समस्याएँ रिपोर्ट करने के डर के पीछे का कारण

16 दिसम्बर, 2025

चिंगतियान, चीन

2014 में, मैं कलीसिया में वीडियो बना रही थी। उस समय यांग मिन पर्यवेक्षक थी। एक बार, मैंने देखा कि एक वीडियो के लिए यांग मिन का सुझाव बहुत उपयुक्त नहीं था। इसलिए मैंने अपनी अलग राय रखी, लेकिन वह अपनी ही बात पर अड़ी रही। मैंने कहा कि हम इस बारे में अगुआओं से संगति कर सकते हैं। लेकिन मुझे उम्मीद नहीं थी कि यांग मिन प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कहेगी कि मुझ पर घमंडी होने और उसके सुझाव न मानने का आरोप लगाएगी। उस समय मैं बहुत उलझन में थी, “अगुआओं से संगति करने का मकसद तो वीडियो अच्छी तरह से बनाने के लिए सिद्धांतों को खोजना और उन्हें स्पष्ट करना है। तुम मुझे घमंडी कैसे कह सकती हो?” बाद में, यांग मिन ने ली पिंग को टीम अगुआ बना दिया जो हमारे काम के लिए जिम्मेदार थी। उस दौरान, हम एक काफी मुश्किल वीडियो बनाने की योजना बना रहे थे और हमें उम्मीद थी कि ली पिंग हमारे साथ सिद्धांतों और वीडियो बनाने से जुड़े विचारों के बारे में और संगति कर सकेगी। लेकिन असल में उसके साथ बातचीत करने के बाद, मैंने पाया कि ली पिंग वास्तव में कोई खास काम नहीं करती थी। वह हमारे काम के बारे में कभी-कभार ही पूछती थी, और ज़्यादातर समय वह बिना किसी सिद्धांत के अपनी भावनाओं के अनुसार ही हमें वीडियो बनाने के लिए मार्गदर्शन करती थी। हमने उसके सुझावों के अनुसार बार-बार वीडियो में संशोधन किए, जिससे प्रगति में गंभीर रूप से बाधा आई। तब मैंने ली पिंग को एक सुझाव दिया, मैंने उससे कहा कि वह अपनी संगति में संबंधित सिद्धांतों को शामिल करे क्योंकि तभी नतीजे हासिल करना आसान होगा और चीजों को दोबारा करने से बचा जा सकेगा। लेकिन ली पिंग ने न केवल इस सुझाव को मानने से इनकार कर दिया, बल्कि इसके खिलाफ बहस भी की। उसने यह कहकर मेरी काट-छाँट की कि मैं घमंडी हूँ और अपनी ही धारणाओं पर अड़ी रहती हूँ। मैंने मन ही मन सोचा, “काम में समस्याएँ और विचलन हो रहे हैं, लेकिन वह न तो उनका सार निकालने और हालात बदलने में हमारी अगुआई कर रही है, और न ही अभ्यास का कोई मार्ग बता रही है। वह केवल हमें डाँटती और फटकारती है, और जब भाई-बहन उसे उचित सुझाव देते हैं, तो वह उन्हें स्वीकार नहीं करती। वह एक टीम अगुआ के रूप में अपनी जिम्मेदारियाँ बिल्कुल भी पूरी नहीं कर रही है।” मैं ली पिंग के सामने यह समस्या रखना चाहती थी, लेकिन फिर मुझे यह भी लगा कि ली पिंग बहुत दबंग है, और मैंने मन ही मन सोचा, “अगर मैंने उसकी समस्या बताई, तो क्या वह सोचेगी कि मैं बहुत घमंडी हूँ और उसकी आज्ञा नहीं मान रही हूँ?” आखिर में, मैंने अपनी बात नहीं कही। अप्रत्याशित रूप से, ली पिंग ने बाद में वीडियो कार्य के खराब नतीजों का सारा दोष हम पर डाल दिया, और अक्सर हमें डाँटती और हमारी काट-छाँट करती थी। सभी की दशा खराब थी।

एक दिन, ली पिंग ने हमारे वीडियो की तुलना दूसरे समूह के वीडियो से की, और हम पर बहुत ताने कसे और हमारा मज़ाक उड़ाया। मुझे लगा कि ली पिंग हमारे प्रति पूर्वाग्रह रखती है, और हमेशा छोटी-छोटी बातों पर गलती ढूँढ़कर हमें डाँटती थी। ली पिंग के हमलों से सभी बहुत दबाव महसूस कर रहे थे, और एक बहन इतनी नकारात्मक हो गई कि वह अब यहाँ अपना कर्तव्य नहीं करना चाहती थी। मुझे दिल से बहुत दुख हुआ और बहुत गुस्सा भी आया। मैंने सोचा कि ली पिंग खुद तो कोई वास्तविक काम नहीं कर रही थी, फिर भी आँख मूँदकर लोगों की काट-छाँट और आलोचना कर रही थी; मैं अब और चुप नहीं रह सकती थी। अगले दिन मैंने ली पिंग को लापरवाही से लोगों की काट-छाँट करने की उसकी समस्या के बारे में बताया। अप्रत्याशित रूप से, ली पिंग अपनी दलीलें देती रही और यहाँ तक कह दिया कि यह दूसरों की समस्या है। तब मैंने अगुआओं और कार्यकर्ताओं के सिद्धांतों को शामिल करते हुए उसकी समस्या बताई और कहा, “तुम्हें अपने भाई-बहनों की समस्याओं को हल करने के लिए सत्य पर संगति करनी चाहिए। केवल लोगों की काट-छाँट करने और उन्हें डाँटने से न केवल समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि लोग बेबस भी महसूस करेंगे। इसके अलावा, तुम्हें अपने भाई-बहनों द्वारा दिए गए सुझावों को सुनना चाहिए।” उस समय वह मुँह बनाकर मान तो गई। लेकिन मुझे जिसकी उम्मीद नहीं थी, वह यह थी कि बाद में, उसने हमारे पढ़ने के लिए परमेश्वर के वचनों का एक अंश ढूँढ़ निकाला जो घमंड और दंभ को उजागर करता था। मेरे दिल में, मुझे धुँधला-सा एहसास हुआ कि कुछ तो गड़बड़ है : वह वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं करती थी और हमेशा हमें ही आत्म-चिंतन करने को कहती थी, जिसका मतलब था कि कोई भी उसका भेद नहीं पहचान पाएगा। मैं सच में उसकी समस्याओं को उजागर करना चाहती थी, लेकिन फिर मैंने सोचा कि कैसे ली पिंग ने एक बार भी विनम्रता से दूसरों के सुझावों को स्वीकार नहीं किया था, और उसकी इंसानियत भी अच्छी नहीं थी। एक बार, उसने एक मेजबान बहन के प्रति पूर्वाग्रह पाल लिया था, और हमारे सामने लगातार उसकी आलोचना करती थी। मैंने सोचा, “अगर मैंने सीधे-सीधे उसकी समस्याएँ बताईं, तो क्या वह मेरे प्रति पूर्वाग्रह पाल लेगी और जहाँ भी जाएगी मेरी आलोचना करेगी? तो क्या मेरी इज़्ज़त मिट्टी में नहीं मिल जाएगी और मेरा सब कुछ खत्म नहीं हो जाएगा?” जब मैंने यह सोचा, तो मुझे डर लगा और मैंने ली पिंग की समस्याओं को बताने की हिम्मत नहीं की। यहाँ तक कि मैं भी आत्म-चिंतन करने में लग गई। बाद में, मुझे अपने दिल में आत्म-ग्लानि महसूस हुई और मैं सोचने लगी कि मैं इतनी दुखी क्यों हूँ। बाद में, सभाओं के दौरान, ली पिंग ने इस बारे में संगति नहीं की कि उसने कैसे आत्म-चिंतन किया और खुद को समझा। इसके बजाय, उसने कहा कि दूसरे समूहों में वीडियो कार्य का मार्गदर्शन करते समय उसने अच्छे नतीजे हासिल किए थे, और सभी भाई-बहनों ने उसका स्वागत किया था। इसका मतलब यह था कि हम लगातार उससे असहमत थे, क्योंकि हम इतने घमंडी थे कि उसकी सलाह नहीं मान सकते थे। मैं सच में उसकी समस्याएँ बताना चाहती थी, लेकिन मुझे डर था कि अगर मैंने उनका ज़िक्र किया, तो उसकी बेइज़्ज़ती होगी और वह मुझे दबाएगी, और इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा।

बाद में, मैंने पाया कि ली पिंग हर मोड़ पर मुझे निशाना बना रही थी और मुझे अलग-थलग कर रही थी। एक बार, जब मैं एक सभा से घर लौट रही थी, तो मैंने अपनी बहनों के लिए कुछ सामान खरीदा, इसलिए मुझे लौटने में थोड़ी देर हो गई। तब ली पिंग ने एक सभा के दौरान भाई-बहनों के सामने मेरा गहन-विश्लेषण किया, उसने कहा कि मैं सभा के लिए बाहर जाने का मौका अपनी देह को तृप्त करने के लिए उठा रही थी। ली पिंग अक्सर जानबूझकर गलतियाँ निकालकर और बातों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर मेरा गहन-विश्लेषण और मेरी काट-छाँट करती थी, और मैं दुखी और उत्पीड़ित महसूस करती थी। मैं अब यहाँ अपना कर्तव्य भी नहीं करना चाहती थी। हालाँकि, जब मैंने सोचा कि अपना कर्तव्य छोड़ना परमेश्वर के साथ विश्वासघात है, तो मुझे बेचैनी हुई, इसलिए, प्रार्थना के माध्यम से, मैंने अपना कर्तव्य नहीं छोड़ा। मैंने ली पिंग के साथ उन कुछ महीनों की बातचीत पर गौर किया। वह अपना कर्तव्य निभाने में बस खानापूर्ति करती थी और वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं करती थी, और उसका स्वभाव बेहद घमंडी था; वह दूसरों के सुझावों को स्वीकार नहीं करती थी। अगर उस पर वीडियो कार्य की जिम्मेदारी बनी रही, तो वह केवल कार्य में और बड़ी बाधाएँ लाएगी और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में गड़बड़ी पैदा करेगी। मैं जानती थी कि मुझे ली पिंग की समस्याओं की रिपोर्ट अगुआओं को करनी चाहिए, लेकिन फिर मैंने सोचा कि वह इस दौरान मुझे कैसे निशाना बना रही थी। अगर मैंने फिर से उसकी समस्याओं की रिपोर्ट की और उसे पता चल गया, तो कौन जाने वह मुझे कैसे सताएगी? इसके अलावा, हर कोई ली पिंग की समस्याएँ देख सकता था, और दूसरी बहनों ने उसे कोई सुझाव नहीं दिया था, इसलिए मैंने सोचा कि बेहतर होगा कि मैं इसमें न पड़ूँ। इसके अलावा, यांग मिन वीडियो कार्य की पर्यवेक्षक थी, और ली पिंग को अकेले उसी ने पदोन्नत किया था। अगर मैं ली पिंग की समस्याओं की रिपोर्ट करने के लिए एक पत्र लिखूँ, तो क्या यांग मिन उसे पढ़ने के बाद मामले को निष्पक्ष रूप से सँभालेगी? क्या वे मुझे बरखास्त कर देंगे, और कहेंगे कि मैं घमंडी और दंभी हूँ, वीडियो कार्य में बाधा डालने के लिए हमेशा दूसरों में दोष ढूँढ़ती हूँ? अगर वे मुझे कलीसिया से बाहर निकाल देंगे तो क्या होगा? क्या इससे परमेश्वर में विश्वास का मेरा जीवन बर्बाद नहीं हो जाएगा? मैंने यह सोचकर खुद को दिलासा भी दिया कि जब अगुआओं को ली पिंग की समस्याएँ पता चलेंगी, तो वे उससे निपट लेंगे।

अप्रत्याशित रूप से, समूह में मेरी बहनों ने मुझे अलग-थलग करना और मुझसे दूरी बनाना शुरू कर दिया। यहाँ तक कि शिआ यू, जिसके साथ मैं अक्सर बातचीत करती थी, वह भी मुझसे दूर हो गई। मैं चाहे कितनी भी कोशिश करती, समझ नहीं पा रही थी, और हर दिन मुझे ऐसा लगता था जैसे मेरे दिल पर कोई भारी पत्थर रखा हो, जिससे साँस लेना मुश्किल हो रहा था। कई बार, मैं अकेले में छिपकर आँसू बहाती, बेहद दुखी और असहाय महसूस करती थी। एक रात, शिआ यू ने मुझे चुपके से बताया कि ली पिंग ने मेरे सभा में बाहर होने का फायदा उठाकर मेरी बहनों के सामने मेरे बारे में अपमानजनक बातें कहीं। उसने वीडियो कार्य के कोई नतीजे न निकलने का सारा दोष भी मुझ पर डाल दिया, और मेरे भाई-बहनों से मेरा भेद पहचानने को कहा। ली पिंग द्वारा उकसाए जाने के बाद, सभी मुझसे सतर्क रहने लगे। शिआ यू की बातें सुनने के बाद, मेरा दिल लंबे समय तक शांत नहीं हो सका। “सिर्फ इसलिए कि मैंने ली पिंग को कुछ सुझाव दिए, उसने मुझे दबाया और अलग-थलग कर दिया। अब वह मुझे अलग-थलग करने के लिए मेरे पीछे गुट भी बना रही है। क्या वह मुझे सता नहीं रही है? वह कितनी दुष्ट है!” उस समय मैं बहुत नकारात्मक थी, और मेरी दशा बिल्कुल भयानक थी। मुझे सच में डर था कि अगर यह जारी रहा, तो मुझे सच में बरखास्त और निष्कासित कर दिया जाएगा। मैंने सोचा कि उसके द्वारा सताए जाने के बजाय, मेरे लिए इस्तीफा देकर कोई और कर्तव्य अपनाना बेहतर होगा, ताकि मुझे अब इस माहौल का सामना न करना पड़े। हालाँकि, फिर मैंने उस संकल्प के बारे में सोचा जो मैंने परमेश्वर के सामने किया था, कि मैं परमेश्वर की गवाही देने के लिए अच्छे वीडियो ज़रूर बनाऊँगी। “क्या मैं सच में यह कर्तव्य छोड़ने जा रही हूँ?” मैं यह स्वीकार करने को तैयार नहीं थी। ऐसा करना परमेश्वर के लिए बहुत दुखदायी होगा और इससे परमेश्वर के प्रति कोई वफादारी नहीं दिखेगी। मैं बहुत खोया हुआ महसूस कर रही थी और नहीं जानती थी कि इस माहौल का अनुभव कैसे करूँ। दर्द और लाचारी के बीच, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, कि वह मुझे सत्य समझने और अभ्यास का मार्ग खोजने में अगुआई करे।

मई 2015 में, परमेश्वर के घर ने मसीह-विरोधियों और नकली अगुआओं का भेद कैसे पहचानें, इस पर कार्य-व्यवस्थाएँ जारी कीं। जब मैंने इसे ली पिंग के व्यवहार के साथ मिलाकर पढ़ा, तो मुझे एहसास हुआ कि वह एक नकली कार्यकर्ता थी और मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रही थी। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुममें शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरुद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफाश कर सकोगे? क्या तुम मेरे इरादों को स्वयं में संतुष्ट होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है? स्वयं से ये सवाल पूछो और अक्सर इनके बारे में सोचो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। इसके अलावा, “दस प्रशासनिक आदेश जो राज्य के युग में परमेश्वर के चुने लोगों द्वारा पालन किए जाने चाहिए” में परमेश्वर कहता है : “वह सब कुछ करो जो परमेश्वर के कार्य के लिए लाभदायक है और ऐसा कुछ भी न करो जो परमेश्वर के कार्य के हितों के लिए हानिकारक हो। परमेश्वर के नाम, परमेश्वर की गवाही और परमेश्वर के कार्य की रक्षा करो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मैं समझ गई कि कलीसिया के कार्य और कलीसिया के हितों की रक्षा करना परमेश्वर की हमसे अपेक्षा है और यह एक ऐसी जिम्मेदारी है जिसे परमेश्वर के हर विश्वासी को पूरा करना चाहिए। इस दौरान, मैंने देखा था कि ली पिंग बिल्कुल भी कोई वास्तविक काम नहीं कर रही थी और लोगों को दबा और सता भी रही थी, और उसका स्वभाव दुर्भावनापूर्ण था। मुझे सताए जाने और बरखास्त किए जाने का डर था, इसलिए मैंने कभी भी उसकी समस्याओं को उजागर करने और रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की, और अंधकार की शक्तियों से लड़ने की हिम्मत नहीं की। मैं किस तरह से परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील व्यक्ति थी? मैंने कलीसिया के कार्य या कलीसिया के हितों से संबंधित चीजों की जरा भी रक्षा नहीं की और केवल अपने हितों पर विचार किया। मैं बहुत स्वार्थी थी! अब, परमेश्वर के घर ने हमारे लिए मसीह-विरोधियों और नकली अगुआओं का भेद पहचानने के लिए कार्य-व्यवस्थाएँ जारी की थीं। इसमें परमेश्वर का इरादा था, और यह परमेश्वर का मुझे सत्य का अभ्यास करने का एक अवसर देना भी था। मैं अब और अंधकार की शक्तियों से बेबस नहीं रह सकती थी। इसलिए, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मैं ली पिंग द्वारा दबाए जाने के कारण लगातार दुखी रही हूँ। मुझे ली पिंग का स्पष्ट भेद पता है, लेकिन मैं उसकी समस्याओं को उजागर करने और रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करती। मैं बहुत कायर हूँ, और मुझमें न्याय की भावना जरा भी नहीं है। मैं तेरी घृणा का पात्र बन रही हूँ! अब परमेश्वर के घर ने हमें मसीह-विरोधियों और नकली अगुआओं का भेद पहचानने और रिपोर्ट करने के लिए कहा है। मैं जानती हूँ कि इसमें तेरा इरादा है, और मैं सत्य का अभ्यास करने और अब अंधकार की शक्तियों से बेबस न रहने के लिए तुझ पर भरोसा करने को तैयार हूँ।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे अधिक सहज महसूस हुआ, और सत्य का अभ्यास करने का दृढ़ संकल्प आया।

एक दिन, बहन ज़ुओ यू, जो ली पिंग के काम के लिए जिम्मेदार थी, ने मुझे एक सभा के लिए बाहर जाने को कहा। मैं बहुत उत्साहित थी, और मुझे लगा कि यह परमेश्वर द्वारा मेरे लिए तैयार किया गया एक अवसर है। मुझे ली पिंग की समस्याओं की रिपोर्ट करनी थी। इससे पहले कि मैं अपना मुँह खोल पाती, ज़ुओ यू ने हमसे पूछा, “एक वीडियो टीम अगुआ के रूप में ली पिंग कैसी है?” मैंने ली पिंग के प्रदर्शन के बारे में बात की। उसने मुझसे यह सब लिखने को कहा, और टीम के सदस्यों से भी ली पिंग के बारे में अपना मूल्यांकन लिखने को कहा। उस पल, मैं इतनी उत्साहित थी कि लगभग रो पड़ी। मुझे लगा कि परमेश्वर ने मेरी प्रार्थनाएँ सुन ली हैं और मेरे लिए एक रास्ता खोल दिया है। और भी अप्रत्याशित रूप से, नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने के संबंधित सिद्धांतों को पढ़ने के बाद, टीम की बहनों को भी एहसास हो गया कि ली पिंग के साथ कुछ गड़बड़ है। बाद में, हमने एक साथ संगति की और भेद पहचाना, और ली पिंग के प्रदर्शन को लिखा—उसकी वास्तविक काम करने में विफलता और उसने कैसे वीडियो कार्य में गड़बड़ी और बाधा डाली—और इसे अगुआओं को सौंप दिया। जल्द ही, उच्च अगुआओं ने स्थिति का पता लगाने और सत्यापन करने के बाद ली पिंग को बरखास्त कर दिया। कुछ समय बाद, यांग मिन को भी बरखास्त कर दिया गया। हम सभी बहुत उत्साहित थे और अपने दिल की गहराइयों से परमेश्वर की प्रशंसा की कि वह कितना धार्मिक है।

बाद में, बहन ये शिन ने वीडियो कार्य का जिम्मा सँभाला। वह अक्सर हमारे साथ वीडियो निर्माण के विचारों पर चर्चा करती थी और हमें सक्रिय रूप से संगति करने, चर्चा करने और हमारे मन में जो कुछ भी है, उसे खुलकर बोलने के लिए प्रोत्साहित करती थी। कभी-कभी हम अलग-अलग राय रखते थे, और जब तक वे उपयुक्त होती थीं, वह उन्हें खुशी-खुशी स्वीकार कर लेती थी। हमें लगा कि इस तरह से अपने कर्तव्य करना आरामदायक और मुक्तिदायक था और मैं विशेष रूप से खुश थी कि वीडियो निर्माण में हमारे द्वारा हासिल किए गए नतीजे बेहतर से बेहतर होते जा रहे थे। बाद में, मैं अक्सर सोचती थी कि मैंने बहुत पहले ही यह भेद पहचान लिया था कि ली पिंग वीडियो कार्य के लिए जिम्मेदार होने के लिए उपयुक्त व्यक्ति नहीं थी, लेकिन उसकी समस्या की रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की। कौन-सा भ्रष्ट स्वभाव मुझे बाँध रहा था? बाद में, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “जब तरह-तरह के बुरे लोग और छद्म-विश्वासी बाहर आकर दानवों और शैतानों के रूप में तरह-तरह की भूमिकाएँ निभाने लगते हैं, कार्य व्यवस्थाओं के विरुद्ध जाकर कुछ बिल्कुल अलग ही करने लगते हैं, झूठ बोलकर परमेश्वर के घर को धोखा देते हैं; जब वे परमेश्वर के कार्य में बाधा और गड़बड़ी पैदा करते हैं, ऐसे काम करते हैं जिनसे परमेश्वर का नाम शर्मसार होता है और परमेश्वर का घर, कलीसिया, कलंकित होते हैं, इसे देख कर तुम क्रोधित होने के सिवाय कुछ भी नहीं करते, लेकिन तुम न्याय कायम रखने के लिए, बुरे लोगों को उजागर करने के लिए, कलीसिया के कार्य को कायम रखने के लिए, इन बुरे लोगों से निपटने और उन्हें सँभालने के लिए और उन्हें कलीसिया के कार्य को बाधित करने और परमेश्वर के घर, कलीसिया को कलंकित करने से रोकने के लिए खड़े नहीं हो सकते हो। ये चीजें न करके तुम गवाही देने में विफल रहे हो। ... तो फिर बुरे लोगों को सँभालने और उनसे निपटने की तुम्हारी अक्षमता की जड़ क्या है? क्या ऐसा है कि तुम्हारी मानवता सहज ही कायर, दब्बू और डरपोक है? यह न तो मूल कारण है, न ही समस्या का सार। समस्या का सार यह है कि लोग परमेश्वर के प्रति वफादार नहीं हैं; वे अपनी रक्षा करते हैं, अपनी निजी सुरक्षा, अपनी शोहरत, अपने रुतबे और मुश्किल स्थिति से निकलने की अपनी वैकल्पिक योजना की रक्षा करते हैं। उनकी निष्ठाहीनता इस बात में अभिव्यक्त होती है कि वे हमेशा खुद की रक्षा कैसे करते हैं, किसी भी चीज से सामना होने पर, वे कैसे कछुए की तरह अपने कवच में घुस जाते हैं, और अपना सिर तब तक बाहर नहीं निकालते जब तक वह चीज गुजर न जाए। उनका चाहे जिस चीज से सामना हो, वे गलती करने को लेकर हमेशा भयभीत रहते हैं, उनमें बहुत ज्यादा घबराहट, चिंता और आशंका होती है, और वे कलीसिया के कार्य के बचाव में खड़े होने में असमर्थ होते हैं। यहाँ समस्या क्या है? क्या यह आस्था का अभाव नहीं है? परमेश्वर में तुम्हारी आस्था सच्ची है ही नहीं, तुम नहीं मानते कि परमेश्वर की संप्रभुता सभी चीजों पर है, नहीं मानते कि तुम्हारा जीवन और सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। तुम परमेश्वर की इस बात पर विश्वास नहीं करते, ‘परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान तुम्हारे शरीर का एक रोआँ भी हिला नहीं सकता।’ तुम अपनी ही आँखों पर भरोसा कर तथ्य परखते हो, हमेशा अपनी रक्षा करते हुए अपने ही आकलन के आधार पर चीजों को परखते हो। तुम नहीं मानते कि व्यक्ति का भाग्य परमेश्वर के हाथों में होता है; तुम शैतान से डरते हो, बुरी ताकतों और बुरे लोगों से डरते हो। क्या यह परमेश्वर में सच्ची आस्था का अभाव नहीं है? (हाँ।) परमेश्वर में सच्ची आस्था क्यों नहीं है? क्या इसका कारण यह है कि लोगों के अनुभव बहुत ही उथले हैं और वे इन चीजों की असलियत नहीं जान सकते हैं या फिर इसका कारण यह है कि वे बहुत कम सत्य को समझते हैं? कारण क्या है? क्या इसका लोगों के भ्रष्ट स्वभावों से कुछ लेना-देना है? क्या ऐसा इसलिए है कि लोग बहुत कपटी हैं? (बिल्कुल।) वे चाहे जितनी भी चीजों का अनुभव कर लें, उनके सामने कितने भी तथ्य रख दिए जाएँ, वे नहीं मानते कि यह परमेश्वर का कार्य है, या व्यक्ति का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है। यह एक पहलू है। एक और घातक मुद्दा यह है कि लोग खुद की बहुत ज्यादा परवाह करते हैं। वे परमेश्वर, उसके कार्य, परमेश्वर के घर के हितों, उसके नाम या महिमामंडन के लिए कोई कीमत नहीं चुकाना चाहते, कोई त्याग नहीं करना चाहते। वे ऐसा कुछ भी करने को तैयार नहीं हैं जिसमें जरा भी खतरा हो। लोग खुद की बहुत ज्यादा परवाह करते हैं! मृत्यु, अपमान, बुरे लोगों के जाल में फँसने और किसी भी प्रकार की दुविधा में पड़ने के अपने डर के कारण लोग अपनी देह को संरक्षित रखने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं, किसी भी खतरनाक स्थिति में प्रवेश न करने की कोशिश करते हैं। एक ओर, यह व्यवहार दिखाता है कि लोग बहुत ज्यादा कपटी हैं, जबकि दूसरी ओर यह उनका आत्म-संरक्षण और स्वार्थ दर्शाता है। तुम स्वयं को परमेश्वर को सौंपने को तैयार नहीं हो, और जब तुम परमेश्वर के लिए खपने को तैयार होने की बात कहते हो, तो यह एक आकांक्षा से अधिक कुछ नहीं है। जब वास्तव में आगे आकर परमेश्वर की गवाही देने, शैतान से लड़ने, और खतरे, मृत्यु और तरह-तरह की मुश्किलों और कठिनाइयों का सामना करने का समय आता है, तो तुम तैयार नहीं होते। तुम्हारी छोटी-सी आकांक्षा भुरभुरा जाती है, तुम पहले अपनी रक्षा करने की भरसक कोशिश करते हो, और बाद में कुछ ऐसे सतही कार्य कर देते हो जो तुम्हें करने होते हैं, ऐसा कार्य जो सबको दिखाई देता है। इंसान का दिमाग मशीन की अपेक्षा अधिक चुस्त-दुरुस्त होता है : वे जानते हैं कि खुद को कैसे ढालें, वे जानते हैं कि हालात का सामना होने पर कौन-से कर्म उनके अपने हितों में योगदान करते हैं और कौन-से नहीं, और वे शीघ्रता से अपने पास का हर तरीका इस्तेमाल कर लेते हैं। नतीजतन जब भी तुम कुछ चीजों का सामना करते हो, तो परमेश्वर में तुम्हारा थोड़ा-सा भरोसा दृढ़ नहीं रह पाता। ... तुम्हारा चाहे जितने भी मामलों से सामना हो, तुम परमेश्वर में अपनी आस्था के जरिए अपनी वफादारी और जिम्मेदारी पूरी करने में नाकाम रहते हो। नतीजतन, अंतिम परिणाम यह होता है कि तुम कुछ भी हासिल नहीं करते। परमेश्वर द्वारा तुम्हारे लिए स्थापित हर परिस्थिति में, और जब भी तुम शैतान से लड़ते हो, तुम्हारी पसंद हमेशा पीछे हटने और भाग जाने की रही है। तुम परमेश्वर द्वारा निर्दिष्ट या तुम्हारे अनुभव करने के लिए नियत किए गए पथ पर नहीं चले हो। इसलिए, इस युद्ध के बीच तुम उस सत्य, समझ और अनुभव से चूक जाते हो, जो तुम्हें हासिल करना चाहिए था(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (19))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, लगा मेरे दिल को भेद दिया गया है। मैं उन स्वार्थी और धोखेबाज़ लोगों में से एक थी जिन्हें परमेश्वर ने उजागर किया था। मैं यह विश्वास नहीं करती थी कि परमेश्वर हर चीज़ पर संप्रभु है। जब एक दुष्ट व्यक्ति ने कलीसिया के काम में बाधा डाली, तो मैंने केवल अपने व्यक्तिगत हितों पर विचार किया, और परमेश्वर के प्रति ज़रा भी वफ़ादारी नहीं दिखाई। मैंने साफ-साफ देखा था कि ली पिंग सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए वीडियो कार्य का मार्गदर्शन कर रही थी। इसके अलावा, वह घमंडी और दंभी थी, और अपनी ही धारणाओं से चिपकी रहती थी, अपने भाई-बहनों के उचित सुझावों को कभी स्वीकार नहीं करती थी और लगातार खुद को ऊँचाई पर रखकर लोगों को डाँटती थी, जिससे वे बेबस महसूस करते थे। उसने वीडियो निर्माण कार्य की प्रगति में गंभीर रूप से देरी कर दी थी। मैं उसकी समस्याएँ देख सकती थी, लेकिन मुझे उसे नाराज़ करने और उसके द्वारा हमला किए जाने और अलग-थलग किए जाने का डर था, इसलिए मैंने उन्हें उजागर करने की हिम्मत नहीं की। परमेश्वर ने इस माहौल को मुझ पर आने दिया। उसका इरादा था कि मैं भेद पहचानना सीखूँ और जब कोई दुष्ट व्यक्ति कलीसिया के काम में गड़बड़ी और बाधा डाले, तो मैं सत्य का अभ्यास कर सकूँ, और उनका सामना करके उन्हें उजागर करूँ और रोकूँ। हालाँकि, भले ही मैंने परमेश्वर के इतने सारे वचनों के सिंचन और आपूर्ति का आनंद लिया था, जब मैंने एक दुष्ट व्यक्ति को कलीसिया के काम में बाधा डालते देखा, तो मैं पीछे हट गई और केवल खुद को बचाने के बारे में सोचा। हालाँकि मैं ली पिंग की समस्याओं की रिपोर्ट अगुआओं को करना चाहती थी, मुझे चिंता थी कि अगर रिपोर्ट पत्र को यांग मिन ने रोक दिया या अगर ली पिंग को इसके बारे में पता चल गया, तो वह मुझे और भी बेरहमी से सताएगी और शायद मुझे कलीसिया से निष्कासित भी कर देगी। तब परमेश्वर में विश्वास करके बचाए जाने की मेरी आशा पूरी तरह से बुझ जाएगी। जब मैंने यह सोचा, तो मैं हर चीज़ से डरने लगी और आशंकाओं से भर गई। मेरे ये व्यवहार सिर्फ कायरता, डरपोकपन और भय के कारण नहीं थे, बल्कि मेरी प्रकृति के बहुत स्वार्थी और धोखेबाज़ होने का नतीजा थे। मैं खुद को बहुत ज़्यादा बचा रही थी! मुझे सताए जाने और निष्कासित किए जाने का डर था, इसलिए मैंने केवल खुद को बचाने की कोशिश की और नजरें फेर लीं। मैंने यह भी सोचा, “मैंने उसे उसकी समस्याएँ बताई हैं, लेकिन उसने स्वीकार नहीं किया। मैंने अपनी पूरी कोशिश की है। मैं बस अगुआओं के पता लगाने और उससे निपटने का इंतज़ार करूँगी। इस तरह मैं खुद को इस दुष्ट व्यक्ति द्वारा सताए जाने से बचा सकती हूँ।” वास्तव में, ली पिंग ने कोई वास्तविक काम नहीं किया, खुद को ऊँचाई पर रखकर दूसरों को डाँटा, और अपने भाई-बहनों पर अत्याचार किया। मैंने इन बुरे कर्मों को कभी उजागर नहीं किया था, और उच्च अगुआओं को उनकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की, और इसलिए समस्या का समाधान बिल्कुल भी नहीं हुआ था। मैं यह कैसे कह सकती थी कि मैंने अपनी पूरी कोशिश की थी? मैं “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” और “समझदार लोग आत्म-रक्षा में अच्छे होते हैं, वे बस गलतियाँ करने से बचते हैं” जैसे सांसारिक आचरण के शैतानी फलसफों पर चलती थी, और इसलिए मैं विशेष रूप से स्वार्थी, धूर्त और धोखेबाज़ तरीके से जीती थी। मैं खुली आँखों से देखती रही जब ली पिंग ने छह महीने से अधिक समय तक वीडियो कार्य में बाधा डाली। मैंने महत्वपूर्ण क्षण में कलीसिया के कार्य की रक्षा नहीं की, और यहाँ तक कि एक दुष्ट व्यक्ति को कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचाने और उसमें बाधा डालने देकर खुद को बचाया। मुझमें परमेश्वर के प्रति ज़रा भी वफ़ादारी नहीं थी, और मैं एक गंभीर अपराध कर बैठी थी। जब मैंने इन बातों पर विचार किया, तो मुझे बहुत पछतावा हुआ। मुझे परमेश्वर का सामना करने में शर्म महसूस हुई, और मैं केवल अपराध-बोध और आत्म-ग्लानि के आँसू बहा सकती थी। मैं अब और सांसारिक आचरण के शैतानी फलसफों के अनुसार नहीं जीना चाहती थी।

बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “किसी अगुआ या कार्यकर्ता के साथ पेश आने के तरीके के संबंध में लोगों का क्या रवैया होना चाहिए? कोई अगुआ या कार्यकर्ता जो करता है, अगर वह सही और सत्य के अनुरूप हो, तो तुम उसका आज्ञा पालन कर सकते हो; अगर वह जो करता है वह गलत है और सत्य के अनुरूप नहीं है, तो तुम्हें उसका आज्ञा पालन नहीं करना चाहिए और तुम उसे उजागर कर सकते हो, उसका विरोध कर एक अलग राय रख सकते हो। अगर वह वास्तविक कार्य करने में असमर्थ हो या कलीसिया के कार्य में बाधा डालने वाले बुरे कार्य करता हो, और खुलासा हो जाता है कि वह एक नकली अगुआ, नकली कार्यकर्ता या मसीह-विरोधी है, तो तुम उसे पहचानकर उजागर कर सकते हो और उसकी रिपोर्ट कर सकते हो। लेकिन, परमेश्वर के कुछ चुने हुए लोग सत्य नहीं समझते और विशेष रूप से कायर होते हैं। वे नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों द्वारा दबाए और सताए जाने से डरते हैं, इसलिए वे सिद्धांत पर बने रहने की हिम्मत नहीं करते। वे कहते हैं, ‘अगर अगुआ मुझे निष्कासित कर दे, तो मैं खत्म हो जाऊँगा; अगर वह सभी लोगों से मुझे उजागर करवा दे या मेरा त्याग करवा दे, तो फिर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं कर पाऊँगा। अगर मुझे कलीसिया से निष्कासित कर दिया गया, तो फिर परमेश्वर मुझे नहीं चाहेगा और मुझे नहीं बचाएगा। और क्या मेरी आस्था व्यर्थ नहीं चली जाएगी?’ क्या ऐसी सोच हास्यास्पद नहीं है? क्या ऐसे लोगों की परमेश्वर में सच्ची आस्था होती है? कोई नकली अगुआ या मसीह-विरोधी जब तुम्हें निष्कासित कर देता है, तो क्या वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर रहा होता है? जब कोई नकली अगुआ या मसीह-विरोधी तुम्हें पीड़ा देकर निष्कासित कर देता है, तो यह शैतान का काम होता है और इसका परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं होता; जब लोगों को कलीसिया से निकाला या निष्कासित किया जाता है, तो यह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप सिर्फ तभी होता है, जब यह कलीसिया और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच एक संयुक्त निर्णय होता है, और जब निकालना या निष्कासन पूरी तरह से परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं और परमेश्वर के वचनों के सत्य सिद्धांतों के अनुरूप होता है। किसी नकली अगुआ या मसीह-विरोधी द्वारा निष्कासित किए जाने का यह अर्थ कैसे हो सकता है कि तुम्हें बचाया नहीं जा सकता? यह शैतान और मसीह-विरोधी द्वारा किया जाने वाला उत्पीड़न है, और इसका यह मतलब नहीं कि परमेश्वर द्वारा तुम्हें बचाया नहीं जाएगा। तुम्हें बचाया जा सकता है या नहीं, यह परमेश्वर पर निर्भर करता है। कोई इंसान यह निर्णय लेने के योग्य नहीं कि तुम्हें परमेश्वर द्वारा बचाया जा सकता है या नहीं। तुम्हें इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए। और नकली अगुआ और मसीह-विरोधी द्वारा तुम्हारे निष्कासन को परमेश्वर द्वारा किया गया निष्कासन मानना—क्या यह परमेश्वर की गलत व्याख्या करना नहीं है? बेशक है। और यह परमेश्वर की गलत व्याख्या करना ही नहीं है, बल्कि परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करना भी है। यह एक तरह से परमेश्वर की निंदा भी है। और क्या परमेश्वर की इस तरह गलत व्याख्या करना अज्ञानतापूर्ण और मूर्खता नहीं है? जब कोई नकली अगुआ या मसीह-विरोधी तुम्हें निष्कासित करता है, तो तुम सत्य क्यों नहीं खोजते? कुछ भेद की पहचान प्राप्त करने के लिए तुम किसी ऐसे व्यक्ति को क्यों नहीं खोजते, जो सत्य समझता हो? और तुम उच्च अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट क्यों नहीं करते? यह साबित करता है कि तुम्हें इस बात पर विश्वास नहीं है कि परमेश्वर के घर में सत्य सर्वोच्च है, यह दर्शाता है कि तुम्हें परमेश्वर में सच्ची आस्था नहीं है, कि तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करता है। अगर तुम परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता पर भरोसा करते हो, तो तुम नकली अगुआ या मसीह-विरोधी के प्रतिशोध से क्यों डरते हो? क्या वे तुम्हारे भाग्य का निर्धारण कर सकते हैं? अगर तुम भली-भाँति भेद पहचानने और यह पता लगाने में सक्षम हो कि उनके कार्य सत्य के विपरीत हैं, तो परमेश्वर के उन चुने हुए लोगों के साथ संगति क्यों नहीं करते जो सत्य समझते हैं? तुम्हारे पास मुँह है, तो तुम बोलने की हिम्मत क्यों नहीं करते? तुम नकली अगुआ या मसीह-विरोधी से इतना क्यों डरते हो? यह साबित करता है कि तुम कायर, बेकार, शैतान के अनुचर हो(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे अलग कर देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं)। परमेश्वर के वचनों से, मुझे एहसास हुआ कि एक और कारण था जिसकी वजह से मैं हमेशा झिझकती थी और ली पिंग की समस्याओं की रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करती थी। वह यह था कि मुझे परमेश्वर पर आस्था नहीं थी और मैं यह विश्वास नहीं करती थी कि परमेश्वर हर चीज़ पर संप्रभु है। मैं अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रुतबे को बहुत ज़्यादा महत्व देती थी, और सोचती थी कि अगुआ, कार्यकर्ता और पर्यवेक्षक ही यह तय करते हैं कि मैं अपने कर्तव्य जारी रख सकती हूँ और उद्धार पा सकती हूँ या नहीं। इसलिए, जब मैंने पर्यवेक्षक और टीम अगुआ को वीडियो कार्य में बाधा डालते देखा, तो मैंने नजरें फेर लीं, और सावधानी से खुद को बचाने की कोशिश की। मुझे डर था कि अगर मैंने उन्हें नाराज़ किया, तो वे मेरे लिए मुश्किलें खड़ी कर देंगे, और मुझे सताया और बरखास्त कर दिया जाएगा। जब ली पिंग मुझे दबा रही थी, तो मैं अंदर से बहुत दबाव महसूस करती थी, और हर दिन चुपचाप इसे सहना पड़ता था, लेकिन फिर भी मैंने ली पिंग की समस्याओं की रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की। मुझे डर था कि ली पिंग और यांग मिन मुझमें दोष ढूँढ़ेंगी और मुझे सताएँगी और निष्कासित कर देंगी, ताकि मैं बचाई न जा सकूँ। ऐसा था मानो मैं अपना कर्तव्य जारी रखूँगी या नहीं, मेरा भविष्य और मेरी नियति सब उनके हाथों में थी। वास्तव में, भले ही उन्होंने मुझे सच में बरखास्त और निष्कासित कर दिया होता, तो भी मैं संगति करने के लिए सत्य को समझने वाले भाई-बहनों को ढूँढ़ सकती थी, और उच्च अगुआओं को उनके बुरे कर्मों की रिपोर्ट कर सकती थी और उन्हें उजागर कर सकती थी। परमेश्वर का घर निश्चित रूप से इसे निष्पक्ष रूप से सँभालता। हालाँकि, भले ही मुझे बरखास्त और निष्कासित नहीं किया गया था, फिर भी मैं पूरी तरह से डर गई थी, और उनकी समस्याओं के बारे में बोलने या रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की। मुझे परमेश्वर पर ज़रा भी सच्ची आस्था नहीं थी। क्या मैं वह नहीं थी जिसे परमेश्वर कायर, निकम्मा, शैतान का सेवक कहता है? परमेश्वर ने अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ व्यवहार के सिद्धांतों पर बहुत स्पष्ट रूप से संगति की है। जब अगुआ और कार्यकर्ता सही काम करते हैं और सत्य के अनुरूप होते हैं, तो मुझे सहमत होना और स्वीकार करना चाहिए; अगर वे ऐसे काम करते हैं जो सत्य के अनुसार नहीं हैं और जो सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, तो हम संगति कर सकते हैं और यह बता सकते हैं, जो उनकी मदद करना है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता इसे स्वीकार नहीं करते हैं और कलीसिया के काम में बाधा डालना और लोगों को दबाना जारी रखते हैं, तो हमें परमेश्वर के वचनों के अनुसार उनके बुरे कर्मों को उजागर करना चाहिए। हम समस्या का समाधान होने तक उच्च अगुआओं को उनकी रिपोर्ट भी कर सकते हैं। यह वह जिम्मेदारी है जिसे हमें पूरा करना चाहिए। मैं पहले यह मानती थी कि जब अगुआ या पर्यवेक्षक सुझाव देते हैं या हमारी काट-छाँट करते हैं, तो सही हो या गलत, हमें उन्हें परमेश्वर की ओर से स्वीकार करना चाहिए और समर्पण करना चाहिए, और अगर हम उन्हें स्वीकार नहीं करते और उनका खंडन करने की कोशिश करते हैं, तो हम घमंडी और अविवेकी दिखेंगे। मैंने देखा कि मेरी समझ कितनी हास्यास्पद थी! परमेश्वर ने कभी नहीं कहा कि अगुआओं या पर्यवेक्षकों की आज्ञा मानना सत्य के प्रति समर्पण है। परमेश्वर हमें लोगों और चीज़ों को परमेश्वर के वचनों के अनुसार देखने और व्यवहार करने के लिए कहता है। केवल यही सत्य के अनुरूप है। सत्य सिद्धांतों पर जोर देने से, आपको मसीह-विरोधियों और दुष्ट लोगों द्वारा दबाया और सताया जा सकता है, या यहाँ तक कि उनके द्वारा निष्कासित भी किया जा सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपको कलीसिया द्वारा निष्कासित कर दिया गया है या परमेश्वर द्वारा हटा दिया गया है, न ही इसका मतलब यह है कि आपके पास उद्धार पाने का कोई मौका नहीं है। जब मसीह-विरोधी और दुष्ट लोग बुराई करते हैं, तो उन्हें देर-सबेर उजागर किया जाएगा और उनसे निपटा जाएगा। इसके अलावा, कलीसिया लोगों को उनके लगातार व्यवहार के आधार पर पदोन्नत या बरखास्त करती है, और यह निर्णय अधिकांश भाई-बहनों के मूल्यांकन के व्यापक आकलन के बाद किया जाता है। यह किसी एक अगुआ या कार्यकर्ता पर निर्भर नहीं है। परमेश्वर का घर सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करता है। मैंने पर्यवेक्षक बहन ये शिन से सुना कि ली पिंग लगातार मुझे बरखास्त करने की कोशिश कर रही थी। हालाँकि, उन्होंने वास्तविक जाँच के माध्यम से पाया कि ली पिंग ने जो कहा वह सच नहीं था, और पाया कि ली पिंग, अन्य समस्याओं के अलावा, वास्तविक काम नहीं कर रही थी। मैंने देखा कि परमेश्वर के घर में सत्य का राज है और धार्मिकता का राज है। इसने मुझे अनुभव कराया कि मसीह-विरोधी या दुष्ट लोग परमेश्वर की अनुमति के बिना मेरा कुछ नहीं कर सकते। मैं कई सालों से परमेश्वर में विश्वास करती थी, लेकिन मैंने लोगों या चीज़ों को परमेश्वर के वचनों के आधार पर नहीं देखा, और सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं किया। जब दुष्ट शक्तियों ने कलीसिया के काम में बाधा डाली और मेरे भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाया, तो मैंने कलीसिया के काम की रक्षा के लिए सत्य का अभ्यास नहीं किया। इसके बजाय, मैंने नकली अगुआओं के बुरे कर्मों में लिप्त होने और परमेश्वर के घर को नुकसान पहुँचाने को सहा। क्या मैं शैतान के साथी के रूप में काम नहीं कर रही थी? अगर मैं पश्चात्ताप नहीं करती, तो अंततः मुझे परमेश्वर द्वारा हटा दिया जाता, और यह परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव द्वारा निर्धारित किया जाता। जब मैंने इन अनुभवों पर विचार किया, तो मुझे इन परिवेशों का इंतजाम करने में परमेश्वर की श्रमसाध्य देखभाल समझ में आई। वे वास्तव में मेरे जीवन प्रवेश के लिए बहुत फायदेमंद थे, और मेरा दिल परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता से भर गया। सत्य का अभ्यास न करके जो अपराध किए, उनके लिए मैंने दोषी और ऋणी भी महसूस हुआ। मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मैं उन परिवेशों के लिए तेरा धन्यवाद करती हूँ जिनका इंतजाम तूने मेरे लिए किया है। पहले, मैंने सत्य का अभ्यास करने के कई अवसर गँवा दिए। मैं पश्चात्ताप करने को तैयार हूँ, और न्याय की भावना वाला व्यक्ति बनने का प्रयास करूँगी जो सत्य का अभ्यास करता है और कलीसिया के कार्य की रक्षा करता है।”

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा और बहुत प्रभावित हुई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “एक बार जब सत्य तुम्हारा जीवन बन जाता है, तो जब तुम किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हो जो ईशनिंदा करता है, परमेश्वर का भय नहीं मानता, कर्तव्य निभाते समय अनमना रहता है या कलीसिया के काम में गड़बड़ी कर बाधा डालता है, तो तुम सत्य-सिद्धांतों के अनुसार प्रतिक्रिया दोगे, तुम आवश्यकतानुसार उसे पहचानकर उजागर कर पाओगे। ... अगर तुम्हें परमेश्वर में सच्चा विश्वास है, तब यदि तुमने सत्य और जीवन नहीं भी प्राप्त किया है, तो भी तुम कम से कम परमेश्वर के पक्ष में बोलोगे और कार्य करोगे; कम से कम, जब परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाया जा रहा हो, तो तुम उस समय खड़े होकर तमाशा नहीं देखोगे। यदि तुम अनदेखी करना चाहोगे, तो तुम्हारा मन कचोटेगा, तुम असहज हो जाओगे और मन ही मन सोचोगे, ‘मैं चुपचाप बैठकर तमाशा नहीं देख सकता, मुझे दृढ़ रहकर कुछ कहना होगा, मुझे जिम्मेदारी लेनी होगी, इस बुरे बर्ताव को उजागर करना होगा, इसे रोकना होगा, ताकि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान न पहुँचे और कलीसियाई जीवन अस्त-व्यस्त न हो।’ यदि सत्य तुम्हारा जीवन बन चुका है, तो न केवल तुममें यह साहस और संकल्प होगा, और तुम इस मामले को पूरी तरह से समझने में सक्षम होगे, बल्कि तुम परमेश्वर के कार्य और उसके घर के हितों के लिए भी उस जिम्मेदारी को पूरा करोगे जो तुम्हें उठानी चाहिए, और उससे तुम्हारे कर्तव्य की पूर्ति हो जाएगी(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों से, मैं समझ गई कि जो व्यक्ति सचमुच सत्य का अनुसरण करता है, उसका दिल परमेश्वर की ओर होता है। जब चीजें उन पर आ पड़ती हैं तो वे परमेश्वर के पक्ष में और सत्य के पक्ष में खड़े हो पाते हैं। जब वे दूसरों को कलीसिया के काम में गड़बड़ी और बाधा डालते हुए देखते हैं, तो वे उसे नज़रअंदाज़ नहीं करते, बल्कि व्यक्तिगत हितों को छोड़कर कलीसिया के काम की रक्षा करने के लिए सिद्धांतों के अनुसार काम करते हैं। जो बातें कलीसिया के हितों के लिए हानिकारक होती हैं, वे सत्य का अभ्यास करके उन्हें उजागर कर सकते हैं और रोक सकते हैं। वे दुष्ट शक्तियों के खिलाफ लड़ने में साहसी होते हैं, और कलीसिया के हितों की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर सकते हैं। केवल ऐसे ही लोग सत्य का अनुसरण करते हैं और उनमें अंतरात्मा और विवेक होता है। मैंने दिल में खुद को चेतावनी दी कि अगर मैं फिर से कलीसिया में ऐसे नकली अगुआओं और कार्यकर्ताओं को देखूँ जो वास्तविक काम नहीं कर रहे हैं, या ऐसे लोगों को देखूँ जो सिद्धांतों का उल्लंघन करके कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचा रहे हैं, तो मैं खुद को बचाने की कोशिश नहीं करूँगी और निश्चित रूप से चापलूस नहीं बनूँगी। इसके बजाय, मैं उनकी समस्याएँ बताऊँगी, और अगर वे इसे स्वीकार नहीं करते, तो मुझमें न्याय की भावना होनी चाहिए कि मैं इसकी रिपोर्ट उच्च अगुआओं को तब तक करूँ जब तक कि समस्याएँ हल न हो जाएँ। केवल इसी तरह से मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी कर पाऊँगी। एक बार, मैंने सुना कि कलीसिया में एक और बहन को भी ली पिंग ने दबाया था। ली पिंग द्वारा बहन को दबाए जाने के बारे में जानने के बाद, मैंने देखा कि कई सालों तक परमेश्वर में विश्वास करने के बावजूद ली पिंग का भ्रष्ट स्वभाव बिल्कुल भी नहीं बदला था, और वह किसी को भी दबाती और सताती थी जो उसके हितों को ठेस पहुँचाता था। इसके अलावा, उसका चरित्र दुर्भावनापूर्ण है, वह सत्य से घृणा करती है, और उसमें बहुत गंभीर मसीह-विरोधी स्वभाव है। अगर ऐसा कोई व्यक्ति कलीसिया में रहेगा, तो वह केवल काम में बाधा डालेगाऔर अपने भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाएगा। इसलिए, मैंने अगुआओं को ली पिंग के लोगों को दबाने और सताने के व्यवहार, और उसके कुकर्मों के तथ्यों के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी। मुझे उम्मीद थी कि वे सिद्धांतों के अनुसार उससे निपटेंगे। जल्द ही, अगुआओं ने मुझे जवाब में लिखा और कहा कि ली पिंग को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। हालाँकि उसे रिहा कर दिया गया था, फिर भी वह पुलिस की निगरानी में थी। उन्होंने पहले ही ली पिंग के बुरे कर्मों के सबूत इकट्ठा कर लिए थे और सिद्धांतों के अनुसार उससे निपटेंगे। जब मैंने अगुआओं का जवाब पढ़ा, तो मुझे बहुत सहज महसूस हुआ। बाद में, जब भी मैंने अगुआओं या कार्यकर्ताओं को चीजों को अनुचित रूप से करते या सिद्धांतों का उल्लंघन करते देखा, तो मैं अब और डरपोक व आँख मूँदकर आज्ञा मानने वाली नहीं रही। इसके बजाय, मैंने परमेश्वर के वचनों के अनुसार उनसे इसका ज़िक्र किया।

भले ही मैंने एक दुष्ट व्यक्ति द्वारा सताए और दबाए जाने के अपने अनुभव में कुछ कठिनाइयाँ सहीं, मैंने मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के सत्य से घृणा करने वाले सार के भेद की कुछ पहचान हासिल की। मैंने यह भी सच में देखा कि सब कुछ परमेश्वर के नियंत्रण में है, और यह भी कि मेरा भविष्य और भाग्य भी परमेश्वर के हाथों में है। मैंने यह भी वास्तव में अनुभव किया कि परमेश्वर के घर में सत्य का बोलबाला है, और सभी नकारात्मक पात्र जो बुराई करते हैं और कलीसिया के काम में बाधा डालते हैं, उनसे निष्पक्ष रूप से निपटा जाएगा। ये लाभ और समझ जो मुझे मिलीं, वे परमेश्वर के वचनों का ही नतीजा हैं। परमेश्वर का धन्यवाद!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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