परमेश्वर के वचनों ने मेरी धारणाओं को मिटा दिया
जब मैं सुसमाचार का प्रचार कर रहा था, तो मेरा सामना धार्मिक अगुआओं से हुआ जो प्रतिरोध और गड़बड़ी करने के लिए झूठी गवाही देते थे, और पुलिस बुला लेते थे। इस वजह से जिन लोगों को मैं उपदेश दे रहा था वे हमारे संपर्क में आने की हिम्मत नहीं कर रहे थे, और जिन्होंने अभी-अभी सुसमाचार को स्वीकार किया था, वे परमेश्वर के कार्य में विश्वास करने में असमर्थ हो रहे थे। जब मैं बहुत मेहनत करता और फिर भी परिणाम बहुत ख़राब होते थे, तो मैंने सोचता था कि: इंजील के कार्य को संपन्न करना बहुत कठिन है। कितना अद्भुत होता यदि परमेश्वर ने बस कुछ चमत्कार दिखाये होते और उन लोगों को जो झूठी गवाही देते हैं और साथ ही उन लोगों को जो छले गए लोगों को दिखाने के लिए गंभीरता से परमेश्वर का विरोध करते हैं, दंड दिया होता। तब क्या सुसमाचार का कार्य ज्यादा शीघ्रता से नहीं कर दिया जाता? हमारे लिए सुसमाचार का उपदेश देना इतना कठिन नहीं होता। इसी वजह से, जब भी मैं इस प्रकार की कठिनाइयों का सामना करता था, तो हर बार मेरे दिल में इस तरह की उम्मीद आती थी। बाद में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विरोध हेतु दण्ड के विशिष्ट उदाहरण की किताब पढ़ी और संगति के दौरान परमेश्वर के कुछ चिह्नों और अद्भुत कामों की गवाही भी सुनता था, और मैं अपने दिल में बहुत खुशी महसूस करता था। मैं और भी उम्मीद करता था कि मैंने जिन क्षेत्रों में कार्य किया है वहाँ परमेश्वर कुछ चीज़ें करेगा ताकि हमारे सुसमाचार के कार्य की दुर्दशा का अधिक शीघ्रता से समाधान किया जा सके। लेकिन मैंने चाहे कितनी भी उम्मीद क्यों न की, मैंने फिर भी यहाँ परमेश्वर को कोई चमत्कार करते हुए या दुष्ट लोगों को दंड देते हुए नहीं देखा था। धार्मिक लोग अभी भी पूरी तरह से परमेश्वर का विरोध कर रहे थे, और इंजील के कार्य में अभी भी बहुत सारी कठिनाइयाँ थी। मैं इस बारे में नकारात्मक हो गई थी: परमेश्वर हमारे लिए कोई रास्ता क्यों नहीं खोलता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारा विश्वास अपर्याप्त है?
बाद में, अपनी भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के इन वचनों को देखा: "यदि परमेश्वर अलौकिक चिह्न और चमत्कार करता, तो उसे बड़ा कार्य हाथ में लेने की आवश्यकता ही नहीं होती। वह बस मुख से ही लोगों को मृत्यु का श्राप दे देता, और वे उसी क्षण मर जाते, इस प्रकार सभी लोग क़ायल हो जाते—किंतु इससे परमेश्वर का देहधारी होने का उद्देश्य पूरा नहीं होता। यदि परमेश्वर सच में इस प्रकार कार्य करता, तो लोग उसके अस्तित्व में कभी जानते-बूझते विश्वास नहीं कर पाते। वे सच्चा विश्वास कर पाने में असमर्थ होते, और गलती से शैतान को ही परमेश्वर समझ लेते। ज़्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि लोग कभी परमेश्वर का स्वभाव नहीं जान पाते—क्या यह परमेश्वर के देहधारी होने के अर्थ का ही एक पहलू नहीं है? यदि लोग परमेश्वर को जानने में असमर्थ होते, तो लोगों के बीच हमेशा उस अज्ञात परमेश्वर, उस अलौकिक परमेश्वर का ही बोलबाला होता। और इसमें क्या लोग अपनी ही धारणाओं के वशीभूत नहीं होते? अधिक स्पष्ट रूप से कहें, तो क्या शैतान यानी, दुष्टात्मा का ही दबदबा नहीं हो जाता? 'मैं क्यों कहता हूँ कि मैंने सामर्थ्य वापस ले लिया है? मैं क्यों कहता हूँ कि देहधारण के बहुत अधिक मायने है?' जिस क्षण परमेश्वर देहधारी हो जाता है, यही वह क्षण होता है जब वह सामर्थ्य वापस ले लेता है, और यही वह समय भी होता है जब उसकी दिव्यता सीधे कार्य करने के लिए प्रकट होती है। सभी लोग धीरे-धीरे व्यावहारिक परमेश्वर को जानने लगते हैं, और परमेश्वर को अपने हृदय में अधिक गहरा स्थान देते हुए, अपने हृदय से शैतान का स्थान पूरी तरह मिटा देते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचनों को समझने की कोशिश करते हुए, मेरा दिल अचानक ही चमक उठा: ऐसा पता चला कि देह में परमेश्वर के कार्य का प्रयोजन आज्ञाकारिता के लिए लोगों को डराने हेतु अपने अधिकार का प्रयोग करना नहीं है, बल्कि यह वास्तविक कार्य और वचनों के माध्यम से मानवजाति के लिए अपने स्वभाव को पूरी तरह से प्रकट करना है, और इसके माध्यम से मानवजाति के हृदयों में से अज्ञात परमेश्वर की छवि को दूर करना है। यह लोगों को उनकी धारणाओं के अवरोधों को छोड़ने, परमेश्वर के स्वभाव और कार्य को सच में पहचानने की अनुमति देने, लोगों को सत्य और विवेक को धारण करने की अनुमति देने, और इस प्रकार उन्हें जीतने और प्राप्त करने के लिए है। व्यवस्था के युग में, परमेश्वर ने इस्राएलियों को कई चमत्कार दिखाये थे और उसका विरोध करने वाले कईयों को दंड दिया था, लेकिन इस्राएलियों ने फिर भी परमेश्वर को मान्यता नहीं दी थी और अंत में वे वीराने में मरने के लिए चले गए थे। परमेश्वर का कार्य वाकई बहुत व्यवहारिक है और मनुष्यों के लिए उसकी बुद्धि अथाह है! इस पर ध्यान से विचार करें—परमेश्वर का यह कार्य यदि प्रतीकों और चमत्कारों के माध्यम से किया जाता तो फल उत्पन्न नहीं करता। जैसे कि अनुग्रह के युग में, परमेश्वर ने यहूदियों के बीच अनगिनत चिह्न और अद्भुत काम भी प्रदर्शित किये थे, लेकिन फिर भी उन्होंने उसे जिंदा ही सलीब पर लटका दिया था क्योंकि वे उसे पहचानते नहीं थे। यह सब बताता है कि परमेश्वर के चिह्न और अद्भुत काम लोगों को केवल कुछ पल के लिए ही डरा सकते हैं, लेकिन ये परमेश्वर में उनके विश्वास की नींव नहीं हैं। हालाँकि, भले ही मैंने अभी तक परमेश्वर का अनुसरण किया है, लेकिन मुझे परमेश्वर के सार की लेशमात्र भी समझ नहीं आई है, और मुझे देह में परमेश्वर के कार्य के लक्ष्यों और महत्व के बारे में तो और भी कम समझ में आया है। मैंने अभी भी उसके अधिकार में और इस बात पर विश्वास किया है जो भी परमेश्वर का विरोध करेगा उसे दंड दिया जाएगा, इसलिए मैंने पूरे दिल से परमेश्वर के चिह्नों और अद्भुत कामों को देखने का प्रयास किया है। क्या इस प्रकार का विश्वास बिल्कुल फरीसियों की तरह का नहीं है, अस्पष्टता के बीच में रहना, व्यावहारिक परमेश्वर का विरोध करते हुए अलौकिक परमेश्वर में विश्वास करना? अगर परमेश्वर का मेरा अनुसरण इसी तरह से जारी रहता है, तो मैं सच्चे परमेश्वर के साथ संगत कैसे हो सकता हूँ? यह वाकई बहुत ख़तरनाक था! इसके बाद, मैं और अधिक परमेश्वर वचनों को देखता था: "परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है। लोगों की पीड़ा के माध्यम से, उनकी क्षमता के माध्यम से, और इस कुत्सित देश के लोगों के समस्त शैतानी स्वभावों के माध्यम से परमेश्वर अपना शुद्धिकरण और विजय का कार्य करता है, ताकि इससे वह महिमा प्राप्त सके, और ताकि उन्हें प्राप्त कर सके जो उसके कर्मों की गवाही देंगे। इस समूह के लोगों के लिए परमेश्वर द्वारा किए गए सारे त्यागों का संपूर्ण महत्व ऐसा ही है। अर्थात, परमेश्वर विजय का कार्य उन्हीं लोगों के माध्यम से करता है जो उसका विरोध करते हैं, और केवल इसी प्रकार परमेश्वर की महान सामर्थ्य प्रत्यक्ष की जा सकती है। ... यीशु के कार्य का चरण भी ऐसा ही था : उसे केवल उन्हीं फरीसियों के बीच महिमामंडित किया जा सका था जिन्होंने उसे सताया था; यदि फरीसियों द्वारा किया गया उत्पीड़न और यहूदा द्वारा दिया गया धोखा नहीं होता, तो यीशु का उपहास नहीं उड़ाया जाता या उसे लांछित नहीं किया जाता, सलीब पर तो और भी नहीं चढ़ाया जाता, और इस प्रकार उसे कभी महिमा प्राप्त नहीं हो सकती थी" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। इस बार, परमेश्वर के वचनों से मैं यह बात और भी अधिक जान गया था कि परमेश्वर चाहे जो भी कार्य क्यों न करता हो, उस सब का अर्थ है। अगर वह कुछ चमत्कारों को प्रकट करने या कुछ दंड देने के कार्य को पूरा करता है, तो उसका अर्थ है, उसमें सिद्धांत हैं। अगर वह चमत्कारों को प्रकट करने या दंड देने के कार्य को पूरा नहीं करता है, तो इसमें और भी अधिक परमेश्वर की बुद्धि शामिल होती है। अब, परमेश्वर उन लोगों से छुटकारा पाने के लिए अपने अधिकार का उपयोग नहीं करता है जो उसकी झूठी गवाही देने हैं या गंभीर रूप से उसका विरोध करते हैं; इसमें परमेश्वर की और भी अधिक सद्भावना है। परमेश्वर हमें उसके खुद के कार्य की कठिनाइयों का अनुभव लेने की अनुमति देने, इस प्रकार परमेश्वर की दयालुता और सुंदरता को समझने की अनुमति देने के लिए इन कठिनाइयों का उपयोग करता है। लोगों के अच्छा या दुष्टता करने का साक्ष्य इकट्ठा करने के लिए भी परमेश्वर इन कठिनाइयों का उपयोग करता है, और अंत में उन्हें उपयुक्त मंजिल प्रदान करता है ताकि हम पूरी तरह से आश्वस्त हो जाएँ, ताकि हम परमेश्वर की धार्मिकता और पवित्रता को देख सकें। इससे भी बढ़कर, परमेश्वर यह प्रकट करने के लिए इन कठिनाइयों का उपयोग करता है कि मुझमें दर्शन के सत्य का अभाव है, कि मेरी प्रकृति अत्यधिक आलसी, डरपोक, अज्ञानी, और मूर्खतापूर्ण है, और कि कष्टों, प्रयासों और परमेश्वर के साथ सहयोग के माध्यम से, वह हमें विवेक, आत्मविश्वास, प्रेम, बुद्धि, और साहस प्रदान करेगा, और इससे भी बढ़कर हमें परमेश्वर के कार्य का सत्य देगा, इस प्रकार वह हमें पूर्ण करेगा, हमें प्राप्त करेगा। परमेश्वर का कार्य सच में बहुत बुद्धिमान, बहुत अद्भुत है! लेकिन मैं बहुत ज्यादा अंधा हूँ—मुझे परमेश्वर के कार्य के महत्व की और उसके अच्छे इरादों की कोई समझ नहीं है। मुझे बस शा रीरिक कष्ट से डर लगता है और मैं परमेश्वर के साथ सहयोग करने का इच्छुक नहीं हूँ। मैं सच में ऐसा विश्वासी हूँ जो उचित कार्य नहीं करता है और जो आराम में मस्त फिरता है!
परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता का धन्यवाद जिसने मुझे देह में परमेश्वर के कार्य के प्रयोजन और बुद्धि की कुछ समझ दी और साथ ही मुझे यह भी देखने की अनुमति दी कि परमेश्वर में मेरा विश्वास अनिश्चितता में जीना था, कि पमरेश्वर को न समझना अत्यधिक ख़तरनाक है! आज से आगे, मैं खुद को दर्शन के सत्य से सुसज्जित करने, परमेश्चर के कार्य और स्वभाव को समझने वाला व्यक्ति बनाने की कोशिश करने, सच में कष्ट सहने की इच्छा धारण करने, परमेश्वर के दिल को आराम पहुँचाने के लिए अपने कर्तव्य को पराकाष्ठा से पूरा करने का इच्छुक हूँ।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?