मैंने जीवन जल का आनंद लिया है

28 अक्टूबर, 2020

प्रभु में मेरे परिवार की आस्था तीन पीढ़ियों से चली आ रही है। मैं बचपन से ही अपने परिवार के साथ कलीसिया जाती रही हूँ। बड़ी होने पर, मैंने कलीसिया में उपयाजक और अकाउंटैंट जैसी सेवाएं कीं। मैंने हमेशा जोश के साथ प्रभु की सेवा की। लेकिन समय के साथ मैंने देखा कि कलीसिया ज़्यादा-से-ज़्यादा वीरान होती जा रही है, पादरी और एल्डर बिना किसी नयी रोशनी के उन्हीं पुरानी बातों का प्रचार करते हैं। वे हमारी असल मुश्किलों और समस्याओं को नहीं सुलझा पाते। वे हमेशा प्रभु के लिए किये अपने खुद के कार्य के बारे में बताते हैं, यह दिखावा करते हैं कि उन्होंने कितने कष्ट सहे हैं और कितनी बड़ी कीमत चुकाई है। ये सब सुन-सुन कर मैं तंग हो गयी। हर रविवार सेवा में, मैं देखती कि याजक वर्ग पहले से तैयार आलेखों के आधार पर लोगों के लिए प्रार्थना करते, मुझे यह सब झूठा, निष्ठाहीन लगता। सच्ची प्रार्थना, चाहे कुछ ही शब्दों की क्यों न हो, प्रभु से दिल से बात करने की होनी चाहिए। क्योंकि प्रभु ने कहा, "परमेश्‍वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसकी आराधना करनेवाले आत्मा और सच्‍चाई से आराधना करें" (यूहन्ना 4:24)। उन लोगों द्वारा पहले से लिखी हुई प्रार्थनाओं का पाठ करना सच्ची प्रार्थनाएं नहीं थीं, इनसे प्रभु को यकीनन आनंद नहीं मिल सकता था। उपयाजकों के पदों पर नियुक्तियां करते समय कलीसिया के अगुआओं ने उन लोगों को नहीं चुना, जो सदाचारी, वफादार, लालच-विहीन थे और जो बाइबल में सिखाये संयम का पालन करते थे। (देखें 1 तीमुथियुस 3:1-11) इसके बजाय, उन्होंने बड़े जोश के साथ ऐसे लोगों को नियुक्त किया, जो चढ़ावों में ज़्यादा योगदान देते। कलीसिया के अगुआओं का बर्ताव हर मोड़ पर प्रभु की शिक्षाओं के विपरीत था; वे अपने निजी सिद्धांत के अनुसार ही धार्मिक सभा की अगुआई करते। इस किस्म की कलीसिया में मुझे प्रभु का कोई मार्गदर्शन नज़र नहीं आया, मैं पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव नहीं कर पायी या अपने जीवन के लिए किसी भी तरह का पोषण प्राप्त नहीं कर पायी। कलीसिया के अन्य सभी सदस्य आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर थे और उनकी आस्था घटती जा रही थी। याजक वर्ग ने कलीसिया को पुनर्जीवित करने के उपाय ढूँढ़ने की कोशिश की, जैसे कि विश्वासियों के लिए एक दिन की यात्राएं और गर्मियों के शिविर आयोजित करना, लेकिन यह बस चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात जैसा रहा, फिर जल्दी ही सब लोग उदास रहने लगे। मैं कलीसिया में वाकई निराश थी, मुझे लगा कि ऐसी जगह परमेश्वर की आराधना करके मैं कुछ भी हासिल नहीं कर पाऊँगी। मई 2013 में, मैंने कलीसिया छोड़ देने का फैसला किया।

इसके बाद, एक ऐसी कलीसिया ढूँढ़ने की कोशिश में, जो प्रभु की शिक्षाओं के अनुरूप हो और मेरे जीवन को पोषण दे सके, मैं देश-विदेश के प्रसिद्ध पादरियों के धर्मोपदेश ऑनलाइन सुनने लगी। मैंने अपनी पुरानी कलीसिया के एक प्रचारक से भी संपर्क किया, जिसने डिविनिटी स्कूल से ग्रैजुएशन करने के बाद अपनी खुद की कलीसिया शुरू की थी। मैं उसके ऑनलाइन धर्मोपदेश सुनकर उसके साथ सभाएं करती, लेकिन किसी के भी धर्मोपदेश मुझे आनंददायी और पोषक नहीं लगे। तीन महीने बाद, मैंने एक और कलीसिया से संपर्क साधा। मुझे लगा कि उनकी शिक्षाएं बाइबल के अनुरूप हैं, इसलिए मैं उनकी बहुत-सी गतिविधियों में भाग लेने लगी। लेकिन कुछ समय बाद, मैंने पाया कि हर सेवा के शुरू और अंत में, वे हमेशा अन्य भाषाओं में प्रार्थना करते, वे कहते कि अन्य भाषाओं में बात करना ही पवित्र आत्मा का कार्य पाने और बचाये जाने का एकमात्र प्रमाण है। लेकिन मैं बिल्कुल सहमत नहीं थी, क्योंकि बाइबल में गलातियों 5:22-23 में कहा गया है, "पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम है।" बाइबल की मेरी समझ यह है कि प्रभु के वचनों को समझ कर अपने जीवन में पवित्र आत्मा के नौ फलों को पाना ही शुद्ध आस्था और पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करने का प्रमाण है। और सेवाओं में, पादरी हमेशा किसी नयी रोशनी के बिना उन्हीं पुरानी बातों का बार-बार प्रचार करते। धर्मोपदेश के दौरान सभा में शामिल ज़्यादातर लोग ऊंघने लगते। वे महज नाम के लिए भाग लेते। ज़्यादातर लोग नकारात्मक और मायूस रहते। मैं वह आनंद नहीं देख पायी, जो लोगों को प्रभु की आराधना करते समय मिलना चाहिए। ऐसी लापरवाही से की गयी सेवाओं को देख कर, मैं मन-ही-मन सोचती, "क्या प्रभु लोगों को लापरवाही से यूं ही कुछ भी करते हुए देख कर खुश होता है? क्या सेवा के दौरान प्रभु वास्तव में हमारे साथ होता है?" फिर मैंने प्रकाशितवाक्य के इन वचनों को याद किया : "लौदीकिया की कलीसिया के दूत को यह लिख : 'मैं तेरे कामों को जानता हूँ कि तू न तो ठंडा है और न गर्म : भला होता कि तू ठंडा या गर्म होता। इसलिये कि तू गुनगुना है, और न ठंडा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुँह में से उगलने पर हूँ'" (प्रकाशितवाक्य 3:14-16)। क्या इस कलीसिया का हाल भी लौदीकियाओं की कलीसिया जैसा नहीं है? इस कलीसिया में भी मेरी आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी नहीं हो सकती थीं, मैं अभी भी बेसहारा और खाली महसूस कर रही थी। मैंने देखा कि मैं जिस किसी भी कलीसिया से होकर गुज़री, सब एक जैसी हैं। सभी लोग नियमों से चिपके हुए थे, सेवाओं में औपचारिकताएं निभा रहे थे, लेकिन मुझे पवित्र आत्मा के कार्य या मार्गदर्शन का अनुभव नहीं हो पाया। मैं सच में दुखी थी। उस वक्त मेरी एक ही आशा थी कि प्रभु शीघ्र वापस आकर हमारी अगुआई करेगा। मैं प्रभु से अक्सर प्रार्थना करती : "हे प्रभु! तुम कब वापस आओगे?"

मैं और भी ज़्यादा आतुरता से प्रभु के वापस आने, और अपने जीवन को पोषण देने वाली कलीसिया को ढूँढ़ पाने की आशा करने लगी। मैंने निरंतर ऑनलाइन तलाश का काम शुरू कर दिया। मौक़ा मिलते ही मैं "परमेश्वर की वाणी" और "परमेश्वर के पदचिह्न" जैसे शब्द तलाशती, जिनका संदर्भ परमेश्वर के प्रकटन से है। 27 जनवरी 2016 की सुबह, मैंने ऑनलाइन प्रभु के वापस आने के बारे में जानकारी खोजी। एकाएक मेरी नज़र एक वीडियो पर पड़ी, और मैंने ऐसे वचन सुने जिनसे मेरे दिल में हलचल मच गयी। "मेरा राज्य समस्त ब्रह्माण्ड के ऊपर आकार ग्रहण कर रहा है, और मेरा सिंहासन हज़ारों-लाखों लोगों के हृदय में प्रभुत्व संपन्न होता है। स्वर्गदूतों की सहायता से, मेरी महान उपलब्धि शीघ्र ही फलीभूत होगी। मेरे सभी पुत्र और लोग मेरी वापसी की उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं, अपने साथ पुनः एक होने, फिर कभी अलग नहीं होने के लिए मेरी लालसा करते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि मेरे राज्य के असंख्य जनसाधारण, मेरे उनके साथ होने की वजह से, हर्षोल्लास से भरे उत्सव में एक दूसरे की ओर दौड़ न पड़ें? क्या यह ऐसा पुनर्मिलन हो सकता है जिसके लिए कोई क़ीमत चुकाना आवश्यक नहीं हो? मैं सभी मनुष्यों की नज़रों में सम्मानीय हूँ, मैं सभी के वचनों में उद्घोषित होता हूँ। इतना ही नहीं, जब मैं लौटूँगा, मैं सारी शत्रु शक्तियों को जीत लूँगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 27)। हालांकि मैं इन वचनों की हर बात नहीं समझ पायी, जब मैंने सुना कि "मेरा राज्य समस्त ब्रह्माण्ड के ऊपर आकार ग्रहण कर रहा है, और मेरा सिंहासन हज़ारों-लाखों लोगों के हृदय में प्रभुत्व संपन्न होता है।" "इतना ही नहीं, जब मैं लौटूँगा, मैं सारी शत्रु शक्तियों को जीत लूँगा।" मुझे सचमुच महसूस हुआ कि प्रत्येक वचन में अधिकार और सामर्थ्य है, ये वचन ऐसे नहीं हैं जो कोई भी इंसान बोल सके। मैं तुरंत चौकन्नी होकर बैठ गयी और पूरे ध्यान से सुनने लगी। फिर मैंने वीडियो में यह सुना : "समय आ गया है! मैं अपने कार्य को गति दूँगा, मैं मनुष्यों के बीच राजा के रूप में शासन करूँगा! मैं वापसी की कगार पर हूँ! और मैं प्रस्थान करने ही वाला हूँ! यही है वह जिसकी सब आशा कर रहे हैं, यही है वह जो वे चाहते हैं। मैं संपूर्ण मानवजाति को मेरे दिन का आगमन देखने दूँगा और वे सब आनंदोल्लास से मेरे दिन के आगमन का स्वागत करेंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 27)। मैंने जितना अधिक सुनती, उतना ही मुझे लगता कि ये वचन बहुत अधिकारपूर्ण और प्रेरक हैं। मैं सोचती, "ये वचन आखिर कहाँ से आये हैं?" वीडियो के अंत में, मैंने यह पंक्ति पढ़ी : "वचन देह में प्रकट होता है' से उद्धृत।" इस किताब के लिए मैंने तुरंत दो ईसाई किताब की दुकानों को फोन किया। लेकिन दोनों ने इसके न होने की बात कही। मुझे सचमुच बहुत निराशा महसूस हो रही थी, लेकिन फिर मैंने देखा कि वीडियो के अंत में एक संपर्क नंबर दिया हुआ है, मैंने तुरंत वहाँ फोन किया। एक बहन ने जवाब दिया, हमारी बातचीत से मुझे पता चला कि इस पुस्तक को पैसे देकर नहीं खरीदा जा सकता। मुझे लगा कि जो वचन मैंने सुने, वे बहुत मूल्यवान हैं, इसलिए मैंने उनसे कहा कि मुझे यह किताब पढ़नी ही है! फिर हमने मुलाक़ात का वक्त तय किया।

5 फरवरी 2016 को, बहन वांग और बहन जिन मेरे घर आयीं। मैंने हाल के वर्षों में कलीसियाओं के हालात के बारे में चर्चा की, यह भी बताया कि मैं ऐसी कलीसिया की तलाश में हूँ, जिसमें पवित्र आत्मा का कार्य हो, जो मुझे जीवन का पोषण दे सके। उन्होंने मुझसे पूछा, "आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के बारे में क्या सोचती हैं?" मैंने कहा, "ये सच में आधिकार और सामर्थ्य से भरे हैं, कोई भी इंसान ऐसे वचन नहीं बोल सकता। ये परमेश्वर की वाणी जैसे लगते हैं।" बहन वांग ने जवाब दिया, "ये वचन परमेश्वर की वाणी ही हैं। ये वचन वापस आये हुए प्रभु यीशु—देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा बोले गए हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय का कार्य करता है, वह इंसान को शुद्ध कर बचाने वाला संपूर्ण सत्य व्यक्त करता है। वह खुलासा करता है कि परमेश्वर की 6,000 साल वाली प्रबंधन योजना के सभी रहस्य क्या हैं, इंसान को बचाने के परमेश्वर के तीनों चरणों के कार्य और देहधारण के रहस्य क्या हैं, बाइबल के पीछे की अंदरूनी कहानी क्या है, शैतान इंसान को कैसे भ्रष्ट करता है, परमेश्वर इंसान को कैसे बचाता है, लोग परमेश्वर द्वारा पाप से कैसे मुक्त और शुद्ध किये जा सकते हैं, इंसान का परिणाम क्या होगा, लोगों को किस तरह खोज करनी चाहिए ताकि वे बचाए जा सकें और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकें, आदि-आदि। परमेश्वर ये सभी रहस्य और सत्य हमारे साथ साझा करता है। इससे प्रभु यीशु की यह भविष्यवाणी पूरी होती है : 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। वचन देह में प्रकट होता है में स्वयं परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों में व्यक्त किये हुए वचन हैं। यह परमेश्वर द्वारा हमें दिया गया जीवन जल है, अनंत जीवन का मार्ग है। हमें अपने जीवन के लिए पोषण पाने के लिए सिर्फ़ मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने और परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों को हासिल करने की ज़रूरत है। फिर हमारी सूखी आत्माओं को पोषण और सिंचन प्राप्त होगा।" उनकी इस बात से मैं हैरान हो गयी। मैंने सोचा, "प्रभु वाकई वापस आ गया है? क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर वापस आया हुआ प्रभु यीशु है, जिसके लिए मैं तरस रही हूँ?" हालांकि मैं जानती हूँ कि प्रभु यीशु वापस आयेगा, फिर भी मैं उस सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार नहीं कर पा रही थी, जिसकी उन्होंने गवाही दी। फिर मैंने फरीसियों के बारे में सोचा, जो हमेशा मसीहा के आने का इंतज़ार करते रहे थे, लेकिन प्रभु यीशु के कार्य करने के लिए आने पर, उन्होंने उसे मानने से इनकार कर दिया। वे अड़ियल होकर अपनी धारणाओं से चिपके रहे, पागलों की तरह प्रभु यीशु की निंदा और तिरस्कार करते रहे, और अंत में उन्होंने उसे सूली पर चढ़वा दिया। उन्होंने परमेश्वर के स्वभाव का अपमान किया, परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित हुए। मैंने खुद को कई बार आगाह किया था कि प्रभु यीशु के आने पर मुझे फरीसियों जैसी नहीं बनना चाहिए। मैंने शिमोन और हन्नाह जैसे नबियों को भी याद किया। मैं हमेशा से उनकी प्रशंसक थी, उन्हीं की तरह प्रभु यीशु के आने पर उसे पहचान लेना चाहती थी। अब मैंने प्रभु यीशु के वापस आने की खबर सुन ली, तो मैं उसकी खोज और जांच-पड़ताल कैसे न करती? फिर बहनों ने मुझे वचन देह में प्रकट होता है की एक प्रति दी। उन्होंने मुझे यह भी बताया कि इसका हर वचन परमेश्वर के मुख से आया हुआ है, मुझे इसे ध्यान से पढ़ना चाहिए।

इसके बाद मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने लगी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों के साथ ऑनलाइन सभाओं में भाग लेने लगी। एक दिन, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ये वचन पढ़े : "परमेश्वर में सच्चे विश्वास का अर्थ यह है: इस विश्वास के आधार पर कि सभी वस्तुओं पर परमेश्वर की संप्रभुता है, व्यक्ति परमेश्वर के वचनों और कार्यों का अनुभव करता है, अपने भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध करता है, परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है और परमेश्वर को जान पाता है। केवल इस प्रकार की यात्रा को ही 'परमेश्वर में विश्वास' कहा जा सकता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')। मैंने मन-ही-मन "आमीन" कहा, अपनी आस्था के अनुभवों को फिर एक बार याद किया। मैं प्रभु यीशु के छुटकारे के अनुग्रह के बाद सुस्त पड़ गयी थी, यह सोच कर कि सभाओं में शामिल होना, प्रार्थना करना, बाइबल पढ़ना और प्रभु के लिए काम करना आस्था रखने के बराबर है। मैं आस्था के सच्चे अर्थ को नहीं समझ पायी। इन वचनों को पढ़ने से सचमुच मुझे रोशनी मिल गयी—मैंने समझ लिया कि हमारे भ्रष्ट स्वभाव को बदलने की खातिर आस्था में परमेश्वर के कार्य और वचनों का अनुभव करना ज़रूरी है, ताकि हम सत्य को हासिल कर परमेश्वर को जान सकें। यही परमेश्वर में आस्था रखना है। इन कुछ संक्षिप्त वचनों ने आस्था के सच्चे अर्थ को पूरी तरह से समझा दिया, मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने का रास्ता दिखा दिया। सिर्फ परमेश्वर ही ऐसे वचन व्यक्त कर सकता है। बाद में मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े, जिनमें इंसान की भ्रष्टता के सत्य और सार को उजागर किया गया है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर खुलासा करता है कि हम इसलिए काम करते हुए खुद को नहीं खपाते क्योंकि हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं और उसे संतुष्ट करना चाहते हैं, बल्कि इस उम्मीद में ऐसा करते हैं कि परमेश्वर से सौदेबाजी करके हम परमेश्वर के राज्य का आशीष पा सकेंगे। वह हमारे अहंकार, कपट और परमेश्वर का भय न मानने का पर्दाफ़ाश करता है। जैसे ही उसका कार्य हमारी धारणाओं के अनुरूप नहीं होता, हम मनमाने ढंग से उसकी आलोचना और निंदा करते हैं। जैसा कि इब्रानियों 4:12 में कहा गया है, "क्योंकि परमेश्‍वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है; और प्राण और आत्मा को, और गाँठ-गाँठ और गूदे-गूदे को अलग करके आर-पार छेदता है और मन की भावनाओं और विचारों को जाँचता है।" मुझे और भी लगने लगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचन सचमुच परमेश्वर के वचन हैं, क्योंकि सिर्फ परमेश्वर ही इंसान के दिलों की गहराइयों की जांच कर सकता है, हमारे विचारों की जांच कर सकता है और जान सकता है कि हम क्या सोच रहे हैं, सिर्फ परमेश्वर ही हमारी भ्रष्टता के सत्य का सटीक विश्लेषण कर सकता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मेरी समझ से बाहर रहे, बाइबल के बहुत-से अंशों के रहस्य का खुलासा कर दिया, जैसे कि "स्वर्गारोहित होने" का वास्तव में क्या अर्थ है, जीवन सरिता का जल क्या है, नया यरूशलम क्या है, बुद्धिमान और मूर्ख कुँवारियाँ क्या हैं, किताब और उसकी सात मुहरों को खोलने का क्या अर्थ है, आदि-आदि। इसने वाकई मेरी आँखें खोल दीं—मैं पूरी तरह से आश्वस्त हो गयी। स्वयं परमेश्वर के अलावा, कोई भी बाइबल के इन रहस्यों को प्रकट नहीं कर सकता। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को जितना अधिक पढ़ा, खुद को उतना ही आध्यात्मिक रूप से पोषित महसूस किया। यह लंबे समय के सूखे के बाद मेरे जीवन को पोषण और सिंचन देती हुई रिमझिम बरसात जैसा था। मैं बिल्कुल आश्वस्त हो गयी कि ये पवित्र आत्मा के वचन हैं और इंसान से परमेश्वर की बातें हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में वापस आया हुआ प्रभु यीशु है। मैंने प्रभु यीशु के इस वचन के पीछे के अर्थ को अनुभव किया, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। ज़ाहिर हुआ कि अंत के दिनों के मसीह के पास ही जीवन जल का सोता है, अब मैंने आखिरकार जीवन के इस सोते के स्रोत को पा लिया है।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ कर और भाई-बहनों के साथ सभाएं और संगतियाँ करके मैं धार्मिक जगत के वीरान होने के सार और कारणों को समझ पायी हूँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्होंने परमेश्वर के वचनों के कार्य में प्रवेश नहीं किया है और चाहे वो कितना भी काम करें या उनकी पीड़ा जितनी भी ज़्यादा हो या वो कितनी ही भागदौड़ करें, परमेश्वर के लिए इनमें से किसी बात का कोई महत्व नहीं और वह उनकी सराहना नहीं करेगा। आज वो सभी जो परमेश्वर के वर्तमान वचनों का पालन करते हैं, वो पवित्र आत्मा के प्रवाह में हैं; जो लोग आज परमेश्वर के वचनों से अनभिज्ञ हैं, वो पवित्र आत्मा के प्रवाह से बाहर हैं और ऐसे लोगों की परमेश्वर द्वारा सराहना नहीं की जाती। वह सेवा जो पवित्र आत्मा के वर्तमान कथनों से जुदा हो, वह देह और धारणाओं की सेवा है और इसका परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होना असंभव है। यदि लोग धार्मिक धारणाओंमें रहते हैं, तो वो ऐसा कुछ भी करने में असमर्थ होते हैं, जो परमेश्वर की इच्छा के अनुकूल हो और भले ही वो परमेश्वर की सेवा करें, वो अपनी कल्पनाओं और धारणाओं के घेरे में ही सेवा करते हैं और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करने में पूरी तरह असमर्थ होते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। "परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक चरण में मनुष्य से तद्नुरूपी अपेक्षाएँ भी होती हैं। जो लोग पवित्र आत्मा की धारा के भीतर हैं, वे सभी पवित्र आत्मा की उपस्थिति और अनुशासन के अधीन हैं, और जो पवित्र आत्मा की मुख्य धारा में नहीं हैं, वे शैतान के नियंत्रण में और पवित्र आत्मा के किसी भी कार्य से रहित हैं। जो लोग पवित्र आत्मा की धारा में हैं, वे वो लोग हैं जो परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार करते हैं और उसमें सहयोग करते हैं। ... यह उन लोगों के लिए नहीं है, जो नए कार्य को स्वीकार नहीं करते : वे पवित्र आत्मा की धारा से बाहर हैं, और पवित्र आत्मा का अनुशासन और फटकार उन पर लागू नहीं होते। पूरे दिन ये लोग देह में जीते हैं, अपने मस्तिष्क के भीतर जीते हैं, और वे जो कुछ भी करते हैं, वह सब उनके अपने मस्तिष्क के विश्लेषण और अनुसंधान से उत्पन्न हुए सिद्धांत के अनुसार होता है। यह वह नहीं है, जो पवित्र आत्मा के नए कार्य द्वारा अपेक्षित है, और यह परमेश्वर के साथ सहयोग तो बिलकुल भी नहीं है। जो लोग परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार नहीं करते, वे परमेश्वर की उपस्थिति से वंचित रहते हैं, और, इससे भी बढ़कर, वे परमेश्वर के आशीषों और सुरक्षा से रहित होते हैं। उनके अधिकांश वचन और कार्य पवित्र आत्मा की पुरानी अपेक्षाओं को थामे रहते हैं; वे सिद्धांत हैं, सत्य नहीं। ऐसे सिद्धांत और विनियम यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि इन लोगों का एक-साथ इकट्ठा होना धर्म के अलावा कुछ नहीं है; वे चुने हुए लोग या परमेश्वर के कार्य के लक्ष्य नहीं हैं। उनमें से सभी लोगों की सभा को मात्र धर्म का महासम्मेलन कहा जा सकता है, उन्हें कलीसिया नहीं कहा जा सकता। यह एक अपरिवर्तनीय तथ्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास)। इसे पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरी पुरानी कलीसिया और जिन अलग-अलग संप्रदायों में मैं पहले थी, वे परमेश्वर के नये कार्य के साथ कदम नहीं मिला पाये, वे पवित्र आत्मा के कार्य में शामिल नहीं किये गये और बस धार्मिक स्थल बन कर रह गये, वे अब परमेश्वर की कलीसिया नहीं रह गये। याजक वर्ग सिर्फ बाइबल के ज्ञान और सिद्धांत की व्याख्या करते, शेखी बघारते कि उन्होंने बहु कष्ट सहे और बहुत-कुछ छोड़ा, वे हमेशा खुद को ऊंचा दिखा कर अपनी ही गवाही देते। उन्होंने कभी भी परमेश्वर का उत्कर्ष कर उसकी गवाही नहीं दी, उन्होंने कभी भी प्रभु के वचनों का अभ्यास करने के लिए दूसरों की अगुआई नहीं की। उनमें से कुछ ने तो चापलूसी के आधार पर लोगों को कलीसिया के पदों पर नियुक्त कर दिया, कहा कि जो अलग-अलग भाषाओं में बातें करते हैं वे पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हैं और परमेश्वर द्वारा बचाये जा चुके हैं। वे ये सब बातें अपनी खुद की धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर करते हैं अपनी कलीसियाओं की इस तरह अगुआई करके धार्मिक अगुआ प्रभु की शिक्षाओं से भटक गये, प्रभु की इच्छा के विरुद्ध चले गये। वे विश्वासी होने का दम भरते, लेकिन न तो वे प्रभु के मार्ग पर चले और न ही उसके आदेशों पर कायम रहे। उनका रास्ता पूरी तरह से प्रभु के विपरीत था। प्रभु इन सबकी मंज़ूरी कैसे दे सकता है? वे जगहें अब कलीसिया के रूप में नहीं मानी जा सकतीं। वे सिर्फ संप्रदायों और धार्मिक समूहों के लिए रह गयी हैं। इसीलिए वहां अपनी आस्था पर अमल करके मैं परमेश्वर का मार्गदर्शन नहीं पा सकी। मैं पोषण पाये बिना, आध्यात्मिक रूप से सूख गयी थी।

इसके बाद, हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ और अंश पढ़े। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर इस तथ्य को पूर्ण करेगा : वह संपूर्ण ब्रह्मांड के लोगों को अपने सामने आने के लिए बाध्य करेगा, और पृथ्वी पर परमेश्वर की आराधना करवाएगा, और अन्य स्थानों पर उसका कार्य समाप्त हो जाएगा, और लोगों को सच्चा मार्ग तलाशने के लिए मजबूर किया जाएगा। यह यूसुफ की तरह होगा : हर कोई भोजन के लिए उसके पास आया, और उसके सामने झुका, क्योंकि उसके पास खाने की चीज़ें थीं। अकाल से बचने के लिए लोग सच्चा मार्ग तलाशने के लिए बाध्य होंगे। संपूर्ण धार्मिक समुदाय गंभीर अकाल से ग्रस्त होगा, और केवल आज का परमेश्वर ही मनुष्य के आनंद के लिए हमेशा बहने वाले स्रोत से युक्त, जीवन के जल का स्रोत है, और लोग आकर उस पर निर्भर हो जाएँगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सहस्राब्दि राज्य आ चुका है)। "मैंने अपनी महिमा इस्राएल को दी और फिर उसे हटा लिया, इसके बाद मैं इस्राएलियों को, और पूरी मानवता को पूरब में ले आया। मैं उन सभी को प्रकाश में ले आया हूँ ताकि वे इसके साथ फिर से मिल जाएं और इससे जुड़े रह सकें, और उन्हें इसकी खोज न करनी पड़े। जो प्रकाश की खोज कर रहे हैं, उन्हें मैं फिर से प्रकाश देखने दूँगा और उस महिमा को देखने दूँगा जो मेरे पास इस्राएल में थी; मैं उन्हें यह देखने दूँगा कि मैं बहुत पहले एक सफ़ेद बादल पर सवार होकर मनुष्यों के बीच आ चुका हूँ, मैं उन्हें असंख्य सफ़ेद बादलों और प्रचुर मात्रा में फलों के गुच्छों को देखने दूँगा। यही नहीं, मैं उन्हें इस्राएल के यहोवा परमेश्वर को भी देखने दूँगा। मैं उन्हें यहूदियों के गुरु, बहुप्रतीक्षित मसीहा को देखने दूँगा, और अपने पूर्ण प्रकटन को देखने दूँगा, जिन्हें हर युग के राजाओं द्वारा सताया गया है। मैं संपूर्ण ब्रह्मांड पर कार्य करूँगा और मैं महान कार्य करूँगा, जो अंत के दिनों में लोगों के सामने मेरी पूरी महिमा और मेरे सभी कर्मों को प्रकट कर देगा। मैं अपना महिमामयी मुखमंडल अपने संपूर्ण रूप में उन लोगों को दिखाऊँगा, जिन्होंने कई वर्षों से मेरी प्रतीक्षा की है, जो मुझे सफ़ेद बादल पर सवार होकर आते हुए देखने के लिए लालायित रहे हैं। मैं अपना यह रूप इस्राएल को दिखाऊँगा जिसने मेरे एक बार फिर प्रकट होने की लालसा की है। मैं उस पूरी मनष्यजाति को अपना यह रूप दिखाऊँगा जो मुझे कष्ट पहुँचाते हैं, ताकि सभी लोग यह जान सकें कि मैंने बहुत पहले ही अपनी महिमा को हटा लिया है और इसे पूरब में ले आया हूँ, जिस कारण यह अब यहूदिया में नहीं रही। क्योंकि अंत के दिन पहले ही आ चुके हैं!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ होती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा)। परमेश्वर के वचन पढ़ कर और भाई-बहनों के साथ सभाएं करके मैं समझ सकी कि प्रभु यीशु, अंत के दिनों में नया कार्य करने के लिए देहधारी होकर वापस आया है। उसने राज्य का युग शुरू किया है और अनुग्रह के युग को खत्म किया है, साथ ही, पवित्र आत्मा का कार्य परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य में आ गया है। धार्मिक जगत ने पवित्र आत्मा का कार्य पूरी तरह से गँवा दिया है। धार्मिक जगहों में फंसे हुए लोग अंधकार और वीरानी में डूब गये हैं। व्यवस्था के युग के अंत में, देहधारी प्रभु यीशु ने आराधना स्थल के बाहर एक नया और ऊंचा कार्य किया, अनुग्रह का युग शुरू किया और व्यवस्था के युग को खत्म किया। परमेश्वर का कार्य उस युग के छुटकारे के कार्य में चला गया, फिर आराधना स्थल वीरान हो गये। जो लोग यहोवा परमेश्वर के कार्य से चिपके रहे और प्रभु यीशु के कार्य को स्वीकार नहीं किया, वे सभी अंधकार में डूब कर गुम हो गये। इससे मुझे आमोस 8:11 की याद आयी : "परमेश्‍वर यहोवा की यह वाणी है, 'देखो, ऐसे दिन आते हैं, जब मैं इस देश में महँगी करूँगा; उस में न तो अन्न की भूख और न पानी की प्यास होगी, परन्तु यहोवा के वचनों के सुनने ही की भूख प्यास होगी।'" फिर, आखिरकार मैं समझ सकी। मैं बहुत-सी कलीसियाओं में गयी, बहुत-से मशहूर पादरियों के धर्मोपदेश सुने, लेकिन मुझे कभी भी जीवन की आपूर्ति नहीं मिली। मेरी भूखी आत्मा सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सुनने के बाद ही तृप्त हो पायी। मुझे एहसास हुआ कि ऐसा परमेश्वर के नया कार्य करने और पवित्र आत्मा के कार्य के वहां चले जाने के कारण हुआ है। पवित्र आत्मा अब सिर्फ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम से किये गये कार्य का ही समर्थन करता है। लोग प्रभु यीशु के कार्य का चाहे जितने भी अच्छे ढंग से पालन करें, परमेश्वर उसका अब समर्थन नहीं करता।

मैंने अपनी यह समझ एक सभा में साझा की, और बहन वांग ने यह संगति साझा की : "दरअसल, धार्मिक जगत में छाये अकाल के पीछे परमेश्वर की इच्छा है। धर्म में अकाल पड़ने से, परमेश्वर में सच्चा विश्वास रखने वाले और सत्य से प्रेम करने वाले लोग धर्म को छोड़ देते हैं, ताकि पवित्र आत्मा द्वारा कलीसिया से कही गयी बातों को खोज सकें, परमेश्वर के प्रकटन और कार्य को खोज सकें। वे सभी जो परमेश्वर की वाणी को सुनकर पहचान लेते हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य को स्वीकार कर उसका पालन करते हैं, वे बुद्धिमान कुँवारियाँ हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने उठा लिए जाएंगे। वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के न्याय, शुद्धिकरण और पूर्ण किये जाने की प्रक्रिया से गुज़रते हैं और इस सत्य को समझ लेते हैं कि शैतान ने उन्हें किस तरह भ्रष्ट किया है। उनका अहंकारी, कुटिल, मक्कार, शैतानी स्वभाव धीरे-धीरे शुद्ध होकर बदल जाता है। वे परमेश्वर को बेहतर और बेहतर ढंग से जानने लगते हैं, फिर धीरे-धीरे अपने जीवन में आगे बढ़ने लगते हैं। वे परमेश्वर के सामने समर्पण करने और वफादार होने की तरह-तरह की गवाहियां पेश करते हैं। वे परमेश्वर द्वारा विपत्तियों से पहले बनाये गये विजेता हैं, वे पहले फल हैं। इससे प्रकाशित-वाक्य की यह भविष्यवाणी पूरी होती है : 'ये वे हैं जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुँवारे हैं; ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्‍वर के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं' (प्रकाशितवाक्य 14:4)। परमेश्वर द्वारा विजेताओं के इस समूह को बना लिये जाने के बाद, परमेश्वर के घर से शुरू करके किया जाने वाला देहधारी परमेश्वर का न्याय-कार्य पूरा हो जाएगा। इसके बाद, वह विपत्तियाँ बरसायेगा, नेक लोगों को पुरस्कृत करेगा और दुष्टों को दंड देगा। फिर जिन सबने परमेश्वर के न्याय-कार्य को स्वीकार करने से मना कर दिया, जिन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा कर उसका प्रतिरोध किया, वे विपत्तियों में बिखर जाएंगे, रोयेंगे और दांत पीसेंगे। सिर्फ परमेश्वर द्वारा शुद्ध किये गये लोग ही परमेश्वर का संरक्षण पायेंगे और आखिरकार परमेश्वर के राज्य में लाये जाने के लिए जीवित बचेंगे।"

बहन की संगति से, मैं परमेश्वर के कार्य और उसकी इच्छा को समझ सकी। मुझे लगा कि परमेश्वर का प्रेम बहुत वास्तविक है। परमेश्वर ने मुझे अलग नहीं छोड़ा, बल्कि मेरे अपने जीवनकाल में प्रभु यीशु की वापसी का स्वागत करने दिया। उसने मुझे इन सभी वचनों की आपूर्ति की, और मुझे बहुत सारा सत्य दिया, मेरी सूखी आत्मा को पोषित किया। मैं इस बारे में जितना अधिक सोचती हूँ, उतना ही खुद को धन्य पाती हूँ! मैंने परमेश्वर के ये वचन भी पढ़े : "जीवन का मार्ग कोई ऐसी चीज नहीं है जो हर किसी के पास होता है, न ही यह कोई ऐसी चीज है जिसे हर कोई आसानी से प्राप्त कर सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जीवन केवल परमेश्वर से ही आ सकता है, कहने का तात्पर्य है कि केवल स्वयं परमेश्वर के पास ही जीवन का सार है, और केवल स्वयं परमेश्वर के पास ही जीवन का मार्ग है। और इसलिए केवल परमेश्वर ही जीवन का स्रोत है, और जीवन के जल का सदा बहने वाला सोता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर सभी चीज़ों के लिये जीवन का स्रोत है—उसके वचन ही सत्य, मार्ग और जीवन हैं। वे निरंतर हमारा पोषण और सिंचन करते रहते हैं। और अब, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का सिंचन और उनकी अगुआई हासिल कर ली है, मैं सिंहासन से प्रवाहित जीवन-जल का आनंद उठा रही हूँ। मैं सचमुच मेमने के विवाह-भोज में शामिल हो गयी हूँ। मुझे बचाने के लिए मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की बहुत आभारी हूँ!

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