स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VII

भाग एक

परमेश्वर के अधिकार, परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव और परमेश्वर की पवित्रता का अवलोकन

जब तुम लोग अपनी प्रार्थनाएँ समाप्त करते हो, तो क्या तुम लोगों के हृदय परमेश्वर की उपस्थिति में शांति महसूस करते हैं? (हाँ।) जिन लोगों का हृदय शांत हो सकता है, वे परमेश्वर के वचन को सुनने एवं समझने में सक्षम होंगे और वे सत्य को सुनने एवं समझने में भी सक्षम होंगे। यदि तुम्हारा हृदय शांत नहीं हो पाता, यदि तुम्हारा हृदय हमेशा भटकता रहता है, या हमेशा अन्य चीज़ों के बारे में सोचता रहता है, तो इससे तुम्हारे सभाओं में उपस्थित होकर परमेश्वर के वचन सुनने पर असर पड़ेगा। जिन मामलों पर हम इस समय चर्चा कर रहे हैं, उनके केंद्र में क्या है? आओ, हम सब मुख्य बिंदुओं पर थोड़ा पुन: विचार करें। स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है, को जानने के संबंध में, पहले भाग में हमने परमेश्वर के अधिकार पर चर्चा की थी। दूसरे भाग में हमने परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव पर चर्चा की, और तीसरे भाग में हमने परमेश्वर की पवित्रता पर चर्चा की। क्या उस विशिष्ट विषयवस्तु ने, जिस पर हमने हर बार चर्चा की, तुम लोगों पर कोई प्रभाव छोड़ा है? पहले भाग "परमेश्वर का अधिकार" में किस बात ने तुम लोगों पर सबसे गहरी छाप छोड़ी? किस भाग ने तुम लोगों पर सबसे सशक्त प्रभाव छोड़ा था? (परमेश्वर ने पहले परमेश्वर के वचन के अधिकार एवं सामर्थ्य के बारे में बताया; परमेश्वर उतना ही अच्छा है, जितना उसका वचन और उसका वचन सच्चा साबित होगा। यह परमेश्वर का अंतर्निहित सार है।) (शैतान के लिए परमेश्वर की आज्ञा थी कि वह अय्यूब को सिर्फ़ ललचा सकता है, उसके प्राण नहीं ले सकता। इससे हम परमेश्वर के वचन के अधिकार को देखते हैं।) क्या इसमें जोड़ने के लिए कोई और बात है? (परमेश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी और उनके भीतर सब-कुछ बनाने के लिए वचनों का प्रयोग किया और उसने मनुष्य के साथ एक वाचा बनाने और उस पर अपने आशीष रखने के लिए वचन बोले। ये सभी परमेश्वर के वचन के अधिकार के उदाहरण हैं। फिर, हमने देखा कि किस तरह प्रभु यीशु ने लाज़र को आज्ञा दी कि वह अपनी कब्र से बाहर निकल आए—इससे पता चलता है कि ज़िंदगी और मौत परमेश्वर के नियंत्रण में है, कि शैतान के पास ज़िंदगी और मौत को नियंत्रित करने की शक्ति नहीं है, और यह कि चाहे परमेश्वर का कार्य देह में किया गया हो या आत्मा में, उसका अधिकार अद्वितीय है।) यह समझ तुमने संगति सुनने के बाद पाई, है ना? जब हम परमेश्वर के अधिकार के बारे में बात करते हैं, तो "अधिकार" शब्द के विषय में तुम लोगों की समझ क्या है? परमेश्वर के अधिकार के दायरे के भीतर जो कुछ परमेश्वर अंजाम देता है और प्रकट करता है, उसमें लोग क्या देखते हैं? (हम परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता एवं बुद्धिमत्ता देखते हैं।) (हम देखते हैं कि परमेश्वर का अधिकार हमेशा मौजूद है और सचमुच मौजूद है। हम सभी चीज़ों पर उसकी प्रभुता में बड़े पैमाने पर परमेश्वर के अधिकार को देखते हैं, और जिस तरह वह प्रत्येक मनुष्य के जीवन को नियंत्रण में लेता है, हम इसे छोटे पैमाने पर देखते हैं। परमेश्वर वास्तव में मानव-जीवन के छह महत्वपूर्ण पड़ावों को नियोजित और नियंत्रित करता है। इसके अतिरिक्त, हम देखते हैं कि परमेश्वर का अधिकार स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है, का प्रतिनिधित्व करता है, और कोई भी सृजित या गैर-सृजित प्राणी इसे धारण नहीं कर सकता। परमेश्वर का अधिकार उसकी हैसियत का प्रतीक है।) "परमेश्वर की हैसियत और परमेश्वर की स्थिति के प्रतीकों" की तुम्हारी समझ कुछ हद तक सैद्धांतिक लगती है। क्या तुम्हें परमेश्वर के अधिकार का कोई ठोस ज्ञान है? (जब हम छोटे थे, तब से परमेश्वर ने हम पर नज़र रखी है और हमारी सुरक्षा की है, और हम इसमें परमेश्वर के अधिकार को देखते हैं। हम उन खतरों के बारे में नहीं जानते थे, जो हमारी घात में थे, लेकिन परमेश्वर हमेशा परदे के पीछे हमारी सुरक्षा कर रहा था। यह भी परमेश्वर का अधिकार है।) बहुत अच्छा। सही कहा!

जब हम परमेश्वर के अधिकार के बारे में बात करते हैं, तो हमारे ध्यान का केंद्र क्या होता है, हमारा मुख्य बिंदु क्या होता है? हमें इस पर चर्चा करने की आवश्यकता क्यों है? इस पर चर्चा करने का पहला प्रयोजन लोगों के हृदय में सृष्टिकर्ता के तौर पर परमेश्वर की हैसियत और सभी चीज़ों में उसकी हैसियत स्थापित करना है। पहले-पहल लोगों को यह चीज़ जताई, दिखाई और महसूस कराई जा सकती है। जो कुछ तुम देखते हो और जो कुछ तुम महसूस करते हो, वह परमेश्वर के कार्यों, वचनों और सब चीज़ों पर उसके नियंत्रण से आता है। अतः, जो कुछ लोग परमेश्वर के अधिकार के माध्यम से देखते, सीखते और जानते हैं, उससे उन्हें कौन-सी सच्ची समझ प्राप्त होती है? पहले प्रयोजन पर हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं। दूसरा प्रयोजन है, परमेश्वर ने अपने अधिकार के साथ जो कुछ किया, कहा और नियंत्रित किया है, उसके माध्यम से लोगों को परमेश्वर के सामर्थ्य और बुद्धिमत्ता को देखने देना। इससे तुम यह समझ सकते हो कि हर एक चीज़ के नियंत्रण में परमेश्वर कितना सामर्थ्यवान और बुद्धिमान है। क्या यह परमेश्वर के अद्वितीय अधिकार की हमारी पहले की चर्चा का केंद्र और मुख्य बिंदु नहीं था? उस चर्चा को हुए ज़्यादा समय नहीं बीता है, फिर भी तुममें से कुछ लोगों ने इसे भुला दिया है, जो यह साबित करता है कि तुम लोगों ने परमेश्वर के अधिकार की गहरी समझ हासिल नहीं की है। यह भी कहा जा सकता है कि मनुष्य ने परमेश्वर के अधिकार को नहीं देखा है। क्या अब तुम लोग इसे थोड़ा-बहुत समझते हो? जब तुम परमेश्वर को अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए देखते हो, तो तुम्हें वास्तव में कैसा महसूस होता है? क्या तुमने वास्तव में परमेश्वर के सामर्थ्य को महसूस किया है? (हाँ।) जब तुम उसके वचनों को पढ़ते हो कि किस तरह उसने सारी चीज़ों को बनाया, तो तुम उसके सामर्थ्य और उसकी सर्वशक्तिमत्ता को महसूस करते हो। जब तुम मनुष्यों की नियति के ऊपर परमेश्वर के प्रभुत्व को देखते हो, तो तुम क्या महसूस करते हो? क्या तुम उसके सामर्थ्य एवं उसकी बुद्धिमत्ता को महसूस करते हो? यदि परमेश्वर के पास यह सामर्थ्य नहीं होता, यदि उसके पास यह बुद्धिमत्ता नहीं होती, तो क्या वह सभी चीज़ों और मनुष्यों की नियति के ऊपर प्रभुता रखने के योग्य होता? परमेश्वर के पास सामर्थ्य और बुद्धिमत्ता है, इसलिए उसके पास अधिकार है। यह अद्वितीय है। समस्त सृष्टि में क्या तुमने कोई ऐसा व्यक्ति या प्राणी देखा है, जिसके पास परमेश्वर जैसा सामर्थ्य हो? क्या कोई ऐसा व्यक्ति या वस्तु है, जिसके पास स्वर्ग एवं पृथ्वी और सभी चीज़ों का सृजन करने, उन्हें नियंत्रित करने और उन पर प्रभुत्व रखने का सामर्थ्य हो? क्या कोई ऐसा व्यक्ति या वस्तु है, जो पूरी मानवता पर शासन और उसकी अगुआई कर सकता हो, जो हर समय हर जगह मौजूद रह सकता हो? (नहीं, ऐसा कोई नहीं है।) क्या अब तुम लोग परमेश्वर के अद्वितीय अधिकार का वास्तविक अर्थ समझे? क्या अब तुम लोगों के पास इसकी कुछ समझ है? (हाँ।) यहाँ परमेश्वर के अद्वितीय अधिकार के प्रकरण के बारे में हमारा पुन: अवलोकन समाप्त होता है।

दूसरे भाग में, हमने परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव के बारे में बात की थी। इस विषय में हमने ज्यादा चर्चा नहीं की थी, क्योंकि इस चरण में परमेश्वर के कार्य में मुख्य रूप से न्याय एवं ताड़ना शामिल हैं। राज्य के युग में, परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को स्पष्ट रूप से और बहुत विस्तार से प्रकट किया गया है। उसने ऐसे वचन कहे हैं, जिन्हें उसने सृष्टि के आरंभ के समय से कभी नहीं कहा था; और उसके वचनों में उन सभी लोगों ने, जिन्होंने उन्हें पढ़ा और अनुभव किया है, उसके धार्मिक स्वभाव को प्रकट होते हुए देखा है। तो परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव के बारे में हमारी चर्चा का मुख्य बिंदु क्या है? क्या तुम इसे गहराई से समझते हो? क्या तुम इसे अनुभव से समझते हो? (परमेश्वर ने सदोम को जला दिया था, क्योंकि उस समय के लोग बहुत भ्रष्ट थे और उन्होंने परमेश्वर के क्रोध को भड़का दिया था। इससे हम परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को देखते हैं।) पहले, आओ एक नज़र डालें : यदि परमेश्वर ने सदोम का नाश नहीं किया होता, तो क्या तुम उसके धार्मिक स्वभाव के बारे में जानने में सक्षम होते? तुम तब भी उसे जानने में सक्षम होते, है ना? तुम इसे परमेश्वर द्वारा राज्य के युग में व्यक्त किए गए वचनों में, और उसके न्याय, ताड़ना एवं शापों में भी देख सकते हो, जो उसने मनुष्य को दिए थे। क्या तुम परमेश्वर द्वारा नीनवे को बख्श देने में उसके धार्मिक स्वभाव को देख सकते हो? (हाँ।) वर्तमान युग में लोग परमेश्वर की कुछ दया, प्रेम एवं सहनशीलता देख सकते हैं, और वे इसे मनुष्य के पश्चात्ताप के कारण होने वाले परमेश्वर के हृदय-परिवर्तन में भी देख सकते हैं। परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की हमारी चर्चा शुरू करने के लिए ये दो उदाहरण प्रस्तुत करने के बाद, यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि उसका धार्मिक स्वभाव प्रकट हो गया है, फिर भी वास्तव में उसके धार्मिक स्वभाव का सार जो कुछ बाइबल की इन दो कहानियों से स्पष्ट होता है, उस तक सीमित नहीं है। जो कुछ तुमने परमेश्वर के वचन एवं उसके कार्य से सीखा, देखा और अनुभव किया है, उससे परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को तुम कैसा देखते हो? अपने ख़ुद के अनुभवों से बताओ। (परमेश्वर द्वारा लोगों के लिए सृजित परिवेशों में, जब लोग सत्य की खोज करने में सक्षम होते हैं और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करते हैं, तो परमेश्वर उनका मार्गदर्शन करता है, उन्हें प्रबुद्ध करता है, और उन्हें अपने हृदय में उजाला महसूस करने में सक्षम बनाता है। जब लोग परमेश्वर के विरूद्ध हो जाते हैं और उसका प्रतिरोध करते हैं और उसकी इच्छा के अनुसार कार्य नहीं करते, तो उनके भीतर बहुत अँधेरा होता है, मानो परमेश्वर ने उन्हें त्याग दिया हो। यहाँ तक कि जब वे प्रार्थना करते हैं, तो भी वे नहीं जानते कि उससे कहना क्या है। लेकिन जब वे अपनी धारणाओं एवं कल्पनाओं को एक तरफ रख देते हैं और परमेश्वर के साथ सहयोग करने को तैयार हो जाते हैं और खुद को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं, तब वे धीरे-धीरे परमेश्वर का मुस्कुराता हुआ चेहरा देखने में समर्थ हो जाते हैं। इससे हम परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की पवित्रता का अनुभव करते हैं। परमेश्वर पवित्र राज्य में प्रकट होता है, लेकिन वह खुद को अशुद्ध स्थानों में छिपाता है।) (मैं परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव लोगों के साथ उसके व्यवहार के तरीके में देखती हूँ। हमारे भाई-बहन अपने आध्यात्मिक कद और क्षमता में अलग-अलग हैं, और हममें से प्रत्येक व्यक्ति से परमेश्वर की अपेक्षाएँ भी अलग-अलग हैं। हम सभी विभिन्न मात्राओं में परमेश्वर की प्रबुद्धता प्राप्त करने में सक्षम हैं, और इसमें मैं परमेश्वर की धार्मिकता देखती हूँ, क्योंकि हम मनुष्य, लोगों से ऐसा व्यवहार करने में अक्षम हैं, जबकि परमेश्वर इसमें सक्षम हैं।) अब तुम सभी के पास कुछ व्यावहारिक ज्ञान है, जिसे तुम व्यक्त कर सकते हो।

क्या तुम लोग जानते हो कि परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को समझने के लिए कौन-सा ज्ञान महत्त्वपूर्ण है? इस विषय पर अनुभव से बहुत-कुछ कहा जा सकता है, लेकिन पहले कुछ मुख्य बिंदु मुझे तुम लोगों को बताने चाहिए। परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को समझने के लिए व्यक्ति को पहले परमेश्वर की भावनाओं को समझना होगा : वह किससे घृणा करता है, किसे नापसंद करता है और किससे प्यार करता है; वह किसे बरदाश्त करता है, किसके प्रति दयालु है, और किस प्रकार के व्यक्ति पर वह दया करता है। यह एक महत्त्वपूर्ण बिंदु है। व्यक्ति को यह भी समझना होगा कि परमेश्वर कितना भी स्नेही क्यों न हो, उसमें लोगों के लिए कितनी भी दया एवं प्रेम क्यों न हो, परमेश्वर अपनी हैसियत और स्थिति को ठेस पहुँचाने वाले किसी भी व्यक्ति को बरदाश्त नहीं करता, न ही वह यह बरदाश्त करता है कि कोई उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाए। यद्यपि परमेश्वर लोगों से प्यार करता है, फिर भी वह उन्हें लाड़-प्यार से बिगाड़ता नहीं। वह लोगों को अपना प्यार, अपनी दया एवं अपनी सहनशीलता देता है, लेकिन व‍ह कभी उनसे लाड़ नहीं करता; परमेश्वर के अपने सिद्धांत और सीमाएँ हैं। भले ही तुमने परमेश्वर के प्रेम को कितना भी महसूस किया हो, वह प्रेम कितना भी गहरा क्यों न हो, तुम्हें कभी भी परमेश्वर से ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, जैसा तुम किसी अन्य व्यक्ति से करते हो। यह सच है कि परमेश्वर लोगों से बहुत आत्मीयतापूर्ण व्यवहार करता है, फिर भी यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर को मात्र किसी अन्य व्यक्ति के रूप में देखता है, मानो वह मात्र कोई अन्य सृजित प्राणी हो, जैसे कोई मित्र या आराधना की कोई वस्तु, तो परमेश्वर उससे अपना चेहरा छिपा लेगा और उसे त्याग देगा। यह उसका स्वभाव है और लोगों को इस मुद्दे को बिना सोचे-समझे नहीं लेना चाहिए। अतः, हम अकसर परमेश्वर द्वारा अपने स्वभाव के बारे में कहे गए ऐसे वचन देखते हैं : चाहे तुमने कितने भी मार्गों पर यात्रा की हो, तुमने कितना भी अधिक काम किया हो या तुमने कितना भी अधिक कष्ट सहन किया हो, जैसे ही तुम परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को ठेस पहुँचाते हो, वह तुम्हारे कृत्य के आधार पर तुममें से प्रत्येक को उसका प्रतिफल देगा। इसका अर्थ यह है कि हालाँकि परमेश्वर लोगों के साथ बहुत आत्मीयतापूर्ण व्यवहार करता है, फिर भी लोगों को परमेश्वर से किसी मित्र या रिश्तेदार की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए। परमेश्वर को अपना "यार" मत कहो। चाहे तुमने उससे कितना ही प्रेम क्यों न प्राप्त किया हो, चाहे उसने तुम्हें कितनी ही सहनशीलता क्यों न दी हो, तुम्हें कभी भी परमेश्वर से अपने मित्र के रूप में व्यवहार नहीं करना चाहिए। यह परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव है। क्या तुम समझे? क्या मुझे इस बारे में और अधिक कहने की ज़रूरत है? क्या तुम्हें इस मामले की पहले से कोई समझ है? सामान्य रूप से कहें, तो यह एक ऐसी गलती है, जिसे लोग सबसे आसानी से इस बात की परवाह किए बगैर करते हैं कि क्या वे सिद्धांतों को समझते हैं या फिर उन्होंने इसके विषय में पहले कभी नहीं सोचा। जब लोग परमेश्वर को ठेस पहुँचाते हैं, तो हो सकता है, ऐसा किसी एक घटना या किसी एक बात की वजह से न होकर उनके रवैये और उस स्थिति के कारण हो, जिसमें वे हैं। यह एक बहुत ही भयावह बात है। कुछ लोगों का मानना है कि उन्हें परमेश्वर की समझ है, कि उन्हें उसका कुछ ज्ञान है, और वे शायद कुछ ऐसी चीज़ें भी कर सकते हैं, जो परमेश्वर को संतुष्ट करेंगी। वे परमेश्वर के बराबर महसूस करना शुरू कर देते हैं और यह भी कि वे चतुराई से परमेश्वर के मित्र हो गए हैं। इस प्रकार की भावनाएँ भयावह रूप से गलत हैं। यदि तुम्हें इसकी गहरी समझ नहीं है—यदि तुम इसे स्पष्ट रूप से नहीं समझते—तो तुम बहुत आसानी से परमेश्वर और उसके स्वभाव को ठेस पहुँचा दोगे और उसके धार्मिक स्वभाव की अवमानना कर दोगे। अब तुम इसे समझ गए न? क्या परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव अद्वितीय नहीं है? क्या यह कभी किसी मनुष्य के चरित्र या नैतिक दृष्टिकोण के बराबर हो सकता है? ऐसा कभी नहीं हो सकता। अतः, तुम्हें नहीं भूलना चाहिए कि चाहे परमेश्वर लोगों से कैसा भी व्यवहार करे, चाहे वह लोगों के बारे में किसी भी प्रकार सोचता हो, परमेश्वर की स्थिति, अधिकार और हैसियत कभी नहीं बदलती। मानव-जाति के लिए परमेश्वर हमेशा सभी चीज़ों का प्रभु और सृष्टिकर्ता है।

तुम लोगों ने परमेश्वर की पवित्रता के बारे में क्या सीखा है? "परमेश्वर की पवित्रता" से संबंधित भाग में, शैतान की बुराई एक विषमता के रूप में इस्तेमाल की जाती है, इस तथ्य के अलावा, परमेश्वर की पवित्रता के बारे में हमारी चर्चा की मुख्य विषयवस्तु क्या थी? क्या यह परमेश्वर का अधिकार और स्वरूप नहीं है? क्या परमेश्वर का अधिकार और स्वरूप अद्वितीय है? (हाँ।) यह सृजित प्राणियों में से किसी के पास नहीं है। इसीलिए हम कहते हैं कि परमेश्वर की पवित्रता अद्वितीय है। यह एक ऐसी बात है, जिसे तुम लोग समझ सकते हो। हमने परमेश्वर की पवित्रता के विषय पर तीन सभाएँ की थीं। क्या तुम लोग अपने शब्दों में, अपनी समझ से इसका वर्णन कर सकते हो, कि तुम लोग परमेश्वर की पवित्रता को क्या मानते हो? (पिछली बार जब परमेश्वर ने हमसे संवाद किया था, तब हम उसके सामने नीचे झुक गए थे। परमेश्वर ने हमसे अपनी आराधना के लिए साष्टांग दंडवत् करने और झुकने से संबंधित सत्य पर सहभागिता की थी। हमने देखा था कि परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने से पहले उसके सामने हमारा झुकना उसकी इच्छा के अनुरूप नहीं है, और इससे हमने परमेश्वर की पवित्रता को देखा।) बिलकुल सही। और कोई बात? (मानव-जाति के लिए बोले गए परमेश्वर के वचनों में हम देखते हैं कि वह सीधे और स्पष्ट रूप से बोलता है, वह सीधा एवं सटीक है। शैतान गोलमोल तरीके से बोलता है और वह झूठ से भरा हुआ है। पिछली बार जब हम परमेश्वर के सामने दंडवत् करते हुए लेटे थे, तब जो कुछ हुआ था, उससे हमने देखा था कि उसके वचन एवं कार्य हमेशा सिद्धांत पर आधारित होते हैं। जब वह हमें बताता है कि हमें कैसे कार्य करना चाहिए, हमें कैसे देखना चाहिए और हमें कैसे अभ्यास करना चाहिए, तो वह हमेशा स्पष्ट और संक्षिप्त होता है। लेकिन लोग इस तरह के नहीं होते। शैतान द्वारा मानव-जाति को भ्रष्ट किए जाने के बाद से लोगों ने अपने व्यक्तिगत इरादों और उद्देश्यों से और अपनी इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए कार्य किया और बोला है। जिस तरह से परमेश्वर मानव-जाति की देखभाल करता है, उसका ध्यान रखता है और उसकी रक्षा करता है, उससे हम देखते हैं कि वह जो कुछ करता है, वह बहुत ही सकारात्मक और स्पष्ट होता है। इसी रूप में हम परमेश्वर की पवित्रता के सार को प्रकट हुआ देखते हैं।) बढ़िया कहा! क्या किसी के पास कोई और बात है इसमें जोड़ने के लिए? (परमेश्वर द्वारा शैतान के दुष्ट सार को उजागर किए जाने के माध्यम से हम परमेश्वर की पवित्रता को देखते हैं, हम शैतान की बुराई के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं और हम मनुष्य के कष्टों का स्रोत जान जाते हैं। अतीत में हम शैतान के अधिकार-क्षेत्र में मनुष्य की पीड़ा से अनजान थे। परमेश्वर द्वारा इसे प्रकट किए जाने के बाद ही हमें पता चला कि प्रसिद्धि एवं संपत्ति के पीछे भागने से जो कष्ट आते हैं, वे सब शैतान के काम हैं। केवल तभी हमने महसूस किया कि परमेश्वर की पवित्रता मानव-जाति का सच्चा उद्धार है।) क्या इसमें जोड़ने के लिए कोई और बात है? (भ्रष्ट मनुष्य में परमेश्वर के सच्चे ज्ञान और उसके लिए प्रेम का अभाव है। चूँकि हम परमेश्वर की पवित्रता के सार को नहीं समझते, और चूँकि हम आराधना में उसके सामने झुकते और दंडवत् होते हैं, तो हम ऐसा अशुद्ध विचारों और गूढ़ इरादों तथा प्रयोजनों से करते हैं, अत: परमेश्वर नाराज हो जाता है। हम देख सकते हैं कि परमेश्वर शैतान से अलग है; शैतान चाहता है कि लोग उससे अत्यधिक प्यार करें, उसकी चापलूसी करें और दंडवत् होकर तथा झुककर उसकी आराधना करें। शैतान का कोई सिद्धांत नहीं है। इससे भी मुझे परमेश्वर की पवित्रता का पता चलता है।) बहुत अच्छा! अब जबकि हमने परमेश्वर की पवित्रता के बारे में संगति कर ली है, क्या तुम लोग परमेश्वर की पूर्णता को देखते हो? (हम देखते हैं।) क्या तुम देखते हो कि किस तरह परमेश्वर सभी सकारात्मक चीज़ों का स्रोत है? क्या तुम यह देखने में सक्षम हो कि किस प्रकार परमेश्वर सत्य एवं न्याय का मूर्त रूप है? क्या तुम देखते हो कि किस प्रकार परमेश्वर प्रेम का स्रोत है? क्या तुम देखते हो कि किस प्रकार परमेश्वर जो कुछ भी करता है, वह जो कुछ भी व्यक्त करता है, और जो कुछ भी वह प्रकट करता है, वह सब त्रुटिहीन है? (हम देखते हैं।) परमेश्वर की पवित्रता के बारे में मैंने जो कुछ कहा है, ये उसके मुख्य बिंदु हैं। आज ये वचन तुम लोगों को महज सिद्धांत की तरह लग सकते हैं, लेकिन एक दिन जब तुम उसके वचन एवं कार्य से स्वयं सच्चे परमेश्वर का अनुभव करोगे और उसके गवाह बनोगे, तब तुम अपने दिल की गहराई से कहोगे कि परमेश्वर पवित्र है, परमेश्वर मानव-जाति से भिन्न है, उसका हृदय, स्वभाव और सार सब पवित्र हैं। इस पवित्रता से मनुष्य परमेश्वर की पूर्णता देख सकता है, और यह भी देख सकता है कि परमेश्वर की पवित्रता का सार निष्कलंक है। उसकी पवित्रता का सार यह निर्धारित करता है कि वह स्वयं अद्वितीय परमेश्वर है, और यह मनुष्य को दिखाता और साबित करता है कि वह स्वयं अद्वितीय परमेश्वर है। क्या यह मुख्य बिंदु नहीं है? (है।)

आज हमने पिछली संगतियों से कई विषयों का अवलोकन किया है। इससे आज के अवलोकन का समापन होता है। मैं आशा करता हूँ कि तुम लोग प्रत्येक मद और विषय के मुख्य बिंदुओं को आत्मसात करोगे। इन्हें सिर्फ सिद्धांत न समझना; जब भी तुम लोगों के पास खाली समय हो, इन्हें गंभीरता से पढ़ना और इन पर विचार करना। इन्हें याद रखना और अमल में लाना—और तुम वास्तव में उस सबका अनुभव करोगे, जो मैंने परमेश्वर द्वारा अपने स्वभाव और स्वरूप के प्रकटीकरण की सच्चाई के बारे में कहा है। लेकिन यदि तुम इन्हें केवल अपनी किताब में लिख लोगे और इन्हें गंभीरता से पढ़ोगे नहीं या इन पर विचार नहीं करोगे, तो तुम कभी इन्हें अपने लिए हासिल नहीं कर पाओगे। अब तुम समझ गए न? इन तीन विषयों पर वार्तालाप करने के बाद, लोगों के परमेश्वर की हैसियत, उसके सार और उसके स्वभाव के बारे में एक सामान्य—या विशिष्ट भी—समझ प्राप्त कर लेने पर, क्या परमेश्वर के बारे में उनकी समझ पूरी हो जाएगी? (नहीं।) अब, परमेश्वर के बारे में तुम लोगों की अपनी समझ में, क्या कोई ऐसे अन्य क्षेत्र हैं, जहाँ तुम लोग महसूस करते हो कि तुम्हें गहरी समझ की आवश्यकता है? दूसरे वचनों में, अब जबकि तुमने परमेश्वर के अधिकार, उसके धार्मिक स्वभाव और उसकी पवित्रता की समझ प्राप्त कर ली है, तो शायद उसकी अद्वितीय हैसियत और स्थिति तुम्हारे मन में स्थापित हो गई होगी; फिर भी, अपने अनुभव से उसके कार्यों, उसके सामर्थ्य एवं उसके सार को देखना, समझना और उनके बारे में अपनी जानकारी बढ़ाना तुम्हारे लिए बाकी है। अब जबकि तुम लोगों ने इन संगतियों को सुन लिया है, तुम्हारे हृदय में विश्वास का एक लेख कमोबेश स्थापित हो गया है : परमेश्वर सच में मौजूद है, और यह एक तथ्य है कि वह सभी चीज़ों का प्रबंध करता है। कोई उसके धार्मिक स्वभाव को ठेस नहीं पहुँचा सकता; और उसकी पवित्रता एक हकीकत है, जिस पर कोई प्रश्न खड़ा नहीं कर सकता। ये तथ्य हैं। इन संगतियों से लोगों के हृदय में परमेश्वर की हैसियत एवं स्थिति की आधारशिला है। एक बार जब यह आधारशिला बन जाए, तो लोगों को और अधिक समझने का प्रयास करना चाहिए।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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