परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

भाग तीन

प्रारम्भ से लेकर आज के दिन तक, केवल मनुष्य ही परमेश्वर के साथ बातचीत करने में समर्थ रहा है। अर्थात्, परमेश्वर के समस्त जीवित प्राणियों एवं जीवधारियों के मध्य, और कोई नहीं केवल मनुष्य ही परमेश्वर से बातचीत करने में सक्षम रहा है। मनुष्य के पास कान हैं जो उसे इस योग्य बनाते हैं कि वह सुने, और उसके पास आंखें हैं जिससे वह देख सकता है, उसके पास भाषा है, और अपने स्वयं के विचार हैं, और स्वतन्त्र इच्छा है। उसके पास वह सब कुछ है जिनकी आवश्यकता होती है जिससे वह परमेश्वर को बोलते हुए सुने, और परमेश्वर की इच्छा को समझे, और परमेश्वर के महान आदेश को स्वीकार करे, और इस प्रकार परमेश्वर मनुष्य को अपनी सारी इच्छाएं प्रदान करता है, और मनुष्य को ऐसा साथी बनाना चाहता है जो उसके मन के मुताबिक हो तथा जो उसके साथ चल सके। जब से उसने प्रबंध करना प्रारम्भ किया है, परमेश्वर मनुष्य के लिए इंतजार करता रहा है कि वह अपना हृदय उसे दे, कि वह परमेश्वर को उसे शुद्ध एवं सुसज्जित करने की अनुमति दे, कि उसे परमेश्वर के लिए संतोषप्रद बनाए और परमेश्वर के द्वारा उससे प्रेम किया जाए, कि वह परमेश्वर का आदर करे और बुराई से दूर रहे। परमेश्वर ने हमेशा से ही इस परिणाम की ओर देखा है और इसका इंतजार किया है। क्या बाइबल के लेखों में ऐसे लोग हैं? अर्थात्, क्या बाइबल में ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर को अपना हदय देने के काबिल हैं? क्या इस युग से पहले किसी घटना का उदाहरण है? आज, आओ हम बाइबल के लेखों को निरन्तर पढ़ें और एक नज़र डालें कि इस चरित्र—अय्यूब—के द्वारा जो कुछ किया गया था उसका इस शीर्षक "अपना हृदय परमेश्वर को देना" से कोई सम्बन्ध है या नहीं जिसके विषय में आज हम बातचीत कर रहे हैं। आओ हम देखें कि अय्यूब परमेश्वर के प्रति संतोषप्रद था या नहीं और परमेश्वर द्वारा उससे प्रेम किया गया था या नहीं।

अय्यूब से तुम लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा है? मूल पाठ का उद्धरण देते हुए, कुछ लोग कहते हैं कि अय्यूब "परमेश्वर का भय मानता था और बुराई से दूर रहता था।" "परमेश्वर का भय मानता था और बुराई से दूर रहता था": अय्यूब का मूल आंकलन ऐसा ही था जिसे बाइबल में दर्ज किया गया है। यदि तुम लोगों ने स्वयं के शब्दों का इस्तेमाल किया होता, तो तुम लोग अय्यूब का ठीक ठीक वर्णन कैसे करते? कुछ लोग कहते हैं कि अय्यूब एक अच्छा एवं न्यायसंगत मनुष्य था; कुछ लोग कहते हैं कि उसके पास परमेश्वर के प्रति सच्चा विश्वास था; कुछ लोग कहते हैं कि अय्यूब धर्मी एवं दयालु मनुष्य था। तुम लोगों ने अय्यूब के विश्वास को देखा है, कहने का तात्पर्य है, तुम लोग अपने हृदय में अय्यूब के विश्वास के विषय में बड़ा लगाव रखते हो और ईर्ष्यालु हो। तो आज, आओ हम देखें कि अय्यूब के द्वारा क्या धारण किया गया था कि परमेश्वर उससे इतना अधिक प्रसन्न था। इसके आगे, आओ हम नीचे दिए गए पवित्र शास्त्र को पढ़ें।

ग. अय्यूब

1. परमेश्वर के द्वारा और बाइबल में अय्यूब का आंकलन

(अय्यूब 1:1) ऊज़ देश में अय्यूब नामक एक पुरुष था; वह खरा और सीधा था और परमेश्‍वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था।

(अय्यूब 1:5) जब जब भोज के दिन पूरे हो जाते, तब तब अय्यूब उन्हें बुलवाकर पवित्र करता, और बड़े भोर को उठकर उनकी गिनती के अनुसार होमबलि चढ़ाता था; क्योंकि अय्यूब सोचता था, "कदाचित् मेरे लड़कों ने पाप करके परमेश्‍वर को छोड़ दिया हो।" इसी रीति अय्यूब सदैव किया करता था।

(अय्यूब 1:8) यहोवा ने शैतान से पूछा, "क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है।"

वह मुख्य बिन्दु क्या है जिसे तुम लोग इन अंशों में देखते हो? पवित्र शास्त्र के ये तीन संक्षिप्त अंश अय्यूब से सम्बन्धित हैं। हालाँकि संक्षिप्त हैं, फिर भी वे स्पष्ट रूप से बताते हैं कि वह किस प्रकार का व्यक्ति था। अय्यूब के प्रतिदिन के व्यवहार एवं उसके आचरण के विषय में उनके विवरण के माध्यम से, वे हर एक को बताते हैं कि, आधारहीन होने के बजाए, अय्यूब के विषय में परमेश्वर का आंकलन तथ्यों पर आधारित था। वे हमें बताते हैं कि चाहे यह अय्यूब के विषय में मनुष्य की प्रशंसा है (अय्यूब 1:1), या उसके विषय में परमेश्वर की प्रशंसा है (अय्यूब 1:8), दोनों परमेश्वर एवं मनुष्य के सामने अय्यूब के कार्यों के परिणाम हैं (अय्यूब 1:5)।

पहले, आओ हम अंश संख्या एक को पढ़ें: "ऊज़ देश में अय्यूब नामक एक पुरुष था; वह खरा और सीधा था और परमेश्‍वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था।" बाइबल में अय्यूब का पहला आंकलन, यह वाक्य अय्यूब के विषय में लेखक की प्रशंसा थी। स्वाभाविक रीति से, यह अय्यूब के विषय में मनुष्य के आंकलन को भी दर्शाता है, जो है, "वह खरा और सीधा था और परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था।" इसके आगे, आओ हम अय्यूब के विषय में परमेश्वर के आंकलन को पढ़ें: "क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है" (अय्यूब 1:8)। दो आंकलनों में से, एक मनुष्य से आया था, और दूसरा परमेश्वर की ओर से निकला था; ये एक समान सन्दर्भ के साथ दो आंकलन थे। तो ऐसा देखा जा सकता है कि मनुष्य अय्यूब के व्यवहार एवं आचरण को जानते थे, और साथ ही परमेश्वर के द्वारा उनकी प्रशंसा भी की गई थी। दूसरे शब्दों में, मनुष्य के सामने उसका आचरण और परमेश्वर के सामने उसका आचरण एक समान ही था, उसने सभी समयों पर परमेश्वर के सामने अपने व्यवहार एवं अभिप्रेरणा को रखा था, ताकि उन्हें परमेश्वर के द्वारा देखा जा सके, और वह ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था। इस प्रकार, परमेश्वर की दृष्टि में, पृथ्वी पर लोगों में से केवल अय्यूब ही खरा एवं सीधा था, और ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था।

अय्यूब के द्वारा परमेश्वर का भय मानने और अपने प्रतिदिन के जीवन में बुराई से दूर रहने के विषय में विशेष प्रकटीकरण

इसके आगे, आओ हम अय्यूब के द्वारा परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के विषय में विशेष प्रकटीकरण को देखें। उन अंशों के अतिरिक्त जो इसके ऊपर एवं नीचे दिए गए हैं, आओ हम अय्यूब 1:5 को भी पढ़ें, जो अय्यूब के द्वारा परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के विषय में एक विशेष प्रकटीकरण है। यह इस बात से सम्बन्धित है कि उसने किस प्रकार अपने दैनिक जीवन में परमेश्वर का भय माना और बुराई से दूर रहा; बड़े शानदार ढंग से, उसने न केवल वह किया जो उसे परमेश्वर के प्रति अपने स्वयं के भय के लिए और बुराई से दूर रहने लिए अवश्य करना चाहिए था, बल्कि उसने अपने पुत्रों की तरफ से नियमित रूप से परमेश्वर के सामने होमबलि भी चढ़ाया था। वह इस बात से भयभीत था कि उन्होंने जेवनार करते समय "पाप करके परमेश्वर को छोड़ दिया हो।" और यह भय अय्यूब में किस प्रकार प्रदर्शित हुआ था? मूल पाठ निम्नलिखित लेख प्रदान करता है: "जब जब भोज के दिन पूरे हो जाते, तब तब अय्यूब उन्हें बुलवाकर पवित्र करता, और बड़े भोर को उठकर उनकी गिनती के अनुसार होमबलि चढ़ाता था।" अय्यूब का आचरण हमें यह दिखाता है कि, उसके बाहरी व्यवहार में प्रदर्शित होने के बजाए, परमेश्वर के प्रति उसका भय उसके हृदय के भीतर से आया था, और यह कि परमेश्वर के प्रति उसके भय को सभी समयों पर उसके दैनिक जीवन के प्रत्येक पहलु में पाया जा सकता है, क्योंकि उसने न केवल अपने आपको बुराई से दूर रखा था, बल्कि अपने पुत्रों की तरफ से बार बार होमबलि चढ़ाता था। दूसरे शब्दों में, अय्यूब न केवल परमेश्वर के विरुद्ध पाप करने और अपने हृदय में परमेश्वर को त्यागने के विषय में अत्यंत भयभीत था, बल्कि वह इस बात से भी चिंतित था कि उसके पुत्रों ने परमेश्वर के विरूद्ध पाप किया होगा और अपने मनों में उसे त्याग दिया होगा। इस से यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर के प्रति अय्यूब के भय की सच्चाई सूक्ष्म परिक्षण का डटकर मुकाबला करती है, और यह किसी मनुष्य के शक के दायरे से बाहर है। क्या वह ऐसा कभी कभार ही करता था, या हमेशा करता था? पाठ का अंतिम वाक्य है "इसी रीति अय्यूब सदैव किया करता था।" इन शब्दों का अर्थ है कि अय्यूब कभी कभार ही अपने पुत्रों के पास नहीं जाता था और उन्हें कभी कभार ही नहीं देखता था, या जब उसे अच्छा लगता था, न ही वह परमेश्वर से प्रार्थना के माध्यम से अंगीकार करता था। इसके बजाए, वह लगातार जाता था और अपने पुत्रों को शुद्ध करता था, और उनके लिए होमबलि चढ़ाया करता था। यहाँ पर "निरन्तर" का अर्थ यह नहीं है कि उसने ऐसा एक या दो दिन के लिए किया था, या एक समय के लिए किया था। यह कह रहा है कि परमेश्वर के प्रति अय्यूब के भय का प्रकटीकरण अस्थायी नहीं था, और ज्ञान या बोले गए वचनों पर आ कर नहीं रुका था; इसके बजाए, परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने की रीति ने उसके हृदय का मार्गदर्शन किया था, उसने उसके व्यवहार को नियन्त्रित किया था, और यह उसके हृदय में उसके अस्तित्व का मूल कारण था। वह इसी रीति से सदैव किया करता था यह दिखाता है कि वह अपने हृदय में हमेशा डरता था कि उसने स्वयं परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया होगा और साथ ही वह इस बात से भी भयभीत था कि उसके पुत्रों एवं पुत्रियों ने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया होगा। यह दर्शाता है कि वह अपने हृदय के भीतर परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने की रीति का कितना भार ढोए हुए था। उसने ऐसा लगातार किया क्योंकि वह अपने मन में डरा हुआ एवं भयभीत था—भयभीत इसलिए क्योंकि कदाचित् उसने परमेश्वर के विरूद्ध बुराई एवं पाप किया था, और यह कि कदाचित् वह परमेश्वर के मार्ग से भटक गया था और इस प्रकार परमेश्वर को संतुष्ट करने में असमर्थ था। ठीक उसी समय, वह अपने पुत्र एवं पुत्रियों के विषय में भी चिंतित था, इस बात से डरते हुए कि उन्होंने परमेश्वर को ठेस पहुंचाया होगा। अपने दैनिक जीवन में अय्यूब का सामान्य आचरण ऐसा ही था। यह बिलकुल यही सामान्य आचरण है जो साबित करता है कि अय्यूब का परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना खोखले शब्द नहीं थे, यह कि अय्यूब सही में ऐसा जीवन जीता था। "इसी रीति अय्यूब सदैव किया करता था": ये शब्द हमें परमेश्वर के सामने अय्यूब के प्रतिदिन के कार्यों के विषय में बताते हैं। जब उसने सदैव इसी रीति से किया, तो क्या उसका व्यवहार एवं उसका हृदय परमेश्वर के सामने पहुंचा? दूसरे शब्दों में, क्या परमेश्वर अकसर उसके हृदय एवं उसके आचरण से प्रसन्न होता था? तब, किन परिस्थितियों के अधीन और किस सन्दर्भ में अय्यूब निरन्तर इसी रीति से करता रहा? कुछ लोग लोग कहते हैं कि यह इसलिए था क्योंकि परमेश्वर अय्यूब के सामने अकसर प्रकट होता था जिससे उसने इस रीति से दिखावा किया था; कुछ लोग कहते हैं कि उसने सदैव इसी रीति से कार्य किया था क्योंकि वह बुराई से दूर रहना चाहता था; और कुछ लोग कहते हैं कि कदाचित् उसने सोचा था कि उसका सौभाग्य आसानी से नहीं आया था, और वह जानता था कि यह उसे परमेश्वर के द्वारा प्रदान किया गया था, और इस प्रकार वह परमेश्वर के विरूद्ध पाप करने और उसे ठेस पहुंचाने के परिणामस्वरूप अपनी सम्पत्ति को खोने के विषय में अत्यंत भयभीत था। क्या इनमें से कोई भी दावा सच है? स्पष्ट तौर पर नहीं। क्योंकि, परमेश्वर की दृष्टि में, अय्यूब के विषय में जिस बात को परमेश्वर ने हृदय में संजोकर रखा था वह यह नहीं था कि वह सदैव इसी रीति से किया करता था; उससे बढ़कर, यह परमेश्वर, मनुष्य, और शैतान के सामने उसका आचरण था जब उसे शैतान के हाथों में सौंप दिया गया था और उसकी परीक्षा की गई थी। नीचे दिया गया खण्ड अत्याधिक आश्वस्त करनेवाला प्रमाण देता है, ऐसा प्रमाण जो हमें अय्यूब के विषय में परमेश्वर के आंकलन को दिखाता है। इसके आगे, आओ हम पवित्र शास्त्र के निम्नलिखित अंशों को पढ़ें।

2. शैतान ने पहली बार अय्यूब को परखा (उसकी भेड़-बकरियां चुरा ली गईं और उसके बच्चों के ऊपर आपदा आई)

क. परमेश्वर के द्वारा कहे गए वचन

(अय्यूब 1:8) यहोवा ने शैतान से पूछा, "क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है।"

(अय्यूब 1:12) यहोवा ने शैतान से कहा, "सुन, जो कुछ उसका है, वह सब तेरे हाथ में है; केवल उसके शरीर पर हाथ न लगाना।" तब शैतान यहोवा के सामने से चला गया।

ख. शैतान का जवाब

(अय्यूब 1:9-11) शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, "क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है? क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बाँधा? तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है। परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा।"

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