इस युग के दौरान परमेश्वर द्वारा किया जाने वाला कार्य मुख्य रूप से मनुष्य के जीवन के लिए वचनों का पोषण देना; मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव और उसकी प्रकृति के सार को उजागर करना; और धर्म संबंधी धारणाओं, सामंती सोच, पुरानी पड़ चुकी सोच, और मनुष्य के ज्ञान और संस्कृति को समाप्त करना है। इन सभी चीजों को परमेश्वर के वचनों द्वारा उजागर करने के माध्यम से शुद्ध किया जाना है। अंत के दिनों में, मनुष्य को पूर्ण करने के लिए परमेश्वर चिह्नों और चमत्कारों का नहीं, वचनों का उपयोग करता है। वह मनुष्य को उजागर करने, उसका न्याय करने, उसे ताड़ना देने और उसे पूर्ण बनाने के लिए वचनों का उपयोग करता है, ताकि परमेश्वर के वचनों में मनुष्य परमेश्वर की बुद्धि और मनोरमता देखने लगे, और परमेश्वर के स्वभाव को समझने लगे, और ताकि परमेश्वर के वचनों के माध्यम से मनुष्य परमेश्वर के कर्मों को निहारे।
— 'आज परमेश्वर के कार्य को जानना' से उद्धृत
लोग अपना स्वभाव स्वयं परिवर्तित नहीं कर सकते; उन्हें परमेश्वर के वचनों के न्याय, ताड़ना, पीड़ा और शोधन से गुजरना होगा, या उसके वचनों द्वारा निपटाया, अनुशासित किया जाना और काँटा-छाँटा जाना होगा। इन सब के बाद ही वे परमेश्वर के प्रति विश्वसनीयता और आज्ञाकारिता प्राप्त कर सकते हैं और उसके प्रति बेपरवाह होना बंद कर सकते हैं। परमेश्वर के वचनों के शोधन के द्वारा ही मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन आ सकता है। केवल उसके वचनों के संपर्क में आने से, उनके न्याय, अनुशासन और निपटारे से, वे कभी लापरवाह नहीं होंगे, बल्कि शांत और संयमित बनेंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे परमेश्वर के मौजूदा वचनों और उसके कार्यों का पालन करने में सक्षम होते हैं, भले ही यह मनुष्य की धारणाओं से परे हो, वे इन धारणाओं को नज़रअंदाज करके अपनी इच्छा से पालन कर सकते हैं। पहले स्वभाव में बदलाव की बात मुख्यतः खुद को त्यागने, शरीर को कष्ट सहने देने, अपने शरीर को अनुशासित करने, और अपने आप को शारीरिक प्राथमिकताओं से दूर करने के बारे में होती थी—जो एक तरह का स्वभाव परिवर्तन है। आज, सभी जानते हैं कि स्वभाव में बदलाव की वास्तविक अभिव्यक्ति परमेश्वर के मौजूदा वचन को मानने में है, और साथ ही साथ उसके नए कार्य को सच में समझने में है। इस प्रकार, परमेश्वर के बारे में लोगों का पूर्व ज्ञान जो उनकी धारणा से रंगी थी, वह मिटाई जा सकती है और वे परमेश्वर का सच्चा ज्ञान और आज्ञाकारिता प्राप्त कर सकते हैं—केवल यही है स्वभाव में बदलाव की वास्तविक अभिव्यक्ति।
— 'जिनके स्वभाव परिवर्तित हो चुके हैं, वे वही लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कर चुके हैं' से उद्धृत
परमेश्वर अपने न्याय का प्रयोग मनुष्य को सिद्ध बनाने के लिए करता है, वह मनुष्य से प्रेम करता रहा है और उसे बचाता रहा है—परंतु उसके प्रेम में कितना कुछ शामिल है? उसमें न्याय, भव्यता, क्रोध, और शाप है। यद्यपि परमेश्वर ने मनुष्य को अतीत में शाप दिया था, परंतु उसने मनुष्य को अथाह कुण्ड में नहीं फेंका था, बल्कि उसने उस माध्यम का प्रयोग मनुष्य के विश्वास को शुद्ध करने के लिए किया था; उसने मनुष्य को मार नहीं डाला था, उसने मनुष्य को सिद्ध बनाने का कार्य किया था। शरीर का सार वह है जो शैतान का है—परमेश्वर ने इसे बिलकुल सही कहा है—परंतु परमेश्वर के द्वारा बताई गईं वास्तविकताएँ उसके वचनों के अनुसार पूरी नहीं हुई हैं। वह तुम्हें शाप देता है ताकि तुम उससे प्रेम करो, ताकि तुम शरीर के सार को जान लो; वह तुम्हें इसलिए ताड़ना देता है ताकि तुम जागृत हो जाओ, कि वह तुम्हें अनुमति दे कि तुम अपने भीतर की कमियों को जान लो, और मनुष्य की संपूर्ण अयोग्यता को जान लो। इस प्रकार, परमेश्वर के शाप, उसका न्याय, और उसकी भव्यता और क्रोध—वे सब मनुष्य को सिद्ध बनाने के लिए हैं। वह सब जो परमेश्वर आज करता है, और धर्मी स्वभाव जिसे वह तुम लोगों के भीतर स्पष्ट करता है—यह सब मनुष्य को सिद्ध बनाने के लिए है, और परमेश्वर का प्रेम ऐसा ही है।
— 'केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो' से उद्धृत
चाहे परमेश्वर मनुष्य को न्याय दे या उसे शाप दे, ये दोनों मनुष्य को सिद्ध बनाते हैं: दोनों उसे सिद्ध बनाने के लिए हैं जो मनुष्य के भीतर अशुद्ध है। इस माध्यम के द्वारा मनुष्य शुद्ध किया जाता है, और जिस चीज़ की मनुष्य में कमी होती है उसे परमेश्वर के वचनों और कार्य के द्वारा पूर्ण किया जाता है। परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक कदम—चाहे यह कठोर शब्द हों, न्याय हो, या ताड़ना हो—मनुष्य को सिद्ध बनाता है, और यह बिलकुल सही है। सदियों से कभी परमेश्वर ने ऐसा कार्य नहीं किया है; आज वह तुम्हारे भीतर कार्य करता है ताकि तुम उसकी बुद्धि को सराहो। यद्यपि तुमने अपने भीतर कुछ पीड़ा को सहा है, फिर भी तुम्हारे हृदय अटल महसूस करते हैं और शांतिमय भी; यह तुम्हारे लिए आशीष है कि तुम परमेश्वर के कार्य के इस चरण का आनंद ले सकते हो। इस बात की परवाह किए बिना कि तुम भविष्य में क्या प्राप्त कर सकते हो, आज अपने भीतर परमेश्वर के जिस कार्य को तुम देखते हो वह प्रेम है। यदि मनुष्य परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना का अनुभव नहीं करता, तो उसके कार्य और उसका जोश सदैव बाहरी बातों पर होगा, और उसका स्वभाव सदैव अपरिवर्तित रहेगा। क्या इसे परमेश्वर के द्वारा प्राप्त किया जाने वाला माना जाता है? यद्यपि आज मनुष्य के भीतर काफी अहंकार और घमंड है, फिर भी मनुष्य का स्वभाव पहले से बहुत स्थिर है। तुम्हारे प्रति परमेश्वर का व्यवहार तुम्हें बचाने के लिए है, और यद्यपि तुम इस समय कुछ पीड़ा को महसूस करते हो, फिर भी एक ऐसा दिन आएगा जब तुम्हारे स्वभाव में बदलाव आएगा। उस समय, तुम पीछे की ओर मुड़ोगे और देखोगे कि परमेश्वर का कार्य कितना बुद्धिमान है, और यह तब होगा जब सचमुच तुम परमेश्वर की इच्छा को समझने के योग्य होगे। आज ऐसे कुछ लोग हैं जो कहते हैं कि वे परमेश्वर की इच्छा को समझते हैं, परंतु यह अधिक यथार्थवादी नहीं है, वास्तव में वे झूठ बोल रहे हैं, क्योंकि वर्तमान में उन्हें अभी तक यह समझना है कि क्या परमेश्वर की इच्छा मनुष्य को बचाने की है या मनुष्य को श्राप देने की है। शायद तुम इसे अभी स्पष्टता से नहीं देख सकते, परंतु एक दिन आएगा जब तुम देखोगे कि परमेश्वर की महिमा का दिन आ गया है, और तुम देखोगे कि परमेश्वर से प्रेम करना कितना अर्थपूर्ण है, जिससे तुम मानवीय जीवन को जान सकोगे, और तुम्हारा शरीर परमेश्वर से प्रेम करने के संसार में रहेगा, तुम्हारी आत्मा स्वतंत्र कर दी जाएगी, तुम्हारा जीवन आनंद से भरपूर हो जाएगा, और तुम सदैव परमेश्वर के करीब रहोगे, और सदैव परमेश्वर की ओर देखोगे। उस समय, तुम सचमुच जान जाओगे कि परमेश्वर का कार्य आज कितना कीमती है।
— 'केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो' से उद्धृत
अपने जीवनकाल में पतरस ने सैकड़ों बार शुद्धिकरण का अनुभव किया और वह कई दर्दनाक अग्निपरीक्षाओं से होकर गुजरा। यह शुद्धिकरण परमेश्वर के लिए उसके सर्वोच्च प्रेम की नींव और उसके संपूर्ण जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अनुभव बन गया। वह परमेश्वर के प्रति सर्वोच्च प्रेम एक तरह से परमेश्वर से प्रेम करने के अपने संकल्प के कारण रख पाया; परंतु इससे भी अधिक महत्वपूर्ण रूप में, यह उस शुद्धिकरण और पीड़ा के कारण था, जिसमें से वह होकर गुजरा। यह पीड़ा परमेश्वर से प्रेम करने के मार्ग पर उसकी मार्गदर्शक और ऐसी चीज़ बन गई, जो उसके लिए सबसे अधिक यादगार थी। यदि लोग परमेश्वर से प्रेम करते हुए शुद्धिकरण की पीड़ा से नहीं गुजरते, तो उनका प्रेम अशुद्धियों और अपनी स्वयं की प्राथमिकताओं से भरा होता है; ऐसा प्रेम शैतान के विचारों से भरा होता है, और मूलत: परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में असमर्थ होता है। परमेश्वर से प्रेम करने का संकल्प रखना परमेश्वर से सच में प्रेम करने के समान नहीं है। यद्यपि अपने हृदय में जो कुछ वे सोचते हैं, वह परमेश्वर से प्रेम करने और परमेश्वर को संतुष्ट करने की खातिर ही होता है, और भले ही उनके विचार पूरी तरह से परमेश्वर को समर्पित और मानवीय विचारों से रहित प्रतीत होते हैं, परंतु जब उनके विचार परमेश्वर के सामने लाए जाते हैं, तो वह ऐसे विचारों को प्रशंसा या आशीष नहीं देता। यहाँ तक कि जब लोग समस्त सत्यों को पूरी तरह से समझ लेते हैं—जब वे उन सबको जान जाते हैं—तो इसे भी परमेश्वर से प्रेम करने का संकेत नहीं माना जा सकता, यह नहीं कहा जा सकता कि ये लोग वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करते हैं। शुद्धिकरण से गुजरे बिना अनेक सत्यों को समझ लेने के बावजूद लोग इन सत्यों को अभ्यास में लाने में असमर्थ होते हैं; केवल शुद्धिकरण के दौरान ही लोग इन सत्यों का वास्तविक अर्थ समझ सकते हैं, केवल तभी लोग वास्तव में उनके आंतरिक अर्थ जान सकते हैं। उस समय, जब वे पुनः प्रयास करते हैं, तब वे उपयुक्त रूप से और परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सत्यों को अभ्यास में ला सकते हैं; उस समय उनके मानवीय विचार कम हो जाते हैं, उनकी मानवीय भ्रष्टता घट जाती है, और उनकी मानवीय संवेदनाएँ कम हो जाती हैं; केवल उसी समय उनका अभ्यास परमेश्वर के प्रति प्रेम की सच्ची अभिव्यक्ति होता है। परमेश्वर के प्रति प्रेम के सत्य का प्रभाव मौखिक ज्ञान या मानसिक तैयारी से हासिल नहीं किया जा सकता, और न ही इसे केवल सत्य को समझने से हासिल किया जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि लोग एक मूल्य चुकाएँ, और कि वे शुद्धिकरण के दौरान अधिक कड़वाहट से होकर गुजरें, केवल तभी उनका प्रेम शुद्ध और परमेश्वर के हृदय के अनुसार होगा।
— 'केवल शुद्धिकरण का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है' से उद्धृत
अपने जीवन में, यदि मनुष्य शुद्ध होना चाहता है और अपने स्वभाव में परिवर्तन हासिल करना चाहता है, यदि वह एक सार्थक जीवन बिताना चाहता है, और एक जीवधारी के रूप में अपने कर्तव्य को निभाना चाहता है, तो उसे परमेश्वर की ताड़ना और न्याय को स्वीकार करना चाहिए, और उसे परमेश्वर के अनुशासन और परमेश्वर के प्रहार को अपने आप से दूर नहीं होने देना चाहिए, इस प्रकार वह अपने आपको शैतान के छल प्रपंच और प्रभाव से मुक्त कर सकता है और परमेश्वर के प्रकाश में जीवन बिता सकता है। यह जानो कि परमेश्वर की ताड़ना और न्याय ज्योति है, और वह मनुष्य के उद्धार की ज्योति है, और मनुष्य के लिए उससे बेहतर कोई आशीष, अनुग्रह या सुरक्षा नहीं है। मनुष्य शैतान के प्रभाव के अधीन जीता है, और देह में जीता है; यदि उसे शुद्ध नहीं किया जाता है और उसे परमेश्वर की सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है, तो वह पहले से कहीं ज़्यादा भ्रष्ट बन जाएगा। यदि वह परमेश्वर से प्रेम करना चाहता है, तो उसे शुद्ध होना और उद्धार पाना होगा। पतरस ने प्रार्थना की, "परमेश्वर जब तू मुझसे कृपा के साथ व्यवहार करता है तो मैं प्रसन्न हो जाता हूँ, और मुझे सुकून मिलता है; जब तू मुझे ताड़ना देता है, तब मुझे उससे कहीं ज़्यादा सुकून और आनन्द मिलता है। यद्यपि मैं कमज़ोर हूँ, और अकथनीय कष्ट सहता हूँ, यद्यपि मेरे जीवन में आँसू और उदासी है, लेकिन तू जानता है कि यह उदासी मेरी अनाज्ञाकारिता के कारण है, और मेरी कमज़ोरी के कारण है। मैं रोता हूँ क्योंकि मैं तेरी इच्छाओं को संतुष्ट नहीं कर पाता हूँ, मैं दुखी और खेदित हूँ क्योंकि मैं तेरी अपेक्षाओं के प्रति नाकाफी हूँ, लेकिन मैं इस आयाम को हासिल करने के लिए तैयार हूँ, मैं वह सब करने के लिए तैयार हूँ जो मैं तुझे संतुष्ट करने के लिए कर सकता हूँ। तेरी ताड़ना मेरे लिए सुरक्षा लेकर आई है, और मुझे सब से बेहतरीन उद्धार दिया है; तेरा न्याय तेरी सहनशीलता और धीरज को ढँक देता है। तेरी ताड़ना और न्याय के बगैर, मैं तेरी दया और करूणा का आनन्द नहीं ले पाऊँगा। आज, मैं यह और भी अधिक देखता हूँ कि तेरा प्रेम स्वर्ग से भी ऊँचा हो गया है और सबसे श्रेष्ठ हो गया है। तेरा प्रेम मात्र दया और करूणा नहीं है; किन्तु उससे भी बढ़कर, यह ताड़ना और न्याय है। तेरी ताड़ना और न्याय ने मुझे बहुत कुछ दिया है। तेरी ताड़ना और न्याय के बगैर, एक भी व्यक्ति शुद्ध नहीं हो सकता है, और एक भी इंसान सृष्टिकर्ता के प्रेम को अनुभव करने के योग्य नहीं हो सकता है। यद्यपि मैंने सैकड़ों परीक्षाओं और क्लेशों को सहा है, और यहाँ तक कि मौत के करीब आ गया, फिर भी इन्होंने मुझे सचमुच में तुझे जानने और सर्वोच्च उद्धार प्राप्त करने दिया है। यदि तेरी ताड़ना, न्याय और अनुशासन मुझसे दूर हो गए होते, तो मैं अंधकार में शैतान के प्रभुत्व में जीवन बिताता। मनुष्य की देह से क्या लाभ है? यदि तेरी ताड़ना और न्याय मुझे छोड़ कर चले गए होते, तो यह ऐसा होता मानो तेरे आत्मा ने मुझे छोड़ दिया हो, मानो अब से तू मेरे साथ नहीं है। यदि ऐसा होता, तो मैं जीवन कैसे बिताता? यदि तू मुझे बीमारी देता है, और मेरी स्वतन्त्रता को ले लेता है, तो भी मैं जीवित रह सकता हूँ, परन्तु अगर तेरी ताड़ना और न्याय मुझे छोड़ देते, मेरे पास जीने का कोई रास्ता नहीं होगा। यदि मेरे पास तेरी ताड़ना और तेरा न्याय नहीं होता, तो मैंने तेरे प्रेम को खो दिया होता, एक ऐसे प्रेम को जो इतना गहरा है कि मैं इसे शब्दों में नहीं कह सकता हूँ। तेरे प्रेम के बिना, मैं शैतान के शासन के अधीन जीता, और तेरे महिमामय मुखड़े को देखने के काबिल नहीं हो पाता। मैं कैसे जीवित रह पाता? ऐसा अंधकार, ऐसा जीवन, मैं बिलकुल सह नहीं सकता था। तू मेरे साथ है तो यह ऐसा है मानो मैं तुझे देख रहा हूँ, तो मैं तुझे कैसे छोड़ सकता हूँ? मैं तुझ से विनती करता हूँ, मैं तुझ से याचना करता हूँ, तू मेरे सबसे बड़े सुकून को मत छीन, भले ही ये आश्वासन के मात्र थोड़े से शब्द हों। मैंने तेरे प्रेम का आनन्द लिया है, और आज मैं तुझ से दूर नहीं रह सकता हूँ; मैं तुझ से कैसे प्रेम नहीं कर सकता हूँ? मैंने तेरे प्रेम के कारण दुख में बहुत से आँसू बहाए हैं, फिर भी मैंने हमेशा से यह विश्वास किया है कि इस तरह का जीवन अधिक अर्थपूर्ण है, मुझे समृद्ध करने में अधिक योग्य है, मुझे बदलने में अधिक सक्षम है, और मुझे उस सत्य को हासिल करने देने में अधिक काबिल है जिसे सभी जीवधारियों के द्वारा धारण किया जाना चाहिए।"
— 'पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान' से उद्धृत
परमेश्वर का प्रत्येक वचन हमारे मर्मस्थल पर चोट करता है, और हमें एक टीस देता और भयभीत कर देता है। वह हमारी कल्पनाओं को और हमारे भ्रष्ट स्वभाव को उजागर करता है। हम जो कुछ कहते और करते हैं से लेकर हमारे प्रत्येक विचार और सोच तक, हमारा स्वभाव और सार उसके वचनों के द्वारा प्रकट होता है, भय और कँपन की स्थिति में हम कहीं मुँह छिपाने लायक नहीं रहते। वह एक-एक करके, हमें हमारे कार्यों, लक्ष्यों, इरादों और भ्रष्ट स्वभाव के बारे में बताता है, जो हम ख़ुद भी कभी नहीं जान पाए थे और हमें एहसास कराता है कि हमारी अधम अपूर्णता पूरी तरह से उजागर हो गई है, यहाँ तक कि हम उसके द्वारा जीत लिये गये हैं। परमेश्वर अपने प्रति हमारे विरोध के लिए हमारा न्याय करता है, अपनी ईशनिंदा और तिरस्कार के लिये हमें ताड़ना देता है, और हमें यह एहसास कराता है कि हमारे अंदर उद्धार पाने का एक भी गुण नहीं है, और हम ही जीते-जागते शैतान हैं। हमारी आशाएँ चूर-चूर हो जाती हैं, अब हम उससे अविवेकपूर्ण माँगें करने या कोई उम्मीद लगाने का साहस नहीं करते हैं, यहाँ तक कि रातोंरात हमारे स्वप्न गायब हो जाते हैं। यह ऐसा तथ्य है जिसकी हममें से न तो कोई कल्पना कर सकता है और न ही कोई स्वीकार कर सकता है। पल भर में, हम अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं, और हमें समझ में नहीं आता कि हम आगे कैसे बढ़ें, या अपने विश्वास को जारी कैसे रखें। ऐसा लगता है कि हमारा विश्वास जहाँ था वहीं वापस लौट गया है, या कि हम कभी प्रभु यीशु से कभी मिले ही नहीं या उसे जानते ही नहीं। हमारी आँखों के सामने हर बात हमें हक्का-बक्का कर देती है, और हमें अनिर्णय की स्थिति में डाल देती है। फिर हम बेचैन हो जाते हैं, हतोत्साहित हो जाते हैं, और हमारे अंदर भयंकर क्रोध और अपमान पैदा हो जाता है। हम उसे बाहर निकालने का प्रयास करते हैं, कोई तरीका ढूँढ़ने का प्रयास करते हैं, और, उससे भी अधिक, हम अपने उद्धारकर्ता यीशु की प्रतीक्षा करना जारी रखने का प्रयास करते हैं ताकि उसके सामने हम अपने दिल की बात कह सकें। यद्यपि ऐसे अवसर भी आते हैं जब हम बाहर से संतुलित दिखाई देते हैं, न तो घमंडी, न ही विनम्र, तब भी अपने हृदयों में हम नाकामी की ऐसी भावना से व्यथित हो जाते हैं जैसे पहले कभी नहीं हुए। यद्यपि कभी-कभी हम बाहरी तौर पर असामान्य रूप से शांत दिखाई दे सकते हैं, किंतु भीतर हम तूफ़ानी समुद्र की जैसी यातना का अनुभव करते हैं। उसके न्याय और ताड़ना ने हमें हमारी सभी आशाओँ और स्वप्नों से वंचित कर दिया है, और हमारी अनावश्यक इच्छाओं से रहित कर दिया है, हम यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि वह हमारा उद्धारकर्ता है और हमारा उद्धार करने में सक्षम हैं। उसके न्याय एवं ताड़ना ने हमारे और उसके बीच एक गहरी खाई पैदा कर दी है और कोई उसे पार करने को तैयार नहीं है। उसके न्याय और ताड़ना के कारण पहली बार हमने इतना अधिक नुकसान और अपमान झेला है। उसके न्याय और ताड़ना ने हमें वास्तव में परमेश्वर के आदर और मनुष्य के अपराध की असहष्णुता को पहचानना सिखाया है, जिसकी तुलना में हम बहुत अधम और अशुद्ध हैं। उसके न्याय और ताड़ना ने पहली बार हमें अनुभव कराया है कि हम कितने अभिमानी और आडंबरपूर्ण हैं, और कैसे मनुष्य कभी परमेश्वर की बराबरी नहीं कर सकता, और उसके समान नहीं बन सकता है। उसके न्याय और ताड़ना ने हमारे भीतर यह उत्कंठा उत्पन्न की है कि हम ऐसे भ्रष्ट स्वभाव में अब और न रहें, और हमारे भीतर ऐसे स्वभाव तथा सार से जितना जल्दी हो सके छुटकारा पाने की, और आगे उसके द्वारा तिरस्कृत और उसके लिए घृणित न होने की इच्छा उत्पन्न की है। उसके न्याय और ताड़ना ने हमें ख़ुशी-ख़ुशी उसके वचनों का आज्ञापालन करने लायक बनाया है, और इस लायक बनाया है कि हम उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के विरुद्ध विद्रोह न करें। उसके न्याय और ताड़ना ने हमें एक बार फिर जीवित रहने की इच्छा दी है, और उसे हमारे उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करने की प्रसन्नता दी है...। हम विजय के कार्य से बाहर निकल गए हैं, नरक से बाहर आ गए हैं, मृत्यु की छाया की घाटी से बाहर आ गए हैं...। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमें, लोगों के इस समूह को जीत लिया है! उसने शैतान पर विजय पाई है, और अपने सभी शत्रुओं को पराजित कर दिया है!
हम शैतानी भ्रष्ट स्वभाव धारण किए हुए एक साधारण जनसमूह हैं, हम वे हैं जिनकी नियति युगों पहले परमेश्वर द्वारा पूर्वनियत की जा चुकी है, और हम वे जरूरतमंद लोग हैं जिन्हें परमेश्वर ने घूरे पर से उठाया है। हमने एक बार परमेश्वर का तिरस्कार किया और उसकी भर्त्सना की थी, मगर अब हम उसके द्वारा जीते जा चुके हैं। हमें परमेश्वर से जीवन प्राप्त हुआ है और शाश्वत जीवन का मार्ग प्राप्त हुआ है। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि हम पृथ्वी पर कहाँ हैं, प्रताड़ना और क्लेश के बावजूद, हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा उद्धार से अलग नहीं हो सकते हैं। क्योंकि वह हमारा सृष्टिकर्ता, और हमारी एक मात्र मुक्ति है!
— 'परमेश्वर के प्रकटन को उसके न्याय और ताड़ना में देखना' से उद्धृत
बरसों बीत जाने के बाद, मनुष्य शोधन और ताड़ना की कठिनाइयाँ सह-सहकर सिर्फ़ जीर्ण-शीर्ण हो कर रह गया है, हालांकि मनुष्य ने अतीत की "महिमा" और "प्रणय" को खो दिया है, पर उसने अनजाने में मानवीय आचरण के सिद्धांतों को समझ लिया है, और मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के सालों के समर्पण को भी समझ गया है। मनुष्य धीरे-धीरे स्वयं की बर्बरता से घृणा करने लगता है। वह अपनी असभ्यता से घृणा करने लगता है, और परमेश्वर के प्रति सभी प्रकार की गलतफहमियों से तथा उन सभी अनुचित मांगों से भी वह घृणा करने लगता है जो वह परमेश्वर से करता रहा है। समय को वापस नहीं लाया जा सकता है; अतीत की घटनाएं मनुष्य के लिए पछतावा करने वाली यादें बनकर रह जाती हैं, और परमेश्वर के वचन और प्रेम मानव के लिए नए जीवन की प्रेरणा शक्ति बन जाते हैं। मनुष्य के घाव दिन प्रतिदिन भरते जाते हैं, उसकी सामर्थ्य वापस आने लगती है, और वह खड़ा होता है और सर्वशक्तिमान के चेहरे की ओर देखने लगता है ... उसे तभी पता चलता है कि परमेश्वर हमेशा से मेरे साथ रहा है और उसकी मुस्कान और सुन्दर चेहरा अभी भी बहुत जोशीला है। उसके हृदय में अभी भी अपने द्वारा रची गई मानवजाति के लिए चिंता रहती है, और उसके हाथों में अभी भी वही गर्मी और शक्ति है जो आरंभ में थी। जैसे कि मानव अदन के बाग में लौट आया हो, लेकिन फिर भी इस बार मनुष्य सांप के प्रलोभनों को नहीं सुनता है, यहोवा के चेहरे से दूर नहीं जाता है। मनुष्य परमेश्वर के सामने घुटने टेकता है, परमेश्वर के मुस्कुराते हुए चेहरे को देखता है, और उसे अपनी सबसे प्रिय भेंट चढ़ाता है—ओह! मेरे प्रभु, मेरे परमेश्वर!
— 'केवल परमेश्वर के प्रबंधन के मध्य ही मनुष्य बचाया जा सकता है' से उद्धृत