावट डाली, और गाँववालों ने आलोचना की, मैंने परेशान और कमजोर महसूस किया, मगर उन लोगों ने जो भी कहा हो, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण नहीं छोड़ सका। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर और सभाओं में भाई-बहनों की संगति सुनकर, मैं अनेक सत्य और रहस्य समझ पाया था, मेरे दिल ने इस बात की पुष्टि कर दी थी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही अंत के दिनों का मसीह, वापस आया हुआ प्रभु यीशु है, इसलिए मैं सभाओं में जाना बंद नहीं कर सका। मैं जानता था कि अगर मैंने सभाओं में जाना बंद कर दिया, तो सब-कुछ शांत हो जाएगा। मेरा परिवार तब मेरा विरोध नहीं करेगा, वे मुझसे पहले जैसा ही बर्ताव करेंगे, और मुझ पर कोई नहीं हँसेगा, लेकिन मैं सत्य हासिल करने और परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का मौका गँवा दूंगा। मैंने खुद को समझाया, मैं सत्य नहीं छोड़ सकता, अपने परिवार की अस्वीकृति के चलते परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन ही सत्य हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही हमें बता सकता है कि शैतान मानवजाति को कैसे भ्रष्ट करता है, उसी ने हमें वह रास्ता दिखाया है, जिससे हम पाप से बचकर परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं। आज सत्य हासिल करने के लिए मेरा कष्ट झेलना सार्थक था। इसलिए मैंने अपने परिवार की पाबंदियाँ न झेलने की ठान ली। अब वे मेरी पढाई की फीस दें या न दें, भले ही मुझे गाँव से निकाल बाहर किया जाए, मेरा जीना मुश्किल हो जाए, तो भी मैं परमेश्वर में विश्वास रखना और सत्य का अनुसरण करना नहीं छोडूंगा।

अगले हफ्ते के लिए, पादरी ने हर रात दो सहकर्मियों के हमारे घर आने की व्यवस्था की। वे मुझे सभाओं में भाग लेने से रोकने के लिए हर दिन वही बातें दोहराते। उन्होंने कुछ भी कहा हो, मैंने सभाओं में जाना जारी रखा। उन दिनों, मैं अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करता, उससे मेरा दिल शांत करने और बाधाओं से दूर रखने की विनती करता। बाद में, मेरे चाचा को डर लगा कि अगर बात फैल गई, तो मेरे परिवार का मजाक उड़ाया जाएगा, तो वे एक नई रणनीति बनाने के लिए पादरी के पास गए। वे लोग मुझे एक धर्मशास्त्री के पास ले गए, जिन्होंने धर्मशास्त्र में पीएचडी किया था और बाइबल से अच्छी तरह परिचित थे। मुलाकात के बाद, धर्मशास्त्री ने मुझसे पूछा, "तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास क्यों रखते हो? क्या तुम्हें एहसास है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर बस एक साधारण व्यक्ति है? एक व्यक्ति में विश्वास रखने की क्या जरूरत?" मैंने पलट कर कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर देहधारी परमेश्वर है। वह एक साधारण व्यक्ति जैसा लगता है, लेकिन उसमें परमेश्वर का आत्मा निहित है, वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण है। उसमें सामान्य इंसानियत ही नहीं, संपूर्ण दिव्यता भी है। ठीक प्रभु यीशु की तरह; देखने में वह एक साधारण मनुष्य था, लेकिन वास्तव में मनुष्य का देहधारी पुत्र, स्वयं परमेश्वर था। वह सत्य व्यक्त कर सकता था, मानवजाति को छुटकारा दिलाने और बचाने का कार्य कर सकता था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में आया है और उसने अनेक सत्य व्यक्त किए हैं। उसने सत्य के अनेक रहस्यों का खुलासा किया है, जैसे कि परमेश्वर की छह-हजार वर्षीय प्रबंधन योजना, देहधारण का रहस्य, और अंत के दिनों में, परमेश्वर लोगों को शुद्ध कर बचाने के लिए, न्याय-कार्य कैसे करता है। उसने इंसान के पाप करने के मूल कारण का भी खुलासा किया है। अगर वह एक साधारण इंसान होता, तो क्या वह इतने सारे सत्य व्यक्त कर पाता? परमेश्वर सृजन का प्रभु है, वह सत्य का स्रोत है, परमेश्वर ही सत्य व्यक्त कर सकता है, दुनिया का कोई भी मशहूर या महान व्यक्ति सत्य व्यक्त नहीं कर सकता! स्वयं परमेश्वर ही ये सत्य व्यक्त कर सकता है। परमेश्वर के सिवाय कोई ऐसा नहीं कर सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त सभी सत्य यह साबित करने के लिए काफी हैं कि वह देहधारी परमेश्वर है, स्वयं परमेश्वर है।" जैसे ही मैंने ये बातें कहीं, धर्मशास्त्री विद्वान मुझे टोककर बोले, "तुम गलत कह रहे हो। परमेश्वर के सभी वचन बाइबल में हैं, और बाइबल के बाहर कोई नए वचन नहीं हो सकते। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन परमेश्वर के नए वचन नहीं हो सकते।" मैंने उनकी बात काटते हुए कहा, "आपके पास इसके लिए बाइबल का कोई आधार है? क्या प्रभु यीशु के वचन में, इसका सबूत है? प्रभु यीशु ने कहा, 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। बाइबल में भविष्यवाणी की गई है कि मेमना अंत के दिनों में सूचीपत्र खोलेगा। ये सब दर्शाते हैं कि अंत के दिनों में वापस आने पर परमेश्वर वचन बोलेगा। अगर आपके कहे अनुसार, परमेश्वर बाइबल के बाहर के कोई नए वचन न बोले, तो क्या यह प्रभु के वापस आने के बारे में सभी वचनों और कार्य को ठुकराना नहीं है?" बेसब्री का हाव-भाव लिए उन्होंने मेरी बात सुनी ही नहीं। उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा में कुछ बातें कहीं, और मुझसे बार-बार कहा कि चमकती पूर्वी बिजली के धर्मोपदेशों को सुनना बंद कर दूँ। फिर वे दिखावा करने लगे कि उनकी धर्मशास्त्र की डिग्री कितनी ऊंची थी, प्रभु के लिए प्रचार करने में उन्होंने कितने कष्ट सहे, वगैरह-वगैरह। उन्होंने यह भी कहा कि बाइबल को समझने के लिए मैं बहुत छोटा हूँ, और मुझे उनकी बात माननी चाहिए, फिर उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के लोगों के साथ सभा करने से मना किया। मेरे चाचा ने भी कहा : "हमें उस चीज में विश्वास नहीं रखना चाहिए, जिसकी धार्मिक वर्ग निंदा करता है। ये धर्मशास्त्री अपने बाइबल ज्ञान के लिए बहुत मशहूर हैं, तुम सौभाग्यशाली हो कि तुम्हें उनसे बात करने का मौका मिला। उम्मीद है तुम उनकी बातें सुनोगे, और सभाओं में भाग लेना बंद कर दोगे।" मैंने उनसे कहा, "मैं पाप में जीते रहने को लेकर थोड़ी उलझन में था। कारण नहीं जान पाया कि लोग पाप से क्यों दूर नहीं हो पाते। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने तक मैं यह नहीं समझ पाया, कि यह पूरी तरह से हमारे अंदर की पापी प्रकृति के कारण है। अगर हमारी पापी प्रकृति को हटाया नहीं गया, तो हम कभी भी पाप के बंधन से मुक्त नहीं हो पाएंगे।" मैंने उन्हें देहधारण के सत्य के बारे में भी गवाही दी। मेरे यह कहने के बाद, धर्मशास्त्री ने कहा कि उन्हें मेरी बातों से प्रेरणा मिली है। वे बोले कि बातें बहुत अच्छी थीं, उन्होंने भविष्य में मुझसे इस बारे में चर्चा करने की उम्मीद जताई, मगर जोर दिया कि मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को नहीं स्वीकारना चाहिए। मैं समझ गया कि भले ही ये धर्मशास्त्री बाइबल से परिचित थे, उन्हें धर्मशास्त्र का बहुत ज्ञान था, वे काफी मशहूर भी थे, मगर असल में, वे आध्यात्मिक रूप से कमजोर थे, कोई सत्य नहीं समझते थे। वे बहुत घमंडी भी थे, सत्य को स्वीकारने में असमर्थ थे, परमेश्वर के कार्य की जाँच-पड़ताल करने में कोई रुचि नहीं थी। प्रभु यीशु का प्रतिरोध करनेवाले फरीसियों की ही तरह, वे अंत के दिनों में परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की निंदा करते रहे। वह संवाद सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने के मेरे संकल्प को नहीं बदल सका। इसके विपरीत, इससे मैं धार्मिक दुनिया के पादरियों, एल्डरों और धर्मशास्त्रियों को समझ पाया। मैंने उन्हें आदर से देखना और उनकी सराहना करना छोड़ दिया। इस दौरान, सभाओं में भाग लेने और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने के जरिए, मुझे धार्मिक दुनिया की भ्रांतियों की भी समझ हासिल हुई। इससे मुझे और यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन ही सत्य है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर एकमात्र सच्चे परमेश्वर का प्रकटन है। एक सभा के दौरान, मैंने हाल के अपने हालात के बारे में भाई-बहनों से चर्चा की, तो उन्होंने परमेश्वर के कुछ वचन मेरे साथ साझा किए, जिनसे मुझे इस आध्यात्मिक युद्ध में झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों की थोड़ी समझ हासिल हुई। प्रभु यीशु ने कहा था, "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो" (मत्ती 23:13)। "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो" (मत्ती 23:15)। परमेश्वर के वचन पढ़ने और उनकी संगति सुनने के बाद, मेरे दिल में काफी उजाला महसूस हुआ। मैंने समझ लिया कि धार्मिक दुनिया के ये पादरी और अगुआ उन फरीसियों जैसे ही हैं, जिन्होंने खुद को नेक दिखाने की कोशिश की थी। वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का प्रतिरोध और निंदा करते हैं, परमेश्वर की वाणी सुनने और प्रभु का स्वागत करने से लोगों को रोकने की भरसक कोशिश करते हैं। वे परमेश्वर के राज्य में लोगों के प्रवेश के लिए राह का रोड़ा हैं। वे न सिर्फ खुद परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं करते, बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने से रोकते हैं। वे सच में बुरे हैं! सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन कहते हैं, "ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे 'मज़बूत देह' वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)। "प्रत्येक पंथ और संप्रदाय के अगुवाओं को देखो। वे सभी अभिमानी और आत्म-तुष्ट हैं, और बाइबल की उनकी व्याख्या में संदर्भ का अभाव है और वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार चलते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और पांडित्य पर भरोसा करते हैं। यदि वे उपदेश देने में पूरी तरह अक्षम होते, तो क्या लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ ज्ञान तो है ही और वे सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों को कैसे जीता जाए, और कुछ चालाकियों का उपयोग कैसे करें। इनके माध्यम से वे लोगों को धोखा देते हैं और अपने सामने ले आते हैं। नाम मात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने अगुवाओं का अनुसरण करते हैं। जब वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे मार्ग का प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, 'हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के बारे में हमारे अगुवा से परामर्श करना है।' देखो परमेश्वर में विश्वास करते और नया मार्ग स्वीकारते समय कैसे लोगों को अभी भी दूसरों की सहमति और मंजूरी की जरूरत होती है—क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब अगुवा क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-विरोधी, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकार करने में अवरोध नहीं बन चुके हैं? इस तरह के लोग पौलुस के प्रकार के ही हैं" (अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन)। परमेश्वर धार्मिक अगुआओं के सत्य से घृणा और परमेश्वर का प्रतिरोध करने के सार का खुलासा करता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने प्रकट होकर बहुत-से सत्य व्यक्त किए हैं, लेकिन वे बिल्कुल नहीं खोजते। परमेश्वर की वाणी सुनने के बजाय, वे नास्तिक पार्टी, सीसीपी की अफवाहों पर ध्यान देते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की निंदा करते हैं, विश्वासियों को धोखा देने के लिए भ्रांतियाँ फैलाते हैं, हमें प्रभु की वाणी सुनने और उसका स्वागत करने से रोकते हैं। इससे बचाए जाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का हमारा मौका बरबाद हो रहा है! हालाँकि ये पादरी और अगुआ, कलीसिया में अक्सर लोगों को बाइबल समझाते हैं, मगर उन्हें परमेश्वर और उसके कार्य की जरा भी जानकारी नहीं है। वे परमेश्वर का भय भी नहीं मानते। उनका सार और प्रकृति बिल्कुल फरीसियों के समान है। वे सब मसीह-विरोधी हैं, जो सत्य से घृणा और परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं। फिर मुझे याद आया कि कैसे यहूदी धर्म के विश्वासी आँखें बंद करके धार्मिक अगुआओं की आराधना करते थे, प्रभु यीशु का प्रतिरोध करने में फरीसियों के पीछे चलते थे, नतीजतन परमेश्वर का उद्धार गँवा दिया। मेरे माता-पिता भी पादरियों और एल्डरों की आराधना करते थे। उन्होंने कई साल तक प्रभु में विश्वास रखा था, लेकिन उनके दिलों में परमेश्वर के लिए जगह नहीं थी। उन्होंने सत्य को नहीं समझा, उनमें विवेक नहीं था। उन्हें लगा कि पादरियों और एल्डरों की आज्ञा माननेवाले लोग प्रभु की आज्ञा मान रहे हैं। मेरे माता-पिता पादरियों और एल्डरों की हर बात सुनते थे। प्रभु का स्वागत करने जैसे बड़े अहम मामले में भी, उन्होंने समझदारी नहीं दिखाई और आँखें बंद करके पादरी को सुनते रहे, जब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के बारे में गवाही दी, तो उन्होंने बिल्कुल नहीं सुनी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा करने के लिए पादरी और धर्मशास्त्री की बातें दोहरा दीं। उन्होंने यह भी कहा, "यह सच्चा मार्ग हो, तो भी जब तक पादरी और एल्डर इसे नहीं स्वीकारेंगे, हम भी नहीं स्वीकारेंगे।" मैं समझ गया कि मेरे माता-पिता बहुत भोले थे। वे प्रभु में विश्वास कैसे रखते थे? क्या वे सिर्फ पादरियों और एल्डरों में विश्वास नहीं रख रहे थे? मैंने अपने माता-पिता से कहा, "अगर आप अनुग्रह के युग में पैदा हुए होते, जब प्रभु यीशु कार्य करने के लिए प्रकट हुआ था, तो आप यहूदी धर्म के उन विश्वासियों जैसे ही होते, प्रभु यीशु का प्रतिरोध और निंदा करने में फरीसियों के पीछे-पीछे चले होते, क्योंकि आप सिर्फ पादरियों और एल्डरों की ही सुनते हैं। अगर पादरी और एल्डर किसी चीज को झूठा कहकर निंदा करते हैं, तो आप भी वही कहते हैं, आप खुद सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल नहीं करते, न ही परमेश्वर की वाणी सुनने का प्रयास करते हैं। क्या यह उन लोगों जैसा ही नहीं है जो फरीसियों के पीछे चलकर प्रभु यीशु का प्रतिरोध करते थे? क्या ऐसा करके आपको अच्छे नतीजे मिलेंगे?" उन दिनों की घटनाओं के दौरान, मैं अपने माता-पिता को थोड़ा समझ पाया, अब मैं अपनी भावनाओं से बेबस नहीं हुआ, मैंने परमेश्वर की गवाही देने का संकल्प कर लिया था।

उस दौरान, मेरे हर काम पर मेरे माता-पिता की नजर होती। मैं घर पर शांति से सभाओं में भाग नहीं ले पाता। तब, मुझे सभाओं के लिए रात में गाँव से सटे हुए छोटे-से जंगल में छुपना पड़ता। वहाँ बहुत-से मच्छर और कीड़े-मकोड़े होते थे। मच्छर बुरी तरह काटते थे, बैठने के लिए भी कोई आरामदेह जगह नहीं थी। कभी-कभी, रात देर तक मैं जंगल में ही रहता। मेरे माता-पिता को पता न चल जाए कि मैं सभा के लिए बाहर जाता हूँ, मुझे सोने के लिए चोरी-छिपे घर में घुसना पड़ता था, सुबह उनसे पहले ही उठ जाना पड़ता था, ताकि वे समझें कि मैं रात को अच्छे से सोया था। दिन में, आम तौर पर अपने माता-पिता की मदद के लिए खेतों में जाता। कुछ देर बाद, थक जाता, नींद आने लगती। यह बहुत थकानेवाला था। मैं थोड़ा कमजोर महसूस करने लगा, नहीं जानता था कि ये दिन कब ख़त्म होंगे। कभी-कभी यह भी सोचता कि अगर मैं अपने माता-पिता की बात मानकर सभाओं में नहीं गया, तो इतनी मुश्किल नहीं होगी, गाँववाले मुझ पर नहीं हँसेंगे, और नौकरी ढूँढ़ने पर भी कोई बुरा असर नहीं होगा। इन चीजों के बारे में सोचकर, मैं थोड़ा घबरा गया। लेकिन फिर सोचा कि हर सभा में, मैं कुछ सत्य समझ पाता हूँ, और ये ऐसे सत्य हैं जो मैंने पहले कभी नहीं सुने। मुझे यह छोड़ने की इच्छा नहीं हुई। उस दौरान, परमेश्वर के वचन के एक भजन से मुझे बहुत प्रोत्साहन मिला, मैंने इसे कई बार सुना। "अंत के दिनों के कार्य में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर मानवजाति की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। इस चरण में परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है। लोगों को उस बिंदु तक पहुँचने की आवश्यकता है जहाँ वे सैकड़ों बार शुद्धिकरणों का सामना कर चुके हैं और अय्यूब से भी ज़्यादा आस्था रखते हैं। किसी भी समय परमेश्वर से दूर जाए बिना उन्हें अविश्वसनीय पीड़ा और सभी प्रकार की यातनाओं को सहना आवश्यक है। जब वे मृत्यु तक आज्ञाकारी रहते हैं, और परमेश्वर में अत्यंत विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा हो जाता है" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'परमेश्वर विश्वास को पूर्ण बनाता है')। इस भजन से मैंने समझा कि मुश्किल घड़ियों में, मेरी देह कमजोर और दुखी हो सकती है, लेकिन इन घड़ियों में, मुझे देह-सुख त्यागना सीखना होगा। अगर मैं देह-सुख के पीछे भागा, तो परमेश्वर को संतुष्ट नहीं कर पाऊँगा, और परमेश्वर में मेरी श्रद्धा भी नहीं रहेगी। मुझे अच्छी तरह मालूम था कि हर सभा मेरे जीवन के लिए उपयोगी थी, मेरा हासिल किया हुआ सत्य एक अनमोल खजाना था। हालाँकि देर रात जंगल में हर सभा शारीरिक रूप से थकाऊ और मुश्किल होती थी, मगर यह मेरे लिए एक परीक्षा भी थी, कि क्या मैं सत्य हासिल करने और परमेश्वर में सच्ची आस्था रखने के लिए कष्ट झेल सकता हूँ। मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं दुनिया में शोहरत और दौलत के पीछे भागूँ, अच्छी नौकरी खोजूं, ताकि मेरे परिवार का जीवन खुशहाल हो और उनका गौरव बढ़े। वे यही चाहते थे, मुझसे यही उम्मीद करते थे। लेकिन अगर मैंने अपने माता-पिता की बात मानी और सभाओं में जाना छोड़ दिया, तो भले ही मुझे कष्ट नहीं झेलने पड़ेंगे, मगर मैं सत्य भी हासिल नहीं कर पाऊँगा। मैं जैसा हूँ वैसा ही रहूँगा, सिर्फ खुद को आनंद देने और देह-सुख के पीछे भागने में लगा हुआ, जो कि बेमानी है। अब मैं परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर परमेश्वर का दिया इतना सारा सत्य पा सकता हूँ, यह सबसे बड़ी आशीष है। सत्य को समझने के सामने मेरा कष्ट कुछ भी नहीं था, यह बहुत सार्थक था। इस बारे में सोचकर, मैं देह-सुख छोड़ने को तैयार हो गया, मेरा परिवार मेरे बारे में क्या कहेगा, इसकी परवाह नहीं की। इन मुश्किलों पर विजय पाने के लिए सिर्फ परमेश्वर के भरोसे रहने की उम्मीद रखी।

फिर, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर, मेरी हालत धीरे-धीरे सुधरने लगी। धीरे-धीरे मैंने समझ लिया कि सिर्फ इस माहौल की मुश्किलों में ही, मैं परमेश्वर की इच्छा को खोज सकता हूँ, परमेश्वर में सच्ची आस्था रख सकता हूँ, इसके लिए मैं परमेश्वर का बहुत आभारी हूँ! मैं जंगल में सभाओं में जाता रहा। एक बार, जब मैं एक सभा में था, तो न जाने कैसे किसी को पता चल गया और उसने मेरे माता-पिता को बता दिया। अगले दिन सुबह के नाश्ते पर, मेरी माँ ने मुझसे कहा, "मैंने सोचा था धर्मशास्त्री से मिलने के बाद तूने सभाओं में जाना छोड़ दिया। मुझे नहीं पता था तू रात में सभाओं में भाग लेने जंगल भागा करता था। तुझे डर नहीं लगता?" बोलते-बोलते वह रोने लगी। ऐसा पहली बार था कि मेरी माँ मेरे सामने रोई। मुझे समझ नहीं आया क्या कहूँ। आँखों में आँसू भर आए। मैं अपने माता-पिता का दिल नहीं दुखाना चाहता था, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण भी नहीं छोड़ सकता था। मैं बड़ी दुविधा में था। तब, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया। "परमेश्वर अपना कार्य करता है, वह एक व्यक्ति की देखभाल करता है, उस पर नज़र रखता है, और शैतान इस पूरे समय के दौरान उसके हर कदम का पीछा करता है। परमेश्वर जिस किसी पर भी अनुग्रह करता है, शैतान भी पीछे-पीछे चलते हुए उस पर नज़र रखता है। यदि परमेश्वर इस व्यक्ति को चाहता है, तो शैतान परमेश्वर को रोकने के लिए अपने सामर्थ्य में सब-कुछ करता है, वह परमेश्वर के कार्य को भ्रमित, बाधित और नष्ट करने के लिए विभिन्न बुरे हथकंडों का इस्तेमाल करता है, ताकि वह अपना छिपा हुआ उद्देश्य हासिल कर सके। क्या है वह उद्देश्य? वह नहीं चाहता कि परमेश्वर किसी भी मनुष्य को प्राप्त कर सके; उसे वे सभी लोग अपने लिए चाहिए जिन्हें परमेश्वर चाहता है, ताकि वह उन पर कब्ज़ा कर सके, उन पर नियंत्रण कर सके, उनको अपने अधिकार में ले सके, ताकि वे उसकी आराधना करें, ताकि वे बुरे कार्य करने में उसका साथ दें। क्या यह शैतान का भयानक उद्देश्य नहीं है? ... परमेश्वर के साथ युद्ध करने और उसके पीछे-पीछे चलने में शैतान का उद्देश्य उस समस्त कार्य को नष्ट करना है, जिसे परमेश्वर करना चाहता है; उन लोगों पर कब्ज़ा और नियंत्रण करना है, जिन्हें परमेश्वर प्राप्त करना चाहता है; उन लोगों को पूरी तरह से मिटा देना है, जिन्हें परमेश्वर प्राप्त करना चाहता है। यदि वे मिटाए नहीं जाते, तो वे शैतान द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए उसके कब्ज़े में आ जाते हैं—यह उसका उद्देश्य है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV)। परमेश्वर के वचनों पर मनन करने के बाद, मैं समझ सका कि परमेश्वर लोगों को बचाने के लिए कार्य करता है, जबकि शैतान परमेश्वर का अनुसरण करने और उसका उद्धार स्वीकारने में लोगों को बाधित करने और रोकने की कोशिश करता है। मुझे याद आया, अय्यूब की पत्नी ने कैसे उसे परमेश्वर को छोड़ देने के लिए ललचाया था। यह शैतान की चाल थी। मैंने सोचा कैसे इस दौरान मेरे दोस्तों ने मुझे परेशान किया, पादरी और मेरे परिवार ने भी रुकावट डाली, धमकी दी, परमेश्वर में विश्वास न रखने के लिए दबाव डाला। ये सब शैतान के प्रलोभन और चालें थीं। मेरे माता-पिता ने डर जताया कि मुझे गाँव से बाहर खदेड़ दिया जाएगा, मेरे लिए कोई जगह नहीं होगी। मेरी माँ ने यह भी कहा कि उसे मेरी चिंता है। ये बातें ऐसी थीं मानो वे परेशान हों, लेकिन दरअसल शैतान परमेश्वर का अनुसरण करने से मुझे रोकने के लिए मेरे परिवार का इस्तेमाल कर रहा था। शैतान चाहता था मैं परमेश्वर को छोड़ दूं, पादरी के पीछे चलूँ, धर्म में बना रहूँ, और परमेश्वर का उद्धार खो दूँ। मैं शैतान की चालों में नहीं फँस सकता था। फिर, मैंने सभाओं में भाग लेना और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ना जारी रखा। मुझे मालूम है कि आनेवाले दिनों में, शैतान मेरे सामने बहुत से प्रलोभन और अवरोध लाएगा, मेरे आगे बहुत-सी मुश्किलें आएंगी, लेकिन मेरा दिल जानता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन ही सत्य है। परमेश्वर के वचन पढ़ना, उसके कार्य का अनुभव करना, और सत्य हासिल करना, मेरे लिए बहुत मायने रखता है। मुझे कितने भी कष्ट झेलने पड़ें, यह सब सार्थक है!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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