ईसाई धर्म और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बीच क्या अंतर है?

26 अक्टूबर, 2017

ईसाई धर्म और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया एक ही परमेश्वर में विश्वास करते हैं। जो लोग धर्म के इतिहास को समझते हैं, वे जानते हैं कि इस्राएल में व्यवस्था के युग में यहोवा द्वारा किये गए कार्य से यहूदी धर्म पैदा हुआ था। ईसाई धर्म, कैथोलिक पंथ और पूर्वी रूढ़िवादी पंथ की कलीसियाएँ वो थीं जो देहधारी प्रभु यीशु द्वारा किये गए छुटकारे के कार्य से उभरीं। इसी तरह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया तब आई जब न्याय कार्य करने के लिए अंतिम दिनों के दौरान परमेश्वर देह बन गए। अनुग्रह के युग में ईसाइयों ने बाइबल में से पुराना और नया नियम पढ़ा, और राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के ईसाई अब ‘वचन देह में प्रकट होता है’ पुस्तक पढ़ते हैं जो कि आखिरी दिनों में व्यक्तिगत तौर पर परमेश्वर द्वारा उच्चारित थी। ईसाई धर्म प्रभु यीशु द्वारा अनुग्रह के युग में किये गए छुटकारे के कार्य के प्रति निष्ठा रखता है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया लौटे हुए प्रभु यीशु, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, द्वारा आखिरी दिनों में किये गए न्याय के कार्य को स्वीकार करती है। ईसाई धर्म और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बीच अंतर यह है कि ईसाई धर्म उस कार्य के प्रति निष्ठा रखता है जो परमेश्वर ने व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान किया था, जबकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया परमेश्वर के घर से ही शुरू होने वाले न्याय के कार्य को मानती है जो परमेश्वर ने आखिरी दिनों के दौरान किया है। ईसाई धर्म और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बीच भेद ईसाई धर्म और यहूदी धर्म के बीच रहे भेद के समान हैं: अनुग्रह के युग के दौरान, प्रभु यीशु ने मनुष्यों के उद्धार का कार्य व्यवस्था के युग के पुराने नियम के कार्य की नींव पर किया था। परन्तु यहूदी धर्म के मुख्य पुजारियों, शास्त्रियों और फरीसियों ने इसे नहीं पहचाना था कि प्रभु यीशु यहोवा के देह धारण थे, कि वे ही वो मसीहा थे जिनका उन्हें इंतजार था। वे हठपूर्वक यहोवा परमेश्वर द्वारा पुराने नियम में घोषित कानूनों और आदेशों से लिपटे रहे। उन्होंने दयालु प्रभु यीशु को जिन्होंने मानव जाति को बचाया था क्रूस पर चढ़ा दिया, इस प्रकार परमेश्वर के स्वभाव का अपमान किया। तब परमेश्वर ने पूरे यहूदी धर्म को त्याग दिया जो पुराने नियम के कानूनों से जकड़ा हुआ था, और अपने उद्धार को अन्य गैर-यहूदी जातियों की ओर मोड़ दिया—जिन्होंने प्रभु यीशु को स्वीकार करने और उनका अनुसरण करने के बाद, नए नियम की कलीसियाओं का गठन किया, जिन्हें ईसाई धर्म भी कहा गया। इस बीच, यहूदियों ने जो केवल पुराने नियम के व्यवस्था के युग के यहोवा परमेश्वर के कार्य से चिपके रहे और जिन्होंने प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य को अस्वीकार किया, उसे बनाया जिसे यहूदी धर्म कहा जाता है। इसी तरह, अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की नींव पर, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने राज्य के युग में सत्य व्यक्त किया है और परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय का कार्य किया है। सभी ईसाई संप्रदायों के बहुत से लोगों ने, जिन्हें सत्य से प्रेम है और जो प्रभु के अवतरण के लिए तरस रहे हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर परमेश्वर की वाणी को पहचाना है। इस बात से निश्चिंत होकर कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है, उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार कर लिया है, और इस प्रकार सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का जन्म हुआ। इस से यह देखा जा सकता है कि ईसाई धर्म और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया एक ही परमेश्वर में विश्वास करते हैं—वे प्रभु जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीज़ों को बनाया है। बात केवल इतनी है कि परमेश्वर के जिस नाम और काम को लोग धारण करते हैं, वे अलग-अलग होते हैं: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया राज्य के युग के दौरान परमेश्वर के नए नाम का अनुपालन करती है, और अंतिम दिनों के दौरान परमेश्वर द्वारा किए गए नए कार्य को स्वीकार करती है, जबकि ईसाई धर्म अनुग्रह के युग के दौरान रहे परमेश्वर के नाम से जुड़ा रहता है, और उस पुराने कार्य को स्वीकार करता है जो परमेश्वर ने पूर्ववर्ती युगों के दौरान किया था। यह ईसाई धर्म और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतर है! फिर भी, जिस परमेश्वर में दोनों विश्वास करते हैं, वे एक ही है: एकमात्र सच्चे परमेश्वर जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी और सारी चीज़ों को बनाया। यह एक तथ्य है जिसे कोई भी विकृत या अस्वीकृत नहीं कर सकता है!

बहुत से ईसाई मानते हैं कि उन्हें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए केवल प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य को स्वीकार करना चाहिए, और आखिरी दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य को भी स्वीकार करने की ज़रूरत नहीं है। ऐसी धारणाएँ पूरी तरह गलत हैं। अनुग्रह के युग के दौरान, प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया। लोगों को उनके विश्वास की वजह से बचाया गया था, और उन्हें नियमों से तब और निन्दित नहीं किया गया, तथा उनके अपराधों की वजह से उन्हें मौत से दण्डित नहीं किया गया। फिर भी, प्रभु यीशु ने केवल मनुष्यों के पापों को माफ किया, मनुष्य के पापी स्वभाव को माफ नहीं किया, उसका हल नहीं किया। लोगों के भीतर शैतानी स्वभाव—अहंकार और अभिमान, स्वार्थ और लालच, कुटिलता और धोखेबाजी, और परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह और विरोध—अभी भी अस्तित्व में थे। लोगों को अभी तक पूरी तरह से शुद्ध करना, बचाना और परमेश्वर द्वारा हासिल किया जाना बाकी था। इस प्रकार, प्रभु यीशु ने कई बार कहा था कि उन्हें वापस लौटना होगा। बाइबल में कई जगहों पर यह भविष्यवाणी की गई है कि परमेश्वर वापस आएँगे और न्याय करेंगे, संतों को स्वर्ग के राज्य में ले जाएँगे। अंतिम दिनों के देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानव जाति की शुद्धि और मुक्ति के लिए सभी सच्चाइयों को व्यक्त किया है, और प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की नींव पर परमेश्वर के घर से शुरू होने वाले न्याय के नए कार्य को किया है। यह मानव जाति की पापपूर्ण प्रकृति को हल करने के लिए, मानव जाति को पाप के बंधन और सीमाओं से पूरी तरह से मुक्त करने के लिए, असली मानव के जीवन को जी कर परमेश्वर द्वारा विजित होने के लिए, और परमेश्वर द्वारा मानवजाति के लिए तैयार किये गए सुंदर स्थान में प्रवेश करने के लिए है। यह कहा जा सकता है कि प्रभु यीशु द्वारा किया गया छुटकारे का कार्य अंतिम दिनों के परमेश्वर के मुक्ति के कार्य की नींव है, जबकि अंतिम दिनों का न्याय का कार्य परमेश्वर द्वारा मुक्ति के कार्य का तत्व और केंद्र-बिंदु है। कार्य का यह चरण मानव जाति के उद्धार के लिए सबसे निर्णायक और महत्त्वपूर्ण है। केवल वे जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के आखिरी दिनों के न्याय के कार्य को स्वीकार करते हैं, बचाए जा सकेंगे और केवल उन्हें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने और परमेश्वर के सामने लाये जाने वाले व्यक्ति बनने का मौका मिलेगा। आज, धार्मिक जगत के विभिन्न संप्रदायों के कुछ लोगों ने देखा है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंतिम दिनों के दौरान परमेश्वर यीशु की वापसी हैं, और इस प्रकार उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना शुरू कर दिया है। कुछ अविश्वासियों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के द्वारा प्रकट सत्य के कारण भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार किया है। ये लोग जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बनाते हैं। आखिरी दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, के मार्गदर्शन और चरवाही के तहत, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के ईसाई, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के शब्दों का अनुभव कर और उन्हें आचरण में रखकर, धीरे-धीरे कई सच्चाइयों को समझते हैं, और उन्होंने स्पष्ट रूप मानव जाति के भ्रष्टाचार के स्रोत और सार को देखा है। परमेश्वर के वचनों के न्याय और उनकी ताड़ना के तहत, लोगों ने वास्तव में और सचमुच परमेश्वर के धर्मी और अचल स्वभाव को चखा है। चूँकि वे परमेश्वर को जानते हैं, वे धीरे-धीरे परमेश्वर से डरने लगते हैं और बुराई से दूर रहते हैं, और परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीते हैं। सच्चाई की उनकी समझ के साथ, लोगों का परमेश्वर के बारे में ज्ञान धीरे-धीरे गहरा हुआ है, परमेश्वर के प्रति उनकी आज्ञाकारिता अब अधिक हो गई है, और उन्होंने अधिक से अधिक सच्चाइयों को अभ्यास में डाला है। इसे महसूस किए बिना ही, ये लोग पूरी तरह से पाप से मुक्त हो गए होंगे और पवित्रता प्राप्त कर चुके होंगे। इस बीच, वे ईसाई जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नये कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं, अभी भी ईसाई धर्म में विश्वास करते हैं। वे प्रभु यीशु के नाम को धारण किये रहते हैं, बाइबल की शिक्षाओं का पालन करते हैं, और लंबे समय से परमेश्वर द्वारा अंधेरे में डाले गए हैं, परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा को खो कर। यह एक मान्यता प्राप्त तथ्य है। यदि लोग पश्चाताप न करने का हठ करें, और अंधे होकर अंतिम दिनों के दौरान लौटे हुए प्रभु यीशु, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, की निंदा और उनका विरोध करते हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के न्याय के कार्य को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, तो अंततः, वे सभी परमेश्वर के कार्य द्वारा हटा दिए जाएँगे।

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(1) सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सिद्धांत ईसाई धर्म के सिद्धांत बाइबल से उत्पन्न होते हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के...

सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के लक्ष्य क्या हैं?

सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पूरी तरह बाइबल में लिखित परमेश्वर के वचनों और सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त 'वचन देह में प्रकट...

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