282 इंसान का अंत तय करता है परमेश्वर, उनके सार के अनुसार
परमेश्वर के वचनों का एक भजन इंसान का अंत तय करता है परमेश्वर, उनके सार के अनुसार I अगर कोई अंत तक जीवित रह पाता है, ऐसा इसलिए है क्योंकि उसने परमेश्वर की अपेक्षाएं पूरी की हैं। लेकिन अगर कोई अंतिम विश्राम में जीवित नहीं रहता, ऐसा इसलिए है क्योंकि वह परमेश्वर के प्रति है अवज्ञाकारी, प्रसन्न नहीं कर पाता परमेश्वर को। न किसी बच्चे का दुष्ट आचरण, न ही उसकी धार्मिकता उसके मां-बाप को सौंपी जा सकती है। न ही मां-बाप का दुष्ट आचरण या धार्मिकता उनके किसी बच्चे के साथ साझा की जा सकती है। एक मंज़िल होती है हर इंसान के लायक। उनके सार पर निर्भर यह करता है। किसी इंसान की मंज़िल किसी दूसरे से संबंधित होती नहीं। II हर किसी के हैं अपने गुनाह या आशीष। कोई भी दूसरे का स्थान ले सकता है नहीं। दूसरे के पाप को ले सकता नहीं कोई, दूसरे के बदले सज़ा भुगत सकता नहीं कोई। यह परम सत्य है। धार्मिकता करने वाले हैं धार्मिक। बुरा करने वाले हैं बुरे। धार्मिकता करने वाले रहेंगे जीवित, बुरा करने वाले हो जाएंगे नष्ट। जो पवित्र हैं, उनमें अशुद्धि का कोई दाग़ नहीं। जो अशुद्ध हैं उनमें पवित्रता का एक अंश नहीं। एक मंज़िल होती है हर इंसान के लायक। उनके सार पर निर्भर यह करता है। किसी इंसान की मंज़िल किसी दूसरे से संबंधित होती नहीं। III सभी दुष्ट लोग होंगे नष्ट, धार्मिक लोग बचेंगे जीवित, भले ही बुरा करने वालों की संतानें करें धार्मिक कर्म, भले ही धार्मिक व्यक्ति के मां-बाप करें बुरे कर्म। कोई रिश्ता नहीं इस बात का कि विश्वास करे पति और पत्नी करे न विश्वास, या बच्चे करें विश्वास और मां-बाप करें न विश्वास। ये दोनों प्रकार एक दूसरे से संगत नहीं। एक मंज़िल होती है हर इंसान के लायक। उनके सार पर निर्भर यह करता है। किसी इंसान की मंज़िल किसी दूसरे से संबंधित होती नहीं। IV विश्राम में प्रवेश से पहले, शारीरिक संबंधी होते हैं उनके चारों ओर। लेकिन विश्राम में प्रवेश करने के बाद, नहीं होंगे ऐसे कोई भी शारीरिक संबंधी। कर्तव्य पूरा करने वालों के लिए न करने वाले हैं दुश्मन। परमेश्वर से प्रेम करने वालों के लिए परमेश्वर से नफ़रत करने वाले हैं दुश्मन। जो विश्राम में प्रवेश करते हैं वे असंगत हैं उनसे जो होते हैं नष्ट। एक मंज़िल होती है हर इंसान के लायक। उनके सार पर निर्भर यह करता है। किसी इंसान की मंज़िल किसी दूसरे से संबंधित होती नहीं। "वचन देह में प्रकट होता है" से