स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI

परमेश्वर की पवित्रता (III) भाग तीन

मैं जानता हूँ कि बहुत सारे लोग अपेक्षा कर रहे हैं कि मैं कहूँ कि वास्तव में परमेश्वर की पवित्रता क्या है, परन्तु जब मैं परमेश्वर की पवित्रता के बारे में बात करता हूँ तो मैं सबसे पहले उन कार्यों के बारे में बात करूँगा जिन्हें परमेश्वर करता है। तुम लोगों को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए, तब मैं तुम लोगों से पूछूँगा कि परमेश्वर की पवित्रता वास्तव में क्या है। मैं तुम लोगों को सीधे तौर पर नहीं बताऊँगा, परन्तु इसके बजाए तुम लोगों को ही इसे पता लगाने दूँगा, इसे समझने के लिए तुम लोगों को मौका दूँगा। तुम लोग इस तरीके के बारे में क्या सोचते हो? (यह अच्छा है।) अतः ध्यान से सुनो।

जब कभी शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करता है या बेलगाम क्षति में संलग्न हो जाता है, तो परमेश्वर आलस्य से किनारे खड़ा नहीं रहता है, न तो वह एक तरफ हट जाता है या न ही अपने चुने हुओं को अनदेखा करता है जिन्हें उसने चुना है। वह सब जो शैतान करता है वह बिलकुल स्पष्ट है और उसे परमेश्वर के द्वारा समझा जाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि शैतान क्या करता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह किस प्रवृत्ति (प्रचलन) को उत्पन्न करता है, क्योंकि परमेश्वर वह सब जानता है जिसे शैतान करने का प्रयास कर रहा है, और परमेश्वर उन लोगों को नहीं छोड़ता है जिन्हें उसने चुना है। इसके बजाए, परमेश्वर कोई ध्यान आकर्षित किए बिना, गुप्त रीति से, शांति से, सब कुछ करता है जो आवश्यक है। जब वह किसी पर कार्य करना प्रारम्भ करता है, जब वह किसी को चुनता है, तो वह इसकी घोषणा किसी पर नहीं करता है, न ही वह इसकी घोषणा शैतान पर करता है, कोई भव्य भाव प्रदर्शन तो बिलकुल भी नहीं करता है। वह बस बहुत शान्ति से, बहुत स्वभाविक रीति से जो ज़रूरी है उसे करता है। पहले, वह तुम्हारे लिए एक परिवार चुनता है; उस परिवार की पृष्ठभूमि किस प्रकार की है, तुम्हारे माता पिता कौन हैं, तुम्हारे पूर्वज कौन हैं—यह सब पहले से ही परमेश्वर के द्वारा निर्धारित किया गया था। दूसरे शब्दों में, ये उस पल के फैसलों की प्रेरणा नहीं थे जिन्हें उसके द्वारा लिया गया था, परन्तु इसके बजाए यह ऐसा कार्य था जिसे लम्बे समय पहले शुरू किया था। जब एक बार परमेश्वर तुम्हारे लिए किसी परिवार का चुनाव करता है, तो वह उस तिथि को भी चुनता है जिसमें तुम्हारा जन्म होता है। वर्तमान में, जब तुम रोते हुए इस संसार में जन्म लेते हो तो परमेश्वर देखता है, तुम्हारे जन्म को देखता है, तुम्हें देखता है जब तुम अपने पहले वचनों को बोलते हो, तुम्हें देखता है जब तुम लड़खड़ाते हो और अपने पहले कदमों को उठाते हो, और सीखते हो कि कैसे चलना है। पहले तुम एक कदम लेते हो फिर दूसरा कदम लेते हो ... अब तुम दौड़ सकते हो, अब तुम कूद सकते हो, अब तुम बातचीत कर सकते हो, अब तुम अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हो। इस समय के दौरान, जब मनुष्य बड़ा होने लगता है, शैतान की नज़रें उनमें से प्रत्येक पर जम जाती हैं, जैसे कोई बाघ अपने शिकार को देख रहा हो। परन्तु अपने कार्य को करने में, परमेश्वर कभी भी मनुष्य, घटनाओं या चीज़ों, अन्तराल या समय की सीमाओं से पीड़ित नहीं हुआ है; वह उसे करता है जिसे उसे करना चाहिए और उसे करता जिसे उसे आवश्य करना चाहिए। बड़े होने की प्रक्रिया में, हो सकता है कि तुम कई चीज़ों का सामना करो जो तुम्हें पसन्द न आएँ, और बीमारियों एवं तनावों का सामना करो। परन्तु जैसे-जैसे तुम इस मार्ग पर चलते हो तुम्हारा जीवन एवं तुम्हारा भविष्य सख्ती से परमेश्वर की देखरेख के अधीन होता है। तुम्हारे सम्पूर्ण जीवन में बने रहने के लिए परमेश्वर तुम्हें एक विशुद्ध गारंटी देता है, क्योंकि वह बिलकुल तुम्हारे बगल में ही है, तुम्हारी रक्षा करता है और तुम्हारी देखभाल करता है। इस बात से अनजान, तुम बढ़ते जाते हो। तुम नई नई बातों के सम्पर्क में आने लगते हो और इस संसार को और इस मानवजाति को जानना प्रारम्भ करते हो। तुम्हारे लिए हर एक चीज़ ताज़ा एवं नया होता है। तुम अपने कार्य को करना पसन्द करते हो और तुम उसे करना पसन्द करते हो जो तुमको अच्छा लगता है। तुम अपनी स्वयं की मानवता के भीतर रहते हो, तुम अपने स्वयं के जीवन के दायरे में भीतर जीते हो, और तुम्हारे पास परमेश्वर के अस्तित्व के विषय में जरा सी भी अनुभूति नहीं होती है। परन्तु जैसे जैसे तुम बड़े होते जाते हैं परमेश्वर मार्ग के हर कदम पर तुम्हें देखता है, और तुम्हें देखता है जब तुम आगे की ओर हर कदम उठाते हो। यहाँ तक कि जब तुम ज्ञान अर्जित करते हो, या विज्ञान की पढ़ाई करते हो, किसी भी कदम पर परमेश्वर ने तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा है। इस मामले में तुम भी अन्य लोगों के ही समान हो, इस संसार को जानने और उसके साथ सम्पर्क में आने के पथक्रम में, तुमने अपने स्वयं के आदर्शों को स्थापित कर लिया है, तुम्हारे पास तुम्हारे स्वयं के शौक, तुम्हारी स्वयं की रूचियाँ हैं, और साथ ही तुम ऊँची महत्वाकांक्षाओं को भी आश्रय देते हो। तुम अकसर अपने स्वयं के भविष्य पर विचार करते हो, अकसर रूपरेखा खींचते हो कि तुम्हारे भविष्य को कैसा दिखना चाहिए। परन्तु इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मार्ग पर क्या होता है, क्योंकि परमेश्वर साफ आँखों से सब कुछ देखता है। हो सकता है कि तुम अपने स्वयं के अतीत को भूल गए हो, परन्तु परमेश्वर के लिए, ऐसा कोई नहीं है जो उससे बेहतर तुम्हें समझ सकता है। तुम परमेश्वर की दृष्टि में जीवन बिताते हो, बढ़ते हो, और परिपक्व होते हो। इस समय अवधि के दौरान, परमेश्वर का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कुछ ऐसा है जिसका एहसास कोई कभी नहीं करता है, कुछ ऐसा है जिसे कोई नहीं जानता है। परमेश्वर ने निश्चय ही तुम्हें इसके बारे में नहीं बताया है। अतः यह सबसे महत्वपूर्ण चीज़ क्या है? कोई व्यक्ति कह सकता है कि इस बात की गारंटी है कि परमेश्वर किसी व्यक्ति को बचाएगा। इसका अर्थ है कि परमेश्वर इस व्यक्ति को बचाना चाहता है, अतः उसे इसे करना ही होगा, और यह कार्य मनुष्य एवं परमेश्वर दोनों के लिए आवश्यक रूप से महत्वपूर्ण है। क्या तुम लोग इसे जानते हो? ऐसा लगता है कि तुम लोगों के पास इसके विषय में कोई एहसास नहीं है, या इसके विषय में कोई धारणा नहीं है, अतः मैं तुम्हें बताऊँगा। जब तुम्हारा जन्म हुआ उस समय से लेकर अब तक, परमेश्वर ने तुम में बहुत सारे कार्यों को सम्पन्न किया है, परन्तु हर बार जब भी उसने कुछ किया तो उसने तुम्हें नहीं बताया। तुम्हें नहीं जानना था, अतः तुम्हें नहीं बताया गया था, ठीक है? (हाँ।) मनुष्य के लिए, हर चीज़ जो परमेश्वर करता है वह महत्वपूर्ण है। परमेश्वर के लिए, यह ऐसी चीज़ है जिसे उसे करना ही होगा। परन्तु उसके हृदय में कोई महत्वपूर्ण चीज़ है जिसे उसे करने की आवश्यकता है जो इन चीज़ों से कहीं बढ़कर है। वह क्या है? अर्थात्, जब मनुष्य पैदा हुआ था उस समय से लेकर अब तक, परमेश्वर को उनमें से प्रत्येक की सुरक्षा की गारंटी देनी होगी। हो सकता है कि तुम लोग ऐसा महसूस करो मानो तुम लोगों ने पूरी तरह से नहीं समझा है, यह कहते हुए, "क्या यह सुरक्षा इतनी महत्वपूर्ण है?" अतः "सुरक्षा" का शाब्दिक अर्थ क्या है? हो सकता है कि तुम लोग इसे इस अभिप्राय से समझते हो कि यह शांति है या हो सकता है कि तुम लोग इसे इस अभिप्राय से समझते हो कि कभी विपत्ति या आपदा का अनुभव न करना, अच्छे से जीवन बिताना, एक सामान्य जीवन बिताना। परन्तु अपने हृदय में तुम लोगों को जानना होगा कि यह उतना आसान नहीं है। अतः पृथ्वी पर यह क्या चीज़ है जिसके विषय में मैं बात करता रहा हूँ, जिसे परमेश्वर को करना है? परमेश्वर के लिए इसका क्या अर्थ है? क्या यह वास्तव में तुम्हारी सुरक्षा की गारंटी है? ठीक इसी वक्त के समान? नहीं। अतः वह क्या है जो परमेश्वर करता है? इस सुरक्षा का अर्थ यह है कि तुम्हें शैतान के द्वारा फाड़ कर खाया नहीं जा रहा है। क्या यह महत्वपूर्ण है? तुम्हें शैतान के द्वारा फाड़ कर खाया नहीं जा रहा है, अतः क्या यह तुमकी सुरक्षा से सम्बन्धित है, या नहीं? यह वास्तव में तुम्हारी व्यक्तिगत सुरक्षा से सम्बन्धित है, और इससे अधिक महत्वपूर्ण और कुछ भी नहीं हो सकता है। जब एक बार तुम्हें शैतान के द्वारा फाड़ खाया (नष्ट किया) जाता है, तब न तो तुम्हारी आत्मा और न ही तुम्हारा शरीर आगे से परमेश्वर का है। परमेश्वर तुम्हें अब आगे से नहीं बचाएगा। परमेश्वर ऐसी आत्माओं को छोड़ देता है और ऐसे लोगों को छोड़ देता है। अतः मैं कहता हूँ कि सबसे महत्वपूर्ण कार्य जिसे परमेश्वर को करना है वह तुम्हारी सुरक्षा की गारंटी देना है, यह गारंटी देना कि तुम्हें शैतान के द्वारा फाड़ कर खाया नहीं जाएगा। यह अति महत्वपूर्ण है, है कि नहीं? अतः तुम लोग उत्तर क्यों नहीं दे सकते हो? ऐसा प्रतीत होता है कि तुम लोग परमेश्वर की महान दया को महसूस नहीं कर सकते हो!

परमेश्वर मनुष्य को सुरक्षा की गारंटी देने, और यह गारंटी देने के अतिरिक्त बहुत कुछ करता है कि उन्हें शैतान के द्वारा फाड़ कर खाया नहीं जाएगा; वह किसी को चुनने और उनको बचाने की तैयारी में बहुत सारे कार्य करता है। पहला, तुम्हारे पास किस प्रकार का चरित्र है, किस प्रकार के परिवार में तुम पैदा होगे, तुम्हारे माता-पिता कौन हैं, तुम्हारे कितने भाई और बहन हैं, तुम्हारे परिवार की स्थिति एवं आर्थिक दशा क्या है, तुम्हारे परिवार की परिस्थितियाँ क्या हैं—परमेश्वर के द्वारा तुम्हारे लिए इन सब का प्रबंध कड़ी मेहनत से किया जाता है। जहाँ तक अधिकांश लोगों की बात है, क्या तुम लोग जानते हो कि परमेश्वर के चुने हुए लोग अधिकांशतः किस प्रकार के परिवार में पैदा होते हैं? क्या वे प्रमुख परिवार होते हैं? उनमें से कुछ हो सकते हैं। हम निश्चित रूप से कह नहीं सकते हैं कि कोई भी नहीं होते, परन्तु वे बहुत कम होते हैं। क्या वे असाधारण धन-सम्पत्ति वाले परिवार होते हैं, जैसे कि अरबपति या खरबपति? वे प्रायः कभी इस प्रकार के परिवार नहीं होते हैं। अतः परमेश्वर लोगों के लिए अधिकांशतः किस प्रकार के परिवार की व्यवस्था करता है? (साधारण परिवार।) अतः कौन से परिवार साधारण परिवार होते हैं? वे मुख्य तौर पर काम करने वाले परिवार और कृषक परिवार होते हैं। कर्मचारी जीने के लिए अपने वेतन पर आश्रित होते हैं और आधारभूत आवश्यकताओं को जुटा सकते हैं। वे तुम्हें किसी भी सूरत में भूखा रहने नहीं देंगे, परन्तु तुम यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि तुम्हारी सारी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा किया जाए। कृषक अपने भोजन के लिए फसल उगाने पर आश्रित होते हैं, उनके पास खाने के लिए अन्न होता है और, चाहे जो भी हो, तुम भूखे नहीं रहोगे, परन्तु तुम्हारे पास बहुत अच्छे कपड़े नहीं हो सकते हैं। फिर कुछ ऐसे परिवार हैं जो व्यवसाय में संलग्न हैं या छोटे व्यवसायों को चलाते हैं, और कुछ मातापिता बुद्धिमान होते हैं, और इन्हें भी साधारण परिवार के रूप में ही गिना जा सकता है। कुछ ऐसे माता पिता भी होते हैं जो ज़्यादा से ज़्यादा कार्यालय के कर्मचारी होते हैं या मामूली सरकारी अधिकारी होते हैं, उन्हें भी प्रमुख परिवारों के रुप में नहीं गिना जा सकता है। अधिकतर लोग साधारण परिवारों में पैदा होते हैं, और इन सब का प्रबंध परमेश्वर के द्वारा किया जाता है। कहने का तात्पर्य है, सबसे पहले तो यह वातावरण जिसमें तुम रहते हो वह पर्याप्त साधनों का परिवार नहीं होता जिसकी तुम कल्पना करते हो, बल्कि यह ऐसा परिवार होता है जिसे परमेश्वर के द्वारा तुम्हारे लिए निर्धारित किया गया है, और अधिकांश लोग इस प्रकार के परिवार की सीमाओं के भीतर जीवन बिताएँगे; हम यहाँ पर अपवादों की चर्चा नहीं करेंगे। अतः सामाजिक रुतबे के विषय में क्या कहें? अधिकांश माता-पिता की आर्थिक स्थितियाँ औसत दर्जे की होती हैं और उनके पास ऊँचा सामाजिक रुतबा नहीं होता है—उनके लिए बस किसी रोजगार का होना ही अच्छा है। क्या कोई ऐसे होते हैं जो राज्यपाल हों? क्या कोई ऐसे होते हैं जो राष्ट्रपति हों? (नहीं।) ज़्यादा से ज़्यादा वे ऐसे लोग होते हैं जैसे छोटे व्यवसाय के प्रबंधक या छोटे-मोटे मालिक, जो औसत सामाजिक रुतबे के होते हैं, जो औसत आर्थिक स्थितियों में रहते हैं। अन्य कारक परिवार के जीवन यापन का वातावरण है। सबसे पहले, ऐसे कोई माता-पिता नहीं होते जो स्पष्ट रूप से अपने बच्चों को भविष्यवाणी और भावी कथन के पथ पर चलने के लिए प्रभावित करते हों; ऐसे भी बहुत ही कम होते हैं। अधिकांश माता-पिता बहुत ही सामान्य होते हैं और तुम लोगों के समान ही होते हैं। परमेश्वर ठीक उसी समय लोगों के लिए इस प्रकार के वातावरण को निर्धारित करता है जब वह उन्हें चुनता है, और यह लोगों को बचाने के उसके कार्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। बाहरी तौर पर, ऐसा प्रतीत होता है कि परमेश्वर ने मनुष्य के लिए ऐसा कुछ नहीं किया है जो पृथ्वी को हिला दे; वह बस सब-कुछ गुप्त रीति से, विनम्रता से और खामोशी से करता है। परन्तु वास्तव में, वह सब जो परमेश्वर करता है तुम्हारे उद्धार हेतु एक नींव डालने के लिए, आगे के मार्ग को तैयार करने के लिए और तुम्हारे उद्धार के लिए सभी आवश्यक स्थितियों को तैयार करने के लिए करता है। तत्काल ही प्रत्येक व्यक्ति के निर्दिष्ट समय पर, परमेश्वर उन्हें वापस अपने सामने लाता है—जब परमेश्वर की आवाज़ सुनने के लिए तुम्हारा समय आता है, तब यह वह समय होता है जब तुम उसके सामने आते हो। उस समय जब यह घटित होता है, कुछ लोग तो पहले ही स्वयं माता-पिता बन चुके होते हैं, जबकि अन्य लोग तो सिर्फ किसी के बच्चे होते हैं। दूसरे शब्दों में, कुछ लोगों ने विवाह कर लिया होता है और उनके बच्चे हो जाते हैं जबकि अन्य लोग अभी भी अकेले ही होते हैं, उन्होंने अभी तक अपने परिवार शुरू नहीं किये होते हैं। परन्तु लोगों की स्थितियों की परवाह किए बगैर, परमेश्वर ने पहले से ही समय को निर्धारित कर दिया है जब तुम्हें चुना जाएगा और जब उसका सुसमाचार और वचन तुम तक पहुँचेगा। परमेश्वर ने परिस्थितियों को निर्धारित किया है, किसी व्यक्ति या किसी सन्दर्भ को निर्धारित किया है जिसके माध्यम से तुम तक सुसमाचार पहुँचाया जाएगा, ताकि तुम परमेश्वर के वचन को सुन सको। परमेश्वर ने तुम्हारे लिए पहले से ही सभी आवश्यक परिस्थितियों को तैयार कर लिया है ताकि, अनजाने में, तुम उसके सामने आ जाओ और परमेश्वर के परिवार में वापस लौट जाओ। तुम भी अनजाने में परमेश्वर का अनुसरण करते हो और उसके कदम दर कदम कार्य में प्रवेश करते हो, परमेश्वर के कार्य करने के तरीके में प्रवेश करते हो जिसे उसने तुम्हारे लिए कदम दर कदम तैयार किया है। सभी कार्यों में सबसे छोटा कार्य जिसे परमेश्वर करता है और जिसे इस समय मनुष्य को देता है वह सर्वप्रथम वह देखभाल एवं सुरक्षा है जिसका मनुष्य लाभ उठाता है, और यह वास्तव में सच्चा है। अतः परमेश्वर किस प्रकार के तरीकों का इस्तेमाल करता है? परमेश्वर विभिन्न लोगों, घटनाओं, एवं चीज़ों को व्यवस्थित करता है ताकि मनुष्य उनमें परमेश्वर के अस्तित्व एवं कार्यों को देख सके। उदाहरण के लिए, कुछ ऐसे लोग होते हैं जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं क्योंकि उनके परिवार में कोई बीमार है, और वे कहते हैं "मेरे परिवार का एक सदस्य बीमार है, मैं क्या करूं?" तब कुछ लोग कहते हैं "यीशु में विश्वास करो!" अतः वे परमेश्वर पर विश्वास करना प्रारम्भ कर देते हैं, और परमेश्वर में यह विश्वास परिस्थिति के कारण आया है। अतः किसने इस परिस्थिति का निर्माण किया है? (परमेश्वर ने।) उस परिस्थिति के माध्यम से वे परमेश्वर की ओर फिरते हैं। कुछ इस तरह के परिवार होते हैं जहाँ सभी विश्वासी होते हैं, बच्चे और बूढ़े, जबकि कुछ ऐसे भी परिवार होते हैं जहाँ विश्वास व्यक्तिगत होता है। अतः तुम मुझे बताओ, उस विश्वासी ने परमेश्वर से क्या प्राप्त किया है? जाहिर तौर पर बीमारी आई है, परन्तु वास्तव में यह एक परिस्थिति है जिसका निमाण इसलिए किया गया है ताकि वह परमेश्वर के सामने आए—यह परमेश्वर की कृपा है। क्योंकि कुछ लोगों का पारिवारिक जीवन कठिन होता है और वे कोई शान्ति नहीं पा सकते हैं, एक अनपेक्षित अवसर साथ में आता है जहाँ कोई सुसमाचार देगा और कहेगा "तुम्हारे परिवार के लिए यह कठिन समय है। यीशु में विश्वास करो। यीशु में विश्वास करो। और तुम्हें शान्ति मिलेगी।" अवचेतन रूप से, तब यह व्यक्ति अत्यंत स्वाभाविक परिस्थितियों के अंतर्गत परमेश्वर में विश्वास करने लगता है, अतः क्या यह एक प्रकार की परिस्थिति नहीं है? (है।) और क्या उसके परिवार को ऐसे अनुग्रह से शान्ति नहीं मिलती है जिसे परमेश्वर के द्वारा प्रदान किया गया है? (मिलती है।) अच्छा, यहाँ पर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कुछ अन्य कारणों से परमेश्वर पर विश्वास करने लगते हैं, परन्तु इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कौन-सा कारण तुम्हारे अंदर उसके प्रति विश्वास पैदा करता है, इन सबका प्रबंध एवं मार्गदर्शन वास्तव में बिना किसी सन्देह के परमेश्वर के द्वारा किया जाता है।

पहले तो परमेश्वर ने तुम्हें चुनने के लिए और तुम्हें अपने परिवार में लाने के लिए विभिन्न तरीकों का प्रयोग किया। यह पहला कार्य है जिसे वह करता है और यह एक अनुग्रह है जिसे वह हर एक व्यक्ति को देता है। अब अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य के साथ, वह मनुष्य को सिर्फ अनुग्रह एवं आशीषें ही नहीं देता है जैसा उसने शुरुआत में किया था, न ही वह लोगों को आगे बढ़ने के लिए फुसलाता है—यह अनुग्रह के युग में कार्य की उस नींव के कारण है। इन अंत के दिनों के कार्य के दौरान, परमेश्वर के कार्य के सभी पहलुओं से मनुष्य ने क्या देखा जिन्हें उन्होंने अनुभव किया है? उन्होंने न केवल परमेश्वर के प्रेम को देखा है, बल्कि परमेश्वर के न्याय एवं ताड़ना को भी देखा है। इस समय, परमेश्वर मनुष्य को और अधिक प्रदान करता है, सहारा देता है, और मनुष्य को प्रकाशन एवं मार्गदर्शन देता है, जिससे वे धीरे-धीरे उसके इरादों को जानने लगें, उन वचनों को जानने लगें जिन्हें वह बोलता है और उस सच्चाई को जानने लगें जिसे वह मनुष्य को प्रदान करता है। जब मनुष्य कमज़ोर होता है, जब वे हतोत्साहित होते हैं, जब उनके पास कहीं और जाने के लिए कोई स्थान नहीं होता है, तब परमेश्वर उन्हें राहत, सलाह, एवं प्रोत्साहन देने के लिए अपने वचनों का उपयोग करेगा, ताकि कम हैसियत वाला मनुष्य धीरे-धीरे अपनी सामर्थ्य को पा सके, सकारात्मकता में खड़ा हो जाए और परमेश्वर के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हो जाए। परन्तु जब मनुष्य परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करता है या उसका विरोध करता है, या जब वे अपनी स्वयं की भ्रष्टता को प्रगट करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं, तब परमेश्वर उनको ताड़ना देने में और उन्हें अनुशासित करने में कोई दया नहीं दिखाएगा। फिर भी, मनुष्य की मूर्खता, अज्ञानता, दुर्बलता, एवं अपरिपक्वता के प्रति परमेश्वर सहिष्णुता एवं धैर्य दिखाएगा। इस रीति से, उस समस्त कार्य के माध्यम से जिसे परमेश्वर मनुष्य के लिए करता है, मनुष्य धीरे-धीरे परिपक्व होता है, बढ़ता है, और परमेश्वर के इरादों को जानने लगता है, कुछ सच्चाई जानने लगता है, सकारात्मक चीज़ें क्या हैं और नकारात्मक चीज़ें क्या हैं, उनको जानने लगता है, और यह जानने लगता है कि बुराई क्या है और अंधकार क्या है। परमेश्वर हमेशा मनुष्य को प्रताड़ित एवं अनुशासित नहीं करता रहता है, न ही वह हमेशा सहिष्णुता एवं धैर्य दिखाता है। बल्कि उनकी विभिन्न अवस्थाओं में और उनके अलग-अलग हैसियत एवं क्षमता के अनुसार वह विभिन्न तरीकों से प्रत्येक व्यक्ति के लिए आपूर्ति करता है। वह मनुष्य के लिए अनेक कार्य करता है और बड़ी कीमत पर करता है; मनुष्य इस कीमत के विषय में या इन कार्यों के विषय में जिन्हें परमेश्वर करता है कुछ भी एहसास नहीं करता है, फिर भी वह जो कुछ करता है उसे वास्तविकता में हर एक व्यक्ति के लिये सम्पन्न किया जाता है। परमेश्वर का प्रेम सच्चा हैः परमेश्वर के अनुग्रह के माध्यम से मनुष्य एक के बाद एक आपदा को टालता है, जबकि मनुष्य की दुर्बलता के लिए, परमेश्वर समय-समय पर अपनी सहिष्णुता दिखाता है। परमेश्वर का न्याय एवं ताड़ना लोगों को मानवजाति की भ्रष्टता और उनके भ्रष्ट शैतानी सार को धीरे-धीरे जानने की अनुमति देते हैं। जो कुछ परमेश्वर प्रदान करता है, मनुष्य के लिए उसका प्रकाशन एवं उसका मार्गदर्शन वे सब मानवजाति को अनुमति देते हैं कि वे सत्य के सार को और भी अधिक जानें, और लगातार यह जानें कि लोगों की क्या आवश्यकता है, उन्हें कौन-सा मार्ग लेना चाहिए, उन्हें किसके लिए जीना है, उनकी ज़िंदगी का मूल्य एवं अर्थ क्या है, और आगे के मार्ग पर कैसे चलना है। ये सभी कार्य जिन्हें परमेश्वर करता है वे उसके एकमात्र मूल उद्देश्य से अभिन्न हैं। तो यह उद्देश्य क्या है? क्या तुम लोग जानते हो? परमेश्वर मनुष्य पर अपने कार्य को क्रियान्वित करने के लिए इन तरीकों का उपयोग क्यों करता है? वह क्या परिणाम प्राप्त करना चाहता है? दूसरे शब्दों में, वह मनुष्य में क्या देखना चाहता है और उनसे क्या प्राप्त करना चाहता है? जो कुछ परमेश्वर देखना चाहता है वह यह है कि मनुष्य के हृदय को पुनर्जीवित किया जा सके। दूसरे शब्दों में, ये तरीके जिन्हें वह मनुष्य में कार्य करने के लिए उपयोग करता है वे मनुष्य के हृदय को निरन्तर जागृत करने के लिए हैं, मनुष्य के आत्मा को जागृत करने के लिए हैं, मनुष्य को यह जानने के लिए हैं कि वे कहाँ से आए हैं, कौन उन्हें मार्गदर्शन दे रहा है, उनकी सहायता कर रहा है, उनके लिए आपूर्ति कर रहा है, और किसकी बदौलत मनुष्य अब तक जीवित है; वे मनुष्य को यह जानने देने के लिए हैं कि सृष्टिकर्ता कौन है, उन्हें किसकी आराधना करनी चाहिए, उन्हें किस प्रकार के मार्ग पर चलना चाहिए, और मनुष्य को किस रीति से परमेश्वर के सामने आना चाहिए; मनुष्य के हृदय को धीरे-धीरे पुनर्जीवित करने के लिए उनका उपयोग किया जाता है, इस प्रकार मनुष्य परमेश्वर के हृदय को जान पाता है, परमेश्वर के हृदय को समझ पाता है, और मनुष्य को बचाने के लिए उसके कार्य के पीछे की बड़ी देखभाल एवं विचार को समझ पाता है। जब मनुष्य के हृदय को पुनर्जीवित किया जाता है, तब वे आगे से एक पतित एवं भ्रष्ट स्वभाव के जीवन को जीने की इच्छा नहीं करते हैं, बल्कि परमेश्वर की संतुष्टि के लिये सत्य की खोज करने की इच्छा करते हैं। जब मनुष्य के हृदय को जागृत कर दिया जाता है, तो वे शैतान के साथ स्थायी रूप से सम्बन्ध तोड़ने में सक्षम हो जाते हैं, शैतान उन्हेंअब आगे से कोई हानि नहीं पहुँचा पाता है, उन्हें अब आगे से नियंत्रित नहीं कर पाता या मूर्ख नहीं बना पाता है। बल्कि, मनुष्य परमेश्वर के हृदय को संतुष्ट करने के लिए परमेश्वर के कार्य में और उसके वचन में सकारात्मक रूप से सहयोग कर सकता है, इस प्रकार परमेश्वर के भय को प्राप्त करता है और बुराई से दूर रहता है। यह परमेश्वर के कार्य का मूल उद्देश्य है।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II" (भाग तीन के क्रम में)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II" (भाग तीन के क्रम...

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें