Christian Song | "परमेश्वर की इच्छा है कि मानवजाति सत्य का अनुसरण करे और जीवित रहे" | Choral Hymn

11 जुलाई, 2025

1

मनुष्य को सत्य का अनुसरण क्यों करना चाहिए?

सबसे प्रमुख कारण यह है कि परमेश्वर के दृष्टिकोण से देखें

तो सत्य का अनुसरण करने का संबंध उसके प्रबंधन,

मानवजाति से उसकी अपेक्षाओं

और मानवजाति से लगाई गईं उसकी आशाओं से है—

यह परमेश्वर की प्रबंधन योजना का एक हिस्सा है।

चाहे तुम जो भी हो

और तुमने जितने भी लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास रखा हो,

अगर तुम सत्य का अनुसरण या इससे प्रेम नहीं करते,

तो अंत में तुम अनिवार्यतः हटाए जाने के निशाने पर आ जाओगे—

यह बात दिन के उजाले की तरह साफ है।

2

परमेश्वर तीन चरणों का कार्य करता है;

मानवजाति का सृजन करने के बाद से ही

उसकी एक प्रबंधन योजना रही है,

और वह इन चरणों को मानवजाति में प्रभावी करता गया है,

और मानवजाति को कदम-दर-कदम बढ़ाते हुए

आज तक ले आया है।

परमेश्वर ने अपने हृदय के रक्त को इतना अधिक खपाया है

और उसने इतने लंबे समय तक सहन किया है,

जिसका अंतिम लक्ष्य मनुष्य में उन सत्यों को गढ़ना

जिन्हें वह व्यक्त करता है

और अपने अपेक्षित मानदंडों के प्रत्येक पहलू को गढ़ना

जिन्हें वह मानवजाति को बताता है

और उन्हें मनुष्य के जीवन और वास्तविकता में बदलना है।

परमेश्वर की दृष्टि में यह एक अति महत्वपूर्ण मामला है

और परमेश्वर इसे बहुत अहम मानता है।

3

जहाँ तक हर व्यक्ति का संबंध है,

तो चाहे तुम्हारी जो भी काबिलियत

या उम्र हो या तुम जितने भी समय से परमेश्वर में विश्वास रखते आए हो,

तुम्हें सत्य का अनुसरण करने के मार्ग की ओर प्रयास करने चाहिए।

तुम्हें किसी भी वस्तुगत बहाने पर जोर नहीं देना चाहिए;

तुम्हें बिना शर्त सत्य का अनुसरण करना चाहिए।

लक्ष्यहीन जीवन मत बिताओ।

मान लो कि तुम सत्य खोजने को

अपने जीवन का प्रधान मामला बना लेते हो

और इसके लिए जूझते और प्रयास करते हो,

वे तुम्हारी इच्छा के अनुरूप न हों,

लेकिन परमेश्वर कहता है

कि वह सत्य के अनुसरण में तुम्हारे रवैये

और तुम्हारी ईमानदारी के आधार पर तुम्हें एक उचित मंजिल देगा—

तो यह कितनी अद्भुत बात रहेगी!

4

अभी इस बात पर ध्यान केंद्रित मत करो कि तुम्हारी मंजिल

या परिणाम क्या होगा या आगे क्या होगा और भविष्य में क्या छिपा है

या क्या तुम विपत्ति से बचने और प्राण न गँवाने में सक्षम रहोगे—

इन चीजों के बारे में मत सोचो, न इनके बारे में आग्रह करो।

केवल परमेश्वर के वचनों और उसकी जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करो

और सत्य के अनुसरण में लग जाओ

और अपना कर्तव्य अच्छे से निभाओ।

परमेश्वर के इरादे पूरे करो

और परमेश्वर की छह हजार वर्षों की प्रतीक्षा

और छह हजार वर्षों की आशा को निराश मत करो।

परमेश्वर को थोड़ा दिलासा दो; उसे तुम्हारे अंदर आशा दिखाई दे

और उसकी इच्छाएँ तुम में पूरी हों।

मुझे बताओ, अगर तुम ऐसा करोगे

तो क्या परमेश्वर तुम्हारे साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार करेगा?

और भले ही अंतिम परिणाम वैसे न हों जैसा तुमने चाहा था,

एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हें बिना किसी व्यक्तिगत योजना के

सभी चीजों में परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति

समर्पण करना चाहिए। ऐसी मानसिकता रखना सही है।

—वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, मनुष्य को सत्य का अनुसरण क्यों करना चाहिए

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