ईसाइयों के लिए अनिवार्य: सच्चे मसीह और झूठे मसीहों के बीच अंतर कैसे करें

01 जुलाई, 2020

सभी प्रकार की आपदाएँ अब घटित हो रही हैं और प्रभु के आने से संबंधित बाइबल की भविष्यवाणियाँ अब काफी हद तक पूरी हो चुकी हैं। कई भाई-बहन अपने दिलों में महसूस करते हैं कि प्रभु पहले से ही लौट आए हैं, और वे सभी प्रभु को खोज रहे हैं। फिर भी ऐसे कई लोग हैं जो बाइबल की इन आयतों के बारे में सोचते हैं, "उस समय यदि कोई तुम से कहे, 'देखो, मसीह यहाँ है!' या 'वहाँ है!' तो विश्‍वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्‍ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें" (मत्ती 24:23-24)। वे किसी को यह गवाही देते हुए सुनने के बाद भी कि प्रभु लौट आए हैं, इस दावे की तलाश या छानबीन नहीं करते हैं, बल्कि धार्मिक दुनिया का अनुसरण करते रहते हैं और इस धारणा पर दृढ़ रहते हैं कि "ऐसा कोई भी संदेश जिसमें यह कहा गया हो कि प्रभु सशरीर वापस आ गये हैं, झूठ है।" यदि हम ऐसा करते हैं, तो क्या हम प्रभु की वापसी का स्वागत कर पाएँगे? प्रभु यीशु ने कई बार भविष्यवाणी की है कि वे वापस लौट कर आएँगे, इसलिए यदि हमने उनकी बातों का यह अर्थ निकाला कि ऐसा कोई भी संदेश जिसमें यह कहा जाए कि प्रशु सशरीर वापस आ गये हैं, झूठ है, तो क्या हम प्रभु की वापसी से इन्कार नहीं करेंगे? हम तब परमेश्वर का विरोध कर रहे होंगे और वास्तव में एक भयानक गलती करेंगे। जब प्रभु की वापसी की प्रतीक्षा करने की बात आती है, तो हम निष्क्रिय रूप से सतर्क नहीं रह सकते हैं, ऐसा करने पर, हम प्रभु की वापसी से चूक जायेंगे। प्रभु का स्वागत करने के लिए, हमें सक्रिय रूप से परमेश्वर की वाणी को सुनने की कोशिश करते रहना जरूरी है, जैसा कि बाइबल में कहा गया है, "आधी रात को धूम मची: 'देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो'" (मत्ती 25:6)। प्रकाशित वाक्य की पुस्तक में भी भविष्यवाणी की गई है, "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20), और "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)। यह प्रभु की ही इच्छा है कि हम सतर्क रहें और परमेश्वर की वाणी को सुनने की तरफ अपना ध्यान केंद्रित करें। जिस क्षण कोई यह गवाही देता है कि प्रभु लौट आए हैं, हमें बुद्धिमान कुँवारी बनना होगा जो सक्रिय रूप से प्रभु की वाणी की खोज करती है, केवल इसी तरह से हम प्रभु का स्वागत करने में सक्षम होंगे। यदि हम सिर्फ़ झूठे मसीहों से सतर्क रहें और जब प्रभु वापस आयें तो भी अपने द्वार बंद रखें, तो क्या यह ऐसा नहीं होगा जैसे कि हम घुटन होने के भय से भोजन करना ही बंद कर दें? और क्या हम तब उन मूर्ख कुँवारियों की तरह नहीं होंगे, जो प्रभु का स्वागत करने में असमर्थ थीं, और उनका परित्याग करके हटा दिया गया? परमेश्वर की भेड़ उसकी वाणी को सुनती है; जिन लोगों के पास वास्तव में क्षमता और विवेक है, वे परमेश्वर की वाणी को सुनेंगे, वे सत्य की खोज कर सकते हैं, सच्चे मसीह और झूठे मसीह के बीच भेद कर सकते हैं। वे झूठे मसीहों से ठगे नहीं जाएँगे। इसलिये हमें अब यह समझने की जरूरत है कि कैसे सच्चे मसीह और झूठे मसीह के बीच भेद किया जा सकता है। केवल ऐसा करने से ही हम झूठे मसीहों के छल से बच पाएँगे, और हम प्रभु की वापसी का स्वागत करने में सक्षम होंगे। नीचे दी गई हमारी संगति सत्य के इस पहलू से संबंधित है।

सच्चे मसीह और झूठे मसीह

सच्चे मसीह और झूठे मसीह के बीच भेद करने का पहला तरीका: मसीह को सत्य, मार्ग और जीवन के रूप में पहचानना

यह जानने के लिए कि कोई सच्चा मसीह है या झूठा मसीह, हमें देखना होगा कि क्या वे सत्य को व्यक्त कर सकते हैं या नहीं और क्या वे मनुष्य के उद्धार का कार्य कर सकते हैं या नहीं। परमेश्वर कहता है, "जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अनाड़ी और अज्ञानी होने का पता चलता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। "देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि वह परमेश्वर का सार धारण करता है, और अपने कार्य में परमेश्वर का स्वभाव और बुद्धि धारण करता है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। वे जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते हैं, धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्य के बीच रहकर अपना कार्य करता और पूरा करता है। यह देह किसी भी आम मनुष्य द्वारा उसके बदले धारण नहीं की जा सकती है, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य पर्याप्त रूप से संभाल सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है। जो मसीह का भेस धारण करते हैं, उनका देर-सवेर पतन हो जाएगा, क्योंकि वे भले ही मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें मसीह के सार का लेशमात्र भी नहीं है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि मसीह की प्रामाणिकता मनुष्य द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती, बल्कि स्वयं परमेश्वर द्वारा ही इसका उत्तर दिया और निर्णय लिया जा सकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)

परमेश्वर का यह बहुत ही स्पष्ट वचन है कि केवल देहधारी परमेश्वर को ही मसीह कहा जा सकता है। मसीह परमेश्वर का आत्मा है जो देहधारण करके आया है, अर्थात वह जो है, परमेश्वर का स्वभाव, और परमेश्वर की बुद्धि, यह सभी चीजें उस देह में साकार हुई हैं। मसीह दिव्य सार से युक्त है, उसमें सत्य निहित है; वह चरवाहे को सत्य व्यक्त कर सकता है, वह किसी भी समय और किसी भी स्थान पर मनुष्य के भरण-पोषण की व्यवस्था कर सकता है, केवल मसीह ही मानवजाति के छुटकारे और उद्धार का कार्य कर सकता है। यह एक निर्विवाद सत्य है। उदाहरण के तौर पर, प्रभु यीशु देहधारी मसीह था; वह किसी भी समय और किसी भी स्थान पर सत्य को व्यक्त करने में सक्षम था, वह मनुष्य के लिये पश्चाताप का मार्ग लेकर आया, उसने मनुष्य को नियमों की बाध्यता से मुक्ति प्रदान की। प्रभु ने हमारे लिए कुछ अपेक्षाएं भी बनाईं ताकि हम यह समझ सकें कि दूसरों से कैसे प्रेम किया जाता है और उन्हें कैसे क्षमा किया जाता है, हमारे पापों को अपने ऊपर लेने के लिए वह स्वयं सूली पर चढ़ गया। प्रभु यीशु द्वारा किये गये सभी कार्य और उसके द्वारा बोले गये सभी वचन, मानवजाति के प्रति उसका प्रेम और दया ऐसी चीजें थीं जिन्हें कोई भी मनुष्य कभी भी हासिल नहीं कर सकता था, वे पूर्ण रूप से परमेश्वर की पहचान को दर्शाती हैं।

दूसरी तरफ, झूठे मसीहों में बुरी आत्माओं और राक्षसों का सार होता है। झूठे मसीह सर्वथा सत्यहीन होते हैं, खास तौर पर वे सत्य व्यक्त करने में सक्षम नहीं होते हैं। उनमें से ज्यादातर अभिमानी होते हैं और अत्यधिक बेतुके होते हैं। वे जानते हैं कि लोग बाइबल के ज्ञान को आदर्श मानते हैं, और इसलिए वे बाइबल का गलत अर्थ निकालने, संदर्भ से बाहर आयातों की व्याख्या करने, और लोगों को झांसा देने के इरादे से सभी प्रकार के अर्थहीन सिद्धांत प्रस्तुत करने के लिए इस मानसिकता का प्रयोग करते हैं। उनके वचन लोगों के स्वभावों को बदलने या लोगों को परमेश्वर के बारे में जानने देने में केवल असमर्थ ही नहीं होते हैं, बल्कि वे लोगों की आत्मा को अंधकार और उदासी की तरफ ले जाते हैं। वे सभी मानवजाति को खोज करने और जाँच-पड़ताल करने देने के लिये अपने वचनों को सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं, बल्कि वे गुप्त रूप से केवल मुट्ठी भर अविवेकी लोगों को ही झांसा दे सकते हैं। अत:, सच्चे मसीह और झूठे मसीह के बीच भेद करने के लिए, हमें पहले उसके सार को जानना जरूरी है; केवल वही मसीह जो दिव्य सार से युक्त है, मानवजाति को बचाने और उसका भरण-पोषण करने के लिए सत्य को व्यक्त करने में सक्षम है, जबकि बिना दिव्य सार वाले मसीह यह नहीं कर सकते, चाहे उनके पास कितना भी ज्ञान क्यों न हो या वे कितने भी सक्षम क्यों न हों। बुरी आत्माएँ और राक्षस तो सत्य को व्यक्त करने या मनुष्य के उद्धार का कार्य करने में और भी कम सक्षम होती हैं; वे केवल लोगों को झांसा दे सकते हैं और उन्हें भ्रष्ट कर सकते हैं। अत: यह स्पष्ट है कि सच्चे मसीह और झूठे मसीह के बीच भेद करने के लिए, हमें यह पहचान करनी जरूरी है कि मसीह ही सत्य, मार्ग, और जीवन है। यह वैसा ही है जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था, "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ" (यूहन्ना 14:6)। "ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं" (प्रकाशितवाक्य 14:4)

सच्चे मसीह और झूठे मसीह के बीच भेद करने का दूसरा तरीका: परमेश्वर का कार्य हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं होता, वह अपने कार्य को दोहराता नहीं है

जैसा कि हम सभी जानते हैं, परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं होता है, और वह अपने कार्य को दोहराता नहीं है। अत: हम इस बिंदु का प्रयोग सच्चे मसीह और झूठे मसीह के बीच भेद करने के लिए कर सकते हैं। सबसे पहले, हम परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ें, "यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा। यह याद रखो! परमेश्वर वही कार्य नहीं दोहराता। कार्य का यीशु का चरण पहले ही पूरा हो चुका है, और परमेश्वर कार्य के उस चरण को पुनः कभी हाथ में नहीं लेगा। ... यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अब भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करे, और अब भी दुष्टात्माओं को निकाले और बीमारों को चंगा करे—यदि वह बिल्कुल यीशु की तरह करे—तो परमेश्वर वही कार्य दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं रह जाएगा। इसलिए परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य का एक चरण पूरा करता है। ज्यों ही उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा होता है, बुरी आत्माएँ शीघ्र ही उसकी नकल करने लगती हैं, और जब शैतान परमेश्वर के बिल्कुल पीछे-पीछे चलने लगता है, तब परमेश्वर तरीक़ा बदलकर भिन्न तरीक़ा अपना लेता है। ज्यों ही परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, बुरी आत्माएँ उसकी नकल कर लेती हैं। तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना)

हम परमेश्वर के वचनों से यह देख सकते हैं कि परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं होता है, और वह अपने कार्य को दोहराता नहीं है। जब भी परमेश्वर कार्य करता है, वह एक नये युग की शुरुआत करता है और पुराने युग का समापन करता है, वहकार्य का नया और उच्च चरण लेकर आता है। उदाहरण के तौर पर, यहोवा परमेश्वर ने नियमों और आदेशों की घोषणा करने और लोगों के जीवन की अगुआई करने संबंधी व्यवस्था के युग के कार्य को पूरा किया। जब प्रभु यीशु अपना कार्य पूरा करने आया, तो उसने उस कार्य को नहीं दोहराया जो उसने पहले किया था; इसके बजाय, उसने व्यवस्था के युग का समापन किया और अनुग्रह का युग आरंभ किया, उसने मनुष्य के उद्धार और उसके पाप को क्षमा करने का कार्य किया। केवल परमेश्वर ही ऐसे कार्य को कर सकता था। क्योंकि झूठे मसीह के पास परमेश्वर का सार नहीं है, अत: वे परमेश्वर का कार्य करने में असमर्थ होते हैं, खास तौर पर वे किसी नये युग की शुरुआत करने और पुराने युग का समापन करने में असमर्थ होते हैं। वे केवल परमेश्वर के कार्य के चिह्नों का पीछा कर सकते हैं, परमेश्वर की वाणी के लहजे और उसके द्वारा बोले गये वचनों की नकल उतारते हैं, परमेश्वर द्वारा अतीत में किए गए कार्य का अनुकरण करते हैं। वे कुछ सरल संकेत और चमत्कार प्रदर्शित करते हैं, लोगों को धोखा देने के लिए परमेश्वर होने का दिखावा करते हैं। इसके अतिरिक्त, झूठे मसीहों के पास कोई अधिकार नहीं होता है; वे चाहेप्रभु की नकल करने की जितनी भी कोशिश करें, वे ऐसे संकेत और चमत्कार कभी नहीं कर सकते जैसा कि प्रभु यीशु ने किया था, जैसे कि दो मछलियों एवं पाँच रोटियों से पाँच हजार लोगों का पेट भरना और मृत लाजर को फिर से जीवित करना। इसका अर्थ यह है कि अंत के दिनों में परमेश्वर, प्रभु यीशु द्वारा इससे पहले किये गये कार्य को बिल्कुल भी नहीं दोहराएगा, और अंत के दिनों में वे सभी जो परमेश्वर के कार्य की नकल करते हैं, जो कुछ सरल संकेत और चमत्कार प्रदर्शित करते हैं, बीमार को चंगा कर देते हैं और लोगों को झांसा देने के लिए दुष्टात्मा का बहिष्कार करते हैं, वे निश्चित रूप से छद्म वेष में बुरी आत्माएँ हैं—वे झूठे मसीह हैं। इसलिए प्रभु यीशु ने हमें यह चेतावनी दी है, "क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्‍ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें" (मत्ती 24:24)

इस संगति से, अब हम जानते हैं कि केवल मसीह के पास ही परमेश्वर के जीवन का सार है, केवल मसीह ही सत्य को व्यक्त कर सकता है और लोगों को पोषण दे सकता है। ऐसे लोग जो सत्य से प्रेम करते हैं और सत्य के प्यासे होते हैं, वे जब परमेश्वर के वचन सुनते हैं तो वे उसके वचन से आकर्षित होते हैं और जीत लिए जाते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के होते हैं; वे परमेश्वर की वाणी को समझने में सक्षम होते हैं और मसीह को स्वयं परमेश्वर के रूप में पहचान लेते हैं। उदाहरण के तौर पर, पतरस, यूहन्ना और अन्य शिष्य, इन सभी ने प्रभु यीशु के वचनों से पहचाना कि मसीहा वापस आ गया है, और इसलिए एक-एक करके उन्होंने उसका अनुसरण करना शुरू कर दिया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अब अंत के दिनों में आया है, और परमेश्वर के घर से शुरुआत करते हुए, वह न्याय का कार्य करता है, वह मानवजाति को बचाने के लिए सभी सत्य व्यक्त करता है; वह पूर्ण रूप से परमेश्वर के छह हजार वर्ष के प्रबंधन कार्य के रहस्य को प्रकट करता है, वह मनुष्य की शैतानी प्रकृति और सार को उजागर करता है, ताकि उसे अपने भ्रष्टाचार की सत्यता का पता चल सके और वह ऐसे मार्ग पर चले जो उसके स्वभाव को बदल दे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कई अन्य बातों के साथ हमें यह भी बताता है कि कैसेपरमेश्वर के वचनों का अभ्यास करना है, कैसे उचित मानवता के साथ जीना है, और ये सभी चीजें अनंत जीवन के मार्ग हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा किया गया मानवजाति के उद्धार का कार्य स्वयं परमेश्वर का कार्य है, जो बाइबल में दी गई इन भविष्यवाणियों को पूरा करता है, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ" (यूहन्ना 12:47)

अब, सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किये गये वचनों की पुस्तक, वचन देह में प्रकट होता है, को दुनिया भर के सत्य प्रेमियों द्वारा अनुसरण और जाँच-पड़ताल के लिए ऑनलाइन सार्वजनिक कर दिया गया है। बहुत से ऐसे लोग जो परमेश्वर के प्रकटन करने के लिए तरसते रहे हैं, उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचनों को पढ़ा है और उनकी परमेश्वर की वाणी के रूप में पहचान की है, इस प्रकार वे निश्चित हो गये हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में लौटकर आये प्रभु यीशु ही हैं। एक-एक करके वे मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करते हैं और परमेश्वर के सिंहासन के समक्ष वापस आते हैं। यह पूर्णतया स्वयं परमेश्वर के कार्य का ही परिणाम है, जो यशायाह के अध्याय 2 आयत (2) की इस भविष्यवाणी को पूरा करता है, "अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊँचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा के समान उसकी ओर चलेंगे।" यह स्पष्ट है कि प्रभु का स्वागत करने में, परमेश्वर की वाणी को सुनने और मसीह को सत्य, मार्ग, और जीवन के रूप में पहचानने पर ध्यान देना जरूरी है। जब हम यह सुनें कि किसी स्थान पर परमेश्वर के कथन हो रहे हैं या कोई व्यक्ति परमेश्वर की वापसी का उपदेश दे रहा है, तो हमें इसकी खोज और जाँच-पड़ताल करनी चाहिए। यदि हम झूठे मसीह द्वारा झांसा दिए जाने से डरते हैं और अपनी सुरक्षा बढ़ा देते हैं, यदि हम खोज करने या जाँच करने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं, और हम अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार नहीं करते हैं, तो क्या हम अत्यंत मूर्ख नहीं होंगे? यदि हमने ऐसा किया, तो हम हमेशा के लिए अंत के दिनों के परमेश्वर के उद्धार से वंचित रह जाएँगे!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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