जीवन का मार्ग कोई ऐसी चीज नहीं है जो हर किसी के पास हो, न ही यह कोई ऐसी चीज है जिसे हर कोई आसानी से प्राप्त कर सके। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जीवन केवल परमेश्वर से ही आ सकता है, कहने का तात्पर्य यह है कि केवल स्वयं परमेश्वर के पास ही जीवन का सार है, और केवल स्वयं परमेश्वर के पास ही जीवन का मार्ग है। और इसलिए केवल परमेश्वर ही जीवन का स्रोत और जीवन के जल का सदा बहने वाला सोता है। जब से परमेश्वर ने संसार को रचा है, उसने जीवन की प्राण-शक्ति से जुड़ा बहुत कार्य किया है, मनुष्य को जीवन प्रदान करने वाला बहुत कार्य किया है, और भारी मूल्य चुकाया है, ताकि मनुष्य जीवन प्राप्त कर सके। ऐसा इसलिए है, क्योंकि स्वयं परमेश्वर ही अनंत जीवन है, और स्वयं परमेश्वर ही वह मार्ग है, जिससे मनुष्य पुनर्जीवित होता है। परमेश्वर मनुष्य के हृदय से कभी अनुपस्थित नहीं होता, और हर समय मनुष्यों के बीच रहता है। वह मनुष्य के जीवन की प्रेरक शक्ति, मनुष्य के अस्तित्व का मूल, और जन्म के बाद मनुष्य के अस्तित्व के लिए समृद्ध भंडार रहा है। वह मनुष्य के पुनः जन्म लेने का निमित्त है, और उसे अपनी प्रत्येक भूमिका में दृढ़तापूर्वक जीने में समर्थ बनाता है। उसके सामर्थ्य और उसकी अविनाशी जीवन-शक्ति की बदौलत मनुष्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रहा है, जिसके दौरान परमेश्वर के जीवन का सामर्थ्य मनुष्य के अस्तित्व का मुख्य आधार रहा है, और परमेश्वर ने वह कीमत चुकाई है जो किसी साधारण मनुष्य ने कभी नहीं चुकाई। परमेश्वर की जीवन-शक्ति किसी भी अन्य शक्ति से जीत सकती है; इससे भी अधिक, यह किसी भी शक्ति से बढ़कर है। उसका जीवन अनंत है, उसका सामर्थ्य असाधारण है, और उसकी जीवन-शक्ति किसी भी सृजित प्राणी या शत्रु शक्ति से पराजित नहीं हो सकती। परमेश्वर की जीवन-शक्ति हर समय और हर स्थान पर विद्यमान रहती है और अपनी तेज चमक बिखेरती है। स्वर्ग और पृथ्वी में बड़े बदलाव हो सकते हैं, परंतु परमेश्वर का जीवन हमेशा एक-समान रहता है। हर चीज समाप्त हो सकती है, परंतु परमेश्वर का जीवन फिर भी रहेगा, क्योंकि परमेश्वर सभी चीजों के अस्तित्व का स्रोत और उनके अस्तित्व का मूल है। मनुष्य का जीवन परमेश्वर से उत्पन्न होता है, स्वर्ग का अस्तित्व परमेश्वर के कारण है, और पृथ्वी का अस्तित्व परमेश्वर के जीवन के सामर्थ्य से उत्पन्न होता है। प्राण-शक्ति से युक्त कोई भी वस्तु परमेश्वर की प्रभु-सत्ता का अतिक्रमण नहीं कर सकती, और ओज से युक्त कोई भी वस्तु परमेश्वर के अधिकार-क्षेत्र से नहीं बच सकती। इस प्रकार, सभी को, चाहे वे कोई भी हों, परमेश्वर के प्रभुत्व के आगे घुटने टेक देना चाहिए, सभी को परमेश्वर की आज्ञा के अधीन रहना चाहिए, और कोई भी उसके हाथों से बच नहीं सकता।
शायद अब तुम जीवन प्राप्त करना चाहते हो या शायद तुम सत्य प्राप्त करना चाहते हो। जो भी हो, तुम परमेश्वर को खोजना चाहते हो, उस परमेश्वर को खोजना चाहते हो जिस पर तुम भरोसा कर सको, और जो तुम्हें अनंत जीवन प्रदान कर सके। यदि तुम अनंत जीवन प्राप्त करना चाहते हो, तो तुम्हें पहले अनंत जीवन के स्रोत को समझना चाहिए और यह जानना चाहिए कि परमेश्वर कहाँ है। मैं पहले ही कह चुका हूँ कि केवल परमेश्वर ही स्थिर जीवन है, और केवल परमेश्वर के पास ही जीवन का मार्ग है। चूँकि परमेश्वर स्थिर जीवन है, इसलिए वह अनंत जीवन है; चूँकि केवल परमेश्वर ही जीवन का मार्ग है, इसलिए स्वयं परमेश्वर ही अनंत जीवन का मार्ग है। अतः सबसे पहले तुम्हें यह समझना चाहिए कि परमेश्वर कहाँ है, और अनंत जीवन का यह मार्ग कैसे प्राप्त करें। अब हम इन दोनों विषयों पर अलग-अलग संगति करते हैं।
यदि तुम सचमुच अनंत जीवन का मार्ग प्राप्त करना चाहते हो, और यदि तुम उसे खोजने के लिए आतुर हो, तो पहले इस प्रश्न का उत्तर दो : आज परमेश्वर कहाँ है? शायद तुम उत्तर दो, “निस्संदेह, परमेश्वर स्वर्ग में रहता है—वह तुम्हारे घर में तो रहेगा नहीं, है न?” शायद तुम कह सकते हो कि परमेश्वर स्पष्टतः सारी चीजों में रहता है। या तुम कह सकते हो कि परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में रहता है, या परमेश्वर आध्यात्मिक क्षेत्र में है। मैं इनमें से किसी से भी इनकार नहीं करता, परंतु मुझे मुद्दा स्पष्ट कर देना चाहिए। यह कहना पूरी तरह सही नहीं है कि परमेश्वर मनुष्य के हृदय में रहता है, किंतु यह पूरी तरह गलत भी नहीं है। इसका कारण यह है कि परमेश्वर के विश्वासियों में ऐसे लोग भी हैं जिनका विश्वास सच्चा है, और ऐसे लोग भी हैं जिनका विश्वास झूठा है, ऐसे लोग भी हैं जिन्हें परमेश्वर स्वीकृति देता है और ऐसे लोग भी हैं जिन्हें परमेश्वर स्वीकृति नहीं देता, ऐसे लोग भी हैं जिनसे वह प्रसन्न होता है और ऐसे लोग भी हैं जिनसे वह घृणा करता है, और ऐसे लोग भी हैं जिन्हें वह पूर्ण बनाता है और ऐसे लोग भी हैं जिन्हें वह हटा देता है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि परमेश्वर बस कुछ ही लोगों के हृदय में रहता है, और ये लोग निस्संदेह वे हैं जो परमेश्वर में सचमुच विश्वास करते हैं, जिन्हें परमेश्वर स्वीकृति देता है, जो उसे प्रसन्न करते हैं, और जिन्हें वह पूर्ण बनाता है। ये वे लोग हैं, जिनकी परमेश्वर द्वारा अगुआई की जाती है। चूँकि उनकी परमेश्वर द्वारा अगुआई की जाती है, इसलिए ये वे लोग हैं जो परमेश्वर का अनंत जीवन का मार्ग पहले ही सुन और देख चुके हैं। जिनका परमेश्वर में विश्वास झूठा है, जो परमेश्वर द्वारा स्वीकृत नहीं हैं, जिनसे परमेश्वर घृणा करता है, जो परमेश्वर द्वारा हटा दिए जाते हैं—उन्हें परमेश्वर द्वारा अस्वीकृत किया जाना तय है, उनका जीवन के मार्ग से विहीन रहना तय है, और उनका इस बात से अनभिज्ञ रहना तय है कि परमेश्वर कहाँ है। इसके विपरीत, जिनके हृदय में परमेश्वर रहता है, वे जानते हैं कि वह कहाँ है। ये ही वे लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर अनंत जीवन का मार्ग प्रदान करता है, और ये ही परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। अब क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर कहाँ है? परमेश्वर मनुष्य के हृदय में भी है और मनुष्य की बगल में भी है। वह न केवल आध्यात्मिक क्षेत्र में है, और सभी चीजों के ऊपर है, बल्कि उस पृथ्वी पर तो वह और भी अधिक है जिस पर मनुष्य रहता है। और इसलिए अंत के दिनों का आगमन परमेश्वर के कार्य के कदमों को नए क्षेत्र में ले आया है। परमेश्वर सभी चीजों पर प्रभुसत्ता रखता है, और वह मनुष्य के हृदय में उसका मुख्य आधार है, और इससे भी अधिक, वह मनुष्यों के बीच विद्यमान है। केवल इसी तरह से वह मनुष्य-जाति के लिए जीवन का मार्ग ला सकता है, और मनुष्य को जीवन के मार्ग में ला सकता है। परमेश्वर पृथ्वी पर आया है और मनुष्यों के बीच रहता है, ताकि मनुष्य जीवन का मार्ग प्राप्त कर सकें, और उनका अस्तित्व बना रहे। साथ ही, मनुष्यों के बीच किए जाने वाले अपने प्रबंधन के साथ सहयोग सुगम बनाने के लिए परमेश्वर सभी चीजों को आदेश देता है। और इसलिए, यदि तुम केवल इस सिद्धांत को स्वीकार करते हो कि परमेश्वर स्वर्ग में है और मनुष्य के हृदय में है, किंतु मनुष्यों के बीच परमेश्वर के अस्तित्व के सत्य को स्वीकार नहीं करते, तो तुम कभी जीवन प्राप्त नहीं करोगे, और न ही कभी सत्य का मार्ग प्राप्त करोगे।
स्वयं परमेश्वर ही जीवन और सत्य है, और उसका जीवन और सत्य एक-साथ रहते हैं। जो लोग सत्य प्राप्त करने में असमर्थ हैं, वे कभी जीवन प्राप्त नहीं करेंगे। सत्य के मार्गदर्शन, समर्थन और पोषण के बिना तुम केवल शब्द, धर्म-सिद्धांत, और सबसे बढ़कर, मृत्यु ही प्राप्त करोगे। परमेश्वर का जीवन सदा विद्यमान है, और उसका सत्य और जीवन एक-साथ रहते हैं। यदि तुम सत्य का स्रोत नहीं खोज सकते, तो तुम जीवन की पौष्टिकता प्राप्त नहीं करोगे; यदि तुम जीवन का पोषण प्राप्त नहीं कर सकते, तो तुममें निश्चित ही सत्य नहीं होगा, और इसलिए कल्पनाओं और धारणाओं के अलावा, संपूर्णता में तुम्हारा शरीर तुम्हारे मांस—तुम्हारे बदबूदार मांस—के सिवा कुछ न होगा। यह जान लो कि किताबों के शब्द जीवन नहीं माने जाते, इतिहास के अभिलेख सत्य की तरह नहीं पूजे जा सकते, और अतीत के नियम वर्तमान में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों के लेखे का काम नहीं कर सकते। परमेश्वर पृथ्वी पर आकर और मनुष्य के बीच रहकर जो कुछ अभिव्यक्त करता है, केवल वही सत्य, जीवन, परमेश्वर की इच्छा और उसका कार्य करने का वर्तमान तरीका है। यदि तुम अतीत के युगों के दौरान परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों के अभिलेख आज पर लागू करते हो, तो यह तुम्हें पुरातत्ववेत्ता बना देता है, और तुम्हारे बारे में बताने का सर्वोत्तम तरीका तुम्हें ऐतिहासिक धरोहर का विशेषज्ञ कहना है। इसका कारण यह है कि तुम हमेशा परमेश्वर द्वारा विगत युगों में किए गए कार्य के अवशेषों पर विश्वास करते हो, केवल पूर्व में मनुष्यों के बीच कार्य करते समय छोड़ी गई परमेश्वर की परछाई में विश्वास करते हो, और केवल पिछले युगों में परमेश्वर द्वारा अपने अनुयायियों को दिए गए मार्ग में विश्वास करते हो। तुम परमेश्वर के आज के कार्य के निर्देशन में विश्वास नहीं करते, परमेश्वर के आज के महिमामय मुखमंडल में विश्वास नहीं करते, और परमेश्वर द्वारा वर्तमान में व्यक्त किए जा रहे सत्य के मार्ग में विश्वास नहीं करते। और इसलिए तुम निर्विवाद रूप से एक दिवास्वप्नदर्शी हो, जो वास्तविकता से कोसों दूर है। यदि तुम अब भी उन वचनों से चिपके रहते हो जो मनुष्य को जीवन प्रदान करने में असमर्थ हैं, तो तुम एक निर्जीव काठ के बेकार टुकड़े हो,[क] क्योंकि तुम अत्यंत रूढ़िवादी, अत्यंत असभ्य, अत्यंत विवेकशून्य हो।
देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का सार होता है, और उसके कार्य में परमेश्वर का स्वभाव और बुद्धि होती है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है, जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्यों के बीच रहकर अपना कार्य पूरा करता है। कोई मनुष्य इस देह की जगह नहीं ले सकता, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य पर्याप्त रूप से सँभाल सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है। मसीह का भेस धारण करने वाले लोगों का देर-सबेर पतन हो जाएगा, क्योंकि हालाँकि वे मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें मसीह के सार का लेशमात्र भी नहीं है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि मसीह की प्रामाणिकता मनुष्य द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती, बल्कि इसका उत्तर और निर्णय स्वयं परमेश्वर द्वारा ही दिया-लिया जाता है। इस तरह, यदि तुम जीवन का मार्ग सचमुच खोजना चाहते हो, तो पहले तुम्हें यह स्वीकार करना होगा कि पृथ्वी पर आकर ही परमेश्वर मनुष्य को जीवन का मार्ग प्रदान करने का कार्य करता है, और तुम्हें स्वीकार करना होगा कि अंत के दिनों के दौरान ही वह मनुष्य को जीवन का मार्ग प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर आता है। यह अतीत नहीं है; यह आज हो रहा है।
अंत के दिनों का मसीह जीवन लाता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लाता है। यह सत्य वह मार्ग है, जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यही एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के द्वार में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। जो लोग नियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, वे न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का अनंत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनके पास सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल के बजाय बस मैला पानी ही है, जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं। जिन्हें जीवन के जल की आपूर्ति नहीं की जाती, वे हमेशा मुर्दे, शैतान के खिलौने और नरक की संतानें बने रहेंगे। फिर वे परमेश्वर को कैसे देख सकते हैं? यदि तुम केवल अतीत को पकड़े रखने की कोशिश करते हो, केवल जड़वत् खड़े रहकर चीजों को जस का तस रखने की कोशिश करते हो, और यथास्थिति को बदलने और इतिहास को खारिज करने की कोशिश नहीं करते, तो क्या तुम हमेशा परमेश्वर के विरुद्ध नहीं होगे? परमेश्वर के कार्य के कदम उमड़ती लहरों और घुमड़ते गर्जनों की तरह विशाल और शक्तिशाली हैं—फिर भी तुम निठल्ले बैठकर तबाही का इंतजार करते हो, अपनी नादानी से चिपके हो और कुछ नहीं करते। इस तरह, तुम्हें मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कैसे माना जा सकता है? तुम जिस परमेश्वर को थामे हो, उसे उस परमेश्वर के रूप में सही कैसे ठहरा सकते हो, जो हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता? और तुम्हारी पीली पड़ चुकी किताबों के शब्द तुम्हें नए युग में कैसे ले जा सकते हैं? वे परमेश्वर के कार्य के कदमों को ढूँढ़ने में तुम्हारी अगुआई कैसे कर सकते हैं? और वे तुम्हें ऊपर स्वर्ग में कैसे ले जा सकते हैं? जिन्हें तुम अपने हाथों में थामे हो, वे शब्द हैं, जो तुम्हें केवल अस्थायी सांत्वना दे सकते हैं, जीवन देने में सक्षम सत्य नहीं दे सकते। जो शास्त्र तुम पढ़ते हो, वे केवल तुम्हारी जिह्वा को समृद्ध कर सकते हैं और वे फलसफे के वे शब्द नहीं हैं, जो मानव-जीवन को जानने में तुम्हारी मदद कर सकते हों, तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाने वाले मार्ग देने की बात तो दूर रही। क्या यह विसंगति तुम्हारे लिए गहन चिंतन का कारण नहीं है? क्या यह तुम्हें अपने भीतर समाहित रहस्यों का बोध नहीं करवाती? क्या तुम अपने बल पर परमेश्वर से मिलने के लिए अपने आप को स्वर्ग पहुँचाने में समर्थ हो? परमेश्वर के आए बिना, क्या तुम परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनंद मनाने के लिए अपने आप को स्वर्ग में ले जा सकते हो? क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? तो मेरा सुझाव यह है कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो और उसकी ओर देखो, जो अभी कार्य कर रहा है—उसकी ओर देखो, जो अब अंत के दिनों में मनुष्य को बचाने का कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम कभी भी सत्य प्राप्त नहीं करोगे, और न ही कभी जीवन प्राप्त करोगे।
जो लोग मसीह द्वारा बोले गए सत्य पर भरोसा किए बिना जीवन प्राप्त करना चाहते हैं, वे पृथ्वी पर सबसे बेतुके लोग हैं, और जो मसीह द्वारा लाए गए जीवन के मार्ग को स्वीकार नहीं करते, वे कोरी कल्पना में खोए हैं। और इसलिए मैं कहता हूँ कि जो लोग अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार नहीं करते, उनसे परमेश्वर हमेशा घृणा करेगा। मसीह अंत के दिनों के दौरान राज्य में जाने के लिए मनुष्य का प्रवेशद्वार है, और ऐसा कोई नहीं जो उससे कन्नी काटकर जा सके। मसीह के माध्यम के अलावा किसी को भी परमेश्वर द्वारा पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, इसलिए तुम्हें उसके वचनों को स्वीकार करना और उसके मार्ग को समर्पित होना चाहिए। सत्य को स्वीकार करने या जीवन का पोषण स्वीकार करने में असमर्थ रहते हुए भी तुम केवल आशीष प्राप्त करने की नहीं सोच सकते। मसीह अंत के दिनों में इसलिए आया है, ताकि उन सबको जीवन प्रदान कर सके, जो उसमें सच्चा विश्वास रखते हैं। उसका कार्य पुराने युग को समाप्त करने और नए युग में प्रवेश करने के लिए है, और उसका कार्य वह मार्ग है, जिसे नए युग में प्रवेश करने वाले सभी लोगों को अपनाना चाहिए। यदि तुम उसे स्वीकारने में असमर्थ हो, और इसके बजाय उसकी भर्त्सना, निंदा, यहाँ तक कि उसका उत्पीड़न करते हो, तो तुम्हें अनंतकाल तक जलाया जाना तय है और तुम परमेश्वर के राज्य में कभी प्रवेश नहीं करोगे। क्योंकि यह मसीह स्वयं पवित्र आत्मा की अभिव्यक्ति है, परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वह जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी पर करने के लिए अपना कार्य सौंपा है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि यदि तुम वह सब स्वीकार नहीं करते, जो अंत के दिनों के मसीह द्वारा किया जाता है, तो तुम पवित्र आत्मा की निंदा करते हो। पवित्र आत्मा की निंदा करने वालों को जो प्रतिफल भोगना होगा, वह सभी के लिए स्वतः स्पष्ट है। मैं तुम्हें यह भी बताता हूँ कि यदि तुम अंत के दिनों के मसीह का प्रतिरोध करोगे, यदि तुम अंत के दिनों के मसीह को ठुकराओगे, तो तुम्हारी ओर से परिणाम भुगतने वाला कोई अन्य नहीं होगा। इतना ही नहीं, आज के बाद तुम्हें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने का दूसरा अवसर नहीं मिलेगा; यदि तुम प्रायश्चित करने का प्रयास भी करते हो, तब भी तुम दोबारा कभी परमेश्वर का चेहरा नहीं देखोगे। क्योंकि तुम जिसका प्रतिरोध करते हो वह मनुष्य नहीं है, तुम जिसे ठुकरा रहे हो वह कोई अदना प्राणी नहीं, बल्कि मसीह है। क्या तुम जानते हो कि इसके क्या परिणाम होंगे? तुमने कोई छोटी-मोटी गलती नहीं, बल्कि एक जघन्य अपराध किया होगा। और इसलिए मैं सभी को सलाह देता हूँ कि सत्य के सामने अपने जहरीले दाँत मत दिखाओ, या छिछोरी आलोचना मत करो, क्योंकि केवल सत्य ही तुम्हें जीवन दिला सकता है, और सत्य के अलावा कुछ भी तुम्हें पुनः जन्म लेने या दोबारा परमेश्वर का चेहरा देखने नहीं दे सकता।
फुटनोट :
क. निर्जीव काठ का टुकड़ा : एक चीनी मुहावरा, जिसका अर्थ है—“निकम्मा कुछ नहीं हो सकता”।