प्रभु यीशु के आगमन की तैयारी हमें कैसे करनी चाहिए?
सम्पादक की टिप्पणी: प्रकाशितवाक्य के अध्याय 22 में प्रभु यीशु ने कई बार "मैं शीघ्र आनेवाला हूँ", यह भविष्यवाणी की है। यह तो पक्का है कि प्रभु में विश्वास रखने वाले सभी भाई-बहन दिल से आशा करते हैं कि वे लौट कर आये प्रभु का स्वागत कर पाने में समर्थ हों और उनके साथ विवाह भोज में शामिल हों। तो, हमें ऐसा क्या करना चाहिए जिससे हम लौट कर आये प्रभु का स्वागत कर सकें? आगे पढ़िए और इस सवाल का जवाब जानिए।
- सूचीपत्र
- क्या प्रभु की वापसी पादरियों और एल्डरों पर प्रकट की जाएगी?
- जब परमेश्वर कार्य करने के लिए आयेंगे तो क्या वे खुद को मनुष्य के समाने प्रकट करेंगे?
- अंत के दिनों में प्रभु की वापसी का हर्षपूर्ण ढंग से स्वागत करने का मार्ग
क्या प्रभु की वापसी पादरियों और एल्डरों पर प्रकट की जाएगी?
हाल के सालों में, पूरे जग में आपदाओं की गंभीरता बढ़ती ही जा रही है, कई चिह्न और शकुन एक के बाद एक दिखाई दिए हैं और प्रभु की वापसी की सभी भविष्यवाणियाँ मूलरूप से पूरी हो चुकी हैं। प्रभु में पूरी निष्ठा से विश्वास रखने वाले बहुत से भाई-बहन मानते हैं कि प्रभु शायद पहले ही आ भी चुके हैं। लेकिन वे कहाँ प्रकट होते हैं? लालसा रखने वाले और सत्य की खोज करने वाले बहुतों ने परमेश्वर के पदचिह्न खोजने शुरू कर दिए हैं। फिर भी कुछ भाई-बहन ऐसे हैं, जो कहते हैं, "पादरियों और एल्डरों ने कई वर्षों तक प्रभु पर विश्वास किया है, वे बाइबल से परिचित हैं, उन्होंने त्याग किये हैं, खुद को खपाया है, प्रभु के लिए काम किया है, मेहनत की है, बहुत कष्ट झेले हैं, और ऊंची कीमत चुकाई है। जब प्रभु वापस लौटेंगे, तो वह निश्चित रूप से पहले स्वयं को उनके सामने प्रकट करेंगे, लेकिन प्रभु ने अभी तक स्वयं को उनके सामने प्रकट नहीं किया है, तो यह कैसे संभव है कि वे लौट आये हैं? पादरियों और एल्डरों ने हमें खोजने और जांच करने के लिए नहीं कहा है, इसलिए हमें केवल अपनी कलीसियाओं में रहते हुए प्रभु के प्रकाशन की प्रतीक्षा करनी है। जब समय आएगा, हम निश्चित रूप से लौट कर आये प्रभु का स्वागत करने में समर्थ होंगे।"
भाइयों और बहनो, शायद हम सोचें कि चूँकि पादरियों और एल्डरों ने लंबे समय से प्रभु पर विश्वास किया है, वे बाइबल से परिचित हैं, उन्होंने प्रभु के लिए बहुत काम किये और कष्ट झेले हैं, प्रभु आने पर खुद को उनके समाने प्रकट करेंगे, लेकिन क्या इस दृष्टिकोण का प्रभु के वचनों में कोई आधार है? क्या यह परमेश्वर के कार्य के तथ्यों के साथ सही बैठता है? जो भाई-बहन बाइबल से परिचित हैं, वे जानते हैं कि न तो यहोवा ने, न ही प्रभु यीशु ने ऐसे वचन कहे हैं, और परमेश्वर ने कभी भी किसी को प्रकाशन इसलिए नहीं दिया है क्योंकि उसने काफी समय तक परमेश्वर में विश्वास रखा है, अक्सर बाइबल पढ़ी है, या काम करते हुए पीड़ा सही है। जब प्रभु यीशु प्रकट हुए और कार्य किया, उस समय यहूदी धर्म के मुख्य याजक, शास्त्री और फरीसी पीढ़ियों से परमेश्वर पर विश्वास करते थे, शास्त्र उन्हें कंठस्थ थे, उन्होंने वर्षों तक मंदिर में परमेश्वर की सेवा की थी, और यहोवा के सुसमाचार को फैलाने के लिए पृथ्वी के सूदूर कोनों की यात्रा की थी। अन्य लोगों को, वे परमेश्वर के प्रकाशन को प्राप्त करने के सबसे योग्य प्रतीत होते थे, लेकिन क्या प्रभु यीशु ने खुद को उनके सामने प्रकट किया? नहीं! जिस वक्त से प्रभु ने आधिकारिक तौर पर बोलना और कार्य करना शुरू किया तब से लेकर अपनी मृत्यु, पुनरुत्थान और स्वर्ग जाने के बाद तक, उन्होंने कभी भी खुद को यहूदी धर्म के अगुआओं के बीच प्रकट नहीं किया। इससे, हम देख सकते हैं कि हमारा यह विश्वास कि प्रभु स्वयं को उन लोगों के समक्ष प्रकट करेंगे जो बाइबल से परिचित हैं, जो उनके लिए श्रम और काम करते हैं, बिल्कुल भी सत्य के अनुरूप नहीं है, न ही यह परमेश्वर के कार्य के तथ्यों के अनुरूप है। यह विशुद्ध रूप से मनुष्य की धारणाओं और कल्पनाओं पर आधारित है।
जब परमेश्वर कार्य करने के लिए आयेंगे तो क्या वे खुद को मनुष्य के समाने प्रकट करेंगे?
शायद कुछ भाई-बहन पूछें, "अगर हमारा यह नज़रिया कि 'प्रभु पहले स्वयं को पादरियों और एल्डरों के सामने प्रकट करेंगे' गलत है, तो प्रभु स्वयं को किस प्रकार के लोगों के सामने प्रकट करेंगे?"
दरअसल, प्रभु किसी के भी सामने खुद को प्रकट नहीं करेंगे, जो कि एक ऐसा तथ्य है जिसे हम परमेश्वर के पिछले कार्यों से देख सकते हैं। जब प्रभु यीशु प्रकट हुए और कार्य किया, तो उनके किसी भी शिष्य जैसे कि पतरस, मत्ती, याकूब, यूहन्ना, नतनएल या यहाँ तक कि सामरी स्त्री ने भी प्रभु यीशु का अनुसरण करने का फैसला उनके स्वयं को प्रकट करने के बाद नहीं लिया। उन्होंने प्रभु यीशु के उपदेशों को सुना, उनके चमत्कारी कार्यों और कर्मों को देखा, विनम्रतापूर्वक उनकी तलाश करने का फैसला किया, और बाद में उनके वचनों और कार्यों से यह निर्धारित किया कि प्रभु यीशु ही आने वाले मसीहा थे। पतरस केवल यह कह सका, "तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है" (मैथ्यू 16:16)। कुछ समय तक प्रभु यीशु का अनुसरण करने के बाद, उनके वचनों और कार्यों में अधिकार और सामर्थ्य देखकर, यह देखते हुए कि प्रभु का स्वरूप कुछ ऐसा है जिसे कोई भी व्यक्ति धारण नहीं कर सकता है, और फिर पवित्र आत्मा का प्रबोधन पाना। इन सबके बाद ही पतरस प्रभु यीशु को मसीह के रूप में पहचानने में सक्षम हुआ।
हालाँकि, सभी यहूदी धर्मगुरु मानते थे कि यहोवा के लिए की गयी कई सालों की सेवा, परमेश्वर में बहुत समय का विश्वास, सहे गये कष्ट की मात्रा, और अपने द्वारा चुकाई गई कीमत के कारण, वे प्रभु के प्रकाशन को पाने के सबसे योग्य थे, लेकिन प्रभु यीशु ने स्वयं को उनके सामने कभी प्रकट नहीं किया, और इसके बजाय पश्चाताप के मार्ग का प्रचार करने के लिए वचनों को व्यक्त किया। यहूदी धर्मगुरुओं ने देखा कि उनके वचनों और कार्यों में अधिकार और सामर्थ्य है, लेकिन उन्होंने जाँच या खोज नहीं की। इसके बजाय, अपनी अभिमानी प्रकृति के कारण, वे हठपूर्वक अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से चिपके रहे, प्रभु के वचनों और कार्यों की बेतहाशा निंदा और आलोचना इसलिए की क्योंकि वे बाइबल के पुराने नियम से बढ़कर थे, और इस तथ्य के आधार पर उन्होंने इस बात से इनकार किया कि प्रभु यीशु स्वयं परमेश्वर थे। सत्य से घृणा और नफ़रत करने की उनकी प्रकृतियों के अलावा, जब उन्होंने देखा कि यहूदी धर्म के अधिक से अधिक विश्वासी प्रभु यीशु के उपदेश सुन रहे हैं और उनका अनुसरण कर रहे हैं, तो उन्होंने अपने पद और आजीविका की रक्षा करने के लिए, प्रभु का डटकर विरोध किया, उनका अपमान और निंदा करने के लिए सभी प्रकार की अफवाहें गढ़ीं, और अंत में रोमन सरकार के साथ मिलीभगत करके उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया। इस तरह उन्होंने परमेश्वर के स्वभाव का अपमान किया, जिसके लिए वे परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किये गये।
परमेश्वर के वचन कहते हैं, "ऐसे लोग तो और भी हैं जो यह मानते हैं कि परमेश्वर का नया कार्य जो भी हो, उसे भविष्यवाणियों द्वारा सही साबित किया जाना ही चाहिए और कार्य के प्रत्येक चरण में, जो भी 'सच्चे' मन से उसका अनुसरण करते हैं, उन्हें प्रकटन भी अवश्य दिखाया जाना चाहिए; अन्यथा वह कार्य परमेश्वर का कार्य नहीं हो सकता। परमेश्वर को जानना मनुष्य के लिए पहले ही आसान कार्य नहीं है। मनुष्य के बेतुके हृदय और उसके आत्म-महत्व एवं दंभी विद्रोही स्वभाव को देखते हुए, परमेश्वर के नए कार्य को ग्रहण करना मनुष्य के लिए और भी अधिक कठिन है। मनुष्य न तो परमेश्वर के कार्य पर ध्यान से विचार करता है और न ही इसे विनम्रता से स्वीकार करता है; बल्कि मनुष्य परमेश्वर से प्रकाशन और मार्गदर्शन का इंतजार करते हुए, तिरस्कार का रवैया अपनाता है। क्या यह ऐसे मनुष्य का व्यवहार नहीं है जो परमेश्वर का विरोधी और उससे विद्रोह करने वाला है? इस प्रकार के मनुष्य कैसे परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त कर सकते हैं?" ('वो मनुष्य, जिसने परमेश्वर को अपनी ही धारणाओं में सीमित कर दिया है, किस प्रकार उसके प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है?')।
परमेश्वर के वचन हमारी धारणाओं और कल्पनाओं को उजागर करते हैं, और परमेश्वर का कार्य किसी के द्वारा सीमित नहीं किया जा सकता है। परमेश्वर अपनी इच्छानुसार कार्य करते हैं, तो अगर हम यह माँग करते हैं कि परमेश्वर स्वयं को हमारे सामने प्रकट करें, उन्हें हमसे स्वीकृति लेनी चाहिए, तो क्या यह केवल अत्यधिक अहंकार, आत्म-महत्व और तर्कहीनता नहीं है? परमेश्वर के वचनों और उनके कार्य के तथ्यों से, हम देख सकते हैं कि परमेश्वर किसी के भी समक्ष स्वयं को प्रकट कर, उसे उन पर विश्वास या उनका अनुसरण करने के लिए मजबूर नहीं करते हैं। परमेश्वर केवल अपने कार्य को पूरा करने के लिए सत्य व्यक्त करते हैं, और लोगों को अपने वचनों और कार्य के माध्यम से अपने आपको जानने और अपना अनुसरण करने देते हैं। जो कोई भी विनम्रतापूर्वक सत्य की तलाश में रहता है, उसकी लालसा करता है, परमेश्वर की वाणी को सुनने का प्रयास करता है, वह उनके वचनों और कार्यों के माध्यम से सत्य को पहचान सकता है, मेम्ने के नक्शेकदम पर चल सकता है, और परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त कर सकता है। जिनकी प्रकृति अभिमानी और अहंकारी है, जो सत्य से प्रेम नहीं करते हैं, जिनके मन में परमेश्वर का कोई डर नहीं है, जो बस प्रभु की प्रतीक्षा करते हैं कि वे स्वयं को प्रकट करें, वे परमेश्वर की वाणी सुनकर भी, उसे पहचानने में असमर्थ होंगे। अंत में, परमेश्वर के कार्य का विरोध करने के कारण, परमेश्वर द्वारा त्यागे और दंडित किये जायेंगे।
अंत के दिनों में प्रभु की वापसी का हर्षपूर्ण ढंग से स्वागत करने का मार्ग
अंत के दिनों में, प्रभु का स्वागत करने और उनके साथ विवाह-भोज में शामिल होने के लिए हमें क्या करना चाहिए? आइये पहले, बाइबल के कई पदों पर नजर डालें जो इस सवाल को सम्बोधित करते हैं।
"मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)।
"मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)।
"आधी रात को धूम मची: 'देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो'" (मत्ती 25:6)।
"देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)।
"जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)।
परमेश्वर का वचन बहुत स्पष्ट रूप से बताता है कि अंत के दिनों में, वह अधिक वचन बोलने के लिए वापस आएंगे जो सारे सत्य को समझने और प्राप्त करने में हमारी अगुआई करेंगे। अंत के दिनों में, जब प्रभु वापस आयेंगे, तो वह बोल कर हमारे दरवाज़े पर दस्तक देंगे। यदि हम अन्य लोगों को प्रभु के लौटने के बारे में उपदेश देते हुए सुनते हैं, तो हमें सक्रियता से खोजबीन और तलाश करनी चाहिए, और परमेश्वर की वाणी को पहचानने के बाद, हम स्वीकार और अनुसरण कर पाएंगे। जो लोग ऐसा कर सकते हैं वे बुद्धिमान कुंवारियाँ हैं, वे वो लोग हैं जो प्रभु के पदचिह्नों का अनुसरण करते हैं और उनके साथ विवाह भोज में शामिल होते हैं। यह स्पष्ट है कि हम परमेश्वर के पदचिन्हों पर चलने और प्रभु की वापसी का स्वागत कर पाने में सक्षम हैं या नहीं, इसकी कुंजी इसमें निहित है की हम विनम्रतापूर्वक सत्य की तलाश करने, बुद्धिमान कुंवारी बनने, और परमेश्वर की वाणी सुन सकने में समर्थ हैं या नहीं।
तो, हम परमेश्वर की वाणी को कैसे पहचान सकते हैं? परमेश्वर की वाणी सुनने के लिए वाणी को अपनी आत्मा से महसूस करने की आवश्यकता होती है, या जैसी की कहावत है, "जब आत्मा द्रवित होती है, तो हृदय जान जाता है।" परमेश्वर का वचन सत्य है, इसमें अधिकार और सामर्थ्य है, यह किसी भी व्यक्ति द्वारा नहीं बोला जा सकता है, और जिनके पास दिल और आत्मा है वे इन चीजों को महसूस करने में सक्षम होते हैं। मुझे विश्वास है कि हम सभी में यहोवा और प्रभु यीशु के वचनों को पढ़ते हुए समान भावनाएँ और अनुभव हुए हैं। परमेश्वर द्वारा शुरू किये गये हर नए युग में, वह एक नये चरण का कार्य करने के लिए आते हैं। विशिष्ट उद्देश्यों के लिए परमेश्वर के प्रकाशन को प्राप्त करने, उनके कुछ वचनों को फैलाने और फिर समाप्त हो जाने वाले भविष्यद्वक्ताओं के विपरीत, परमेश्वर कई वचनों को कहते हैं, कई सत्य व्यक्त करते हैं, लोगों को जीवन प्रदान करते हैं, नए युग के लिए अभ्यास का मार्ग बताते हैं, रहस्यों को प्रकट करते हैं, और भ्रष्ट मानवजाति की ज़रूरतों के आधार पर भविष्यवाणियाँ प्रदान करते हैं। इसके अलावा, परमेश्वर सृष्टि के प्रभु हैं, वह लोगों के दिलों को देखते हैं, वह हमारी भ्रष्ट प्रकृतियों के आर-पार देख लेते हैं, हमारे दिलों की गहराइयों में छिपे भ्रष्टाचार को उजागर कर सकते हैं। ये सभी परमेश्वर के वचनों की खास विशेषताएं हैं। जैसे कि जब प्रभु यीशु आए, तो उन्होंने व्यवस्था के आधार पर छुटकारे का आगे का कार्य किया, "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17), और हमें अपने पापों को कबूल करना, पश्चाताप करना, सहनशील होना, धीरज रखना, पीड़ा और क्रूस सहन करना जैसी बातें सिखायीं और उन्होंने परमेश्वर के प्रेमपूर्ण, दयापूर्ण स्वभाव को प्रकट किया। प्रभु यीशु ने स्वर्ग के राज्य के रहस्य और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की शर्तों का भी खुलासा किया, जैसे कि, "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। उन्होंने फरीसियों की प्रकृति और सार को भी उजागर किया, जैसे कि "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय!" (मत्ती 23:13) और "हे साँपो, हे करैतों के बच्चो, तुम नरक के दण्ड से कैसे बचोगे?" (मत्ती 23:33)। प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त किए गए वचनों से हम देख सकते हैं कि प्रभु के सभी वचन सत्य हैं, वे सभी परमेश्वर से आते हैं और भ्रष्ट मानवजाति का कोई भी सदस्य इसे नहीं बोल सकता है।
उसी तरह, यदि हम अंत के दिनों में लौटे हुए प्रभु का स्वागत करना चाहते हैं, तो हमें परमेश्वर की वाणी के लिए अपने दिल की आवाज़ सुननी चाहिए, देखना चाहिए कि क्या कोई विशेष शब्द सत्य हैं, क्या वे परमेश्वर से उत्पन्न होते हैं, क्या उनमें अधिकार और सामर्थ्य है, क्या वे लोगों के दिलों के भीतर छिपे हुए भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करते हैं, और क्या वे हमें अभ्यास के व्यावहारिक मार्ग देते हैं और क्या हमारी कठिनाइयों और भ्रम को हल करते हैं। हमें विश्वास करना चाहिए कि विनम्रतापूर्वक खोजने के माध्यम से, यह निश्चित है कि हम परमेश्वर की वाणी को पहचानने में सक्षम होंगे, लौटे हुए प्रभु को प्राप्त कर पाएंगे, और विवाह भोज में उनके साथ भोजन करेंगे। जैसा कि प्रभु के वचन कहते हैं, "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)।
परमेश्वर के मार्गदर्शन के लिए उनका धन्यवाद। परमेश्वर हमारे साथ हों, कलीसियाओं को कहे गये पवित्र आत्मा के वचनों को सुनने की हमें अनुमति दें, और हर्ष के साथ परमेश्वर की वापसी स्वागत करने दें! आमीन!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?