आध्यात्मिक दुनिया क्या है?

06 अगस्त, 2018

भौतिक संसार के विषय में, जब भी कुछ बातें या घटनाएँ लोगों की समझ में नहीं आती हैं, तो वे प्रासंगिक जानकारी को खोज सकते हैं, या उनके मूल और पृष्ठभूमि का पता लगाने के लिए विभिन्न माध्यमों का उपयोग कर सकते हैं। परन्तु जब दूसरे संसार की बात आती है जिसके बारे में हम आज बात कर रहे हैं—आध्यात्मिक संसार, जिसका अस्तित्व भौतिक संसार के बाहर है—तो लोगों के पास ऐसा भी कोई साधन या माध्यम बिलकुल नहीं है जिसके द्वारा इसके बारे में कुछ भी जाना जा सके। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? मैं ऐसा कहता हूँ क्योंकि, मानवजाति की दुनिया में, भौतिक संसार की हर चीज़ मनुष्य के भौतिक अस्तित्व से अवियोज्य है, और क्योंकि लोगों को ऐसा महसूस होता है कि भौतिक संसार की हर चीज़ उनकी भौतिक जीवन शैली और भौतिक जीवन से अवियोज्य है, इसलिए अधिकांश लोग केवल उन भौतिक चीज़ों से ही अवगत हैं, या उन्हें ही देखते हैं, जो उनकी आँखों के सामने होती हैं, जो चीज़ें उन्हें दिखाई पड़ती हैं। फिर भी, जब आध्यात्मिक दुनिया की बात आती है—कहने का तात्पर्य है कि हर चीज़ जो दूसरी दुनिया की है—तो यह कहना उचित होगा कि अधिकांश लोग विश्वास नहीं करते हैं। चूँकि लोग इसे देख नहीं सकते हैं, और वे मानते हैं कि इसे समझने की, या इसके बारे में कुछ भी जानने की आवश्यकता नहीं है, साथ ही आध्यात्मिक दुनिया भौतिक संसार से पूरी तरह से भिन्न है, और, परमेश्वर के दृष्टिकोण से तो यह खुली है—लेकिन मनुष्यों के लिए, यह रहस्य और गुप्त है—इसलिए लोगों को एक ऐसा मार्ग खोजने में अत्यंत कठिनाई होती है जिसके माध्यम से वे इस दुनिया के विभिन्न पहलुओं को समझ सकें। आध्यात्मिक दुनिया के विभिन्न पहलुओं, जिनके बारे में मैं बोलने जा रहा हूँ, उनका संबंध केवल परमेश्वर के प्रशासन और उसकी संप्रभुता से है: मैं किन्हीं रहस्यों का प्रकाशन नहीं कर रहा हूँ, न ही मैं तुम लोगों को उन रहस्यों में से कोई भी बता रहा हूँ, जिन्हें तुम लोग जानना चाहते हो। चूँकि यह परमेश्वर की संप्रभुता, परमेश्वर के प्रशासन, और परमेश्वर के भरण-पोषण से संबंधित है, इसलिए मैं केवल उस अंश के बारे में बोलूँगा जिसे जानना तुम लोगों के लिए आवश्यक है।

सबसे पहले, मैं तुम लोगों से एक प्रश्न पूछता हूँ : तुम लोगों के मन में आध्यात्मिक दुनिया क्या है? मोटे तौर पर बोला जाए, तो यह वह दुनिया है जो भौतिक संसार से बाहर की है, एक ऐसी दुनिया जो लोगों के लिए अदृश्य और अमूर्त दोनों है। फिर भी, तुम्हारी कल्पना में, आध्यात्मिक दुनिया को किस प्रकार का होना चाहिए? इसे न देख पाने के परिणामस्वरूप, शायद तुम लोग इसके बारे में सोच पाने में सक्षम नहीं हो। फिर भी, जब तुम लोग कुछ दन्तकथाएँ सुनते हो, तब तुम लोग इसके बारे में सोच रहे होते हो, और इसके बारे में सोचने से स्वयं को रोक नहीं पाते हो। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? कुछ ऐसी बात है जो बहुत से लोगों के साथ तब होती है जब वे छोटे होते हैं : जब कोई उन्हें कोई डरावनी कहानी—भूतों या आत्माओं के बारे में—सुनाता है तो वे अत्यंत भयभीत हो जाते हैं। आखिर वे क्यों भयभीत हो जाते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे उन चीज़ों की कल्पना कर रहे होते हैं; यद्यपि वे उन्हें नहीं देख सकते हैं, उन्हें महसूस होता है कि वे उनके कमरों में चारों ओर हैं, किसी छिपे हुए या अंधेरे कोने में, और वे इतने डर जाते हैं कि उनकी सोने की हिम्मत नहीं होती है। विशेष रूप से, रात के समय वे अपने कमरे में अकेले रहने या अपने आँगन में अकेले जाने की हिम्मत नहीं करते हैं। यह तुम्हारी कल्पना की आध्यात्मिक दुनिया है, और लोगों को लगता है कि यह एक भयावह दुनिया है। सच्चाई तो यह है कि हर कोई इसके बारे में कुछ हद तक कल्पना करता है, और हर कोई इसे थोड़ा बहुत अनुभव कर सकता है।

आओ, हम आध्यात्मिक दुनिया के बारे में बात करने से आरंभ करें। यह क्या है? मैं तुम्हें एक छोटा-सा और सरल स्पष्टीकरण देता हूँ : आध्यात्मिक दुनिया एक महत्वपूर्ण स्थान है, एक ऐसा स्थान जो भौतिक संसार से भिन्न है। मैं क्यों कहता हूँ कि यह महत्वपूर्ण है? हम इसके बारे में विस्तार से बात करने जा रहे हैं। आध्यात्मिक दुनिया का अस्तित्व मानवजाति के भौतिक संसार से अभिन्न रूप से जुड़ा है। सभी चीज़ों के ऊपर परमेश्वर के प्रभुत्व में यह मानव के जीवन और मृत्यु के चक्र में एक बड़ी भूमिका निभाता है; यह इसकी भूमिका है, और यह उन कारणों में से एक है जिनकी वजह से इसका अस्तित्व महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह एक ऐसा स्थान है जो पाँच इंद्रियों के लिये अगोचर है, इसलिए कोई भी इस बात का सही-सही अनुमान नहीं लगा सकता कि इसका अस्तित्व है अथवा नहीं। इसके विभिन्न गत्यत्मक पहलू मानवीय अस्तित्व के साथ अंतरंगता से जुड़े हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप मानवजाति के जीवन की व्यवस्था भी आध्यात्मिक दुनिया से बेहद प्रभावित होती है। इसमें परमेश्वर की संप्रभुता शामिल है या फिर नहीं? शामिल है। जब मैं ऐसा कहता हूँ, तो तुम लोग समझ जाते हो कि क्यों मैं इस विषय पर चर्चा कर रहा हूँ : ऐसा इसलिए है क्योंकि यह परमेश्वर की संप्रभुता से और साथ ही उसके प्रशासन से संबंधित है। इस तरह के एक संसार में—जो लोगों के लिए अदृश्य है—इसकी हर स्वर्गिक आज्ञा, आदेश और प्रशासनिक प्रणाली भौतिक संसार के किसी भी देश की व्यवस्थाओं और प्रणालियों से बहुत उच्च है, और इस संसार में रहने वाला कोई भी प्राणी उनकी अवहेलना या उल्लंघन करने का साहस नहीं करेगा। क्या यह परमेश्वर की संप्रभुता और प्रशासन से संबंधित है? आध्यात्मिक संसार में, स्पष्ट प्रशासनिक आदेश, स्पष्ट स्वर्गिक आज्ञाएँ और स्पष्ट विधान हैं। विभिन्न स्तरों पर और विभिन्न क्षेत्रों में, सेवक सख्ती से अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं, और नियमों और विनियमों का पालन करते है, क्योंकि वे जानते हैं कि स्वर्गिक आज्ञा के उल्लंघन का परिणाम क्या होता है; वे स्पष्ट रूप से अवगत हैं कि किस प्रकार परमेश्वर दुष्टों को दण्ड और भले लोगों को इनाम देता है, और वह किस प्रकार सभी चीज़ों को चलाता है, और उन पर शासन करता है। इसके अतिरिक्त, वे स्पष्ट रूप से देखते हैं कि किस प्रकार परमेश्वर अपने स्वर्गिक आदेशों और विधानों को कार्यान्वित करता है। क्या ये उस भौतिक संसार से भिन्न हैं, जिसमें मानवजाति रहती है? वे दरअसल व्यापक रूप से भिन्न हैं। आध्यात्मिक संसार एक ऐसा संसार है जो भौतिक संसार से पूर्णतया भिन्न है। चूँकि यहाँ स्वर्गिक आदेश और विधान हैं, इसलिए यह परमेश्वर की संप्रभुता, प्रशासन, और इसके अतिरिक्त, परमेश्वर के स्वभाव तथा साथ ही उसके स्वरूप से संबंधित है। इसे सुनने के पश्चात्, क्या तुम लोगों को यह महसूस नहीं होता है कि इस विषय पर बोलना मेरे लिये अति आवश्यक है? क्या तुम लोग इसमें अंतर्निहित रहस्यों को जानना नहीं चाहते हो? (हाँ, हम चाहते हैं।) आध्यात्मिक दुनिया की अवधारणा ऐसी है। यद्यपि यह भौतिक संसार के साथ सहअस्तित्व में है, और साथ-साथ परमेश्वर के प्रशासन और उसकी संप्रभुता के अधीन है, फिर भी इस दुनिया का परमेश्वर का प्रशासन और उसकी संप्रभुता भौतिक संसार की अपेक्षा बहुत सख्त है। जब विस्तार की बात आती है, तो हमें इस बात से आरंभ करना चाहिए कि किस प्रकार आध्यात्मिक दुनिया मनुष्य के जीवन और म़ृत्यु के चक्र के कार्य के लिए उत्तरदायी है, क्योंकि यह कार्य आध्यात्मिक दुनिया के प्राणियों के कार्य का एक बड़ा भाग है।

मानवजाति में, मैं सभी लोगों को तीन प्रकारों में वर्गीकृत करता हूँ। पहले प्रकार के लोग अविश्वासी हैं, ये वे हैं जो धार्मिक विश्वासों से रहित हैं। ये अविश्वासी कहलाते हैं। अविश्वासियों की बहुत बड़ी संख्या केवल धन में विश्वास रखती है; वे केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं, वे भौतिकवादी हैं और केवल भौतिक संसार में विश्वास करते है—वे जीवन और मृत्यु के चक्र में और देवताओं और प्रेतों के बारे में कही गई बातों में विश्वास नहीं रखते हैं। मैं इन लोगों को अविश्वासियों के रूप में वर्गीकृत करता हूँ, और ये पहले प्रकार के हैं। दूसरा प्रकार अविश्वासियों से अलग विभिन्न मतों को मानने वाले लोगों का है। मानवजाति में, मैं इन मतों के लोगों को अनेक मुख्य समूहों में विभाजित करता हूँ : पहले यहूदी हैं, दूसरे कैथोलिक हैं, तीसरे ईसाई हैं, चौथे मुस्लिम और पाँचवें बौद्ध हैं; ये पाँच प्रकार हैं। ये विभिन्न प्रकार के मतों वाले लोग हैं। तीसरा प्रकार उन लोगों का है जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और इसमें तुम लोग शामिल हो। ऐसे विश्वासी वे लोग हैं जो आज परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। इन लोगों को दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है : परमेश्वर के चुने हुए लोग और सेवाकर्ता। इन प्रमुख प्रकारों को स्पष्ट रूप से विभेदित किया गया है। तो अब, अपने मन में तुम लोग मनुष्यों के प्रकारों और क्रमों को स्पष्ट रूप से विभेदित करने में सक्षम हो, हो न? पहला प्रकार अविश्वासियों का है और मैं कह चुका हूँ कि अविश्वासी कौन हैं। क्या वे लोग जो आकाश में वृद्ध मनुष्य में विश्वास करते हैं, अविश्वासी हैं? कई अविश्वासी केवल आकाश में वृद्ध मनुष्य में विश्वास करते हैं; वे मानते हैं कि वायु, वर्षा, आकाशीय बिजली इत्यादि आकाश में इस वृद्ध मनुष्य द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं, जिस पर वे फसल बोने और काटने के लिए निर्भर रहते हैं—फिर भी जब परमेश्वर पर विश्वास करने का उल्लेख किया जाता है, तब वे उसमें विश्वास करने के अनिच्छुक हो जाते हैं। क्या इसे परमेश्वर में विश्वास कहा जा सकता है? ऐसे लोगों को अविश्वासियों में सम्मिलित किया जाता है। तुम इसे समझ गए, है न? इन श्रेणियों को समझने में ग़लती मत करना। दूसरे प्रकार में आस्था वाले लोग हैं और तीसरा प्रकार वे लोग हैं जो इस समय परमेश्वर का अनुसरण कर रहे हैं। क्यों मैंने सभी मनुष्यों को इन प्रकारों में विभाजित किया है? (क्योंकि विभिन्न प्रकार के लोगों के अंत और गंतव्य भिन्न-भिन्न हैं।) यह इसका एक पहलू है। जब इन विभिन्न प्रजातियों और प्रकारों के लोग आध्यात्मिक दुनिया में लौटते हैं, तो उनमें से प्रत्येक का जाने का भिन्न स्थान होगा और वे जीवन और मृत्यु के चक्र की भिन्न—भिन्न व्यवस्थाओं के अधीन किए जाएँगे, और यही कारण है कि क्यों मैंने मनुष्यों को इन मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X

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