स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VIII

परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है (II) भाग चार

प्रतिदिन भोजन एवं जल जो परमेश्वर मानवजाति के लिए तैयार करता है

मुझे बताओ: क्या कुछ ऐसा है जिसे परमेश्वर करता है, इसकी परवाह न करते हुए कि वह एक बड़ी चीज़ है या एक छोटी चीज़ है, जिसका कोई अर्थ या मूल्य नहीं है? हर चीज़ जो वह करता है उसका मूल्य एवं अर्थ है। आइए हम एक प्रश्न से चर्चा करें जिसके विषय में लोग अक्सर बात करते हैं: पहले क्या आया था, मुर्गी या अण्डा? तुम इसका उत्तर कैसे देते हो? मुर्गी पहले आई थी, यह बिल्कुल पक्का है! मुर्गी पहले क्यों आई थी? पहले अण्डा क्यों नहीं आ सकता था? क्या मुर्गी अण्डे से नहीं निकलती है? अण्डे से मुर्गी के बच्चे निकलते हैं, मुर्गी अण्डों को सेती है। 21 दिन तक सेने के बाद, मुर्गी के बच्चे निकलते हैं। फिर वह मुर्गी अंडे देती है, और अंडों से फिर से मुर्गी निकलती है। इस प्रकार मुर्गी पहले आई थी या अण्डा पहले आया था? (मुर्गी।) तुम लोगों ने पूरी निश्चिचता के साथ उत्तर दिया "मुर्गी।" ऐसा क्यों है? (बाइबल कहती है कि परमेश्वर ने पक्षियों और पशुओं की सृष्टि की थी।) यह बाइबल पर आधारित है। मैं चाहता हूँ कि तुम लोग अपने स्वयं के ज्ञान के विषय में बात करो यह देखने के लिए कि तुम लोगों के पास परमेश्वर के कार्यों के विषय में कुछ वास्तविक ज्ञान है कि नहीं। क्या तुम लोग अपने उत्तर के विषय में निश्चित हो या नहीं? (परमेश्वर ने मुर्गी को बनाया, तब उसे जीवन को पुनःउत्पन्न करने की योग्यता दी।) कौन सी योग्यता? (अण्डों को सेने की योग्यता, जीवन को निरन्तर आगे बढ़ाने की योग्यता।) हम्म, यह व्याख्या सही चीज़ के विषय में है। क्या किसी अन्य भाईयों या बहनों के पास कोई राय है? (पहले मुर्गी, और तब अण्डा।) यह निश्चित है। यह एक बहुत गम्भीर रहस्य नहीं है, किन्तु संसार के लोग इसे बहुत ही गम्भीर रूप में देखते हैं और अपने तर्क के लिए दर्शनशास्त्र का उपयोग करते हैं। अंत में, उनके पास तब भी कोई निष्कर्ष नहीं होता है। यह चीज़ मनुष्य से सम्बन्धित है फिर भी वह नहीं जानता है कि उसे परमेश्वर के द्वारा सृजा गया था। मनुष्य इस सिद्धांत को नहीं जानता है, और वे अभी भी इस पर स्पष्ट नहीं हैं कि अण्डे को या मुर्गी को पहले आना चाहिए। वे नहीं जानते हैं कि किसे पहले आना चाहिए, अतः वे हमेशा से उत्तर पाने में असमर्थ हैं। तो मुझे बताओ: क्या मुर्गी को या अण्डे को पहले आना चाहिए? यह बहुत ही सामान्य है कि मुर्गी पहले आई थी। यदि अण्डा मुर्गी के पहले आ जाता, तो वह असामान्य होता! मुर्गी निश्चित तौर पर पहले आई थी। यह कितनी सरल चीज़ है। इसमें तुम लोगों को बहुत ही ज़्यादा ज्ञानी होने की आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर ने इन सभी को बनाया था। मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रारम्भिक इरादा था कि वह उसका आनन्द ले। एक बार जब मुर्गी आ गई तो अण्डों का आना स्वाभाविक है। क्या यह बिल्कुल स्पष्ट नहीं है? यदि अण्डे को पहले बनाया गया होता, तो क्या तब भी उसे सेने के लिए मुर्गी की आवश्यकता नहीं होती? सीधे मुर्गी को बनाना बहुत ही आसान है। अतः परमेश्वर ने सीधे मुर्गी को बनाया था, और मुर्गी अण्डे दे सकती थी और साथ ही से कर नन्हें बच्चों को जन्म दे सकती थी, जबकि मनुष्य मुर्गी को खा भी सकता था। क्या यह इतना सुविधाजनक नहीं था। परमेश्वर जिस तरह से काम करता है वह संक्षिप्त होता है और बहुत भारी नहीं होता है। अण्डे के पास भी एक पूर्वज है, और वह मुर्गी है। जो परमेश्वर ने बनाया वह एक जीवित प्राणी था! भ्रष्ट मानवजाति सचमुच में बेतुका और हास्यास्पद है, हमेशा इन सरल चीज़ों में उलझ जाता है, और अंत में पूरे बेतुके झूठ के साथ उभर कर आता है। कितना बचकाना है! अण्डे ओर मुर्गी के बीच का रिश्ता स्पष्ट हैः मुर्गी पहले आई थी। यह बिल्कुल सही व्याख्या है, इसे समझने के लिए यह सबसे सही रास्ता है, और यह सबसे सही उत्तर है। यह सही है।

शुरूआत में, हमने मानवजाति के सजीव वातावरण और जो कुछ परमेश्वर ने किया था, जो कुछ उसने तैयार किया था, और इस वातावरण के लिए उसने किस प्रकार व्यवहार किया था, साथ ही साथ परमेश्वर के द्वारा मानवजाति के लिए तैयार की गई सभी चीज़ों के बीच सम्बन्धों और सभी चीज़ों के द्वारा मानवजाति को नुकसान पहँचाने से रोकने के लिए परमेश्वर ने इन सम्बन्धों के साथ कैसे बर्ताव किया था, उसके विषय में बात की थी। परमेश्वर ने सभी चीज़ों के द्वारा लाए गए विभिन्न तत्वों का और मानवजाति के वातावरण पर उनके जो नकारात्मक प्रभाव थे उनका भी समाधान किया, और उसने सभी चीज़ों को अपनी अपनी कार्यप्रणालियों को विस्तृत करने की अनुमति दी, वह मानवजाति के लिए एक उपयुक्त वातावरण लेकर आया था, और उसने हर एक तत्व को लाभदायक बना दिया था, और उसने मानवजाति को इस योग्य बनाया था जिससे वह एक ऐसे वातावरण के अनुरूप हो जाए तथा सन्तान की उत्पत्ति के चक्र एवं जीवन को सामान्य रीति से निरन्तर जारी रखे। मानव शरीर के द्वारा अपेक्षित अगली चीज़ भोजन थी—दैनिक भोजन और पेय पदार्थ। यह भी मानवजाति के जीवित रहने के लिए एक जरूरी स्थिति थी। दूसरे शब्दों में, मानव शरीर मात्र साँस लेने के द्वारा, बस सूर्य की रोशनी या वायु के साथ, या मात्र उपयुक्त तापमानों के साथ ही जीवित नहीं रह सकता है। उन्हें अपना पेट भरने की भी आवश्यकता है। उनके पेट को भरने के लिए इन चीज़ों को भी पूरी तरह परमेश्वर के द्वारा मानवजाति के लिए तैयार किया गया था—यह मानवजाति के भोजन का स्रोत है। इन समृद्ध और भरपूर पैदावार को देखने के पश्चात—मानवजाति के भोजन एवं पेय पदार्थ के स्रोत—क्या तुम कह सकते हो कि परमेश्वर मानवजाति एवं सभी चीज़ों के लिए आपूर्ति का स्रोत है? तुम बिल्कुल ऐसा कह सकते हो। जब उसने सभी चीज़ों की सृष्टि की थी तब यदि परमेश्वर ने केवल पेड़ों एवं घास या सिर्फ विभिन्न जीवित प्राणियों को ही बनाया होता, और मानवजाति उनमें से किसी को भी खा नहीं सकता था, तो क्या मानवजाति आज तक जीवित रहने में सक्षम हो पाता? क्या होता यदि सभी चीज़ों के बीच में विभिन्न जीवित प्राणी एवं पौधे जिन्हें परमेश्वर ने बनाया था वे सभी पशुओं एवं भेड़ों के खाने के लिए ही होते, या जिराफ, हिरन एवं विभिन्न प्रकार के पशुओं के लिए ही होते—उदाहरण के लिए, सिंह, जिराफ तथा हिरन जैसे भोजन को खाते हैं, बाघ मेम्नों एंव सुअरों जैसे भोजन को खाते हैं—किन्तु वहाँ मनुष्य के खाने के लिए एक भी उपयुक्त चीज़ नहीं होती? क्या वह काम करता? वह काम नहीं करता। यदि ऐसा होता तो मानवजाति निरन्तर जीवित बचे रहने के योग्य नहीं होता। क्या होता यदि मनुष्य केवल पेड़ों के पत्ते ही खाते? क्या वह काम करता? मनुष्यों का पेट इसे पचा नहीं पाता। यदि तुम उसकी कोशिश नहीं करते हो तो तुम नहीं जानोगे, किन्तु यदि तुम एक बार ऐसा करते हो तो तुम अच्छी तरह से जान जाओगे। तो क्या तुम उस घास को खा सकते हो जिसे पशुओं और भेड़ों के लिए बनाया गया है? यदि तुम थोड़ी सी घास खाने की कोशिश करोगे तो ठीक है, किन्तु यदि तुम लम्बे समय तक घास खाते रहते हो, तो तुम ज़्यादा समय तक ज़िन्दा नहीं रहोगे। पशुओं के द्वारा कुछ चीज़ों को खाया जा सकता है, परन्तु यदि मनुष्य उन्हें खाएँगे तो वे विषैले हो जाएँगे। ऐसी कुछ विषैली चीज़ें हैं जिन्हें पशु बिना प्रभावित हुए खा सकते हैं, परन्तु मनुष्य ऐसा नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर ने मनुष्यों को बनाया है, अतः परमेश्वर मानव शरीर के सिद्धांतों और संरचना को और जिसकी मनुष्यों को जरूरत है उसको बहुत अच्छे से जानता है। परमेश्वर मानव शरीर की बनावट और उसकी विषय सूची, और जिसकी उसे आवश्यकता है, साथ ही साथ मानव शरीर के भीतरी अंग किस प्रकार कार्य करते हैं, वे कैसे सोखते है, उत्सर्जन करते हैं और चयापचय करते हैं उसे लेकर पूरी तरह स्पष्ट है। लोग इसे लेकर स्पष्ट नहीं हैं और कई बार आँख बंदकर कुछ और खा लेते हैं। वे इतना अधिक अतिरिक्त भोजन खा लेते हैं और असन्तुलन पैदा करते हुए अंत करते हैं। यदि तुम इन चीज़ों को खाते हो जिन्हें परमेश्वर ने तुम्हारे लिए तैयार किया है, और उन्हें खाते हो और सामान्य रूप से उनका आनन्द लेते हो, तो तुम्हारे साथ कुछ ग़लत नहीं होगा। भले ही तुम कई बार खराब मिजाज़ में होते हो और तुम्हें लहू के जमाव की बीमारी है, फिर भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। तुम्हें बस एक प्रकार के पौधे को खाने की जरूरत है और लहू के जमाव की बीमारी ठीक हो जाएगी। परमेश्वर ने इन सब चीज़ों को तैयार किया है। परमेश्वर की नज़रों में, मानवजाति किसी भी अन्य जीवधारी से कहीं ऊँचा है। परमेश्वर ने सभी प्रकार के पौधों के लिए सजीव वातावरणों को तैयार किया है और सभी प्रकार के पशुओं के लिए भोजन एवं सजीव वातावरणों को तैयार किया है, किन्तु केवल मानवजाति की अपेक्षाएँ ही उनके सजीव वातावरण के प्रति बहुत अधिक कठोर हैं और उपेक्षा के प्रति सबसे अधिक असहनीय हैं। अन्यथा, मानवजाति निरन्तर विकसित होने और सन्तान की उत्पत्ति करने और सामान्य रीति से जीने के योग्य नहीं होता। परमेश्वर अपने हृदय में इसे भली भांति जानता है। जब परमेश्वर ने यह कार्य किया था, तब उसने किसी भी अन्य चीज़ की अपेक्षा उस पर अधिक ध्यान दिया था। कदाचित् तुम किसी ऐसे महत्वहीन चीज़ के महत्व का एहसास करने में असमर्थ हो जिसे तुम देखते हो और उसका आनन्द उठाते हो या तुम कुछ ऐसा महसूस करते हो कि तुम उसके साथ पैदा हुए हो और उसका आनन्द उठा सकते हो, परन्तु परमेश्वर ने उसे तुम्हारे लिए बहुत पहले से ही तैयार कर लिया था। परमेश्वर ने सभी नकारात्मक कारकों को जहाँ तक संभव हो सके हटा दिया था और उनका समाधान कर दिया था जो मनुष्य के लिए उपयुक्त नहीं थे और मानवजाति को नुकसान पहुँचा सकते थे। यह किसे स्पष्ट कर सकता है? क्या यह मानवजाति के प्रति परमेश्वर की मनोवृत्ति को स्पष्ट करता है जब उसने इस समय के लिए उन्हें सृजा था? यह मनोवृत्ति क्या है? परमेश्वर की मनोवृत्ति कठोर और गम्भीर थी, और उसने कारकों या स्थितियों या परमेश्वर से अलग शत्रुओं के बल के किसी हस्तक्षेप को सहन नहीं किया था। इससे, तुम परमेश्वर की मनोवृत्ति को देख सकते हो जब उसने मानवजाति को बनाया था और इस समय मानवजाति का प्रबन्ध करता है। परमेश्वर की मनोवृत्ति क्या है? सजीव और जीवित रहने योग्य वातावरण के जरिए मानवजाति आनन्द उठाता है साथ ही साथ वह अपने दैनिक भोजन और पेय पदार्थ और दैनिक आवश्यकताओं का आनन्द लेता है, हम मानवजाति की सन्तान उत्पत्ति में और उनके जीवन को बनाए रखने में और उनके प्रति परमेश्वर की जिम्मेदारी में, और साथ ही साथ इस समय मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर के दृढ़ निश्चय में परमेश्वर की मनोवृत्ति को देख सकते हैं। क्या हम इन चीज़ों के द्वारा परमेश्वर की प्रमाणिकता को देख सकते हैं? क्या हम परमेश्वर की अद्भुतता को देख सकते हैं? क्या हम परमेश्वर की अगाधता (अथाह रूप) को देख सकते हैं? क्या हम परमेश्वर की सर्वसामर्थता को देख सकते हैं? परमेश्वर सारी मानवजाति की आपूर्ति और साथ ही साथ सभी चीज़ों की आपूर्ति के लिए सरलता से अपने सर्वसामर्थी और बद्धिमान मार्ग का उपयोग करता है।

इस विषय में, मेरे इतना कुछ कहने के बाद, तुम लोग कहने में समर्थ हो सकते हो कि परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है? (हाँ।) बिल्कुल! यह निश्चित है। परमेश्वर के द्वारा सभी चीज़ों की आपूर्ति यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है, क्योंकि वह आपूर्ति का स्रोत है जिसने सभी चीज़ों को अस्तित्व में बने रहने, जीवित रहने, पुनः उत्पन्न करने और निरन्तर जारी रखने के योग्य किया है। परमेश्वर के अलावा और कोई नहीं है। वह सभी चीज़ों की सारी आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है और मानवजाति की सारी आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है, इसके बावजूद कि ये बहुत ही मूलभूत आवश्यकताएँ हों, जिनकी लोगों को प्रतिदिन आवश्यकता होती है, या लोगों की आत्माओं के लिए सत्य की आपूर्ति हो। सभी दृष्टिकोण से, जब परमेश्वर की पहचान और मानवजाति के लिए उसकी पदस्थिति की बात आती है, तो केवल स्वयं परमेश्वर ही सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है। यह बिल्कुल निश्चित है। परमेश्वर शासक, स्वामी और इस भौतिक संसार की आपूर्ति करनेवाला है जिसे लोग अपनी आँखों से देख सकते हैं और महसूस कर सकते हैं। मानवजाति के लिए, क्या यह परमेश्वर की पहचान नहीं है? यह पूरी तरह सत्य है। अतः जब तुम आकाश में पक्षियों को उड़ते हुए देखते हो, तो तुम्हें जानना चाहिए कि परमेश्वर ने उन चीज़ों को बनाया है जो उड़ सकते हैं। परन्तु ऐसे जीवित प्राणी हैं जो पानी में तैर सकते हैं, और वे अन्य तरीकों से भी जीवित रह सकते हैं। वे पेड़ और पौधे जो मिट्टी में जीते हैं वे बसंत ऋतु में अंकुरित होते हैं और फलवन्त होते हैं और शरद ऋतु में पत्ते झाड़ देते हैं, और शीत ऋतु तक सभी पत्तियाँ झड़ जाती हैं और वे शीत ऋतु से होकर गुज़रते हैं। यह ही है उनके जीवित रहने का तरीका। परमेश्वर ने सभी चीज़ों की सृष्टि की है, उनमें से हर एक विभिन्न रूपों और विभिन्न तरीकों के जरिए जीता है और अपनी सामर्थ एवं जीवन के रूप को प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न पद्धतियों का उपयोग करता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि पद्धति कौन सी है, यह सब कुछ परमेश्वर के शासन के अधीन है। जीवन के सभी रूपों और जीवित प्राणियों के ऊपर परमेश्वर के शासन का क्या उद्देश्य है? क्या यह मानवजाति को जीवित रखने के लिए है? (हाँ।) वह मानवजाति को जीवित रखने के लिए जीवन के सभी नियमों को नियन्त्रित करता है। यह मात्र दिखाता है कि मानवजाति का जीवित रहना परमेश्वर के लिए कितना महत्वपूर्ण है। क्या अब तुम इसे देख सकते हो?

मानवजाति सामान्य रीति से जीवित रहने और सन्तानों की उत्पत्ति करने के योग्य हो यह परमेश्वर के लिए सबसे ज़्यादा जरूरी है। इसलिए, परमेश्वर निरंतर मानवजाति और सभी चीज़ों की आपूर्ति करता है? वह भिन्न भिन्न तरीकों और सभी चीज़ों के जीवित रहने की दशाओं को बनाए रखने की परिस्थितियों के अन्तर्गत सभी चीज़ों को प्रदान करता है, वह मानवता के सामान्य अस्तित्व को बनाए रखने के लिए मानवजाति को निरंतर आगे बढ़ने के योग्य करता है। ये वे दो पहलू हैं जिसके विषय में आज हम बातचीत कर रहे हैं। ये दो पहलू कौन से हैं? (बृहद् दृष्टिकोण से, परमेश्वर ने मानवजाति के लिए सजीव वातावरण बनाया है। यह पहला पहलू है। साथ ही, परमेश्वर ने इन भौतिक चीज़ों को बनाया है जिसकी मानवजाति को आवश्यकता है और वह उन्हें देख और छू सकता है।) हमने अपने मुख्य विषय का इन दोनों पहलुओं के द्वारा संसूचित किया है। हमारा मुख्य विषय क्या है? (परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है।) अब तुम्हें कुछ-कुछ समझ आ जानी चाहिए कि मैंने ऐसे विषय वस्तु का इस विषय के अन्तर्गत संवाद क्यों किया। क्या मुख्य विषय से अलग कोई चर्चा हुई है? कोई भी नहीं, सही है? कदाचित् इन चीज़ों को सुनने के बाद, तुम लोगों में से कुछ थोड़ी समझदारी प्राप्त करें और यह महसूस करें कि ये वचन बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, किन्तु शायद अन्य लोगों के पास थोड़ी सी शाब्दिक समझ हो और वे महसूस करते हों कि इन वचनों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसके बावजूद कि तुम लोग जो यहाँ पर उपस्थित हो इसे अभी किस तरह समझते हो, तुम लोगों के अनुभव के क्रम के दौरान एक दिन आएगा जब तुम लोगों की समझ एक निश्चित बिन्दु तक पहुँच जाएगी, अर्थात्, जब परमेश्वर के कार्यों और स्वयं परमेश्वर की तुम लोगों की समझ एक निश्चित बिन्दु तक पहुँच जाती है, तब तुम लोग परमेश्वर के कार्यों की एक गहरी और सच्ची गवाही देने के लिए अपने व्यावहारिक वचनों का इस्तेमाल करोगे।

मैं सोचता हूँ कि तुम लोगों की समझ अभी भी बहुत सरल और शाब्दिक है, किन्तु क्या तुम लोग कम से कम, इन दो पहलुओं के ऊपर मेरी बातचीत को सुनने के बाद, यह पहचान सकते हो कि मानवजाति की आपूर्ति के लिए परमेश्वर ने किन पद्धतियों का इस्तेमाल किया है या परमेश्वर ने मानवजाति को कौन-कौन सी चीज़ें प्रदान की हैं? क्या तुम लोगों के पास एक मूलभूत विचार और साथ ही साथ एक मूलभूत समझ है? लेकिन क्या ये दोनों पहलू जिनको मैंने संसूचित किया था बाइबल से सम्बन्धित हैं? (नहीं।) क्या वे राज्य के युग में परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से सम्बन्धित हैं? (नहीं।) तो मैंने इन दोनों पहलुओं के विषय में बातचीत क्यों की थी? यह इसलिए है क्योंकि लोगों को परमेश्वर को जानने के लिए इन्हें समझना होगा? (हाँ।) इन्हें जानना बहुत ही जरूरी है और इन्हें समझना भी बहुत ही जरूरी है। केवल बाइबल तक ही सीमित न रहिए, और परमेश्वर के विषय में सबकुछ समझने के लिए केवल परमेश्वर के द्वारा मनुष्य के न्याय और ताड़ना तक ही सीमित न रहिए। बाइबल को संसूचित करने के दायरे से बाहर कूदने और अनुग्रह के युग से परमेश्वर के वचनों से बाहर कदम रखने का मेरा उद्देश्य क्या है? यह लोगों को जानने की अनुमति देने के लिए है कि परमेश्वर मात्र उसके चुने हुए लोगों का ही परमेश्वर नहीं है। तुम वर्तमान में परमेश्वर का अनुसरण करते हो, और वह तुम्हारा परमेश्वर है, किन्तु उनके लिए जो परमेश्वर का अनुसरण करनेवाले लोगों से बाहर के हैं, क्या परमेश्वर उनका परमेश्वर है? क्या परमेश्वर उन सब का परमेश्वर है जो उनसे बाहर के हैं जो उसका अनुसरण करते हैं। (हाँ।) तो क्या परमेश्वर सभी चीज़ों का परमेश्वर है? (हाँ।) तो क्या परमेश्वर अपने कार्य और अपनी क्रियाकलापों को मात्र उन पर करता है जो उसका अनुसरण करते हैं? (नहीं।) उसका दायरा समूचा विश्व है। छोटे दृष्टिकोण से, इसका दायरा पूरी मानवजाति और सभी चीज़ों के बीच में है। बड़े दृष्टिकोण से, यह समूचा विश्व है। अतः हम कह सकते हैं कि परमेश्वर सम्पूर्ण मानवजाति के बीच में अपना कार्य करता है और अपनी क्रियाकलापों को क्रियान्वित करता है। यह लोगों को स्वयं परमेश्वर के बारे में जानने की अनुमति देने के लिए पर्याप्त है। यदि तुम परमेश्वर को जानना चाहते हो और सचमुच में उसे जानते और समझते हो, तो मात्र परमेश्वर के कार्य की तीन अवस्थाओं तक ही सीमित मत रहो, और मात्र उस कार्य की कहानियों तक ही सीमित मत रहो जिन्हें परमेश्वर ने एक समय किया था। यदि तुम उसे उस तरह से जानने की कोशिश करते हो, तो तुम एक निश्चित सीमा तक परमेश्वर को सीमित कर रहे हो। तुम परमेश्वर को अत्यंत महत्वहीन रूप में देख रहे हो। ऐसे निष्कर्ष तुम्हारे लिए क्या प्रभाव लेकर आते हैं? तुम कभी भी परमेश्वर की अद्भुतता और उसकी सर्वोच्चता को जानने के योग्य नहीं होगे, और तुम कभी भी परमेश्वर की सामर्थ्य और सर्वशक्ति और उसके अधिकार के दायरे को जानने के योग्य नहीं होगे। एक ऐसी समझ उस सत्य को स्वीकार करने की तुम्हारी योग्यता को प्रभावित करेगी कि परमेश्वर सभी चीज़ों का शासक है, और साथ ही परमेश्वर की सच्ची पहचान एवं पदस्थिति के विषय में तुम्हारे ज्ञान को भी प्रभावित करेगी। दूसरे शब्दों में, यदि परमेश्वर के विषय में तुम्हारी समझ का दायरा सीमित है, तो जो तुम प्राप्त कर सकते हो वह भी सीमित है। इसी लिए तुम्हें दायरे को फैलाना होगा और अपने क्षितिज़ को खोलना होगा। चाहे यह परमेश्वर के कार्य, परमेश्वर के प्रबन्धन और परमेश्वर के शासन का दायरा हो, या सभी चीज़ों का दायरा हो जिनके ऊपर परमेश्वर के द्वारा शासन किया जाता है और उनका प्रबन्ध किया जाता है, तुम्हें इसे पूरी तरह जानना चाहिए और तुम्हें उसमें परमेश्वर के कार्यों को जानना चाहिए। समझ के ऐसे मार्ग के जरिए, तुम अचेतन रूप में महसूस करोगे कि परमेश्वर उनके बीच में सभी चीज़ों पर शासन कर रहा है, उनका प्रबन्ध कर रहा है और उनकी आपूर्ति कर रहा है। उसी समय, तुम सचमुच में महसूस करोगे कि तुम सभी चीज़ों के एक भाग हो और सभी चीज़ों के एक सदस्य हो। जब परमेश्वर सभी चीज़ों की आपूर्ति करता है, तो तुम भी परमेश्वर के शासन और आपूर्ति को स्वीकार करते हो। यह एक प्रमाणित सत्य है जिसका कोई इनकार नहीं कर सकता है। सभी चीज़ें अपने स्वयं के नियमों के अधीन हैं, जो परमेश्वर के शासन के अधीन है, और सभी चीज़ों के पास जीवित रहने के अपने स्वयं के नियम हैं, जो परमेश्वर के शासन के भी अधीन है, जबकि मानवजाति की नियति और जो उनकी आवश्यकता है वे परमेश्वर के शासन और उसकी आपूर्ति से नज़दीकी से जुड़े हुए हैं। इसी लिए, परमेश्वर के प्रभुत्व और शासन के अधीन, मानवजाति और सभी चीज़ें एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, एक दूसरे पर निर्भर हैं, और आपस में एक दूसरे से गुथे हुए हैं। यह परमेश्वर के द्वारा सभी चीज़ों की सृष्टि का उद्देश्य और महत्व है। क्या अब तुम इसे समझ गए? (हाँ।) यदि तुम समझ गए हो तो आओ हम अपनी बातचीत को आज यहाँ समाप्त करते हैं। अलविदा!

2 फरवरी, 2014

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