यह जानना कि मैं फरीसियों के मार्ग पर चलती थी
कोई चीज़ जिसके बारे में हमने पिछले संवादों में हमेशा चर्चा की है, वह है पतरस और पौलुस द्वारा चले गए मार्ग। यह कहा जाता है कि पतरस ने स्वयं को और परमेश्वर को जानने पर ध्यान दिया था, और ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर द्वारा अनुमोदित था, जबकि पौलुस ने केवल अपने कार्य, प्रतिष्ठा और हैसियत पर ध्यान दिया था, और ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर द्वारा तिरस्कृत था। मैं पौलुस के मार्ग पर चलने से हमेशा डरते रही हूँ, इसी वजह से मैं आमतौर पर प्रायः पतरस के अनुभवों के बारे में परमेश्वर के वचनों को पढ़ती हूँ, ताकि यह देख सकूँ कि उसने परमेश्वर को कैसे जाना। कुछ समय तक ऐसे जीने के बाद, मुझे लगता था कि मैं पहले ही तुलना में ज्यादा आज्ञाकारी बन गई थी, प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए मेरी इच्छा कम हो गई थी, और कि मैं स्वयं को थोड़ा-थोड़ा जानने लगी थी। उस समय, मैं यह मानती थी कि भले ही मैं पूरी तरह से पतरस के मार्ग पर नहीं हूँ, लेकिन ऐसा कहा जा सकता था कि मैंने उसका किनारा छू लिया है, और कम से कम इसका अर्थ यह है कि मैं पौलुस के मार्ग पर नहीं जा रही थी। हालाँकि, परमेश्वर के वचन के प्रकाशन से मुझे शर्मिंदगी होती थी।
एक सुबह, जब मैं आध्यात्मिक प्रार्थनाओं का अभ्यास कर रही थी, तो मैंने परमेश्वर के निम्नलिखित वचन पढ़े: "पतरस का कार्य परमेश्वर के एक सृजित प्राणी के कर्तव्य का निर्वहन था। उसने प्रेरित की भूमिका में कार्य नहीं किया था, बल्कि परमेश्वर के प्रति प्रेम का अनुसरण करते हुए कार्य किया था। पौलुस के कार्य के क्रम में उसका व्यक्तिगत अनुसरण भी निहित था...। उसके कार्य में कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं थे—यह सब स्वयं उसके लिए था, और परिवर्तन के अनुसरण के बीच नहीं किया गया था। उसके कार्य में सब कुछ एक सौदा था, इसमें परमेश्वर के सृजित प्राणी का एक भी कर्तव्य या समर्पण निहित नहीं था। अपने कार्य के क्रम के दौरान, पौलुस के पुराने स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था। उसका कार्य दूसरों की सेवा मात्र का था, और उसके स्वभाव में बदलाव लाने में असमर्थ था। ... पतरस भिन्न था : वह ऐसा व्यक्ति था जो काँट-छाँट और व्यवहार से गुज़रा था, और शुद्धिकरण से गुज़रा था। पतरस के कार्य का लक्ष्य और प्रेरणा पौलुस से कार्य के लक्ष्य और प्रेरणा से मूलतः भिन्न थे। यद्यपि पतरस ने बडी मात्रा में काम नहीं किया था, किंतु उसका स्वभाव कई बदलावों से होकर गुज़रा था, और उसने जिसकी खोज की, वह सत्य, और वास्तविक बदलाव था। उसका कार्य मात्र कार्य करने की ख़ातिर नहीं किया गया था" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी आत्मा को छू लिया और मैं शांत महसूस करने लगी: पतरस एक ऐसा व्यक्ति था जो एक सृजित प्राणी के रूप में अपने कर्तव्य को पूरा करता था। वह एक प्रेरित के रूप में अपनी भूमिका के विपरीत परमेश्वर को प्रेम करने की कोशिश करने की अपनी प्रक्रिया के माध्यम से कार्य करता था। लेकिन क्या मैं ऐसी व्यक्ति थी जो एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य पूरा कर रही थी या मैं बस एक पद के हैसियत से अपना कार्य कर रही थी? इस समय, मैं पूर्व की विभिन्न परिस्थितियों के बारे में सोचती थी: जब कलीसिया में करने के लिए बहुत सारा कार्य होता था, तो अन्य भाई-बहन कहा करते थे: आप लोग सच में परमेश्वर के कार्य के बोझ से दबे हुए हो। तब मैं तपाक से कहती: हम अगुआओं के पास इससे निपटने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। कभी-कभी, मेजबान परिवारों में या सह-कर्मियों के सामने, मैं अपने भौतिक शरीर पर विचारशील बनना और स्वयं को आराम देना चाहती, लेकिन फिर मैं सोचती: नहीं, मैं अगुआ हूँ, मुझे सामान्य मानवता में नहीं जीना चाहिए और विलासितापूर्ण नहीं बनना चाहिए। जब भी मुझे परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने का मन नहीं करता, मैं तब भी यह सोचती: एक अगुआ के रूप में, अगर मैं परमेश्वर के वचन नहीं खाती और पीती हूँ, तो मैं कैसे दूसरे लोगों की समस्याओं को हल करने में सक्षम होऊँगी? कभी-कभी मैं किसी सह-कर्मी के साथ उस मेजबान परिवार के पास जाती जिनके साथ वह ठहरी हुई थी, और जब मैं देखती कि वह मेजबान बहन जितने उत्साह के साथ उसके साथ बर्ताव करती, उतने उत्साह के साथ मुझसे नहीं करती थी, तो मैं परेशान हो जाती: तुम शायद जानती नहीं हो कि मैं कौन हूँ, लेकिन मैं इसकी अगुआ हूँ। कभी-कभी, किसी भी कारण से, मेजबान भाई-बहनों के साथ संवाद करने का मेरा मन नहीं करता, लेकिन फिर मैं सोचती: एक अगुआ के रूप में, यदि मैं आती हूँ लेकिन लोगों के साथ संवाद नहीं करती हूँ तो लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे? चूँकि मैं एक अगुआ हूँ, इसलिए मुझे मेजबान परिवारों के साथ संवाद करना ही चाहिए। ... इन विभिन्न बर्तावों ने मुझे दिखाया कि: मैं हैसियत की वजह से कार्य कर रही थी। चाहे यह लोगों से संवाद करना हो, सभाओं में शामिल होना हो, या सामान्य मामलों को सँभालना हो, यह सब केवल इसलिए था क्योंकि मैं एक अगुआ थी, जिस वजह से मैं थोड़ा सा अपने कर्तव्य को पूरा करने और थोड़ा सा कार्य करने के लिए बाध्य महसूस करती थी। मैं एक सृजित प्राणी के रूप में अपने कर्तव्य को पूरा नहीं कर रही थी, और इससे भी अधिक मैं परमेश्वर को प्रेम करने की अपनी प्रक्रिया के माध्यम से कार्य नहीं कर रही थी जैसी पतरस ने की थी। अगर चीजें पहले की ही तरह जारी रहती, तो जब वह दिन आता कि मुझे निष्कासित और प्रतिस्थापित कर दिया जाता, तब मैं संभवत: उस तरह से अपना कर्तव्य पूरा करना जारी नहीं रखती जिस तरह से मैं अभी करती हूँ। केवल तभी मैंने देखा कि मैं वह व्यक्ति नहीं थी जिसने सत्य का अभ्यास किया था या जो परमेश्वर की इच्छा के लिए विचारशील थी। बल्कि, मैं एक अधम ख़लनायिका थी जो केवल प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए कार्य करती थी। मैं जिस तरह से कार्य करती थी वैसे कार्य करके परमेश्वर के प्रति ईमानदारी रखना असंभव था और यह मात्र बेपरवाही से किया जाता था। ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं अपनी इच्छा से सत्य का अभ्यास नहीं कर रही थी और परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशील नहीं थी, जैसा कि परमेश्वर कहते हैं, "उसके कार्य में कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं थे—यह सब स्वयं उसके लिए था, और परिवर्तन के अनुसरण के बीच नहीं किया गया था।" ऐसी सेवा परमेश्वर की इच्छा को संभवतः कैसे संतुष्ट कर सकती थी? पौलुस एक प्रेरित के रूप में अपने पद में कार्य कर रहा था; उसका कार्य लेन-देन से भरा हुआ था। मैं एक अगुआ के रूप में अपने पद में कार्य कर रही थी और व्यय कर रही थी। परमेश्वर में विश्वास करने के लिए ऐसे इरादे और उद्देश्य कैसे पौलुस के प्रयोजनों और उद्देश्यों से अलग हैं?
इस समय, मैं परमेश्वर के समक्ष गिर पड़ी: हे परमेश्वर! समय पर उद्धार के लिए तेरा धन्यवाद, जिसने मुझे मेरी मूर्छा से उठाया, मेरी असली स्थिति का ज्ञान करवाया, और दिखाया कि मैं अभी भी फरीसी पौलुस के मार्ग पर चल रही थी। मेरा कार्य और मेरा कर्तव्य को पूरा करना बिल्कुल फरीसियों की तरह था, जिसने तुझे निराश अवश्य किया होगा। हे, सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मैं तेरे वचन के मार्गदर्शन में अपने गलत इरादों और धारणाओं को दूर करने की इच्छुक हूँ। मैं एक सृजित प्राणी के रूप में अपने कर्तव्य को पूरा करने और परमेश्वर को प्रेम करने की प्रक्रिया के माध्यम से मुझे जो कुछ भी करना चाहिए वह करने में पतरस के उदाहरण का पालन करने, एक अगुआ के तौर पर अपनी भूमिका के पद में अब और कार्य नहीं करने, और पतरस के मार्ग को खोजने और उस ओर बढ़ने के लिए अपनी पूरी कोशिश करने की इच्छुक हूँ!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?