बीते समय में जो यह कहा गया था कि न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होगा, उन वचनों में "न्याय" उस फैसले को संदर्भित करता है, जो परमेश्वर आज उन लोगों के बारे में देता है, जो अंत के दिनों में उसके सिंहासन के सामने आते हैं। शायद कुछ लोग ऐसे हैं, जो ऐसी अलौकिक कल्पनाओं पर विश्वास करते हैं, जैसे कि, जब अंत के दिन आ चुके होंगे, तो परमेश्वर स्वर्ग में एक बड़ी मेज़ स्थापित करेगा, जिस पर एक सफेद मेज़पोश बिछा होगा, और फिर एक बड़े सिंहासन पर बैठकर, जिसके सामने सभी मनुष्य ज़मीन पर घुटने टेके होंगे, वह प्रत्येक मनुष्य के पाप उजागर करेगा और इसके द्वारा यह निर्धारित करेगा कि उन्हें स्वर्ग में आरोहण करना है या नीचे आग और गंधक की झील में डाला जाना है। मनुष्य किसी भी प्रकार की कल्पना क्यों न करे, उससे परमेश्वर के कार्य का सार नहीं बदल सकता। मनुष्य की कल्पनाएँ मनुष्य के विचारों की रचनाओं के सिवा कुछ नहीं हैं; वे उसकी देखी-सुनी बातों के जुड़ने और एकत्र होने पर उसके दिमाग़ से निकलती हैं। इसलिए मैं कहता हूँ, कल्पित तस्वीरें कितनी भी शानदार क्यों न हों, हैं वे कार्टून आरेख ही, और वे परमेश्वर के कार्य की योजना की स्थानापन्न बनने में अक्षम हैं। मनुष्य आख़िरकार शैतान द्वारा भ्रष्ट किया जा चुका है, इसलिए वह परमेश्वर के विचारों की थाह कैसे पा सकता है? मनुष्य परमेश्वर के न्याय के कार्य के विलक्षण होने की कल्पना करता है। वह मानता है कि चूँकि यह स्वयं परमेश्वर है, जो न्याय का कार्य करता है, इसलिए यह कार्य अवश्य ही बहुत ज़बरदस्त पैमाने का, और मनुष्यों की समझ से बाहर होना चाहिए, और इसे स्वर्ग भर में गूँजना और पृथ्वी को हिला देना चाहिए; वरना यह परमेश्वर द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य कैसे हो सकता है? वह मानता है कि, चूँकि यह न्याय का कार्य है, अत: कार्य करते समय परमेश्वर को विशेष रूप से रोबीला और प्रतापी अवश्य होना चाहिए, और जिनका न्याय किया जा रहा है, उन्हें आँसू बहाते हुए आर्तनाद करना चाहिए और घुटने टेककर दया की भीख माँगनी चाहिए। इस तरह के दृश्य भव्य और उत्तेजक होंगे...। हर कोई परमेश्वर के न्याय के कार्य के चमत्कारी होने की कल्पना करता है। लेकिन क्या तुम जानते हो कि काफी समय पहले जबसे परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच न्याय का अपना कार्य आरंभ किया था, तबसे तुम सुस्ती भरी नींद में आश्रय लिए हुए हो? कि जिस समय तुम सोचते हो कि परमेश्वर के न्याय का कार्य औपचारिक रूप से आरंभ हुआ, तब तक परमेश्वर ने पहले ही स्वर्ग और पृथ्वी को नए सिरे से बना लिया होगा? उस समय शायद तुमने केवल जीवन का अर्थ समझा ही होगा, परंतु परमेश्वर के न्याय का निष्ठुर कार्य तुम्हें नरक में और भी गहरी नींद में ले जाएगा। केवल तभी तुम अचानक महसूस करोगे कि परमेश्वर के न्याय का कार्य पहले ही संपन्न हो चुका है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है
कुछ लोग मानते हैं कि परमेश्वर किसी अनजान समय पृथ्वी पर आकर लोगों को दिखाई दे सकता है, जिसके बाद वह व्यक्तिगत रूप से संपूर्ण मनुष्यजाति का न्याय करेगा, एक-एक करके सबकी परीक्षा लेगा, कोई भी नहीं छूटेगा। जो लोग इस ढंग से सोचते हैं, वे देहधारण के इस चरण के कार्य को नहीं जानते। परमेश्वर एक-एक करके मनुष्य का न्याय नहीं करता, एक-एक करके उनकी परीक्षा नहीं लेता; ऐसा करना न्याय का कार्य नहीं होगा। क्या समस्त मनुष्यजाति की भ्रष्टता एक समान नहीं है? क्या पूरी मनुष्यजाति का सार समान नहीं है? न्याय किया जाता है इंसान के भ्रष्ट सार का, शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए इंसानी सार का, और इंसान के सारे पापों का। परमेश्वर मनुष्य के छोटे-मोटे और मामूली दोषों का न्याय नहीं करता। न्याय का कार्य निरूपक है, और किसी व्यक्ति-विशेष के लिए कार्यान्वित नहीं किया जाता। बल्कि यह ऐसा कार्य है जिसमें समस्त मनुष्यजाति के न्याय का प्रतिनिधित्व करने के लिए लोगों के एक समूह का न्याय किया जाता है। देहधारी परमेश्वर लोगों के एक समूह पर व्यक्तिगत रूप से अपने कार्य को कार्यान्वित करके, इस कार्य का उपयोग संपूर्ण मनुष्यजाति के कार्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए करता है, जिसके बाद यह धीरे-धीरे फैलता जाता है। न्याय का कार्य ऐसा ही है। परमेश्वर किसी व्यक्ति-विशेष या लोगों के किसी समूह-विशेष का न्याय नहीं करता, बल्कि संपूर्ण मनुष्यजाति की अधार्मिकता का न्याय करता है—उदाहरण के लिए, परमेश्वर के प्रति मनुष्य का विरोध, या उसके प्रति मनुष्य का अनादर, या परमेश्वर के कार्य में व्यवधान इत्यादि। जिसका न्याय किया जाता है वो है इंसान का परमेश्वर-विरोधी सार, और यह कार्य अंत के दिनों का विजय-कार्य है। देहधारी परमेश्वर का कार्य और वचन जिनकी गवाही इंसान देता है, वे अंत के दिनों के दौरान बड़े श्वेत सिंहासन के सामने न्याय के कार्य हैं, जिसकी कल्पना इंसान के द्वारा अतीत में की गई थी। देहधारी परमेश्वर द्वारा वर्तमान में किया जा रहा कार्य वास्तव में बड़े श्वेत सिंहासन के सामने न्याय है। आज का देहधारी परमेश्वर वह परमेश्वर है जो अंत के दिनों के दौरान संपूर्ण मनुष्यजाति का न्याय करता है। यह देह और उसका कार्य, उसका वचन और उसका समस्त स्वभाव उसकी समग्रता हैं। यद्यपि उसके कार्य का दायरा सीमित है, और उसमें सीधे तौर पर संपूर्ण विश्व शामिल नहीं है, फिर भी न्याय के कार्य का सार संपूर्ण मनुष्यजाति का प्रत्यक्ष न्याय है—यह कार्य केवल चीन के चुने हुए लोगों के लिए नहीं, न ही यह थोड़े-से लोगों के लिए है। देह में परमेश्वर के कार्य के दौरान, यद्यपि इस कार्य के दायरे में संपूर्ण ब्रह्माण्ड नहीं है, फिर भी यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है, जब वह अपनी देह के कार्य के दायरे में उस कार्य को समाप्त कर लेगा तो उसके बाद, वह तुरन्त ही इस कार्य को संपूर्ण ब्रह्माण्ड में उसी तरह से फैला देगा जैसे यीशु के पुनरूत्थान और आरोहण के बाद उसका सुसमाचार सारी दुनिया में फैल गया था। चाहे यह पवित्रात्मा का कार्य हो या देह का कार्य, यह ऐसा कार्य है जिसे एक सीमित दायरे में किया जाता है, परन्तु जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है। अन्त के दिनों में, परमेश्वर देहधारी रूप में प्रकट होकर अपना कार्य करता है, और देहधारी परमेश्वर ही वह परमेश्वर है जो बड़े श्वेत सिंहासन के सामने मनुष्य का न्याय करता है। चाहे वह आत्मा हो या देह, जो न्याय का कार्य करता है वही ऐसा परमेश्वर है जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्य का न्याय करता है। इसे उसके कार्य के आधार पर परिभाषित किया जाता है, न कि उसके बाहरी रंग-रूप या दूसरी बातों के आधार पर।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की अधिक आवश्यकता है
परमेश्वर मौन है, और हमारे सामने कभी प्रकट नहीं हुआ, फिर भी उसका कार्य कभी नहीं रुका है। वह पूरी पृथ्वी का सर्वेक्षण करता है, हर चीज़ पर नियंत्रण रखता है, और मनुष्य के सभी वचनों और कर्मों को देखता है। वह अपना प्रबंधन नपे-तुले कदमों के साथ और अपनी योजना के अनुसार, चुपचाप और नाटकीय प्रभाव के बिना करता है, फिर भी उसके कदम, एक-एक करके, हमेशा मनुष्यों के निकट बढ़ते जाते हैं, और उसका न्याय का आसन बिजली की रफ्तार से ब्रह्मांड में स्थापित होता है, जिसके बाद हमारे बीच उसके सिंहासन का तुरंत अवरोहण होता है। वह कैसा आलीशान दृश्य है, कितनी भव्य और गंभीर झाँकी! एक कपोत के समान, और एक गरजते हुए सिंह के समान, पवित्र आत्मा हम सबके बीच आता है। वह बुद्धि है, वह धार्मिकता और प्रताप है, और अधिकार से संपन्न और प्रेम और करुणा से भरा हुआ वह चुपके से हमारे बीच आता है। कोई उसके आगमन के बारे में नही जानता, कोई उसके आगमन का स्वागत नहीं करता, और इतना ही नहीं, कोई नहीं जानता कि वह क्या करने वाला है। मनुष्य का जीवन पहले जैसा चलता रहता है; उसका हृदय नहीं बदलता, और दिन हमेशा की तरह बीतते जाते हैं। परमेश्वर अन्य मनुष्यों की तरह एक मनुष्य के रूप में, एक सबसे महत्वहीन अनुयायी की तरह और एक साधारण विश्वासी के समान रहता है। उसके पास अपने काम-काज हैं, अपने लक्ष्य हैं, और इससे भी बढ़कर, उसमें दिव्यता है, जो साधारण मनुष्यों में नहीं है। किसी ने भी उसकी दिव्यता की मौजूदगी पर ध्यान नहीं दिया है, और किसी ने भी उसके सार और मनुष्य के सार के बीच का अंतर नहीं समझा है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 4: परमेश्वर के प्रकटन को उसके न्याय और ताड़ना में देखना
न्याय का कार्य परमेश्वर का अपना कार्य है, इसलिए स्वाभाविक रूप से इसे परमेश्वर द्वारा ही किया जाना चाहिए; उसकी जगह इसे मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता। चूँकि न्याय सत्य के माध्यम से मानवजाति को जीतना है, इसलिए परमेश्वर निःसंदेह अभी भी मनुष्यों के बीच इस कार्य को करने के लिए देहधारी छवि के रूप में प्रकट होगा। अर्थात्, अंत के दिनों का मसीह दुनिया भर के लोगों को सिखाने के लिए और उन्हें सभी सच्चाइयों का ज्ञान कराने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। यह परमेश्वर के न्याय का कार्य है। कई लोगों में परमेश्वर के दूसरे देहधारण के बारे में बुरी भावना है, क्योंकि लोगों को यह बात मानने में कठिनाई होती है कि परमेश्वर न्याय का कार्य करने के लिए देह धारण करेगा। फिर भी, मुझे तुम्हें यह अवश्य बताना होगा कि प्रायः परमेश्वर का कार्य मनुष्य की अपेक्षाओं से बहुत आगे तक जाता है, और मनुष्य के मन के लिए इसे स्वीकार करना कठिन होता है। क्योंकि लोग पृथ्वी पर मात्र कीड़े-मकौड़े हैं, जबकि परमेश्वर सर्वोच्च है जो ब्रह्मांड में समाया हुआ है; मनुष्य का मन गंदे पानी से भरे हुए एक गड्ढे के सदृश है, जो केवल कीड़े-मकोड़ों को ही उत्पन्न करता है, जबकि परमेश्वर के विचारों द्वारा निर्देशित कार्य का प्रत्येक चरण परमेश्वर की बुद्धि का परिणाम है। लोग हमेशा परमेश्वर के साथ संघर्ष करने की कोशिश करते हैं, जिसके बारे में मैं कहता हूँ कि यह स्वत: स्पष्ट है कि अंत में कौन हारेगा। मैं तुम सबको समझा रहा हूँ कि अपने आपको स्वर्ण से अधिक मूल्यवान मत समझो। जब दूसरे लोग परमेश्वर का न्याय स्वीकार कर सकते हैं, तो तुम क्यों नहीं? तुम दूसरों से कितने ऊँचे हो? अगर दूसरे लोग सत्य के आगे सिर झुका सकते हैं, तो तुम भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते? परमेश्वर के कार्य का वेग अबाध है। वह सिर्फ़ तुम्हारे द्वारा दिए गए "सहयोग" के कारण न्याय के कार्य को फिर से नहीं दोहराएगा, और तुम इतने अच्छे अवसर के हाथ से निकल जाने पर पछतावे से भर जाओगे। अगर तुम्हें मेरे वचनों पर विश्वास नहीं है, तो फिर आकाश में स्थित उस महान श्वेत सिंहासन द्वारा खुद पर "न्याय पारित किए जाने" की प्रतीक्षा करो! तुम्हें अवश्य पता होना चाहिए कि सभी इजराइलियों ने यीशु को ठुकराया और अस्वीकार किया था, और फिर भी यीशु द्वारा मानवजाति के छुटकारे का तथ्य पूरे ब्रह्मांड और पृथ्वी के छोरों तक फैल गया। क्या यह परमेश्वर द्वारा बहुत पहले बनाई गई वास्तविकता नहीं है? अगर तुम अभी भी यीशु द्वारा स्वयं को स्वर्ग में ले जाए जाने का इंतज़ार कर रहे हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक निर्जीव काठ के बेकार टुकड़े हो।[क] यीशु तुम जैसे किसी भी झूठे विश्वासी को स्वीकार नहीं करेगा, जो सत्य के प्रति निष्ठाहीन है और केवल आशीष चाहता है। इसके विपरीत, वह तुम्हें हज़ारों वर्षों तक जलने देने के लिए आग की झील में फेंकने में कोई दया नहीं दिखाएगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है
फुटनोट :
क. निर्जीव काठ का टुकड़ा : एक चीनी मुहावरा, जिसका अर्थ है—"निकम्मा कुछ नहीं हो सकता"।
आज का विजय कार्य यह स्पष्ट करने के लिए अभीष्ट है कि मनुष्य का अन्त क्या होगा। ऐसा क्यों कहा जाता है कि आज की ताड़ना और न्याय, अंत के दिनों के महान श्वेत सिंहासन के सामने का न्याय है? क्या तुम यह नहीं देखते हो? विजय का कार्य अन्तिम चरण क्यों है? क्या यह इस बात को प्रकट करने के लिए नहीं है कि मनुष्य के प्रत्येक वर्ग का अन्त कैसा होगा? क्या यह प्रत्येक व्यक्ति को, ताड़ना और न्याय के विजय कार्य के दौरान, अपना असली रंग दिखाने और फिर उसके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत करने के लिए नहीं है? यह कहने के बजाय कि यह मनुष्यजाति को जीतना है, यह कहना बेहतर होगा कि यह उस बात को दर्शाना है कि व्यक्ति के प्रत्येक वर्ग का अन्त किस प्रकार का होगा। यह लोगों के पापों का न्याय करने के बारे में है और फिर मनुष्यों के विभिन्न वर्गों को उजागर करना और इस प्रकार यह निर्णय करना है कि वे दुष्ट हैं या धार्मिक हैं। विजय-कार्य के पश्चात धार्मिक को पुरस्कृत करने और दुष्ट को दण्ड देने का कार्य आता है। जो लोग पूर्णत: आज्ञापालन करते हैं अर्थात जो पूर्ण रूप से जीत लिए गए हैं, उन्हें सम्पूर्ण कायनात में परमेश्वर के कार्य को फैलाने के अगले चरण में रखा जाएगा; जिन्हें जीता नहीं गया उनको अन्धकार में रखा जाएगा और उन पर महाविपत्ति आएगी। इस प्रकार मनुष्य को उसकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, दुष्कर्म करने वालों को दुष्टों के साथ समूहित किया जाएगा और उन्हें फिर कभी सूर्य का प्रकाश नसीब नहीं होगा, और धर्मियों को रोशनी प्राप्त करने और सर्वदा रोशनी में रहने के लिए भले लोगों के साथ रखा जाएगा। सभी बातों का अन्त निकट है; मनुष्य को साफ तौर पर उसका अन्त दिखा दिया गया है, और सभी वस्तुओं का वर्गीकरण उनकी किस्म के अनुसार किया जाएगा। तब, लोग इस तरह वर्गीकरण किए जाने की पीड़ा से किस प्रकार बच सकते हैं? जब सभी चीज़ों का अन्त निकट होता है तो मनुष्य के प्रत्येक प्रकार का अंत प्रकट कर दिया जाता है, और यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड (इसमें समस्त विजय-कार्य सम्मिलित है जो वर्तमान कार्य से आरम्भ होता है) को जीतने के कार्य के दौरान किया जाता है। समस्त मनुष्यजाति के अन्त का प्रकटीकरण, न्याय के सिंहासन के सामने, ताड़ना के दौरान और अंत के दिनों के विजय-कार्य के दौरान किया जाता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (1)