Christian Song | परमेश्वर की इच्छा है कि मानवजाति सत्य का अनुसरण करे और जीवित रहे

05 अप्रैल, 2024

मनुष्य को सत्य का अनुसरण क्यों करना चाहिए?

सबसे अहम कारण यह है कि परमेश्वर के लिए

सत्य का अनुसरण, उसके प्रबंधन,

मानवजाति से उसकी अपेक्षाओं

और मानवजाति को सौंपी गई उसकी आशाओं से जुड़ा हुआ है।

यह परमेश्वर की प्रबंधन योजना का एक हिस्सा है।

तुम जो भी हो, और तुमने जितने भी लंबे समय से

परमेश्वर में विश्वास रखा हो,

अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते

या उससे प्रेम नहीं करते,

तो तुम अनिवार्यतः ऐसे बन जाओगे जिसे निकाला जाना है।

यह बात दिन की तरह साफ है।

परमेश्वर तीन चरणों का कार्य करता है;

मानवजाति का सृजन करने के बाद से

उसकी एक प्रबंधन योजना थी,

और एक-एक करके वह इसके चरणों को

मानवजाति में प्रभावी करता गया है,

और मानवजाति को कदम-दर-कदम आगे बढ़ाते हुए

आज तक ले आया।

परमेश्वर ने बड़ी सावधानी और परिश्रम से प्रयास किया,

बहुत बड़ी कीमत चुकाई,

और बड़े लंबे समय तक कष्ट सहे,

अपने द्वारा व्यक्त किए गए सत्य और मानवजाति को बताई हुई

अपनी अपेक्षाओं के मानदंडों के हर आयाम को लेकर,

मनुष्य पर कार्य करने के अंतिम लक्ष्य को पाने के लिए

और उन्हें मनुष्य के जीवन और

वास्तविकता में तब्दील करने के लिए।

परमेश्वर की दृष्टि में यह एक महत्वपूर्ण मामला है।

परमेश्वर इसे बहुत अहम मानता है।

परमेश्वर की दृष्टि में यह एक महत्वपूर्ण मामला है।

परमेश्वर इसे बहुत अहम मानता है।

इसलिए हर व्यक्ति को भले ही उसकी काबिलियत

या उम्र कितनी भी हो,

या परमेश्वर में कितने ही सालों का विश्वास हो,

सत्य का अनुसरण करने के मार्ग की ओर प्रयास करने चाहिए।

तुम्हें किसी भी वस्तुगत तर्क पर जोर नहीं देना चाहिए;

तुम्हें बिना शर्त सत्य का अनुसरण करना चाहिए।

अपने दिन यूँ ही न गँवाओ।

अगर तुम सत्य के अनुसरण को

अपने जीवन की बड़ी अहम चीज बना लो,

और सत्य का अनुसरण करो और इसके लिए प्रयास करो,

तो संभवतः अनुसरण से तुम जो सत्य पाओ

और जिस तक तुम पहुँचो,

वह तुम्हारा चाहा हुआ न हो।

लेकिन अगर परमेश्वर कहता है कि

वह अनुसरण में तुम्हारे रवैये और ईमानदारी के आधार पर

तुम्हें एक उचित मंजिल देगा,

तो यह कितनी अद्भुत बात होगी!

अभी इस बात पर ध्यान मत दो कि तुम्हारी मंजिल

या परिणाम क्या होगा,

या भविष्य में क्या होगा और यह कैसा होगा,

या क्या तुम विपत्ति से बचकर प्राण न गँवाने में सक्षम रहोगे—

इन चीजों के बारे में मत सोचो, न इन्हें माँगो।

केवल परमेश्वर के वचनों और

उसकी अपेक्षाओं में सत्य का अनुसरण करने,

अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से निभाने और

परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट करने पर ध्यान केंद्रित करो,

जिससे कि तुम परमेश्वर की छह हजार वर्षों की प्रतीक्षा

और छह हजार वर्षों की आशा के अयोग्य सिद्ध नहीं होगे।

परमेश्वर को थोड़ा ढाढ़स बँधाओ;

उसे देखने दो कि तुमसे कुछ आशा है,

और खुद में उसकी इच्छाएँ साकार होने दो।

अगर तुम ऐसा करोगे

तो क्या परमेश्वर तुम्हारे साथ बुरा बर्ताव करेगा?

और भले ही अंतिम परिणाम तुम्हारी कामना के अनुरूप न हों,

एक सृजित प्राणी के नाते तुम्हें सभी चीजों में समर्पित होना चाहिए

परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति,

बगैर किसी निजी मकसद के। यही सही मानसिकता है।

—वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में I, मनुष्य को सत्य का अनुसरण क्यों करना चाहिए

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