स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

परमेश्वर का अधिकार (I) भाग पांच

नीचे दिए गए वचन परमेश्वर के अधिकार को जानने के लिए अति आवश्यक हैं, और उन का अर्थ नीचे सभा के विचार विमर्श में दिया गया है। आओ हम निरन्तर पवित्र शास्त्र को पढ़ते रहें।

4. शैतान को परमेश्वर की आज्ञा

(अय्यूब 2:6) यहोवा ने शैतान से कहा, "सुन, वह तेरे हाथ में है, केवल उसका प्राण छोड़ देना।"

शैतान ने कभी सृष्टिकर्ता के अधिकार का उल्लंघन करने की हिम्मत नहीं की है, और इसी वजह से, सभी जीवित प्राणी व्यवस्था के अनुसार रहते हैं

यह अय्यूब की पुस्तक में से एक लघु अंश है, और इन वचनों में "वह" शब्द अय्यूब की ओर संकेत करता है। हालांकि यह वाक्य छोटा सा है, फिर भी यह वाक्य बहुत सारे विषयों पर प्रकाश डालता है। यह आत्मिक संसार में परमेश्वर और शैतान के बीच वार्तालाप की व्याख्या करता है, और हमें यह बताता है कि परमेश्वर के वचनों का उद्देश्य शैतान था। यह इस बात को भी दर्शाता है कि यह वाक्य परमेश्वर द्वारा विशेष रूप से क्यों कहा गया था। परमेश्वर का वचन शैतान के लिए एक आज्ञा और आदेश है। इस विशेष आदेश का वर्णन अय्यूब के प्राण को छोड़ देने और अय्यूब के जीवन में शैतान के बर्ताव में एक रेखा खींचे जाने से सम्बन्धित है—शैतान को अय्यूब के प्राण को छोड़ देना था। पहली बात जो हम इस वाक्य से सीखते हैं वह यह है कि ये परमेश्वर के द्वारा शैतान को कहे गए वचन थे। अय्यूब की पुस्तक के मूल पाठ के अनुसार, यह हमें निम्नलिखित बातों एवं ऐसे शब्दों की पृष्ठभूमि के बारे में बताता हैः शैतान अय्यूब पर दोष लगाना चाहता था, और इस प्रकार उसकी परीक्षा लेने से पहले उसे परमेश्वर से सहमति लेना था। अय्यूब की परीक्षा लेने हेतु परमेश्वर से सहमति लेते समय, परमेश्वर ने शैतान के सामने निम्नलिखित शर्तें रखीं: "सुन, वह तेरे हाथ में हैं; केवल उसका प्राण छोड़ देना।" इन शब्दों की प्रकृति क्या है? वे स्पष्ट रीति से एक आज्ञा है, एक आदेश है। इन शब्दों के स्वभाव को समझने के बाद, तुम वास्तव में यह आभास कर सकते हो कि आज्ञा देने वाला परमेश्वर है, और आज्ञा को पाने वाला और उसका पालन करने वाला वह शैतान है। ऐसा कहने की आवश्यकता नहीं है, कि इस आदेश में परमेश्वर और शैतान के बीच का रिश्ता उसके सामने प्रकट है जो इन वचनों को पढ़ता है। वास्तव में, यह आत्मिक संसार में परमेश्वर और शैतान के बीच का रिश्ता भी है, और परमेश्वर और शैतान की पहचान और स्थिति के बीच का अन्तर भी है, जिन्हें पवित्र शास्त्र में परमेश्वर और शैतान के बीच हुए वार्तालाप के लेखों में प्रदान किया गया है, और अब तक यह विशिष्ट उदाहरण और पाठ संबंधी लेखा जोखा है जिसमें मनुष्य परमेश्वर और शैतान की पहचान और हैसियत के मध्य के निश्चित अन्तर को सीख सकता है। इस बिन्दु पर, मुझे कहना होगा कि इन वचनों का लेखा जोखा मानवजाति द्वारा परमेश्वर की पहचान व है सियत को जानने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, और यह मानवजाति को परमेश्वर के ज्ञान की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। आत्मिक संसार में सृष्टिकर्ता और शैतान के मध्य हुए वार्तालाप से, मनुष्य सृष्टिकर्ता के अधिकार के एक और विशिष्ट पहलू को समझने में सक्षम हो गया है। ये वचन सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार की एक और गवाही है।

बाहरी रूप से, वे यहोवा परमेश्वर और शैतान के बीच हुए वार्तालाप हैं। उनकी हस्ती यह है कि वह मनोवृत्ति जिसके तहत यहोवा परमेश्वर बात करता है, और वह पदवी जिस में हो कर वह बात करता है, वे शैतान से बढ़कर हैं। अर्थात् यह कि यहोवा परमेश्वर आदेश देने के अन्दाज़ में शैतान को आज्ञा दे रहा है, और शैतान को बता रहा है कि उसे क्या करना है और क्या नहीं करना है, अय्यूब पहले से ही उसके हाथ में है, और यह कि जैसा वह चाहता है अय्यूब के साथ वैसा बर्ताव कर सकता है—परन्तु उसका प्राण नहीं ले सकता है। सहायक पाठ यह है, यद्यपि अय्यूब को शैतान के हाथों में छोड़ दिया गया, परन्तु उसका जीवन शैतान को सौंपा नहीं गया; परमेश्वर के हाथों से अय्यूब के प्राण को कोई नहीं ले सकता है जब तक परमेश्वर इस की अनुमति नहीं देता है। शैतान को दी गई इस आज्ञा में परमेश्वर की मनोवृत्ति को स्पष्ट रीति से व्यक्त किया गया है, और यह आज्ञा उस गौरवपूर्ण पदवी को भी प्रकट और प्रकाशित करता है जिसमें होकर यहोवा परमेश्वर शैतान से बातचीत करता है। इस में, यहोवा परमेश्वर ने न केवल उस परमेश्वर का दर्जा प्राप्त किया है जिस ने उजियाला, और हवा, और सभी चीज़ों और जीवित प्राणियों को बनाया है, और उस परमेश्वर का जो सभी चीज़ों और जीवित प्राणियों के ऊपर प्रधान है, बल्कि उस परमेश्वर का भी दर्जा प्राप्त किया है जो मानवजाति को आज्ञा देता है, और अधोलोक को आज्ञा देता है, और उस परमेश्वर का जो सभी जीवित प्राणियों के जीवन और मरण को नियन्त्रित करता है। आत्मिक संसार में, परमेश्वर के अलावा किसके पास हिम्मत है कि शैतान को ऐसा आदेश दे? और परमेश्वर ने व्यक्तिगत रूप से शैतान को अपना आदेश क्यों दिया? क्योंकि मनुष्य का जीवन, जिसमें अय्यूब भी शामिल है, परमेश्वर के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है। परमेश्वर ने शैतान को अय्यूब को नुकसान पहुँचाने या उसके प्राण लेने की अनुमति नहीं दी थी, अर्थात् यह कि परमेश्वर द्वारा शैतान को अय्यूब की परीक्षा लेने की अनुमति देने के बस पहले से ही, परमेश्वर को स्मरण था कि उसे विशेष तौर पर एक आज्ञा देना है, और एक बार फिर से उसने शैतान को आज्ञा दी कि वह अय्यूब का प्राण नहीं ले सकता है। शैतान की कभी भी यह हिम्मत नहीं हुई है कि वह परमेश्वर के अधिकार का उल्लंघन करे, और इसके अतिरिक्त, उसने हमेशा परमेश्वर के आदेशों और विशेष आज्ञाओं को सावधानीपूर्वक सुना है और उनका पालन किया है, उनको चुनौती देने की कभी हिम्मत नहीं की है, और वास्तव में, परमेश्वर की किसी आज्ञा को कभी खुल्लमखुल्ला पलटने की हिम्मत नहीं की है। वे सीमाएँ ऐसी ही हैं जिन्हें परमेश्वर ने शैतान के लिए निर्धारित किया, और इस प्रकार शैतान ने कभी इन सीमाओं को लाँघने की हिम्मत नहीं की है। क्या यह परमेश्वर के अधिकार की शक्ति नहीं है? क्या यह परमेश्वर के अधिकार की गवाही नहीं है? कि परमेश्वर के प्रति कैसा आचरण करें, और परमेश्वर को कैसे देखें, शैतान के पास मानवजाति से कहीं अधिक स्पष्ट आभास हैं, और इस प्रकार, आत्मिक संसार में, शैतान परमेश्वर के अधिकार व उसके स्थान को बिलकुल साफ साफ देखता है, और उसके पास परमेश्वर के अधिकार की शक्ति और उसके अधिकार के इस्तेमाल के पीछे के सिद्धांतों की गहरी समझ है। उन्हें नज़रअन्दाज़ करने की हिम्मत वह बिलकुल भी नहीं करता है, न ही वह उन्हें किसी भी तरीके से तोड़ने की हिम्मत करता है, या न ही वह ऐसा कुछ करता है जिस से परमेश्वर के अधिकार का उल्लंघन हो, और वह किसी भी रीति से परमेश्वर के क्रोध को चुनौती देने की हिम्मत नहीं करता है। यद्यपि वह अपने स्वभाव में बुरा और घमण्डी है, फिर भी उसने परमेश्वर के द्वारा उसके लिए निर्धारित सीमाओं को लाँघने की कभी हिम्मत नहीं की है। लाखों सालों से, वह कड़ाई से इन सीमाओं में बना रहा, और परमेश्वर के द्वारा उसे दिए गए हर आज्ञा और आदेश के साथ बना रहा, और कभी उस निशान के पार पैर रखने की हिम्मत नहीं की। यद्यपि वह डाह करनेवाला है, तो भी शैतान पतित मानवजाति से ज़्यादा "चतुर" है; वह सृष्टिकर्ता की पहचान को जानता है, और अपनी स्वयं की सीमाओं को जानता है। शैतान के "आज्ञाकरी" कार्यों से यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ स्वर्गीय आदेश है जिनका उल्लंघन शैतान के द्वारा नहीं किया जा सकता है, और यह उचित मायने में परमेश्वर के अधिकार और अद्वितीयता के कारण है कि सभी चीज़ें क्रमागत रीति से बदलती और बढ़ती हैं, क्योंकि मानवजाति परमेश्वर द्वारा ठहराए गए जीवन क्रम के भीतर रह सकते हैं और बहुगुणित हो सकते हैं, और कोई व्यक्ति या तत्व इस व्यवस्था में उथल पुथल नहीं कर सकता है, और कोई व्यक्ति या तत्व इस नियम को बदलने में सक्षम नहीं है—क्योंकि वे सभी सृष्टिकर्ता के हाथों, और सृष्टिकर्ता के आदेश और अधिकार से आते हैं।

केवल परमेश्वर ही, जिसके पास सृष्टिकर्ता की पहचान है, अद्वितीय अधिकार रखता है

शैतान की "विशिष्ट" पहचान ने बहुत से लागों से उसके विभिन्न पहलुओं के प्रकटीकरण में गहरी रूचि का प्रदर्शन करवाया है। यहाँ तक कि बहुत से मूर्ख लोग भी हैं जो यह विश्वास करते हैं कि, परमेश्वर के साथ ही साथ, शैतान भी आधिकार रखता है, क्योंकि शैतान आश्चर्यकर्म करने में सक्षम है, और ऐसी चीज़ें करने में सक्षम है जो मानवजाति के लिए असंभव हैं। और इस प्रकार, परमेश्वर की आराधना करने के अतिरिक्त, मानवजाति अपने हृदय में शैतान के लिए भी एक स्थान आरक्षित रखता है, और परमेश्वर के रूप में शैतान की भी आराधना करता है। ये लोग दयनीय और घृणित दोनों हैं। उनकी अज्ञानता के कारण वे दयनीय हैं, और अपनी झूठी शिक्षाओं और अंतर्निहित बुराई के तत्व के कारण घृणित हैं। इस बिन्दु पर, मैं महसूस करता हूँ कि तुम लोगों को जानकारी दूँ कि अधिकार क्या है, और यह किस की ओर संकेत करता है, और यह किसे दर्शाता है। व्यापक रूप से कहें, परमेश्वर स्वयं ही अधिकार है, उसका अधिकार उसकी श्रेष्ठता और हस्ती की ओर संकेत करती है, और स्वयं परमेश्वर का अधिकार परमेश्वर के स्थान और पहचान को दर्शाता है। इस स्थिति में, क्या शैतान यह कहने की हिम्मत करता है कि वह स्वयं परमेश्वर है? क्या शैतान यह कहने की हिम्मत करता है कि उसने सभी चीज़ों को बनाया है; और सभी चीज़ों के ऊपर प्रधान है? वास्तव में बिलकुल नहीं! क्योंकि वह किसी भी चीज़ को बनाने में असमर्थ है; अब तक, उसने परमेश्वर के द्वारा सृजी गई वस्तुओं में से कुछ भी नहीं बनाया है, और कभी ऐसा कुछ नहीं बनाया है जिसमें जीवन हो। क्योंकि उसके पास परमेश्वर का अधिकार नहीं है, इसलिए उसके लिए कभी भी परमेश्वर की हैसियत और पहचान प्राप्त करना सम्भव नहीं होगा, और यह उसकी हस्ती के द्वारा निश्चित होता है। क्या उसके पास परमेश्वर के समान सामर्थ है? वास्तव में उसके पास बिलकुल नहीं है! हम शैतान के ऐसे कार्यों को, और शैतान द्वारा प्रदर्शित चमत्कारों को क्या कहते हैं? क्या यह सामर्थ है? क्या इसे अधिकार कहा जा सकता है? वास्तव में नहीं! शैतान बुराई की लहर को दिशा देता है, और परमेश्वर के कार्य के हर एक पहलू में अस्थिरता, बाधा, और रूकावट डालता है। पिछले कई हज़ार सालों से, मानवजाति को बिगाड़ने और शोषित करने, और भ्रष्ट करने हेतु लुभाने और धोखा देने, और परमेश्वर का तिरस्कार करने के अलावा उसने क्या किया है, इसलिए मनुष्य अँधकार से भरी मृत्यु की घाटी की ओर चला जाता है, क्या शैतान ने ऐसा कुछ किया है जिससे वह मनुष्य के द्वारा उत्सव मनाने, तारीफ करने, या दुलार पाने हेतु ज़रा सा भी योग्य है? यदि शैतान के पास अधिकार और सामर्थ होता, तो क्या उससे मानवजाति भ्रष्ट हो जाती? यदि शैतान के पास अधिकार और सामर्थ होता, तो क्या उससे मानवजाति को नुकसान पहुँचा दिया गया होता? यदि शैतान के पास अधिकार और सामर्थ होता, तो क्या मनुष्य परमेश्वर को छोड़कर मृत्यु की ओर मुड़ जाता? जबकि शैतान के पास कोई अधिकार और सामर्थ नहीं है, तो वह सब कुछ जो वह करता है उनकी हस्ती के विषय में हमें क्या निष्कर्ष निकालना चाहिए? ऐसे लोग भी हैं जो यह अर्थ निकालते हैं कि जो कुछ भी शैतान करता है वह महज एक छल है, फिर भी मैं विश्वास करता हूँ कि ऐसी परिभाषा उतनी उचित नहीं है। क्या मानवजाति को भ्रष्ट करने के लिए उसके बुरे कार्य महज एक छल हैं? वह बुरी शक्ति जिसके द्वारा शैतान ने अय्यूब का शोषण किया, और उसका शोषण करने और उसे नष्ट करने की उसकी प्रचण्ड इच्छा को, संभवतः महज छल के द्वारा प्राप्त नहीं की जा सकती था। पीछे मुड़कर देखने से, हम एक पल में यह देखते हैं कि अय्यूब के पशुओं का झुण्ड और समूह, पहाड़ों और पर्वतों में दूर दूर तक फैल हुआ है, और एक पल में; सब कुछ चला गया, अय्यूब का महान सौभाग्य ग़ायब हो गया। क्या इसे महज छल के द्वारा प्राप्त किया जा सकता था? उन सब कार्यों का स्वभाव जो शैतान करता है वे नकारात्मक शब्दों जैसे अड़चन डालना, रूकावट डालना, नुकसान पहुँचाना, बुराई, ईष्या, और अँधकार के साथ मेल खाते हैं और बिलकुल सही बैठते हैं, और इस प्रकार उन सबका घटित होना अधर्म और बुरा है और इसे पूरी तरह शैतान के कार्यों के साथ जोड़ा जाता है, और इसे शैतान के बुरी हस्ती से जुदा नहीं किया जा सकता है। इसके बावजूद कि शैतान कितना "सामर्थी" है, इसके बावजूद कि वह कितना ढीठ और महत्वाकांक्षी है, इसके बावजूद कि नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता कितनी बड़ी है, इसके बावजूद कि उसकी तकनीक का दायरा कितना व्यापक है जिससे वह मनुष्य को बिगाड़ता और लुभाता है, इसके बावजूद कि उसके छल और प्रपंच कितने चतुर हैं जिससे वह मनुष्य को डराता है, इसके बावजूद कि वह रूप जिसमें वह अस्तित्व में रहता है कितना परिवर्तनशील है, वह एक भी जीवित प्राणी को बनाने में कभी सक्षम नहीं हुआ है, और सभी चीज़ों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाओं और नियमों को लिखने में कभी सक्षम नहीं हुआ है, और किसी तत्व, चाहे जीवित हो या निर्जीव, पर शासन और नियन्त्रण करने में भी कभी सक्षम नहीं हुआ है। पूरे विश्व के व्यापक फैलाव में, एक भी व्यक्ति या तत्व नहीं है जो उससे उत्पन्न हुआ है, या उसके द्वारा अस्तित्व में बना हुआ है; एक भी व्यक्ति या तत्व नहीं है जिस पर उसके द्वारा शासन किया जाता है, या उसके द्वारा नियन्त्रण किया जाता है। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन जीना है, किन्तु, इसके अतिरिक्त, उसे परमेश्वर के सारे आदेशों और आज्ञाओं को भी मानना होगा। परमेश्वर की आज्ञा के बिना शैतान के लिए पानी की एक बूँद या रेत के एक कण को जो भूमि की सतह पर है छूना भी कठिन है; परमेश्वर की आज्ञा के बिना, शैतान के पास इतनी भी आज़ादी नहीं है कि वह भूमि की सतह पर से एक चींटी को हटा सके—यह काम केवल मनुष्य कर सकता है, जिसे परमेश्वर द्वारा सृजा गया था। परमेश्वर की नज़रों में शैतान पहाड़ों के सोसन फूलों, हवा में उड़ते हुए पक्षियों, समुद्र की मछलियों, और पृथ्वी के कीड़े मकौड़ों से भी कमतर है। सभी चीज़ों के बीच में उसकी भूमिका है कि वह सभी चीज़ों की सेवा करे, और मानवजाति के लिए सेवा करे, और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधकीय योजना की सेवा करे। इसके बावजूद कि उसका स्वभाव कितना ईर्ष्यालु है, और उसकी हस्ती कितनी बुरी है, एकमात्र कार्य जो वो कर सकता है वह है आज्ञाकारिता से अपने कार्यों के साथ बना रहेः परमेश्वर की सेवा में लगा रहे, और परमेश्वर के कार्यों में सुर में सुर मिलाए। शैतान का सार-तत्व और हैसियत ऐसा ही है। उसकी हस्ती जीवन से जुड़ी हुई नहीं है, सामर्थ से जुड़ा हुआ नहीं है, अधिकार से जुड़ा हुआ नहीं है; वह परमेश्वर के हाथों में मात्र एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में मात्र एक मशीन!

शैतान के वास्तविक चेहरे को समझने के बाद भी, बहुत से लोग नहीं जानते हैं कि अधिकार क्या है, मैं तुम्हें बताता हूँ! स्वयं अधिकार को परमेश्वर की सामर्थ के रूप में वर्णन नहीं किया जा सकता है। पहले, यह निश्चितता के साथ कहा जा सकता है कि अधिकार और सामर्थ दोनों सकारात्मक हैं। उन का किसी नकारात्मक चीज़ से कोई संबंध नहीं है, और किसी भी सृजे गए प्राणी और न सृजे गए प्राणी से जुड़ा हुआ नहीं हैं। परमेश्वर अपनी सामर्थ से किसी भी तरह की चीज़ की सृष्टि कर सकता है जिनके पास जीवन और चेतना हो, और यह परमेश्वर के जीवन के द्वारा निर्धारित होता है। परमेश्वर जीवन है, इस प्रकार वह सभी जीवित प्राणियों का स्रोत है। इसके आगे, परमेश्वर का अधिकार सभी जीवित प्राणियों को परमेश्वर के हर एक वचन का पालन करवा सकता है, अर्थात् परमेश्वर के मुँह के वचनों के अनुसार अस्तित्व में आना, और परमेश्वर की आज्ञाओं के अनुसार जीना और पुनः उत्पन्न करना, उसके बाद परमेश्वर सभी जीवित प्राणियों पर शासन करता और आज्ञा देता है, और उस में कभी कोई भूल नहीं होगी, हमेशा हमेशा के लिए। किसी व्यक्ति या तत्व में ये चीज़ें नहीं हैं; केवल सृष्टिकर्ता ही ऐसी सामर्थ को धारण करता और रखता है, और इसलिए इसे अधिकार कहा जाता है। यह सृष्टिकर्ता का अनोखापन है। इस प्रकार, इसके बावजूद कि वह शब्द स्वयं "अधिकार" है या इस अधिकार की हस्ती, प्रत्येक को सिर्फ सृष्टिकर्ता के साथ ही जोड़ा जा सकता है, क्यों क्योंकि यह सृष्टिकर्ता की अद्वितीय पहचान व हस्ती का एक प्रतीक है, और यह सृष्टिकर्ता की पहचान और हैसियत को दर्शाता है; सृष्टिकर्ता के अलावा, किसी भी व्यक्ति या तत्व को इस शब्द "अधिकार" के साथ जोड़ा नहीं जा सकता है। यह सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार का अर्थ है।

यद्यपि शैतान अय्यूब को लालच भरी नज़रों से देख रहा था, परन्तु बिना परमेश्वर की इजाज़त के उसके पास अय्यूब के शरीर के एक बाल को भी छूने की हिम्मत नहीं थी। यद्यपि वह स्वाभाविक रूप से बुरा और निर्दयी है, किन्तु परमेश्वर के द्वारा उसे आज्ञा देने के बाद, शैतान के पास उसकी आज्ञा में बने रहने के सिवाए और कोई विकल्प नहीं था। और इस प्रकार, जब शैतान अय्यूब के पास आया, तो भले ही वह भेड़ों के बीच में एक भेड़िए के समान उन्माद में था, परन्तु उसने परमेश्वर द्वारा तय की गई सीमाओं को भूलने की हिम्मत नहीं की, और जो कुछ भी उसने किया उसमें उसने परमेश्वर के आदेशों को तोड़ने की हिम्मत नहीं की, और शैतान को परमेश्वर के वचनों के सिद्धांतों और सीमाओं से दूर जाने की हिम्मत नहीं हुई—क्या यह एक प्रमाणित सत्य नहीं है? इससे यह देखा जा सकता है कि शैतान को यहोवा परमेश्वर के किसी भी वचनों का विरोध करने की हिम्मत नहीं हुई। शैतान के लिए, परमेश्वर के मुँह का हर एक वचन एक आदेश है, और एक स्वर्गीय नियम है, और परमेश्वर के अधिकार का प्रकटीकरण है—क्योंकि परमेश्वर के हर एक वचन के पीछे, उनके लिए जो परमेश्वर के आदेशों को तोड़ते हैं, और जो स्वर्गीय व्यवस्थाओं की अनाज्ञाकारिता और विरोध करते हैं, परमेश्वर का दण्ड निहित है। शैतान स्पष्ट रीति से जानता है कि यदि उसने परमेश्वर के आदेशों को तोड़ा, तो उसे परमेश्वर के अधिकार के उल्लंघन करने, और स्वर्गीय व्यवस्थाओं का विरोध करने का परिणाम स्वीकार करना होगा। और ये परिणाम क्या हैं? ऐसा कहने की आवश्यकता नहीं है, वास्तव में ये परमेश्वर के द्वारा उसे दिए गए दण्ड हैं। अय्यूब के खिलाफ शैतान के कार्य उसके द्वारा मनुष्य की भ्रष्टता का एक छोटा सा दृश्य था, और जब शैतान इन कार्यों को अन्जाम दे रहा था, तब वे सीमाएँ जिन्हें परमेश्वर ने ठहराया था और वे आदेश जिन्हें उसने शैतान को दिया था, वे जो कुछ शैतान करता है उन सब के पीछे के सिद्धांतों की महज एक छोटी सी झलक थी। इसके अतिरिक्त, इस मामले में शैतान की भूमिका और पद परमेश्वर के प्रबन्ध के कार्य में उसकी भूमिका और पद का मात्र एक छोटा सा दृश्य था, और शैतान के द्वारा अय्यूब की परीक्षा में परमेश्वर के प्रति उसकी सम्पूर्ण आज्ञाकारिता की महज एक छोटी सी तस्वीर थी कि किस प्रकार शैतान ने परमेश्वर के प्रबन्ध के कार्य में परमेश्वर के विरूद्ध ज़रा सा भी विरोध करने का साहस नहीं किया। ये सूक्ष्म दर्शन तुम लोगों को क्या चेतावनी देते हैं? शैतान समेत सभी चीजों में से ऐसा कोई व्यक्ति या चीज़ नहीं है जो सृष्टिकर्ता द्वारा निर्धारित स्वर्गीय कानूनों और संपादनों का उल्लंघन कर सकती है, और किसी व्यक्ति या तत्व की इतनी हिम्मत नहीं है जो सृष्टिकर्ता द्वारा स्थापित की गयी इन स्वर्गीय व्यवस्थाओं और आदेशों को तोड़ सके, क्योंकि ऐसा कोई व्यक्ति या तत्व नहीं है जो उस दण्ड को पलट सके या उससे बच सके जिसे सृष्टिकर्ता उसकी आज्ञा न मानने वाले लोगों को देगा। केवल सृष्टिकर्ता ही स्वर्गीय व्यवस्थाओं और आदेशों को बना सकता है, केवल सृष्टिकर्ता के पास ही उन्हें प्रभाव में लाने की सामर्थ है, और किसी व्यक्ति या तत्व के द्वारा मात्र सृष्टिकर्ता की सामर्थ का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। यह सृष्टिकर्ता की अद्वितीय सामर्थ है, यह सामर्थ सभी चीज़ों में सर्वोपरि है, और इस प्रकार, यह कहना नामुमकिन है कि "परमेश्वर सबसे महान है, और शैतान दूसरे नम्बर में है।" उस सृष्टिकर्ता को छोड़ जिस के पास अद्वितीय अधिकार है, और कोई परमेश्वर नहीं है!

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