सिर्फ 300,000 युआन की खातिर
9 अक्तूबर 2009 को रात 9 बजे के आसपास जब मेरी पत्नी, बेटी और मैं एक सभा कर रहे थे, तो अचानक दरवाजे पर किसी ने जोर-जोर से दस्तक दी। मैं लपककर परमेश्वर के वचनों की किताबें छिपाने लगा, और जैसे ही मेरी पत्नी ने दरवाजा खोला, सात पुलिस अधिकारी धड़ाधड़ अंदर घुस आए। उनमें से एक चिल्लाया, “हम राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड से हैं। हमारे साथ चलो!” उन्होंने मुझे एक पुलिस गाड़ी में ठूंस दिया, जबकि तीन अधिकारी पीछे रुककर घर की तलाशी लेने लगे। बाद में मुझे पता चला कि मुझे ले जाने के आधे घंटे बाद मेरी पत्नी को भी हिरासत में ले लिया गया था।
उन्होंने कार में मुझे धमकाते हुए कहा, “तुम्हारे अगुआ को पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया है। अगर तुम हमें वह सब बता दोगे जो तुम जानते हो, तो हम तुम्हारे साथ सख्ती नहीं बरतेंगे।” उन्होंने कलीसिया के बारे में कुछ अपशब्द भी कहे। मैं उनके झूठे लांछन सुनकर भड़क उठा, पर मुझे कुछ डर भी लग रहा था, कि पता नहीं वे मुझे किस तरह की यातना दें। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए उसे मुझ पर नजर रखने के लिए कहा, ताकि चाहे मुझे कैसे भी कष्ट उठाने पड़ें, मैं यहूदा बनकर परमेश्वर से विश्वासघात न करूँ। वे मुझे राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड में ले गए, जहां सादी वर्दी में दो अधिकारी मुझे ऊपर की मंजिल के एक कमरे में ले गए। उन्होंने मुझे एक सोफे पर धकेल दिया तो कप्तान ने मुझसे पूछा, “तुम कबसे धार्मिक बने हो? तुम्हारी सभाएं कहाँ होती हैं? तुम्हारा अगुआ कौन है? तुम्हारी कलीसिया में कितने लोग हैं?” मैंने कोई जवाब नहीं दिया। उसने अपनी जेब से कुछ तस्वीरें निकालकर मुझसे पूछा कि क्या मैं उन लोगों को पहचानता हूँ। मैंने “नहीं” कहा तो वह आगे बोला, “तुम जिस सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हो वह चीन में पूरी तरह प्रतिबंधित है। केंद्रीय समिति बहुत पहले यह आदेश दे चुकी है कि सभी भूमिगत कलीसियाओं का सफाया कर दिया जाए, इसलिए बेहतर है कि तुम अभी और इसी वक्त अपनी जुबान खोल दो!” वह जानना चाहता था कि कलीसिया की 300,000 युआन (लगभग 45,000 डॉलर) की राशि कहाँ थी। एक अधिकारी मेज पर मुक्का मारते हुए और आँखें फैलाते हुए चिल्लाया, “हमारे पास रसीदें हैं और हम जानते हैं कि तुम्हारे पास 300,000 युआन हैं। वह पैसा फौरन हमारे हवाले कर दो!” उसके चेहरे के भयानक भाव देखकर मुझे गुस्सा आ गया और मैंने कहा, “वह तुम्हारा पैसा नहीं है। तो तुम क्यों मांग रहे हो? तुम इसे क्यों जब्त करना चाहते हो?” दो अधिकारी मेरी तरफ बढ़े और मेरे चेहरे पर घूंसे बरसाने लगे। वे रात के दस बजे से बारह बजे तक मुझे थोड़ी-थोड़ी देर बाद इसी तरह मारते रहे। मेरा चेहरा और सिर बुरी तरह से सूज गया, मेरे कान बज रहे थे और पूरे शरीर में दर्द हो रहा था। मैं फर्श पर लेट गया और आँखें बंद करके मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की कि मुझे वह शक्ति दे और मेरे दिल पर नजर रखे, ताकि अगर वे पीट-पीटकर मेरा दम भी निकाल दें तो भी मैं कलीसिया के पैसे को उनके हाथ में न जाने दूँ और यहूदा न बनूँ। जब पुलिस ने देखा कि मैं जुबान नहीं खोलूंगा, तो वे मुझे एक हिरासत केंद्र में ले गए, जहां उन्होंने मुझे रात भर के लिए लोहे की एक रेलिंग के साथ हथकड़ियों में जकड़ दिया।
इसके बाद उन्होंने मुझे एक बंदीगृह में डाल दिया। अगले कुछ दिनों में पुलिस तीन बार मुझे पूछताछ के लिए ले गई। वे जानना चाहते थे कि कलीसिया का पैसा कहाँ है, पर मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया। 17 अक्तूबर को सुबह 8 बजे के कुछ बाद पुलिस मुझे वापस राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड में ले गई। उन्होंने मुझे पूछताछ वाले कमरे में ले जाकर मेरे हाथ-पाँव लोहे की एक कुर्सी से बांध दिए, और पैसे के बारे में पूछने लगे। मैंने तब भी कुछ नहीं बताया। एक अधिकारी ने बारीक कटे बांस की दोहरी छड़ी उठा ली और उसे मेरे सिर और शरीर पर बरसाने लगा, और उससे जबरन मेरा मुंह खोलने की भी कोशिश की। मेरे सिर को लगातार आगे-पीछे झटकते हुए वह इसी तरह प्रहार करता रहा। वह मेरा मुंह नहीं खोल पाया तो सख्ती से मेरे कान मरोड़ते हुए और उन्हें बहुत जोर से ऊपर की तरफ खींचते हुए चिल्लाया, “मैंने तुमसे एक सवाल पूछा है! तुम गूंगे-बहरे हो क्या? तुम्हें लगता है तुम मेरी बात पर ध्यान न देकर बच जाओगे? अगर तुमने अकड़ दिखाई तो बहुत मारूँगा, फिर तुम्हें पता चलेगा कि कौन ज्यादा सख्त है!” यह कहते हुए उसने कानों के पास के मेरे बाल खींचे और फिर मेरे ऊपर के बालों को पकड़कर आगे-पीछे झटकने लगा। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरी खोपड़ी फटकर बाहर आ जाएगी। मेरा सिर बुरी तरह चकराने लगा। वे रात के 10 बजे तक बिना रुके मुझे यातनाएँ देते रहे, और यह देखकर कि मैं मुँह न खोलने पर अड़ा हुआ हूँ, उन्होंने दुष्टता से कहा, “आज के लिए इतना काफी है, पर अच्छा होगा अगर रात को तुम अच्छी तरह से सोच लो और कल हमें हमारे सवालों के जवाब दे दो!” पिटाई के कारण मेरे पूरे शरीर पर निशान पड़ गए थे और मेरी पीठ दर्द से सुलग रही थी। मुझे नहीं पता था कि अगले दिन वे मेरे साथ क्या करने वाले हैं, इसलिए मैं थोड़ा कमजोर पड़ने लगा और मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर! कृपया मेरी रक्षा करो और मुझे इतनी आस्था दो कि मौत के सामने भी मैं यहूदा न बनूँ और तुम्हें धोखा न दूँ।”
अगली शाम, राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड का कप्तान मुझसे पूछताछ करने आया। उसने मेरी तरफ घूरकर देखा और चिल्लाया, “हमारे पास पक्के सबूत हैं और तुम हो कि मानने के लिए तैयार नहीं हो। मेरी सलाह है कि अक्ल से काम लो और सब कुछ उगल दो, वरना तुम्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी!” यह देखकर कि मैं अब भी नहीं बोल रहा हूँ, वह इतना भड़क गया कि मुट्ठियाँ भींचते हुए अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ। उसके चेहरे पर शैतानी भाव थे। मुझे नहीं पता था कि अगर उन मुट्ठियों से वह मुझ पर घूंसे बरसाने लगा तो मैं इसे कितना सह पाऊँगा। मैंने जल्दी से प्रार्थना की, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर! कृपया मेरे साथ रहो और मेरा डर दूर कर दो, गवाही देने में मेरा मार्गदर्शन करो।” अपनी प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर का यह कथन याद आया : “सत्ता में रहने वाले लोग बाहर से दुष्ट लग सकते हैं, लेकिन डरो मत, क्योंकि ऐसा इसलिए है कि तुम लोगों में विश्वास कम है। जब तक तुम लोगों का विश्वास बढ़ता रहेगा, तब तक कुछ भी ज्यादा मुश्किल नहीं होगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 75)। पुलिस कितनी भी खूंखार क्यों न हो, वे सब भी परमेश्वर के हाथों में हैं। वे परमेश्वर की अनुमति के बिना मेरे साथ कुछ नहीं कर सकते, इसलिए मैं जानता था कि गवाही देने के लिए मुझे परमेश्वर पर निर्भर रहना होगा। इस विचार से मेरी आस्था को बल मिला और उसके बाद मुझे उतना डर नहीं लगा। तभी एक गंजा अधिकारी मेरी तरफ देखते हुए चिल्लाया, “तुमने जुबान नहीं खोली तो हमारे पास बहुत-से तरीके हैं! हम तुम्हें प्रादेशिक कार्यालय में ले जाएंगे, और वे लोग तुम्हारा मुँह जरूर खुलवा लेंगे।” पर तमाम धमकियों के बावजूद मैंने तब भी कुछ नहीं कहा।
कुछ दिन बाद वे मुझे राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड के एक दूसरे पूछताछ कमरे में ले गए। इसकी चारों दीवारें काफी मोटे स्पंज से ढँकी हुई थीं, और कमरे के बीचोबीच लोहे की एक कुर्सी पड़ी थी। एक अधिकारी ने मुझे कुर्सी पर बैठाकर मेरे हाथ-पाँव कुर्सी से बांध दिए, और फिर कलीसिया के पैसों के बारे में मुझसे सवाल-जवाब करने लगा। उसने गुस्से से कहा, “तुम 300,000 युआन हमारे हवाले कर रहे हो या नहीं? तुम्हें लगता है कि कुछ न बोलने से काम चल जाएगा? पर मेरे पास तुम्हारे लिए वक्त ही वक्त है।” उसने कटे हुए बांस की वैसी ही छड़ी उठा ली, और मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से पर ताबड़तोड़ बरसाने लगा। वह साथ-साथ चिल्लाता भी जा रहा था, “तुम बहरे हो क्या? सुना नहीं मैंने क्या कहा है?” फिर वह मेरे कान बहुत जोर से ऊपर की तरफ उमेठने लगा और मेरी कनपटियों के बालों को खींचने लगा। इसके बाद उसने मेरे सिर के ऊपर के बालों को कसकर पकड़ लिया और मेरे सिर को जोर-जोर से आगे-पीछे झटकने लगा। मुझे असहनीय पीड़ा हो रही थी और ऐसा लगता था कि मेरी खोपड़ी फटकर बाहर आ जाएगी। इसके बाद वे एक बार फिर मुझे बांस से पीटने लगे। मेरे पूरे शरीर पर सूजन और घावों के निशान पड़ गए। यह दर्द सचमुच ही बर्दाश्त के बाहर था। मुझे उन पुलिस वालों से सख्त घृणा हो गई, और साथ ही यह डर भी लग रहा था कि पता नहीं वे कब तक मुझे इसी तरह यातना देते रहें और पता नहीं कब तक मैं इसे बर्दाश्त कर सकूँ। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, शैतान लगातार मुझ पर जुल्म ढा रहा है, मेरे संकल्प को तोड़ने की कोशिश कर रहा है, ताकि मैं तुम्हारे साथ विश्वासघात कर बैठूँ और वे कलीसिया का पैसा लूट सकें। मुझे डर है कि मेरा शरीर इसे और बर्दाश्त नहीं कर पाएगा, कृपया मेरी रक्षा करो और मुझे आस्था दो।” प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया, जिसका शीर्षक है “परीक्षणों की पीड़ा एक आशीष है” : “निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। परीक्षण मेरे आशीष हैं, और तुममें से कितने मेरे सामने आकर घुटनों के बल गिड़गिड़ाकर मेरे आशीष माँगते हैं? तुम्हें हमेशा लगता है कि कुछ मांगलिक वचन ही मेरा आशीष होते हैं, किंतु तुम्हें यह नहीं लगता कि कड़वाहट भी मेरे आशीषों में से एक है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए, मुझे अहसास हुआ कि दमन और कष्टों के अनुभव से परमेश्वर हमारी आस्था को मजबूत करता है। परमेश्वर को उम्मीद थी कि मैं शैतान के सामने उसकी गवाही दूँगा। मेरे शरीर को चाहे कितनी ही तकलीफ हो, मैं शैतान के आगे झुकूँगा नहीं, बल्कि परमेश्वर की गवाही देकर उसे संतुष्ट करूंगा। इस तरह से सोचते हुए, मुझे यह इतना मुश्किल नहीं लगा, और मैं अपने दाँत भींचकर उनकी यातना सहता रहा। 10-15 मिनट तक पिटाई के बाद भी मैं चुप्पी साधे रहा तो उन्होंने मुझे धमकाते हुए कहा, “तुम कुछ नहीं बक रहे हो—क्या तुम्हें जेल से डर नहीं लगता? अगर तुम्हें जेल हो गई तो हमेशा के लिए तुम पर एक कलंक लग जाएगा। तुम्हारे बच्चे सरकारी नौकरियों या पार्टी में भर्ती नहीं हो सकेंगे। तुम उनका भविष्य बर्बाद कर दोगे!” उनके शब्दों का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ा, क्योंकि मैं जानता था कि लोगों का भाग्य पूरी तरह परमेश्वर के हाथ में है। मेरे बच्चों का भविष्य परमेश्वर के नियमों और व्यवस्थाओं के अधीन था, और इसमें पुलिस को का कोई दखल नहीं था। तभी एक अधिकारी ने मेरी बेटी को फोन किया और मुझे दूसरी तरफ से उसकी आवाज सुनाई दी : “डैड! क्या तुम और मॉम वहाँ ठीक हो?” मैंने उससे कहा, “हम ठीक हैं, चिंता न करो। बस घर पर रहो और अपने भाई का ध्यान रखो।” जब पुलिस ने देखा कि यह तिकड़म काम नहीं आई तो उन्होंने दूसरा तरीका आजमाया और एक अधिकारी ने मुझसे कहा, “मैं तुमसे साफ बात करूंगा। तुम्हारा साला और मैं एक ही शहर से हैं और हम एक ही यूनिट में काम करते हैं। तुम्हारे गाँव का सचिव और मैं फौज में साथ-साथ थे। मैंने इन लोगों से तुम्हारे बारे में पूछा तो सबने कहा कि तुम बहुत अच्छे आदमी हो। इसलिए हमें बता दो कि तुम क्या जानते हो और हम तुम्हें छोड़ देंगे।” मैं जानता था कि यह शैतान की एक चाल थी, इसलिए मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे मेरे दिल की रक्षा करने के लिए कहा। मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो अधिकारी ने आगे कहा, “तुम्हारी पत्नी पहले ही मुँह खोल चुकी है, इसलिए हमें वह बता दो जो हम जानना चाहते हैं। वो 300,000 युआन कहाँ हैं?” मैंने कहा, “मुझे कुछ नहीं मालूम।” यह देखकर कि चिकनी-चुपड़ी बातों का मुझ पर कोई असर नहीं हो रहा, वे एक बार फिर मुझे यातनाएँ देने लगे।
एक रात उन्होंने मुझे खाने और सोने नहीं दिया। जैसे ही मैं आँख बंद करता वे बांस से मेरा सिर थपथपाने लगते। अगर मेरी पीठ जरा भी झुकती, वे बहुत जोर से छड़ी बरसाने लगते। अक्तूबर का महीना था, इसलिए रातें काफी ठंडी थीं, और मैंने सिर्फ कमीज और बिजनेस सूट पहन रखा था। आधी रात के बाद मुझे इतनी ठंड लगने लगती कि मेरे पूरे शरीर में कंपकपी होने लगती। एक अधिकारी ने चिल्लाते हुए कहा, “यह न सोचना कि चुप्पी साधकर तुम बच सकते हो। तुम तिल-तिल करके मरोगे!” यह सुनकर मैं थोड़ा कमजोर पड़ गया। मुझे नहीं पता था कि वे कब तक मुझे यातना देने वाले थे और मैं कब तक इसे बर्दाश्त कर सकता था। मैं लगातार परमेश्वर से प्रार्थना कर रहा था, और मेरा मार्गदर्शन करने और मुझ पर नजर रखने की विनती कर रहा था। मैंने यह भी संकल्प किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करूंगा। पुलिस अधिकारी बदलती शिफ्टों में थे और उन सबने गर्म कपड़े पहन रखे थे, फिर भी उन्हें सर्दी-जुकाम हो रहा था, जबकि मैं पतली-सी कमीज पहने तमाम यातनाएँ झेल रहा था, और फिर भी ठीकठाक था। मैंने परमेश्वर की देखभाल के लिए उसका शुक्रिया किया। एक अधिकारी खाँसते हुए भुनभुनाया, “मेरी इस सर्दी के लिए तुम जिम्मेदार हो!” फिर उनमें से एक ने आगे बढ़कर मेरे बाएँ गाल पर इतने जोर का तमाचा जड़ा कि मुझे तारे दिखाई देने लगे। मुझे पूरा कमरा घूमता हुआ प्रतीत हुआ। दूसरा अधिकारी दूसरी तरफ खड़े-खड़े हँसने लगा, और फिर उसने भी आगे बढ़कर मेरे दूसरे गाल पर उतना ही करारा तमाचा जड़ दिया, और चिल्लाया, “कुछ बकोगे कि नहीं? पैसा कहाँ है? इस पूछताछ से हम सब बीमार पड़ गए हैं। अब हम तुम्हें पीट-पीटकर मार डालेंगे और हिसाब चुकता हो जाएगा!” यह कहते हुए उसने मेरी हथकड़ियों को पकड़कर इतनी सख्ती से खींचा कि वे मेरे मांस पर गड़ने लगीं और बुरी तरह चुभने लगीं। वे मांस में इतने अंदर तक धंस गईं कि मुझे लगा मेरे हाथ टूटकर गिर जाएंगे। जल्दी ही वहाँ काले-नीले निशान पड़ गए—मेरा दर्द के मारे बुरा हाल था, मेरा पूरा शरीर काँप रहा था और पसीना-पसीना हो रहा था। इस तरह की पीड़ा का वर्णन नहीं किया जा सकता। उस समय मुझे लगा कि मैं अपनी बर्दाश्त की सीमा के आखिर तक आ पहुंचा था, इसलिए मैं बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना करने लगा और मेरी रक्षा करने और मुझे मजबूती से खड़ा रहने में सक्षम बनाने के लिए विनती करने लगा। मेरे चेहरे पर पीड़ा के भाव देखकर एक अधिकारी ने व्यंग्य किया, “तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो न, तो उसे अपनी मदद के लिए क्यों नहीं बुलाते?” मैं जानता था कि शैतान मेरी परीक्षा ले रहा है। मैं सोच रहा था कि कम्युनिस्ट पार्टी यातना का इस्तेमाल करके मुझे परमेश्वर को नकारने और धोखा देने के लिए विवश करना चाहती है, लेकिन उसने मुझे जितनी यातना दी उतना ही स्पष्ट मुझे परमेश्वर से घृणा करने और उसका विरोध करने वाला उसका चेहरा दिखने लगा, और परमेश्वर में आस्था रखने और उसका अनुसरण करने का मेरा संकल्प उतना ही दृढ़ हो गया। फिर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर! तुम आज कम्युनिस्ट पार्टी की इस बर्बर यातना को होने दे रहे हो ताकि मैं यह देख सकूँ कि यह दुष्ट शैतान है और यह तुम्हारी शत्रु है। मैं इसे दिल से त्यागने और नकारने के लिए तैयार हूँ, और तुम्हारा अनुसरण करने के लिए दृढ़-संकल्प हूँ!”
इसके बाद एक अधिकारी ने अपने जूते की एड़ी से मेरी हथकड़ियों को कई बार इतने जोर से दबाया कि वे मेरी कलाइयों के मांस के अंदर गहराई तक घुस गईं। पीड़ा इतनी भयानक थी कि मैं सांस भी नहीं ले पा रहा था। एक घंटे बाद मेरे हाथ काले पड़ने शुरू हो गए और मेरे पूरे शरीर की नसें बुरी तरह तन गईं। मुझे लगा मेरा सिर फट जाएगा और मेरे दिल में भी दर्द हो रहा था। मेरे पूरे शरीर का ही दर्द से इतना बुरा हाल था कि मैं वर्णन नहीं कर सकता। मुझे लगा कि अगर यह जारी रहा तो मैं कभी भी अपने हाथों का इस्तेमाल नहीं कर पाऊँगा। मैंने अपने बूढ़े पिता के बारे में सोचा जिन्हें देखभाल की जरूरत थी, मेरी बेटी और बेटा भी अभी छोटे थे। अगर मेरे हाथ ही न रहे तो मैं कैसे उनकी देखभाल कर पाऊँगा? मैं क्यों न इन्हें कुछ फिजूल की बातें बता दूँ। पर मैं यह भी जानता था कि अगर मैं बिक गया तो युगों-युगों तक यह पाप मेरा पीछा न छोड़ेगा। पर मैं सचमुच यह यातना और बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। मैं मर जाना चाहता था ताकि मुझे इस तकलीफ से मुक्ति मिल जाए और मैं परमेश्वर के साथ धोखा भी न करूँ। मैं मेज के कोने से खुद को बेध देना चाहता था, ताकि मैं मर जाऊँ और इस यातना का खात्मा हो जाए। मैंने रोते-रोते परमेश्वर से आखिरी प्रार्थना की, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर! तुम्हारे अनुग्रह के कारण ही मैं अंत के दिनों के तुम्हारे कार्य का अनुभव कर पाया। मैं इतनी जल्दी मरना नहीं चाहता, पर मैं शैतान की यातना को और बर्दाश्त नहीं कर सकता, और मुझे डर है कि कहीं मैं तुम्हें धोखा न दे दूँ। मैं तुम्हें दुख पहुंचाना नहीं चाहता।” प्रार्थना के दौरान मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आए : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिलकुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी आस्था को बल दिया। परमेश्वर मेरी आस्था को पूर्ण बनाने के लिए मुझे पीड़ा में से गुजार रहा था, पर परमेश्वर की इच्छा को न समझकर मैं यह नहीं सोच पा रहा था कि शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही कैसे दूँ। मैं सिर्फ इस स्थिति से बचने की सोच रहा था। कितना स्वार्थी था मैं! मैं जानता था कि मैं इस तरह नहीं मर सकता—जब तक मुझमें एक भी सांस बाकी थी, मुझे परमेश्वर की गवाही के लिए खड़े रहना होगा! मैंने प्रार्थना की, “परमेश्वर, मेरी जिंदगी तुम्हारे हाथों में है, और मेरे लिए तुम्हारी जो भी योजना है मैं उसके लिए खुद को अर्पित करना चाहता हूँ। कृपया मुझे आस्था दो और मेरी रक्षा करो, ताकि मैं मजबूती से खड़ा रहूँ।” जब पुलिस ने देखा कि वे मुझसे कुछ भी उगलवा नहीं सकते तो वे मुझे धमकाते हुए बोले, “रात भर अच्छी तरह से सोच-विचार करो, कल हम वापस आकर तुमसे कुछ सवाल पूछेंगे।”
तब तक मैं तीन दिन और दो रातों से सो नहीं पाया था। मैं थकान से बेहाल हो रहा था, और दिल में दर्द उठने के साथ-साथ मेरा पूरा शरीर बुरी तरह दुख रहा था। अगले दिन पुलिस की फिर से पूछताछ के ख्याल ने मुझे रात भर जगाए रखा और मैं लगातार परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा, “हे परमेश्वर! मुझे डर है कि पुलिस कल फिर मुझे यतनाएँ देगी और मेरा शरीर इसे सहन नहीं कर पाएगा। परमेश्वर, कृपया मेरी रक्षा करो और मुझे आस्था और शक्ति प्रदान करो। मैं गवाही देकर शैतान को लज्जित करना चाहता हूँ।” प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आए : “जब तुम कष्टों का सामना करते हो, तो तुम्हें देह की चिंता छोड़ने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायतें न करने में समर्थ होना चाहिए। जब परमेश्वर तुमसे अपने आप को छिपाता है, तो उसका अनुसरण करने के लिए तुम्हें अपने पिछले प्रेम को डिगने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए विश्वास रखने में समर्थ होना चाहिए। परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, तुम्हें उसकी योजना के प्रति समर्पण करना चाहिए, और उसके विरुद्ध शिकायतें करने के बजाय अपनी देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब परीक्षणों से तुम्हारा सामना हो, तो तुम्हें परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, भले ही तुम फूट-फूटकर रोओ या अपनी किसी प्यारी चीज से अलग होने के लिए अनिच्छुक महसूस करो। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया और मेरी समझ में आया कि परमेश्वर यह सब इसलिए होने दे रहा है ताकि यह परीक्षा हो सके कि मेरी आस्था सच्ची है या नहीं, और मुझे परमेश्वर की गवाही देने का अवसर मिल सके। मुझे शैतान द्वारा ली गई अय्यूब की परीक्षा याद आई, जिसमें वह अपनी सारी संपत्ति, घर-बार और बीवी-बच्चे खो बैठा था और उसके पूरे शरीर पर फफोले पड़ गए थे। फिर भी अय्यूब ने परमेश्वर को दोष नहीं दिया और उसकी प्रशंसा करता रहा, और उसने परमेश्वर की बहुत शानदार गवाही दी। पतरस को भी जुल्म का सामना करना पड़ा और वह परमेश्वर की खातिर उल्टा लटककर सूली पर चढ़ने के लिए तैयार था। वह परमेश्वर से प्रेम करता रहा और उसके प्रति इस हद तक समर्पित था कि उसने अपना जीवन तक त्याग दिया। पर मैं कुछ पुलिस अधिकारियों की क्रूर यातनाओं के बाद अपने शरीर के बारे में सोचने लगा था और थोड़े-से कष्टों के बाद बच निकलना चाहता था। मुझमें सच्ची आस्था और परमेश्वर के लिए आज्ञाकारिता नहीं थी, गवाही देना तो दूर की बात थी। मैंने इसके बारे में जितना सोचा उतना ही शर्मिंदा होता रहा। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मेरा जीवन निरर्थक है। इसके बाद पुलिस चाहे मेरे साथ जो भी करे, मुझे कितनी ही शारीरिक पीड़ा क्यों न झेलनी पड़े, मैं अब खुद के बारे में नहीं सोचूंगा। मैं खुद को तुम्हारे हाथों में सौंपना चाहता हूँ, और तुम्हारे आयोजनों और व्यवस्थाओं के आगे समर्पण करना चाहता हूँ।” इस प्रार्थना के बाद कुछ आश्चर्यजनक घटा—मेरे शरीर की सारी पीड़ा अचानक ही गायब हो गई और मैं बहुत हल्का महसूस करने लगा। मैंने दिल से परमेश्वर का आभार प्रकट किया। अगले दिन सुबह 8 बजे के आसपास पुलिस फिर मुझसे पूछताछ करने आई, यह जानने के लिए कि पैसा कहाँ है, पर उन्होंने चाहे कैसे भी सवाल किए, मैं यही कहता रहा कि मुझे कुछ नहीं मालूम। वे थोड़ी-थोड़ी देर बाद कई बारियों में घुमा-फिराकर यही सवाल पूछते रहे, पर जब उन्हें मुझसे कोई जानकारी नहीं मिल पाई तो उन्होंने जाते-जाते कहा, “अब जेल जाने के लिए तैयार रहो!” मैंने मन-ही-मन कहा कि अगर मैं अपनी आखिरी सांस तक भी जेल में रहा तो भी मैं परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करूंगा।
मुझे एक महीना अंदर रखने के बाद, आखिर उन्होंने मुझे एक साल के लिए परिश्रम द्वारा पुनर्शिक्षण की सजा सुनाई। मुझ पर “कानून व्यवस्था को कमजोर करने के लिए एक पंथिक संस्था का इस्तेमाल करने” का आरोप लगाया गया था। यह देखकर कि कम्युनिस्ट पार्टी आस्थावान लोगों से कितनी घृणा करती है, मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आ गए : “फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा रहता है : इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहाँ राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, लंबे समय पहले ही वे परमेश्वर से शत्रु की तरह पेश आने लगे थे, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत कर देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! ... परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहाँ हैं? निष्पक्षता कहाँ है? आराम कहाँ है? गर्मजोशी कहाँ है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखे भरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए, जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे? मनुष्यों की गर्मजोशी कहाँ है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। कम्युनिस्ट पार्टी ऐसा दिखाने की कोशिश करती है मानो यह सद्गुणों और नैतिकता की मूर्ति हो, हर समय धार्मिक आजादी का ढिंढोरा पीटने के बावजूद यह गुप्त रूप से परमेश्वर के चुने हुए लोगों की धर-पकड़ और उत्पीड़न में जुटी रहती है, यह सोचकर कि इस तरह विश्वासियों का सफाया किया जा सकता है। मानवजाति का सृजन परमेश्वर द्वारा किया गया है, और हमारा आस्था रखना और परमेश्वर की आराधना करना बिल्कुल सही और स्वाभाविक है। पर कम्युनिस्ट पार्टी पागलों की तरह हमें गिरफ्तार करने और हमारा दमन करने पर तुली हुई है, ताकि हम परमेश्वर को नकारकर उसके साथ विश्वासघात करें। मेरी समझ में आया कि कम्युनिस्ट पार्टी का राज शैतान के राज की तरह है—पार्टी सत्य से घृणा करती है और परमेश्वर से घृणा करती है। यह अपने सार में शैतान की तरह है, जो परमेश्वर का शत्रु है। इससे पहले मैं कभी भी कम्युनिस्ट पार्टी का शैतानी सार नहीं देख पाया था, लेकिन मेरी गिरफ्तारी ने मुझे यह पहचान करने लायक बना दिया था, और मैं इसे दिल से त्यागने और नकारने में सक्षम हो पाया। परमेश्वर का अनुसरण करने का मेरा आत्म-विश्वास भी और ज्यादा अटल हो गया।
9 नवंबर 2009 को मुझे श्रम शिविर में ले जाया गया, जहां पुलिस ने दो दूसरे कैदियों को मुझ पर नजर रखने के लिए कहा। वे कभी भी मेरा पीछा नहीं छोडते थे और मुझे मूत्रालय जाने के लिए भी उनकी अनुमति लेनी पड़ती थी। जेल के गार्ड मुझे किसी से बात नहीं करने देते थे, इस डर से कि कहीं मैं सुसमाचार का प्रचार न करने लगूँ। हर रोज मुझे जेल के नियम भी सुनाने पड़ते थे। अगर मेरे बोलने में कोई गलती हो जाती तो मुझे सजा के तौर पर खड़ा रहना पड़ता था। हर दिन सुबह से लेकर रात तक मुझे कठोर परिश्रम करना पड़ता था, और अगर मैं अपने काम खत्म न कर पाता तो मुझे गाली सुननी पड़ती, मार पड़ती या खड़े रहना पड़ता। मुझे जो कुछ खाने को दिया जाता था वह सूअरों को दिए जाने वाले भोजन से भी बदतर था। हर भोजन में मुझे सिर्फ एक छोटा बन-पाव और पानी जैसा सूप दिया जाता था, जिसमें छोटी उंगली जितनी एक गाजर होती थी। मुझे भूखे पेट ही कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। मैं बहुत दुखी और हताश हो जाता तो मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता, या चुपके-से परमेश्वर के वचनों के कुछ भजन गुनगुनाने लगता। जेल का वह एक साल मैंने इसी तरह काटा।
जेल से छूटने के बाद पुलिस ने मुझे चेतावनी दी, “तुम एक साल तक अपने घर से ज्यादा दूर नहीं जा सकते। हम जब भी तुम्हें बुलाएँ, तुम्हें हाजिरी देनी होगी।” घर पहुँचने के बाद मुझे पता चला कि मेरी पत्नी को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस उससे लगातार कलीसिया के पैसे के बारे में पूछती रही। उसने उन्हें कुछ नहीं बताया और 23 दिन एक बंदीगृह में रखने के बाद उसे रिहा कर दिया गया। जब पुलिस को पैसे का कोई अता-पता नहीं लग पाया तो उन्होंने दो बार हमारे घर आकर तलाशी ली और हमारी छत की सीलिंग तक खोलकर देखी। उन्होंने हमारे दोनों बच्चों से हमारी आस्था के बारे में भी पूछताछ की। वे मेरे बेटे को परेशान करने के लिए उसके स्कूल भी गए। हमारे बच्चे इतने डर गए थे कि वे हर समय घबराए रहते थे और असुरक्षित महसूस करते थे। यह देखकर कि इन अधिकारियों ने कुछ पैसों पर कब्जा करने के लिए छोटे बच्चों को भी चैन से नहीं जीने दिया था, मैं कम्युनिस्ट पार्टी के इन राक्षसों के प्रति घृणा से भर उठा। रिहाई के बाद पुलिस की निगरानी के कारण मेरे परमेश्वर के वचन पढ़ने या सभाओं में भाग लेने पर रोक लग गई थी। सुसमाचार का प्रचार करने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए मेरे पास शहर से दूर चले जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। पुलिस आज भी मेरे पीछे पड़ी है और मेरा पता जानने के लिए मेरे रिश्तेदारों या मेरे संपर्क में रहे भाई-बहनों पर दबाव डालती रहती है।
इस उत्पीड़न और कष्ट के दौरान मैं कुछ शारीरिक पीड़ा से गुजरा, पर मैंने परमेश्वर के प्रेम को भी सचमुच महसूस किया। जब भी मुझे यातना दी जाती थी, तो बर्दाश्त की आखिरी सीमा तक पहुँचने के बाद परमेश्वर के वचन ही मुझे आस्था और शक्ति प्रदान करते थे, और मुझे मजबूती से खड़ा रहने का रास्ता दिखाते थे। परमेश्वर के वचनों ने ही मुझे शैतान की चालों को समझना और एक के बाद एक उसके प्रलोभनों से उबरना सिखाया था। इस सबके दौरान मैं परमेश्वर के वचनों के सामर्थ्य और अधिकार को महसूस करने और यह समझने में सफल रहा था कि सिर्फ परमेश्वर ही मानवजाति को बचा सकता है। परमेश्वर में मेरी आस्था और बढ़ गई थी। मैंने कम्युनिस्ट पार्टी का दुष्ट चेहरा भी देख लिया था, कि यह परमेश्वर से घृणा करती है और उसके खिलाफ काम करती है। मैं अपने दिल की गहराई से इसे त्यागने और नकारने में सक्षम रहा था। भविष्य में भी चाहे मुझे कितना ही उत्पीड़न और कष्ट झेलने पड़ें, मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने का अपना कर्तव्य निभाता रहूँगा।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?