परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 64

यदि हम परमेश्वर के स्वरूप को और अधिक समझना चाहते हैं, तो हम पुराने नियम या व्यवस्था के युग पर नहीं रुक सकते—हमें परमेश्वर द्वारा अपने कार्य में उठाए गए कदमों का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ने की आवश्यकता है। इसलिए, जिस प्रकार परमेश्वर ने व्यवस्था के युग का अंत और अनुग्रह के युग का आरंभ किया था, उसी प्रकार हमारे अपने कदम भी उसी का अनुसरण करते हुए अनुग्रह के युग में आ जाएँ—एक ऐसा युग, जो अनुग्रह और छुटकारे से भरपूर है। इस युग में परमेश्वर ने पुन: एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया, जो पहले नहीं किया गया था। इस नए युग का कार्य परमेश्वर और मानवजाति दोनों के लिए एक नया प्रारंभिक बिंदु था—ऐसा प्रारंभिक बिंदु, जिसमें परमेश्वर द्वारा किया गया एक और नया कार्य शामिल था, जो पहले कभी नहीं किया गया था। यह नया कार्य अभूतपूर्व था, जो मनुष्यों और समस्त प्राणियों की कल्पना-शक्ति से परे था। यह ऐसा कार्य है, जिसे अब सभी लोग अच्छी तरह से जानते हैं—पहली बार परमेश्वर एक मनुष्य बना, और पहली बार उसने एक मनुष्य के रूप, मनुष्य की पहचान के साथ, नया कार्य आरंभ किया। इस नए कार्य ने प्रकट किया कि परमेश्वर ने व्यवस्था के युग में अपना कार्य पूरा कर लिया था, और कि वह व्यवस्था के अधीन अब और कुछ नहीं करेगा या बोलेगा। न ही वह व्यवस्था के रूप में या व्यवस्था के सिद्धांतों या नियमों के अनुसार कुछ बोलेगा या करेगा। अर्थात्, व्यवस्था पर आधारित उसका समस्त कार्य हमेशा के लिए रुक गया था और जारी नहीं रह गया था, क्योंकि परमेश्वर नया कार्य आरंभ करना और नई चीज़ें करना चाहता था। उसकी योजना का एक बार फिर से एक नया प्रारंभिक बिंदु था, और इसलिए परमेश्वर को मानवजाति की एक नए युग में अगुआई करनी थी।

यह मनुष्य के लिए आनंददायक समाचार था या अशुभ, यह प्रत्येक व्यक्ति के सार पर निर्भर करता था। ऐसा कहा जा सकता है कि कुछ लोगों के लिए यह आनंददायक समाचार नहीं था, बल्कि अशुभ समाचार था, क्योंकि जब परमेश्वर ने अपना नया कार्य शुरू किया, तो जिन लोगों ने बस व्यवस्थाओं और नियमों का अनुसरण किया था, जिन्होंने बस सिद्धांतों का अनुसरण किया था किंतु परमेश्वर का भय नहीं माना था, वे परमेश्वर के पुराने कार्य का उपयोग उसके नए कार्य पर दोष लगाने के लिए करने की ओर प्रवृत्त होने लगे। इन लोगों के लिए यह एक अशुभ समाचार था; परंतु हर उस व्यक्ति के लिए, जो निर्दोष और साफ़दिल था, जो परमेश्वर के प्रति ईमानदार था और उसके द्वारा छुटकारा पाने का इच्छुक था, परमेश्वर का पहला देहधारण बहुत आनंददायक समाचार था। क्योंकि जबसे मनुष्य अस्तित्व में लाए गए हैं, यह पहली बार था जब परमेश्वर एक ऐसे रूप में मानवजाति के बीच प्रकट हुआ और रहा था; जो पवित्रात्मा का रूप नहीं था; इस बार वह मनुष्य से जन्मा था और मनुष्य के पुत्र के रूप में लोगों के बीच रहता था और काम करता था। इस "पहली बार" ने लोगों की धारणाओं को तोड़ डाला; यह सभी कल्पनाओं से परे था। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर के सभी अनुयायियों को एक वास्तविक लाभ प्राप्त हुआ। परमेश्वर ने न केवल पुराने युग को समाप्त किया, बल्कि उसने काम करने की पुरानी पद्धतियों और कार्यशैली को भी समाप्त कर दिया। उसने अब अपने संदेशवाहकों को अपनी इच्छा संप्रेषित करने के लिए नहीं कहा, अब वह बादलों में छिपा हुआ नहीं रहा, और न ही अब वह गर्जना के माध्यम से आज्ञा देते हुए मनुष्यों के समक्ष प्रकट हुआ या उनसे बोला। पहले की किसी भी चीज़ के असदृश, एक ऐसी पद्धति के माध्यम से जो मनुष्यों के लिए अकल्पनीय थी और जिसे समझना और स्वीकार करना उनके लिए कठिन था—देह बनना—वह उस युग का कार्य शुरू करने के लिए मनुष्य का पुत्र बना। परमेश्वर के इस कार्य से मानवजाति हक्की-बक्की रह गई; इसने उन्हें शर्मिंदा कर दिया, क्योंकि परमेश्वर ने एक बार फिर एक नया कार्य शुरू किया, जिसे उसने पहले कभी नहीं किया था।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III

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