परमेश्वर में विश्वास
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कुछ दर्जन वर्षों में लोगों का जीवन एक कौंध में खत्म हो जाता है। पीछे मुड़कर देखते हुए, वे अपने जीवन को याद करते हैं: स्कूल जाना, काम करना, शादी करना, बच्चे पैदा करना, मृत्यु की प्रतीक्षा करना, उनका पूरा जीवन परिवार, धन, स्थिति, भाग्य और प्रतिष्ठा की खातिर भाग-दौड़ करने में बीत जाता है, सही दिशा और मानवीय अस्तित्व के उद्देश्यों से पूरी तरह से रहित, और जीवित रहने में किसी भी मूल्य या अर्थ को खोजने में असमर्थ रहकर। इस तरह लोग पीढ़ी-दर-पीढी इस दर्दीले और खाली तरीके से जीते हैं। लोगों का जीवन इतना दर्दीला और खाली क्यों होता है? और मानव अस्तित्व के दर्द और शून्यता को कैसे हल किया जा सकता है?
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