परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 173

(4) प्रकाश

चौथी चीज़ लोगों की आँखों से सम्बन्धित है—अर्थात् प्रकाश। यह बहुत ही आवश्यक है। जब तू चमकता हुआ प्रकाश देखता है, और जब इस प्रकाश की चमक एक निश्चित सीमा तक पहुँच जाती है, तो तेरी आँखें अन्धी हो जाएँगी। आखिरकार, मानवीय आँखें शरीर की आँखें हैं। वे नुकसान से प्रतिरक्षित नहीं हैं। क्या किसी में हिम्मत है कि वह सीधे सूर्य को घूरे? (नहीं।) क्या किसी ने कोशिश की है? कुछ लोगों ने इसकी कोशिश की है। तू सूर्य की किरणों से बचाने वाले चश्मे को पहनकर ऐसा कर सकता है, सही है? इसमें उपकरणों की सहायता की आवश्यकता होती है। बिना किसी उपकरण के, मनुष्य की आँखें सीधे सूर्य को देखने की हिम्मत नहीं कर सकती हैं। मनुष्यों के पास ऐसी योग्यता नहीं है। परमेश्वर ने सूर्य को मानवजाति के लिए प्रकाश पहुँचाने के लिए सृजा था, परन्तु उसने इस प्रकाश का भी कुशलता से उसका प्रयोग किया था। परमेश्वर ने सूर्य को बनाने के बाद उसकी उपेक्षा नहीं की थी और उसे यूँ ही नहीं छोड़ा था। "मनुष्य की आँखें इसका सामना कर सकती हैं या नहीं इसकी परवाह कौन करता है!" परमेश्वर उस तरह काम नहीं करता है। वह बहुत कोमलता के साथ कार्य करता है और सभी पहलुओं पर विचार करता है। परमेश्वर ने मानवजाति को आँखें दी हैं ताकि वे देख सकें, किन्तु परमेश्वर ने चमक की सीमा भी बनाई है जिसके भीतर वे देख सकते हैं। यह काम नहीं करेगा यदि पर्याप्त प्रकाश नहीं है। यदि इतना अंधकार है कि लोग अपने सामने अपने हाथ को नहीं देख सकते हैं, तो उनकी आँखें अपनी कार्य प्रणाली को खो देंगी और किसी काम की न होंगी। लोगों की आँखें ऐसी जगहों का सामना नहीं कर पाएँगी जो बहुत ही अधिक चमकीले हैं, और साथ ही वे कुछ भी देखने के योग्य नहीं होंगी। अतः उस वातावरण में जहाँ मनुष्य रहता है, परमेश्वर ने उन्हें प्रकाश की वो मात्रा दी है जो मानवीय आँखों के लिए उचित है। यह प्रकाश लोगों की आँखों को नुकसान या क्षति नहीं पहुँचाएगा। इसके अतिरिक्त, यह लोगों की आँखों की कार्य प्रणाली को बन्द नहीं करेगा, और यह गारंटी दे सकता है कि लोगों की आँखें उन सब चीज़ों को साफ साफ देखने के योग्य होंगी जिन्हें उन्हें देखना चाहिए। इसी लिए परमेश्वर ने उपयुक्त मात्रा में बादलों को पृथ्वी और सूर्य के चारों ओर फैला दिया है, और हवा का घनत्व भी सामान्य रीति से उस प्रकाश को छानने के योग्य है जो लोगों की आँखों एवं त्वचा को नुकसान पहुँचा सकता है। यह आपस में जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर के द्वारा सृजी गई पृथ्वी का रंग भी सूर्य की रोशनी और हर प्रकार की रोशनी को परावर्तित करता है और प्रकाश में उजाले के उस भाग को दूर करता है जो मनुष्य की आँखों को बेचैन कर देती हैं। उस तरह से, लोगों को बाहर घूमने और अपने जीवन को बिता पाने के लिए हमेशा अत्यंत काले सूर्यरोधी चश्मे पहनने की आवश्यकता नहीं है। सामान्य परिस्थितियों के अन्तर्गत, मनुष्य की आँखें अपनी दृष्टि के दायरे के भीतर चीज़ों को देख सकती हैं और प्रकाश के द्वारा विघ्न नहीं डाला जाएगा। अर्थात्, यह प्रकाश न तो बहुत अधिक चुभनेवाला और न ही बहुत अधिक धुँधला हो सकता हैः यदि यह बहुत धुँधला है, तो लोगों की आँखों को क्षति पहुँचेगी और इससे पहले कि उनकी आँखें काम करना बन्द कर दें वे उन्हें बहुत लम्बे समय तक उपयोग नहीं कर पाएँगे; यदि यह बहुत अधिक चमकीला है, तो लोगों की आँखें इसका सामना नहीं कर पाएँगी, और उनकी आँखें 30 से 40 वर्ष या 40 से 50 वर्ष के भीतर बेकार हो जाएँगी। दूसरे शब्दों में, यह प्रकाश देखने के लिए मनुष्य की आँखों के लिए उपयुक्त है, और प्रकाश के द्वारा मनुष्य की आँखों को जो नुकसान होता था उसे परमेश्वर के द्वारा विभिन्न तरीकों के जरिए कम किया गया है। इस पर ध्यान दिए बगैर कि प्रकाश मनुष्य की आँखों के लिए लाभ लाता है या नुकसान, यह लोगों की आँखों के लिए उनके जीवन के अंत तक बने रहने देने के लिए पर्याप्त है। सही है? (हाँ।) क्या परमेश्वर ने पूरी तरह इस पर सोच-विचार नहीं किया है? परन्तु जब शैतान, वह दुष्ट, चीज़ों को करता है, तो वह इनमें से किसी पर भी विचार नहीं करता है। प्रकाश बहुत चमकीला है या बहुत धुँधला है—वह मानवजाति की भावनाओं पर बिल्कुल भी विचार नहीं करता है।

परमेश्वर ने मानवजाति के जीवित रहने की अनुकूलता को बढ़ाने हेतु मानव शरीर के सभी पहलुओं के लिए इन चीज़ों को किया है—देखना, सुनना, चखना, साँस लेना, एहसास करना ताकि वे सामान्य रूप से जी सकें और निरन्तर जी सकें। परमेश्वर के द्वारा बनाया गया ऐसा मौजूदा सजीव वातावरण ही वह सजीव वातावरण है जो मानवजाति के जीवित रहने के लिए सबसे अधिक उपयुक्त और हितकारी है। कुछ लोग सोच सकते हैं कि यह बहुत ज़्यादा नहीं है और यह सब कुछ बहुत ही सामान्य है। आवाज़, प्रकाश और वायु ऐसी चीज़ें हैं जिनके विषय में लोग सोचते हैं कि वे उनके साथ पैदा हुए हैं, वे ऐसी चीज़ें हैं जिनका आनन्द वे पैदा होने के समय से ही उठा सकते हैं। परन्तु जो कुछ परमेश्वर ने तेरे द्वारा इन चीज़ों का आनन्द लिए जाने के पीछे किया था वह कुछ ऐसा है जिन्हें तुझे जानने एवं समझने की आवश्यकता है। इस पर ध्यान दिए बगैर कि तू यह महसूस करता है या नहीं कि इन चीज़ों को समझने या जानने की कोई आवश्यकता है, संक्षेप में, जब परमेश्वर ने इन चीज़ों की सृष्टि की, तब उसने बहुत सोच विचार किया था, उसके पास एक योजना थी, उसके पास निश्चित युक्तियाँ थीं। उसने सरलता से, अकस्मात ही या बिना सोचे विचारे मानवजाति को ऐसे सजीव वातावरण में नहीं रखा था। तुम लोग सोच सकते हो कि इनमें से हर एक चीज़ जिसके विषय में मैंने कहा है वह कोई बड़ी बात नहीं है, परन्तु मेरे दृष्टिकोण में, प्रत्येक चीज़ जो परमेश्वर ने मानवजाति को प्रदान की है वह मानवता के ज़िन्दा रहने के लिए जरूरी है। इसमें परमेश्वर का कार्य है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VIII

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