स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I भाग एक के क्रम में

परमेश्वर का अधिकार (I) भाग एक के क्रम में

चौथे दिन, जब परमेश्वर एक बार फिर से अपने अधिकार का उपयोग करता है तो मानवजाति के लिए मौसम, दिन, और वर्ष अस्तित्व में आते हैं

सृष्टिकर्ता ने अपनी योजना को पूरा करने के लिए अपने वचनों का इस्तेमाल किया और इस तरह से उसने अपनी योजना के पहले तीन दिन गुजारे। इन तीन दिनों के दौरान, परमेश्वर व्यस्त, या खुद को थकाता हुआ दिखाई नहीं दिया; बल्कि इसके विपरीत, उसने अपनी योजना के बेहतरीन तीन पहले दिन गुजारे और संसार के विलक्षण रूपान्तरण के महान कार्य को पूरा किया। एक बिलकुल नया संसार उसकी आँखों के सामने प्रकट हुआ और अंश-अंश करके वह खूबसूरत तस्वीर जो उसके विचारों में मुहरबन्द थी, अंततः परमेश्वर के वचनों में प्रगट हो गई। हर नई चीज का प्रकटीकरण एक नवजात बच्चे के जन्म के समान था और सृष्टिकर्ता उस तस्वीर से आनंदित हुआ जो एक समय उसके विचारों में थी लेकिन जिसे अब जीवन्त कर दिया गया था। इस वक्त, उसके दिल को यह देखकर बहुत संतुष्टि मिली, परन्तु उसकी योजना अभी शुरू ही हुई थी। पलक झपकते ही एक नया दिन आ गया था—और सृष्टिकर्ता की योजना में अगला पृष्ठ क्या था? उसने क्या कहा? उसने अपने अधिकार का इस्तेमाल कैसे किया? उस दौरान इस नए संसार में कौन सी नई चीजें आईं? सृष्टिकर्ता के मार्गदर्शन का अनुसरण करते हुए, हमारी निगाहें परमेश्वर द्वारा सभी चीजों की सृष्टि के चौथे दिन पर आ टिकती हैं, एक ऐसा दिन जिसमें एक और नई शुरूआत होने वाली थी। सृष्टिकर्ता के लिए यह निःसंदेह एक और बेहतरीन दिन था, और आज की मानवजाति के लिए यह एक और अति महत्वपूर्ण दिन था। यह निश्चय ही एक बहुमूल्य दिन था। वह इतना बेहतरीन कैसे था, वह इतना महत्वपूर्ण कैसे था और वह इतना बहुमूल्य कैसे था? आओ पहले सृष्टिकर्ता के द्वारा बोले गए वचनों को सुनें ...

"फिर परमेश्‍वर ने कहा, 'दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियाँ हों; और वे चिह्नों, और नियत समयों और दिनों, और वर्षों के कारण हों; और वे ज्योतियाँ आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें'" (उत्पत्ति 1:14-15)। सूखी भूमि और उस पर के पौधों की सृष्टि के बाद यह परमेश्वर के अधिकार का एक बार फिर से उपयोग था जो प्राणियों के द्वारा दिखाया गया था। परमेश्वर के लिए ऐसा कार्य उतना ही सरल था जितना कि उसके द्वारा पहले किए गए कार्य थे, क्योंकि परमेश्वर के पास बड़ी सामर्थ्‍य है; परमेश्वर अपने वचन का पक्का है, और उसके वचन पूरे होंगे। परमेश्वर ने ज्योतियों को आज्ञा दी कि वे आकाश में प्रगट हों, और ये ज्योतियाँ न केवल पृथ्वी के ऊपर आकाश में रोशनी देती थीं, बल्कि दिन और रात और ऋतुओं, दिनों और वर्षों के लिए भी चिह्न के रूप में कार्य करती थीं। इस प्रकार, जब परमेश्वर ने अपने वचनों को कहा, हर एक कार्य जिसे परमेश्वर पूरा करना चाहता था वह परमेश्वर के अभिप्राय और जिस रीति से परमेश्वर ने उन्हें नियुक्त किया था, उसके अनुसार पूरा हो गया।

आकाश में जो ज्योतियाँ हैं, वे आसमान के तत्व हैं जो प्रकाश को बिखेर सकती हैं; वे आकाश, भूमि और समुद्र को प्रकाशमय कर सकती हैं। वे परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार तय की गई लय एवं तीव्रता में परिक्रमा करती हैं और विभिन्न समयकाल में भूमि पर प्रकाश देती हैं और इस रीति से, ज्योतियों की परिक्रमा के चक्र के कारण भूमि के पूर्व और पश्चिम में दिन और रात होते हैं, वे न केवल दिन और रात के चिह्न हैं, बल्कि ये विभिन्न चक्र मानवजाति के लिए त्योहारों और विशेष दिनों को भी चिन्हित करते हैं। वे चारों ऋतुओं—बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, शरद ऋतु, और शीत ऋतु—की पूर्ण पूरक और सहायक हैं, जिन्हें परमेश्वर के द्वारा भेजा जाता है, जिनके साथ ज्योतियाँ एकरूपता से मानवजाति के लिए चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों, और सालों के लिए एक निरन्तर और सटीक चिह्न के रूप में कार्य करती हैं। यद्यपि यह केवल कृषि के आगमन के बाद ही हुआ कि मानवजाति ने परमेश्वर द्वारा बनाई गई ज्योतियों द्वारा चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों और वर्षों के विभाजन को देखा और समझा, लेकिन वास्तव में चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों और वर्षों को जिन्हें मनुष्य आज समझता है, वे बहुत पहले ही, परमेश्वर द्वारा सभी वस्तुओं की सृष्टि के चौथे दिन से प्रारंभ हो चुके थे और इसी प्रकार परस्पर बदलने वाले बसंत, ग्रीष्म, शरद, और शीत ऋतु के चक्र भी जिन्हें मनुष्य के द्वारा अनुभव किया जाता है, वे बहुत पहले ही, परमेश्वर द्वारा सभी वस्तुओं की सृष्टि के चौथे दिन प्रारंभ हो चुके थे। परमेश्वर के द्वारा बनाई गई ज्योतियों ने मनुष्य को इस योग्य बनाया कि वे लगातार, सटीक ढंग से और साफ-साफ दिन और रात के बीच अन्तर कर सकें, दिनों को गिन सकें, साफ-साफ चन्द्रमा की स्थितियों और वर्षों का हिसाब रख सकें। (पूर्ण चन्द्रमा का दिन एक महीने की समाप्ति को दर्शाता था और इससे मनुष्य जान गया कि ज्योतियों का प्रकाशन एक नए चक्र की शुरूआत करता है; अर्द्ध-चन्द्रमा का दिन आधे महीने की समाप्ति को दर्शाता था, जिसने मनुष्य को यह बताया कि चन्द्रमा की एक नई स्थिति शुरू हो रही है, इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता था कि चन्द्रमा की एक स्थिति में कितने दिन और रात होते हैं और एक ऋतु में चन्द्रमा की कितनी स्थितियाँ होती हैं, एक साल में कितनी ऋतुएँ होती हैं, यह सब कुछ बड़ी नियमितता के साथ प्रदर्शित होता था।) इस प्रकार, मनुष्य ज्योतियों की परिक्रमाओं के चिन्‍हांकन से आसानी से चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों, और सालों का पता लगा सकता था। यहाँ से, मानवजाति और सभी चीजें अनजाने ही दिन-रात के क्रमानुसार परस्पर परिवर्तन और ज्योतियों की परिक्रमाओं से उत्पन्न ऋतुओं के बदलाव के मध्य जीवन बिताने लगे। यह सृष्टिकर्ता द्वारा चौथे दिन ज्योतियों की सृष्टि का महत्व था। उसी प्रकार, सृष्टिकर्ता के इस कार्य के उद्देश्य और महत्व अभी भी उसके अधिकार और सामर्थ्‍य से अविभाजित थे। इस प्रकार, परमेश्वर के द्वारा बनाई गई ज्योतियाँ और वह मूल्य जो वे शीघ्र ही मनुष्य तक लाने वाले थे, सृष्टिकर्ता के अधिकार के इस्तेमाल में एक और महानतम कार्य था।

इस नए संसार में, जिसमें मानवजाति अभी तक प्रकट नहीं हुई थी, सृष्टिकर्ता ने साँझ और सवेरे, आकाश, भूमि और समुद्र, घास, सागपात और विभिन्न प्रकार के वृक्षों, और ज्योतियों, ऋतुओं, दिनों, और वर्षों को उस नए जीवन के लिए बनाया जिसका वह शीघ्र सृजन करने वाला था। सृष्टिकर्ता का अधिकार और सामर्थ्‍य, हर उस नई चीज में प्रगट हुआ जिसे उसने बनाया था और उसके वचन और उपलब्धियाँ लेश-मात्र भी बिना किसी असंगति या अन्तराल के एक साथ घटित हुए। इन सभी नई चीजों का प्रकटीकरण और जन्म सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ्‍य के प्रमाण थे वह अपने वचन का पक्का है और उसका वचन पूरा होगा और जो पूर्ण हुआ है वो हमेशा बना रहेगा। यह सच्चाई कभी नहीं बदली है : भूतकाल में भी ऐसा था, वर्तमान में भी ऐसा है और पूरे अनंतकाल के लिए ऐसा ही बना रहेगा। जब तुम लोग पवित्र-शास्त्र के उन वचनों को एक बार फिर देखते हो, तो क्या वे तुम्हें तरोताजा दिखाई देते हैं? क्या तुम लोगों ने नई विषय-वस्‍तु देखी है और नई खोज की है? यह इसलिए है क्योंकि सृष्टिकर्ता के कार्यों ने तुम लोगों के हृदय को द्रवित कर दिया है, और उसके अधिकार और सामर्थ्‍य के बारे में तुम सबके ज्ञान की दिशा का मार्गदर्शन किया है और सृष्टिकर्ता की तुम्हारी समझ के लिए द्वार खोल दिया है और उसके कार्य और अधिकार ने इन वचनों को जीवन दे दिया है। इस प्रकार इन वचनों में मनुष्य ने सृष्टिकर्ता के अधिकार का एक वास्तविक, सुस्पष्ट प्रकटीकरण देखा और सचमुच में सृष्टिकर्ता की सर्वोच्चता को देखा है, और उसने सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ्‍य की असाधारणता को देखा है।

सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ्‍य चमत्कार पर चमत्कार करते हैं; वह मनुष्य के ध्यान को आकर्षित करता है। मनुष्य उसके अधिकार के उपयोग से पैदा हुए आश्चर्यजनक कर्मों को टकटकी लगाकर देखने के सिवाए कुछ नहीं कर सकता है। उसका असीमित सामर्थ्‍य अत्यंत प्रसन्नता लेकर आता है और मनुष्य भौंचक्का हो जाता है। वह अतिउत्साह से भर जाता है और प्रशंसा में हक्का-बक्का-सा देखता है। वह विस्मयाभिभूत और हर्षित हो जाता है; और इससे अधिक, मनुष्य जाहिर तौर पर द्रवित हो जाता है, और उसमें आदर, सम्मान, और लगाव उत्पन्न होने लग जाते हैं। सृष्टिकर्ता के अधिकार और कर्मों का मनुष्य की आत्मा पर एक बड़ा अपमार्जक प्रभाव होता है और इसके अलावा यह मनुष्य की आत्मा को संतुष्ट कर देता है। परमेश्वर के हर एक विचार, हर एक बोल, उसके अधिकार का हर एक प्रकाशन, सभी चीजों में अति उत्तम रचना हैं। यह एक महान कार्य है जो सृजी गई मानवजाति की गहरी समझ और ज्ञान के बहुत ही योग्य है। जब हम सृष्टिकर्ता के वचनों से सृजित किए गए हर एक जीवधारी की गणना करते हैं तो हमारी आत्मा परमेश्वर की सामर्थ्‍य की अद्भुतता की ओर खिंची चली जाती है और हम खुद को सृष्टिकर्ता के कदमों के निशानों के पीछे-पीछे चलते हुए अगले दिन की ओर जाता हुआ पाते हैं : परमेश्वर द्वारा सभी चीजों की सृष्टि का पाँचवा दिन।

आओ, सृष्टिकर्ता के और अधिक कर्मों को देखने के साथ हम एक-एक अंश करके पवित्र शास्त्र को पढ़ना जारी रखें।

पाँचवे दिन, जीवन के विविध और विभिन्न रूप अलग-अलग तरीकों से सृष्टिकर्ता के अधिकार को प्रदर्शित करते हैं

पवित्र-शास्त्र कहता है, "फिर परमेश्‍वर ने कहा, 'जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें।' इसलिये परमेश्‍वर ने जाति जाति के बड़े बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्‍टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया, और एक एक जाति के उड़ने वाले पक्षियों की भी सृष्‍टि की: और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है" (उत्पत्ति 1:20-21)। पवित्र-शास्त्र साफ-साफ कहता है कि इस दिन, परमेश्वर ने जल के जन्तुओं और आकाश के पक्षियों को बनाया, कहने का तात्पर्य है कि उसने विभिन्न प्रकार की मछलियों और पक्षियों को बनाया और उनकी प्रजाति के अनुसार उन्हें वर्गीकृत किया। इस तरह, परमेश्वर की सृष्टि से पृथ्वी, आकाश और जल समृद्ध हो गए ...

जैसे ही परमेश्वर के वचन कहे गए, बिलकुल नई जिन्दगियाँ, हर एक अलग आकार में, सृष्टिकर्ता के वचनों के मध्य तत्काल जीवित हो गईं। वे इस संसार में अपने स्थान के लिए एक-दूसरे को धकेलते, कूदते और आनंद से खेलते हुए आ गईं...। हर रूप एवं आकार की मछलियाँ जल के एक छोर से दूसरे छोर को तैरने लगीं; और सभी किस्मों की सीपियाँ रेत में उत्पन्न होने लगीं, शल्क वाली, कवचधारी, और बिना रीढ़ वाले जीव-जन्तु, चाहे बड़े हों या छोटे, लम्बे हों या ठिगने, विभिन्न रूपों में जल्दी से विकसित हो गए। विभिन्न प्रकार के समुद्री पौधे शीघ्रता से उगना शुरू हो गए, विविध प्रकार के समुद्री जीवन के बहाव में बहने लगे, लहराते हुए, स्थिर जल को उत्तेजित करते हुए, मानो उनसे कह रहे हों : "नाचो! अपने मित्रों को लेकर आओ! क्योंकि अब तुम लोग कभी अकेले नहीं रहोगे!" उस घड़ी जब परमेश्वर के द्वारा बनाए गए जीवित प्राणी जल में प्रगट हुए, प्रत्येक नए जीवन ने उस जल में जीवन-शक्ति डाल दी जो इतने लम्बे समय से शांत था और एक नए युग का सूत्रपात किया...। और तब से, वे एक-दूसरे के आस-पास रहते हुए एक-दूसरे का साथ देने लगे और वे आपस में कोई दूरी नहीं रखते थे। जल के भीतर जो भी जीवधारी थे, जल उनका पोषण करने के लिए मौजूद था, और प्रत्येक जीवन, जल और उसके पोषण के कारण अस्तित्व में बना रहा। प्रत्येक जीव, दूसरे को जीवन देता था, और साथ ही, हर एक, उसी रीति से, सृष्टिकर्ता की सृष्टि की अद्भुतता, महानता और सृष्टिकर्ता के अधिकार के सर्वोत्कृष्ट सामर्थ्‍य की गवाही देता था ...

अब जबकि समुद्र शांत न रहा, उसी प्रकार जीवन ने आकाश को भरना प्रारंभ कर दिया। एक के बाद एक, छोटे-बड़े पक्षी, भूमि से आकाश में उड़ने लगे। समुद्र के जीवों से भिन्न, उनके पास पंख और पर थे, जो उनके दुबले और आकर्षक रूप को ढके हुए थे। वे अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए, गर्व और अभिमान से अपने परों के आकर्षक आवरण को और अपनी विशेष क्रियाओं और कुशलताओं को प्रदर्शित करने लगे जिन्हें सृष्टिकर्ता के द्वारा उन्हें प्रदान किया गया था। वे स्वतन्त्रता के साथ हवा में लहराने लगे और कुशलता से आकाश और पृथ्वी के बीच, घास के मैदानों और जंगलों के आर-पार यहाँ वहाँ उड़ने लगे...। वे हवा के प्रिय थे, वे हर चीज के प्रिय थे। वे जल्द ही स्वर्ग और पृथ्वी के बीच में एक सेतु बनकर सभी चीजों तक संदेश पहुँचाने वाले बनने को थे...। वे गीत गाते, आनंद के साथ यहाँ-वहाँ झपट्टा मारते, उन्होंने कभी ख़ाली पड़े संसार में हर्ष, हँसी व कम्पन पैदा कर दिया...। उन्होंने अपने स्पष्ट एवं मधुर गीतों से और अपने हृदय के भीतर के शब्दों से उस जीवन के लिए सृष्टिकर्ता की प्रशंसा की जो उसने उन्हें दिया था। उन्होंने सृष्टिकर्ता की पूर्णता और अद्भुतता को प्रदर्शित करने के लिए हर्षोल्लास के साथ नृत्य किया, और वे उस विशेष जीवन के द्वारा जो सृष्टिकर्ता ने उन्हें दिया था, उसके अधिकार की गवाही देने में अपने सम्पूर्ण जीवन को समर्पित कर देंगे ...

जीवित प्राणी चाहे जल में थे या आकाश में, सृष्टिकर्ता की आज्ञा के द्वारा, जीवित प्राणियों की यह अधिकता जीवन के विभिन्न रूपों में मौजूद थी, और सृष्टिकर्ता की आज्ञा के द्वारा, वे अपनी-अपनी प्रजाति के अनुसार इकट्ठे हो गए—और यह व्यवस्था, यह नियम किसी भी जीवधारी के लिए अपरिवर्तनीय था। सृष्टिकर्ता के द्वारा जो भी सीमाएँ बनाई गई थीं, उसके पार जाने की हिम्मत उन्होंने कभी नहीं की और न ही वे ऐसा करने में समर्थ थे। सृष्टिकर्ता के द्वारा आदेश के अनुसार वे जीते और बहुगुणित होते रहे और सृष्टिकर्ता के द्वारा बनाए गए जीवन-क्रम और व्यवस्था का कड़ाई से पालन करते रहे और सजगता से उसकी अनकही आज्ञाओं, स्वर्गीय आदेशों और नियमों में बने रहे जो उसने उन्हें तब से लेकर आज तक दिए थे। वे सृष्टिकर्ता से अपने एक विशेष अन्दाज में बात करते थे और सृष्टिकर्ता के अर्थ की प्रशंसा करने लगे और वे उसकी आज्ञा मानते थे। किसी ने कभी भी सृष्टिकर्ता के अधिकार का उल्लंघन नहीं किया और उनके ऊपर उसकी संप्रभुता और आज्ञाओं का उपयोग उसके विचारों के तहत हुआ था; कोई वचन जारी नहीं किए गए थे, परन्तु सृष्टिकर्ता का अद्वितीय अधिकार खामोशी से सभी चीजों का नियन्त्रण करता था जिसमें भाषा की कोई क्रिया नहीं थी और जो मानवजाति से भिन्न था। इस विशेष रीति से उसके अधिकार के इस्तेमाल ने मनुष्य को नया ज्ञान प्राप्त करने के लिए बाध्य किया और सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार की एक नई व्याख्या करने को मजबूर किया। यहाँ मैं तुम्हें एक बात बता दूँ कि इस नए दिन में, सृष्टिकर्ता के अधिकार के इस्तेमाल ने एक बार और सृष्टिकर्ता की अद्वितीयता का प्रदर्शन किया।

आगे, आओ हम पवित्र-शास्त्र के इस अंश के अंतिम वाक्य पर एक नजर डालें : "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।" तुम लोगों को क्या लगता है कि इसका अर्थ क्या है? इन वचनों में परमेश्वर की भावनाएं निहित हैं। परमेश्वर ने उन सभी चीजों को देखा जिन्हें उसने बनाया था जो उसके वचनों के कारण अस्तित्व में आईं और मजबूत बनी रहीं और धीरे-धीरे परिवर्तित होने लगीं। उस समय, परमेश्वर ने अपने वचनों के द्वारा जो विभिन्न चीजें बनाई थीं, और जिन विभिन्न कार्यों को पूरा किया था, क्या वह उनसे संतुष्ट था? उत्तर है कि "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।" तुम लोग यहाँ क्या देखते हो? "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है" इससे क्या प्रकट होता है? यह किसका प्रतीक है? इसका अर्थ है कि परमेश्वर ने जो योजना बनाई थी और जो निर्देश दिए थे, उन्हें और उन उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए परमेश्वर के पास सामर्थ्‍य और बुद्धि थी, जिन्हें पूरा करने का उसने मन बनाया था। जब परमेश्वर ने हर एक कार्य को पूरा कर लिया, तो क्या उसे पछतावा हुआ? उत्तर अभी भी यही है "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।" दूसरे शब्दों में, उसने कोई खेद महसूस नहीं किया, बल्कि वह संतुष्ट था। इसका मतलब क्या है कि उसे कोई खेद महसूस नहीं हुआ? इसका मतलब है कि परमेश्वर की योजना पूर्ण है, उसकी सामर्थ्‍य और बुद्धि पूर्ण है, और यह कि सिर्फ उसकी सामर्थ्‍य के द्वारा ही ऐसी पूर्णता को प्राप्त किया जा सकता है। जब मुनष्य कोई कार्य करता है, तो क्या वह परमेश्वर के समान देख सकता है कि सब अच्छा है? क्या हर काम जो मनुष्य करता है वो पूर्णता पा सकता है? क्या मनुष्य किसी काम को एक ही बार में पूरी अनंतता के लिए पूरा कर सकता है? जैसा कि मनुष्य कहता है, "कुछ भी पूर्ण नहीं होता, बस बेहतर होता है," ऐसा कुछ भी नहीं है जो मनुष्य करे और वह पूर्णता को प्राप्त कर ले। परमेश्वर ने देखा कि जो कुछ उसने बनाया और पूरा किया वह अच्छा है, परमेश्वर के द्वारा बनाई गई हर वस्तु उसके वचन के द्वारा स्थिर हुई, कहने का तात्पर्य है कि, जब "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है," तब जो कुछ भी उसने बनाया, उसने एक चिरस्थायी रूप ले लिया, उसकी किस्म के अनुसार उसे वर्गीकृत किया गया, और उसे पूरी अनंतता के लिए एक नियत स्थिति, उद्देश्य, और कार्यप्रणाली दी गई। इसके अतिरिक्त, सब वस्तुओं के बीच उनकी भूमिका, और वह यात्रा जिनसे उन्हें परमेश्वर की सभी वस्तुओं के प्रबन्धन के दौरान गुजरना था, उन्हें परमेश्वर के द्वारा पहले से ही नियुक्त कर दिया गया था और वे अपरिवर्तनीय थे। यह सृष्टिकर्ता द्वारा सभी वस्तुओं को दिया गया स्वर्गीय नियम था।

"परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है," ये सरल, कम समझे गए वचन, जिनकी कई बार उपेक्षा की जाती है, ये स्वर्गीय नियम और स्वर्गीय आदेश हैं जिन्हें सभी प्राणियों को परमेश्वर के द्वारा दिया गया है। यह सृष्टिकर्ता के अधिकार का एक और मूर्त रूप है, जो अधिक व्यावहारिक और अधिक गंभीर है। अपने वचनों के जरिए, सृष्टिकर्ता न केवल वह सब-कुछ हासिल करने में सक्षम हुआ जिसे उसने हासिल करने का बीड़ा उठाया था, और वह सब-कुछ प्राप्त किया जिसे वह प्राप्त करने निकला था, बल्कि जो कुछ भी उसने सृजित किया था, वह उसका नियन्त्रण कर सकता था, और जो कुछ उसने अपने अधिकार के अधीन बनाया था उस पर शासन कर सकता था और इसके अतिरिक्त, सब-कुछ व्यवस्थित और नियमित था। सभी वस्तुएँ उसके वचन के द्वारा बढ़ती, अस्तित्व में रहती और नष्ट होती थीं और उसके अतिरिक्त उसके अधिकार के कारण वे उसके द्वारा बनाई गई व्यवस्था के मध्य अस्तित्व में बनी रहती थीं और कोई भी वस्तु इससे छूटी नहीं थी! यह व्यवस्था बिलकुल उसी घड़ी शुरू हो गई थी जब "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है," और वह बना रहेगा और जारी रहेगा और परमेश्वर की प्रबंधकीय योजना के लिए उस दिन तक कार्य करता रहेगा जब तक वह सृष्टिकर्ता के द्वारा रद्द न कर दिया जाए! सृष्टिकर्ता का अद्वितीय अधिकार न केवल सब वस्तुओं को बनाने और सब वस्तुओं को अस्तित्व में आने की आज्ञा देने की काबिलियत में प्रकट हुआ, बल्कि सब वस्तुओं पर शासन करने और सब वस्तुओं पर संप्रभुता रखने और सब वस्तुओं में चेतना और जीवन देने और इसके अतिरिक्त, उन सब वस्तुओं को जिन्हें वो अपनी योजना में सृजित करेगा, उन्हें पूरी अनंतता के लिए उसके द्वारा बनाए गए संसार में एक उत्तम आकार, उत्तम संरचना, उत्तम भूमिका में प्रकट और मौजूद होने के लिए बनाने की उसकी योग्यता में भी प्रकट हुआ था। यह इस बात से प्रकट हुआ कि सृष्टिकर्ता के विचार किसी विवशता के अधीन नहीं थे और समय, अंतरिक्ष और भूगोल के द्वारा सीमित नहीं थे। उसके अधिकार के समान, सृष्टिकर्ता की अद्वितीय पहचान सदा-सर्वदा तक अपरिवर्तनीय बनी रहेगी। उसका अधिकार सर्वदा उसकी अद्वितीय पहचान का एक निरूपण और प्रतीक बना रहेगा और उसका अधिकार हमेशा उसकी पहचान के साथ-साथ बना रहेगा!

छठे दिन, सृष्टिकर्ता ने बोला और हर प्रकार के जीवित प्राणी जो उसके मस्तिष्क में थे एक के बाद एक प्रगट होने लगे

अलक्षित रूप से, सब वस्तुओं को बनाने का सृष्टिकर्ता का कार्य लगातार पाँचवे दिन तक चलता रहा, उसके तुरन्त बाद सृष्टिकर्ता ने सब वस्तुओं की सृष्टि के छठे दिन का स्वागत किया। यह दिन एक और नई शुरूआत थी तथा एक और असाधारण दिन था। इस नए दिन की शाम को सृष्टिकर्ता की क्या योजना थी? कौन-से नए जीव जन्तुओं को वह उत्पन्न करेगा, उनकी सृष्टि करेगा? ध्यान से सुनो, यह सृष्टिकर्ता की वाणी है ...

"फिर परमेश्‍वर ने कहा, 'पृथ्वी से एक एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलू पशु, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृथ्वी के वनपशु, जाति जाति के अनुसार उत्पन्न हों,' और वैसा ही हो गया। इस प्रकार परमेश्‍वर ने पृथ्वी के जाति जाति के वन-पशुओं को, और जाति जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तुओं को बनाया: और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है" (उत्पत्ति 1:24-25)। इन में कौन-कौन से जीवित प्राणी शामिल हैं? पवित्र-शास्त्र कहता हैः मवेशी और रेंगने वाले जन्तु और पृथ्वी के जाति-जाति के जंगली पशु। कहने का तात्पर्य है कि उस दिन वहाँ पृथ्वी के सब प्रकार के जीवित प्राणी ही नहीं थे, बल्कि उन सभी को प्रजाति के अनुसार वर्गीकृत किया गया था और उसी प्रकार, "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।"

पिछले पाँच दिनों की तरह, उसी सुर में, सृष्टिकर्ता ने अपने इच्छित प्राणियों के जन्म का आदेश दिया और हर एक अपनी-अपनी प्रजाति के अनुसार पृथ्वी पर प्रकट हुआ। जब सृष्टिकर्ता अपने अधिकार का इस्तेमाल करता है तो उसके कोई भी वचन व्यर्थ में नहीं बोले जाते और इस प्रकार, छ्ठे दिन हर जीवित प्राणी, जिसको उसने बनाने की इच्छा की थी, नियत समय पर प्रकट हो गया। जैसे ही सृष्टिकर्ता ने कहा "पृथ्वी से एक-एक जाति के प्राणी, उत्पन्न हों," पृथ्वी तुरन्त जीवन से भर गई और पृथ्वी के ऊपर अचानक ही हर प्रकार के प्राणियों की श्वास प्रकट हुई...। हरे-भरे घास के जंगली मैदानों में, हृष्ट-पुष्ट गायें अपनी पूंछों को इधर-उधर हिलाते हुए, एक के बाद एक प्रगट होने लगीं, मिमियाती हुई भेड़ें झुण्डों में इकट्ठी होने लगीं, और हिनहिनाते हुए घोड़े सरपट दौड़ने लगे...। एक पल में ही, शांत घास के मैदानों की विशालता में जीवन का विस्फोट हुआ...। निश्चल घास के मैदान पर पशुओं के इन विभिन्न झुण्डों का प्रकटीकरण एक सुन्दर दृश्य था जो अपने साथ असीमित जीवन शक्ति लेकर आया था...। वे घास के मैदानों के साथी और स्वामी होंगे और प्रत्येक दूसरे पर निर्भर होगा; वे इन घास के मैदानों के संरक्षक और रखवाले भी होंगे, जो उनका स्थायी निवास होगा, जो उन्हें उनकी सारी जरूरतों को प्रदान करेगा और उनके अस्तित्व के लिए अनंत पोषण का स्रोत होगा ...

उसी दिन जब ये विभिन्न मवेशी सृष्टिकर्ता के वचनों द्वारा अस्तित्व में आए थे, ढेर सारे कीड़े-मकौड़े भी एक के बाद एक प्रगट हुए। भले ही वे सभी जीवधारियों में सबसे छोटे थे, परन्तु उनकी जीवन-शक्ति सृष्टिकर्ता की अद्भुत सृष्टि थी और वे बहुत देरी से नहीं आए थे...। कुछ अपने पंखों को फड़फड़ाते थे, जबकि कुछ अन्य धीरे-धीरे रेंगते थे; कुछ उछलते और कूदते थे और कुछ अन्य लड़खड़ाते थे, कुछ आगे बढ़ गए, जबकि अन्य जल्दी से पीछे लौट गए; कुछ दूसरी ओर चले गए, कुछ अन्य ऊँची-नीची छलांग लगाने लगे...। वे सभी अपने लिए घर ढूँढ़ने के प्रयास में व्यस्त हो गए : कुछ ने घास में घुसकर अपना रास्ता बनाया, कुछ ने भूमि खोदकर छेद बनाना शुरू कर दिया, कुछ उड़कर पेड़ों पर चढ़ गए और जंगल में छिप गए...। यद्यपि वे आकार में छोटे थे, परन्तु वे खाली पेट की तकलीफ को सहना नहीं चाहते थे और अपने घरों को बनाने के बाद, वे अपना पोषण करने के लिए भोजन की तलाश में दौड़ पड़े। कुछ घास के कोमल तिनकों को खाने के लिए उस पर चढ़ गए, कुछ ने धूल से अपना मुँह भर लिया और अपना पेट भरा और स्वाद और आनंद के साथ खाने लगे (उनके लिए, धूल भी एक स्वादिष्ट भोजन है); कुछ जंगल में छिप गए, परन्तु आराम करने के लिए नहीं रूके, क्योंकि चमकीले गहरे हरे पत्तों के भीतर के रस ने उनके लिए रसीला भोजन प्रदान किया...। संतुष्ट होने के बाद भी कीड़े-मकौड़ों ने अपनी गतिविधियों को नहीं रोका, भले ही वे आकार में छोटे थे, फिर भी वे भरपूर ऊर्जा और असीमित उत्साह से भरे हुए थे और उसी प्रकार सभी जीवधारियों में, वे सबसे अधिक सक्रिय और सबसे अधिक परिश्रमी होते हैं। वे कभी आलसी न हुए और न कभी आराम से पड़े रहे। एक बार संतृप्त होने के बाद, उन्होंने फिर से अपने भविष्य के लिए परिश्रम करना प्रारंभ कर दिया, अपने आने वाले कल के लिए अपने आपको व्यस्त रखा और जीवित बने रहने के लिए भाग-दौड़ करते रहे...। उन्होंने मधुरता से विभिन्न प्रकार की धुनों और सुरों को गुनगुनाकर अपने आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने घास, वृक्षों और जमीन के हर इन्च में आनंद का समावेश किया और हर दिन और हर वर्ष को अद्वितीय बना दिया...। अपनी भाषा और अपने तरीकों से, उन्होंने भूमि के सभी प्राणियों तक जानकारी पहुँचायी। और अपने विशेष जीवन पथक्रम का उपयोग करते हुए, उन्होंने सब वस्तुओं को जिनके ऊपर उन्होंने निशान छोड़े थे, चिन्हित किया...। उनका मिट्टी, घास और जंगलों के साथ घनिष्ठ संबंध था और वे मिट्टी, घास और वनों में शक्ति और जीवन चेतना लेकर आए, उन्होंने सभी प्राणियों तक सृष्टिकर्ता का प्रोत्साहन और अभिनंदन पहुँचाया ...

सृष्टिकर्ता की निगाहें उन सब वस्तुओं पर पड़ीं जिन्हें उसने बनाया था और इस पल उसकी निगाहें जंगलों और पर्वतों पर आकर ठहर गईं और उसके मस्तिष्क में कई विचार घूम रहे थे। जैसे ही उसके वचन बोले गए, घने जंगलों में और पहाड़ों के ऊपर, इस प्रकार के पशु प्रकट हुए जो पहले कभी नहीं आए थे : वे "जंगली जानवर" थे जो परमेश्वर के वचन के द्वारा बोले गए थे। लम्बे समय से प्रतीक्षारत, उन्होंने अपने अनोखे चेहरों के साथ अपने-अपने सिरों को हिलाया और हर एक ने अपनी-अपनी पूँछ लहराई। कुछ के पास रोंएदार लबादे थे, कुछ कवचधारी थे, कुछ के खुले हुए जहरीले दाँत थे, कुछ के पास घातक मुस्कान थी, कुछ लम्बी गर्दन वाले थे, कुछ के पास छोटी पूँछ थी, कुछ के पास ख़तरनाक आँखें थीं, कुछ डर के साथ देखते थे, कुछ घास खाने के लिए झुके हुए थे, कुछ के मुँह में खून लगा हुआ था, कुछ दो पाँव से उछलते थे, कुछ चार खुरों से धीरे-धीरे चलते थे, कुछ पेड़ों के ऊपर लटके दूर तक देखते थे, कुछ जंगलों में इन्तजार में लेटे हुए थे, कुछ आराम करने के लिए गुफाओं की खोज में थे, कुछ मैदानों में दौड़ते और उछलते थे, कुछ शिकार के लिए जंगलों में गश्त लगा रहे थे...; कुछ गरज रहे थे, कुछ हुँकार भर रहे थे, कुछ भौंक रहे थे, कुछ रो रहे थे...; कुछ ऊँचे सुर, कुछ नीचे सुर वाले, कुछ खुले गले वाले, कुछ साफ-साफ और मधुर स्वर वाले थे...; कुछ भयानक थे, कुछ सुन्दर थे, कुछ बड़े अजीब से थे और कुछ प्यारे-से थे, कुछ डरावने थे, कुछ बहुत ही आकर्षक भोले-भाले थे...। सब एक-एक कर आने लगे। देखो कि वे गर्व से कितने फूले हुए थे, उन्मुक्त-जीव थे, एक-दूसरे से बिलकुल उदासीन थे, एक-दूसरे को एक झलक देखने की भी परवाह नहीं करते थे...। सभी उस विशेष जीवन को जो सृष्टिकर्ता के द्वारा उन्हें दिया गया था, और अपने जंगलीपन और क्रूरता को धारण किए हुए, जंगलों में और पहाड़ियों के ऊपर प्रकट हो गए। सबसे तिरस्कारपूर्ण, इतने निरंकुश—किसने उन्हें पहाड़ों और जंगलों का सच्चा स्वामी बनाया? उस घड़ी से जब से सृष्टिकर्ता ने उनके प्रकटन को स्वीकृति दी थी, उन्होंने जंगलों और पहाड़ों पर "दावा किया," क्योंकि सृष्टिकर्ता ने पहले से ही उनकी सीमाओं को कस दिया था और उनके अस्तित्व के दायरे को निश्चित कर दिया था। केवल वे ही जंगलों और पहाड़ों के सच्चे स्वामी थे, इसलिए वे इतने प्रचण्ड और ढीठ थे। उन्हें "जंगली जानवर" सिर्फ इसीलिए कहा जाता था क्योंकि, सभी प्राणियों में वे ही थे जो वास्तव में इतने जंगली, क्रूर और वश में न आने वाले थे। उन्हें पालतू नहीं बनाया जा सकता था, इस प्रकार उनका पालन-पोषण नहीं किया जा सकता था और वे मानवजाति के साथ एकता से नहीं रह सकते थे या मानवजाति के लिए परिश्रम नहीं कर सकते थे। चूँकि उनका पालन-पोषण नहीं किया जा सकता था, और वे मानवजाति के लिए काम नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्हें मानवजाति से दूर रहकर जीवन बिताना था। मनुष्य उनके पास नहीं आ सकते थे। चूँकि उन्हें मानवजाति से दूर रहकर जीवन बिताना था और मनुष्य उनके पास नहीं आ सकते थे इसलिए बदले में, वे उन जिम्मेदारियों को निभा सकते थे जो सृष्टिकर्ता के द्वारा उन्हें दी गई थी : पर्वतों और जंगलों की सुरक्षा करना। उनके जंगलीपन ने पर्वतों की सुरक्षा की और जंगलों की हिफाजत की और उनका वही स्वभाव उनके अस्तित्व और बढ़ोत्तरी के लिए सबसे बेहतरीन सुरक्षा और आश्वासन था। साथ ही, उनके जंगलीपन ने सब वस्तुओं के मध्य संतुलन को कायम रखा और सुनिश्चित किया। उनका आगमन पर्वतों और जंगलों के लिए सहयोग और मजबूत सहारा लेकर आया; उनके आगमन ने शांत तथा रिक्त पर्वतों और जंगलों में शक्ति और जीवन चेतना का संचार किया। उसके बाद से, पर्वत और जंगल उनके स्थायी निवास बन गए, और वे अपने घरों से कभी वंचित नहीं रहेंगे, क्योंकि पर्वत और पहाड़ उनके लिए प्रकट हुए और अस्तित्व में आए थे; जंगली जानवर अपने कर्तव्य को पूरा करेंगे और उनकी हिफाजत करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। साथ ही, जंगली जानवर सृष्टिकर्ता के प्रोत्साहन के साथ दृढ़ता से रहेंगे ताकि अपने सीमा क्षेत्र को थामे रह सकें और सृष्टिकर्ता के द्वारा स्थापित की गई सब वस्तुओं के संतुलन को कायम रखने के लिए अपने जंगली स्वभाव का निरन्तर उपयोग कर सकें और सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ्‍य को प्रकट कर सकें!

सृष्टिकर्ता के अधिकार के अधीन, सभी चीजें पूर्ण हैं

परमेश्वर के द्वारा सचल और अचल समेत सब वस्तुओं की सृष्टि की गई, जैसे पक्षी और मछलियाँ, जैसे वृक्ष और फूल, जिसमें मवेशी, कीड़े-मकौड़े, और छठे दिन बनाए गए जंगली जानवर भी शामिल थे—वे सभी परमेश्वर की निगाह में अच्छे थे और इसके अतिरिक्त, परमेश्वर की निगाहों में ये वस्तुएँ उसकी योजना के अनुरूप, पूर्णता के शिखर को प्राप्त कर चुकी थीं और एक ऐसे स्तर तक पहुँच गई थीं जहाँ परमेश्वर उन्हें पहुँचाना चाहता था। कदम-दर-कदम, सृष्टिकर्ता ने उन कार्यों को किया जो वह अपनी योजना के अनुसार करने का इरादा रखता था। जिन चीजों की वह रचना करना चाहता था, वे एक-के-बाद-एक प्रकट होती गईं और प्रत्येक का प्रकटीकरण सृष्टिकर्ता के अधिकार का प्रतिबिम्ब था और उसके अधिकार का ठोस रूप था, इन ठोस रूपों के कारण, सभी जीवधारी सृष्टिकर्ता के अनुग्रह और प्रावधान के प्रति नत-मस्तक थे। जैसे ही परमेश्वर के चमत्कारी कर्मों ने अपने आपको प्रकट किया, यह संसार परमेश्वर के द्वारा सृजी गई सब वस्तुओं से, अंश-अंश करके फैल गया और सब अव्यवस्था और अँधकार से स्पष्टता और उजाले में बदल गया, मृत्युपरक स्थिरता से जीवन्त और असीमित जीवन चेतना में बदल गया। सृष्टि की सब वस्तुओं के मध्य, बड़े से लेकर छोटे तक और छोटे से लेकर सूक्ष्म तक, ऐसा कोई भी नहीं था जो सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ्‍य के द्वारा सृजित किया नहीं गया था और हर एक जीवधारी के अस्तित्व की एक अद्वितीय और अंतर्निहित आवश्यकता और मूल्य था। उनके आकार और ढांचे के अन्तर के बावजूद, उन्हें सृष्टिकर्ता के द्वारा ही बनाया जाना था ताकि सृष्टिकर्ता के अधिकार के अधीन अस्तित्व में बने रहें। कई बार लोग किसी बड़े बदसूरत कीड़े को देखकर कहते हैं, "यह कीड़ा बहुत ही भद्दा है, ऐसा हो ही नहीं सकता कि ऐसे कुरूप जीव को परमेश्वर बना सकता है—ऐसा हो ही नहीं सकता कि वह इतनी भद्दी चीज को बनाए।" कितना मूर्ख़तापूर्ण नजरिया है यह! इसके बजाय उन्हें यह कहना चाहिए, "भले ही यह कीड़ा इतना भद्दा है, उसे परमेश्वर के द्वारा बनाया गया है और इस लिए उसके पास उसका अपना अनोखा उद्देश्य जरूर होगा।" परमेश्वर के विचारों में, विभिन्न जीवित प्राणी जिन्हें उसने बनाया है, वह उन्हें हर प्रकार का और हर तरह का रूप और हर प्रकार की कार्य प्रणालियाँ और उपयोगिताएँ देना चाहता था और इस प्रकार परमेश्वर के द्वारा बनाई गई किसी भी वस्तु को एक ही साँचे में नहीं ढाला गया है। उनकी बाहरी संरचना से लेकर भीतरी संरचना तक, उनके जीने की आदतों से लेकर उनके निवास तक—हर एक चीज अलग है। गायों के पास गायों का रूप है, गधों के पास गधों का रूप है, हिरनों के पास हिरनों का रूप है, हाथियों के पास हाथियों का रूप है। क्या तुम कह सकते हो कि कौन सबसे अच्छा दिखता है और कौन सबसे भद्दा दिखता है? क्या तुम कह सकते हो कि कौन सबसे अधिक उपयोगी है और किसके अस्तित्व की आवश्यकता सबसे कम है? कुछ लोगों को हाथियों का रूप अच्छा लगता है, परन्तु कोई भी खेती के लिए हाथियों का इस्तेमाल नहीं करता है; कुछ लोग शेरों और बाघों के रूप को पसंद करते हैं, क्योंकि उनका रूप सब जीवों में सबसे अधिक प्रभावकारी है, परन्तु क्या तुम उन्हें पालतू जानवर की तरह रख सकते हो? संक्षेप में, जब तमाम जीवों की बात आती है, तो मनुष्य को सृष्टिकर्ता के अधिकार को स्वीकार कर लेना चाहिये, अर्थात्, सब जीवों के लिए सृष्टिकर्ता के द्वारा नियुक्त किए गए क्रम को मान लेना चाहिये; यह सबसे बुद्धिमत्तापूर्ण रवैया है। सृष्टिकर्ता के मूल अभिप्रायों को खोजने और उसके प्रति आज्ञाकारी होने का रवैया ही सृष्टिकर्ता के अधिकार की सच्ची स्वीकार्यता और निश्चितता है। यह परमेश्वर की निगाह में अच्छा है तो मनुष्य के पास दोष ढूँढ़ने का कौन-सा कारण है?

अतः, सृष्टिकर्ता के अधिकार के अधीन सब वस्तुओं को सृष्टिकर्ता की संप्रभुता के लिए सुर में सुर मिलाकर गाना है और उसके नए दिन के कार्य के लिए एक बेहतरीन भूमिका की शुरूआत करनी है और इस समय सृष्टिकर्ता भी अपने प्रबन्ध के कार्य में एक नया पृष्ठ खोलेगा! सृष्टिकर्ता के द्वारा नियुक्त बसंत ऋतु के अँकुरों, ग्रीष्म ऋतु में परिपक्वता, शरद ऋतु में कटनी, और शीत ऋतु में भण्डारण की व्यवस्था के अनुसार, सब वस्तुएँ सृष्टिकर्ता की प्रबंधकीय योजना के साथ प्रतिध्वनित होंगी और वे अपने नए दिन, नई शुरूआत और नए जीवन पथक्रम का स्वागत करेंगी और वे सृष्टिकर्ता के अधिकार की संप्रभुता के अधीन हर दिन का अभिनन्दन करने के लिए कभी न खत्म होने वाले अनुक्रम के अनुसार जीवित रहेंगी और प्रजनन करेंगी ...

कोई भी सृजित और गैर-सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता की पहचान का स्थान नहीं ले सकता है

जब से उसने सब वस्तुओं की सृष्टि की शुरूआत की, परमेश्वर की सामर्थ्‍य प्रकट और प्रकाशित होने लगी थी, क्योंकि सब वस्तुओं को बनाने के लिए परमेश्वर ने अपने वचनों का इस्तेमाल किया था। चाहे उसने जिस भी रीति से उनका सृजन किया, जिस कारण से भी उनका सृजन किया, परमेश्वर के वचनों के कारण ही सभी चीजें अस्तित्व में आईं थीं और मजबूत बनी रहीं; यह सृष्टिकर्ता का अद्वितीय अधिकार है। इस संसार में मानवजाति के प्रकट होने के समय से पहले, सृष्टिकर्ता ने मानवजाति के वास्ते सब वस्तुओं को बनाने के लिए अपने अधिकार और सामर्थ्‍य का इस्तेमाल किया और मानवजाति के लिए जीने का उपयुक्त वातावरण तैयार करने के लिए अपनी अद्वितीय विधियों का उपयोग किया था। जो कुछ भी उसने किया वह मानवजाति की तैयारी के लिए था, जो जल्द ही उसका श्वास प्राप्त करने वाली थी। अर्थात, मानवजाति की सृष्टि से पहले के समय में, मानवजाति से भिन्न सभी जीवधारियों में परमेश्वर का अधिकार प्रकट हुआ, ऐसी वस्तुओं में प्रकट हुआ जो स्वर्ग, ज्योतियों, समुद्रों, और भूमि के समान ही विशाल थीं और छोटे से छोटे पशु-पक्षियों में, हर प्रकार के कीड़े-मकौड़ों और सूक्ष्म जीवों में प्रकट हुआ, जिनमें विभिन्न प्रकार के जीवाणु भी शामिल थे, जो नंगी आँखों से देखे नहीं जा सकते थे। प्रत्येक को सृष्टिकर्ता के वचनों के द्वारा जीवन दिया गया था, हर एक की वंशवृद्धि सृष्टिकर्ता के वचनों के कारण हुई और प्रत्येक सृष्टिकर्ता के वचनों के कारण सृष्टिकर्ता की संप्रभुता के अधीन जीवन बिताता था। यद्यपि उन्होंने सृष्टिकर्ता की श्वास को प्राप्त नहीं किया था, फिर भी वे अपने अलग-अलग रूपों और संरचना के द्वारा उस जीवन व चेतना को दर्शाते थे जो सृष्टिकर्ता द्वारा उन्हें दिया गया था; भले ही उन्हें बोलने की काबिलियत नहीं दी गई थी जैसे सृष्टिकर्ता के द्वारा मनुष्यों को दी गई थी, फिर भी उन में से प्रत्येक ने अपने उस जीवन की अभिव्यक्ति का एक अन्दाज प्राप्त किया जिसे सृष्टिकर्ता के द्वारा उन्हें दिया गया था और वो मनुष्यों की भाषा से अलग था। सृष्टिकर्ता के अधिकार ने न केवल अचल पदार्थ प्रतीत होने वाली वस्तुओं को जीवन की चेतना दी, जिससे वे कभी भी विलुप्त न हों, बल्कि इसके अतिरिक्त, प्रजनन करने और बहुगुणित होने के लिए हर जीवित प्राणियों को अंतःज्ञान भी दिया, ताकि वे कभी भी विलुप्त न हों और वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रहने के नियमों और सिद्धांतों को आगे बढ़ाते जाएँ जो सृष्टिकर्ता के द्वारा उन्हें दिये गए हैं। जिस रीति से सृष्टिकर्ता अपने अधिकार का इस्तेमाल करता है, वह अतिसूक्ष्म और अतिविशाल दृष्टिकोण से कड़ाई से चिपका नहीं रहता है और किसी आकार में सीमित नहीं होता; वह विश्व के परिचालन को नियंत्रित करने और सभी चीजों के जीवन और मृत्यु के ऊपर प्रभुता रखने में समर्थ है और इसके अतिरिक्त सब वस्तुओं को भली-भाँति सँभाल सकता है जिससे वे उसकी सेवा करें; वह पर्वतों, नदियों, और झीलों के सब कार्यों का प्रबन्ध कर सकता है, और उनके भीतर की सब वस्तुओं पर शासन कर सकता है और इसके अलावा, वह सब वस्तुओं के लिए जो आवश्यक है उसे प्रदान कर सकता है। यह मानवजाति के अलावा सब वस्तुओं के मध्य सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार का प्रकटीकरण है। ऐसा प्रकटीकरण मात्र एक जीवनकाल के लिए नहीं है; यह कभी नहीं रूकेगा, न थमेगा और किसी व्यक्ति या चीज के द्वारा बदला या बिगाड़ा नहीं जा सकता है और न ही उसमें किसी व्यक्ति या चीज के द्वारा कुछ जोड़ा या घटाया जा सकता है—क्योंकि कोई भी सृष्टिकर्ता की पहचान की जगह नहीं ले सकता और इसलिए सृष्टिकर्ता के अधिकार को किसी सृजित किए गए प्राणी के द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है; यह किसी गैर-सृजित प्राणी के द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के संदेशवाहकों और स्वर्गदूतों को लो। उनके पास परमेश्वर की सामर्थ्‍य नहीं है और सृष्टिकर्ता का अधिकार तो उनके पास बिलकुल भी नहीं है और उनके पास परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्‍य क्यों नहीं है उसका कारण यह है कि उनमें सृष्टिकर्ता का सार नहीं है। गैर-सृजित प्राणी, जैसे परमेश्वर के संदेशवाहक और स्वर्गदूत, भले ही परमेश्वर की तरफ से कुछ कर सकते हैं, परन्तु वे परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। यद्यपि वे कुछ सामर्थ्‍य धारण किए हुए हैं जो मनुष्य के पास नहीं है, फिर भी उनके पास परमेश्वर का अधिकार नहीं है, सब वस्तुओं को बनाने, सब वस्तुओं को आज्ञा देने और सब वस्तुओं के ऊपर संप्रभुता रखने के लिए उनके पास परमेश्वर का अधिकार नहीं है। इस प्रकार परमेश्वर की अद्वितीयता की जगह कोई गैर-सृजित प्राणी नहीं ले सकता है और उसी प्रकार कोई गैर-सृजित प्राणी परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्‍य का स्थान नहीं ले सकता। क्या तुमने बाइबल में, परमेश्वर के किसी संदेशवाहक के बारे में पढ़ा है जिसने सभी चीजों की सृष्टि की हो? परमेश्वर ने सभी चीज़ों के सृजन के लिए किसी संदेशवाहक या स्वर्गदूत को क्यों नहीं भेजा? क्योंकि उनके पास परमेश्वर का अधिकार नहीं था और इसलिए उनके पास परमेश्वर के अधिकार का इस्तेमाल करने की योग्यता भी नहीं थी। सभी जीवधारियों के समान, वे सभी सृष्टिकर्ता की प्रभुता के अधीन हैं और सृष्टिकर्ता के अधिकार के अधीन हैं और इसी रीति से, सृष्टिकर्ता उनका परमेश्वर भी है और उनका सम्राट भी। उन में से हर एक के बीच—चाहे वे उच्च श्रेणी के हों या निम्न, बड़ी सामर्थ्‍य के हों या छोटी—ऐसा कोई भी नहीं है जो परमेश्वर के अधिकार से बढ़कर हो सके और इस प्रकार उनके बीच में, ऐसा कोई भी नहीं है जो सृष्टिकर्ता की पहचान का स्थान ले सके। उन्‍हें कभी भी परमेश्वर नहीं कहा जाएगा और वे कभी भी सृष्टिकर्ता नहीं बन पाएँगे। ये न बदलने वाले सत्‍य और तथ्य हैं!

उपरोक्त सहभागिता के जरिए, क्या हम दृढ़तापूर्वक निम्नलिखित बातों को कह सकते हैं : केवल सब वस्तुओं के सृष्टिकर्ता और शासक, वह जिसके पास अद्वितीय अधिकार और अद्वितीय सामर्थ्‍य है, क्या उसे स्वयं अद्वितीय परमेश्वर कहा जा सकता है? इस समय, शायद तुम लोग महसूस करो कि ऐसा प्रश्न बहुत ही गंभीर है। तुम लोग, कुछ पल के लिए, उसे समझने में असमर्थ हो और उसके भीतर के सार को नहीं समझ सकते और इसलिए इस पल तुम लोगों को लगेगा कि उसका उत्तर देना कठिन है। ऐसी स्थिति में, मैं अपनी सहभागिता को जारी रखूँगा। आगे, मैं चाहूँगा कि तुम लोग उस सामर्थ्‍य और अधिकार के बहुत-से पहलुओं के वास्तविक कर्मों को देखो जो केवल परमेश्वर के पास है और इस प्रकार मैं तुम लोगों को सचमुच परमेश्वर की अद्वितीयता को समझने, प्रशंसा करने और परमेश्वर के अद्वितीय अधिकार के अर्थ को जानने दूँगा।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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