परमेश्वर के दैनिक वचन : देहधारण | अंश 109

मसीह का कार्य तथा अभिव्यक्ति उसके सार को निर्धारित करते हैं। वह अपने सच्चे हृदय से उस कार्य को पूर्ण करने में सक्षम है जो उसे सौंपा गया है। वह सच्चे हृदय से स्वर्ग में परमेश्वर की आराधना करने में सक्षम है, तथा सच्चे हृदय से परमपिता परमेश्वर की इच्छा खोजने में सक्षम है। यह सब उसके सार द्वारा निर्धारित किया जाता है। और इसी प्रकार से उसका प्राकृतिक प्रकाशन भी उसके सार द्वारा निर्धारित किया जाता है; उसके स्वाभाविक प्रकाशन का ऐसा कहलाना इस वजह से है कि उसकी अभिव्यक्ति कोई नकल नहीं है, या मनुष्य द्वारा शिक्षा का परिणाम, या मनुष्य द्वारा अनेक वर्षों संवर्धन का परिणाम नहीं है। उसने इसे सीखा या इससे स्वयं को सँवारा नहीं; बल्कि, यह उसके अन्दर अंतर्निहित है। मनुष्य उसके कार्य, उसकी अभिव्यक्ति, उसकी मानवता, तथा उसके संपूर्ण सामान्य मानवता के जीवन से इनकार कर सकता है, किन्तु कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता है कि वह सच्चे हृदय से स्वर्ग के परमेश्वर की आराधना करता है; कोई भी इनकार नहीं कर सकता है कि वह स्वर्गिक परमपिता की इच्छा पूरी करने के लिए आया है, और कोई भी उस निष्कपटता से इनकार नहीं कर सकता जिससे वह परमपिता परमेश्वर की खोज करता है। यद्यपि उसकी छवि ज्ञानेन्द्रियों के लिए सुखद नहीं है, उसके प्रवचन असाधारण हाव-भाव से सम्पन्न नहीं है, तथा उसका कार्य धरती या आकाश को थर्रा देने वाला नहीं है जैसा कि मनुष्य कल्पना करता है, तब भी वह वास्तव में मसीह है, जो सच्चे हृदय से स्वर्गिक परमपिता की इच्छा पूरी करता है, पूर्णतः स्वर्गिक परमपिता के प्रति समर्पण करता है, तथा मृत्यु तक आज्ञाकारी बना रहता है। यह इस कारण है क्योंकि उसका सार मसीह का सार है। मनुष्य के लिए इस सत्य पर विश्वास करना कठिन है किन्तु वास्तव में इसका अस्तित्व है। जब मसीह की सेवकाई पूर्णतः सम्पन्न हो जाएगी, तो मनुष्य उसके कार्य से देखने में सक्षम हो जाएगा कि उसका स्वभाव तथा अस्तित्व स्वर्ग के परमेश्वर के स्वभाव तथा अस्तित्व का प्रतिनिधत्व करता है। उस समय, उसके संपूर्ण कार्य का कुल योग इस बात की पुष्टि कर सकता है कि वह वास्तव में वही देह है जिसे वचन धारण करता है, और एक मांस और रक्त के मनुष्य के सदृश नहीं है। पृथ्वी पर मसीह के कार्य के प्रत्येक चरण का प्रतिनिधिक महत्व है, किन्तु मनुष्य जो प्रत्येक चरण के वास्तविक कार्य का अनुभव करता है उसके कार्य के महत्व को ग्रहण करने में असक्षम है। ऐसा विशेष रूप से दूसरे देहधारी परमेश्वर के द्वारा किए गए कार्य के अनेक चरणों के लिए है। अधिकांश वे लोग जिन्होंने मसीह के वचनों को केवल सुना या देखा है मगर जिन्होंने उसे कभी देखा नहीं है उनके पास उसके कार्य की कोई अवधारणाएँ नहीं होती हैं; जो मसीह को देख चुके हैं तथा उसके वचनों को सुन चुके हैं, और साथ ही उसके कार्य का अनुभव कर चुके हैं, वे उसके कार्य को स्वीकार करने में कठिनाई अनुभव करते हैं। क्या यह इस वजह से नहीं है कि मसीह का प्रकटन तथा सामान्य मानवता मनुष्य की अभिरुचि के अनुसार नहीं है? जो मसीह के चले जाने के पश्चात् उसके कार्य को स्वीकार करते हैं उन्हें ऐसी कठिनाईयाँ नहीं आएँगी, क्योंकि वे मात्र उसका कार्य स्वीकार करते हैं तथा मसीह की सामान्य मानवता के संपर्क में नहीं आते हैं। मनुष्य परमेश्वर के बारे में अपनी अवधारणाओं को छोड़ने में असमर्थ है तथा इसके बजाय कठोरता से उसकी जाँच करता है; ऐसा इस तथ्य के कारण है कि मनुष्य केवल उसके प्रकटन पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है तथा उसके कार्य तथा वचनों के आधार पर उसके सार को पहचानने में असमर्थ रहता है। यदि मनुष्य उसके प्रकटन के प्रति अपनी आँखे बंद कर ले या मसीह की मानवता पर चर्चा से बचे, तथा केवल उसकी दिव्यता पर बात करे, जिसके कार्य तथा वचन किसी भी मनुष्य द्वारा अप्राप्य हैं, तो मनुष्य की अवधारणाएँ घट कर आधी रह जाएँगी, यहाँ तक कि इस हद तक कि मनुष्य की समस्त कठिनाईयों का समाधान हो जाएगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही मसीह का सार है

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