परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

भाग सात

परमेश्वर के परीक्षणों के बारे में कोई गलतफहमी नहीं रखो

अय्यूब की परीक्षाओं के अंत के बाद उसकी गवाही को प्राप्त करने के पश्चात्, परमेश्वर ने यह दृढ़ निश्चय किया था कि वह अय्यूब के समान एक समूह—या एक से अधिक समूह—को हासिल करेगा, फिर भी उसने यह दृढ़ निश्चय किया था कि वह फिर कभी शैतान को अनुमति नहीं देगा कि वह उन माध्यमों का उपयोग करके किसी और का शोषण करे जिनके द्वारा शैतान ने परमेश्वर के साथ शर्त लगाकर अय्यूब की परीक्षा ली थी, उस पर आक्रमण किया था और उसका शोषण किया था; परमेश्वर ने शैतान को अनुमति नहीं दी थी कि वह फिर कभी मनुष्य के साथ ऐसी चीज़ें करे, जो कमज़ोर, मूर्ख एवं अज्ञानी है—इतना काफी था कि शैतान ने अय्यूब की परीक्षा ली थी! चाहे शैतान कितनी भी इच्छा करे किन्तु लोगों का शोषण करने के लिए उसे अनुमति नहीं देना परमेश्वर की करुणा है। क्योंकि परमेश्वर के लिए, यह काफी था कि अय्यूब ने शैतान की परीक्षाओं एवं शोषण को सहा था। परमेश्वर ने शैतान को फिर कभी ऐसा करने की अनुमति नहीं दी थी, क्योंकि ऐसे लोग जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं उनके जीवन एवं उनकी हर एक चीज़ पर परमेश्वर के द्वारा शासन और उनका आयोजन किया जाता है, और शैतान इस बात का हक़दार नहीं है कि वह अपनी इच्छा से परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करे—तुम लोगों को इस बिन्दु के विषय में स्पष्ट होना चाहिए! परमेश्वर मनुष्य की कमज़ोरी की चिंता करता है, और उसकी मूर्खता एवं अज्ञानता को समझता है। यद्यपि, इसलिए कि मनुष्य को पूरी तरह से बचाया जा सके, परमेश्वर को उसे शैतान के हाथों में सौंपना पड़ा, परमेश्वर यह देखना नहीं चाहता है कि शैतान के द्वारा कभी भी मनुष्य के साथ खिलौने की तरह खेला जाए और शैतान के द्वारा उसका शोषण किया जाए, और वह हमेशा मनुष्य को दुःख दर्द सहते हुए नहीं देखना चाहता है। मनुष्य को परमेश्वर के द्वारा सृजा गया था, और यह पूरी तरह से न्यायोचित है कि परमेश्वर मनुष्य की हर चीज़ पर शासन करे एवं उसका इंतजाम करे; यह परमेश्वर की ज़िम्मेदारी है, और वह अधिकार है जिसके द्वारा परमेश्वर सभी चीज़ों के ऊपर शासन करता है! परमेश्वर ने शैतान को अनुमति नहीं दी है कि वह अपनी इच्छा से मनुष्य का शोषण एवं उससे दुर्व्यवहार करे, और उसने शैतान को अनुमति नहीं दी है कि वह मनुष्य को पथभ्रष्ट करने के लिए विभिन्न साधनों को काम में लाए, और इसके अतिरिक्त, उसने शैतान को अनुमति नहीं दी है कि वह मनुष्य के विषय में परमेश्वर की संप्रभुता में हस्तक्षेप करे, न ही परमेश्वर ने उसे अनुमति दी है कि वह उन नियमों को कुचले एवं नष्ट करे जिनके द्वारा परमेश्वर सभी चीज़ों पर शासन करता है, ताकि वह मानवजाति के उद्धार एवं प्रबंध हेतु परमेश्वर के महान कार्य के बारे में कुछ भी न कहे! ऐसे लोग जिन्हें परमेश्वर बचाना चाहता है, और ऐसे लोग जो परमेश्वर के लिए गवाही देने के योग्य हैं, वे परमेश्वर की छः हज़ार वर्षों की प्रबंधकीय योजना के केन्द्र एवं उसका साकार रूप हैं, साथ ही साथ वे छः हज़ार वर्षों में उसके प्रयासों की कीमत भी हैं। परमेश्वर इन लोगों को अकस्मात् ही शैतान को कैसे दे सकता है?

लोग अकसर परमेश्वर की परीक्षाओं के विषय में चिंता करते हैं और भयभीत होते हैं, फिर भी पूरे समय वे शैतान के फंदे में जीवन बिताते रहते हैं, और उस ख़तरनाक इलाके में जीवन जीते रहते हैं जिसमें शैतान के द्वारा उन पर आक्रमण एवं उनका शोषण किया जाता है—फिर भी वे किसी भय को नहीं जानते हैं, और बिना किसी चिंता के खामोश रहते हैं। क्या हो रहा है? परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास केवल उन चीज़ों तक ही सीमित रहता है जिन्हें वह देख सकता है। उसके पास मनुष्य के लिए परमेश्वर के प्रेम एवं चिंता, या मनुष्य के प्रति उसकी कोमलता एवं विचार की जरा सी भी समझ नहीं है। परन्तु उसमें परमेश्वर की परीक्षाओं, न्याय एवं ताड़ना, प्रताप एवं क्रोध के विषय में थोड़ी सी घबराहट है, मनुष्य के पास परमेश्वर के भले इरादों की जरा सी भी समझ नहीं है। परीक्षाओं का जिक्र होने पर, लोगों को लगता है मानो परमेश्वर के पास गूढ़ इरादे हैं, और कुछ लोग यह भी विश्वास करते हैं कि परमेश्वर बुरी रूपरेखाओं (डिज़ाइनों) को लम्बे समय तक छिपाकर रखता है, वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि परमेश्वर वास्तव में उनके साथ क्या करेगा; इस प्रकार, जब वे परमेश्वर की संप्रभुता एवं इंतज़ामों के प्रति आज्ञाकारिता के विषय में चीखते चिल्लाते हैं, तो ठीक उसी समय वे मनुष्य के ऊपर परमेश्वर की संप्रभुता एवं उसके इंतज़ामों का सामना एवं विरोध करने के लिए वह सब कुछ करते हैं जो वे कर सकते हैं, क्योंकि वे विश्वास करते हैं कि यदि वे सावधान नहीं हुए तो उन्हें परमेश्वर के द्वारा गुमराह कर दिया जाएगा, यह कि यदि उन्होंने अपनी नियति को कस कर नहीं पकड़ा तो जो कुछ भी उनके पास है उन्हें परमेश्वर के द्वारा लिया जा सकता है, और उनके जीवन को भी समाप्त किया जा सकता है। मनुष्य शैतान के शिविर में है, परन्तु वह शैतान के द्वारा शोषण किए जाने के विषय में कभी भी चिंता नहीं करता है, और शैतान के द्वारा उसका शोषण किया जाता है परन्तु वह शैतान के द्वारा बन्दी बनाए जाने की कभी चिंता नहीं करता। वह लगातार बोलता रहता है कि वह परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करता है, फिर भी उसने परमेश्वर पर कभी भरोसा नहीं किया है या यह विश्वास नहीं किया है कि परमेश्वर सचमुच में मनुष्य को शैतान के पंजों से बचा सकता है। यदि अय्यूब के समान कोई मनुष्य परमेश्वर के आयोजनों एवं इंतज़ामों के अधीन हो सकता है, और अपने सम्पूर्ण वज़ूद को परमेश्वर के हाथों में सौंप सकता है, तो क्या मनुष्य का अंत अय्यूब के समान ही नहीं होगा—परमेश्वर की आशीषों की प्राप्ति? यदि मनुष्य परमेश्वर के शासन को स्वीकार करने और उसके अधीन होने के योग्य है, तो वहाँ खोने के लिए क्या है? और इस प्रकार, मैं तुम लोगों को सलाह देता हूँ कि तुम लोग अपने कार्यों के प्रति सचेत हो जाओ, और हर उस चीज़ के प्रति सावधान हो जाओ जो तुम लोगों पर आनेवाला है। तुम लोग आवेगी या उतावले न हों, और परमेश्वर एवं लोगों, मामलों, और प्रयोजनों से, जिन्हें उसने तुम लोगों के लिए इंतज़ाम किया है, एक उत्तेजनापूर्ण तीव्र इच्छा के रूप में व्यवहार न करो जो तुम लोगों पर काबिज़ हो जाता है, या उनसे अपने नैसर्गिक स्वार्थ के अनुसार व्यवहार न करो, या अपनी कल्पनाओं एवं अवधारणाओं के अनुसार व्यवहार न करो; तुम लोगों को अपने कार्यों में सचेत होना होगा, तथा और भी अधिक प्रार्थना एवं खोज करना होगा, ताकि परमेश्वर के क्रोध उत्तेजित करने से बचा जाए। इसे स्मरण रखो!

इसके आगे, हम देखेंगे कि अपनी परीक्षाओं के पश्चात् अय्यूब कैसा था।

5. अपनी परीक्षाओं के पश्चात् अय्यूब

(अय्यूब 42:7-9) ऐसा हुआ कि जब यहोवा ये बातें अय्यूब से कह चुका, तब उसने तेमानी एलीपज से कहा, "मेरा क्रोध तेरे और तेरे दोनों मित्रों पर भड़का है, क्योंकि जैसी ठीक बात मेरे दास अय्यूब ने मेरे विषय कही है, वैसी तुम लोगों ने नहीं कही। इसलिये अब तुम सात बैल और सात मेढ़े छाँटकर मेरे दास अय्यूब के पास जाकर अपने निमित्त होमबलि चढ़ाओ, तब मेरा दास अय्यूब तुम्हारे लिये प्रार्थना करेगा, क्योंकि उसी की प्रार्थना मैं ग्रहण करूँगा; और नहीं, तो मैं तुम से तुम्हारी मूढ़ता के योग्य बर्ताव करूँगा, क्योंकि तुम लोगों ने मेरे विषय मेरे दास अय्यूब की सी ठीक बात नहीं कही।" यह सुन तेमानी एलीपज, शूही बिलदद और नामाती सोपर ने जाकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया, और यहोवा ने अय्यूब की प्रार्थना ग्रहण की।

(अय्यूब 42:10) जब अय्यूब ने अपने मित्रों के लिये प्रार्थना की, तब यहोवा ने उसका सारा दुःख दूर किया, और जितना अय्यूब के पास पहले था, उसका दुगना यहोवा ने उसे दे दिया।

(अय्यूब 42:12) यहोवा ने अय्यूब के बाद के दिनों में उसके पहले के दिनों से अधिक आशीष दी; और उसके चौदह हज़ार भेड़ बकरियाँ, छः हज़ार ऊँट, हज़ार जोड़ी बैल, और हज़ार गदहियाँ हो गईं।

(अय्यूब 42:17) अन्त में अय्यूब वृद्धावस्था में दीर्घायु होकर मर गया।

वे जो परमेश्वर का भय मानते और बुराई से दूर रहते हैं उन्हें परमेश्वर के द्वारा स्नेह से देखा जाता है, जबकि ऐसे लोग जो मूर्ख हैं उन्हें परमेश्वर के द्वारा नीची दृष्टि से देखा जाता है

अय्यूब 42:7-9 में, परमेश्वर कहता है कि अय्यूब उसका दास है। उसके द्वारा "दास" शब्द का उपयोग करना अय्यूब की ओर संकेत करता है जो उसके हृदय में अय्यूब के महत्व को दर्शाता है; हालाँकि परमेश्वर ने अय्यूब को ऐसा कुछ कहकर नहीं पुकारा था जो और अधिक सम्मानीय होता, परमेश्वर के हृदय के भीतर अय्यूब के महत्व से इस उपाधि का कोई सम्बन्ध नहीं था। यहाँ पर "दास" शब्द अय्यूब के लिए परमेश्वर का दिया हुआ उपनाम है। "मेरे दास अय्यूब" की ओर परमेश्वर के अनगिनित संकेत यह दिखाते हैं कि वह अय्यूब से कितना प्रसन्न था, और हालाँकि परमेश्वर ने "दास" शब्द के पीछे छिपे अर्थ को नहीं बताया था, फिर भी दास शब्द की परमेश्वर की परिभाषा को पवित्र शास्त्र के इस अंश के इन वचनों में देखा जा सकता है। परमेश्वर ने सबसे पहले तेमानी एलीपज से कहा: "मेरा क्रोध तेरे और तेरे दोनों मित्रों पर भड़का है, क्योंकि जैसी ठीक बात मेरे दास अय्यूब ने मेरे विषय कही है, वैसी तुम लोगों ने नहीं कही।" ये शब्द पहली बार आए हैं जिनमें परमेश्वर ने लोगों से खुलकर कहा था कि उसने वह सब कुछ स्वीकार किया था जो अय्यूब के द्वारा परमेश्वर की परीक्षाओं के बाद कहा एवं किया गया था, और ये शब्द पहली बार आए हैं जिनमें उसने उन सब चीज़ों की सटीकता एवं सत्यता की पुष्टि की थी जिन्हें अयूब ने किया एवं कहा था। परमेश्वर उनके ग़लत, एवं बेतुके वार्तालाप के कारण एलीपज और अन्य से क्रोधित था, क्योंकि वे अय्यूब के समान परमेश्वर के प्रगटीकरण को नहीं देख सकते थे या उन वचनों को नहीं सुन सकते थे जो उसने उनके जीवन में कहा था, फिर भी अय्यूब के पास परमेश्वर का ऐसा सटीक ज्ञान था, जबकि वे केवल आंख मूंद कर परमेश्वर के विषय में अनुमान लगा सकते थे, और परमेश्वर की इच्छा का उल्लंघन कर सकते थे और वह सब जो वे करते थे उनमें उसके धीरज को परख सकते थे। परिणामस्वरूप, ठीक उसी समय सब कुछ स्वीकार करते हुए जिन्हें अय्यूब द्वारा किया एवं कहा गया था, परमेश्वर अन्य लोगों के प्रति क्रोधित हो गया था, क्योंकि उनमें परमेश्वर के भय की वास्तविकता को देखने में वह न केवल असमर्थ था, बल्कि उसने जो कुछ वे कहते थे उनमें परमेश्वर के भय के विषय में भी कुछ नहीं सुना था। और इस प्रकार इसके आगे परमेश्वर ने उनसे निम्नलिखित मांग की: "इसलिये अब तुम सात बैल और सात मेढ़े छाँटकर मेरे दास अय्यूब के पास जाकर अपने निमित्त होमबलि चढ़ाओ, तब मेरा दास अय्यूब तुम्हारे लिये प्रार्थना करेगा, क्योंकि उसी की प्रार्थना मैं ग्रहण करूँगा; और नहीं, तो मैं तुम से तुम्हारी मूढ़ता के योग्य बर्ताव करूँगा।" इस अंश में परमेश्वर ऐलीपज एवं अन्य से कह रहा है कि कुछ ऐसा करें जो उन्हें पापों से छुटकारा देगा, क्योंकि उनकी मूर्खता यहोवा परमेश्वर के विरुद्ध एक पाप था, और इस प्रकार उन्हें अपनी ग़लती का सुधार करने के लिए होमबलि चढ़ाना पड़ा। होमबलियों को अकसर परमेश्वर को चढ़ाया जाता था, परन्तु इन होमबलियों के विषय में असामान्य बात यह है कि उन्हें अय्यूब को चढ़ाया गया था। अय्यूब को परमेश्वर के द्वारा स्वीकार किया गया था क्योंकि उसने अपनी परीक्षाओं के दौरान परमेश्वर के लिए गवाही दी थी। इसी बीच, अय्यूब के इन मित्रों को उसकी परीक्षाओं के दौरान प्रकट किया गया था; उनकी मूर्खता के कारण परमेश्वर के द्वारा उनकी भर्त्सना की गई थी, और उन्होंने परमेश्वर के क्रोध को भड़काया था, और उन्हें परमेश्वर के द्वारा दण्ड दिया जाना चाहिए—अय्यूब के सामने होमबलि चढ़ाने के द्वारा दण्ड दिया गया—जिसके बाद अय्यूब ने उनके लिए प्रार्थना की कि उनके प्रति परमेश्वर का दण्ड एवं उसका क्रोध दूर हो जाए। परमेश्वर का अभिप्राय था कि उन्हें लज्जित किया जाए, क्योंकि वे ऐसे लोग नहीं थे जो परमेश्वर का भय मानते और बुराई से दूर रहते थे, और उन्होंने अय्यूब की खराई पर दोष लगाया था। एक लिहाज से, परमेश्वर उन्हें बता रहा था कि उसने उनके कार्यों को स्वीकार नहीं किया था परन्तु बड़े रूप में अय्यूब को स्वीकार किया और उस से प्रसन्न हुआ था; दूसरे लिहाज से, परमेश्वर उनसे कह रहा था कि परमेश्वर के द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद परमेश्वर के सामने मनुष्य को ऊंचा किया जाता है, यह कि मनुष्य की मूर्खता के कारण परमेश्वर के द्वारा मनुष्य से घृणा की जाती है, और इसके कारण परमेश्वर को ठेस पहुंचती है, और वह परमेश्वर की नज़रों में नीच एवं बुरा है। दो प्रकार के लोगों के विषय में ये परमेश्वर के द्वारा दी गई परिभाषाएं हैं, इन दो प्रकार के लोगों के प्रति ये परमेश्वर की मनोवृत्तियां हैं, और इन दो प्रकार के लोगों के मूल्य एवं स्थिति के विषय में ये परमेश्वर के स्पष्ट कथन हैं। भले ही परमेश्वर ने अय्यूब को अपना दास कहा था, फिर भी परमेश्वर की दृष्टि में यह "दास" अति प्रिय था, और उसे दूसरों के लिए प्रार्थना करने और उनकी ग़लतियों को क्षमा करने का अधिकार प्रदान किया गया था। यह "दास" परमेश्वर से सीधे बातचीत कर सकता था और सीधे परमेश्वर के सामने आ सकता था, उसकी हैसियत दूसरों की अपेक्षा अधिक ऊंची थी। यह "दास" शब्द का असली अर्थ है जिसे परमेश्वर के द्वारा कहा गया था। अय्यूब को यह विशेष सम्मान परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के कारण दिया गया था, और दूसरों को परमेश्वर के द्वारा दास नहीं कहा गया था इसका कारण है क्योंकि वे परमेश्वर का भय नहीं मानते थे और बुराई से दूर नहीं रहते थे। परमेश्वर की ये दो स्पष्ट भिन्न मनोवृत्तियां ही दो प्रकार के लोगों के प्रति उसकी मनोवृत्तियां हैं: ऐसे लोग जो परमेश्वर का भय मानते और बुराई से दूर रहते हैं उन्हें परमेश्वर के द्वारा स्वीकार किया जाता है, और उन्हें उसकी दृष्टि में बहुमूल्य माना जाता है, जबकि ऐसे लोग जो मूर्ख हैं वे परमेश्वर से नहीं डरते हैं, और वे बुराई से दूर रहने में असमर्थ हैं, और वे परमेश्वर की कृपा को पाने के योग्य नहीं हैं; अकसर परमेश्वर के द्वारा उनसे घृणा एवं उनकी निन्दा की जाती है, और वे परमेश्वर की दृष्टि में नीच हैं।

परमेश्वर अय्यूब को अधिकार प्रदान करता है

अय्यूब ने अपने मित्रों के लिए प्रार्थना की, और उसके बाद, अय्यूब की प्रार्थनाओं के कारण, परमेश्वर ने उनकी मूर्खता के अनुसार उनके साथ व्यवहार नहीं किया—उसने उन्हें दण्ड नहीं दिया या उनसे कोई बदला नहीं लिया। और ऐसा क्यों था? क्योंकि उनके लिए परमेश्वर के दास अय्यूब की प्रार्थनाएं परमेश्वर के कानों तक पहुंच गई थीं; परमेश्वर ने उन्हें क्षमा किया था क्योंकि उसने अय्यूब की प्रार्थनाओं को स्वीकार किया था। और हम इसमें क्या देखते हैं? जब परमेश्वर किसी को आशीष देता है, तो वह उन्हें बहुत सारे प्रतिफल देता है, सिर्फ भौतिक वस्तुएं ही नहीं, या फिर दोनों देता है: परमेश्वर उन्हें अधिकार भी देता है, और दूसरों के लिए प्रार्थना करने के लिए उन्हें समर्थ भी बनाता है, और परमेश्वर भूल जाता है, और उन लोगों के गुनाहों को अनदेखा करता है क्योंकि उसने इन प्रार्थनाओं को सुन लिया है। यह वही अधिकार है जिसे परमेश्वर ने अय्यूब को दिया था। अय्यूब की प्रार्थनाओं के माध्यम से उनकी निन्दा को रोकने के लिए यहोवा परमेश्वर ने उन मूर्ख लोगों को लज्जित किया था—जो वास्तव में एलीपज़ और दूसरों के लिए उसका विशेष दण्ड था।

अय्यूब को एक बार फिर से परमेश्वर के द्वारा आशीषित किया जाता है, और फिर कभी शैतान के द्वारा उस पर आरोप नहीं लगाया गया

यहोवा परमेश्वर के कथनों के मध्य ऐसे शब्द हैं "तुम लोगों ने मेरे विषय मेरे दास अय्यूब की सी ठीक बात नहीं कही।" वह क्या था जो अय्यूब ने कहा? यह वह था जिसके बारे में हमने पहले बातचीत की थी, साथ ही साथ यह वह था जो अय्यूब की पुस्तक के पन्नों के अनेक वचनों में है जिनमें अय्यूब को बोलते हुए दर्ज किया गया है। वचनों के इन सभी पन्नों में, अय्यूब के पास एक बार भी परमेश्वर के विषय में कोई शिकायत या ग़लतफहमी नहीं है। उसने सिर्फ परिणाम का इंतज़ार किया है। यह वह इंतज़ार है जो आज्ञाकारिता के विषय में उसकी मनोवृत्ति है, जिसके परिणामस्वरूप, और उन वचनों के परिणामस्वरूप जिन्हें उसने परमेश्वर से कहा था, अय्यूब को परमेश्वर के द्वारा स्वीकार किया गया था। जब उसने परीक्षाओं को सहा और कठिनाईयों को झेला, तब परमेश्वर उसके साथ था, और हालाँकि परमेश्वर की उपस्थिति के द्वारा उसकी कठिनाईयां कम नहीं हुईं, फिर भी परमेश्वर ने वह देखा जिसे उसने देखने की इच्छा की थी, और वह सुना जिसे उसने सुनने की चाहत की थी। अय्यूब के प्रत्येक कार्य एवं शब्द परमेश्वर की दृष्टि एवं कानों तक पहुंचे; परमेश्वर ने सुना, और उसने देखा—और यह तथ्य है। परमेश्वर के विषय में अय्यूब का ज्ञान, और उस समय एवं उस समयावधि के दौरान उसके हृदय में परमेश्वर के विषय में उसके विचार वास्तव में उन लोगों के लिए उतने विशिष्ट नहीं थे जितना आज के समय के लोगों के लिए हैं, परन्तु उस समय के सन्दर्भ में, परमेश्वर ने तब भी वह सब कुछ पहचाना था जो उसने कहा था, क्योंकि उसके हृदय में उसका व्यवहार एवं विचार, और जो कुछ उसने अभिव्यक्त एवं प्रकट किया था, वे परमेश्वर की अपेक्षाओं के लिए पर्याप्त थे। उस समय के दौरान जब अय्यूब को परीक्षाओं के हवाले किया गया था, तब जो कुछ उसने अपने हृदय में सोचा था और जो कुछ करने का दृढ़ निश्चय किया था उसने परमेश्वर को एक परिणाम दिखाया था, एक ऐसा परिणाम जो परमेश्वर के लिए संतोषजनक था, और उसके बाद परमेश्वर ने अय्यूब की परीक्षाओं को दूर किया, अय्यूब अपनी मुसीबतों से उबरा, और उसकी परीक्षाएं पूरी हो गई थीं और फिर कभी दुबारा उस पर नहीं आईं। क्योंकि अय्यूब को पहले से ही परीक्षाओं के अधीन किया गया था, और वह इन परीक्षाओं के दौरान दृढ़ता से स्थिर खड़ा रहा, और उसने शैतान पर पूरी तरह से विजय प्राप्त किया, और परमेश्वर ने उसे आशीषें प्रदान कीं जिनका वह सही मायने में हकदार था। जैसा अय्यूब 42:10, 12 में दर्ज है, अय्यूब को फिर से आशीषित किया गया था, और उसे पहले के मुकाबले कहीं अधिक आशीषें प्राप्त हुईं थीं। इस समय शैतान पीछे हट गया था, और फिर कभी कुछ नहीं कहा या कुछ नहीं किया, और उसके बाद से शैतान के द्वारा अय्यूब के साथ फिर कभी हस्तक्षेप नहीं किया गया या उस पर आक्रमण नहीं किया गया, और शैतान ने अय्यूब के विषय में परमेश्वर की आशीषों के विरुद्ध आगे से कोई दोषारोपण नहीं किया।

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