परमेश्वर के दैनिक वचन : मंज़िलें और परिणाम | अंश 602

राज्य के युग में मनुष्य को पूरी तरह से पूर्ण किया जाएगा। विजय के कार्य के पश्चात्, मनुष्य को परिष्करण एवं क्लेश के अधीन किया जाएगा। जो लोग विजय प्राप्त कर सकते हैं और इस क्लेश के दौरान गवाह के रूप में खड़े हो सकते हैं वे ऐसे मनुष्य हैं जिन्हें अन्ततः पूर्ण बनाया जाएगा; वे विजय प्राप्त करनेवाले लोग हैं। इस क्लेश के दौरान, मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह इस परिष्करण को स्वीकार करे, और यह परिष्करण परमेश्वर के कार्य की अन्तिम घटना है। यह वह अंतिम समय है जब परमेश्वर के प्रबंधन के समस्त कार्य के समापन से पहले मनुष्य को परिष्कृत किया जाएगा, और वे सब जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं उन्हें इस अंतिम परीक्षा को स्वीकार करना होगा, और इस अंतिम परिष्करण को स्वीकार करना होगा। ऐसे लोग जो क्लेश के द्वारा परेशान हो जाते हैं वे पवित्र आत्मा के कार्य एवं परमेश्वर के मार्गदर्शन से रहित हैं, किन्तु ऐसे लोग जिन्हें सच में जीत लिया गया है और जो सच में परमेश्वर की खोज करते हैं वे अंततः दृढ़ता से स्थिर रहेंगे; वे ऐसे मनुष्य हैं जो विनम्रता एवं दीनता धारण करते हैं, और जो सचमुच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि परमेश्वर क्या करता है, इन विजयी मनुष्यों को दर्शनों से वंचित नहीं किया जाएगा और वे अपनी गवाही में असफल हुए बिना अब भी सत्य को अभ्यास में लाएंगे। ये ऐसे मनुष्य हैं जो अंततः बड़े क्लेश से उभर कर निकलेंगे। यद्यपि वे जो अशांत समुद्र में मछली पकड़ते हैं वे आज भी भारमुक्त हो सकते हैं, फिर भी कोई भी मनुष्य अंतिम क्लेश से बचने के योग्य नहीं है, और कोई भी अंतिम परीक्षा से बच नहीं सकता है। उनके लिए जो विजय प्राप्त करते हैं, ऐसे क्लेश भयंकर परिष्करण हैं; किन्तु उनके लिए जो अशांत समुद्र में मछली पकड़ते हैं, यह पूरी तरह से अलग किए जाने का कार्य है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उन्हें किस प्रकार परखा जाता है, उन लोगों की स्वामी भक्ति अपरिवर्तनीय बनी रहती है जिनके हृदय में परमेश्वर है, किन्तु उनके लिए जिनके हृदय में परमेश्वर नहीं है, जब एक बार परमेश्वर का कार्य उनकी देह के लिए फायदेमन्द नहीं होता है, तो वे परमेश्वर के विषय में अपने दृष्टिकोण को बदल देते हैं, और यहाँ तक कि परमेश्वर को छोड़कर चले जाते हैं। इस प्रकार के लोग ऐसे मनुष्य हैं जो अंत में दृढ़ता से स्थिर नहीं रहेंगे, जो केवल परमेश्वर की आशीषों को ही खोजते हैं और उनके पास परमेश्वर के लिए अपने आपको विस्तृत करने और उसके प्रति अपने आपका समर्पण करने की कोई इच्छा नहीं होती है। इस किस्म के सभी नीच लोगों को तब बहिष्कृत किया जाएगा जब परमेश्वर का कार्य समाप्ति पर आ जाता है, और वे किसी भी प्रकार की सहानुभूति के योग्य नहीं है। ऐसे लोग जो मानवता से रहित हैं वे सचमुच में परमेश्वर से प्रेम करने में असमर्थ हैं। जब माहौल सही सलामत एवं सुरक्षित होता है, या जब वे लाभ प्राप्त कर सकते हैं, तब वे परमेश्वर के प्रति पूरी तरह आज्ञाकारी रहते हैं, किन्तु जब एक बार जिस वस्तु की वे इच्छा करते हैं उससे समझौता करना पड़ता है या अंतत: उसका इंकार कर दिया जाता है, तो वे एकदम से विरोध करते हैं। यहाँ तक कि एक रात के अन्तराल में भी, वे एक मुस्कुराते हुए, "उदार हृदय" वाले व्यक्ति से एक कुरूप एवं जघन्य हत्यारे में बदल जाते हैं, और बिना किसी तर्क या कारण के अचानक ही अपने कल के उपकारकों से अपने शारीरिक शत्रु के समान व्यवहार करने लगते हैं। यदि इन दुष्ट आत्माओं को नहीं निकाला जाता, ऐसे दुष्ट आत्मा जो पलक झपकते ही हत्या कर सकते हैं, तो क्या वे आगे और अधिक मुसीबतों का स्रोत नहीं बनेंगे? विजय के समापन के कार्य का अनुकरण करने से मनुष्य को बचाने के कार्य को हासिल नहीं किया जाता है। यद्यपि विजय का कार्य समाप्ति पर आ गया है, फिर भी मनुष्य के शुद्धिकरण का कार्य समाप्ति पर नहीं आया है; ऐसा कार्य केवल तभी समाप्त होगा जब एक बार मनुष्य को सम्पूर्ण रीति से शुद्ध कर दिया जाता है, जब एक बार ऐसे लोगों को पूर्ण कर लिया जाता है जो सचमुच में परमेश्वर के अधीन होते हैं, और जब एक बार उन बहरुपियों को शुद्ध कर दिया जाता है जो अपने हृदय में परमेश्वर से रहित हैं। ऐसे लोग जो परमेश्वर के कार्य की अन्तिम अवस्था में उसे संतुष्ट नहीं करते हैं उन्हें पूरी तरह से निकाल दिया जाएगा, और ऐसे लोग जिन्हें निकाला गया है वे शैतान के हैं। जबकि वे परमेश्वर को संतुष्ट करने में असमर्थ हैं, तो वे परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोही हैं, और यद्यपि ये लोग आज परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, फिर भी इससे यह साबित नहीं होता है कि वे ऐसे लोग हैं जो अंततः बने रहेंगे। यह कि "ऐसे लोग जो अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करेंगे वे उद्धार प्राप्त करेंगे," इन शब्दों में "अनुसरण करने" का अर्थ है क्लेश के मध्य दृढ़ता से स्थिर रहना। आज, बहुत से लोग मानते हैं कि परमेश्वर के पीछे चलना आसान है, किन्तु जब परमेश्वर का कार्य समाप्त होने ही वाला है, तब तुम "अनुसरण करने" का असली अर्थ जानोगे। सिर्फ इसलिए क्योंकि जीत लिए जाने के पश्चात् तुम आज भी परमेश्वर का अनुसरण करने के योग्य हो, इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि तुम उन लोगों में से एक हो जिन्हें पूर्ण किया जाएगा। ऐसे लोग जो परीक्षाओं को सहने में असमर्थ हैं, जो क्लेशों के मध्य विजयी होने में असक्षम हैं वे अन्ततः दृढ़ता से स्थिर खड़े रहने में असक्षम होंगे, और इस प्रकार वे बिलकुल अंत तक अनुसरण करने में असमर्थ होंगे। ऐसे लोग जो सचमुच में परमेश्वर के पीछे चलते हैं वे अपने कार्य की परीक्षा का सामना करने के योग्य हैं, जबकि ऐसे लोग जो सचमुच में परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते हैं वे परमेश्वर की किसी भी परीक्षाओं का सामना करने में असमर्थ हैं। जल्दी या देर से ही सही उन्हें बाहर निकाल दिया जाएगा, जबकि विजय प्राप्त करनेवाले राज्य में बने रहेंगे। मनुष्य परमेश्वर को खोजता है या नहीं इसका निर्धारण उसके कार्य की परीक्षा के द्वारा किया जाता है, अर्थात्, परमेश्वर की परीक्षाओं के द्वारा किया जाता है, और इसका स्वयं मनुष्य के द्वारा लिए गए निर्णय के साथ, कोई लेना देना नहीं होता है। परमेश्वर सनक के साथ किसी मनुष्य का तिरस्कार नहीं करता है; वह सब कुछ इसलिए करता है ताकि मनुष्य को पूर्णरूप से आश्वस्त किया जा सके। वह ऐसा कुछ भी नहीं करता है जो मनुष्य के लिए अदृश्य हो, या कोई ऐसा कार्य नहीं करता है जो मनुष्य को आश्वस्त न कर सके। मनुष्य का विश्वास सही है या नहीं इसे तथ्यों के द्वारा साबित किया जाता है, और इसका निर्णय मनुष्य के द्वारा नहीं किया जा सकता है। "गेहूँ को जंगली घासपात नहीं बनाया जा सकता है, और जंगली घासपात को गेहूँ नहीं बनाया जा सकता है" इसमें कोई सन्देह नहीं है। वे सब लोग जो सचमुच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं वे अंततः राज्य में बने रहेंगे, और परमेश्वर किसी ऐसे के साथ दुर्व्यवहार नहीं करेगा जो वास्तव में उससे प्रेम करता है। उनके विभिन्न कार्यों एवं गवाहियों के आधार पर, राज्य के भीतर विजय पानेवाले लोग याजकों एवं अनुयायियों के रूप में सेवा करेंगे, और वे सब जो क्लेश के मध्य विजयी हुए हैं वे राज्य के भीतर याजकों का एक समूह बन जाएंगे। याजकों का समूह बनाया जाएगा जब सम्पूर्ण विश्व में सुसमाचार का कार्य समाप्ति पर आ जाएगा। जब वह समय आता है, तब जिसे मनुष्य के द्वारा किया जाना चाहिए वह परमेश्वर के राज्य के भीतर उसके कर्तव्य का निष्पादन होगा, और राज्य के भीतर परमेश्वर के साथ उसका जीवन जीना होगा। याजकों के समूह में महायाजक एवं याजक होंगे, और शेष बचे हुए लोग परमेश्वर की संतान एवं उसके लोग होंगे। यह सब क्लेश के दौरान परमेश्वर के प्रति उनकी गवाहियों के द्वारा निर्धारित किया जाता है, ये ऐसी उपाधियाँ नहीं हैं जिन्हें सनक के साथ दिया गया है। जब एक बार मनुष्य के रुतबे को स्थापित कर दिया जाता है, तो परमेश्वर का कार्य ठहर जाएगा, क्योंकि प्रत्येक को उसके किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है और प्रत्येक अपनी मूल स्थिति में वापस लौट जाता है, और यह परमेश्वर के कार्य के समापन का चिन्ह है, यह परमेश्वर के कार्य एवं मनुष्य के अभ्यास का अन्तिम परिणाम है, और यह परमेश्वर के कार्य के दर्शनों एवं मनुष्य के सहयोग का साकार रुप है। अंत में, मनुष्य परमेश्वर के राज्य में विश्राम पाएगा, और परमेश्वर भी विश्राम करने के लिए अपने निवास स्थान में लौट जाएगा। यह परमेश्वर एवं मनुष्य के बीच 6,000 वर्षों के सहयोग का अन्तिम परिणाम है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास

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