परमेश्वर में विश्वास करने का अर्थ वास्तव में क्या है?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यद्यपि बहुत सारे लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन कुछ ही लोग समझते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करने का क्या अर्थ है, और परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप बनने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यद्यपि लोग "परमेश्वर" शब्द और "परमेश्वर का कार्य" जैसे वाक्यांशों से परिचित हैं, लेकिन वे परमेश्वर को नहीं जानते और उससे भी कम वे उसके कार्य को जानते हैं। तो कोई आश्चर्य नहीं कि वे सभी, जो परमेश्वर को नहीं जानते, उसमें अपने विश्वास को लेकर भ्रमित रहते हैं। लोग परमेश्वर में विश्वास करनेको गंभीरता से नहीं लेते और यह सर्वथा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर में विश्वास करना उनके लिए बहुत अनजाना, बहुत अजीब है। इस प्रकार वे परमेश्वर की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते। दूसरे शब्दों में, यदि लोग परमेश्वर और उसके कार्य को नहीं जानते, तो वे उसके इस्तेमाल के योग्य नहीं हैं, और उसकी इच्छा पूरी करने के योग्य तो बिलकुल भी नहीं। "परमेश्वर में विश्वास" का अर्थ यह मानना है कि परमेश्वर है; यह परमेश्वर में विश्वास की सरलतम अवधारणा है। इससे भी बढ़कर, यह मानना कि परमेश्वर है, परमेश्वर में सचमुच विश्वास करने जैसा नहीं है; बल्कि यह मजबूत धार्मिक संकेतार्थों के साथ एक प्रकार का सरल विश्वास है। परमेश्वर में सच्चे विश्वास का अर्थ यह है: इस विश्वास के आधार पर कि सभी वस्तुओं पर परमेश्वर की संप्रभुता है, व्यक्ति परमेश्वर के वचनों और कार्यों का अनुभव करता है, अपने भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध करता है, परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है और परमेश्वर को जान पाता है। केवल इस प्रकार की यात्रा को ही "परमेश्वर में विश्वास" कहा जा सकता है। फिर भी लोग परमेश्वर में विश्वास को अकसर बहुत सरल और हल्के रूप में लेते हैं। परमेश्वर में इस तरह विश्वास करने वाले लोग, परमेश्वर में विश्वास करने का अर्थ गँवा चुके हैं और भले ही वे बिलकुल अंत तक विश्वास करते रहें, वे कभी परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं करेंगे, क्योंकि वे गलत मार्ग पर चलते हैं। आज भी ऐसे लोग हैं, जो परमेश्वर में शब्दशः और खोखले सिद्धांत के अनुसार विश्वास करते हैं। वे नहीं जानते कि परमेश्वर में उनके विश्वास में कोई सार नहीं है और वे परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं कर सकते। फिर भी वे परमेश्वर से सुरक्षा के आशीषों और पर्याप्त अनुग्रह के लिए प्रार्थना करते हैं। आओ रुकें, अपने हृदय शांत करें और खुद से पूछें: क्या परमेश्वर में विश्वास करना वास्तव में पृथ्वी पर सबसे आसान बात हो सकती है? क्या परमेश्वर में विश्वास करने का अर्थ परमेश्वर से अधिक अनुग्रह पाने से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता है? क्या परमेश्वर को जाने बिना उसमें विश्वास करने वाले या उसमें विश्वास करने के बावजूद उसका विरोध करने वाले लोग सचमुच उसकी इच्छा पूरी करने में सक्षम हैं?
— "वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना' से उद्धृत
परमेश्वर में सच्चा विश्वास करने का अर्थ सिर्फ़ बचाए जाने के लिए उस पर भरोसा करना नहीं है और इसका अर्थ एक अच्छा व्यक्ति होना तो उससे भी कम है। इसका अर्थ मनुष्य के समान आचरण रखने के लिए परमेश्वर में विश्वास करना भी नहीं है। दरअसल, लोगों को अपने विश्वास करने को सिर्फ इस विश्वास के रूप में नहीं देखना चाहिए कि एक परमेश्वर है, और उसके बाद कुछ और नहीं; ऐसा नहीं है कि तुम को केवल यह विश्वास करना चाहिए कि परमेश्वरसत्य, मार्ग और जीवन है, और इसके अलावा कुछ भी नहीं। न ही ऐसा है कि तुम परमेश्वर को केवल स्वीकार करो, और बस यह विश्वास कर लो कि परमेश्वर सभी चीजों पर शासन करता है, कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, कि परमेश्वर ने दुनिया में सभी चीजें बनाई हैं, कि परमेश्वर अद्वितीय है और परमेश्वर ही सर्वोच्च है। यह केवल इतना नहीं है कि तुम इन तथ्यों पर विश्वास करो; परमेश्वर की इच्छा यह है कि तुम्हें—तुम्हारे सम्पूर्ण अस्तित्व और तुम्हारे पूरे दिल के साथ—परमेश्वर का अनुसरण करना चाहिए, और परमेश्वर के प्रति समर्पित होना चाहिए, अर्थात तुम्हें परमेश्वर का अनुसरण करना चाहिए ताकि परमेश्वर तुम्हें अपनी सेवा में इस्तेमाल कर सके, और यह कि तुम्हें उसके लिए सेवा करने में खुशी होनी चाहिए और तुम्हें परमेश्वर की खातिर कुछ भी करना चाहिए। ऐसा नहीं है कि केवल परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित और चुने गए लोगों को ही उस में विश्वास करना चाहिए। असल में, सभी मानव जाति को परमेश्वर की उपासना करनी चाहिए, उसकी ओर ध्यान देना चाहिए और उसका अनुसरण करना चाहिए, क्योंकि मानव जाति परमेश्वर द्वारा ही बनायी गई थी। यह अब सार के मुद्दे को छूता है। यदि तुम हमेशा कहते हो, "क्या हम अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं? क्या हम बचाए जाने की खातिर परमेश्वर में विश्वास नहीं करते?" जैसे कि मानो परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास करना किसी सतही मामले की तरह हो, केवल कुछ हासिल करने के लिए हो, तो परमेश्वर में विश्वास करने का तुम्हारा दृष्टिकोण यह नहीं होना चाहिए।
— "मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'सत्य का अनुसरण करना ही परमेश्वर में सच्चे अर्थ में विश्वास करना है' से उद्धृत
आज परमेश्वर में वास्तविक विश्वास क्या है? यह परमेश्वर के वचन को अपने जीवन की वास्तविकता के रूप में स्वीकार करना, और परमेश्वर का सच्चा प्यार प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के वचन से परमेश्वर को जानना है। स्पष्ट कहूँ तो : परमेश्वर में विश्वास इसलिए है, ताकि तुम परमेश्वर की आज्ञा का पालन कर सको, उससे प्रेम कर सको, और वह कर्तव्य निभा सको, जिसे परमेश्वर के एक प्राणी द्वारा निभाया जाना चाहिए। यही परमेश्वर पर विश्वास करने का लक्ष्य है। तुम्हें परमेश्वर की मनोहरता का और इस बात का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए कि परमेश्वर कितने आदर के योग्य है, कैसे अपने द्वारा सृजित प्राणियों में परमेश्वर उद्धार का कार्य करता है और उन्हें पूर्ण बनाता है—ये परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास की एकदम अनिवार्य चीज़ें हैं। परमेश्वर पर विश्वास मुख्यतः देह-उन्मुख जीवन से परमेश्वर से प्रेम करने वाले जीवन में बदलना है; भ्रष्टता के भीतर जीने से परमेश्वर के वचनों के जीवन के भीतर जीना है; यह शैतान के अधिकार-क्षेत्र से बाहर आना और परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा में जीना है; यह देह की आज्ञाकारिता को नहीं, बल्कि परमेश्वर की आज्ञाकारिता को प्राप्त करने में समर्थ होना है; यह परमेश्वर को तुम्हारा संपूर्ण हृदय प्राप्त करने और तुम्हें पूर्ण बनाने देना है, और तुम्हें भ्रष्ट शैतानी स्वभाव से मुक्त करने देना है। परमेश्वर में विश्वास मुख्यतः इसलिए है, ताकि परमेश्वर का सामर्थ्य और महिमा तुममें प्रकट हो सके, ताकि तुम परमेश्वर की इच्छा पर चल सको, और परमेश्वर की योजना संपन्न कर सको, और शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही दे सको। परमेश्वर पर विश्वास संकेत और चमत्कार देखने की इच्छा के इर्द-गिर्द नहीं घूमना चाहिए, न ही यह तुम्हारी व्यक्तिगत देह के वास्ते होना चाहिए। यह परमेश्वर को जानने की कोशिश के लिए, और परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने, और पतरस के समान मृत्यु तक परमेश्वर का आज्ञापालन करने में सक्षम होने के लिए, होना चाहिए। यही परमेश्वर में विश्वास करने के मुख्य उद्देश्य हैं। व्यक्ति परमेश्वर के वचन को परमेश्वर को जानने और उसे संतुष्ट करने के उद्देश्य से खाता और पीता है। परमेश्वर के वचन को खाना और पीना तुम्हें परमेश्वर का और अधिक ज्ञान देता है, जिसके बाद ही तुम उसका आज्ञा-पालन कर सकते हो। केवल परमेश्वर के ज्ञान के साथ ही तुम उससे प्रेम कर सकते हो, और यह वह लक्ष्य है, जिसे मनुष्य को परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास में रखना चाहिए। यदि परमेश्वर पर अपने विश्वास में तुम सदैव संकेत और चमत्कार देखने का प्रयास कर रहे हो, तो परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास का यह दृष्टिकोण गलत है। परमेश्वर पर विश्वास मुख्य रूप से परमेश्वर के वचन को जीवन की वास्तविकता के रूप में स्वीकार करना है। परमेश्वर का उद्देश्य उसके मुख से निकले वचनों को अभ्यास में लाने और उन्हें अपने भीतर पूरा करने से हासिल किया जाता है। परमेश्वर पर विश्वास करने में मनुष्य को परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने, परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में समर्थ होने, और परमेश्वर के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता के लिए प्रयास करना चाहिए। यदि तुम बिना शिकायत किए परमेश्वर का आज्ञापालन कर सकते हो, परमेश्वर की इच्छाओं के प्रति विचारशील हो सकते हो, पतरस का आध्यात्मिक कद प्राप्त कर सकते हो, और परमेश्वर द्वारा कही गई पतरस की शैली ग्रहण कर सकते हो, तो यह तब होगा जब तुम परमेश्वर पर विश्वास में सफलता प्राप्त कर चुके होगे, और यह इस बात का द्योतक होगा कि तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त कर लिए गए हो।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के वचन के द्वारा सब-कुछ प्राप्त हो जाता है
क्योंकि यदि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, तो तुम्हें उसके वचन को खाना-पीना चाहिए, उसका अनुभव करना चाहिए और उसे जीना चाहिए। केवल यही परमेश्वर पर विश्वास करना है! यदि तुम कहते हो कि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, परंतु उसके किसी वचन पर अमल नहीं कर सकते या वास्तविकता उत्पन्न नहीं कर सकते तो यह नहीं माना जा सकता कि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो। ऐसा करना "भूख शांत करने के लिए रोटी की खोज" करने जैसा है। बिना किसी वास्तविकता के केवल छोटी-छोटी बातों की गवाही, अनुपयोगी और सतही मामलों पर बातें करना, परमेश्वर पर विश्वास करना नहीं है, और तुमने बस परमेश्वर पर विश्वास करने के सही तरीके को नहीं समझा है। तुम्हें परमेश्वर के वचनों को क्यों अधिक से अधिक खाना-पीना चाहिए? यदि तुम परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते नहीं और केवल स्वर्ग की ऊँचाई चढ़ना चाहते हो तो क्या यह विश्वास माना जाएगा? परमेश्वर में विश्वास रखने वाले का पहला कदम क्या होता है? परमेश्वर किस मार्ग से मनुष्य को पूर्ण बनाता है? क्या परमेश्वर के वचन को बिना खाए-पिए तुम पूर्ण बनाए जा सकते हो? क्या परमेश्वर के वचन को बिना अपनी वास्तविकता बनाए, तुम परमेश्वर के राज्य के व्यक्ति माने जा सकते हो? परमेश्वर में विश्वास रखना वास्तव में क्या है? परमेश्वर में विश्वास रखने वालों का कम-से-कम बाहरी तौर पर आचरण अच्छा होना चाहिए; और सबसे महत्वपूर्ण बात है परमेश्वर के वचन के अधीन रहना। किसी भी परिस्थिति में तुम उसके वचन से विमुख नहीं होगे। परमेश्वर को जानना और उसकी इच्छा को पूरा करना, सब उसके वचन के द्वारा हासिल किया जाता है। सभी देश, संप्रदाय, धर्म और प्रदेश भी भविष्य में वचन के द्वारा जीते जाएँगे। परमेश्वर सीधे बात करेगा, सभी लोग अपने हाथों में परमेश्वर का वचन थामकर रखेंगे; इसके द्वारा लोग पूर्ण बनाए जाएँगे। परमेश्वर का वचन सब तरफ फैलता जाएगा : इंसान परमेश्वर के वचन बोलेगा, परमेश्वर के वचन के अनुसार आचरण करेगा, और अपने हृदय में परमेश्वर का वचन रखेगा, भीतर और बाहर पूरी तरह परमेश्वर के वचन में डूबा रहेगा। इस प्रकार मानवजाति को पूर्ण बनाया जाएगा। परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने वाले और उसकी गवाही देने में सक्षम लोग वे हैं जिन्होंने परमेश्वर के वचन को वास्तविकता के रूप में अपनाया है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, राज्य का युग वचन का युग है
जो कोई परमेश्वर की सेवा करता है, उसे न केवल यह पता होना चाहिए कि परमेश्वर के वास्ते कैसे कष्ट सहना है, बल्कि उससे भी ज्यादा, उसे यह समझना चाहिए कि परमेश्वर पर विश्वास करने का प्रयोजन परमेश्वर को प्यार करने का प्रयास करना है। परमेश्वर द्वारा तुम्हारा उपयोग, सिर्फ तुम्हें शुद्ध करने या तुम्हें पीड़ित करने के लिए नहीं है, बल्कि वह तुम्हारा उपयोग इसलिए करता है ताकि तुम उसके कार्यों को जानो, मानव जीवन के सच्चे महत्व को जानो, और विशेष रूप से तुम यह जानो कि परमेश्वर की सेवा करना कोई आसान काम नहीं है। परमेश्वर के कार्य का अनुभव करना, अनुग्रह का आनन्द लेने के बारे में नहीं है बल्कि उसके प्रति तुम्हारे प्रेम के कारण कष्ट सहने के बारे में है। चूँकि तुम परमेश्वर के अनुग्रह का आनन्द लेते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर की ताड़ना का भी आनन्द अवश्य लेना चाहिए; तुम्हें इन सभी चीज़ों का अनुभव अवश्य करना चाहिए। तुम परमेश्वर द्वारा प्रबुद्धता को अपने अंदर अनुभव कर सकते हो, और तुम यह अनुभव भी कर सकते हो कि कैसे परमेश्वर तुम्हारे साथ व्यवहार करता तथा न्याय करता है। इस प्रकार, तुम्हारा अनुभव व्यापक होता है। परमेश्वर ने तुम पर न्याय और ताड़ना का काम किया है। परमेश्वर के वचन ने तुम्हारे साथ व्यवहार किया है, लेकिन इतना ही नहीं; इसने तुम्हें प्रबुद्ध और रोशन भी किया है। जब तुम नकारात्मक और कमज़ोर होते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे लिए चिंता करता है। यह सब तुम्हें यह ज्ञात कराने के लिए है कि मनुष्य के बारे में सब कुछ परमेश्वर के आयोजन के अंतर्गत है। तुम सोच सकते हो कि परमेश्वर पर विश्वास करना कष्ट सहने के बारे में है, या उसके लिए कई चीजें करना है; शायद तुम सोचो कि परमेश्वर में विश्वास का प्रयोजन तुम्हारी देह की शान्ति के लिए है, या इसलिए है कि तुम्हारी ज़िन्दगी में सब कुछ ठीक रहे, या इसलिए कि तुम आराम से रहो, सब कुछ में सहज रहो। परन्तु इनमें से कोई भी ऐसा उद्देश्य नहीं है जिसे लोगों को परमेश्वर पर अपने विश्वास के साथ जोड़ना चाहिए। यदि तुम इन प्रयोजनों के लिए विश्वास करते हो, तो तुम्हारा दृष्टिकोण गलत है और तुम्हें पूर्ण बनाया ही नहीं जा सकता है। परमेश्वर के कार्य, परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव, उसकी बुद्धि, उसके वचन, और उसकी अद्भुतता और अगाधता, इन सभी बातों को मनुष्यों को अवश्य समझना चाहिए। इस समझ को पा लेने के बाद तुम्हें इसका उपयोग अपने हृदय के व्यक्तिगत अनुरोधों, आशाओँ और धारणाओं से छुटकारा पाने के लिए करना चाहिए। केवल इन्हें दूर करके ही तुम परमेश्वर के द्वारा माँग की गई शर्तों को पूरा कर सकते हो। केवल ऐसा करने के माध्यम से ही तुम जीवन प्राप्त कर सकते हो और परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हो। परमेश्वर पर विश्वास करना उसे संतुष्ट करने के वास्ते और उस स्वभाव को जीने के लिए है जो वह अपेक्षा करता है, ताकि इन अयोग्य लोगों के समूह के माध्यम से परमेश्वर के कार्यकलाप और उसकी महिमा प्रदर्शित हो सके। परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए यही सही दृष्टिकोण है और यह वो लक्ष्य भी है जिसे तुम्हें खोजना चाहिए। परमेश्वर पर विश्वास करने के बारे में तुम्हारा सही दृष्टिकोण होना चाहिए और तुम्हें परमेश्वर के वचनों को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने की आवश्यकता है, और तुम्हें सत्य को जीने, और विशेष रूप से उसके व्यवहारिक कर्मों को देखने, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में उसके अद्भुत कर्मों को देखने, और साथ ही देह में उसके द्वारा किए जाने वाले व्यवहारिक कार्य को देखने में सक्षम होना चाहिए। अपने वास्तविक अनुभवों के द्वारा, लोग इस बात की सराहना कर सकते हैं कि कैसे परमेश्वर उन पर अपना कार्य करता है, उनके प्रति उसकी क्या इच्छा है। यह सब लोगों के भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को दूर करने के लिए है। अपने भीतर की सारी अशुद्धता और अधार्मिकता बाहर निकाल देने, अपने गलत इरादों को निकाल फेंकने, और परमेश्वर में सच्चा विश्वास उत्पन्न करने के बाद—केवल सच्चे विश्वास के साथ ही तुम परमेश्वर को सच्चा प्रेम कर सकते हो। तुम केवल अपने विश्वास की बुनियाद पर ही परमेश्वर से सच्चा प्रेम कर सकते हो। क्या तुम परमेश्वर पर विश्वास किए बिना उसके प्रति प्रेम को प्राप्त कर सकते हो? चूँकि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, इसलिए तुम इसके बारे में नासमझ नहीं हो सकते हो। कुछ लोगों में जोश भर जाता है जैसे ही वे देखते हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करना उनके लिए आशीषें लाएगा, परन्तु सम्पूर्ण ऊर्जा को खो देते हैं जैसे ही वे देखते हैं कि उन्हें शुद्धिकरणों को सहना पड़ेगा। क्या यह परमेश्वर पर विश्वास करना है? अंतत:, अपने विश्वास में परमेश्वर के सामने तुम्हें पूर्ण और अतिशय आज्ञाकारिता हासिल करनी होगी। तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो परन्तु फिर भी उससे माँगें करते हो, तुम्हारी कई धार्मिक अवधारणाएँ हैं जिन्हें तुम छोड़ नहीं सकते हो, तुम्हारे व्यक्तिगत हित हैं जिन्हें तुम त्याग नहीं सकते हो, और तब भी देह की आशीषों को खोजते हो और चाहते हो कि परमेश्वर तुम्हारी देह को बचाए, तुम्हारी आत्मा की रक्षा करे—ये सब गलत दृष्टिकोण वाले लोगों के व्यवहार हैं। यद्यपि धार्मिक विश्वास वाले लोगों का परमेश्वर पर विश्वास होता है, तब भी वे अपने स्वभाव को बदलने का प्रयास नहीं करते हैं, परमेश्वर के बारे में ज्ञान की खोज नहीं करते हैं, और केवल अपने देह के हितों की ही तलाश करते हैं। तुम में से कई लोगों के विश्वास ऐसे हैं जो धार्मिक आस्थाओं की श्रेणी से सम्बन्धित हैं। यह परमेश्वर पर सच्चा विश्वास नहीं है। परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए लोगों के पास उसके लिए पीड़ा सहने वाला हृदय और स्वयं को त्याग देने की इच्छा होनी चाहिए। जब तक वे इन दो शर्तों को पूरा नहीं करते हैं तब तक परमेश्वर पर उनका विश्वास मान्य नहीं है, और वे स्वभाव में परिवर्तनों को प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे। केवल वे लोग जो वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हैं, परमेश्वर के बारे में ज्ञान की तलाश करते हैं, और जीवन की खोज करते हैं ऐसे लोग हैं जो वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?