परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 46

07 अप्रैल, 2021

अय्यूब के विषय में लोगों की अनेक ग़लतफहमियां

अय्यूब के द्वारा सही गई कठिनाईयां परमेश्वर के द्वारा भेजे गए स्वर्गदूतों का कार्य नहीं था, न ही इसे परमेश्वर के हाथ के द्वारा किया गया था। इसके बजाए, इसे शैतान के द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया गया था, जो परमेश्वर का शत्रु है। परिणामस्वरूप, अय्यूब के द्वारा सही गई कठिनाईयों का स्तर अत्याधिक गहरा था। फिर भी इस समय अय्यूब ने बिना किसी संशय के अपने हृदय में परमेश्वर के विषय में अपने प्रतिदिन के ज्ञान को, प्रतिदिन के कार्यों के सिद्धान्तों को, और परमेश्वर के प्रति अपनी मनोवृत्ति को प्रदर्शित किया था—और यही वह सच्चाई है। यदि अय्यूब की परीक्षा नहीं की गई होती, यदि परमेश्वर अय्यूब के ऊपर इन विपत्तियों को नहीं लाता, तो जब अय्यूब ने कहा, "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है," तो तू कहता है कि अय्यूब एक पाखंडी है; परमेश्वर ने उसे बहुत सारी सम्पत्ति दी थी, इसलिए वास्तव में उसने यहोवा के नाम को धन्य कहा था। परीक्षाओं के अधीन किए जाने से पहले, यदि अय्यूब ने कहा होता, "क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?" तो तू कहेगा कि अय्यूब बढ़ा-चढ़ा कर बातें कर रहा था, और यह कि वह परमेश्वर के नाम को नहीं त्यागेगा क्योंकि उसे परमेश्वर के हाथ के द्वारा अकसर आशीषित किया गया था। यदि परमेश्वर उसके ऊपर विपत्ती लाया होता, तो उसने निश्चय ही परमेश्वर के नाम को त्याग दिया होता। फिर भी जब अय्यूब ने अपने आपको ऐसी परिस्थितियों में पाया जिन्हें कोई नहीं चाहेगा, या जिन्हें देखने की इच्छा नहीं करेगा, या नहीं चाहेगा कि वे उनके ऊपर आएं, और जिनके अपने ऊपर आने से लोग डरेंगे, ऐसी परिस्थितियां जिन्हें परमेश्वर भी नहीं देख सकता था, अय्यूब उन परिस्थतियों में अपनी ईमानदारी को अभी भी थामे रखने के योग्य था: "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है" और "क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?" इस समय अय्यूब के बर्ताव का सामना करने पर, ऐसे लोग जो बड़ी बड़ी बातें करना पसंद करते हैं, और जो पत्रियों एवं सिद्धान्तों को बोलना पसंद करते हैं, वे निःशब्द हो जाते हैं। ऐसे लोग जो केवल भाषण में ही परमेश्वर के नाम का अत्यंत गुणगान करते हैं, फिर भी उन्होंने परमेश्वर की परीक्षाओं को कभी स्वीकार नहीं किया है, उनकी निन्दा उस ईमानदारी के द्वारा की जाती है जिसे अय्यूब ने दृढ़ता से थामा था, और ऐसे लोग जिन्होंने कभी विश्वास नहीं किया है कि मनुष्य परमेश्वर के मार्ग को दृढ़ता से थामे रहने के योग्य है उन्हें अय्यूब की गवाही के द्वारा दोषी ठहराया जाता है। इन परीक्षाओं के दौरान अय्यूब के आचरण और उन वचनों का सामना करने पर जिन्हें उसने कहा था, कुछ लोग भ्रम का एहसास करेंगे, कुछ लोग ईर्ष्या का एहसास करेंगे, कुछ लोग सन्देह महसूस करेंगे, और कुछ लोग उदासीन भी दिखाई देंगे, और अय्यूब की गवाही पर घमण्ड से अपनी अपनी नाक को ऊंचा कर लेंगे क्योंकि वे न केवल उस पीड़ा को देखते हैं जो परीक्षाओं के दौरान अय्यूब के ऊपर आया था, और उन वचनों को पढ़ते हैं जिन्हें अय्यूब के द्वारा कहा गया था, बल्कि वे मानवता की "कमज़ोरियों" को भी देखते हैं जिन्हें अय्यूब के द्वारा उजागर किया गया था जब परीक्षाएं उसके ऊपर आ गई थीं। इस "कमज़ोरी" को वे अय्यूब की सिद्धता में कल्पित अपूर्णता मानते हैं, वे इसे एक ऐसे मनुष्य में एक कलंक मानते हैं जो परमेश्वर की दृष्टि में सिद्ध था। दूसरे शब्दों में, यह विश्वास किया जाता है कि ऐसे लोग जो सिद्ध हैं वे त्रुटिहीन हैं, वे बिना किसी दाग या धब्बे के हैं, उनमें कोई कमज़ोरी नहीं है, यह कि उनके पास पीड़ा का ज्ञान नहीं है, यह कि वे कभी अप्रसन्नता या उदासी का अनुभव नहीं करते हैं, और उनके पास कोई नफरत या बाह्य चरम व्यवहार नहीं है; इसके परिणामस्वरूप, अधिकांश लोग यह विश्वास नहीं करते हैं कि अय्यूब पूरी तरह से सिद्ध था। लोग अय्यूब की परीक्षाओं के दौरान उसके अधिकांश व्यवहार को पसंद नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब ने अपनी सम्पत्ति एवं बच्चों को खो दिया, वह फूट फूट कर नहीं रोया जैसा लोग कल्पना करेंगे। उसकी "अशिष्टता" ने लोगों को यह सोचने के लिए मजबूर किया कि वह रुखा था, क्योंकि उसके पास आंसू, या अपने परिवार के लिए प्रेम नहीं था। यह वह बुरा प्रभाव है जिसे अय्यूब सबसे पहले लोगों को देता है। उसके बाद वे पाते हैं कि उसका व्यवहार और भी अधिक परेशान करने वाला है: "बागा फाड़" को लोगों के द्वारा परमेश्वर के प्रति उसके अनादर के रूप में अनुवाद किया गया है, और "सिर मुँड़ाकर" को परमेश्वर के प्रति अय्यूब की निन्दा एवं विरोध के अभिप्राय में ग़लत माना गया है। अय्यूब के इन शब्दों के आलावा कि "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है," लोगों ने अय्यूब में किसी भी प्रकार की धार्मिकता को नहीं परखा जिसकी प्रशंसा परमेश्वर के द्वारा की गई थी, और इस प्रकार अय्यूब के विषय में उनमें से अधिकतर लोगों का आंकलन नासमझी, ग़लतफहमी, सन्देह, निन्दा, एवं सिर्फ सिद्धान्तों में ही स्वीकार किए जाने से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। उनमें से कोई भी यहोवा परमेश्वर के वचनों को सही मायने में समझने एवं उनकी सराहना करने के योग्य नहीं है कि अय्यूब एक खरा एवं सीधा मनुष्य था, ऐसा मनुष्य जो परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था।

अय्यूब के विषय में उनकी छवि के आधार पर, लोगों में उसकी धार्मिकता को लेकर और अधिक सन्देह हैं, क्योंकि अय्यूब के कार्य एवं उसका व्यवहार जिन्हें पवित्र शास्त्र में दर्ज किया गया है वे अत्यंत प्रभावशाली रूप से उतने मर्मस्पर्शी नहीं हैं जितना लोगों ने कल्पना किया होगा। न केवल उसने किसी बड़ी दावत को अंजाम नहीं दिया, बल्कि उसने राख में बैठकर अपने आपको खुजाने के लिए मटके का एक ठीकरा लिया। इस कार्य ने भी लोगों को बहुत अधिक आश्चर्यचकित किया और उन्हें अय्यूब की धार्मिकता पर सन्देह करने—और यहाँ तक कि उसका इंकार करने के लिए मजबूर भी किया, क्योंकि स्वयं को खुजाते समय अय्यूब ने परमेश्वर से प्रार्थना नहीं की, या परमेश्वर से प्रतिज्ञा नहीं की; इसके अतिरिक्त न ही उसे दर्द के कारण विलाप से आँसू बहाते हुए देखा गया। इस समय, लोगों ने सिर्फ उसकी कमज़ोरी को ही देखा और किसी अन्य चीज़ को नहीं, और इस प्रकार जब उन्होंने अय्यूब को यह कहते हुए सुना, "क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?" तो वे पूरी तरह से भौंचक्के हो गए, या फिर दुविधा में पड़ गए, और वे अभी भी अय्यूब के शब्दों से उसकी धार्मिकता को परखने में असमर्थ हैं। वह मूल छवि जिसे अय्यूब अपनी पीड़ा के दौरान लोगों को देता है वह यह है कि वह न तो शर्मिन्दा था और न ही अहंकारी। लोग उसके इस व्यवहार के पीछे की उस कहानी को नहीं देखते हैं जो उसके हृदय की गहराईयों में घटी थी, न ही वे उसके हृदय के भीतर परमेश्वर के भय को या बुराई से दूर रहने की रीति के सिद्धान्तों में बने रहने को देखते हैं। उसका शांत चित्त लोगों का यह सोचने पर मजबूर करता है कि उसकी खराई एवं सीधाई केवल खोखले शब्द हैं, यह कि परमेश्वर के प्रति उसका भय केवल एक झूठी शिक्षा थी; इसी बीच वह "कमज़ोरी" जिसे उसने बाह्य रूप से प्रकट किया था वह उन पर एक गहरा प्रभाव छोड़ता है, उन्हें उस मनुष्य का एक "नया दृष्टिकोण," और यहाँ तक कि उसके प्रति "एक नई समझ" देता है जिसे परमेश्वर खरे एवं सीधे पुरुष के रूप में परिभाषित करता है। ऐसे "नए दृष्टिकोण" और "नई समझ" को उस समय प्रमाणित किया गया जब अय्यूब ने अपना मुंह खोला और उस दिन को धिक्कारने लगा जब वह पैदा हुआ था।

हालाँकि पीड़ा का वह स्तर जिसे उसने सहा वह किसी भी मनुष्य के लिए अकल्पनीय एवं समझ से परे है, फिर भी उसने झूठी शिक्षा का कोई बोल नहीं बोला, बल्कि अपने स्वयं के उपायों के द्वारा अपने शरीर के दर्द को कम किया। जैसा पवित्र शास्त्र में दर्ज है, उसने कहा: "वह दिन जल जाए जिसमें मैं उत्पन्न हुआ, और वह रात भी जिसमें कहा गया, 'बेटे का गर्भ रहा'" (अय्यूब 3:3)। कदाचित्, किसी ने भी इन शब्दों को महत्वपूर्ण नहीं समझा है, और कदाचित् ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने इन पर ध्यान दिया है। तुम लोगों की नज़र में, क्या इनका अभिप्राय यह है कि अय्यूब ने परमेश्वर का विरोध किया था? क्या वे परमेश्वर के विरुद्ध कोई शिकायत हैं? मैं जानता हूँ कि तुम लोगों के पास अय्यूब के द्वारा कहे इन शब्दों के विषय में कुछ विचार हैं और मैं विश्वास करता हूँ कि यदि अय्यूब खरा एवं सीधा होता, तो उसने किसी भी प्रकार की कमज़ोरी या कष्ट को जाहिर नहीं किया होता, और इसके बजाय उसे सकारात्मक रूप से शैतान के किसी भी आक्रमण का सामना करना चाहिए था, और शैतान की परीक्षाओं का सामना करते हुए मुस्कुराना भी चाहिए था। उसे किसी भी प्रकार की पीड़ा के प्रति जरा सी भी प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए थी जिसे शैतान के द्वारा उसके शरीर पर लाया गया था, न ही उसे अपने हृदय में किसी भी प्रकार की भावनाओं को उजागर करना चाहिए था। यहाँ तक कि उसे परमेश्वर से कहना चाहिए था कि वह इन परीक्षणों को और भी कठिन बना दे। यह वही है जिसे किसी ऐसे व्यक्ति के द्वारा प्रदर्शित एवं धारण किया जाना चाहिए जो अडिग है और जो सचमुच में परमेश्वर का भय मानकर बुराई से दूर रहता है। इस चरम पीड़ा के बीच, अय्यूब ने सिर्फ अपने जन्म के समय को कोसा था। उसने परमेश्वर के विषय में शिकायत नहीं की, और उसके पास परमेश्वर का विरोध करने का कोई इरादा तो बिलकुल भी नहीं था। करने की अपेक्षा यह बोलने में अधिक आसान है, क्योंकि प्राचीन समयों से लेकर आज के दिन तक, किसी ने भी ऐसी परीक्षाओं का अनुभव नहीं किया है या सहा है जो अय्यूब पर आई थीं। और अय्यूब के समान किसी भी व्यक्ति को उस प्रकार की परीक्षा के अधीन क्यों नहीं किया गया है? क्योंकि जिस रीति से परमेश्वर इसे देखता है, कोई भी व्यक्ति ऐसी ज़िम्मेदारी या महान आदेश को सहन नहीं कर सकता है, जैसा अय्यूब ने किया वैसा कोई नहीं कर सकता है, और इसके अतिरिक्त, अपने जन्म के दिन को कोसने के आलावा, कोई भी व्यक्ति अभी भी परमेश्वर के नाम को त्याग सकता है और परमेश्वर यहोवा के नाम को लगातार धन्य नहीं कह सकता है, जैसे अय्यूब ने किया था जब पीड़ाएं उस पर आ गई थीं। क्या कोई व्यक्ति ऐसा कर सकता है? जब हम अय्यूब के बारे में ऐसा कहते हैं, तो क्या हम उसके व्यवहार की सराहना कर रहे हैं? वह एक धर्मी मनुष्य था, और वह परमेश्वर की ऐसी गवाही देने के योग्य था, और वह शैतान को खदेड़कर भगाने में समर्थ था कि वह अपने सिर पर अपने हाथों को रखकर भागे, ताकि वह दोबारा उस पर दोष लगाने के लिए परमेश्वर के सामने न आए—तो उसकी सराहना करने में क्या ग़लत है? क्या ऐसा हो सकता है कि तुम लोगों के स्तर परमेश्वर की अपेक्षा अधिक ऊंचे हैं? क्या ऐसा हो सकता है कि तुम लोग अय्यूब से भी बेहतर करते जब परीक्षाएं तुम लोगों पर आतीं? परमेश्वर के द्वारा अय्यूब की प्रशंसा की गई थी—तुम लोगों को क्या आपत्तियां हो सकती है?

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

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