परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 96

सभी चीजों और जीवित प्राणियों पर सृष्टिकर्ता के नियंत्रण और प्रभुत्व का तथ्य सृष्टिकर्ता के अधिकार के वास्तविक अस्तित्व के बारे में बताता है

यहोवा द्वारा अय्यूब को आशीष देना अय्यूब की पुस्तक में दर्ज है। परमेश्वर ने अय्यूब को क्या दिया? "यहोवा ने अय्यूब के बाद के दिनों में उसके पहले के दिनों से अधिक आशीष दी; और उसके चौदह हज़ार भेड़ बकरियाँ, छ: हज़ार ऊँट, हज़ार जोड़ी बैल, और हज़ार गदहियाँ हो गईं" (अय्यूब 42:12)। मनुष्य के दृष्टिकोण से, वे कौन-सी चीजें थीं जो अय्यूब को दी गई थीं? क्या वे मानव-जाति की संपत्तियाँ थीं? इन संपत्तियों के साथ, क्या अय्यूब उस युग में बहुत धनी न हो गया होता? फिर, उसने ऐसी संपत्तियाँ कैसे हासिल कीं? उसे धन-दौलत किसने दी? कहने की आवश्यकता नहीं—परमेश्वर के आशीष की बदौलत ही वे संपत्तियाँ अय्यूब को मिलीं। अय्यूब ने इन संपत्तियों को कैसे देखा, और उसने परमेश्वर के आशीष को कैसे देखा, हम इस पर यहाँ चर्चा नहीं करेंगे। जब परमेश्वर के आशीषों की बात आती है, तो सभी लोग दिन-रात परमेश्वर से आशीष पाने के लिए लालायित रहते हैं, फिर भी मनुष्य का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है कि वह अपने जीवनकाल में कितनी संपत्तियाँ प्राप्त कर सकता है, या वह परमेश्वर से आशीष प्राप्त कर सकता है या नहीं—यह एक निर्विवाद तथ्य है! परमेश्वर के पास मनुष्य को कोई भी संपत्ति देने, मनुष्य को कोई भी आशीष प्राप्त करने देने का अधिकार और सामर्थ्य है, फिर भी परमेश्वर के आशीषों का एक सिद्धांत है। परमेश्वर किस तरह के लोगों को आशीष देता है? बेशक, वह उन लोगों को आशीष देता है, जिन्हें वह पसंद करता है! अब्राहम और अय्यूब दोनों को परमेश्वर ने आशीष दिया, फिर भी जो आशीष उन्हें मिले, वे एक-जैसे नहीं थे। परमेश्वर ने अब्राहम को बालू के कणों और तारों जितने असंख्य वंशज होने का आशीष दिया। जब परमेश्वर ने अब्राहम को आशीष दिया, तो उसने एक ही व्यक्ति और एक जाति-समूह के वंशजों को सामर्थ्यवान और समृद्ध बना दिया। इसमें, परमेश्वर के अधिकार ने मानव-जाति पर शासन किया, जिसने सभी चीजों और जीवित प्राणियों के मध्य परमेश्वर की साँस फूँकी। परमेश्वर के अधिकार की संप्रभुता के तहत, यह मानव-जाति परमेश्वर द्वारा तय की गई गति से, और परमेश्वर द्वारा तय किए गए दायरे के भीतर, बढ़ी और अस्तित्व में रही। विशेष रूप से, इस जाति-समूह की जीवन-क्षमता, वृद्धि-दर और जीवन-प्रत्याशा सभी परमेश्वर की व्यवस्थाओं का हिस्सा थे, और इन सभी का सिद्धांत पूरी तरह से उस वादे पर आधारित था, जो परमेश्वर ने अब्राहम से किया था। कहने का तात्पर्य यह है कि, चाहे कैसी भी परिस्थितियाँ हों, परमेश्वर के वादे बिना किसी बाधा के आगे बढ़ेंगे और परमेश्वर के अधिकार के विधि-विधान के तहत साकार होंगे। परमेश्वर द्वारा अब्राहम से किए गए वादे में, चाहे दुनिया में कैसी भी उथल-पुथल हो, कोई भी युग हो, मानव-जाति द्वारा कैसी भी तबाही झेली जाए, अब्राहम के वंशजों को विनाश के जोखिम का सामना नहीं करना पड़ेगा, और उसका जाति-समूह मरेगा नहीं। किंतु परमेश्वर के आशीष ने अय्यूब को अत्यधिक धनवान बनाया। परमेश्वर ने उसे जीवित, साँस लेते जानवरों का एक समूह दिया, जिनकी विशेषताएँ—उनकी संख्या, उनकी वंश-वृद्धि की गति, जीवित रहने की दर, उनके शरीर में वसा की मात्रा, आदि—भी परमेश्वर द्वारा नियंत्रित थीं। हालाँकि इन जीवित प्राणियों में बोलने की क्षमता नहीं थी, फिर भी, वे भी सृष्टिकर्ता की व्यवस्थाओं का हिस्सा थे, और उनके लिए परमेश्वर की व्यवस्थाओं के पीछे का सिद्धांत उन आशीषों के आधार पर बनाया गया था, जिनका परमेश्वर ने अय्यूब से वादा किया था। परमेश्वर द्वारा अब्राहम और अय्यूब को दिए गए आशीषों में, हालाँकि जिस चीज का वादा किया गया था वह अलग थी, लेकिन वह अधिकार, जिससे सृष्टिकर्ता सभी चीजों और जीवित प्राणियों पर शासन करता है, एक ही था। परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य का प्रत्येक विवरण अब्राहम और अय्यूब को दिए गए उसके विभिन्न वादों और आशीषों में व्यक्त होता है, और मानव-जाति को एक बार फिर से दिखाता है कि परमेश्वर का अधिकार मनुष्य की कल्पना से बहुत परे है। ये विवरण मनुष्य को एक बार फिर बताते हैं कि अगर वह परमेश्वर के अधिकार को जानना चाहता है, तो यह केवल परमेश्वर के वचनों के माध्यम से और परमेश्वर के कार्य का अनुभव करके ही हासिल किया जा सकता है।

सब चीजों पर संप्रभुता का परमेश्वर का अधिकार मनुष्य को एक तथ्य देखने देता है : परमेश्वर का अधिकार इन वचनों में ही सन्निहित नहीं है "और परमेश्वर ने कहा, उजियाला हो, और उजियाला हो गया, और आकाश हो, और आकाश हो गया, और भूमि हो, और भूमि हो गई," बल्कि, इससे भी बढ़कर, उसका अधिकार इस बात में भी सन्निहित है कि कैसे उसने उजाले को जारी रखा, आकाश को गायब होने से रोका, और भूमि को हमेशा के लिए पानी से अलग किए रखा, साथ ही इस बात के विवरण में भी कि उसने कैसे स्वयं द्वारा बनाई गई चीजों : उजाले, आकाश और भूमि को शासित और प्रबंधित किया। परमेश्वर द्वारा मानव-जाति को आशीष दिए जाने में तुम लोग और क्या देखते हो? स्पष्ट रूप से, परमेश्वर द्वारा अब्राहम और अय्यूब को आशीष दिए जाने के बाद, परमेश्वर के कदम रुके नहीं, क्योंकि उसने अभी अपने अधिकार का प्रयोग करना शुरू ही किया था, और उसका इरादा अपने प्रत्येक वचन को वास्तविकता में बदलने, और अपनी कही बात के प्रत्येक विवरण को साकार करने का था, इसलिए, आगामी वर्षों में, उसने वह सब-कुछ करना जारी रखा, जिसका उसने इरादा किया था। चूँकि परमेश्वर के पास अधिकार है, इसलिए शायद मनुष्य को ऐसा लगता है कि परमेश्वर को केवल बोलने की जरूरत है, और बिना उँगली उठाए, सभी मामले और चीजें पूरी हो जाती हैं। ऐसी कल्पनाएँ बहुत ही हास्यास्पद हैं! अगर तुम परमेश्वर द्वारा वचनों का उपयोग करते हुए मनुष्य के साथ वाचा बाँधने और परमेश्वर द्वारा वचनों का उपयोग करते हुए हर चीज पूरी करने के बारे में केवल एकतरफा दृष्टिकोण अपनाते हो, और तुम इस बात के विभिन्न चिह्न और तथ्य देखने में असमर्थ हो कि परमेश्वर का अधिकार सभी चीजों के अस्तित्व पर प्रभुत्व रखता है, तो परमेश्वर के अधिकार के बारे में तुम्हारी समझ बहुत खोखली और हास्यास्पद है! अगर मनुष्य परमेश्वर के ऐसा होने की कल्पना करता है, तो कहना होगा कि परमेश्वर के बारे में मनुष्य का ज्ञान निराशाजनक स्थिति तक पहुँच गया है, वह एक अंधी गली में पहुँच गया है, क्योंकि जिस परमेश्वर की कल्पना मनुष्य करता है, वह केवल एक मशीन है जो आदेश जारी करती है, न कि परमेश्वर जिसके पास अधिकार है। तुमने अब्राहम और अय्यूब के उदाहरणों से क्या देखा है? क्या तुमने परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य का वास्तविक पक्ष देखा है? अब्राहम और अय्यूब को आशीष देने के बाद परमेश्वर वहीं नहीं रहा जहाँ वह था, न ही उसने अपने दूतों को काम पर लगाकर यह देखने का इंतजार किया कि परिणाम क्या होगा। इसके विपरीत, जैसे ही परमेश्वर ने अपने वचनों का उच्चारण किया, परमेश्वर के अधिकार के मार्गदर्शन में सभी चीजें उस कार्य का अनुपालन करने लगीं जिसे परमेश्वर करना चाहता था, और वे लोग, चीजें और पदार्थ तैयार हो गए, जिनकी परमेश्वर को आवश्यकता थी। कहने का तात्पर्य यह है कि, जैसे ही परमेश्वर के मुख से वचन निकले, परमेश्वर का अधिकार पूरी पृथ्वी पर लागू होना शुरू हो गया, और उसने अब्राहम और अय्यूब से किए गए वादे पूरे करने के लिए एक क्रम निर्धारित कर दिया, और हर कदम और प्रत्येक महत्वपूर्ण चरण, जिन्हें पूरा करने की उसने योजना बनाई थी, उनके लिए जो कुछ आवश्यक था, उस सबके लिए सभी उचित योजनाएँ भी बनाईं और तैयारियाँ भी कीं। इस दौरान परमेश्वर ने न केवल अपने दूतों का, बल्कि उन सभी चीजों का भी इस्तेमाल किया, जो उसके द्वारा बनाई गई थीं। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस दायरे में परमेश्वर के अधिकार का उपयोग किया गया था, उसमें न केवल दूत शामिल थे, बल्कि सृष्टि की सभी चीजें शामिल थीं, जिन्हें वह कार्य पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया गया था, जिसे वह पूरा करना चाहता था; ये वे विशिष्ट तरीके थे, जिनसे परमेश्वर के अधिकार का प्रयोग किया गया था। अपनी कल्पनाओं में कुछ लोगों की परमेश्वर के अधिकार की निम्नलिखित समझ हो सकती है : परमेश्वर के पास अधिकार है, और परमेश्वर के पास सामर्थ्य है, इसलिए परमेश्वर को केवल तीसरे स्वर्ग में या किसी निश्चित स्थान पर रहने की आवश्यकता है, और उसे कोई विशेष कार्य करने की आवश्यकता नहीं है, और परमेश्वर का संपूर्ण कार्य उसके विचारों में पूरा होता है। कुछ लोग यह भी मान सकते हैं कि, हालाँकि परमेश्वर ने अब्राहम को आशीष दिया, लेकिन परमेश्वर को कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं थी, और उसके लिए केवल अपने वचन बोलना ही पर्याप्त था। क्या सच में ऐसा ही हुआ? स्पष्ट रूप से नहीं! हालाँकि परमेश्वर के पास अधिकार और सामर्थ्य है, लेकिन उसका अधिकार सच्चा और वास्तविक है, खोखला नहीं। परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य की प्रामाणिकता और वास्तविकता धीरे-धीरे उसके द्वारा सभी चीजों के सृजन में, सभी चीजों पर उसके नियंत्रण में, और उस प्रक्रिया में जिसके द्वारा वह मानव-जाति का नेतृत्व और प्रबंधन करता है, प्रकट और मूर्त होती हैं। मानव-जाति और सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता का हर तरीका, हर दृष्टिकोण और हर विवरण, और वह सब कार्य जो उसने पूरा किया है, साथ ही सभी चीजों के बारे में उसकी समझ—ये सभी अक्षरशः साबित करते हैं कि परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य खोखले शब्द नहीं हैं। उसका अधिकार और सामर्थ्य लगातार और सभी चीजों में प्रदर्शित और प्रकट होता है। ये अभिव्यक्तियाँ और प्रकटन परमेश्वर के अधिकार के वास्तविक अस्तित्व के बारे में बताते हैं, क्योंकि वह अपने अधिकार और सामर्थ्य का उपयोग अपना कार्य जारी रखने, सभी चीजों को नियंत्रित करने और हर क्षण सभी चीजों पर शासन करने के लिए कर रहा है; उसका सामर्थ्य और अधिकार न तो स्वर्गदूतों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है, न ही परमेश्वर के दूतों द्वारा। परमेश्वर ने तय किया कि वह अब्राहम और अय्यूब को क्या आशीष देगा—यह परमेश्वर का निर्णय था। भले ही परमेश्वर के दूत व्यक्तिगत रूप से अब्राहम और अय्यूब के पास गए थे, लेकिन उनके कार्य परमेश्वर की आज्ञाओं पर आधारित थे, और उनके कार्य परमेश्वर के अधिकार के तहत किए गए थे और इस तरह, दूत परमेश्वर की संप्रभुता के अधीन थे। हालाँकि मनुष्य परमेश्वर के दूतों को अब्राहम के पास जाते देखता है, और बाइबल के अभिलेखों में यहोवा परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से कुछ भी करते नहीं देखता, किंतु असल में, वह केवल स्वयं परमेश्वर ही है, जो वास्तव में सामर्थ्य और अधिकार का उपयोग करता है, और वह किसी व्यक्ति की ओर से कोई संदेह बरदाश्त नहीं करता! हालाँकि तुमने देखा है कि स्वर्गदूतों और दूतों में बहुत सामर्थ्य है और उन्होंने चमत्कार किए हैं, या उन्होंने परमेश्वर द्वारा आदेशित कुछ काम किए हैं, लेकिन उनके कार्य केवल परमेश्वर का आदेश पूरा करने के लिए हैं, और वे किसी भी तरह से परमेश्वर के अधिकार का प्रदर्शन नहीं हैं—क्योंकि किसी भी मनुष्य या चीज के पास सभी चीजों की रचना करने और सभी चीजों पर शासन करने का सृष्टिकर्ता का अधिकार नहीं है। इसलिए, कोई भी मनुष्य या चीज सृष्टिकर्ता के अधिकार का प्रयोग या प्रदर्शन नहीं कर सकता।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

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