परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

भाग पांच

अय्यूब के विषय में

अय्यूब किस प्रकार परीक्षाओं से होकर गुज़रा था इन बातों को सीखने के बाद, तुम में से अधिकांश लोग संभवतः अय्यूब के विषय में और भी अधिक ब्योरों को जानना चाहोगे, खासतौर पर उस रहस्य के सम्बन्ध में जिसके द्वारा उसने परमेश्वर की प्रशंसा को हासिल किया था। अतः आज, आओ हम अय्यूब के बारे में बात करें!

हम अय्यूब के दैनिक जीवन में खराई, सीधाई, परमेश्वर का भय, और बुराई से दूरी को देखते हैं

यदि हमें अय्यूब के बारे में बातचीत करनी है, तो हमें उसके विषय में उस आंकलन के साथ शुरुआत करना होगा जो परमेश्वर के मुख से कहा गया था: "उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है।"

आओ हम सबसे पहले अय्यूब की खराई एवं सीधाई के विषय में सीखें।

तुम लोग "खराई" एवं "सीधाई" के शब्दों से क्या समझ रखते हो? क्या तुम लोग यह मानते हो कि अय्यूब में कोई दोष नहीं था, और वह आदरणीय था? हाँ वास्तव में, यह "खराई" एवं "सीधाई" की एक शाब्दिक अनुवाद एवं समझ होगी। वास्तविक जीवन अय्यूब की सच्ची समझ का अभिन्न भाग है—मात्र शब्द, किताबें, एवं सिद्धान्त कोई उत्तर प्रदान नहीं करेंगे। हम अय्यूब के पारिवारिक जीवन को देखते हुए, और उसके जीवन के दौरान उसका सामान्य आचरण कैसा था उसे देखते हुए शुरुआत करेंगे। यह हमें जीवन में उसके सिद्धान्तों एवं उद्देश्यों, साथ ही साथ उसके व्यक्तित्व एवं अनुसरण (उद्यम) के विषय में भी बताएगा। अब, आओ हम अय्यूब 1:3 के अंतिम शब्दों को पढ़ें: "पूर्वी देशों के लोगों में वह सबसे बड़ा था।" जो कुछ ये शब्द कह रहे हैं वह यह है कि अय्यूब की हैसियत एवं प्रतिष्ठा बहुत ऊंची थी, और यद्यपि हमें यह नहीं बताया गया है कि वह पूर्वी देशों के लोगों में वह सबसे बड़ा अपनी बहुतायत की धन-सम्पत्ति के कारण था, या इसलिए क्योंकि वह खरा एवं सीधा था, और परमेश्वर का भय मानता था और बुराई से दूर रहता था कुल मिलाकर, हम यह जानते हैं कि अय्यूब की हैसियत एवं प्रतिष्ठा बहुत ही मूल्यवान थी। जैसा बाइबल में दर्ज है, अय्यूब के विषय में लोगों की पहली छवि यह थी कि अय्यूब सिद्ध था, यह कि वह परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था, और यह कि उसके पास अपार धन-सम्पत्ति एवं सम्मानीय हैसियत थी। एक साधारण मनुष्य जो ऐसे माहौल में और ऐसी परिस्थितियों के अधीन रहता है, उसके लिए अय्यूब का खान-पान, जीवन की गुणवत्ता, और उसके व्यक्तिगत जीवन के विभिन्न पहलु अधिकांश लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र होगा; इस प्रकार हमें पवित्र शास्त्र से निरन्तर पढ़ना होगा: "उसके बेटे बारी-बारी से एक दूसरे के घर में खाने-पीने को जाया करते थे; और अपनी तीनों बहिनों को अपने संग खाने-पीने के लिये बुलवा भेजते थे। जब जब भोज के दिन पूरे हो जाते, तब तब अय्यूब उन्हें बुलवाकर पवित्र करता, और बड़े भोर को उठकर उनकी गिनती के अनुसार होमबलि चढ़ाता था; क्योंकि अय्यूब सोचता था, 'कदाचित् मेरे लड़कों ने पाप करके परमेश्‍वर को छोड़ दिया हो।' इसी रीति अय्यूब सदैव किया करता था" (अय्यूब 1:4-5)। यह अंश हमें दो चीज़ें बताते हैं: पहला कि अय्यूब के पुत्र एवं पुत्रियां निरन्तर दावत, खाना एवं पीना करते थे; दूसरा कि अय्यूब बार बार होमबलि चढ़ाता था क्योंकि वह अकसर उन लोगों के लिए चिंतित रहता था, इस बात से भयभीत होता था कि वे पाप कर रहे थे, यह कि उन्होंने अपने हृदय में परमेश्वर को कोसा था। इसमें दो अलग अलग प्रकार के लोगों के जीवन का वर्णन किया गया है। पहला, अय्यूब के पुत्र एवं पुत्रियां, जो अपनी सम्पन्नता के कारण अकसर जेवनार करते थे, वे फिज़ूलखर्ची का जीवन जीते थे, वे अपने मन की संतुष्टि के लिए दाखरस पीते और भोज करते थे, उच्च जीवनशैली का आनन्द उठाते थे जो भौतिक सम्पत्ति के द्वारा आया था। ऐसा जीवन जीते हुए, यह अवश्य था कि वे अकसर पाप करेंगे और परमेश्वर को ठेस पहुंचाएंगे—फिर भी इसके परिणामस्वरूप वे अपने आपको शुद्ध नहीं करते थे या होमबलि नहीं चढ़ाते थे। तो तूने देखा कि उनके हृदय में परमेश्वर के लिए कोई स्थान नहीं था, यह कि वे परमेश्वर के अनुग्रह के प्रति कोई विचार नहीं करते थे, न ही वे परमेश्वर को ठेस पहुंचाने से डरते थे, और वे अपने हृदय में परमेश्वर को त्यागने से बिलकुल भी भयभीत नहीं होते थे। हाँ वास्तव में, हमारा ध्यान अय्यूब के बच्चों पर नहीं है, परन्तु हमारा ध्यान उस पर है जो अय्यूब ने किया था जब उसने ऐसी चीज़ों का सामना किया; यह दूसरा मामला है जिसका इस अंश में वर्णन किया गया है, और जिसमें अय्यूब का दैनिक जीवन और उसकी मानवता की हस्ती शामिल थी। जब बाइबल अय्यूब के पुत्र एवं पुत्रियों की जेवनार का जिक्र करती है, तो वहाँ अय्यूब का कोई जिक्र नहीं है; ऐसा कहा गया है कि केवल उसके पुत्र एवं पुत्रियां ही अकसर एक साथ मिलकर खाया और पीया करते थे। दूसरे शब्दों में, उसने जेवनारों का आयोजन नहीं किया था, न ही वह फिज़ूलखर्ची करने के लिए अपने पुत्र एवं पुत्रियों के साथ खाने-पीने में शामिल होता था। हालाँकि वह समृद्ध था, और उसके पास ढेर सारी सम्पत्तियां और सेवक थे, फिर भी अय्यूब का जीवन सुखविलास का नहीं था। उसे जीवन जीने के अपने श्रेष्ठतम माहौल के द्वारा बहकाया नहीं गया था, और उसने देह के सुख विलासों से अपने आपको ठूंस ठूंस कर नहीं भरा या अपनी सम्पत्ति के कारण होमबलि चढ़ाना नहीं भूला, और इससे वह अपने हृदय में धीरे धीरे परमेश्वर से दूर तो बिलकुल भी नहीं हुआ था। तो जाहिर है कि अय्यूब अपनी जीवनशैली में अनुशासित था, और वह लोभी या सुखवादी नहीं था, न ही उसने अपने लिए परमेश्वर की आशीषों के परिणामस्वरूप जीवन की गुणवत्ता को असामान्य रूप से लिया। इसके बजाए, वह नम्र एवं शालीन था, और परमेश्वर के सामने सतर्क एवं सचेत था, वह अकसर परमेश्वर के अनुग्रह एवं आशीषों पर विचार करता था, और वह परमेश्वर से लगातार भयभीत होता था। अपने प्रतिदिन के जीवन में, अय्यूब अकसर अपने पुत्र एवं पुत्रियों के लिए होमबलि चढ़ाने के लिए जल्दी उठा जाता था। दूसरे शब्दों में, न केवल अय्यूब स्वयं परमेश्वर का भय मानता था, बल्कि वह यह आशा भी करता था कि उसके बच्चे भी उसी प्रकार परमेश्वर का भय मानेंगे और परमेश्वर के विरूद्ध पाप नहीं करेंगे। अय्यूब की भौतिक सम्पत्ति का उसके हृदय में कोई स्थान नहीं था, न ही वह परमेश्वर के स्थान को बदल कर सकती थी; चाहे वह स्वयं के लिए हो या उसके बच्चों के लिए, अय्यूब के प्रतिदिन के सभी कार्य परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने से जुड़े हुए थे। यहोवा परमेश्वर के लिए उसका भय उसके मुंह तक नहीं रुका था, परन्तु उसे कार्य रूप में परिणित किया गया था, और वह उसके दैनिक जीवन के प्रत्येक एवं हर एक भाग में प्रतिबिम्बित होता था। अय्यूब के द्वारा प्रदर्शित यह वास्तविक आचरण हमें दिखाता है कि वह ईमानदार था, और उसने उस मूल-तत्व को धारण किया था जो न्याय एवं उन चीज़ो से प्रेम करता था जो सकारात्मकता थे। यह कि अय्यूब अकसर जाता था और अपने बेटे एवं बेटियों को पवित्र करता था इसका अर्थ है कि वह अपने बच्चों के व्यवहार को स्वीकार या मंजूर नहीं करता था, इसके बजाए, वह अपने हृदय में उनके व्यवहार से उकता गया था, और उसने उनकी निन्दा की थी। उसने यह निष्कर्ष निकाला था कि उसके पुत्र एवं पुत्रियों का व्यवहार यहोवा परमेश्वर को प्रसन्न नहीं करता था, और इस प्रकार उसने अकसर कहा था कि वे यहोवा परमेश्वर के सामने जाएं और अपने पापों का अंगीकार करें। अय्यूब के कार्य हमें उसकी मानवता का दूसरा पक्ष दिखाते हैं: एक जिसके अंतर्गत वह कभी उनके साथ नहीं चलता था जो अकसर पाप करते थे और परमेश्वर को ठेस पहुंचाते थे, परन्तु इसके बजाय वह उनसे दूर रहता था और उनसे परहेज करता था। भले ही ये लोग उसके पुत्र एवं पुत्रियां थे, फिर भी उसने अपने सिद्धान्तों को नहीं छोड़ा क्योंकि वे उसके स्वयं के सगे सम्बन्धी थे, न ही वह अपनी स्वयं की भावनाओं के कारण उनके पापों में लिप्त हुआ था। इसके बजाए, उसने उनसे पापों का अंगीकार करने और यहोवा परमेश्वर के धैर्य को हासिल करने का आग्रह किया था, और उसने उन्हें चिताया था कि वे अपने स्वयं के लोभी सुख विलासों के लिए परमेश्वर को न छोड़ें। अय्यूब दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करता था उसके सिद्धान्त परमेश्वर के प्रति उसके भय और बुराई से दूर रहने के सिद्धान्तों से अलग नहीं हैं। वह उससे प्रेम करता था जिसे परमेश्वर के द्वारा स्वीकार किया जाता था, और उससे घृणा करता था जिससे परमेश्वर को नफरत थी, और वह उनसे प्रेम करता था जो अपने हृदय में परमेश्वर का भय मानते थे, और वह उनसे घृणा करता था जिन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध बुराई एवं पाप किया था। ऐसे प्रेम एवं ऐसी घृणा को उसके दैनिक जीवन में प्रदर्शित किया गया था, और यह अय्यूब की वही सीधाई थी जिसे परमेश्वर की आँखों के द्वारा देखा गया था। स्वाभाविक रुप से, अपने दैनिक जीवन में दूसरों के साथ अपने रिश्तों के सम्बन्ध में यह अय्यूब की सच्ची मानवता का प्रकटीकरण और उसे जीना भी है जिसे हमें अवश्य सीखना चाहिए।

अय्यूब की परीक्षाओं के दौरान उसकी मानवता का प्रकटीकरण (अय्यूब की परीक्षाओं के दौरान उसकी खराई, सीधाई, परमेश्वर का भय, और बुराई से दूर रहने समझना)

जो कुछ भी हमने ऊपर कहा है वे अय्यूब की मानवता के विभिन्न पहलु हैं जिन्हें इस परीक्षा से पहले उसके दैनिक जीवन में प्रदर्शित किया गया था। बिना किसी सन्देह के, ये विभिन्न प्रकटीकरण अय्यूब की सीधाई, परमेश्वर के भय, और बुराई से दूर रहने के विषय में एक आरम्भिक हल्की-फुल्की जानकारी एवं समझ प्रदान करते हैं, और स्वाभाविक रूप से एक आरम्भिक दृढ़ीकरण प्रदान करते हैं। मैं "आरम्भिक" क्यों कहता हूँ इसका कारण है क्योंकि अधिकांश लोगों के पास अभी भी अय्यूब के व्यक्तित्व और उस मात्रा की सही समझ नहीं है जिसके तहत उसने परमेश्वर की आज्ञा और भय मानने की रीति का अनुसरण किया था। कहने का तात्पर्य है, अय्यूब के विषय में अधिकांश लोगों की समझ उसके कुछ अनुकूल प्रभाव से परे नहीं जाती है जिन्हें बाइबल में उसके वचनों के द्वारा प्रदान किया गया है कि "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है" और "क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?" इस प्रकार, हमें यह जानने की अत्यंत आवश्यकता है कि अय्यूब ने अपनी मानवता को किस प्रकार से जीया था जब उसने परमेश्वर की परीक्षाओं को प्राप्त किया था; इस प्रकार से, अय्यूब की सच्ची मानवता को उसकी सम्पूर्णता में सब को दिखाया जाएगा।

जब अय्यूब ने यह सुना कि उसकी सम्पत्ति को चुरा लिया गया, उसके बेटे एवं बेटियां ने अपने जीवन को खो दिया, और उसके सेवकों को मार दिया गया, तो उसने निम्नलिखित रूप से प्रतिक्रिया की: "तब अय्यूब उठा, और बागा फाड़, सिर मुँड़ाकर, भूमि पर गिरा और दण्डवत् की" (अय्यूब 1:20)। ये शब्द हमें एक तथ्य बताते हैं: यह समाचार सुनने के बाद, अय्यूब दर्द से नहीं कराहा, वह रोया नहीं, या उन सेवकों पर दोष नहीं लगाया जिन्होंने उसे समाचार दिया था, और उसने क्यों एवं किस लिए की जांच एवं पड़ताल करने के लिए और यह पता लगाने के लिए कि वास्तव में क्या हुआ था हादसे के स्थल का मुआयना बिलकुल भी नहीं किया। उसने अपनी सम्पत्ति के खो जाने पर किसी पीड़ा या खेद का प्रदर्शन नहीं किया, न ही वह अपने बच्चों, एवं अपने प्रियजनों के खो जाने के कारण फूट फूटकर रोया। इसके विपरीत, उसने अपना बागा फाड़ा, और अपना सिर मुंडाया, और भूमि पर गिर गया, और आराधना की। अय्यूब के कार्य किसी भी समान्य मनुष्य के कार्यों से भिन्न थे। वे बहुत से लोगों को भ्रमित करते हैं, और अय्यूब की "निर्ममता" के कारण अपने मन में उसे झिड़कने को मजबूर करते हैं। अपनी सम्पत्ति को अचानक खो देने पर, साधारण लोग अत्यंत दुखी, या निराश दिखाई देते—या, कुछ लोगों के मामले में, शायद वे भारी तनाव में भी आ जाते। यह इसलिए है क्योंकि लोगों के हृदय में उनकी सम्पत्ति जीवनभर के प्रयास को दर्शाती है, यह ऐसा है जिस पर उनका अस्तित्व निर्भर होता है, यह वह आशा है जो उन्हें जीवित रखती है; उनकी सम्पत्ति के नुकसान का अर्थ है कि उनके प्रयास निरर्थक हैं, यह कि उन्हें कोई आशा नहीं है, और यहाँ तक कि उनके पास कोई भविष्य नहीं है। अपनी सम्पत्ति और नज़दीकी रिश्तों के प्रति जो उनका उनके साथ होता है यह किसी भी समान्य व्यक्ति की मनोवृत्ति होती है, और साथ ही यह लोगों की नज़रों में सम्पत्ति का महत्व भी है। उसी रूप में, अधिकांश लोग अय्यूब की सम्पत्ति के नुकसान के प्रति उसकी शांत मनोवृत्ति से भ्रमित महसूस करते हैं। आज, अय्यूब के हृदय के भीतर क्या कुछ चल रहा था उसका वर्णन कारने के द्वारा हम इन सभी लोगों के भ्रम को दूर करने जा रहे हैं।

सामान्य एहसास यह बताता है कि, परमेश्वर के द्वारा इतनी सारी सम्पत्ति दिए जाने के बाद, इन सम्पत्तियों को खोने के कारण अय्यूब को परमेश्वर के सामने शर्मिन्दगी महसूस करना चाहिए, क्योंकि वह उसकी देखरेख या उनका ख्याल नहीं रख पाया था, वह परमेश्वर के द्वारा दी हुई सम्पत्तियों को संभालकर नहीं रख पाया था। इस प्रकार, जब उसने यह सुना कि उसकी सम्पत्ति चुरा ली गई, उसकी सबसे पहली प्रतिक्रिया यह होनी चाहिए थी कि वह हादसे के स्थल में जाए और जो कुछ खो गया था उन सामानों की सूची बनाए, और उसके बाद परमेश्वर के सामने अंगीकार करे ताकि वह एक बार फिर से परमेश्वर की आशीषों को प्राप्त कर सके। तौभी अय्यूब ने ऐसा नहीं किया—और ऐसा न करने के लिए उसके पास उसके स्वयं के कुछ कारण थे। अय्यूब अपने हृदय में गहराई से विश्वास करता था कि जो कुछ भी उसके पास था वह उसे परमेश्वर के द्वारा प्रदान किया गया था, और उसके स्वयं के परिश्रम से यह वापस नहीं आता। इस प्रकार, उसने इन आशीषों को एक ऐसी चीज़ के रूप में नहीं देखा था कि उससे लाभ उठाया जाए, परन्तु अपने जीवन के सिद्धान्तों के रूप में वह उस मार्ग पर किसी भी कीमत पर मज़बूती से बना रहा जिस पर उसे बने रहना चाहिए था। उसने परमेश्वर की आशीषों को हृदय में संजोकर रखा, और उनके लिए धन्यवाद दिया, परन्तु वह और अधिक आशीषों के लिए लालायित नहीं हुआ, न ही उसने और अधिक आशीषों की खोज की। अपनी सम्पत्ति के प्रति उसकी मनोवृत्ति यही थी। न तो उसने आशीषें प्राप्त करने के लिए कुछ किया, न ही वह परमेश्वर की आशीषों की कमी या नुकसान के द्वारा दुखित हुआ; न ही वह परमेश्वर की आशीषों के कारण अनियन्त्रित एवं उन्मत रूप से प्रसन्न हुआ, न ही उसने उन आशीषों के कारण जिनका वह लगातार आनन्द उठता था परमेश्वर के मार्गों की उपेक्षा की या परमेश्वर के अनुग्रह को भुलाया। अपनी सम्पत्ति के प्रति अय्यूब की मनोवृत्ति लोगों पर उसकी सच्ची मानवता को प्रकट करती है: पहली बात, अय्यूब एक लोभी मनुष्य नहीं था, और वह अपने भौतिक जीवन में और अधिक वस्तुओं की चाहत करनेवाला मनुष्य नहीं था। दूसरी बात, अय्यूब ने इस बात की कभी चिंता नहीं की या इससे कभी नहीं डरा कि परमेश्वर वह सब ले लेगा जो उसके पास था, जो परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता के विषय में उसकी मनोवृत्ति थी; अर्थात्, उसके पास कोई मांग या शिकायतें नहीं थीं कि कब या क्या परमेश्वर उससे सब कुछ ले लेगा, और उसने कोई कारण भी नहीं पूछा था कि क्यों ले लेगा, परन्तु उसने केवल परमेश्वर के प्रबंधों को मानने की कोशिश की थी। तीसरी बात, उसने कभी भी यह नहीं माना था कि उसकी सम्पत्तियां उसके प्रयासों से आई थीं, परन्तु यह कि उन्हें परमेश्वर के द्वारा उसे प्रदान किया गया था। यह परमेश्वर पर अय्यूब का विश्वास था, और यह उसकी आस्था का संकेत था। क्या अय्यूब की मानवता और उसके प्रतिदिन के सच्चे अनुसरण को उसके सारांश के तीन बिन्दुओं में स्पष्ट किया गया था? अय्यूब की मानवता एवं अनुसरण (उद्यम) उसके शान्त आचरण के अभिन्न भाग थे जब उसने अपनी सम्पत्ति के खो जाने का सामना किया था। यह बिलकुल ऐसा ही था क्योंकि उसके प्रतिदिन के अनुसरण के कारण अय्यूब के पास परमेश्वर की परीक्षाओं के दौरान ऐसा डीलडौल एवं दृढ़ विश्वास था कि उसने कहा, "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है," इन शब्दों को रातों-रात हासिल नहीं किया गया था, न ही वे बस यों ही अय्यूब के दिमाग में उछलने लगे थे। ये ऐसी चीज़ें थीं जिन्हें उसने कई सालों तक जीवन का अनुभव करने के दौरान देखा एवं अर्जित किया था। उन सभों की तुलना में जो केवल परमेश्वर की आशीषों को ही खोजते हैं, और जो इस बात से डरते हैं कि परमेश्वर उन्हें उनसे ले लेगा, वे इस बात से नफरत करते हैं और इसके विषय में शिकायत करते हैं, क्या अय्यूब की आज्ञाकारिता बिलकुल भी वास्तविक नहीं है? उन सभों की तुलना में जो यह विश्वास करते हैं कि परमेश्वर है, परन्तु जिन्होंने कभी यह विश्वास नहीं किया है कि परमेश्वर सभी चीज़ों के ऊपर शासन करता है, क्या अय्यूब बड़ी ईमानदारी एवं सच्चाई धारण नहीं करता है?

अय्यूब की वैचारिक शक्ति

अय्यूब के वास्तविक अनुभव और उसकी सीधी एवं सच्ची मानवता का अर्थ था कि उसने बहुत ही न्यायसंगत निर्णय एवं चुनाव किया था जब उसने अपनी सम्पत्तियों और अपने बच्चों को खो दिया था। ऐसे न्यायसंगत चुनाव उसके प्रतिदिन के अनुसरण (उद्यमों) और परमेश्वर के कार्यां से अविभाज्य थे जिन्हें उसने अपने दिन प्रति दिन के जीवन के दौरान जाना था। अय्यूब की ईमानदारी ने उसे यह विश्वास करने के काबिल बनाया कि यहोवा का हाथ सभी चीज़ों के ऊपर शासन करता है; उसके विश्वास ने उसे इस सत्य को जानने की अनुमति दी कि यहोवा परमेश्वर की संप्रभुता सभी चीज़ों के ऊपर है; उसके ज्ञान ने उसे यहोवा परमेश्वर की संप्रभुता एवं इंतज़ामों को मानने के लिए तैयार किया और उसे योग्य बनाया; उसकी आज्ञाकारिता ने यहोवा परमेश्वर के प्रति उसके भय में उसे और भी अधिक सच्चा होने के योग्य बनाया; उसके भय ने बुराई से दूर रहने में उसे और भी अधिक योग्य बनाया; आखिरकार, अय्यूब सिद्ध बन गया क्योंकि वह परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था; और उसकी सिद्धता ने उसे अधिक बुद्धिमान बना दिया, और उसे बहुत अधिक वैचारिक शक्ति प्रदान की।

हमें "न्यायसंगत" शब्द को किस प्रकार समझना चाहिए? यह एक शाब्दिक अनुवाद है जिसका अर्थ है अच्छी भावना होना, अपनी सोच में तार्किक एवं संवेदनशील होना, अच्छे बोल होना, अच्छे कार्य करना, और न्यायप्रिय होना, और अच्छे एवं नियमित नैतिक मानकों को धारण करना। फिर भी अय्यूब की वैचारिक शक्ति को इतनी आसानी से समझाया नहीं जा सकता है। जब ऐसा कहा जाता है कि अय्यूब अत्याधिक वैचारिक शक्ति धारण करता था, तो यह उसकी मानवता और परमेश्वर के सामने उसके आचरण के सम्बन्ध में होता है। क्योंकि अय्यूब ईमानदार था, वह परमेश्वर की संप्रभुता पर विश्वास करने और उसको मानने के योग्य था, जिसने उसे ऐसा ज्ञान दिया जिसे दूसरों के द्वारा हासिल नहीं किया जा सकता था, और इस ज्ञान ने उसे काबिल बनाया कि वह उन आपदाओं को और भी अधिक सटीकता से परखे, उनका न्याय करे और उन्हें परिभाषित करे जो उस पर आई थीं, जिसने उसे योग्य किया था कि वह और भी अधिक सटीकता एवं जल्दी से चुनाव करे कि उसे क्या करना है और किस बात को दृढ़ता से थामे रहना है। कहने का तात्पर्य है कि उसके शब्द, व्यवहार, एवं उसके कार्यों के पीछे के सिद्धान्त, और वह नियम जिसके द्वारा उसने कार्य किया था, वे नियमित, स्पष्ट एवं विशिष्ट थे, और वे अंधे, आवेगपूर्ण या भावनात्मक नहीं थे। वह जानता था कि जो भी आपदा उस पर आई थी उससे कैसे निपटा जाए, वह जानता था कि जटिल घटनाओं के बीच सम्बन्धों को कैसे सम्भाला एवं सन्तुलित किया जाए, वह जानता था कि उन मार्गों को कैसे दृढ़ता से थामा जाए जिन्हें थमा जाना चाहिए, और, इसके अतिरिक्त, वह जानता था कि यहोवा परमेश्वर के देने एवं ले लेने के विषय में कैसा व्यवहार किया जाए। यही अय्यूब की सबसे बड़ी वैचारिक शक्ति थी। यह बिलकुल ऐसा ही था क्योंकि अय्यूब ऐसी वैचारिक शक्ति से सुसज्जित था कि उसने कहा, "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है," जब उसने अपनी सम्पत्तियों और अपने बेटे एवं बेटियों को खो दिया था।

जब अय्यूब का सामना उसके शरीर के अत्याधिक कष्ट से, और अपने परिवार के लोगों एवं मित्रों के ऐतराज से हुआ, और जब उसका सामना मृत्यु से हुआ, तो उसके वास्तविक व्यवहार ने एक बार फिर से सभी के सामने उसके सच्चे चेहरे को प्रदर्शित किया।

The Bible verses found in this audio are mostly from Hindi OV and the copyright to the Bible verses from Hindi OV belongs to Bible Society India. With due legal permission, they are used in this production.

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