पुलिस को नकदी चाहिए
जुलाई 2009 की बात है। एक दिन बहन लियु भागती हुई मेरे घर आयी बताया कि हमारी कलीसिया अगुआ गिरफ्तार हो गई है और कलीसिया के दान की रसीदों का एक हिस्सा जब्त कर लिया गया है। यह सुनकर मुझे काफी चिंता होने लगी। उस समय, कलीसिया के दान का एक हिस्सा मेरे परिवार के पास था और रसीदों पर मेरे और मेरे पति के नाम लिखे थे। अगर वे रसीदें पुलिस के हाथ लग गईं, तो वह हमें गिरफ्तार करके उन पैसों को जब्त कर लेगी। इसलिए हमने जल्दी से कलीसिया के पैसों को दूसरी जगह ट्रांसफर कर दिया। कुछ ही दिनों के बाद, ग्रामीण जन सुरक्षा प्रमुख की अगुआई में करीब 20 पुलिस अधिकारी हमारे घर छापा मारने आ धमके। एक अधिकारी के पास दान की रसीद थी, उसने पूछा: "ये तुमने लिखा है? कलीसिया के 250,000 युआन जो तुम्हारे पास हैं, हमारे हवाले कर दो!" रसीद पर नज़र पड़ते ही मैं थोड़ी घबरा गई, मैंने फ़ौरन परमेश्वर से प्रार्थना की : "प्रिय परमेश्वर, मुझे आस्था और शक्ति दो। मैं भेंट उनके हवाले कर आपको धोखा नहीं दूँगी।" प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के इन वचनों पर विचार किया: "संसार में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। मैंने मन-ही-मन सोचा : सभी चीज़ें परमेश्वर के हाथों में हैं, इस अग्नि परीक्षा में मुझे परमेश्वर पर भरोसा करना होगा। फिर उस पुलिस अधिकारी ने पूछा: तुम्हें रखने के लिए पैसे किसने दिये? अब वो पैसे हमारे हवाले कर दो! उस समय, मैं काफी परेशान थी। मैंने मन-ही-मन सोचा : दान के पैसे परमेश्वर के लिए उसके चुने हुए लोगों की भेंटें हैं। तुम्हारा उन पैसों पर क्या अधिकार है? मैं तुम्हें कुछ भी क्यों बताऊँ? फिर मैंने कहा : पैसे पहले ही निकाल लिये गए हैं। यह सुनते ही, अधिकारी ने गुस्से से मुझे घूरते हुए कहा : लगता है जब तक हम सख्ती से पेश नहीं आएंगे, तुम सच नहीं बताने वाली! फिर उसने मेरे पति की गर्दन पकड़कर दीवार से चिपका दिया और फिर से पूछा कि पैसे कहां रखे हैं। मैं गुस्से से तमतमा उठी। मेरे पति को पहले हुई एक कार दुर्घटना से जुड़ी सेहत की कुछ समस्याएं थीं, वे इस तरह का बर्ताव सहन नहीं कर सकते थे। तभी जन सुरक्षा प्रमुख ने उस अधिकारी से कहा : ये तो बेहोश हो जाएगा और जल्दी ही मर जाएगा। कहीं हत्या का इल्जाम न लग जाए, इस डर से वो अधिकारी आखिरकार रुक गया। फिर उन्होंने मुझे दूसरे कमरे में ले जाकर एक स्कूटर से हथकड़ी लगाकर बाँध दिया और कड़ाई से पूछने लगे : 250,000 युआन तुमने कहां रखे? अगर हमें बता दो, तो हम तुम्हें गिरफ्तार नहीं करेंगे और तुम्हारी प्रतिष्ठा पर भी कोई आंच नहीं आएगी। लेकिन अगर तुमने नहीं बताया, तो जेल में ही सड़ोगी! जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो दस से ज़्यादा अधिकारियों ने पागलों की तरह मेरे घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी। वे हमारे घर के अंदर-बाहर की तलाशी लेते रहे, सभी आलमारियों को और बिस्तरों के नीचे छान मारा, यहां तक कि टीवी और वाशिंग मशीन का पिछला कवर निकाल कर भी देखा। कुछ पुलिसवालों ने फ़र्श पर रेंगकर और टाइलों को थपथपाकर देखा, जबकि अन्य पुलिसवाले एक-एक करके दीवार को थपथपाकर देखते रहे। उन्हें दान के पैसों की तलाश थी, जिस जगह थपथपाने से दीवार खोखली लगती थी, वे उसे तोड़कर अंदर झांकते। जल्दी ही, मैंने किसी के खुशी से चिल्लाने की आवाज़ सुनी : मिल गया, हमें मिल गया! एक पुलिसवाला हाथों में पैसों से भरा थैला लेकर भागता हुआ आया और फिर वे पैसों को गिनने लगे। उन्हें कुल 121,500 युआन मिले। मैंने पुलिसवालों से कहा : ये हमारे परिवार की बचत के पैसे हैं। मगर पुलिसवाले ने मेरी बात को अनसुना कर दिया। चूंकि उन्हें अब तक 250,000 युआन नहीं मिले थे, उन्होंने तलाशी जारी रखी। उन्होंने घर का चप्पा-चप्पा छान मारा। हमारे कुत्ते के घर को तोड़ डाला और मार्बल की टेबल को टुकड़े-टुकड़े कर दिया। यहां तक कि छत पर लगी चिमनी भी नष्ट कर दी। उन्होंने कई कमरों में जाकर फ़र्श की टाइलें उखाड़ दीं और पूरे आँगन में गड्ढे खोद दिये। उन्होंने हमारे पूरे घर को तहस-नहस कर दिया और मैं बेबस खड़ी देखती रही। मुझे बहुत गुस्सा आया : कलीसिया के पैसों को जब्त करने की कोशिश में सीसीपी कितनी भी नीच हरकत कर सकती थी। वे तो राक्षसों का झुंड थे! 2002 में मेरे पति की कार दुर्घटना हुई थी, तब से वे कोई भारी काम नहीं कर पाते थे और अब हमारे परिवार की मुख्य कमाऊ सदस्य मैं ही थी। उन बरसों में, हम कम से कम खर्च करते थे और पैसे बचाने के लिए बहुत कड़ी मेहनत करते थे। अब जबकि पुलिस ने सारे पैसे छीन लिए, हम क्या कर सकते थे? हमारा बेटा बड़ा हो गया था और उसकी शादी करनी थी। अब तो उसकी शादी कराने के लिए भी पैसे नहीं थे। मुझे सचमुच नहीं पता था कि इस झटके का सामना कैसे करूँ। मैं बस परमेश्वर से प्रार्थना करके उससे मार्गदर्शन ही मांग सकती थी। प्रार्थना करने के बाद, मैंने उस वाकये के बारे में सोचा जब शैतान ने अय्यूब को प्रलोभन दिया था। रातों-रात, उसके सारे मवेशी चोरी हो गए। उसकी बरसों की जमा-पूँजी एक झटके में खत्म हो गई और उसके सभी दस बच्चे मारे गए। उसके पूरे शरीर में फोड़े निकल आये मगर उसने कभी शिकायत नहीं की और कहा, "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है" (अय्यूब 1:21)। इस तरह, उसने गवाही देकर शैतान को नीचा दिखाया। पुलिसवालों का पागलों की तरह हमारे घर की तलाशी लेना, हमारे पैसों को जब्त करना शैतान का प्रलोभन और हमला ही नहीं बल्कि हमारी परीक्षा लेने का परमेश्वर का तरीका भी था। ऐसे में, मुझे परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए, अपनी आस्था के दम पर, आने वाली हर मुसीबत का सामना करना चाहिए। चाहे जो भी हो, मैं भेंट उनके हवाले नहीं कर सकती, मुझे परमेश्वर के लिए गवाही देनी ही होगी।
पुलिस अगले दिन सुबह के 2 से 3 बजे तक मेरे घर की तलाशी लेती रही। घर का चप्पा-चप्पा छानने में उन्होंने करीब 7 घंटे लगाए, मगर और पैसे नहीं मिले। मेरे पति को इतनी बुरी तरह पीटा गया कि वे बेहोश हो गए और मुझे पूछताछ के लिए सशस्त्र पुलिस रिसेप्शन सेंटर ले जाया गया। वे जिस कमरे में मुझे लेकर गये, वहां सादे कपड़ों में चार-पाँच पुलिसवाले पहले से इंतज़ार कर रहे थे। वे दिखने में क्रूर और बेढब थे, कुटिल मुस्कान के साथ मुझे घूरे जा रहे थे। मैं बुरी तरह डर गई, मेरे हाथ कांपने लगे। मैंने फौरन परमेश्वर से प्रार्थना की, आस्था देने की गुहार लगाई। प्रार्थना के बाद, मैंने सोचा कि कैसे दानिय्येल को साजिश के तहत शेरों की मांद में फेंक दिया गया था, मगर परमेश्वर ने उसकी रक्षा की, शेरों ने उसे नहीं खाया। सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। शैतान क्रूर और शातिर हो सकता है, मगर परमेश्वर उसकी सीमाएं तय करता है। मुझे परमेश्वर पर भरोसा करके उसके लिए गवाही देनी होगी। फिर जन सुरक्षा ब्यूरो से एक राजनीतिक कमिसार, जिसका उपनाम डू था, अपने हाथों में एक दस्तावेज़ लेकर आया। उसमें क्या लिखा है यह बताये बिना, उसने मुझे दस्तखत करने के लिए कहा। जब मैंने दस्तखत नहीं किये, तो उसने एक फुट लंबा प्लास्टिक का डंडा उठाया और मेरे हाथों और मुँह पर मारने लगा। उसके डंडे की कुछ ही चोटों से मेरे हाथ-मुँह फूल गए। फिर उसने मेरे बगल में खड़े दो पुलिसवालों से कहा: उसे सोने मत देना। दो दिनों में उसकी हालत पतली हो जाएगी और हमें सब कुछ बता देगी। उसके बाद वह मेरी तरफ मुड़कर मुझे धमकाने लगा : अगर तुमने हमें नहीं बताया कि पैसे कहां रखे हैं, तो मैं तुम्हारा घर तोड़ डालूँगा! इससे मुझे बहुत चिंता होने लगी। कुछ सालों से मेरे पति बीमार चल रहे थे, फिर भी हमने किसी तरह अपने घर को सजाया-सँवारा था, मगर पुलिस ने कुछ ही घंटों में उसे कबाड़ बना दिया। ये पुलिसवाले बेहद क्रूर थे, कुछ भी कर सकते थे—अगर मैंने उन्हें नहीं बताया कि कलीसिया के पैसे कहां रखे हैं, तो क्या वे सचमुच मेरा घर तोड़ डालेंगे? क्या वे मुझे यातना देकर मार डालेंगे? मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही और फिर प्रभु यीशु के ये वचन मेरे मन में आये : "जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है" (मत्ती 10:28)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और हिम्मत दी। मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में है। शैतान चाहे कितना ही क्रूर क्यों न हो, वह केवल मेरे शरीर को नष्ट कर सकता है, परमेश्वर के चाहे बिना वह मेरा बाल भी बांका नहीं कर सकता। अगर परमेश्वर पुलिस को मेरा जीवन लेने और मेरे घर को नष्ट करने की अनुमति देता है, तो मैं समर्पण ज़रूर करूंगी। इसका एहसास होने पर, मेरा डर खत्म हो गया। फिर उन पुलिसवालों ने मुझे कुर्सी पर बिठा दिया और हथकड़ी लगा दी। जैसे ही मेरी आँखें बंद होने लगतीं, वे मेरे पैरों पर ज़ोर से मारते, इस तरह मैं सारी रात सो नहीं पायी।
अगले दिन सुबह होते ही कई पुलिसवाले बारी-बारी मुझसे पूछते रहे कि कलीसिया के पैसे कहां रखे हैं। कमिसार डू ने गुस्से से भड़कते हुए मुझसे पूछा: तुम्हारे पास जो पैसे थे, उसका क्या हुआ? रसीद में 250,000 युआन का जिक्र है, इसमें से कुछ ही पैसे क्यों मिले? बाकी के पैसे कहां हैं? मैं अपना सिर झुकाए रही और कुछ भी नहीं कहा। वह मुझ पर लगातार दबाव बनाता रहा: क्या तुमने बाकी के पैसे खर्च कर दिये? बताओ मुझे! मैंने मन ही मन सोचा : हम परमेश्वर की भेंटों का गबन कभी नहीं करेंगे। जो लोग परमेश्वर की भेंट का गबन करते हैं वे शैतान हैं, उन्हें शाप देकर नर्क की सजा दी जाएगी! जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो कमिसार डू उठ खड़ा हुआ, इधर-उधर चहलकदमी करने लगा। फिर उसने नरम लहज़े में मुझे मनाने लगा कि मैं उसे पैसों का ठिकाना बता दूँ। उसने कहा : तुम्हें पहले ही पता देना चाहिए था। जैसे ही हमें बता दोगी, तुम अपने परिवार के पास जा सकती हो। फिर उसने कहा : जहां तुम रहती हो, उस इलाके में मैंने थोड़ी सैन्य सेवा की है, हम तो एक ही शहर के हुए। तुम बस हमें बता दो, फिर हमें कोई समस्या नहीं होगी। मैंने मन-ही-मन सोचा : ये पुलिसवाले सभी तरह की कपटी चालें चलती हैं। मैं इनकी चालों में नहीं फँसने वाली! दूसरे पुलिसवाले ने मुझसे पूछा : क्या तुम्हारे पास 250,000 युआन नहीं थे? उसमें से सिर्फ़ 121,500 युआन ही बचे हैं, तो बाकी पैसे हमें लौटाने के लिए तुम कितने साल लेने की सोच रही हो? अगर तुम हमें इसकी गारंटी लिखकर दे दो, तो हम तुम्हें अभी घर जाने देंगे। क्या कहती हो? सुबह करीब 1 बजे एक और अधिकारी आया जिसका उपनाम चेन था। उसने पैसों का ठिकाना जानने के लिए बार-बार मुझसे सवाल किया और कहा : तुम्हें पता है ये पैसे कहां से आये हैं? ये लोगों की गाढ़ी कमाई के पैसे हैं, इसे लोगों को वापस कर दिया जाना चाहिए। उसके कुरूप चेहरे को देखकर, मुझे बहुत गुस्सा आया। ये पैसे परमेश्वर के चुने हुए उन लोगों ने कड़ी मेहनत से कमाये हैं, जिन्हें परमेश्वर का अनुग्रह मिला है, उन्होंने वे पैसे परमेश्वर को भेंट किये हैं। ये उचित ही है कि ये भेंटें परमेश्वर के लिए हैं। इन पैसों का "लोगों की गाढ़ी कमाई के पैसों" से कोई लेना-देना नहीं है। ये सरासर झूठ था! सीसीपी की पुलिस की इस हरकत से मैं उनकी दुष्टता को बिल्कुल साफ तौर पर समझ गई। उन्होंने जितना सताया मुझे उनसे उतनी ही घृणा हो गई। मैं अब उनकी और भी ज़्यादा उपेक्षा करना चाहती थी।
जब मैंने एक शब्द भी नहीं कहा, तो दो पुलिसवाले बारी-बारी मेरे चेहरे पर तमाचे जड़ने लगे, अब तो मैंने गिनना भी छोड़ दिया था। वे तब तक तमाचे मारते रहे, जब तक थक नहीं गए, फिर उन्होंने प्लास्टिक के फोल्डर से मारना शुरू कर दिया। मेरा सिर घूमने लगा, धुंधला दिखने लगा, गालों में तेज़ दर्द होने लगा। फिर उन्होंने मेरी हथकड़ी पर बिजली के डंडे से झटका दिया। मेरे पूरे शरीर और नसों में बिजली दौड़ गई, नसें सुन्न पड़ गईं। लगा कि मर जाना ही बेहतर है। मगर उन लोगों ने अब भी हार नहीं मानी। एक पुलिसवाले ने मुझे बूट से मारा और उसकी हील से मेरे पैर को कुचल दिया। यह बेहद दर्दनाक था। मार-पीट और यातना सहने के बाद, मैं बुरी तरह निढाल पड़ गई, मेरा सिर लट्टू की तरह घूमने लगा, मानो मैं मौत की कगार पर थी। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, उससे इस पीड़ा को सहन करने की दृढ़ता देने की गुहार लगाती रही, ताकि मैं उसके लिए गवाही दे सकूँ। प्रार्थना के बाद, परमेश्वर के वचनों का एक भजन मेरे मन में आया : "जब तुम कष्टों का सामना करते हो तो तुम्हें देह पर विचार नहीं करने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायत नहीं करने में समर्थ अवश्य होना चाहिए। जब परमेश्वर अपने आप को तुमसे छिपाता है, तो तुम्हें उसका अनुसरण करने के लिए, अपने पिछले प्यार को लड़खड़ाने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए, तुम्हें विश्वास रखने में समर्थ अवश्य होना चाहिए। इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर क्या करता है, तुम्हें उसके मंसूबे के प्रति समर्पण अवश्य करना चाहिए, और उसके विरूद्ध शिकायत करने की अपेक्षा अपनी स्वयं की देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब तुम्हारा परीक्षणों से सामना होता है तो तुम्हें अपनी किसी प्यारी चीज़ से अलग होने की अनिच्छा, या बुरी तरह रोने के बावजूद तुम्हें अवश्य परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'पूर्ण कैसे किए जाएँ')। हाँ। प्रताड़ित किये जाने पर हमारा शरीर एक हद तक सहन करता है, मगर परमेश्वर इस पीड़ा द्वारा हमारी आस्था को पूर्ण करता है। पुलिस चाहे मुझे कैसी भी यातना दे या मेरे साथ कितनी भी क्रूरता से पेश आये, मुझे परमेश्वर और अपनी आस्था पर भरोसा करके आने वाली हर मुसीबत का सामना करना होगा।
फिर उस अधिकारी ने मुझे खड़ी होने का आदेश दिया, मगर मेरे हाथ कुर्सी से बंधे थे, तो मैं खड़ी नहीं हो सकी। जब किसी तरह उठने की कोशिश की तो 30 पाउंड की कुर्सी मेरी कलाइयों पर झूलने लगी और कमर झुक गई। फिर उस अधिकारी ने ज़ोर से कुर्सी को हिलाया जिससे हथकड़ियां मेरी कलाइयों में गड़ गईं। यह बेहद दर्द भरा था। उसने कुटिल मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखकर कहा : ये तुम्हारी ही गलती है, तुम हमें दोष नहीं दे सकती। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, उस पीड़ा से लड़ने की कोशिश करने लगी, जबकि उनकी पागलपन भरी हँसी कमरे में गूंजती रही। मुझे इस राक्षसों के झुंड से नफ़रत हो गई। उस समय तक, मुझे हथकड़ी लगाकर दिन-रात कुर्सी से बांधकर रखा गया था। मेरा सर बहुत दुख रहा था, चक्कर आने लगे, पीठ में तेज़ दर्द होने लगा। लगा जैसे मेरे दो हिस्से हो जाएंगे, मुझे नहीं पता था कि मैं कितनी देर यातना सह पाऊँगी। इसलिए मैं दिल-ही-दिल में परमेश्वर को पुकारती रही : प्यारे परमेश्वर! मुझे नहीं पता कि मैं और कितनी देर पीड़ा सह पाऊँगी। मुझे राह दिखाओ, मुझे आस्था और हिम्मत दो, कि मैं तुम्हारे लिए गवाही दे सकूँ। प्रार्थना करने के बाद, परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : "अंत के दिनों के लोगों के समूह के बीच मेरा कार्य एक अभूतपूर्व उद्यम है, और इस प्रकार, मेरी खातिर सभी लोगों को आखिरी कठिनाई का सामना करना है, ताकि मेरी महिमा सारे ब्रह्मांड को भर सके। क्या तुम लोग मेरी इच्छा को समझते हो? यह आखिरी अपेक्षा है जो मैं मनुष्य से करता हूँ, जिसका अर्थ है, मुझे आशा है कि सभी लोग बड़े लाल अजगर के सामने मेरे लिए सशक्त और शानदार ज़बर्दस्त गवाही दे सकते हैं, कि वे मेरे लिए अंतिम बार स्वयं को समर्पित कर सकते हैं और एक आखिरी बार मेरी अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हैं। क्या तुम लोग वाकई ऐसा कर सकते हो?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 34)। परमेश्वर के वचनों में मुझे उम्मीद की किरण दिखी और प्रोत्साहन मिला। इस मुश्किल घड़ी में ही मुझे शैतान के सामने गवाही देनी होगी। मुझे इस दर्द और पीड़ा को सहन करना होगा, गवाही देकर शैतान को नीचा दिखाना होगा! परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन मिला तो लगा मानो वह हमेशा मेरे साथ है और पीड़ा थोड़ी कम हो गई। रात भर की यातना और मार-पीट के बाद, मेरा पूरा शरीर जख्मों और घावों से भर गया। मेरा चेहरा फोड़ों से ढक गया और पैर बुरी तरह सूज गये। मैं बेहद कमज़ोर हो गई थी। अगली पाली में काम करने वाले अधिकारी ने काफी कुछ देखा था, उसने कहा : इन लोगों ने हद पार कर दी : ये किसान बड़ी मुश्किल से अपनी आजीविका चलाते हैं और अब उन्होंने उनके इतने सारे पैसे चुरा लिये।
तीसरे दिन, कमिसार डू दोबारा दान के 250,000 युआन का ठिकाना जानने और मेरी आस्था के बारे में पूछताछ करने आया। मैंने कहा : 250,000 युआन पहले ही हटा लिये गए हैं। आपने मेरे परिवार के पैसे लिये हैं। कमिसार डू फौरन पीछे मुड़ा और लिखित रिकॉर्ड बनाने वाले व्यक्ति से कहा : ये मत लिखना। मैंने पूछा : क्यों नहीं? वो गुस्से में उठा और टेबल पर ज़ोर से हाथ मारते हुए चिल्लाया : यहां पूछताछ कौन कर रहा है? जिस आदमी ने पैसे लिये हैं उसका नाम क्या है? वे पैसे कहां गये? जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो उसने क्रूरता से कहा : अगर तुमने नहीं बताया, तो मैं तुम्हारे बेटे की कभी नौकरी नहीं लगने दूंगा। तुम्हारा परिवार इस सदमे को नहीं झेल पाएगा! पहले तो मुझे बड़ी चिंता हुई। मेरा बच्चे अभी जवान हैं—अगर सीसीपी ने उनकी नौकरी नहीं लगने दी, तो वे भविष्य में अपना काम कैसे चलाएंगे? प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के इन वचनों पर विचार किया : "मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होता है। तुम स्वयं को नियंत्रित करने में असमर्थ हो : हमेशा अपनी ओर से भाग-दौड़ करते रहने और व्यस्त रहने के बावजूद मनुष्य स्वयं को नियंत्रित करने में अक्षम रहता है। यदि तुम अपने भविष्य की संभावनाओं को जान सकते, यदि तुम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते, तो क्या तुम तब भी एक सृजित प्राणी होते?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करने के बाद, मुझे काफी राहत महसूस हुई। मेरे बच्चों का भविष्य परमेश्वर के हाथों में था। इस मामले में बड़ा लाल अजगर कुछ नहीं कर सकता था। गवाही देने के लिए मुझे परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए। जहां तक मेरे बच्चों के भविष्य और परिवार के भाग्य की बात है, तो परमेश्वर ने सब कुछ बहुत पहले तय कर दिया था। मैं उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने के लिए तैयार थी।
मेरी गिरफ़्तारी के चार दिन तक मुझे नहीं पता था वे मेरे बेटे पर पैसे उधार लेने के लिए ज़ोर डाल रहे थे। उस दिन वे जन सुरक्षा प्रमुख के साथ मेरे बेटे को लेकर आये। जब मेरे बेटे ने मेरा घावों से भरा, सूजा हुआ चेहरा देखा, तो उसने रोते हुए कहा : मॉम, आप फ़िक्र मत करो। मुझे अभी शादी नहीं करनी, मैं किसी तरह पैसे उधार लेकर आपको यहां से निकाल लूंगा। उसे ऐसा कहते सुनकर मैं अंदर तक कांप उठी, मुझे बहुत अजीब लगा। उसके बाद कमिसार डू ने जन सुरक्षा प्रमुख को आदेश दिया : आपको भी पैसे की समस्या को सुलझाने में मदद करनी है। और फिर उसने एकदम से कहा : क्या उनके कोई रिश्तेदार भी हैं? देखिए क्या वे उनसे पैसे उधार ले सकते हैं। जन सुरक्षा प्रमुख ने सिर हिलाकर और गर्दन झुकाकर कहा : जब मैं वापस आऊँगा, तो उसके भाई-बहन से बात करूंगा, उसके पति को कोई हल निकालने के लिए कहूंगा। दूसरे अधिकारी ने मेरी ओर देखते हुए कहा : देखो, तुम्हारा बेटा और जन सुरक्षा प्रमुख तुम्हारे साथ कितनी अच्छी तरह पेश आ रहे हैं। यह देखकर कि वे लोग कितने लालची हैं, मैंने गुस्से से जवाब दिया : मैं अपने भाई-बहनों के संपर्क में नहीं रहती। उनसे बात करना बेकार है। दूसरा अधिकारी चिल्लाया : क्या रसीद में 250,000 युआन का ज़िक्र नहीं है? हमें सिर्फ 120,000 युआन ही मिले, चाहे जो भी हो, तुम्हें बाकी पैसों का इंतज़ाम करना ही होगा। मैं एक दीवार के सहारे खड़ी थी, मेरे पास कोई चारा नहीं था, मैंने कहा : तो मेरा घर बेच दो। जन सुरक्षा प्रमुख ने तिरस्कार भरे अंदाज़ में मुझे घूरते हुए कहा : तुम्हारे घर की कीमत ज़्यादा नहीं है। क्या तुम्हें वाकई लगता है कि इसे बेचकर बाकी पैसों का इंतज़ाम कर सकोगी? अधिकारी ने यह सुना, तो वह फिर से मेरे बेटे पर पैसे उधार लेने का दबाव बनाने लगा। मेरे बेटे ने मजबूर होकर हाँ कहा। उसकी आँखों में आंसू भर आये। मैं बहुत गुस्से में थी—बड़ा लाल अजगर कितना नीच और घिनौना था। वे हमेशा धार्मिक आज़ादी का दावा करते हैं, मगर हकीकत में वे विश्वासियों को दबाते हैं, गिरफ्तार करके क्रूरता करते हैं। वे हमारे पैसे चुराने, परमेश्वर की भेंट लूटने और लोगों को मोहताज़ करने के लिए हर मुमकिन तरकीब आज़माते हैं। मैंने साफ़ तौर पर देखा कि बड़ा लाल अजगर एक ऐसा राक्षस है जो परमेश्वर का विरोध और लोगों पर क्रूरता करता है। इन सबसे परमेश्वर का अनुसरण करने का मेरा संकल्प और मजबूत हो गया। मैं मन-ही-मन ये भजन गाने लगी : "परीक्षणों और क्लेशों को सहकर, अंतत: मैं जाग गई। मैंने जान लिया कि शैतान घिनौना, क्रूर और दुष्ट है। मेरे दिल में क्रोध के शोले सुलग रहे थे। मैंने बड़े लाल अजगर को त्यागने और परमेश्वर की गवाही देने का संकल्प किया" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'मैं मरते दम तक निष्ठापूर्वक परमेश्वर का अनुसरण करने की प्रतिज्ञा करती हूँ')। चाहे शैतान कितनी भी क्रूरता करे, मैं गवाही देकर शैतान को नीचा दिखाऊँगी।
अगले कुछ दिनों में, उन्होंने यातना देने का अलग तरीका अपनाया। उन्होंने मुझे एक कुर्सी से बाँध दिया और बार-बार मुझसे वही सवाल पूछते रहे जो वे पहले ही पूछ चुके थे, मेरा खाना-पीना और सोना तक हराम कर दिया। "250,000 युआन कहां हैं? पैसे किसने लिये? जिस आदमी ने पैसे लिये उसका नाम क्या है? वो कैसा दिखता है?" हर दिन, हर वक्त मैं बेबस और बेहाल रहती। आठवें दिन, जब कमिसार डू मुझसे एक शब्द भी नहीं उगलवा पाया, तो वह दोबारा मेरे बेटे को लेकर आया और उससे कहा, 130,000 युआन नहीं मिले तो, वो मुझे जाने नहीं देगा। चिंतित होते हुए मेरे बेटे ने कहा : मैंने सबसे बात कर ली, मगर पैसे नहीं जुटा पाया। उसने मेरे बेटे से मेरी बेटी से पैसे मांगने के लिए भी कहा। मैं गुस्से से बिफर उठी : हम एक साधारण किसान परिवार से हैं, मेरे पति कई सालों से बीमार हैं, हम उतने पैसों का इंतज़ाम कैसे कर सकते हैं? मगर कमिसार डू ने मेरी बात अनसुनी कर और मेरे बेटे को घूरते हुए कहा : जाओ और पैसों के इंतज़ाम का तरीका ढूंढो।
दसवें दिन, उन्हें एहसास हो गया कि वे अब मुझसे कोई अहम जानकारी नहीं पा सकेंगे, तो उन्होंने मुझे घर जाने दिया। वहां से निकलते वक्त, उन्होंने मुझे चेतावनी दी कि मैं 250,000 युआन में से बाकी पैसे उन्हें जल्द दे दूँ। उन्होंने यह भी कहा : जिस आदमी ने तुम्हें दान के पैसे रखने के लिये कहा था, अगर तुम उसके बारे में बता दो, तो हम तुम्हारे पैसे लौटा देंगे। मैंने मन-ही-मन सोचा : पैसों के दबाव से वे लोग मुझे मजबूर कर कर रहे थेकि मैं अपने भाई-बहनों को धोखा दे दूँ। मैं ऐसा नहीं होने दूँगी। बाद में मुझे पता चला कि मेरे बेटे ने मुझे छुड़ाने के लिए पुलिस को 80,000 युआन दिये थे।
हम तो पहले ही संपन्न नहीं थे, जब पुलिस ने बचत के पैसे ले लिये, तो हमारा जीना मुश्किल हो गया। मेरे पति काम नहीं कर सकते थे, मैं हाथों में कंपन की समस्या से जूझ रही थी। पुलिस की यातना झेलने के बाद, मेरे हाथों का कंपन काफी बढ़ गया। बाहर जाना, काम करना तो दूर, मैं खाना भी नहीं बना पाती थी। आमदनी का कोई जरिया न होने के कारण, हमारे पास सब्जियां, नूडल और रोज़ाना की ज़रूरी चीज़ें खरीदने के पैसे भी नहीं रहे। एक बार, मैं टॉयलेट पेपर खरीदना चाहती थी, मगर मेरे वॉलेट में एक पैसा भी नहीं बचा था। सीसीपी ने हमारे सभी पैसे छीन लिये और अब हमारे पास जिंदगी गुज़ारने के पैसे भी नहीं थे। इस तरह हम कैसे जी सकते थे? इस बारे में सोचकर मुझे बड़ी निराशा होती थी। सबसे बड़ी बात, पुलिस आये दिन जब चाहे तब हमें बुला लेती थी। हालत ऐसी हो गई कि फ़ोन की घंटी बजते ही मैं घबरा उठती थी। इससे भी बुरी बात ये हुई कि हमारे दोस्त-रिश्तेदार ऐसे किनारा करने लगे, मानो हमें कोई बीमारी हो, वे इस पचड़े में नहीं फंसना चाहते थे। गाँव के लोग हमारे बारे में तरह-तरह की बातें करने लगे। कभी-कभी तो उनकी बात सहन करना मुश्किल हो जाता। मैं इतनी परेशान और निराश रहने लगी कि बस खेतों में जाकर रोने लगती। रो-रोकर परमेश्वर से विनती करती : प्यारे परमेश्वर! इन हालात में, मैं बहुत कमज़ोर महसूस कर रही हूँ, मुझे नहीं पता इस मुसीबत से कैसे बाहर निकलूँ। मैं तुमसे विनती करती हूँ, मुझे राह दिखाओ, आस्था और हिम्मत दो। प्रार्थना के बाद, मैंने उसके वचनों के इस अंश पर विचार किया : "परमेश्वर हमें राह दिखाता हुआ जिस मार्ग पर ले जाता है, वह कोई सीधा मार्ग नहीं है, बल्कि वह गड्ढों से भरी टेढ़ी-मेढ़ी सड़क है; इसके अतिरिक्त, परमेश्वर कहता है कि मार्ग जितना ही ज़्यादा पथरीला होगा, उतना ही ज़्यादा वह हमारे स्नेहिल हृदयों को प्रकट कर सकता है। लेकिन हममें से कोई भी ऐसा मार्ग उपलब्ध नहीं करा सकता। अपने अनुभव में, मैं बहुत-से पथरीले, जोखिम-भरे मार्गों पर चला हूँ और मैंने भीषण दुख झेले हैं; कभी-कभी मैं इतना शोकग्रस्त रहा हूँ कि मेरा मन रोने को करता था, लेकिन मैं इस मार्ग पर आज तक चलता आया हूँ। मेरा विश्वास है कि यही वह मार्ग है जो परमेश्वर ने दिखाया है, इसलिए मैं सारे कष्टों के संताप सहता हुआ आगे बढ़ता जाता हूँ। चूँकि यह परमेश्वर का विधान है, इसलिए इससे कौन बच सकता है? मैं किसी आशीष के लिए याचना नहीं करता; मैं तो सिर्फ़ इतनी याचना करता हूँ कि मैं उस मार्ग पर चलता रह सकूँ, जिस पर मुझे परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक चलना अनिवार्य है। मैं दूसरों की नकल करते हुए उस मार्ग पर नहीं चलना चाहता, जिस पर वे चलते हैं; मैं तो सिर्फ़ इतना चाहता हूँ कि मैं आखिरी क्षण तक अपने निर्दिष्ट मार्ग पर चलने की अपनी निष्ठा का निर्वाह कर सकूँ" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'मार्ग... (6)')। परमेश्वर के वचनों के पन्ने पलटते हुए, आंसुओं की धार बहने लगी। मुझे एहसास हुआ कि सीसीपी की सत्ता वाले देश में परमेश्वर पर विश्वास और उसका अनुसरण करने का मतलब है सभी तरह की मुश्किलों और उत्पीड़न का सामना करना। सीसीपी के मुझे गिरफ्तार करके सताने के कारण मेरे परिवार ने बचत के पैसे गँवा दिये, हम एक निम्न स्तर की जिंदगी गुज़ारने पर मजबूर हो गए। मगर यह परमेश्वर का आदेश था, जीवन के इस खास अनुभव से परमेश्वर मेरा मार्गदर्शन कर रहा था। परमेश्वर इन मुश्किल हालात का इस्तेमाल करके मेरी आस्था की परीक्षा ले रहा था। इस मुश्किल घड़ी में मुझे परमेश्वर के प्रति समर्पित होकर उसके लिए गवाही देनी चाहिए।
अगले कुछ दिनों तक, मेरे पति और मैंने एक दूसरे का हौसला बढ़ाया, साथ मिलकर भजन गाया। बाद में, हमारे भाई-बहन हमारी मदद करने लगे। कुछ भाई-बहनों ने हमें पैसे दिये, दूसरों ने हमें ज़रूरत की चीज़ें दीं। कुछ भाई-बहन हमारे साथ संगति करते, सहारा देते ... परमेश्वर के प्रेम और उसके वचनों ने उन सबसे बुरे दिनों में हमारा मार्गदर्शन किया। बाद में, हमने एक स्टॉल लगाया और पैसे कमाने के लिए कारोबार करने लगे। मगर पुलिस ने हमारी निगरानी करना और हमें परेशान करना नहीं छोड़ा। उन्होंने हमें लिखित गारंटी देने पर भी मजबूर किया कि हम परमेश्वर में विश्वास करना बंद कर देंगे। मैंने दृढ़ता से जवाब दिया : मैं इस पर दस्तख़त नहीं करूंगी! मैंने मन-ही-मन सोचा : भले ही मेरी जिंदगी खतरे में पड़ जाये, मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूंगी। परमेश्वर का धन्यवाद!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?