एक अविश्वासी व्यक्ति क्या होता है?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर के सभी वचनों और कार्यों में विश्वास रखना चाहिए। अर्थात्, चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, इसलिए तुम्हें उसका आज्ञापालन करना चाहिए। यदि तुम ऐसा नहीं कर पाते हो, तो यह मायने नहीं रखता कि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो या नहीं। यदि तुमने वर्षों परमेश्वर में विश्वास रखा है, फिर भी न तो कभी उसका आज्ञापालन किया है, न ही उसके वचनों की समग्रता को स्वीकार किया है, बल्कि तुमने परमेश्वर को अपने आगे समर्पण करने और तुम्हारी धारणाओं के अनुसार कार्य करने को कहा है, तो तुम सबसे अधिक विद्रोही व्यक्ति हो, और गैर-विश्वासी हो। एक ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के कार्य और वचनों का पालन कैसे कर सकता है जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सच्चे हृदय से परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा हासिल किए जाएँगे
वे सभी जो परमेश्वर के वचनों की गलत समझ रखते हैं, वे सभी अविश्वासी हैं। उनमें कोई भी वास्तविक ज्ञान नहीं है, उनमें वास्तविक आध्यात्मिक कद होने का तो सवाल ही नहीं है; वे वास्तविकता रहित अज्ञानी लोग हैं। कहने का अर्थ यह है कि वे सभी जो परमेश्वर के वचनों के सार से बाहर जीवन जीते हैं, वे सभी अविश्वासी हैं। जिन्हें मनुष्यों के द्वारा अविश्वासी समझ लिया गया है, वे परमेश्वर की दृष्टि में जानवर हैं और जिन्हें परमेश्वर के द्वारा अविश्वासी समझा गया है, वे ऐसे लोग हैं जिनके पास जीवन के रूप में परमेश्वर के वचन नहीं हैं। अतः, वे लोग जिनमें परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता नहीं है और वे जो परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन जीने में असफल हो जाते हैं, वे अविश्वासी हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल सत्य का अभ्यास करना ही इंसान में वास्तविकता का होना है
कुछ लोगों के विश्वास को परमेश्वर के हृदय ने कभी स्वीकार नहीं किया है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर यह नहीं मानता कि ये लोग उसके अनुयायी हैं, क्योंकि परमेश्वर उनके विश्वास की प्रशंसा नहीं करता। क्योंकि ये लोग, भले ही कितने ही वर्षों से परमेश्वर का अनुसरण करते रहे हों, लेकिन इनकी सोच और इनके विचार कभी नहीं बदले हैं; वे अविश्वासियों के समान हैं, अविश्वासियों के सिद्धांतों और कार्य करने के तौर-तरीकों, और ज़िन्दा रहने के उनके नियमों एवं विश्वास के मुताबिक चलते हैं। उन्होंने परमेश्वर के वचन को कभी अपना जीवन नहीं माना, कभी नहीं माना कि परमेश्वर का वचन सत्य है, कभी परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करने का इरादा ज़ाहिर नहीं किया, और परमेश्वर को कभी अपना परमेश्वर नहीं माना। वे परमेश्वर में विश्वास करने को एक किस्म का शगल मानते हैं, परमेश्वर को महज एक आध्यात्मिक सहारा समझते हैं, इसलिए वे नहीं मानते कि परमेश्वर का स्वभाव, या उसका सार इस लायक है कि उसे समझने की कोशिश की जाए। कहा जा सकता है कि वह सब जो सच्चे परमेश्वर से संबद्ध है उसका इन लोगों से कोई लेना-देना नहीं है; उनकी कोई रुचि नहीं है, और न ही वे ध्यान देने की परवाह करते हैं। क्योंकि उनके हृदय की गहराई में एक तीव्र आवाज़ है जो हमेशा उनसे कहती है : "परमेश्वर अदृश्य एवं अस्पर्शनीय है, उसका कोई अस्तित्व नहीं है।" वे मानते हैं कि इस प्रकार के परमेश्वर को समझने की कोशिश करना उनके प्रयासों के लायक नहीं है; ऐसा करना अपने आपको मूर्ख बनाना होगा। वे मानते हैं कि कोई वास्तविक कदम उठाए बिना अथवा किसी भी वास्तविक कार्यकलाप में स्वयं को लगाए बिना, सिर्फ शब्दों में परमेश्वर को स्वीकार करके, वे बहुत चालाक बन रहे हैं। परमेश्वर इन लोगों को किस दृष्टि से देखता है? वह उन्हें अविश्वासियों के रूप में देखता है। कुछ लोग पूछते हैं : "क्या अविश्वासी लोग परमेश्वर के वचन को पढ़ सकते हैं? क्या वे अपना कर्तव्य निभा सकते हैं? क्या वे ये शब्द कह सकते हैं : 'मैं परमेश्वर के लिए जिऊँगा'?" लोग प्रायः जो देखते हैं वह लोगों का सतही प्रदर्शन होता है; वे लोगों का सार नहीं देखते। लेकिन परमेश्वर इन सतही प्रदर्शनों को नहीं देखता; वह केवल उनके भीतरी सार को देखता है। इसलिए, इन लोगों के प्रति परमेश्वर की प्रवृत्ति और परिभाषा ऐसी है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर का स्वभाव और उसका कार्य
जो परिणाम हासिल करेगा, उसे कैसे जानें' से उद्धृत
कुछ लोग सत्य में आनंदित नहीं होते, न्याय में तो बिल्कुल भी नहीं। बल्कि वे शक्ति और सम्पत्तियों में आनन्दित होते हैं; इस प्रकार के लोग शक्ति के खोजी कहे जाते हैं। वे केवल दुनिया के प्रभावशाली सम्प्रदायों तथा सेमिनरी से आने वाले पादरियों और शिक्षकों को खोजते हैं। हालंकि उन्होंने सत्य के मार्ग को स्वीकार कर लिया है, फिर भी वे आधा विश्वास करते हैं; और वे अपने दिलो-दिमाग को पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ होते हैं, वे मुख से तो परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की बात करते हैं, किन्तु उनकी नज़रें बड़े पादरियों और शिक्षकों पर केन्द्रित रहती हैं, और वे मसीह की ओर दूसरी नजर भी नहीं डालते। उनके हृदय प्रसिद्धि, वैभव और महिमा पर ही टिक गए हैं। वे इसे असंभव समझते हैं कि ऐसा मामूली व्यक्ति इतने लोगों पर विजय प्राप्त कर सकता है कि एक इतना साधारण व्यक्ति लोगों को पूर्ण बनाबना सकता है। वे इसे असंभव समझते हैं कि ये धूल और घूरे में पड़े नाचीज़ लोग परमेश्वर के द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि यदि ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार की योजना के लक्ष्य रहे होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग ठहाके लगाकर हँसते। उनका मानना है कि यदि परमेश्वर ने ऐसे नाचीज़ों को पूर्ण बनाने के लिए चुना होता, तो वे सभी बड़े लोग स्वयं परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से दूषित हैं; अविश्वास करने से अधिक, वे बेहूदे जानवर हैं। क्योंकि वे केवल पद, प्रतिष्ठा और सत्ता को महत्व देते है और केवल बड़े समूहों और सम्प्रदायों को सम्मान देते हैं। उनमें उनके लिए बिल्कुल भी सम्मान नहीं है जिनकी अगुवाई मसीह करता है; वे तो बस ऐसे गद्दार हैं जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से अपना मुँह मोड़ लिया है।
तुम मसीह की विनम्रता की प्रशंसा नहीं करते, बल्कि विशेष हैसियत वाले उन झूठे चरवाहों की प्रशंसा करते हो। तुम मसीह की मनोहरता या बुद्धि से प्रेम नहीं करते हो, बल्कि उन व्यभिचारियों से प्रेम करते हो जो संसार की कीचड़ में लोट लगाते हैं। तुम मसीह की पीड़ा पर हँसते हो, जिसके पास अपना सिर टिकाने तक की जगह नहीं है, किन्तु उन मुरदों की तारीफ़ करते हो जो चढ़ावों को हड़प लेते हैं और अय्याशी में जीते हैं। तुम मसीह के साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं हो, परन्तु उन धृष्ट मसीह-विरोधियों की बाँहों में प्रसन्नता से जाते हो, हालाँकि वे तुम्हें सिर्फ देह, शब्द और नियंत्रण ही प्रदान करते हैं। अब भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा की ओर, उनकी हैसियत की ओर, उनके प्रभाव की ओर मुड़ता है। फिर भी तुम ऐसा रवैया बनाये रखते हो जहाँ तुम मसीह के कार्य को गले से उतारना कठिन पाते हो और उसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होते। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुममें मसीह को स्वीकार करने का विश्वास नहीं है। तुमने आज तक उसका अनुसरण सिर्फ़ इसलिए किया, क्योंकि तुम्हारे पास कोई और चारा नहीं था। तुम्हारे हृदय में हमेशा बुलंद छवियों का स्थान रहा है; तुम न तो उनके हर वचन और कर्म को, और न ही उनके प्रभावशाली वचनों और हाथों को भूल सकते हो। तुम सबके हृदय में वे हमेशा सर्वोच्च और हमेशा नायक हैं। किन्तु आज के मसीह के लिए ऐसा नहीं है। तुम्हारे हृदय में वह हमेशा महत्वहीन और हमेशा आदर के अयोग्य है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण है, उसका बहुत ही कम प्रभाव है और वह उत्कृष्ट तो बिल्कुल नहीं है।
बहरहाल, मैं कहता हूँ कि जो लोग सत्य का सम्मान नहीं करते हैं वे सभी अविश्वासी और सत्य के प्रति गद्दार हैं। ऐसे लोगों को कभी भी मसीह का अनुमोदन प्राप्त नहीं होगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो?
यदि, परमेश्वर में अपने विश्वास में लोग अक्सर परमेश्वर के सामने नहीं रहते हैं, तो वे अपने हृदय में उसके लिए कोई श्रद्धा नहीं रख पाएंगे, और इसलिए वे बुराई से दूर रहने में असमर्थ होंगे। ये बातें जुड़ी हुई हैं। यदि तेरा हृदय अक्सर परमेश्वर के सामने रहता है, तो तू नियंत्रण में रखा जाएगा, और कई चीज़ों में परमेश्वर का भय मानेगा। तू बहुत दूर नहीं जाएगा, या ऐसा कुछ भी नहीं करेगा जो स्वच्छन्द हो। तू वह नहीं करेगा जो परमेश्वर के लिए घृणित हो, और उन वचनों को नहीं बोलेगा जिनका कोई अर्थ नहीं है। यदि तू परमेश्वर के अवलोकन को स्वीकार करता है, और परमेश्वर के अनुशासन को स्वीकार करता है, तो तू बहुत से बुरे कार्यों को करने से बचेगा। वैसे, क्या तूने बुराई को दूर न किया होता? यदि, परमेश्वर में अपने विश्वास में, तू अक्सर घबराहट की स्थिति में रहता है, यह नहीं जानता है कि क्या परमेश्वर तेरे हृदय में है, यह नहीं जानता है कि तू अपने हृदय में क्या करना चाहता है, और यदि तू परमेश्वर के सामने शांत होने में असमर्थ है, और जब तेरे साथ कुछ घटित होता है तो परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करता है या सत्य की तलाश नहीं करता है, यदि तू अक्सर अपनी मर्ज़ी के अनुसार कार्य करता है, अपने शैतानी स्वभाव के अनुसार जीता है और अपने अहंकारी स्वभाव को प्रकट करता है, और यदि तू परमेश्वर की जाँच या परमेश्वर के अनुशासन को स्वीकार नहीं करता है, और तुम परमेश्वर का आज्ञापालन नहीं करते हो, तो इस तरह के लोगों के दिल हमेशा शैतान के सामने रहेंगे और शैतान और उनके भ्रष्ट स्वभाव द्वारा नियंत्रित होंगे। इसलिए ऐसे लोग परमेश्वर के प्रति थोड़ी सी भी श्रद्धा से रहित होते हैं। वे बुराई से दूर रहने में बिल्कुल असमर्थ हैं, और भले ही वे दुष्ट चीजें नहीं करते हैं, लेकिन वे जो कुछ भी सोचते हैं वह अभी भी दुष्टता है, और यह सत्य से असंबद्ध है और सत्य के विरुद्ध जाता है। तो क्या बुनियादी तौर पर ऐसे लोगों का परमेश्वर से कोई संबंध नहीं है? यद्यपि, वे परमेश्वर द्वारा शासित होते हैं, उन्होंने कभी भी परमेश्वर के समक्ष विवरण पेश नहीं किया है, उन्होंने कभी भी परमेश्वर के साथ परमेश्वर के रूप में व्यवहार नहीं किया है, उन्होंने कभी भी परमेश्वर को वो सृजनकर्ता नहीं माना है जो उन पर शासन करता है, उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया कि परमेश्वर उनका परमेश्वर और उनका प्रभु है, और उन्होंने अपने हृदय में कभी भी परमेश्वर की आराधना करने का विचार नहीं किया है। ऐसे लोगों की समझ में नहीं आता है कि परमेश्वर से भय मानने का क्या अर्थ है, और वे सोचते हैं कि बुराई करना उनका अधिकार है, वे कहते हैं: "मैं वही करूँगा जो मैं चाहता हूँ। मैं अपने स्वयं के मामलों को खुद सँभाल लूँगा, यह किसी अन्य पर निर्भर नहीं करता है।" वे सोचते हैं कि बुराई करना उनका अधिकार है, और वे परमेश्वर में विश्वास को एक प्रकार के मंत्र के रूप में, एक अनुष्ठान के रूप में मानते हैं। क्या यह उन्हें अविश्वासी नहीं बनाता है? वे अविश्वासी हैं!
— "मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'यदि तू हर समय परमेश्वर के सामने रह सकता है
केवल तभी तू उद्धार के पथ पर चल सकता है' से उद्धृत
संदर्भ के लिए धर्मोपदेश और संगति के उद्धरण:
परमेश्वर के परिवार के भीतर, हर कोई एक ऐसा व्यक्ति है जो परमेश्वर पर विश्वास करता है। हालाँकि, एक ऐसे प्रकार के व्यक्ति भी होते हैं जो भले ही यह दावा करते हैं कि वे परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, किन्तु अपने हृदय के भीतर, वे परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में संदेह रखते हैं, वे इस तथ्य के बारे संदेही होते हैं कि परमेश्वर ने सब कुछ बनाया है, कि परमेश्वर सब पर शासन करता है, और परमेश्वर के देहधारण, परमेश्वर के वचन, और सत्य के बारे में भी संदेह रखते हैं। एक पहलू यह है कि वे इस बात की पुष्टि करने में असमर्थ हैं कि ये चीजें सच हैं या नहीं। एक अन्य पहलू यह है कि वे संदेही हैं। उनका मानना है कि ये चीजें संभव नहीं हैं। वे अपने हृदयों में क्या विश्वास करते हैं? वे उन सभी चीजों में विश्वास करते हैं जो कि भौतिक दुनिया में विद्यमान हैं। वे उस हर चीज़ को मानते हैं जो उनकी आँखें देख सकती हैं, और हर उस चीज़ को मानते हैं जिसे उनके हाथ स्पर्श कर सकते हैं। उनका हर उस चीज़ के प्रति संदिग्ध नज़रिया होता है जिसे उनकी आँखें नहीं देख सकती हैं, इस हद तक कि वे इस पर विश्वास ही नहीं करते हैं। इस तरह का व्यक्ति केवल परमेश्वर के नाम पर विश्वास करता है। वास्तविकता में, वे केवल अविश्वासी हैं। मैंने सुना है कि पश्चिमी धर्म के भीतर, 25 प्रतिशत पादरी, अर्थात् प्रत्येक 4 पादरियों में से 1, विश्वास नहीं करते हैं कि प्रभु यीशु पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आया था और वे बाइबल के बारे में संदेही हैं। पश्चिमी पादरियों के बीच, ऐसे कई लोग हैं जो अविश्वासी हैं। विशेषरूप से जब परमेश्वर के दूसरे देहधारण की बात आती है, यदि तुम कहते हो कि परमेश्वर आया है, तो वे और भी अधिक विरोधी बन जाते हैं। उनका मानना है कि यह विधर्म है। उनका मानना है कि परमेश्वर केवल स्वर्ग में विद्यमान है और परमेश्वर कभी भी मनुष्यों के बीच कार्य नहीं करेगा। परिणामस्वरूप, जो कोई भी कहता है कि परमेश्वर आया है, तो उस पर पश्चिमी लोगों में से अधिकांश के द्वारा विधर्मी के रूप में आरोप लगाया जाएगा। क्या तुम नहीं कहोगे कि इस प्रकार के लोग अविश्वासी हैं? यह अविश्वासी का एक उदाहरण है। अविश्वासी पवित्र आत्मा के कार्य में विश्वास नहीं करते हैं। वे कहते हैं कि, "यह कुछ ऐसा है जो मनुष्य के विचार की उपज है। मनुष्य का हृदय पल भर के लिए प्रेरित हो सकता है, और कभी-कभी हम प्रबुद्ध हो जाते हैं। इसका पवित्र आत्मा के कार्य से कोई लेना-देना नहीं है।" वे पवित्र आत्मा के कार्य में विश्वास नहीं करते हैं। वे इस बात पर भी विश्वास नहीं करते हैं कि परमेश्वर के वचन परमेश्वर के द्वारा बोले गए थे। वे कहते हैं कि, "ये वचन मनुष्य के द्वारा बोले गए थे। किसने परमेश्वर को ये वचन कहते हुए सुना है? परमेश्वर इन बातों को कैसे कह सकता है? यह मनुष्य द्वारा बोला गया था।" वे सभी जो लोग परमेश्वर के देहधारण, पवित्र आत्मा के कार्य, और इस बात में विश्वास नहीं करते कि परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचन परमेश्वर के वचन हैं, अविश्वासी हैं। चाहे वे कितना भी कहें कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे अविश्वासी हैं। क्या अब तुम समझ गए कि अविश्वासी क्या होता है? एक अविश्वासी परमेश्वर के देहधारण के बारे में संदेही होता है, पवित्र आत्मा के कार्य में विश्वास नहीं करता है और यहाँ तक कि यह भी विश्वास नहीं करता है कि परमेश्वर के वचन परमेश्वर या परमेश्वर के आत्मा द्वारा व्यक्त किए गए थे। इस प्रकार का व्यक्ति एक अविश्वासी है। एक अविश्वासी व्यक्ति कोई ऐसा नहीं है जो दावा करता है कि वह परमेश्वर में विश्वास नहीं करता है। वे अपने मुख से तो कहते हैं कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन अपने हृदय विश्वास नहीं करते हैं। एक अविश्वासी होने का यही अर्थ है। यह भी कहा जा सकता है कि वे ढोंगी हैं।
— 'जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति' से उद्धृत
फरीसियों का सार पाखंड है। वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, परंतु सत्य से प्रेम नहीं करते या जीवन को नहीं खोजते। वे सिर्फ ऊपर स्वर्ग में एक अस्पष्ट परमेश्वर में और अपनी धारणाओं और कल्पनाओं में विश्वास करते हैं, मगर देहधारी मसीह में विश्वास नहीं करते। सच तो यह है कि वे सभी अविश्वासी हैं। उनका परमेश्वर में विश्वास करना धर्मशास्त्र में शोध करना है और परमेश्वर में आस्था को शोध करने के लिए ज्ञान के एक रूप में लेना है। उनकी आजीविका बाइबल और धर्मशास्त्र पर शोध करने से चलती है। उनके दिलों में, बाइबल उनकी आजीविका है। वे मानते हैं कि बाइबल के ज्ञान और धर्मशास्त्रीय सिद्धांत को समझाने में वे जितने बेहतर होंगे, उतने ही ज़्यादा लोग उनकी आराधना करेंगे और वे और ज़्यादा दृढ़ता और ऊंचाई से मंच पर खड़े हो सकेंगे, और उनका ओहदा उतना ही ज़्यादा स्थिर होगा। ऐसा बिल्कुल इसलिए है क्योंकि फरीसी ऐसे लोग हैं जो सिर्फ अपने ओहदे और आजीविका के लिए ही जीते हैं, और ऐसे लोग हैं, जो सत्य से उकता चुके हैं और उससे घृणा करते हैं, ऐसे कि जब प्रभु यीशु देहधारी होकर कार्य करने आये तो भी वे जिद के साथ अपनी खुद की धारणाओं, कल्पनाओं और बाइबल के ज्ञान से चिपके रहे, अपने खुद के ओहदों और आजीविका को बचाने की खातिर, वे प्रभु यीशु का विरोध और निंदा करने और परमेश्वर का विरोध करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ...
धर्म में, सारे लोग फरीसियों के काबू में रहकर, पूरी तरह से उनका अनुसरण करते हुए और उनकी बात मानते हुए, परमेश्वर में विश्वास करते हैं। उन्हीं की तरह वे भी सिर्फ बाइबल और धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं, सिर्फ बाइबल के ज्ञान और धर्मशास्त्रीय सिद्धांत को समझने पर धयान देते हुए, और कभी भी सत्य को खोजने और प्रभु के वचनों पर अमल करने पर ध्यान न देकर। फरीसियों की तरह वे सिर्फ ऊपर स्वर्ग में एक अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन अंत के दिनों के देहधारी मसीह—सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास नहीं करते सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य चाहे जितने भी अधिकारपूर्ण और शक्तिशाली क्यों न हों, वे फिर भी जिद के साथ अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से बंधे रहते हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा करने में पादरियों और एल्डर्स का अनुसरण करते हैं। यह कहना बेकार है कि ऐसे लोग फरीसियों जैसे ही हैं, और फरीसियों के परमेश्वर-विरोधी रास्ते पर चल रहे हैं! भले ही ऐसे लोग फरीसियों का अनुसरण न करें, फिर भी वे फरीसियों जैसे लोग ही हैं, और फरीसियों के वंशज ही हैं क्योंकि उनका स्वभाव और सार वही है। वे सभी अविश्वासी हैं जो सिर्फ खुद में विश्वास करते हैं, और सत्य से प्रेम नहीं करते! वे मसीह-विरोधी हैं, जो सत्य से घृणा करते हैं और मसीह का विरोध करते हैं!
— 'राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर' से उद्धृत
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?