परमेश्वर के दैनिक वचन : देहधारण | अंश 128

परमेश्वर मनुष्यों के बीच अपना कार्य करने, मनुष्य पर स्वयं को व्यक्तिगत रूप से प्रकट करने और उसे स्वयं को देखने देने के लिए पृथ्वी पर आया है; क्या यह कोई साधारण मामला है? यह वास्तव में सरल नहीं है! यह ऐसा नहीं है, जैसा कि मनुष्य कल्पना करता है : कि परमेश्वर आ गया है, इसलिए मनुष्य उसकी ओर देख सकता है, ताकि मनुष्य समझ सके कि परमेश्वर वास्तविक है और अस्पष्ट या खोखला नहीं है, और कि परमेश्वर उच्च है किंतु विनम्र भी है। क्या यह इतना सरल हो सकता है? यह ठीक इसलिए है, क्योंकि शैतान ने मनुष्य की देह को भ्रष्ट कर दिया है और मनुष्य ही वह प्राणी है जिसे परमेश्वर बचाना चाहता है, और इसलिए भी कि परमेश्वर को शैतान के साथ युद्ध करने और व्यक्तिगत रूप से मनुष्य की चरवाही करने के लिए देह धारण करनी चाहिए। केवल यही उसके कार्य के लिए लाभदायक है। परमेश्वर के दो देहधारी रूप शैतान को हराने के लिए, और मनुष्य को बेहतर ढंग से बचाने के लिए भी, अस्तित्व में रहे हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जो शैतान के साथ युद्ध कर रहा है, वह केवल परमेश्वर ही हो सकता है, चाहे वह परमेश्वर का आत्मा हो या परमेश्वर का देहधारी रूप। संक्षेप में, शैतान के साथ युद्ध करने वाले स्वर्गदूत नहीं हो सकते, और वह मनुष्य तो बिलकुल नहीं हो सकता, जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट किया जा चुका है। यह युद्ध लड़ने में स्वर्गदूत निर्बल हैं, और मनुष्य तो और भी अधिक अशक्त है। इसलिए, यदि परमेश्वर मनुष्य के जीवन में कार्य करना चाहता है, यदि वह मनुष्य को बचाने के लिए व्यक्तिगत रूप से पृथ्वी पर आना चाहता है, तो उसे व्यक्तिगत रूप से देह बनना होगा—अर्थात् उसे व्यक्तिगत रूप से देह धारण करना होगा, और अपनी अंतर्निहित पहचान तथा उस कार्य के साथ, जिसे उसे अवश्य करना चाहिए, मनुष्य के बीच आना होगा और व्यक्तिगत रूप से मनुष्य को बचाना होगा। अन्यथा, यदि वह परमेश्वर का आत्मा या मनुष्य होता, जो यह कार्य करता, तो इस युद्ध से कभी कुछ न निकलता, और यह कभी समाप्त न होता। जब परमेश्वर मनुष्य के बीच व्यक्तिगत रूप से शैतान के साथ युद्ध करने के लिए देह बनता है, केवल तभी मनुष्य के पास उद्धार का एक अवसर होता है। इसके अतिरिक्त, केवल तभी शैतान लज्जित होता है, और उसके पास लाभ उठाने के लिए कोई अवसर नहीं होता या कार्यान्वित करने के लिए कोई योजना नहीं बचती। देहधारी परमेश्वर द्वारा किया जाने वाला कार्य परमेश्वर के आत्मा के द्वारा अप्राप्य है, और परमेश्वर की ओर से किसी दैहिक मनुष्य द्वारा उसे किया जाना तो और भी अधिक असंभव है, क्योंकि जो कार्य वह करता है, वह मनुष्य के जीवन के वास्ते और मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव को बदलने के लिए है। यदि मनुष्य इस युद्ध में भाग लेता, तो उसकी दुर्गति हो जाती और वह भाग जाता, और अपने भ्रष्ट स्वभाव को बदलने में एकदम असमर्थ रहता। वह सलीब से मनुष्य को बचाने या संपूर्ण विद्रोही मानव-जाति पर विजय प्राप्त करने में असमर्थ होता, केवल थोड़ा-सा पुराना कार्य करने में सक्षम होता जो सिद्धांतों से परे नहीं जाता, या कोई और कार्य, जिसका शैतान की पराजय से कोई संबंध नहीं है। तो परेशान क्यों हुआ जाए? उस कार्य का क्या महत्व है, जो मानव-जाति को प्राप्त न कर सकता हो, और शैतान को पराजित तो बिलकुल न कर सकता हो? और इसलिए, शैतान के साथ युद्ध केवल स्वयं परमेश्वर द्वारा ही किया जा सकता है, और इसे मनुष्य द्वारा किया जाना पूरी तरह से असंभव होगा। मनुष्य का कर्तव्य आज्ञापालन करना और अनुसरण करना है, क्योंकि मनुष्य स्वर्ग और धरती के सृजन के समान कार्य करने में असमर्थ है, इसके अतिरिक्त, न ही वह शैतान के साथ युद्ध करने का कार्य कर सकता है। मनुष्य केवल स्वयं परमेश्वर की अगुआई के तहत ही सृजनकर्ता को संतुष्ट कर सकता है, जिसके माध्यम से शैतान पराजित होता है; केवल यही वह एकमात्र कार्य है जो मनुष्य कर सकता है। और इसलिए, हर बार जब एक नया युद्ध आरंभ होता है, अर्थात् हर बार जब नए युग का कार्य शुरू होता है, तो इस कार्य को स्वयं परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया जाता है, जिसके माध्यम से वह संपूर्ण युग की अगुआई करता है, और संपूर्ण मानव-जाति के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त करता है। प्रत्येक नए युग की भोर शैतान के साथ युद्ध में एक नई शुरुआत है, जिसके माध्यम से मनुष्य एक अधिक नए, अधिक सुंदर क्षेत्र और एक नए युग में प्रवेश करता है, जिसकी अगुआई परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से की जाती है। मनुष्य सभी चीज़ों का स्वामी है, किंतु वे लोग, जिन्हें प्राप्त कर लिया गया है, शैतान के साथ सारे युद्धों के परिणाम बन जाएँगे। शैतान सभी चीज़ों को भ्रष्ट करने वाला है, वह सभी युद्धों के अंत में हारने वाला है, और वह इन युद्धों के बाद दंडित किया जाने वाला भी है। परमेश्वर, मनुष्य और शैतान में से केवल शैतान ही है, जिससे घृणा की जाएगी और जिसे ठुकरा दिया जाएगा। इस बीच, शैतान द्वारा प्राप्त किए गए और परमेश्वर द्वारा वापस न लिए गए लोग शैतान की ओर से सज़ा प्राप्त करने वाले बन जाएँगे। इन तीनों में से केवल परमेश्वर की ही सभी चीज़ों के द्वारा आराधना की जानी चाहिए। जिन्हें शैतान द्वारा भ्रष्ट किया गया किंतु परमेश्वर द्वारा वापस ले लिया जाता है और जो परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करते हैं, वे इस बीच ऐसे लोग बन जाते हैं, जो परमेश्वर की प्रतिज्ञा प्राप्त करेंगे और परमेश्वर के लिए दुष्ट लोगों का न्याय करेंगे। परमेश्वर निश्चित रूप से विजयी होगा और शैतान निश्चित रूप से पराजित होगा, किंतु मनुष्यों के बीच ऐसे लोग भी हैं, जो जीतेंगे और ऐसे लोग भी हैं, जो हारेंगे। जो जीतेंगे, वे विजेताओं के साथ होंगे और जो हारेंगे, वे हारने वाले के साथ होंगे; यह प्रत्येक का उसके प्रकार के अनुसार वर्गीकरण है, यह परमेश्वर के संपूर्ण कार्य का अंतिम परिणाम है, यह परमेश्वर के संपूर्ण कार्य का लक्ष्य भी है, और यह कभी नहीं बदलेगा। परमेश्वर की प्रबधंन योजना के मुख्य कार्य का केंद्रीय भाग मानव-जाति के उद्धार पर केंद्रित है, और परमेश्वर मुख्य रूप से इस केंद्रीय भाग के वास्ते, इस कार्य के वास्ते, और शैतान को पराजित करने के उद्देश्य से देह बनता है। पहली बार परमेश्वर देह बना, तो वह भी शैतान को पराजित करने के लिए था : वह व्यक्तिगत रूप से देह बना, और पहले युद्ध का कार्य पूरा करने के लिए, जो कि मानव-जाति के छुटकारे का कार्य था, उसे व्यक्तिगत रूप से सलीब पर चढ़ा दिया गया। इसी प्रकार, कार्य के इस चरण को भी परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया जाता है, जो मनुष्य के बीच अपना कार्य करने के लिए, और व्यक्तिगत रूप से अपने वचनों को बोलने और मनुष्य को स्वयं को देखने देने के लिए देह बना है। निस्संदेह, यह अपरिहार्य है कि वह मार्ग में साथ-साथ कुछ अन्य कार्य भी करता है, किंतु जिस मुख्य कारण से वह अपने कार्य को व्यक्तिगत रूप से कार्यान्वित करता है, वह है शैतान को हराना, संपूर्ण मानव-जाति पर विजय पाना, और इन लोगों को प्राप्त करना। इसलिए, देहधारी परमेश्वर का कार्य वास्तव में सरल नहीं है। यदि उसका उद्देश्य मनुष्य को केवल यह दिखाना होता कि परमेश्वर विनम्र और छिपा हुआ है, और यह कि परमेश्वर वास्तविक है, यदि यह मात्र इस कार्य को करने के वास्ते होता, तो देह बनने की कोई आवश्यकता न होती। परमेश्वर ने देहधारण न किया होता, तब भी वह अपनी विनम्रता और गंभीरता, अपनी महानता और पवित्रता सीधे मनुष्य पर प्रकट कर सकता था, किंतु ऐसी चीज़ों का मानव-जाति के प्रबधंन के कार्य से कोई लेना-देना नहीं है। ये मनुष्य को बचाने या उसे पूर्ण करने में असमर्थ हैं, और ये शैतान को पराजित तो बिलकुल भी नहीं कर सकतीं। यदि शैतान की पराजय में केवल पवित्रात्मा ही शामिल होता, जो किसी आत्मा से युद्ध करता, तो ऐसे कार्य का और भी कम व्यावहारिक मूल्य होता; यह मनुष्य को प्राप्त करने में असमर्थ होता और मनुष्य के भाग्य और उसकी भविष्य की संभावनाओं को बरबाद कर देता। इस प्रकार, आज परमेश्वर के कार्य का गहरा महत्व है। यह केवल इसलिए नहीं है कि मनुष्य उसे देख सके, या कि मनुष्य की आँखें खोली जा सकें, या उसे प्रेरणा और प्रोत्साहन का थोड़ा एहसास कराया जा सके; ऐसे कार्य का कोई महत्व नहीं है। यदि तुम केवल इस प्रकार के ज्ञान के बारे में ही बोल सकते हो, तो यह साबित करता है कि तुम परमेश्वर के देहधारण के सच्चे महत्व को नहीं जानते।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना

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