परमेश्वर के दैनिक वचन : अंत के दिनों में न्याय | अंश 89
19 जुलाई, 2022
जो कार्य अब किया जा रहा है, वह लोगों से अपने पूर्वज शैतान का त्याग करवाने के लिए किया जा रहा है। वचन के द्वारा सभी न्यायों का उद्देश्य मानवजाति के भ्रष्ट स्वभाव को उजागर करना और लोगों को जीवन का सार समझने में सक्षम बनाना है। ये बार-बार के न्याय लोगों के हृदयों को बेध देते हैं। प्रत्येक न्याय सीधे उनके भाग्य से संबंधित होता है और उनके हृदयों को घायल करने के लिए होता है, ताकि वे उन सभी बातों को जाने दें और फलस्वरूप जीवन के बारे में जान जाएँ, इस गंदी दुनिया को जान जाएँ, परमेश्वर की बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता को जान जाएँ, और मानवजाति को भी जान जाएँ, जिसे शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है। जितना अधिक मनुष्य इस प्रकार की ताड़ना और न्याय प्राप्त करता है, उतना ही अधिक मनुष्य का हृदय घायल किया जा सकता है और उतना ही अधिक उसकी आत्मा को जगाया जा सकता है। इन अत्यधिक भ्रष्ट और सबसे अधिक गहराई से धोखा खाए हुए लोगों की आत्माओं को जगाना इस प्रकार के न्याय का लक्ष्य है। मनुष्य के पास कोई आत्मा नहीं है, अर्थात् उसकी आत्मा बहुत पहले ही मर गई और वह नहीं जानता है कि स्वर्ग है, नहीं जानता कि परमेश्वर है, और निश्चित रूप से नहीं जानता कि वह मौत की अतल खाई में संघर्ष कर रहा है; वह संभवतः कैसे जान सकता है कि वह पृथ्वी पर इस गंदे नरक में जी रहा है? वह संभवतः कैसे जान सकता है कि उसका यह सड़ा हुआ शव शैतान की भ्रष्टता के माध्यम से मृत्यु के अधोलोक में गिर गया है? वह संभवतः कैसे जान सकता है कि पृथ्वी पर प्रत्येक चीज़ मानवजाति द्वारा बहुत पहले ही इतनी बरबाद कर दी गई है कि अब सुधारी नहीं जा सकती? और वह संभवतः कैसे जान सकता है कि आज स्रष्टा पृथ्वी पर आया है और भ्रष्ट लोगों के एक समूह की तलाश कर रहा है, जिसे वह बचा सके? मनुष्य द्वारा हर संभव शुद्धिकरण और न्याय का अनुभव करने के बाद भी, उसकी सुस्त चेतना मुश्किल से ही हिलती-डुलती है और वास्तव में लगभग प्रतिक्रियाहीन रहती है। मानवजाति कितनी पतित है! और यद्यपि इस प्रकार का न्याय आसमान से गिरने वाले क्रूर ओलों के समान है, फिर भी वह मनुष्य के लिए सर्वाधिक लाभप्रद है। यदि इस तरह से लोगों का न्याय न हो, तो कोई भी परिणाम नहीं निकलेगा और लोगों को दुःख की अतल खाई से बचाना नितांत असंभव होगा। यदि यह कार्य न हो, तो लोगों का अधोलोक से बाहर निकलना बहुत कठिन होगा, क्योंकि उनके हृदय बहुत पहले ही मर चुके हैं और उनकी आत्माओं को शैतान द्वारा बहुत पहले ही कुचल दिया गया है। पतन की गहराइयों में डूब चुके तुम लोगों को बचाने के लिए तुम्हें सख़्ती से पुकारने, तुम्हारा सख़्ती से न्याय करने की आवश्यकता है; केवल तभी तुम लोगों के जमे हुए हृदयों को जगाना संभव होगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल पूर्ण बनाया गया मनुष्य ही सार्थक जीवन जी सकता है
परमेश्वर के न्याय-कार्य का उद्देश्य
1
अभी किए जा रहे कार्य का उद्देश्य है कि लोग अपने पूर्वज शैतान को त्याग दें। वचन के न्याय से उनकी भ्रष्टता उजागर होती, ताकि वे समझें जीवन का सार। भाग्य से जुड़े ये न्याय इंसान का दिल भेद देते, उसके दिल को जख्मी करते, ताकि वो छोड़ दे ये चीज़ें और जान जाए जीवन को, ईश्वर की बुद्धि और ताकत को, और जाने मानवजाति को जिसे भ्रष्ट किया शैतान ने। जितनी होगी ताड़ना और न्याय, उतना ही जख्मी होगा इंसान का दिल, और उतनी ही जागेगी उसकी आत्मा। सबसे अधिक भ्रष्ट और धोखा खाए लोगों की आत्मा को जगाना इस तरह के न्याय का लक्ष्य है।
2
इंसान की आत्मा बहुत पहले मर गई थी, वो ईश्वर या स्वर्ग के बारे में न जाने। वो कैसे जान सके कि वो है मौत की खाई में, धरती पर नरक में? कैसे जान सके कि उसकी लाश भ्रष्ट होकर गिर चुकी है मौत के पाताल में? या ये कि इंसान ने सब इतना खराब कर दिया कि कभी ठीक न हो सके? कैसे जान सके इंसान कि आज ईश्वर धरती पर आया है उन भ्रष्ट लोगों की तलाश में जिन्हें वो बचा सके? सबसे अधिक भ्रष्ट और धोखा खाए लोगों की आत्मा को जगाना इस तरह के न्याय का लक्ष्य है।
3
हर तरह से इंसान के शोधन और न्याय के बाद भी, उसे लगभग कोई होश नहीं, असल में तो वो बेहोश है। इंसानियत कितनी पतित है! भले ही ये न्याय ऐसे बरसे जैसे गिरें आसमान से निर्दयी ओले, पर इंसान को इससे फायदा मिले। अगर इंसान का ऐसे न्याय न किया जाता, तो कुछ भी हासिल न होता; दुख की खाई से इंसान को बचाना मुमकिन न होता। सबसे अधिक भ्रष्ट और धोखा खाए लोगों की आत्मा को जगाना इस तरह के न्याय का लक्ष्य है।
4
अगर ये काम न होता, पाताल से इंसान शायद ही निकल पाता, उसका दिल मर चुका बहुत पहले, आत्मा कुचल दी गई शैतान द्वारा। गहनतम गहराइयों में डूबे तुम लोगों को बचाने का एकमात्र तरीका है कठिन प्रयास से तुम्हारा न्याय करना और तुम्हें बुलाना। सबसे अधिक भ्रष्ट और धोखा खाए लोगों की आत्मा को जगाना इस तरह के न्याय का लक्ष्य है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल पूर्ण बनाया गया मनुष्य ही सार्थक जीवन जी सकता है से रूपांतरित
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