अब मैं डर कर पीछे नहीं हटती
मैंने 2 सितंबर को एक बहन की गिरफ्तारी के बारे में सुना। उस दिन मैं एक अगुआ के घर जा रही थी, पर घर में कोई नहीं था। उसके घर के सामने रहने वाली बहन शाओ हॉन्ग ने मुझे देख लिया। उसने मुझे अपने घर बुलाया और घबराकर बोली, “कुछ हो गया है। झोऊ लिंग को पुलिस ले गई है। दो दिन हो चुके हैं और उसके बारे में कोई खबर नहीं है। अगुआ सबको बताने गई है—शायद जल्दी लौट आए।” यह खबर सुनकर मैं घबरा गई और डर भी गई। झोऊ लिंग अगुआ रह चुकी थी और मुझे नहीं पता पुलिस उसे कौन सी यातनाएँ देगी। क्या वह यातनाओं से टूटकर यहूदा बन जाएगी? मैं भी हाल ही में उसके घर गई थी। अगर पुलिस निगरानी कर रही होगी तो शायद मुझे भी देखा होगा। मैं छिपती फिर रही थी, इसलिए सबसे पहले इधर चली आई। बड़ा लाल अजगर बरसों से लगातार मेरे पीछे पड़ा है। अगर मैं पकड़ ली गई तो वे मुझे और भी कड़ी यातना देंगे। शायद मुझे पीट-पीटकर मार ही डालें। मैं बहुत डरी हुई थी और उस इलाके से फौरन निकलना चाहती थी, लेकिन कई अहम बातों पर अगुआ के साथ तुरंत चर्चा करना जरूरी था और मेरे निकल जाने से इसमें और देर होती। मुझे अगुआ के जल्द लौटने की उम्मीद थी। अगुआ जल्द ही शाओ हॉन्ग के घर पहुँची और हमारी चर्चा खत्म होते ही अपने घर लौट गई। दो-तीन मिनट ही गुजरे थे, शाओ हॉन्ग घबराकर उलटे पाँव लौटी और बोली, “अगुआ निकल ही रही थी, तभी सात-आठ पुलिस वाले उसे लेकर चले गए। झोऊ लिंग भी उनकी कार में थी। उसने ही बताया होगा कि अगुआ कहाँ रहती है। तुम चाहे जो करो, पर बाहर मत जाना।” डर के मारे कलेजा मुँह को आ गया। शाओ हॉन्ग और अगुआ एक-दूसरे के ठीक आमने-सामने रहती थीं। पुलिस बस कुछ ही कदम दूर होगी। अगर उसने मुझे पकड़ लिया, तो बचना मुमकिन नहीं होगा। मैं खिड़की से झाँकने का साहस तक नहीं कर सकी, लगातार परमेश्वर को पुकारती रही, और दुआ करती रही कि पुलिस जल्दी चली जाए। पुलिस की कार करीब एक घंटे बाद गई और तब जाकर मेरा दिल शांत हुआ। लेकिन कुछ ही दिन पहले झोऊ लिंग मेरे घर आई थी—अगर उसने मेरे साथ भी गद्दारी कर दी तो क्या होगा? मेरा घर अब सुरक्षित नहीं रहा। जाऊँ तो कहाँ? मेरे घर में एक नोटबुक पर भाई-बहनों के फोन नंबर लिखे थे जिसे जल्द से जल्द हटाना जरूरी था। मेरे घर के करीब ही तीन और मेजबानों के घर थे। अगर उन्हें तुरंत खबरदार न किया गया, तो वे भी पकड़े जा सकते हैं, फिर कई और भाई-बहन भी फँस जाएंगे। लेकिन अगर मैं तुरंत वापस लौटी तो शायद मैं सीधे उनके हाथ का मोहरा बन जाऊँ। मैं शहर से बाहर रहकर बरसों से अपना काम कर रही थी और पुलिस की गिरफ्तारी का बड़ा निशाना थी। अगर पकड़ी गई तो मुझे और भी यातना झेलनी होगी। इसलिए, मुझे छिपते-छिपाते तुरंत सुरक्षित जगह खोजनी थी। इन विचारों ने मुझे हिला दिया और मैं बिना रुके परमेश्वर को पुकारती रही। उसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद किया। “तुम्हें किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज़ से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है; अन्यथा मैं तुम पर क्रोधित हो जाऊँगा और अपने हाथ से मैं...। फिर तुम अनंत मानसिक पीड़ा भोगोगे। तुम्हें सबकुछ सहना होगा; मेरे लिए, तुम्हें अपनी हर चीज़ का त्याग करने को तैयार रहना होगा, और मेरा अनुसरण करने के लिए सबकुछ करना होगा, अपना सर्वस्व व्यय करने के लिए तैयार रहना होगा। अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे? क्या तुम ईमानदारी से मार्ग के अंत तक मेरे पीछे चलोगे? डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है? यह स्मरण रखो! इस बात को भूलो मत! जो कुछ घटित होता है वह मेरी नेक इच्छा से होता है और सबकुछ मेरी निगाह में है। क्या तुम्हारा हर शब्द व कार्य मेरे वचन के अनुसार हो सकता है? जब तुम्हारी अग्नि परीक्षा होती है, तब क्या तुम घुटने टेक कर पुकारोगे? या दुबक कर आगे बढ़ने में असमर्थ होगे?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। मैंने देखा कि मेरा आध्यात्मिक कद छोटा था और मुझमें सच्ची आस्था नहीं थी। अपने आसपास के लोगों को एक के बाद एक गिरफ्तार होते देखकर मैं डर गई और छिपने के लिए सुरक्षित जगह खोजने लगी। अपनी सुरक्षा की खातिर मैं कलीसिया के हितों की अनदेखी कर रही थी—मैं कितनी खुदगर्ज थी! अब अगुआ की गिरफ्तारी के कारण कई लोगों को सूचित करना और परमेश्वर के वचनों की कई प्रतियों को हटाना जरूरी था। अगर यह काम फटाफट नहीं किया तो इससे कलीसिया के कई दूसरे सदस्य भी पकड़े जा सकते हैं। कलीसिया की उपयाजक के तौर पर मेरा कर्तव्य और दायित्व था कि भाई-बहनों के साथ ही परमेश्वर के वचनों की किताबों की भी हिफाजत करूँ। अगर मैं बुजदिल होकर हिम्मत हार जाऊँ और निरर्थक जीवन जीने लगूँ तो यह निहायत गैर-जिम्मेदाराना बात होगी। इस अहम घड़ी में परमेश्वर देख रहा था कि मैं उसकी इच्छा पर ध्यान देकर कलीसिया के हितों की सुरक्षा कर भी रही हूँ या नहीं। मुझे परमेश्वर का आसरा लेकर तुरंत जाँच-पड़ताल का काम सँभालना था। जहाँ तक मेरी गिरफ्तारी होने या न होने की बात है, यह सिर्फ परमेश्वर पर निर्भर था। मैं अपनी हिफाजत परमेश्वर के हाथों में सौंपने के लिए तैयार थी। यह एहसास होने के बाद मैं अब उतनी घबराई या डरी हुई नहीं रही। अपने घर के पास पहुँचकर मैंने दरवाजे पर पुलिस की कार खड़ी देखी। मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा। जाहिर था कि यहूदा ने मुझसे गद्दारी की है। मुझे कुछ नहीं पता था कि पड़ोस के तीन मेजबान घर भी खंगाले जा चुके थे या नहीं। मुझे बड़े अगुआ को फौरन इस बारे में सूचित करना था, ताकि वे एहतियात बरतें और समय रहते जरूरी इंतजाम करके कलीसिया कार्य का और ज्यादा नुकसान होने से रोक सकें।
बड़े अगुआ के फोन नंबर बहन सू हुआ के पास रहते थे, इसलिए मैं उसे खोजने निकली। वहाँ पहुँचते ही उसके गैर-विश्वासी पति ने घबराकर कहा, “अभी-अभी पुलिस आई थी। सू हुआ बाहर है, बस इसी कारण वे उसे पकड़ नहीं पाए। बाकी लोगों को गिरफ्तार करने वे अभी-अभी तुम्हारे घर गए हैं।” मैं फौरन निकल गई और आसपास घूमने की हिम्मत तक नहीं कर पाई। वापस लौटते हुए मैं सोच रही थी कि बड़ा लाल अजगर कितना दुष्ट है। परमेश्वर पर विश्वास करने वालों की धरपकड़ के लिए वह कैसी हैरतअंगेज कोशिशें करता है। एक के बाद एक भाई-बहन गिरफ्तार किए जा रहे थे और किसी भी पल मेरे पकड़े जाने का खतरा था। अगर मैं यातना नहीं सह सकी और यहूदा बन गई तो क्या मेरे लिए आस्था का रास्ता बंद नहीं हो जाएगा? इस बारे में जितना ज्यादा सोचा, उतनी ही कमजोर और भयभीत हो गई, लगा जैसे चीन में विश्वासी होना बड़ा मुश्किल और बहुत खतरनाक है। मैंने दिल ही दिल में परमेश्वर को बार-बार याद किया, “हे परमेश्वर! मैं क्या करूँ?” उसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के इस अंश के बारे में सोचा : “विश्वास एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है : जो लोग घृणास्पद ढंग से जीवन से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है क्योंकि उसे इस बात का डर है कि हम विश्वास का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जायेंगे। शैतान अपने विचारों को हम तक पहुँचाने में हर संभव प्रयास कर रहा है। हमें हर पल परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें अपने प्रकाश से रोशन करे, अपने भीतर मौजूद शैतान के ज़हर से छुटकारा पाने के लिए हमें हर पल परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए। हमें हमेशा अपनी आत्मा के भीतर यह अभ्यास करना चाहिए कि हम परमेश्वर के निकट आ सकें और हमें अपने सम्पूर्ण अस्तित्व पर परमेश्वर का प्रभुत्व होने देना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। मैंने देखा कि मैं डर-डर कर जी रही थी, गिरफ्तारी और पीट-पीट कर मारे जाने से भयभीत थी। मैं शैतानी चालों का शिकार बन रही थी। शैतान ने मेरी कमजोरी पकड़ ली थी ताकि वह मुझे रोक सके और मैं कर्तव्य निभाने का साहस न कर सकूँ, परमेश्वर में आस्था रखना छोड़ दूँ। फिर उसे धोखा देकर धीरे-धीरे उससे दूर हो जाऊँ। मुझे शैतानी चालों का ओर-छोर समझना था। मेरे सामने ऐसे हालात जितने ज्यादा आएँ, उतना ही ज्यादा परमेश्वर के करीब जाकर उसका आसरा लेना चाहिए और उसके वचनों के अनुसार चलना चाहिए। अगर गिरफ्तार हो भी गई, तो मैं शिकायत नहीं, समर्पण करूँगी। अपनी गवाही में अडिग रहूँगी और परमेश्वर को संतुष्ट करूँगी।
मैंने अपने घर में रखी उस नोटबुक के बारे में सोचा जिसमें भाई-बहनों के फोन नंबर दर्ज थे। मुझे वापस लौटना ही था; वरना अगर यह पुलिस को मिल गई तो सभी पकड़े जाएंगे। लेकिन पुलिस शायद मेरे घर की निगरानी कर रही हो—क्या मैं उसके हाथों में नहीं खेल रही होऊँगी? इस उलझन में घिरते ही मैंने परमेश्वर के वचनों को याद किया। “तुम लोगों में से प्रत्येक अपने को मेरे साथ बहुत अनुकूल समझता है, परंतु यदि ऐसा होता, तो फिर यह अकाट्य प्रमाण किस पर लागू होगा? तुम लोगों को लगता है कि तुम्हारे अंदर मेरे प्रति बहुत ईमानदारी और निष्ठा है। तुम लोग सोचते हो कि तुम बहुत ही रहमदिल, बहुत ही करुणामय हो और तुमने मेरे प्रति बहुत समर्पण किया है। तुम लोग सोचते हो कि तुम लोगों ने मेरे लिए पर्याप्त से अधिक किया है। लेकिन क्या तुम लोगों ने कभी इसे अपने कामों से मिलाकर देखा है? ... तुम लोग अपने बच्चों या अपने पति या आत्म-रक्षा के लिए मुझे बाहर निकाल देते हो। मेरी चिंता करने के बजाय तुम लोग अपने परिवार, अपने बच्चों, अपनी हैसियत, अपने भविष्य और अपनी संतुष्टि की चिंता करते हो। तुम लोगों ने बातचीत या कार्य करते समय कभी मेरे बारे में सोचा है? ठंड के दिनों में तुम लोगों के विचार अपने बच्चों, अपने पति, अपनी पत्नी या अपने माता-पिता की तरफ मुड़ जाते हैं। गर्मी के दिनों में भी तुम सबके विचारों में मेरे लिए कोई स्थान नहीं होता। जब तुम अपना कर्तव्य निभाते हो, तब तुम अपने हितों, अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा, अपने परिवार के सदस्यों के बारे में ही सोच रहे होते हो। तुमने कब मेरे लिए क्या किया है? तुमने कब मेरे बारे में सोचा है? तुमने कब अपने आप को, हर कीमत पर, मेरे लिए और मेरे कार्य के लिए समर्पित किया है? मेरे साथ तुम्हारी अनुकूलता का प्रमाण कहाँ है? मेरे साथ तुम्हारी वफ़ादारी की वास्तविकता कहाँ है? मेरे साथ तुम्हारी आज्ञाकारिता की वास्तविकता कहाँ है? कब तुम्हारे इरादे केवल मेरे आशीष पाने के लिए नहीं रहे हैं? तुम लोग मुझे मूर्ख बनाते और धोखा देते हो, तुम लोग सत्य के साथ खेलते हो, तुम सत्य के अस्तित्व को छिपाते हो, और सत्य के सार को धोखा देते हो। इस तरह मेरे ख़िलाफ़ जाने से भविष्य में क्या चीज़ तुम लोगों की प्रतीक्षा कर रही है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें मसीह के साथ अनुकूलता का तरीका खोजना चाहिए)। हर सवाल मेरे दिल को परमेश्वर के आरोप जैसा चुभा। जब सब जगह शांति थी, मैं अपने कर्तव्य के लिए घर-बार और नौकरी छोड़ सकती थी। सोचती थी कि मैं परमेश्वर को समर्पित हूँ। लेकिन जब बड़ा लाल अजगर सचमुच गिरफ्तारियाँ करने लगा तो मैंने देखा कि मेरा आध्यात्मिक कद कितना छोटा है। पहले मैं सिर्फ खाली नारे और सिद्धांत बघारती थी। सचमुच के संकट ने मेरा असली आध्यात्मिक कद उजागर कर दिया। मैं बस अपने हित बचाने की सोच पाती थी। मैं कलीसिया कार्य का बचाव कतई नहीं कर रही थी। परमेश्वर की इच्छा का ख्याल नहीं कर रही थी। अगर कर रही होती तो कलीसिया के हितों की बात उठने पर परमेश्वर के लिए सब कुछ दाँव पर लगा देती, अपनी जान भी। मैंने परमेश्वर के वचनों की उन सब किताबों के बारे में सोचा। भाई-बहनों ने अपनी जान पर खेलकर इन्हें बाँटा था और कई लोग तो इन्हें इधर-उधर ले जाने के दौरान बड़ा लाल अजगर के हाथों गिरफ्तार भी कर लिए गए। कुछ पीट-पीट कर मार डाले गए। उन्होंने अपनी जिंदगी या मौत की परवाह नहीं की, ताकि भाई-बहन परमेश्वर के वचन पढ़ सकें; उन्होंने कर्तव्य निभाकर परमेश्वर को संतुष्ट किया। और मैं? मैंने कलीसिया के हितों का ख्याल नहीं किया। जब कुछ हुआ तो केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचा। मैं गिरफ्तारी और जानलेवा यातनाओं से डरती थी। अमूमन अपने हित में मैं किसी भी हद तक जा सकती थी, लेकिन अब कलीसिया की खातिर मैं छोटा-सा त्याग भी नहीं कर पाई। उन भाई-बहनों की तुलना में मैं निपट स्वार्थी थी। मुझे परमेश्वर की इच्छा का कोई ख्याल नहीं था। अब जबकि कलीसिया अगुआ गिरफ्तार हो चुकी है, तो उपयाजक के रूप में मेरे लिए कलीसिया कार्य की सुरक्षा के बजाय खुद को छिपाना ज्यादा सुरक्षित था, लेकिन मैंने कर्तव्य निभाने और गवाही देने का मौका गँवा दिया। तब मेरी जिंदगी के मायने क्या थे? क्या मैं चलती-फिरती लाश भर नहीं थी? यह सोचकर मैंने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं आज पकड़ी जाती हूँ या नहीं, यह पूरी तरह तुम्हारे हाथ में है। मुझे आस्था और बुद्धि दो ताकि मैं तुम्हारा आसरा पाकर अपना कर्तव्य निभा सकूँ।”
रात के लगभग 2 बजे, मैं पास में ही रहने वाली एक बहन के घर गई। पता चला कि पुलिस मेरे करीब के कई अन्य घरों में गई थी। कुछ भाई-बहन भागकर गिरफ्तारी से बच गए। उन्होंने बताया, पुलिस बेशक दुबारा आएगी और मुझे तुरंत लौट जाने को कहा। मैंने आसपास घूमने का साहस तक नहीं किया। मैंने देखा कि घर के दरवाजे पर कोई नहीं था, इसलिए मैं तेजी से घर गई और फोन नंबरों वाली नोटबुक उठा ली। तब मैंने चैन की साँस ली।
फिर मैं भाई याँग गुआँग के पास गई। मुझे देखते ही उसने डरकर कहा, “कल मुझे और मेरी पत्नी को गिरफ्तार किया गया था। फिर रात उन्होंने हमें छोड़ दिया। कई और भाई-बहन भी पकड़े गए हैं।” मैं वहाँ से तुरंत भागी। लौटते हुए मैं सोच रही थी कि स्थिति बिगड़ रही है, पूरे इलाके में गिरफ्तारियाँ हो रही हैं। अगर यहूदा ने मेरे साथ गद्दारी की होगी तो पुलिस के पास मेरा सारा ब्योरा होगा और इतनी निगरानी के चलते मैं किसी भी पल पकड़ी जा सकती हूँ। मैं उनकी यातनाएँ न सह पाई तो क्या होगा? इस ख्याल ने मुझे आतंकित कर दिया। छिप जाने से मैं थोड़ी-सी सुरक्षित रहूँगी, लेकिन खोज-खबर लेने का काम पूरा नहीं हुआ था। अगर अभी जाकर छिप गई तो क्या मैं भगोड़ी नहीं बन जाऊँगी? इतने बरस विश्वासी रहकर मैंने परमेश्वर के वचनों का कितना ज्यादा सिंचन सुख पाया है। अगर संकट की इस घड़ी में भाग खड़ी हुई, अपना कर्तव्य और जिम्मेदारी नहीं निभाई, तो मुझमें न तो अंतरात्मा होगी, न ही मानवता। क्या मैं विश्वासी मानी भी जाऊँगी? मैं परमेश्वर को धोखा देने वाले यहूदा से अलग नहीं कहलाऊँगी। यह सोचकर मैंने मन में पक्का कर लिया कि बचकर भाग जाने और निरर्थक जिंदगी जीने के बजाय गिरफ्तार होना और पुलिस के हाथों मरना पसंद करूँगी। मुझे अपनी गवाही में मजबूती से खड़े रहकर, परमेश्वर को संतुष्ट करना और भरसक अपना कर्तव्य पूरा करना था। इसलिए मैं सीधे अपने मेजबान के घर गई।
उस शाम मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “मेरी योजना में, शैतान आरंभ से ही, प्रत्येक कदम का पीछा करता आ रहा है। मेरी बुद्धि की विषमता के रूप में, हमेशा मेरी वास्तविक योजना को बाधित करने के तरीक़े और उपाय खोजने की कोशिश करता रहा है। परंतु क्या मैं उसके कपटपूर्ण कुचक्रों के आगे झुक सकता हूँ? स्वर्ग में और पृथ्वी पर सब कुछ मेरी सेवा करते हैं; शैतान के कपटपूर्ण कुचक्र क्या कुछ अलग हो सकते हैं? ठीक यही वह जगह है जहाँ मेरी बुद्धि बीच में काटती है; ठीक यही वह है जो मेरे कर्मों के बारे में अद्भुत है, और यही मेरी पूरी प्रबंधन योजना के परिचालन का सिद्धांत है। राज्य के निर्माण के युग के दौरान भी, मैं शैतान के कपटपूर्ण कुचक्रों से बचता नहीं हूँ, बल्कि वह कार्य करता रहता हूँ जो मुझे करना ही चाहिए। ब्रह्माण्ड और सभी वस्तुओं के बीच, मैंने अपनी विषमता के रूप में शैतान के कर्मों को चुना है। क्या यह मेरी बुद्धि का आविर्भाव नहीं है? क्या यह ठीक वही नहीं है जो मेरे कार्यों के बारे में अद्भुत है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 8)। परमेश्वर के वचनों में मुझे उसकी सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि के दर्शन हुए। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर का दुश्मन है। यह बुरी तरह ईसाइयों को गिरफ्तार कर और सता कर परमेश्वर का कार्य बिगाड़ता है और फिजूल में उम्मीद करता है कि वह मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के कार्य को नष्ट कर देगा। लेकिन बड़े लाल अजगर की इन करतूतों से हम इसका यह दुष्ट सार जान लेते हैं कि यह मानवता को नुकसान पहुँचा कर परमेश्वर विरोधी काम करता है और हमें इससे दिल से नफरत कर सारे संबंध तोड़ लेने चाहिए। ये गिरफ्तारियाँ और जुल्मो-सितम सच्चे-झूठे विश्वासियों का भेद खोल देते हैं, भेड़-बकरियों और गेहूँ-घास का फर्क भी बता देते हैं। संकट की घड़ी में कुछ लोग डर के मारे अपना कर्तव्य नहीं निभाते या आस्था छोड़ देते हैं, कुछ लोग गिरफ्तारी और यातनाएँ सहने के बाद यहूदा बनकर परमेश्वर को धोखा देते हैं। ये लोग भूसे की तरह उजागर कर हवा में उड़ा दिये जाते हैं। क्या इससे परमेश्वर की बुद्धिमता और धार्मिकता साबित नहीं हो जाती? इससे मुझे प्रभु यीशु के ये वचन याद आ गए, “क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा” (मत्ती 16:25)। मैंने अलग-अलग युगों के उन संतों के बारे में सोचा जो परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने में शहीद हो गए। कुछ लोगों को सूली पर उल्टा लटका दिया गया; कुछ के सिर कलम कर टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए। वे मारे जरूर गए, मगर उनकी मृत्यु सार्थक थी। लेकिन जो परमेश्वर को धोखा देकर यहूदा बन गए, वे अब भी जिंदा नजर तो आते हैं लेकिन उनके दिलों के अंदर वेदना भरी है। वे जिंदा लाशों की तरह हैं, अथाह कष्टों में हैं। मरने के बाद उनकी आत्माएँ नरक में जाकर दंड भुगतेंगी। यह ऐसी चीज थी, जिसे मैं पूरी तरह नहीं समझती थी। बल्कि, मैं अपने कार्य से मुँह चुराकर छिपना चाहती थी। अगर मैंने कर्तव्य में लापरवाही बरतकर कलीसिया कार्य को नुकसान पहुँचाया तो यह अपराध होगा—एक अमिट दाग। अगर मैं कर्तव्य के लिए समर्पित होकर अपना बलिदान दे सकूँ, तो गिरफ्तार होकर पीट-पीटकर मारे जाने के बावजूद, मैं परमेश्वर को गवाही देकर शैतान को लज्जित कर रही होऊँगी। मेरी मृत्यु मूल्यवान और सार्थक होगी। उसके बाद मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े। “शैतान चाहे जितना भी ‘सामर्थ्यवान’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और योजनाएँ जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं का पालन करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानव-जाति के लिए कार्य करना, और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना के काम आना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों से मैं उसकी सामर्थ्य और अधिकार के दर्शन कर सकी। चाहे सजीव या निर्जीव, हर चीज परमेश्वर के हाथ में है। शैतान भी परमेश्वर के कार्य में योगदान देता है—विषमता की तरह। सीसीपी हर तरह की चालें चलती है, कई लोगों और चीजों की ताकत का इस्तेमाल करती है, लेकिन परमेश्वर की अनुमति के बिना यह हमारा बाल भी बाँका नहीं कर सकती। जैसा कि यहोबा का अनुभव बताता है, शैतान ने हमला करके उसे आहत किया ताकि वह परमेश्वर को न माने और उसे ठुकरा दे। परमेश्वर ने शैतान को यहोबा से बुरी तरह पेश तो आने दिया मगर उसकी जिंदगी लेने की इजाजत नहीं दी और शैतान ने परमेश्वर के आदेश के खिलाफ जाने की जुर्रत नहीं की। ठीक वैसे ही जैसे खोज-खबर लेने के काम में मैं एक के बाद एक खतरनाक स्थितियों से साफ-साफ बचकर निकलती रही। यह पूरी तरह परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा के कारण हुआ। इन सभी अनुभवों में मैंने परमेश्वर का अधिकार और संप्रभुता देखी है। अगर परमेश्वर नहीं चाहेगा तो बड़ा लाल अजगर मुझे पकड़ नहीं पाएगा। अगर वह चाहेगा तो मैं गिरफ्तारी से बच नहीं पाऊँगी। इस समझ से मुझे आस्था मिली। मैं अपनी जिंदगी परमेश्वर के हाथों में सौंपने और उसके आयोजनों के लिए समर्पित होने को राजी हो गई।
बाद में मैंने देखा कि पुलिस ने उस घर की छानबीन नहीं की जहाँ बड़े अगुआ सभाएँ करते थे। एक सभा जल्द होने वाली थी, मुझे डर था कि पुलिस और ज्यादा अगुआओं को गिरफ्तार करने की फिराक में चुप बैठी है। उन्हें सूचित न किया तो अगुआ पकड़े जा सकते हैं, फिर और भी ज्यादा लोग फँसाए जाएंगे। हमने तेजी से कुछ तरकीबें सोचीं और कुछ घुमा-फिरा कर कलीसिया की स्थिति आखिरकार बड़े अगुआओं को बता दी। हमारी सुरक्षा के मद्देनजर अगुआओं ने हमें पहले छिप जाने को कहा। कुछ दिनों बाद उनका एक पत्र मिला जिसमें लिखा था कि हमारे इलाके में बड़े लाल अजगर के धर-पकड़ अभियान के दौरान किताबें सुरक्षित रखने के काम आने वाले दो घरों पर छापा पड़ा था। सिर्फ एक घर बचा है और वहाँ से तुरंत सब कुछ हटाना जरूरी है। किताबों के रखवालों को जानने वाले बाकी सभी लोग पकड़े जा चुके थे, सिर्फ मैं बची थी, और उस इलाके और कलीसिया के सदस्यों से ज्यादा वाकिफ थी, इसलिए किताबें हटाने में वे मुझसे मदद चाहते थे। मैं बखूबी जानती थी कि इन हालात में मेरा वहाँ जाना ही सबसे अच्छा है, और यह ऐसी जिम्मेदारी है जिसे टाला नहीं जा सकता। लेकिन अब स्थिति इतनी तनावपूर्ण थी और बड़ा लाल अजगर अब भी लोगों का पीछा कर रहा था। मेरा इस वक्त वहाँ जाना क्या ओखली में सिर डालने जैसा नहीं रहेगा? मैं कुछ डर-सी गई। लेकिन मुझे ख्याल आया कि स्थिति तो परमेश्वर के हाथ में है, और अगर परमेश्वर ने नहीं चाहा तो बड़ा लाल अजगर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इसलिए मैंने मदद करने का फैसला किया। मैंने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मुझे यह कर्तव्य सौंपा गया है और मैं अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार हूँ। आगे चाहे जो हो, मैं तुम्हारी व्यवस्थाओं के आगे समर्पण करना चाहती हूँ। भले ही पकड़ ली जाऊँ, यातनाएँ सहनी पड़ें, फिर भी कभी गद्दारी नहीं करूँगी। मेरी भक्ति तुम्हारे लिए होगी और मैं शैतान को लज्जित करने के लिए मजबूती से गवाही दूँगी।”
लिहाजा मैंने आसपास पूछकर किताबें रखने वाला घर खोजा। वहाँ मिले भाई ने कहा कि सात-आठ पुलिस अफसर पहले ही उसके घर आकर एक को गिरफ्तार कर चुके हैं। वे बिना कुछ कहे उसकी पत्नी को उठाकर ले गये, उन पर 2,000 युआन जुर्माना थोपा है, लेकिन उन्हें वहाँ रखी किताबें नहीं मिलीं—इन्हें जल्द से जल्द हटाना जरूरी था। हमने किताबों के पैकेट तेजी से कार में रखे। चलती कार में मेरा दिल एक पल के लिए भी परमेश्वर से नहीं हटा। अंत में हमने किताबें एक सुरक्षित जगह रखवा दीं और कोई परेशानी नहीं हुई। मैंने बार-बार परमेश्वर को धन्यवाद दिया।
इस पूरे अनुभव के बारे में दुबारा सोचने पर, मैं परमेश्वर की बुद्धिमता और सर्वशक्तिमत्ता देख सकती हूँ, यह भी कि मेरी आस्था कितनी छिछली थी। बड़े लाल अजगर ने गिरफ्तारियाँ न की होतीं तो मैं अपना आध्यात्मिक कद साफ-साफ न देख पाती, खासकर अपने स्वार्थ और मृत्यु के भय को नहीं देख पाती, न ही मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमान सत्ता की समझ मिलती। मुझे यह अनुभव भी हुआ कि परमेश्वर हमारे साथ है, और अगर हम परमेश्वर का आसरा लेते रहे, वह हमारे बीच रहेगा और हमारे लिए रास्ता खोलता रहेगा। यह एक ऐसी समझ है जो मुझे शांतिमय माहौल में नहीं मिल सकती थी।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?