स्वार्थ नीचता है

06 मई, 2024

यांग शुओ, चीन

2021 की शुरुआत में, बहन झांग यीचेन और मैं एक नए स्थापित कलीसिया में साथ काम कर रहे थे। यीचेन विश्वास के मार्ग पर नई थी और उसे जीवन का अनुभव भी अधिक नहीं था, लेकिन उसमें काबिलियत थी और वह सक्रिय रूप से सत्य का अनुसरण करती थी, तो मैं उसे यथाशीघ्र विकसित करना चाहती थी ताकि कलीसिया का काम और अधिक सुचारू रूप से चले। मैंने जानबूझकर यीचेन को कलीसिया की तरह-तरह की परियोजनाओं में शामिल किया और जहाँ कहीं उसमें कोई कमी दिखती, मैं उसकी मदद करती। प्रशिक्षण की अवधि के बाद, यीचेन ने काफी प्रगति की। लेकिन कई महीने बाद उसे पदोन्नत कर कोई और काम दे दिया गया। मैं एक काबिल सहायक नहीं खोना चाहती थी, इसलिए मेरी इच्छा नहीं थी कि वह जाए। मुझे लगा कि आगे से कलीसिया का सारा काम मैं अकेले कैसे संभालूँगी, कड़ी मेहनत करना तो एक बात थी, अगर मेरी कार्य-क्षमता पर असर पड़ा, तो लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे? फिर मैंने सोचा, अगर उसे बड़ा काम सौंपा जा रहा है, तो इससे कलीसिया के कार्य को ही तो लाभ होगा। मुझे इतना स्वार्थी भी नहीं होना चाहिए—अगर यीचेन चली गई, तो मैं किसी और को तैयार कर लूँगी।

कुछ समय बाद ही, पास की कुछ कलीसियाओं ने सिंचन कार्यकर्ताओं के लिए एक सभा का आयोजन किया, ताकि वे संक्षेप में अपने अनुभव साझा कर सकें। अगुआ ने मुझे सभा में एक सिंचन कार्यकर्ता को भेजने के लिए कहा। मैंने बहन वांग मिंगशी को भेजने का विचार किया। वह सिंचन-कार्य में प्रभावी, कुशल और जिम्मेदार कार्यकर्ता थी। अगर मैं उसे सभा में भेजती हूँ, तो वह लौटकर और भी अधिक भाई-बहनों को विकसित कर सकती है, इस तरह कलीसिया का सिंचन-कार्य और भी प्रभावी हो जाएगा और मेरी छवि अच्छी बनेगी। मैंने मिंगशी को सभा में भेज दिया। लेकिन मिंगशी के सभा से लौटने के कुछ दिनों बाद, अगुआ उसे ढूँढ़ने लगी। मैंने सोचा : “क्या अगुआ मिंगशी को तरक्की देने जा रही है? वह तो हमारी कलीसिया की अनुभवी सिंचक है। अगर वह चली गई, तो क्या हमारे सिंचन-कार्य पर असर नहीं पड़ेगा? फिर भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? अगर मुझे यह पता होता तो मैं उसे सभा में कभी न भेजती।” बाद में, मिंगशी ने बताया कि एक दूसरी कलीसिया को सिंचन-कार्यकर्ताओं की सख्त जरूरत है, तो अगुआ ने उसे वहाँ भेजने का फैसला किया है। मैं इस बात पर तैयार नहीं थी, लेकिन मुझे लगा, अगर मैं सहमत नहीं हुई, तो अगुआ कहीं मुझे स्वार्थी और परमेश्वर की इच्छा के प्रति लापरवाह न कहे। मेरे पास मिंगशी को जाने देने के अलावा कोई चारा नहीं था। उसके जाने के बाद, मेरा मन खिन्न हो गया। मैंने सोचा : “अगर नए विश्वासी यह सोचकर कलीसिया छोड़कर जाने लगे कि उनके सिंचन के लिए सक्षम कार्यकर्ता नहीं हैं, तो क्या अगुआ यह कहकर मेरी काट-छाँट करेगी कि मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करती? मैं इस तरह की शर्मिंदगी से कैसे निपटूँगी?” सोच-सोचकर मेरे अंदर प्रतिरोध पनपने लगा।

एक दिन, मैं सभा से घर लौटी, तो नवागतों का सिंचन करने वाली दो बहनें मुझसे बोलीं : “हमें अगुआ का एक पत्र मिला है जिसमें आपसे दो और सिंचन कार्यकर्ता खोजने और हमारा आकलन लिखने के लिए कहा गया है।” यह सुनकर मुझे बिल्कुल खुशी नहीं हुई। मैंने सोचा : “क्या अगुआ इन्हें भी कोई और काम सौंपने की सोच रही है? मैंने अभी-अभी इन दोनों बहनों को प्रशिक्षित करके इतना सारा काम सौंपा है जिससे मेरी चिंता थोड़ी कम हुई है। अगर इन्हें भी कोई और काम सौंप दिया गया, तो मेरा कार्यभार बढ़ जाएगा और मेरी कार्य-कुशलता पर भी निश्चित रूप से असर पड़ेगा। अगर ऐसा हुआ, तो क्या अगुआ यह नहीं कहेगी कि मैं अच्छी अगुआ नहीं हूँ?” यह सब सोचकर मैंने दुखी मन से कहा : “मुझे समझ नहीं आ रहा, आखिर अगुआ सोच क्या रही है।” दोनों बहनों ने मेरा लटका हुआ चेहरा देखकर हैरानी से पूछा : “क्या बात है? अगुआ तुम्हें सिर्फ दो और सिंचन-कार्यकर्ता खोजने को ही तो कह रही है?” उनकी बात सुनकर मुझे थोड़ी शर्मिंदगी हुई। मैंने खुद को संभाला और अनमने भाव से कहा, “ठीक है, तो हम कुछ योग्य उम्मीदवार चुनेंगे।” मैंने यह बात कह तो दी, लेकिन मेरा मन इस निर्णय का विरोध कर रहा था : “क्या अगुआ हमारी कलीसिया को कोई प्रतिभा प्रशिक्षण केंद्र समझ रही है? पहले वह इसे चाहती थी, अब वह उसे चाहती है। अब जाकर तो कलीसिया के काम में प्रगति होनी शुरू हुई है, लेकिन अगर वह इन प्रतिभाओं को ऐसे ही दूसरे काम सौंपती रही, तो हमारा काम कैसे आगे बढ़ेगा?” सोच-सोचकर मुझे बुरा लग रहा था और अगुआ के प्रति मन में कुछ कटुता का भाव पनप रहा था। खैर, मैं अपना कर्तव्य करती रही, लेकिन पहले जैसा उत्साह नहीं रहा। कुछ समय बाद एक सभा के दौरान अगुआ ने कहा कि वह भाई झाओ चेंगज़ी को तरक्की देना चाहती है, इसलिए उसके बारे में उसे और अधिक जानकारी चाहिए। यह सुनते ही मेरे अंदर द्वेष-भाव लौट आया। मैंने सोचा, “चेंगज़ी अपना कर्तव्य बहुत अच्छे से कर रहा है और मैं उसे सिंचन-कार्य सौंपना चाहती हूँ। अगर इन तमाम लोगों को दूसरी जगह भेज दिया गया, तो मैं यह सारा काम अकेले कैसे करूँगी? क्या मैं अच्छे परिणाम दे पाऊँगी?” सोच-सोचकर मुझे गुस्सा आने लगा : “ठीक है, जो करना है, करो! मैं कलीसिया के काम में बाधा बनने वाली कौन होती हूँ।” उसके बाद, मैं शांत नहीं रह पाई और सभा के दौरान बेचैन रही। सभा के बाद, मैं भारी मन से घर लौटी और अगुआ को एक पत्र लिखने का फैसला किया कि वह चेंगज़ी को फिर से कोई और काम न सौंपे। उस समय मुझे लगा कि मैं बेवकूफी कर रही हूँ और मुझे पत्र नहीं लिखना चाहिए। लेकिन फिर भी मेरी बेचैनी और खिन्नता कम नहीं हुई।

बाद में, अगुआ ने हमारे साथ एक सभा की जिसमें मैंने अपनी हाल की स्थिति और व्यवहार के बारे में संगति की। अगुआ ने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश दिखाया : “मसीह-विरोधियों के स्वार्थ और दुष्टता का सार स्पष्ट है; उनकी इस तरह की अभिव्यक्तियाँ विशेष रूप से प्रमुख हैं। कलीसिया उन्हें एक काम सौंपती है, और अगर वह प्रसिद्धि और लाभ लाता है, और उन्हें अपना चेहरा दिखाने देता है, तो वे उसमें बहुत रुचि लेते हैं और उसे स्वीकारने को तैयार रहते हैं। अगर वह ऐसा कार्य है, जिससे सराहना नहीं मिलती या जिसमें लोगों को अपमानित करना शामिल है, या जिसमें उन्हें लोगों के बीच जाने का मौका नहीं मिलता या जिससे उनकी हैसियत या प्रतिष्ठा को कोई लाभ नहीं पहुँचता, तो उसमें उनकी कोई रुचि नहीं होती, और वे उसे स्वीकार नहीं करते, मानो उस काम का उनसे कोई लेना-देना न हो, और वह ऐसा कार्य न हो जो उन्हें करना चाहिए। जब वे कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो इस बात की कोई संभावना नहीं होती कि वे उन्हें हल करने के लिए सत्य की तलाश करेंगे, बड़ी तसवीर देखने की कोशिश करना और कलीसिया के काम पर ध्यान देना तो दूर की बात है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर के कार्य के दायरे में, कार्य की समग्र आवश्यकताओं के आधार पर, कुछ कर्मियों का तबादला हो सकता है। अगर किसी कलीसिया से कुछ लोगों का तबादला कर दिया जाता है, तो उस कलीसिया के अगुआओं को समझदारी के साथ इस मामले से कैसे निपटना चाहिए? अगर वे समग्र हितों के बजाय सिर्फ अपनी कलीसिया के हितों से ही सरोकार रखते हैं, और अगर वे लोगों को स्थानांतरित करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं होते, तो इसमें क्या समस्या है? कलीसिया-अगुआ के रूप में, क्यों वे परमेश्वर के घर की समग्र व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने में असमर्थ रहते हैं? क्या ऐसा व्यक्ति परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशील है? क्या वह कार्य की बड़ी तस्वीर के प्रति सचेत होता है? अगर वह परमेश्वर के घर के कार्य के बारे में समग्र रूप से नहीं सोचता, बल्कि सिर्फ अपनी कलीसिया के हितों के बारे में सोचता है, तो क्या वह बहुत स्वार्थी और घृणित नहीं है? कलीसिया-अगुआओं को परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं, और परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं और समन्वय के प्रति बिना शर्त समर्पित होना चाहिए। यही सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है। जब परमेश्वर के घर के कार्य को आवश्यकता हो, तो चाहे वे कोई भी हों, सभी को परमेश्वर के घर के समन्वय और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहिए, और किसी एक अगुआ या कार्यकर्ता द्वारा नियंत्रित नहीं होना चाहिए, मानो वे उसके हों या उसके निर्णयों के अधीन हों। परमेश्वर के चुने हुए लोगों की परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता बिल्कुल स्वाभाविक और उचित है, जिसकी किसी के द्वारा अवहेलना नहीं की जा सकती। जब तक कोई अगुआ या कार्यकर्ता कोई गलत तबादला नहीं करता, जो सिद्धांत के अनुसार न हो—जिस मामले में उसकी अवज्ञा की जा सकती है—तब तक परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों को आज्ञापालन करना चाहिए, और किसी अगुआ या कार्यकर्ता को किसी को नियंत्रित करने का प्रयास करने का अधिकार या कोई कारण नहीं है। क्या तुम लोग कहोगे कि ऐसा भी कोई कार्य होता है जो परमेश्वर के घर का कार्य नहीं होता? क्या कोई ऐसा कार्य होता है जिसमें परमेश्वर के राज्य-सुसमाचार का विस्तार शामिल नहीं होता? यह सब परमेश्वर के घर का ही कार्य होता है, हर कार्य समान होता है, और उसमें कोई ‘तेरा’ और ‘मेरा’ नहीं होता। अगर तबादला सिद्धांत के अनुरूप और कलीसिया के कार्य की आवश्यकताओं पर आधारित है, तो इन लोगों को वहाँ जाना चाहिए जहाँ इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। फिर भी, जब इस तरह की परिस्थिति का सामना करना पड़े तो मसीह-विरोधियों की प्रतिक्रिया क्या होती है? वे इन उपयुक्त लोगों को अपने साथ रखने के लिए तरह-तरह के कारण और बहाने ढूँढ़ते हैं और केवल दो साधारण लोगों की पेशकश करते हैं, और फिर तुम पर शिकंजा कसने के लिए कोई बहाना ढूँढते हैं, या तो यह कहते हुए कि उनके पास काम बहुत है या यह कि उनके पास लोग कम हैं, लोगों का मिलना मुश्किल होता है, यदि इन दोनों को भी स्थानांतरित कर दिया गया, तो इसका काम पर असर पड़ेगा। और वे तुमसे ही पूछते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए, और तुम्हें यह महसूस कराते हैं कि लोगों को स्थानांतरित करने का मतलब है कि आप उनके एहसानमंद हैं। क्या यह शैतान के काम करने का तरीका नहीं है? अविश्वासी लोग इसी तरह से काम किया करते हैं। जो लोग कलीसिया में हमेशा अपने हितों की रक्षा करने का प्रयास करते हैं—क्या वे अच्छे लोग होते हैं? क्या वे सिद्धांत के अनुसार कार्य करने वाले लोग होते हैं? बिल्कुल नहीं। वे अविश्वासी और गैर-विश्वासी हैं। और क्या यह काम स्वार्थी और नीच नहीं है? अगर मसीह-विरोधी के अधीनस्थ किसी अच्छी क्षमता वाले व्यक्ति को दूसरा कर्तव्य निभाने के लिए स्थानांतरित किया जाता है, तो अपने दिल में मसीह-विरोधी इसका हठपूर्वक विरोध करता और इसे नकार देता है—वह काम छोड़ देना चाहता है, और उसमें अगुआ या समूह-प्रमुख होने का कोई उत्साह नहीं रह जाता। यह क्या समस्या है? उनमें कलीसिया की व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता क्यों नहीं होती? उन्हें लगता है कि उनके ‘दाएँ हाथ जैसे व्यक्ति’ का तबादला उनके काम की उत्पादकता और प्रगति को प्रभावित करेगा, और परिणामस्वरूप उनकी हैसियत और प्रतिष्ठा प्रभावित होगी, जिससे उन्हें उत्पादकता की गारंटी देने के लिए कड़ी मेहनत करने और ज्यादा कष्ट उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा—जो आखिरी चीज है, जिसे वे करना चाहते हैं। वे सुविधाभोगी हो गए हैं, और ज्यादा मेहनत करना या अधिक कष्ट उठाना नहीं चाहते, इसलिए वे उस व्यक्ति को जाने नहीं देना चाहते। अगर परमेश्वर का घर तबादले पर जोर देता है, तो वे बहुत हंगामा करते हैं, यहाँ तक कि अपना काम करने से भी मना कर देते हैं। क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? परमेश्वर के घर द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को केंद्रीय रूप से आवंटित किया जाना चाहिए। इसका किसी अगुआ, टीम-प्रमुख या व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। सभी को सिद्धांत के अनुसार कार्य करना चाहिए; यह परमेश्वर के घर का नियम है। जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते, जब वे लगातार अपनी हैसियत और हितों के लिए साजिशें रचते हैं, और अपनी शक्ति और हैसियत मजबूत करने के लिए अच्छी क्षमता वाले भाई-बहनों से अपनी सेवा करवाते हैं, तो क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? बाहरी तौर पर, अच्छी क्षमता वाले लोगों को अपने पास रखना और परमेश्वर के घर द्वारा उनका तबादला न होने देना ऐसा प्रतीत होता है, मानो वे कलीसिया के काम के बारे में सोच रहे हों, लेकिन वास्तव में वे सिर्फ अपनी शक्ति और हैसियत के बारे में सोच रहे होते हैं, कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते। वे डरते हैं कि वे कलीसिया का काम खराब तरह से करेंगे, बदल दिए जाएँगे, और अपनी हैसियत खो देंगे। जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य के बारे में कोई विचार नहीं करते, सिर्फ अपनी हैसियत के बारे में सोचते हैं, परमेश्वर के घर के हितों को होने वाले नुकसान के लिए जरा भी खेद न करके अपनी हैसियत की रक्षा करते हैं, और कलीसिया के कार्य को हानि पहुँचाकर अपनी हैसियत और हितों की रक्षा करते हैं, तो यह स्वार्थी और नीच होना है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव के सार का सारांश (भाग एक))परमेश्वर के वचन उजागर करते हैं कि कैसे मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं। अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए, वे लोगों को जमा कर लेते हैं और उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं होते, उन्हें कलीसिया के काम की जरा भी चिंता नहीं होती। मैंने देखा कि खुद मेरा व्यवहार भी मसीह-विरोधी जैसा था। खासकर परमेश्वर के इन वचनों ने : “जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते, जब वे लगातार अपनी हैसियत और हितों के लिए साजिशें रचते हैं, और अपनी शक्ति और हैसियत मजबूत करने के लिए अच्छी क्षमता वाले भाई-बहनों से अपनी सेवा करवाते हैं, तो क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है?” मुझे अंदर तक बेध दिया। मैंने हाल ही के अपने व्यवहार पर विचार किया : जब मुझे पता चला कि मिंगशी को पदोन्नत किया जा सकता है, तो मुझे चिंता हुई कि इससे सिंचन-कार्य प्रभावित होगा और मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान होगा, तो मैं उसे जाने नहीं देना चाहती थी, बल्कि मुझे इस बात का भी अफसोस होने लगा कि मैं उसे सभा में न भेजती तो अच्छा होता। जब अगुआ ने मुझे दो और सिंचन-कर्ता ढूँढ़ने और बहनों का आकलन लिखने के लिए कहा, तो मुझे लगा अगुआ उन्हें भी कहीं और भेजने की योजना बना रही है, मैं प्रतिरोधी और तार्किक हो गई। अगुआ के प्रति वैर पाल लिया। जब अगुआ ने चेंगज़ी को पदोन्नत करना चाहा, तो मैं यह जानती थी कि वह पदोन्नति और प्रशिक्षण के सिद्धांतों पर खरा उतरता है, लेकिन जब मैंने यह सोचा कि अगर वह चला गया, तो इसका असर कलीसिया के सुसमाचार और सिंचन-कार्य पर क्या पड़ेगा, तो मैं उसे नहीं जाने देना चाहती थी। मैं भाई-बहनों को अपना अनिवार्य अंग मनाती थी, इसलिए अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को मजबूत करने और स्वार्थों की पूर्ति में मदद के लिए उन्हें अपने पास ही रखना चाहती थी। मुझे न तो कलीसिया के हितों की चिंता थी और न ही परमेश्वर को संतुष्ट करने की परवाह थी। मैं बेहद स्वार्थी और नीच थी। धर्मनिरपेक्ष दुनिया के अविश्वासी अपने उद्यमों के विस्तार और विकास के लिए अपनी शीर्ष प्रतिभा को अपने साथ रखने की खातिर हर हथकंडा अपनाते हैं। मैं भी अपने कर्तव्य को लेकर वैसी ही हरकतें कर रही थी। अपने कर्तव्य को निजी उद्यम मानकर, स्वयंसेवी सिद्धांतों के अनुसार पेश आ रही थी, और केवल अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत की फिक्र कर रही थी। परमेश्वर को इस तरह के कार्यों से घृणा और चिढ़ होती है⁠—मैं परमेश्वर का विरोध करने वाले मसीह-विरोधी मार्ग पर चल रही थी।

बाद में मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश मिला : “यदि कोई कहता है कि उसे सत्य से प्रेम है और वह सत्य का अनुसरण करता है, लेकिन सार में, जो लक्ष्य वह हासिल करना चाहता है, वह है अपनी अलग पहचान बनाना, दिखावा करना, लोगों का सम्मान प्राप्त करना और अपने हित साधना, और उसके लिए अपने कर्तव्य का पालन करने का अर्थ परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना या उसे संतुष्ट करना नहीं है बल्कि प्रतिष्ठा और हैसियत प्राप्त करना है, तो फिर उसका अनुसरण अवैध है। ऐसा होने पर, जब कलीसिया के कार्य की बात आती है, तो उनके कार्य एक बाधा होते हैं या आगे बढ़ने में मददगार होते हैं? वे स्पष्ट रूप से बाधा होते हैं; वे आगे नहीं बढ़ाते। कुछ लोग कलीसिया का कार्य करने का झंडा लहराते फिरते हैं, लेकिन अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे भागते हैं, अपनी दुकान चलाते हैं, अपना एक छोटा-सा समूह, अपना एक छोटा-सा साम्राज्य बना लेते हैं—क्या इस प्रकार का व्यक्ति अपना कर्तव्य निभा रहा है? वे जो भी कार्य करते हैं, वह अनिवार्य रूप से कलीसिया के कार्य को अस्त-व्यस्त और खराब करता है। उनके हैसियत और प्रतिष्ठा के पीछे भागने का क्या परिणाम होता है? पहला, यह इस बात को प्रभावित करता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर के वचनों को कैसे खाते-पीते हैं और सत्य को कैसे समझते हैं, यह उनके जीवन-प्रवेश में बाधा डालता है, उन्हें परमेश्वर में विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश करने से रोकता है और उन्हें गलत मार्ग पर ले जाता है—जो चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाता है, और उन्हें बरबाद कर देता है। और यह अंततः कलीसिया के साथ क्या करता है? यह गड़बड़ी, खराबी और विघटन है। यह लोगों के प्रसिद्धि और हैसियत के पीछे भागने का परिणाम है। जब वे इस तरह से अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो क्या इसे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना नहीं कहा जा सकता? जब परमेश्वर कहता है कि लोग अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को अलग रखें, तो ऐसा नहीं है कि वह लोगों को चुनने के अधिकार से वंचित कर रहा है; बल्कि यह इस कारण से है कि प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हुए लोग कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश को अस्त-व्यस्त कर देते हैं, यहाँ तक कि उनका दूसरों के द्वारा परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने, सत्य को समझने और इस प्रकार परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने पर भी प्रभाव पड़ सकता है। यह एक निर्विवाद तथ्य है। जब लोग अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हैं, तो यह निश्चित है कि वे सत्य का अनुसरण नहीं करेंगे और ईमानदारी से अपना कर्तव्य नहीं निभाएँगे। वे सिर्फ प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर ही बोलेंगे और कार्य करेंगे, और वे जो भी काम करते हैं, वह बिना किसी अपवाद के इन्हीं चीजों के लिए होता है। इस तरह से व्यवहार और कार्य करना, बिना किसी संदेह के, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना है; यह परमेश्वर के कार्य में विघ्न-बाधा डालना है, और इसके सभी विभिन्न परिणाम राज्य के सुसमाचार के प्रसार और कलीसिया के भीतर परमेश्वर की इच्छा के मुक्त प्रवाह में बाधा डालना है। इसलिए, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने वालों द्वारा अपनाया जाने वाला मार्ग परमेश्वर के प्रतिरोध का मार्ग है। यह उसका जानबूझकर किया जाने वाला प्रतिरोध है, उसे नकारना है—यह परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके विरोध में खड़े होने में शैतान के साथ सहयोग करना है। यह लोगों की हैसियत और प्रतिष्ठा के पीछे भागने की प्रकृति है। अपने हितों के पीछे भागने वाले लोगों के साथ समस्या यह है कि वे जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे शैतान के लक्ष्य हैं—वे ऐसे लक्ष्य हैं, जो दुष्टतापूर्ण और अन्यायपूर्ण हैं। जब लोग प्रतिष्ठा और हैसियत जैसे व्यक्तिगत हितों के पीछे भागते हैं, तो वे अनजाने ही शैतान का औजार बन जाते हैं, वे शैतान के लिए एक वाहक बन जाते हैं, और तो और, वे शैतान का मूर्त रूप बन जाते हैं। वे कलीसिया में एक नकारात्मक भूमिका निभाते हैं; कलीसिया के कार्य के प्रति, और सामान्य कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामान्य लक्ष्य पर उनका प्रभाव बाधा डालने और काम बिगाड़ने वाला होता है; उनका प्रतिकूल और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि सत्य का अभ्यास न करने और केवल अपने हितों की रक्षा रहने की प्रकृति और परिणाम बेहद गंभीर होते हैं। यह कलीसिया के काम को बाधित करना और शैतान की सेवा करना है। कलीसिया लोगों को इसलिए विकसित करती और तरक्की देती है ताकि उन्हें प्रशिक्षित कर उपयुक्त पदों पर नियुक्त किया जा सके और उनके कौशल का अधिकतम लाभ उठाया जा सके। यह भाई-बहनों के जीवन प्रवेश और कलीसिया के काम के लिए फायदेमंद होता है और परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप भी होता है—एक अगुआ के रूप में मुझे इस सकारात्मक चीज को संरक्षित कर इसके साथ खड़ा होना चाहिए। लेकिन भाई-बहनों को पदोन्नत होते देख, मैं खुश होने के बजाय अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार करने लगी। मुझे लगा ये भाई-बहन प्रभावी हैं, मेरे अनिवार्य सहायक और काबिल प्रतिनिधि हैं। अगर वे मेरी कलीसिया में कर्तव्य करते रहते, तो मुझे बहुत कम चिंता होती, हम अधिक प्रभावी ढंग से काम कर पाते जिससे मेरी हैसियत मजबूत बनी रहती। लेकिन जब एक के बाद दूसरे को पदोन्नत कर कहीं और भेज दिया गया, तो मेरे अंदर प्रतिरोध जागा, मुझे गुस्सा आया और मैं नहीं चाहती थी कि वे जाएँ। मैंने इस बात की चिंता नहीं की कि कलीसिया के काम के लिए क्या बेहतर है और न ही इस बात पर विचार किया कि किस तरह के वातावरण में उन्हें बेहतरीन प्रशिक्षण मिलेगा, जहाँ वे अपना कौशल दिखा पाएँगे। क्या मैं इसे अपना कर्तव्य-निर्वहन कहूँगी? मैं स्पष्ट रूप से शैतान के दूत के रूप में कार्य कर रही थी और कलीसिया के कार्य में बाधा डाल रही थी। मैं केवल अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए अपना कर्तव्य कर रही थी, इस नियत से मैं चाहे कितना भी काम करूँ, परमेश्वर उसे स्वीकार नहीं करेगा। मुझे धार्मिक जगत के पादरियों और एल्डरों का ख्याल आया जो अच्छी तरह जानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया ने प्रभु के लौटने की गवाही दी है, लेकिन फिर भी अपनी हैसियत और आय के चक्कर में वे अभी भी विश्वासियों को सच्चे मार्ग की जांच-पड़ताल करने और प्रभु का स्वागत करने से रोकने के लिए हर हथकंडा अपना रहे हैं। वे अपने विश्वासियों को अपनी निजी संपत्ति मानकर उन्हें मजबूती से अपने कब्जे में रखते हैं। वे विश्वासियों के लिए परमेश्वर से लड़कर मसीह-विरोधी और बुराई के दास बन गए हैं जिस कारण परमेश्वर ने उनकी निंदा कर धिक्कारा है। क्या मेरा व्यवहार इन पादरियों और एल्डरों से अलग था? अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया, तो धार्मिक जगत के फरीसियों की तरह मेरी भी वही गति होगी, मैं परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुंचाकर, उसके दंड और शाप की भागी बनूँगी।

उस समय मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश मिला : “अपने कर्तव्य को निभाने वाले सभी लोगों के लिए, फिर चाहे सत्य को लेकर उनकी समझ कितनी भी उथली या गहरी क्यों न हो, सत्य वास्तविकता में प्रवेश के अभ्यास का सबसे सरल तरीका यह है कि हर काम में परमेश्वर के घर के हित के बारे में सोचा जाए, और अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाओं, व्यक्तिगत मंशाओं, अभिप्रेरणाओं, घमंड और हैसियत का त्याग किया जाए। परमेश्वर के घर के हितों को सबसे आगे रखो—कम से कम इतना तो व्यक्ति को करना ही चाहिए। अपना कर्तव्य निभाने वाला कोई व्यक्ति अगर इतना भी नहीं कर सकता, तो उस व्यक्ति को कर्तव्य निभाने वाला कैसे कहा जा सकता है? यह अपने कर्तव्य को पूरा करना नहीं है। तुम्‍हें पहले परमेश्वर के घर के हितों के बारे में सोचना चाहिए, परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशील होना चाहिए, और कलीसिया के कार्य का ध्यान रखना चाहिए। इन चीजों को पहले स्थान पर रखना चाहिए; उसके बाद ही तुम अपनी हैसियतकी स्थिरता या दूसरे लोग तुम्‍हारे बारे में क्या सोचते हैं, इसकी चिंता कर सकते हो। क्या तुम लोगों को नहीं लगता कि जब तुम इसे दो चरणों में बाँट देते हो और कुछ समझौते कर लेते हो तो यह थोड़ा आसान हो जाता है? यदि तुम कुछ समय के लिए इस तरह अभ्यास करते हो, तो तुम यह अनुभव करने लगोगे कि परमेश्वर को संतुष्ट करना इतना भी मुश्किल काम नहीं है। इसके अलावा, तुम्‍हेंअपनी जिम्मेदारियाँ, अपने दायित्व और कर्तव्य पूरे करने चाहिए, और अपनी स्वार्थी इच्छाओं, मंशाओं और उद्देश्‍यों को दूर रखना चाहिए, तुम्‍हें परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखना चाहिए, और परमेश्वर के घर के हितों को, कलीसिया के कार्य को और जो कर्तव्य तुम्हें निभाना चाहिए, उसे पहले स्थान पर रखना चाहिए। कुछ समय तक ऐसे अनुभव के बाद, तुम पाओगेकि यह आचरण का एक अच्छा तरीका है। यह सरलता और ईमानदारी से जीना और नीच और भ्रष्‍ट व्‍यक्ति न होना है, यह घृणित, नीच और निकम्‍मा होने की बजाय न्यायसंगत और सम्मानित ढंग से जीना है। तुम पाओगेकि किसी व्यक्ति को ऐसे ही कार्य करना चाहिए और ऐसी ही छवि को जीना चाहिए। धीरे-धीरे, अपने हितों को तुष्‍ट करने की तुम्‍हारी इच्छा घटती चली जाएगी(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचन अभ्यास का मार्ग बताते हैं। अपने कर्तव्य-निर्वहन में सबसे महत्वपूर्ण है कलीसिया के हितों को प्राथमिकता देना और कलीसिया के काम की रक्षा के लिए अपने व्यक्तिगत हितों को अलग रखना। वास्तव में जिन लोगों में विवेक, तर्कशक्ति और मानवता होती है, वे लोग इस पर विचार करेंगे कि कार्य के लिए क्या अपेक्षित है और अगर लोगों को किसी और कार्य के लिए नियुक्त किया जाता है, तो वे कलीसिया की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होंगे। वे अपने हितों पर विचार नहीं करेंगे। एक अगुआ के रूप में किसी के भी काम का मुख्य पहलू भाई-बहनों का सिंचन और प्रतिभा का विकास करना होता है, जिससे हर भाई-बहन को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिले और वह उस कर्तव्य को करे जिसके लिए वह सबसे उपयुक्त है। परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर के होते हैं, किसी एक व्यक्ति के नहीं। कार्य की आवश्यकता को देखते हुए कलीसिया लोगों का चयन कर उन्हें नियुक्त कर सकती है और तय कर सकती है कि कौन किस कर्तव्य के लिए सबसे उपयुक्त है। मुझे अपने लिए लोगों को जमा करने का कोई अधिकार नहीं था। यह समझकर, मैं अपनी दैहिक इच्छाएं त्यागने के लिए तैयार थी, अब मैं स्वार्थी और नीच बनकर अपने हितों को प्राथमिकता नहीं देना चाहती थी।

एक दिन मुझे अगुआ का पत्र मिला, जिसमें मुझे चेंगज़ी का आकलन लिखने के लिए कहा गया था। वह मूल्यांकन करना चाहती थी कि क्या उसे सिंचन-कार्य की अगुआई करने के लिए पदोन्नत किया जा सकता है। मैंने सोचा : “चेंगज़ी फिलहाल हमारी कलीसिया के सुसमाचार और सिंचन-कार्य का प्रभारी है। अगर उसके जाने से हमारा काम प्रभावित हुआ, तो क्या अगुआ यह नहीं कहेगी कि मैं अक्षम हूँ?” तभी, मुझे लगा कि मैं फिर से स्वार्थी बनकर अपने हितों की सोच रही हूँ। चेंगज़ी एक प्रतिभाशाली सिंचन-कर्ता है, अगर उसे अधिक कार्य की जिम्मेदारी दी जाती है तो यह कलीसिया के काम के लिए अधिक हितकारी होगा। इससे उसे और प्रशिक्षण मिलेगा, इसलिए मुझे इसका समर्थन करना चाहिए। उस समय मुझे परमेश्वर के वचन याद आए, जिनमें कहा गया है : “परमेश्वर हमेशा सर्वोच्च और आदरणीय है, जबकि मनुष्य हमेशा नीच और निकम्मा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर हमेशा मनुष्यों के लिए बलिदान करता रहता है और उनके लिए खुद को समर्पित करता है; जबकि मनुष्य हमेशा लेता है और सिर्फ अपने लिए प्रयास करता है। परमेश्वर सदा से मानवजाति के अस्तित्व के लिए कष्ट उठा रहा है, लेकिन मनुष्य प्रकाश या धार्मिकता की खातिर कभी कोई योगदान नहीं करता। अगर मनुष्य कुछ समय के लिए प्रयास करता भी है, तो भी वह हलके-से झटके का भी सामना नहीं कर सकता, क्योंकि मनुष्य का प्रयास केवल अपने लिए होता है, दूसरों के लिए नहीं। मनुष्य हमेशा स्वार्थी होता है, जबकि परमेश्वर हमेशा निस्स्वार्थ होता है। परमेश्वर उस सबका स्रोत है, जो धार्मिक, अच्छा और सुंदर है, जबकि मनुष्य समस्त गंदगी और बुराई का वारिस और उसे व्यक्त करने वाला है। परमेश्वर कभी अपनी धार्मिकता और सुंदरता का सार नहीं बदलेगा, जबकि मनुष्य किसी भी समय और किसी भी स्थिति में धार्मिकता से विश्वासघात करने और परमेश्वर से दूर जाने में पूरी तरह से सक्षम है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के स्वभाव को समझना बहुत महत्वपूर्ण है)। परमेश्वर अत्यंत पवित्र है! परमेश्वर का कभी कोई स्वार्थ नहीं होता, वह जो भी कार्य करता है या लोगों के लिए जिस किसी भी परिस्थिति का निर्माण करता है, वह ऐसा हमेशा लोगों के जीवन को ध्यान में रखकर करता है, हमें शुद्ध करने और हमारे भ्रष्ट स्वभावों को बदलने के लिए करता है, ताकि हम बचाए जा सकें और सामान्य मानवता में जी सकें। मैंने आत्म-चिंतन किया और देखा कि जैसे ही परमेश्वर द्वारा निर्मित परिस्थिति से मेरे हितों को खतरा हुआ, मैंने शिकायत की, विरोध किया और मैं हद दर्जे की स्वार्थी और नीच बन गई। जब परमेश्वर की पवित्रता और निस्वार्थता पर विचार किया, तो मुझे शर्म आई, अफसोस और पछतावा हुआ। मुझे एहसास हुआ कि इस तरह जीना घृणास्पद, नीचता और निकम्मापन है। केवल अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए जीना भयंकर स्वार्थी और नीच होना है जिसे त्यागना पड़ेगा। मुझे कलीसिया के हितों को अपनी पहली प्राथमिकता बनाना होगा। मैंने चेंगज़ी के सभी मूल्यांकन एकत्र किए और अगुआ को सौंप दिए। उसके बाद वह निरीक्षक के रूप में पदोन्नत कर दिया गया। इस तरह अभ्यास करने से मुझे ठहराव और सुकून महसूस हुआ।

कुछ समय बाद मैंने गौर किया कि बहन ली हुई में अच्छी काबिलियत है, वह सत्य पर विस्तृत और सिलसिलेवार तरीके से संगति करती थी, भाई-बहनों के साथ प्रेमपूर्ण और धैर्यवान थी, उसमें सुसमाचार फैलाने और नए विश्वासियों का सिंचन करने की आवश्यक प्रतिभा थी और प्रशिक्षण के लिए उपयुक्त थी। चेंगज़ी के जाने के बाद हमारे सुसमाचार कार्य को कोई नुकसान नहीं हुआ, बल्कि उसमें थोड़ा-बहुत सुधार ही हुआ। पहले मुझे लग रहा था कि उन लोगों के जाने के बाद हमारे काम पर असर पड़ेगा। लेकिन अब लगा कि मेरी सोच एकदम गलत थी। पहले से मौजूद प्रतिभाओं पर भरोसा करने के बहाने मैं व्यावहारिक काम नहीं कर रही थी। वास्तव में दूसरों के लिए दयालु और सहानुभूतिपूर्ण होना महत्वपूर्ण है। अगर आप परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशील हैं, अपने हित में काम न करें, जैसे ही कुछ लोगों को किसी दूसरे काम पर भेजा जाए, आप नई प्रतिभाओं को प्रशिक्षित करें, अपने काम में आ रही समस्याओं को समय पर हल कर लें, तो आपको परमेश्वर का मार्गदर्शन मिलेगा। आपके काम में लगातार सुधार होगा। परमेश्वर का धन्यवाद!

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