परमेश्वर के दैनिक वचन : इंसान की भ्रष्टता का खुलासा | अंश 312
07 अक्टूबर, 2020
हज़ारों सालों से यह गंदगी की भूमि रही है। यह असहनीय रूप से गंदी है, दुःख से भरी हुई है, प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं, चालें चलते हुए और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए, क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए; सड़न की बदबू ज़मीन पर छा गई है और हवा में व्याप्त हो गई है, और इसे बेहद संरक्षित रखा जाता है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? शैतान मनुष्य के पूरे शरीर को कसकर बांध देता है, उसकी दोनों आंखें बाहर निकाल देता है, और उसके होंठ मज़बूती से बंद कर देता है। शैतानों के राजा ने हज़ारों वर्षों तक उपद्रव किया है, और आज भी वह उपद्रव कर रहा है और इस भुतहा शहर पर करीब से नज़र रखे हुए है, मानो यह राक्षसों का एक अभेद्य महल हो; इस बीच रक्षक कुत्ते चमकती हुई आंखों से घूरते हैं, इस बात से अत्यंत भयभीत कि परमेश्वर अचानक उन्हें पकड़ लेगा और उन सभी को मिटाकर रख देगा, और उन्हें शांति और ख़ुशी के स्थान से वंचित कर देगा। ऐसे भुतहा शहर के लोग परमेश्वर को कभी भी कैसे देख सकते हैं? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और मनोहरता का आनंद लिया है? मानव-जगत के मामलों की क्या कद्र है उन्हें? उनमें से कौन परमेश्वर की उत्सुक इच्छा को समझ सकता है? फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा रहता है : इस तरह के अंधेरे समाज में, जहां राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, शैतानों का राजा, जो बिना पलक झपकाए लोगों को मार डालता है, ऐसे परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है, जो प्यारा, दयालु और पवित्र भी है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये दास! ये दयालुता का बदला घृणा से चुकाते हैं, इन्होंने लंबे समय से परमेश्वर का तिरस्कार किया है, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये चरम सीमा तक बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, ये पूरा विवेक खो चुके हैं, ये समस्त विवेक के विरुद्ध जाते हैं, और ये निर्दोषों को अचेत होने का प्रलोभन देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय नेता? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे के सभी लोगों को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप छिपाने की चालें हैं! किसने परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया है? किसने परमेश्वर के कार्य के लिए अपना जीवन अर्पित किया है या रक्त बहाया है? पीढ़ी-दर-पीढ़ी, माता-पिता से लेकर बच्चों तक, गुलाम बनाए गए मनुष्य ने परमेश्वर को बेखटके गुलाम बना लिया है—ऐसा कैसे हो सकता है कि यह रोष न भड़काए? दिल में हज़ारों वर्ष की घृणा भरी हुई है, पापमयता की सहस्राब्दियाँ दिल पर अंकित हैं—यह कैसे घृणा को प्रेरित नहीं करेगा? परमेश्वर का बदला लो, उसके शत्रु को पूरी तरह से समाप्त कर दो, उसे अब और बेकाबू न दौड़ने दो, और उसे मनचाहे तरीके से परेशानी मत बढ़ाने दो! यही समय है : मनुष्य अपनी सभी शक्तियाँ लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए अपने सभी प्रयास किए हैं, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दानव के घृणित चेहरे को तोड़ सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अपने दर्द से उबरने और इस दुष्ट प्राचीन शैतान से पीठ फेरने दे। परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहां हैं? निष्पक्षता कहां है? आराम कहां है? गर्मजोशी कहां है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखेभरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए, जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को तब तक खदेड़ा जाए, जब तक उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह न रहे? मनुष्यों के बीच की गर्मजोशी कहां है? लोगों के बीच स्वागत की भावना कहां है? परमेश्वर में इस तरह की हताश तड़प क्यों पैदा की जाए? परमेवर को बार-बार पुकारने पर मजबूर क्यों किया जाए? परमेश्वर को अपने प्रिय पुत्र के लिए चिंता करने पर मजबूर क्यों किया जाए? इस अंधेरे समाज में इसके घटिया रक्षक कुत्ते परमेश्वर को इस दुनिया में स्वतंत्रता से आने-जाने क्यों नहीं देते, जिसे उसने बनाया? मनुष्य क्यों नहीं समझता, वह मनुष्य, जो दर्द और पीड़ा के बीच रहता है? तुम लोगों के लिए परमेश्वर ने अत्यंत यातना सही है, और अत्यंत पीड़ा के साथ अपना प्यारा पुत्र, अपना देह और रक्त तुम लोगों को सौंपा है—तो फिर तुम लोग क्यों अभी भी उससे आंखें फेरते हो? हर किसी के सामने तुम लोग परमेश्वर के आगमन को अस्वीकार करते हो, और परमेश्वर की दोस्ती को मना करते हो। तुम लोग इतने निर्लज्ज क्यों हो? क्या तुम लोग ऐसे अंधेरे समाज में अन्याय सहन करने के लिए तैयार हो? शत्रुता की सहस्राब्दियों से स्वयं को भरने के बजाय तुम क्यों शैतानों के राजा के "मल" से स्वयं को भरते हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8)
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