उत्पीड़न और पीड़ा ने मेरे भीतर परमेश्वर के प्रति प्रेम को और बढ़ा दिया
मेरा नाम लियु झेन है। मेरी आयु 78 बरस की है, और मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की एक सामान्य ईसाई भर हूँ। मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आभारी हूँकि उन्होंने मुझे, गाँव की एक बुढ़िया को चुना जो दुनिया की नज़र में मामूली है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्यों को स्वीकार करने के बाद, मैं हर दिन परमेश्वर से प्रार्थना करती थी, परमेश्वर के वचनों के पाठ सुनती थी, और बैठकों में जाकर अपने भाइयों व बहनों के साथ सहभागिता करती थी, और धीरे-धीरे, मैं कुछ सत्यों को समझने लगीऔर कुछ चीजों के बारे में स्पष्ट समझ हासिल करने लगी। मैंने खुद को आनंद से सराबोर महसूस किया, और मुझे अभूतपूर्व खुशी का एहसास हुआ। मैं बूढ़ी हूँ और मुझे चलने में तकलीफ होती है इसलिए कलीसिया बैठकों के लिए घर से निकलना मेरे लिए कठिन था, तो मेरी सुविधा के लिए मेरे भाई-बहन मेरे घर पर बैठकें करते थे। जाड़ों की ठंड या गर्मियों की तपन में भी उन्होंने एक भी बैठक में नागा नहीं किया, और हवा, बारिश, बर्फ या तूफान ने भी उनको मेरे पास आने से और मेरी देखभाल करने से नहीं रोका, मैं एक बुढ़िया हूँ फिर भी। विशेष रूप से परमेश्वर के वचनों को पढ़ते समय, अगर कुछ ऐसा होता जो मेरी समझ में ना आ रहा हो तो वे बड़े धैर्य के साथ इसके बारे में मेरे साथ वार्तालाप करते थे, और वे कभी भी मुझे नज़रअंदाज़ नहीं करते थे या तुच्छ नहीं समझते थे। मैं इससे बहुत प्रभावित हुई, क्योंकि अगर परमेश्वर का प्रेम ना होता तो कौन मेरे लिए इतना धैर्य और अपनापन दिखाता? भाई-बहनों के साथ चर्चा करते हुए मैंने देखा कि वे अन्य लोगों से बहुत भिन्न थे। वे सहनशीलता और प्रेम को जी रहे थे, और उन्होंने अपने दिल खुले रखे थे और उनके बीच कोई बाधा या दूरी नहीं थी, वे एक दूसरे के साथ ईमानदारी से पेश आते थे। वे परिवार की तरह एक दूसरे के निकट थे, और इसने मुझमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्यों के प्रति और भी अधिक निश्चित बना दिया था। मैंने जैसे-जैसे अधिक सत्य को समझना शुरु किया, मुझे एहसास हुआ कि सृजित मात्र के रूप में मुझे अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करना चाहिए, इसलिए मैंने कलीसिया से कहा कि मैं अपने उत्तरदायित्व निभाना चाहती हूँ। अपनी उम्र के कारण अधिकांश उत्तरदायित्वों को निभाना मेरे लिए कठिन था, लेकिन कलीसिया ने मुझे मेरे घर पर मेज़बानी का उत्तरदायित्व सौंपा। मेरी क्षमताओं के आधार पर मुझे कार्य सौपने के लिए परमेश्वर का आभारी होते हुए, मैंने उसे स्वीकार किया। और इस तरह से, मैं अपने भाई-बहनों के साथ बहुत अच्छी तरह से घुलमिल गयी थी, और शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से मुझे काफी राहत का एहसास हुआ। कुछ रोग जिनसे मैं परेशान चल रही थी वे भी बेहतर होने लगे और इसलिए मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अनुग्रह और दया के लिए और भी अधिक आभारी हो गयी।
लेकिन यह अच्छा समय लंबे समय तक नहीं चल सका, क्योंकि गांव के एक दुष्कर्मी ने मेरे भाइयों और बहनों समेत मेरी शिकायत पुलिस में कर दी। मेरे सभी भाई-बहनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उन्होंने गांव के पार्टी सचिव को मुझे पुलिस स्टेशन लाने के लिए आदेश दिया। मेरे वहां पहुंचने पर पुलिस ने मुझसे पूछा, "तुमने परमेश्वर में विश्वास कैसे किया? तुम परमेश्वर में विश्वास क्यों करती हो?" मैंने कहा, "परमेश्वर में विश्वास करना एक अपरिवर्तनीय सिद्धांत है। परमेश्वर के वचनों को हर रोज़ पढ़ कर, हम अनेक सत्य समझ सकते हैं, परमेश्वर के वचनों के अनुसार अच्छे इंसान बन सकते हैं, और जीवन में सही मार्ग पर चल सकते हैं। परमेश्वर में विश्वास करने वाले दूसरों को मारते या प्रताड़ित नहीं करते हैं, और हम हमेशा कानून का पालन करते हैं, तो परमेश्वर में विश्वास करने में गलत क्या है? आप हम सब को गिरफ्तार क्यों कर रहे हैं?" उस अधिकारी ने मुझे घृणा से देखते हुए कठोरता से पूछा, "तुम्हें सुसमाचार किसने सुनाया? क्या तुम्हारे परिवार कोई और भी विश्वास करता है?" मैंने कहा कि विश्वास करने वाली, अपने परिवार में मैं अकेली हूँ। उन्होंने देखा कि वे मुझसे और कोई जानकारी हासिल नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने मुझे उसी दिन छोड़ दिया। वहां से निकलने के बाद, मुझे आश्चर्य हुआ कि पुलिस ने इतनी आसानी से मुझे क्यों छोड़ दिया। जब मैं घर वापस पहुंची तो मैंने जाना कि जब मेरे परिवार को पता चला कि मुझे पुलिस स्टेशन ले जाया गया है तो उन्होंने अपने संपर्कों का उपयोग किया और मुझे छोड़ने के लिए पुलिस को 3,000 युआन दिए। लेकिन पुलिस अभी भी मेरे परिवार और मेरे बीच कलह बो रही थी, क्योंकि उन्होंने मेरे परिवार को मुझे परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने के लिए कहा था। मेरी बहू ने इस बात पर मेरे बेटे से झगड़ा किया और मेरे परमेश्वर में विश्वास को जारी रखने पर ज़हर पीकर जान देने की धमकी भी दी। तब मैंने महसूस किया कि सीसीपी पुलिस भीतर तक सड़ चुकी थी। मेरा परिवार पूरी तरह से शांतिपूर्ण था, और अब उन्होंने चीजों को इतना बिगाड़ दिया था कि हम सभी एक दूसरे का गिरेबान पकड़े खड़े थे। मैंने एक सच्चे परमेश्वर में विश्वास किया था जिसने स्वर्ग और पृथ्वी पर सारी चीजों का निर्माण किया है, और आज सर्वशक्तिमान परमेश्वर हम सबको बचाने आया है, इसलिए वो हमें सत्य को समझने, सच्चे इंसान के जैसे जीने, अपनी अंतरात्मा की आवाज और जो सही है उसके अनुसार बोलने व कार्य करने के लिए कह रहा है, और मानवता या नैतिकता के खिलाफ जाने वाली चीजें ना करने के लिए कह रहा है। मैं घर पर ही रही और परमेश्वर के वचन पढ़ती रही, बैठकें करती रही, और अपने उत्तरदायित्व पूरे करती रही, लेकिन सीसीपी पुलिस ने मुझे "सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करने" के झूठे आरोप में फंसा दिया। वे बेशर्मी से तथ्यों को गलत तरीके से विकृत कर रहे थे, जानबूझ कर सत्य को तोड़-मरोड़ रहे थे, लोगों पर झूठे अपराधों के आरोप लगा रहे थे! शैतान वाकई नीच है। यह और कुछ नहीं बस खुले आम कलंक लगाना और दुर्भावनापूर्ण ढंग से बदनामी करना था। पुलिस को मुखबिर से पता चला था कि मैं अपने भाइयों और बहनों के साथ अपने घर पर बैठकें आयोजित करती थी, इसलिए उन्होंने मुझे पहली गिरफ्तारी के बाद भी परेशान करना नहीं छोड़ा। जल्दी ही, पूछताछ के लिए वे मुझे पुलिस स्टेशन ले गए और यह कहते हुए मुझे धमकी दी कि, "अपने कलीसिया के अगुआओं और उन लोगों के नाम हमें बताओ जिनकी तुम बैठकों में मेज़बानी करती हो। यदि तुम हमें नहीं बताओगी तो हम तुम्हें जेल में डाल देंगे!" दृढ़ होकर न्यायसंगत रूप से मैंने उत्तर दिया, "मुझे कुछ नहीं पता! तुम्हें बताने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है!" पुलिस बहुत अधिक गुस्से में आ गयी, लेकिन क्योंकि परमेश्वर मेरी रक्षा कर रहे थे, इसलिए उन्होंने मुझ पर एक उंगली तक नहीं लगाई।
मुझे छोड़ने के बाद भी पुलिस ने मेरी जासूसी करना जारी रखा, व्यर्थ ही वे किसी "बड़ी मछली" को पकड़ने के लिए मुझे चारे के रूप में उपयोग करने की आशा करते रहे। मुझे डर था कि मेरे कारण मेरे भाई-बहन फंस जाएंगे, इसलिए मैंने उनसे संपर्क का प्रयास नहीं किया, और उसके बाद मैंने कलीसियाई जीवन को खो दिया। कलीसियाई जीवन के बिना मेरा दिल खाली और आश्रय से रहित हो गया और धीरे-धीरे मैं परमेश्वर से विमुख होने लगी। मैं हर दिन दहशत और खौफ़ में जी रही थी, मुझे इस बात का बहुत भय था कि पुलिस मुझे फिर से ले जाएगी। पहले मैं हर रोज़ परमेश्वर के वचनों और उपदेशों को सुनते हुए और संगति करते हुए बिताती थी, लेकिन अब यह असंभव था, क्योंकि यदि मेरे परिवार वाले मुझे प्रार्थना करते देख लेते या मैं "परमेश्वर" शब्द का उपयोग भी करती तो मुझे उनके ताने सुनने पड़ते। मेरी बहू मुझसे बहुत रूखे तरीके बात करती थी क्योंकि पुलिस ने मुझ पर जुर्माना लगाया था, और मेरे पति व बेटा मुझे हर समय डांटा करते थे। वह परिवार जो कभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरे विश्वास को समर्थन देता था अब हर तरह से मेरा विरोध कर रहा था, मुझे प्रताड़ित कर रहा था। इससे मुझे बहुत दुख हुआ, मेरी आत्मा बेहद पीड़ित महसूस कर रही थी और मैं अभूतपूर्व अंधकार और दर्द में जी रही थी। क्योंकि मेरे पास सुनने के लिए परमेश्वर के वचनों के पाठ नहीं थे और मैं अपने बहनों और भाइयों के साथ संगति करने में असमर्थ थी, मेरी आत्मा प्यास से मर रही थी। हर रात मैं बिस्तर पर करवटें लेती रहती थी और सो नहीं पाती थी, बैठकों के दौरान अपने भाई-बहनों के साथ बिताए गए खुशनुमा पलों को अक्सर याद किया करती थी। ऐसे समय पर मुझे सीसीपी सरकार से बहुत घृणा होती थी। इस सारे दुख का कारण यही थी, इसने मुझसे एक सृजित प्राणी के स्वतंत्र रूप से परमेश्वर पर विश्वास करने व उनकी अराधना करने के अधिकार से वंचित कर दिया था, इसने मुझे मेरे कलीसियाई जीवन से वंचित कर दिया था, इसने भाइयों व बहनों के साथ परमेश्वर के वचनों पर सहभागिता करने से रोक दिया था, और मेरे उत्तरदायित्वों को पूरा करने से रोका था। अपने इस दुख में मैं केवल परमेश्वर की प्रार्थना कर सकती थी: "हे परमेश्वर! मैं अंधकार में जी रही हूँ, मुझे लगता है कि मेरी आत्मा सूख गयी है, और मैं अपने भाइयों और बहनों के साथ कलीसिया का जीवन जीना चाहती हूँ। हे परमेश्वर! मैं आपसे मेरे लिए मार्ग खोलने की प्रार्थना करती हूँ!"
मैं परमेश्वर के सामने गयी और उनको इसी तरह से आवाज़ देती रही, और परमेश्वर ने वाकई मेरी प्रार्थना सुनी, क्योंकि उन्होंने मेरे भाई-बहनों को मेरे पास भेजा। मेरी एक बहन को पता था कि मैं कपास बीनने के लिए अक्सर खेतों में जाया करती थी, तो वो चुपके से मुझसे मिलने आयी, और हमने वहां पर बैठकें करने के लिए समय तय किया। हर बार जब हम मिलना होता था, तो मैं कपास बीनने के लिए जल्दी चली जाती थी, और जब अन्य सभी दोपहर का खाना खा रहे होते थे तो मैं अपनी बहन के साथ खेत में परमेश्वर के वचन पढ़ने बैठ जाती थी। अपनी बहन से मिलना, किसी पुराने खोए संबंधी से मिलने जैसा था। मैं अपने खुशी के आँसुओं को बहने से रोक नहीं पायी। मैं उसको अपने साथ हुए अन्याय और दुख के बारे में और साथ ही अपने परिवार में फैली गलतफहमी के बारे में बताया। उसने मुझे दिलासा दिया जबकि परमेश्वर के वचनों ने मेरी आत्मा ने मेरा सिंचन किया, और उसने परमेश्वर की इच्छा पर मेरे साथ सहभागिता की, और फिर धीरे-धीरे मेरी स्थिति बेहतर होनी शुरु हो गयी। सीसीपी सरकार के उत्पीड़न ने ऐसी हालत कर दी थी मैं सिर्फ कपास के खेतों में ही बैठकें कर सकती थी। एक दिन हमने परमेश्वर के वचन के अंश को पढ़ा: "तुम लोगों के बीच में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे कानून के द्वारा सुरक्षा मिली है, इसके विपरीत, तुम सब कानून के द्वारा दण्डित किये गये हो, और उससे बड़ी कठिनाई यह है कि कोई मनुष्य तुम लोगों को समझता नहीं, चाहे वे तुम्हारे रिश्तेदार हों, तुम्हारे माता-पिता, तुम्हारे मित्र, या तुम्हारे सहकर्मी हों। कोई भी तुम लोगों को नहीं समझता। जब परमेश्वर तुम लोगों का तिरस्कार करता है, तब तुम्हारे लिये पृथ्वी पर जीने का कोई रास्ता नहीं बचता है। हालाँकि, फिर भी, लोग परमेश्वर को छोड़ना सहन नहीं कर सकते, यही परमेश्वर द्वारा लोगों पर जीत का महत्व है, और यही परमेश्वर की महिमा है। ... आशीष एक या दो दिन में नहीं मिलती; बहुत कुछ त्याग कर उसे अर्जित करना पड़ता है। अर्थात्, तुम सबों के पास परिष्कृत प्रेम होना चाहिये, बड़ा विश्वास, और वे बहुतेरे सत्य जो परमेश्वर चाहता है कि तुम लोगों के पास हों; इसके साथ-साथ, तुम सभी न्याय की ओर अपना ध्यान केंद्रित करने में सक्षम होना चाहिए और कभी भी नहीं डरना चाहिए या हार नहीं माननी चाहिए, और परमेश्वर के प्रति तुम लोगों का प्रेम निरंतर और कभी न समाप्त होने वाला होना चाहिए। तुम लोगों से संकल्प की अपेक्षा की जाती है, और साथ ही तुम सबों के जीवन स्वभाव में बदलाव की भी; तुम्हारे भ्रष्टाचार का निवारण होना चाहिए, और तुम लोगों को परमेश्वर के अधिकतम प्रभाव को पाने के लिए उनके द्वारा किये गए कार्य को बिना शिकायत किये स्वीकार करना चाहिए, और यहां तक कि मृत्यु तक आज्ञाकारी बने रहना चाहिए। यही वह लक्ष्य है जो तुमको हासिल करना है। यही परमेश्वर के कार्य का अंतिम लक्ष्य और अपेक्षाएं हैं जो परमेश्वर इस समूह के लोगों से चाहता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझने में मदद की कि मेरे वर्तमान कष्ट कुछ ऐसे हैं जिनको मुझे सहना ही होगा। चीन पर नास्तिकों का शासन है जहां पर परमेश्वर में विश्वास करने वालों को प्रताड़ित और शर्मिंदा किया जाता है, लेकिन यह कष्ट अस्थायी और सीमित था, और इसे परमेश्वर के प्रति मेरे विश्वास और आज्ञाकारिता को पुष्ट करने के लिए सावधानी के साथ परमेश्वर द्वारा ही व्यवस्थित किया गया था, जिससे कि मैं भविष्य में परमेश्वर के वादे और आर्शीवाद को बेहतर तरीके से हासिल कर सकूं। अब मुझमें कोई और इच्छा नहीं थी, क्योंकि परमेश्वर को पाना ही पर्याप्त था। साथ ही मैंने देखा कि सीसीपी सरकार द्वारा बनाए गए कानून लोगों को भ्रमित करने के उपाय मात्र हैं। बाहरी दुनिया में यह धार्मिक स्वतंत्रता का दावा करती है, लेकिन हकीकत में परमेश्वर में विश्वास करने वालों को परमेश्वर के वचनों को पढ़ने या बैठककरने तक का अधिकार नहीं हैं। यह परमेश्वर में विश्वास करने वालों के अस्तित्व को स्वीकार करती ही नहीं है, और यह लोगों को परमेश्वर का पालन करने या जीवन के सही मार्ग पर चलने की अनुमति भी नहीं देती है। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन कहते हैं: "धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने के तरीके हैं!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर द्वारा बनाए गए स्वर्ग और पृथ्वी विशाल हैं, लेकिन परमेश्वर पर विश्वास रखने वालों के लिए चीन में पैरों की एक उंगली जितना स्थान भी नहीं है। कोई भी जो परमेश्वर में विश्वास करता है उसे सीसीपी की गिरफ्तारी और उत्पीड़न का सामना करना होता है और उसकी स्वतंत्रता सीमित हो जाती है। सीसीपी परमेश्वर के प्रत्येक विश्वासी को खत्म करना चाहती है और चीन को परमेश्वर विहीन राष्ट्र बनाना चाहती है। सीसीपी बेहद भ्रष्ट, कुटिल और प्रतिक्रियावादी है। यह परमेश्वर की कट्टर विरोधी है, परमेश्वर की एक शत्रु जो उसके अस्तित्व को सहन नहीं कर सकती है!
और इसलिए, मैंने अपनी बहन से कपास के खेत में मिलना जारी रखा। लेकिन समय बीत गया और जल्दी ही सर्दियों की दस्तक शुरु हो गयी। कपास के पौधों की पत्तियां सूख कर गिरने लगीं और कपास के खेत अब बैठकें करने के लिए छिपने की जगह नहीं दे सकते थे, इसीलिए मैं उन भाइयों और बहनों से फिर से बिछड़ गयी, जिनके साथ मैं परमेश्वर के वचनों की सहभागिता करती थी। शुरु-शुरु में मैं परमेश्वर के वचनों का पालन करने और परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध बनाए रखने में सक्षम रही, लेकिन परमेश्वर के वचनों के प्रावधान और सिंचन के बिना मेरी आत्मा अधिकाधिक बंजर होती गयी और सूख गयी और जल्दी ही मैं फिर से अंधकार से घिर गयी। मुझे लगा कि मैं स्वर्ग से नर्क में ढकेल दी गयी हूँ, और मैं दुख के ऐसे सागर में डूबी हुई थी कि मौत भी उससे बेहतर होती। मेरे परिवार ने पुलिस की झूठी बातों पर विश्वास किया, इसीलिए वे हर रोज़ मेरे ऊपर निगाह रखते थे, और इस बात की धमकी देते थे कि अगर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखना जारी रखा तो वे मुझे मारेंगे। मैं घर पर प्रार्थना करने की ज़ुर्रत नहीं करती थी। मैं केवल रात के समय अपने कंबल के अंदर या घर पर किसी के ना होने पर ही प्रार्थना कर पाती थी, और इसी तरह से मेरे दिन गुजर रहे थे। अपने परिवार के तानों को सहने के अलावा, मुझे गांव वालों की अफवाहों और गप्पों को भी सहना पड़ रहा था। इस सब का सामना करते हुए, मुझे बहुत दुख का एहसास होता था, आध्यात्मिक रूप से मैं बहुत कमजोर महसूस करती थी और मेरी आत्मा दिनों-दिन बेहद कमजोर हो रही थी। मुझे ऐसा लगा जैसे कलीसियाई जीवन खोने के बाद, परमेश्वर के वचनों को ना पढ़ पाने तथा अपने भाइयों व बहनों से ना मिल पाने के कारण जीवन एक बोझ हो गया था, और इसके सारे आनंद समाप्त हो गए थे। मैंने सोचा कि अतीत में जब मैं दुखी और कमजोर महसूस करती थी तो परमेश्वर के वचन कैसे हमेशा मुझे राहत देते थे, कैसे मेरे भाई और बहन धैर्य के साथ मुझे सहारा देते थे, और परमेश्वर की इच्छा को समझने के बाद मुझे फौरन राहत और मुक्ति का एहसास होता था और मेरी आत्मा फिर से जागृत हो उठती थी। लेकिन अब पुलिस के उत्पीड़न और निगरानी के कारण, मैंने परमेश्वर के वचनों को पढ़ने का अधिकार खो दिया है और मैं अपने भाइयों और बहनों से भी नहीं मिल पाती थी। हर दिन एक लंबा और कड़वा संघर्ष था, मैं बहुत अभागी और दुखी महसूस करती थी जब यह देखती थी कि मैं जीवन के एहसास के बिना जी रही हूँ, जैसे मैं प्राणहीन हूँ, और तब भी जब मैं यह विचार करती कि अतीत में जब मैं कलीसिया में परमेश्वर की उपस्थिति में जी रही थी तब जीवन कितना पूर्ण था। तब मेरा दिल और भी टूट गया जब मैंने इस बात पर विचार किया कि मेरे परिवार को किस तरह से सीसीपी द्वारा मूर्ख बनाया गया और धोखा दिया गया, उन्होने कैसे मुझे समझने में भूल की और मेरी स्वतंत्रता को बाधित करने के लिए वे उनके साथ हो गए। लेकिन जब मुझे लगा कि अब मेरे लिए सारे रास्ते बंद हो गए हैं तब मैंने परमेश्वर से लगातार प्रार्थना की और मेरा मार्ग प्रशस्त करने के लिए उनसे विनती की: "हे परमेश्वर! अब, मैं आपके वचनों को पढ़ नहीं सकती, ना ही मैं कलीसियाई जीवन जी सकती हूँ, अब मुझसे ये जीवन सहा नहीं जाता है। हे परमेश्वर! सीसीपी सरकार ने मेरे परिवार को धोखा दिया है और आप पर विश्वास करने से रोकने के लिए वे मेरे ऊपर अपनी सारी ताकत आज़माते हैं। कृपया मेरी सहायता करें, आपके कर्मों के गवाही देने की अनुमति दें, और आगे से उन्हें शैतान द्वारा धोखा खाने या गलत इस्तेमाल किए जाने से रोकें। हे परमेश्वर! अपने परिवार को मैं आपको सौंपना चाहती हूँ, और चाहती हूँ कि आप इस सबसे बाहर निकलने का एक मार्ग दिखाएँ।"
परमेश्वर का धन्यवाद, उन्होने मेरी प्रार्थना सुनी। कुछ समय बाद, एक शाम मैं अचानक अपने बिस्तर के पास बेहोश हो गयी। मेरे पति के तो डर के मारे होश उड़ गए और उनको समझ ही नहीं आया कि क्या करें, इसलिए मेरे बेटे ने फौरन आपातकालीन सेवा को फोन किया। उत्तर देने वाले पहले अस्पताल ने जब यह सुना कि रोगी गंभीर रूप से बीमार एक वृद्ध महिला है तो उन्होने मुझे लेने से इंकार कर दिया। मेरे बेटे ने एक दूसरे अस्पताल की आपातकालीन सेवा को फोन किया तो डॉक्टर ने कहा मेरे होश में आने की गुंजाइश बेहद कम है, इसलिए मुझे बचाने का प्रयास करना व्यर्थ है, तथा मेरे परिवार को सबसे बुरी स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। लेकिन मेरे बेटे ने हार मानने से इंकार कर दिया और उनसे तब तक विनती करता रहा जब तक उन्होने मुझे अस्पताल में भर्ती करने की हामी नहीं भर दी। हालांकि, आपातकालीन बचाव प्रक्रियाओं को करने के बाद भी, मैं बेहोश ही रही। अब ऐसा कुछ शेष ना था जो डॉक्टर कर सकते थे, और मेरे परिवार को विश्वास हो चला था कि अब मुझे बचाना असंभव है। लेकिन परमेश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है, क्योंकि तभी एक चमत्कार हुआ! 18 घंटों तक गहन कोमा में रहने के बाद, मैं धीरे-धीरे होश में आने लगी। वहां उपस्थित सभी लोग चकित थे। जब मैंने अपनी आँखें खोली और डॉक्टरों को देखा तो मुझे लगा जैसे मैं फरिश्तों को देख रही थी। मैंने उनसे पूछा कि मैं कहां थी, उनमें से एक ने कहा कि मैं अस्पताल में थी, और जब वे हड़बड़ी में मेरी शारीरिक जांच कर रहे थे तो वे लगातार बुदबुदा रहे थे, "यह तो वाकई एक चमत्कार है...।" जल्दी ही, मैं उठ कर बैठ गयी और मुझे भूख लगने लगी। नर्स ने मुझे खिलाया, और खाना खत्म करने के बाद, मुझे ताकत और ऊर्जा का एहसास हुआ। मुझे पता था कि ये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के चमत्कारी कार्यों में से एक था, परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना सुनीं और मेरे लिए आगे का मार्ग प्रशस्त किया। बिस्तर पर बैठे-बैठे मेरे मुँह से अनायास ही परमेश्वर की स्तुति के गीत फूट पड़े। चकित डॉक्टर ने मुझसे पूछा, "मैडम, ये परमेश्वर कौन हैं जिनमें आप विश्वास करती हैं?" मैंने कहा, "मैं एक सच्चे परमेश्वर—सर्वशक्तिमान परमेश्वर—में विश्वास करती हूँ जिसने स्वर्ग और धरती पर हर चीज को बनाया!" उस डॉक्टर ने तो मुझे ऐसे देखा जैसे उसे कोई झटका लगा हो, और मुझे गाता देख कर मेरा परिवार चकित और खुश था। अस्तपाल से छुट्टी मिलने के बाद, मैं घर गयी और एक-एक करके मेरे पड़ोसी मुझसे मिलने के लिए आए और बोले, "ये आश्चर्यजनक है! सभी डॉक्टर कह रहे थे कि तुम्हारे बचने की कोई आशा नहीं थी, लेकिन तुम तो ठीक हो गयी। ये चमत्कार है!" मैंने उनको परमेश्वर की गवाही दी और कहा कि यह परमेश्वर की महान सामर्थ्य के कारण संभव हुआ, परमेश्वर ने मुझे बचाया, और परमेश्वर के बिना मैं जीवित नहीं होती और परमेश्वर ने ही मुझे जीवन का दूसरा अवसर प्रदान किया है। मैंने उनको बताया कि मानव मात्र को परमेश्वर ने बनाया था, और परमेश्वर ने हमें जीवन दिया है, परमेश्वर हमारे जीवन की देखभाल करते हैं और इस पर शासन करते है, लोग परमेश्वर के मार्गदर्शन से दूर नहीं हो सकते है, क्योंकि परमेश्वर से मुँह मोड़ने का अर्थ है मृत्यु। इस अनुभव के बाद, मेरे परिवार ने कभी भी परमेश्वर में मेरे विश्वास का विरोध नही किया, और परमेश्वर ने भी मुझे अनपेक्षित आशीर्वाद दिया—मेरे पति ने भी परमेश्वर के कार्य के वर्तमान चरण को स्वीकार कर लिया। इसके बाद, मेरे पति सहभागिता में मेरे साथ अक्सर बैठकों में गए, और मुझे बेहद खुशी, शांति और सुरक्षा का एहसास हुआ। फिर मैं हर रोज़ आनंद के साथ जीवन बिताने लगी, क्योंकि मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि का सत्य रूप में दर्शन हुआ, और मैंने परमेश्वर की सराहना की और तहे दिल से शुक्रिया कहा!
मेरे अनुभव के माध्यम से, मैं दिल से इस बात की सराहना करने लगी कि किसी व्यक्ति के साथ परमेश्वर जो कुछ भी करते हैं, वे प्रेम वे वशीभूत हो कर करते हैं। शैतान को मुझे कष्ट देने की अनुमति देने के पीछे परमेश्वर के अच्छे इरादे निहित थे। मुझे गिरफ्तार और प्रताड़ित करके सीसीपी मुझे परमेश्वर से दूर रहने और धोखा देने के लिए मजबूर करना चाहती थी, लेकिन उसने यह सोचा भी नहीं था कि परमेश्वर की बुद्धि शैतान की युक्तियों से भी आगे रहती है। सीसीपी का अत्याचार ना केवल मुझे परमेश्वर से दूर रखने और परमेश्वर को धोखा देने के लिए मजबूर करने में विफल रहा बल्कि इसके विपरीत इसने सीसीपी की परमेश्वर के प्रति प्रतिरोध और स्वर्ग के विरुद्ध कार्य करने के दुष्टतापूर्ण सार का मेरे सामने खुलासा कर दिया, और इस बात के प्रति मुझे और भी दृढ़ निश्चयी कर दिया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही एकमात्र सत्य, मार्ग और जीवन है! इसने मुझे परमेश्वर की महान शक्ति और चमत्कारी कर्मों को देखने में सक्षम किया, जिसके चलते परमेश्वर के प्रति मेरा प्रेम और निष्ठा मजबूत हो गयी। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन कहते हैं: "मेरी योजना में, शैतान ने हमेशा हर कदम का बहुत तेजी से पीछा किया है, और मेरी बुद्धि की विषमता के रूप में, हमेशा मेरी वास्तविक योजना को बिगाड़ने के लिए उसने तरीके और संसाधनों को खोजने की कोशिश की है। परन्तु क्या मैं उसकी धोखेबाज़ योजनाओं से परास्त हो सकता हूँ? सभी जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर हैं मेरी सेवा करते हैं—क्या शैतान की कपटपूर्ण योजनाएँ कुछ अलग हो सकती हैं? यह निश्चित रूप से मेरे ज्ञान का प्रतिच्छेदन है, यह निश्चित रूप से वह है जो मेरे कर्मों के बारे में चमत्कारिक है, और यही वह सिद्धांत है जिसके द्वारा मेरी पूरी प्रबंधन योजना चलती है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन के "अध्याय 8")। सीसीपी जितना बलपूर्वक परमेश्वर का प्रतिरोध करती और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को प्रताड़ित करती, हम उतना ही अधिक इसे पहचानने और इसे भेदने में सक्षम होते हैं, और हम उतना ही अधिक सत्य को समझ सकते व परमेश्वर की बुद्धि व चमत्कारी कर्मों को जान पाते हैं। परमेश्वर का अनुसरण करने में हमारा विश्वास भी बढ़ता है और हम परमेश्वर के लिए जबरदस्त गवाही पेश करने में उतने ही अधिक सक्षम होते जाते हैं। सीसीपी के उत्पीड़न के अनुभव के माध्मय से मैंने स्पष्ट रूप से देखा कि परमेश्वर के कार्य में शैतान एक बाधा की तरह काम करता है, और परमेश्वर द्वारा पराजित वस्तु मात्र होता है, और परमेश्वर की मानव मात्र को बचाने की तीव्र इच्छा का भी मुझे स्पष्ट एहसास हुआ। भविष्य में मेरे सामने चाहे कोई भी कठिनाई या बाधा आए, मैं अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमताओं के साथ अपने कर्तव्यों को पूरा करना और परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट करने के अपनी भूमिका निभाना चाहती हूँ।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?