293 मनुष्य को बचाने के लिए परमेश्वर के नेक इरादे को कोई भी नहीं समझता
परमेश्वर के वचनों का एक भजन I ईश्वर ने बनाया संसार और इसमें बसाया मानव को, दिया ईश्वर ने जीवन एक जीवित प्राणी को। फिर मानव को मिले परिजन, वह अकेला न रहा, ईश्वर के विधान में रहने को तय किया गया। यह जीवन-श्वास ईश्वर ने दी सम्भालती है हर जीवित प्राणी को हमेशा युवावस्था की ओर बढ़ने में। इस प्रक्रिया के दौरान, वे मानते हैं कि यह उनके माता-पिता के प्रेम और देखभाल का शुक्र है। कोई भी मानव दिन-रात जिसकी ईश्वर करता है देखभाल, उसकी आराधना की पहल नहीं करता। मानव जो आशा से परे लगता है उस पर ईश्वर कार्य करता है जैसा उसने सोचा। और वह आशा करता है एक दिन, जागेगा मानव स्वप्न से, जीवन के मूल्य और उद्देश्य को देखेगा, समझेगा परमेश्वर सब कुछ किस क़ीमत पर देता है, कितनी बेसब्री से मानव के लौटने की राह देखे वह। हाँ, बेसब्री से मानव के लौटने की राह देखे वह। II कोई नहीं मानता मानव का जीना-बढ़ना ईश्वर की देखरेख में होता है। वे सोचते हैं कि मानव का बढ़ना है जीवन-प्रवृत्ति से। वे नहीं जानते किसने दिया जीवन या कहाँ से यह आता है, कैसे जीवन-प्रवृत्ति बनाती है चमत्कारों को। ओह, वे सोचते हैं कि भोजन से ही जीवन चलता है, कि मनुष्य जीता है क्योंकि वह दृढ़ रहता है, कि मान्यताओं से मानव ज़िंदा है। वे देख नहीं पाते ईश्वरीय प्रावधानों को। फिर वे गवां देते हैं ईश्वर प्रदत्त जीवन को। कोई भी मानव दिन-रात जिसकी ईश्वर करता है देखभाल, उसकी आराधना की पहल नहीं करता। मानव जो आशा से परे लगता है उस पर ईश्वर कार्य करता है जैसा उसने सोचा और वह आशा करता है एक दिन, जागेगा मानव स्वप्न से, जीवन के मूल्य और उद्देश्य को देखेगा, समझेगा परमेश्वर सब कुछ किस क़ीमत पर देता है, कितनी बेसब्री से मानव के लौटने की राह देखे वह। हाँ, बेसब्री से मानव के लौटने की राह देखे वह। कोई भी मानव दिन-रात जिसकी ईश्वर करता है देखभाल, उसकी आराधना की पहल नहीं करता। मानव जो आशा से परे लगता है उस पर ईश्वर कार्य करता है जैसा उसने सोचा। और वह आशा करता है एक दिन, जागेगा मानव स्वप्न से, जीवन के मूल्य और उद्देश्य को देखेगा, समझेगा परमेश्वर सब कुछ किस क़ीमत पर देता है, कितनी बेसब्री से मानव के लौटने की राह देखे वह। हाँ, बेसब्री से मानव के लौटने की राह देखे वह। "वचन देह में प्रकट होता है" से