आस्था : शक्ति का स्रोत
अगस्त 2020 में, मैं ऑनलाइन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की छानबीन कर रहा था। भाई और बहनों ने भी मेरे साथ बहुत से सत्य पर सहभागिता की, जैसे प्रभु कैसे वापस आता है, परमेश्वर की वाणी सुनकर प्रभु का स्वागत कैसे करें, झूठे मसीहों में सच्चे मसीह को कैसे पहचानें, परमेश्वर की 6,000 साल की प्रबंधन योजना के रहस्य और दर्शन के सत्य के अन्य पहलू। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत से वचन भी पढ़े। करीब दो महीने के सोच-विचार के बाद मैंने देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं और ये वचन बाइबल के रहस्यों को खोलते हैं और मुझे यकीन हो गया सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है। मैंने खुशी-खुशी परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकार कर लिया। फौरन अपने परिवार को प्रभु की वापसी का सुसमाचार सुनाने की सोची, ताकि उन सबको परमेश्वर के सामने ला सकूँ। पर उनके साथ सुसमाचार साझा करने से पहले ही, मुझे सेना में वापसी के लिए सूचित कर दिया गया।
बाद में, मैंने फोन पर अपनी पत्नी और माँ के साथ सुसमाचार साझा किया। एक दिन, मैं अपनी पत्नी से प्रभु के स्वागत पर बात कर रहा था, तभी उसने पूछा, “क्या यह ‘चमकती पूर्वी बिजली’ है जिसमें मैं विश्वास रखता हूँ? पादरी ने बताया था कि वैसे लोग परिवार त्याग देते हैं, तुम्हें यह आस्था छोड़ देनी चाहिए।” उसे यह कहते सुनकर मुझे बुरा लगा, गुस्सा भी आया। मैंने उससे कहा, “बेवकूफ मत बनो। बिना सोचे-समझे पादरी पर यकीन कैसे कर सकती हो? उनके ऐसा कहने का कोई ठोस आधार है? मैं चार महीनों से परमेश्वर में विश्वास कर रहा हूँ। क्या मैंने तुम्हें त्याग दिया? क्या मैं परिवार की परवाह नहीं करता? मुझे बस यह पता है कि सीसीपी विश्वासियों को गिरफ्तार करके सता रही है, कई भाई-बहनों के लिए घर लौटना मुश्किल कर दिया है और यहां तक कि कई विश्वासियों के परिवार बिखेर दिए। पादरी सच को कैसे तोड़-मरोड़ सकता है कि भाई-बहन अपने परिवारों को नहीं चाहते? ये सब कुछ झूठ है। तुम उनकी अफवाहों और झूठों पर आँख मूंदकर भरोसा न करो।” मैंने कहता गया, “एक समझदार इंसान को प्रभु के आगमन के विषय पर थोड़ी छानबीन करनी चाहिए कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के घोषित वचन परमेश्वर की वाणी हैं या नहीं। प्रभु यीशु ने ये भी कहा : ‘मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं’ (यूहन्ना 10:27)। परमेश्वर की भेड़ उसकी वाणी सुनती है, सो हमें प्रभु की वापसी से जुड़ी हर बात की जाँच करनी चाहिए और उसकी वाणी सुननी चाहिए, ताकि हम उसका स्वागत कर सकें। परमेश्वर के वचन सत्य हैं—ये सामर्थ्य और अधिकार से परिपूर्ण हैं। ये किसी अन्य इंसान से नहीं आ सकते थे। मुझे पक्का यकीन है सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है, क्योंकि मैंने देखा है कि उसके सभी वचन सत्य हैं, परमेश्वर की वाणी हैं।” मगर उसने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। मैंने बात ख़त्म करते हुए फ़ोन काट दिया। कुछ हफ़्तों बाद मैंने दोबारा फ़ोन किया, पर उसने फ़ोन बंद कर दिया और मुझे जवाब नहीं दिया। फिर शाम की सभा के समय वह मुझे बार-बार कॉल करने लगी। सभा में मेरा मन बिल्कुल नहीं लगा, परमेश्वर के वचनों का कोई प्रबोधन नहीं मिला क्योंकि मुझे परेशान किया जा रहा था। मुझे नहीं पता था क्या करूं, तो इन हालात से निकलने में मार्गदर्शन के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की। प्रार्थना के बाद, सोचा भले ही मैंने अभी तक इन मामलों में परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझा, पर मुझे आस्था रखनी होगी। मुझे इन चीजों के आगे बेबस न होकर सभा पर ध्यान लगाना होगा। इसके बाद मुझे थोड़ा सुकून महसूस हुआ। ताज्जुब यह कि एक दिन मेरी पत्नी ने अचानक कॉल करके कहा, “हमारा बेटा बीमार है, और उसके इलाज के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं, पर तुमने चमकती पूर्वी बिजली का उपदेश सुनने के लिए फ़ोन खरीद लिया। तुम्हें अपने बच्चे के बारे में सोचना चाहिए।” मैं अच्छी तरह समझ गया कि उसके ऐसा कहने की एकमात्र वजह उसकी ये इच्छा थी कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास न करूं। वास्तव में, पैसों की ज़रूरत होती तो हम उधार ले सकते थे, और बच्चों का बीमार होना पूरी तरह आम बात है। मैं विश्वासी होता या न होता, वह बीमार हो सकता था। मैं भी उसकी भलाई चाहता था। मेरी पत्नी मुझे इस तरह गलत कैसे समझ सकती है? हमारे बच्चे की बीमारी के बहाने से मुझे आस्था से दूर रखने की बात से मैं सच में परेशान हो गया। मैं कुछ कह पाता, उससे पहले, उसने कहा, “तुम विश्वास करते रहे, तो आगे हम परिवार की तरह नहीं रह पाएंगे।” अपनी पत्नी से यह सुनकर मेरा दिल बैठ गया। हमारा बच्चा इतना छोटा है, फिर भी क्या उसे तलाक चाहिए? मुझे बुरा लगा, तो कुछ भी कहे बिना फ़ोन काट दिया। उसकी बात मुझे परेशान करती रही, और फिर मैं शिकायत करने लगा। परमेश्वर ने हमारे परिवार की सुख-शांति और बेटे की सेहत की रक्षा क्यों नहीं की?
कुछ दिन तक, सभाओं में मैं खुद को शांत नहीं कर पाया, और परमेश्वर के वचन पर सहभागिता के लिए कोई प्रबोधन भी नहीं मिला। तो फिर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मेरा आध्यात्मिक कद छोटा है। मेरी पत्नी ने जो बातें कहीं, तब से मैं निराश और कमज़ोर हो गया हूँ। मेरा साथ दो, अपनी इच्छा समझने में मेरा मार्गदर्शन करो।” उस शाम मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “परीक्षणों से गुजरते समय लोगों का कमजोर होना, या उनके भीतर नकारात्मकता आना, या परमेश्वर की इच्छा या अपने अभ्यास के मार्ग के बारे में स्पष्टता का अभाव होना सामान्य है। परंतु हर हालत में, अय्यूब की ही तरह, तुम्हें परमेश्वर के कार्य पर भरोसा होना चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर को नकारना नहीं चाहिए। यद्यपि अय्यूब कमजोर था और अपने जन्म के दिन को धिक्कारता था, फिर भी उसने इस बात से इनकार नहीं किया कि मनुष्य के जीवन में सभी चीजें यहोवा द्वारा प्रदान की गई हैं, और यहोवा ही उन्हें वापस लेने वाला है। चाहे उसकी कैसे भी परीक्षा ली गई, उसने यह विश्वास बनाए रखा। अपने अनुभव में, तुम चाहे परमेश्वर के वचनों के द्वारा जिस भी शोधन से गुजरो, परमेश्वर को मानवजाति से जिस चीज की अपेक्षा है, संक्षेप में, वह है परमेश्वर पर उनकी आस्था और उनका परमेश्वर-प्रेमी हृदय। इस तरह से कार्य करके जिस चीज को वह पूर्ण बनाता है, वह है लोगों का विश्वास, प्रेम और अभिलाषाएँ। परमेश्वर लोगों पर पूर्णता का कार्य करता है, और वे इसे देख नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते; इन परिस्थितियों में तुम्हारा विश्वास आवश्यक होता है। लोगों का विश्वास तब आवश्यक होता है, जब कोई चीज खुली आँखों से न देखी जा सकती हो, और तुम्हारा विश्वास तब आवश्यक होता है, जब तुम अपनी धारणाएँ नहीं छोड़ पाते। जब तुम परमेश्वर के कार्य के बारे में स्पष्ट नहीं होते, तो आवश्यक होता है कि तुम विश्वास बनाए रखो, रवैया दृढ़ रखो और गवाह बनो। जब अय्यूब इस मुकाम पर पहुँचा, तो परमेश्वर उसे दिखाई दिया और उससे बोला। अर्थात्, केवल अपने विश्वास के भीतर से ही तुम परमेश्वर को देखने में समर्थ हो पाओगे, और जब तुम्हारे पास विश्वास होगा तो परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा। विश्वास के बिना वह ऐसा नहीं कर सकता” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों से पता चला कि आस्था और उसके राज्य में प्रवेश का मार्ग इतना आसान नहीं है। इसमें कई मुश्किलों और परीक्षणों का सामना करना पड़ता है, ऐसी चीज़ें होंगी जो हमें पसंद नहीं। यह जानने को इन सबसे गुजरना होगा कि हमें परमेश्वर में आस्था है या नहीं, हम उसके लिए ज़ोरदार गवाही दे सकते हैं या नहीं। फिर यह सोचकर कि जब मेरी पत्नी पहले सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरी आस्था का विरोध कर रही थी, मुझमें उसके सामने गवाही देने की आस्था थी। पर जब उसने तलाक की धमकी दी और हमारी बच्चा बीमार हुआ तो मैं शिकायत करने से नहीं हट सका। मुझे लगा कि परमेश्वर मेरे परिवार की सुख शांति या बच्चे की रक्षा नहीं कर रहा था। समझ आ गया कि मुझमें सच्ची आस्था नहीं थी। एक-दो चीज़ें वैसी नहीं हुईं, जैसे मैं चाहता था तो परमेश्वर को दोष देने लगा—ये कैसी गवाही थी? फिर सोचने लगा : परिवार में कुछ बुरा होते ही परमेश्वर में मेरी आस्था खत्म क्यों होने लगी? मैं परमेश्वर को दोष क्यों देने लगा?
बाद में, मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े, जिससे मुझे आस्था के अनुसरण पर मेरी सोच की कुछ समझ हासिल हुई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “आज, तुम मेरी बातों पर विश्वास नहीं करते, और उन पर ध्यान नहीं देते; जब इस कार्य को फैलाने का दिन आएगा, और तुम उसकी संपूर्णता को देखोगे, तब तुम्हें अफसोस होगा, और उस समय तुम भौंचक्के रह जाओगे। आशीषें हैं, फिर भी तुम्हें उनका आनंद लेना नहीं आता, सत्य है, फिर भी तुम्हें उसका अनुसरण करना नहीं आता। क्या तुम अपने-आप पर अवमानना का दोष नहीं लाते? आज, यद्यपि परमेश्वर के कार्य का अगला कदम अभी शुरू होना बाकी है, फिर भी तुमसे जो कुछ अपेक्षित है और तुम्हें जिन्हें जीने के लिए कहा जाता है, उनमें कुछ भी असाधारण नहीं है। इतना सारा कार्य है, इतने सारे सत्य हैं; क्या वे इस योग्य नहीं हैं कि तुम उन्हें जानो? क्या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय तुम्हारी आत्मा को जागृत करने में असमर्थ हैं? क्या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय तुममें खुद के प्रति नफरत पैदा करने में असमर्थ हैं? क्या तुम शैतान के प्रभाव में जी कर, और शांति, आनंद और थोड़े-बहुत दैहिक सुख के साथ जीवन बिताकर संतुष्ट हो? क्या तुम सभी लोगों में सबसे अधिक निम्न नहीं हो? उनसे ज्यादा मूर्ख और कोई नहीं है जिन्होंने उद्धार को देखा तो है लेकिन उसे प्राप्त करने का प्रयास नहीं करते; वे ऐसे लोग हैं जो पूरी तरह से देह-सुख में लिप्त होकर शैतान का आनंद लेते हैं। तुम्हें लगता है कि परमेश्वर में अपनी आस्था के लिए तुम्हें चुनौतियों और क्लेशों या कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। तुम हमेशा निरर्थक चीजों के पीछे भागते हो, और तुम जीवन के विकास को कोई अहमियत नहीं देते, बल्कि तुम अपने फिजूल के विचारों को सत्य से ज्यादा महत्व देते हो। तुम कितने निकम्मे हो! ... तुम परमेश्वर में विश्वास करने के बाद शांति प्राप्त करना चाहते हो—ताकि अपनी संतान को बीमारी से दूर रख सको, अपने पति के लिए एक अच्छी नौकरी पा सको, अपने बेटे के लिए एक अच्छी पत्नी और अपनी बेटी के लिए एक अच्छा पति पा सको, अपने बैल और घोड़े से जमीन की अच्छी जुताई कर पाने की क्षमता और अपनी फसलों के लिए साल भर अच्छा मौसम पा सको। तुम यही सब पाने की कामना करते हो। तुम्हारा लक्ष्य केवल सुखी जीवन बिताना है, तुम्हारे परिवार में कोई दुर्घटना न हो, आँधी-तूफान तुम्हारे पास से होकर गुजर जाएँ, धूल-मिट्टी तुम्हारे चेहरे को छू भी न पाए, तुम्हारे परिवार की फसलें बाढ़ में न बह जाएं, तुम किसी भी विपत्ति से प्रभावित न हो सको, तुम परमेश्वर के आलिंगन में रहो, एक आरामदायक घरौंदे में रहो। तुम जैसा डरपोक इंसान, जो हमेशा दैहिक सुख के पीछे भागता है—क्या तुम्हारे अंदर एक दिल है, क्या तुम्हारे अंदर एक आत्मा है? क्या तुम एक पशु नहीं हो? मैं बदले में बिना कुछ मांगे तुम्हें एक सत्य मार्ग देता हूँ, फिर भी तुम उसका अनुसरण नहीं करते। क्या तुम उनमें से एक हो जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं? मैं तुम्हें एक सच्चा मानवीय जीवन देता हूँ, फिर भी तुम अनुसरण नहीं करते। क्या तुम कुत्ते और सूअर से भिन्न नहीं हो? सूअर मनुष्य के जीवन की कामना नहीं करते, वे शुद्ध होने का प्रयास नहीं करते, और वे नहीं समझते कि जीवन क्या है। प्रतिदिन, उनका काम बस पेट भर खाना और सोना है। मैंने तुम्हें सच्चा मार्ग दिया है, फिर भी तुमने उसे प्राप्त नहीं किया है : तुम्हारे हाथ खाली हैं। क्या तुम इस जीवन में एक सूअर का जीवन जीते रहना चाहते हो? ऐसे लोगों के जिंदा रहने का क्या अर्थ है? तुम्हारा जीवन घृणित और ग्लानिपूर्ण है, तुम गंदगी और व्यभिचार में जीते हो और किसी लक्ष्य को पाने का प्रयास नहीं करते हो; क्या तुम्हारा जीवन अत्यंत निकृष्ट नहीं है? क्या तुम परमेश्वर की ओर देखने का साहस कर सकते हो? यदि तुम इसी तरह अनुभव करते रहे, तो क्या केवल शून्य ही तुम्हारे हाथ नहीं लगेगा? तुम्हें एक सच्चा मार्ग दे दिया गया है, किंतु अंततः तुम उसे प्राप्त कर पाओगे या नहीं, यह तुम्हारी व्यक्तिगत खोज पर निर्भर करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि आस्था में मेरा लक्ष्य और मेरी सोच गलत थी, वह सत्य के अनुसरण में नहीं थी, इसके बजाय वह मेरे परिवार के कल्याण और सुरक्षा के लिए थी, और हमारे जीवन को आसान बनाने के लिए थी। मैं बस परमेश्वर की गोद में अनुग्रह का आनंद लेना चाहता था। जब तक मुझे उसका अनुग्रह मिला, मैंने आस्था से उसका अनुसरण किया, पर जब घर में समस्याएं हुईं, और जब मेरा बच्चा बीमार हुआ, तो परिवार की सुरक्षा के अभाव पर मैंने परमेश्वर को दोष दिया। मैंने आस्था खो दी और यहां तक कि लगा कि जो मेरे साथ हो रहा था, वह गलत था, लगा कि आस्था के लिए परमेश्वर को मुझे आशीष देनी चाहिए, और मेरे साथ ऐसी घटनाएँ होने से मुझे बचाना चाहिए। फिर एहसास हुआ कि मेरी आस्था पूरी तरह से आशीष पाने पर टिकी थी, मैं इस परीक्षा में खरा नहीं उतर पाया। आस्था रखना, और आराधना करना सही और प्राकृतिक है। ये वैसा ही है जैसे बच्चे अपने माता-पिता को समर्पित होते हैं—हमें परमेश्वर से लेनदेन नहीं करना चाहिए। पर मैं हमेशा परमेश्वर से चीजें, उसका अनुग्रह प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था। मुझमें विवेक या समझ नहीं थी। क्या मैं वैसा इंसान था जिसकी बात परमेश्वर कर रहा था—हृदयहीन, या आत्माहीन? ऐसी आस्था उसकी इच्छा के अनुरूप कैसे हो सकती है? उस बिंदु पर मुझे समझ आया कि ये अवांछनीय चीज़ें परमेश्वर की आज्ञा से हुई थीं। मैं इन सबसे इसलिए गुजरा ताकि आस्था पर मेरी गलत सोच उजागर हो, और मुझे परमेश्वर के वचनों पर आत्मचिंतन करके खुद को जानने का मौका मिले, मैं अपनी गलत सोच बदलूँ, परमेश्वर में सच्ची आस्था पा सकूँ। यह परमेश्वर का शुद्धिकरण और उद्धार था। परमेश्वर की इच्छा समझने से मुझे आस्था मिली। मैं पारिवारिक शांति, अनुग्रह और आशीषों के पीछे नहीं भागना चाहता था। मैं सभाओं में होना चाहता था। मैंने संकल्प लिया कि अब आगे चाहे जो भी हो, मैं हमेशा सत्य का अनुसरण करता रहूँगा।
उसके बाद अपनी भक्ति में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “यह ‘विश्वास’ शब्द किस चीज को संदर्भित करता है? विश्वास सच्चा भरोसा और ईमानदार हृदय है, जो मनुष्यों के पास तब होना चाहिए जब वे किसी चीज को देख या छू न सकते हों, जब परमेश्वर का कार्य मनुष्यों की धारणाओं के अनुरूप न होता हो, जब वह मनुष्यों की पहुँच से बाहर हो। मैं इसी विश्वास की बात करता हूँ। कठिनाई और शोधन के समय लोगों को विश्वास की आवश्यकता होती है, और विश्वास वह चीज है जिसके बाद शोधन होता है; शोधन और विश्वास को अलग नहीं किया जा सकता। परमेश्वर चाहे कैसे भी कार्य करे और तुम्हारा परिवेश कैसा भी हो, तुम जीवन का अनुसरण करने, सत्य की खोज करने, परमेश्वर के कार्य के ज्ञान को तलाशने, उसके क्रियाकलापों की समझ रखने और सत्य के अनुसार कार्य करने में समर्थ होते हो। ऐसा करना ही सच्चा विश्वास रखना है, ऐसा करना यह दिखाता है कि तुमने परमेश्वर में अपना विश्वास नहीं खोया है। तुम केवल तभी परमेश्वर में सच्चा विश्वास रख सकते हो, जब तुम शोधन द्वारा सत्य का अनुसरण करते रहने में समर्थ होते हो, जब तुम सच में परमेश्वर से प्रेम करने में समर्थ होते हो और उसके बारे में संदेह विकसित नहीं करते, जब तुम उसे संतुष्ट करने के लिए सत्य का अभ्यास करते हो चाहे वह कुछ भी करे, और जब तुम गहराई में उसकी इच्छा का पता लगाने में समर्थ होते हो और उसकी इच्छा के प्रति विचारशील होते हो” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना, हालात आपके पक्ष में हों या उलट, हम परमेश्वर पर संदेह कर, उसे दोष नहीं दे सकते। हम कितने भी कष्ट झेलें, हमें परमेश्वर की इच्छा खोजनी होगी, उसके साथ खड़े होकर वचनों के अनुसार अभ्यास करना होगा। हमें परमेश्वर का अनुसरण करने लायक बनना होगा, सत्य का अभ्यास करना होगा, उसे संतुष्ट करना होगा, चाहे हमें जितना कष्ट उठाना पड़े। केवल यही सच्ची आस्था है। इस समझ से मुझे अभ्यास का मार्ग और परमेश्वर के अनुसरण की आस्था मिली।
एक दिन मैंने अपनी माँ को कॉल करके पूछा कि मेरी पत्नी कैसी है। उसने बताया, “वह अपना समय अपने मायके में बिता रही है, और घर की देखभाल नहीं करती। लगता है जैसे वह बिल्कुल बदल गई है।” मेरी माँ ने यह भी बताया, “पादरी के मुताबिक मैं गलत मार्ग पर हूँ, कि मेरी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था प्रभु यीशु से विश्वासघात है। उसने मुझे कहा कि मैं कलीसिया वापस जाऊँ और चमकती पूर्वी बिजली को छोड़ दूँ।” यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने सोचा, “याजक-वर्ग ऐसे वचन क्यों कहेगा? उनकी भ्रामक अफवाहों की वजह से ही पत्नी ने परमेश्वर पर मेरी आस्था का विरोध किया था। मैं उन्हें अपना रास्ता अवरुद्ध करने नहीं दे सकता। वो चाहे जो कहें, मुझे उनकी बात नहीं सुननी।” अच्छी तरह सोचने के बाद, मैंने अपनी माँ से अनुरोध किया, “याजक-वर्ग की उन बातों पर ध्यान मत दो। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुत से सत्य व्यक्त किए हैं, और उसकी वाणी परमेश्वर की ही वाणी है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है। वह और प्रभु यीशु एक ही परमेश्वर हैं, इसलिए उसमें मेरी आस्था प्रभु यीशु से धोखा नहीं है। यह मेमने के पदचिह्नों पर चलना और प्रभु के आगमन का स्वागत करना है।” इसके बाद उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
फिर एक शाम मैंने पत्नी को कॉल किया। उसने नाराजगी से कहा, “मुझे कॉल क्यों कर रहे हो? मुझे लगता है कि तुम्हें अब परिवार नहीं चाहिए। चुन लो। चमकती पूर्वी बिजली या हमारा परिवार? मेरे बारे में नहीं सोचते तो मत सोचो, पर तुम्हें हमारी बच्चे का सोचना चाहिए, वह बस आठ महीने का है।” अपनी पत्नी की बात सुनकर मैं परेशान हो गया। मैंने सोचा : “मैं बस सभाओं में भाग ले रहा हूँ और परमेश्वर के वचन पढ़ रहा हूँ। मैं सही मार्ग पर हूँ। मैंने कभी नहीं कहा कि मुझे अपने बेटे या उसकी या परिवार की परवाह नहीं है। वह इस तरह मुझे चुनने को मजबूर क्यों कर रही है?” फिर मुझे लगा, “उसे पता नहीं परमेश्वर में आस्था क्या होती है, वह मेरी नहीं सुनेगी, चाहे मैं जो कहूँ। मगर अपनी आस्था छोड़ना मेरे लिए मुमकिन नहीं है। मेरा पहले ही भरोसा है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है, तो मैं उसका अनुसरण करता रहूँगा, चाहे मेरी पत्नी जो कहे।” जब उसने देखा मैं जवाब नहीं दे रहा हूँ, तो फ़ोन रख दिया। हालाँकि उस समय मेरी पत्नी की बातें मुझे परेशान कर रही थीं, मुझे पता था कि मैं पहले की तरह परमेश्वर से शिकायत या उसे दोष नहीं दे सकता। मुझे आस्था रखनी होगी, इससे निकलने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना होगा। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का ये भजन सुना, “सत्य के लिए तुम्हें सब कुछ त्याग देना चाहिए” :
1 तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए।
2 तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान
परमेश्वर के वचनों से मेरी आस्था मजबूत हुई। मैं जानता था, एक विश्वासी के रूप में, सत्य खोजना ही जीने का एकमात्र सार्थक तरीका है और मैं घर की थोड़ी सी समस्या या सांसारिक परेशानियों के कारण अपनी आस्था नहीं छोड़ सकता। आस्था में कमी और परमेश्वर की आराधना के बिना जीवन का कोई अर्थ या मूल्य नहीं होगा। मैं अपने परिवार से अवरुद्ध नहीं हो सकता। मेरे परिवार और बच्चे की सेहत सभी परमेश्वर के हाथों में है, तो मुझे यह सब उसे सौंपकर उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहिए। मुझे जितना हो सकता है, सत्य खोजना और कर्तव्य निभाना चाहिए।
कुछ समय बाद, मुझे अपना आईडी कार्ड रिन्यू करवाने के लिए घर जाना पड़ा क्योंकि उसका समय खत्म होने वाला था। मैं बहुत खुश था क्योंकि मुझे लगा कि परिवार के साथ सुसमाचार साझा करने का ये अच्छा मौका था। पर मैं थोड़ा फ़िक्रमंद भी था, क्योंकि मेरी माँ और पत्नी दोनों सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरी आस्था के ख़िलाफ़ थे, और मेरे गृहनगर में सभी जानते थे मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करता था। स्थानीय याजक-वर्ग को मेरे आने का पता चला, तो वे मेरा रास्ता जरूर रोकेंगे। मुझे अंदाज़ा नहीं था कि जब मैं वहां जाऊँगा तो क्या होगा। तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, कहा, “हे परमेश्वर! मैं इस यात्रा में घर जाकर अपने परिवार को सुसमाचार सुनाना चाहता हूँ, पर याजक-वर्ग रुकावट डालता रहा है और मेरा परिवार मेरा विरोधी है। मुझे डर है कि वे लोग मेरी सहभागिता नहीं सुनेंगे। परमेश्वर, कृपया मेरा साथ दो, कोई रास्ता दिखाओ।” फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक भजन “परमेश्वर के वचनों का पालन करो तो तुम कभी राह से नहीं भटकोगे” सुना :
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2 किसी भी व्यक्ति, घटना और चीज़ का सामना होने पर, परमेश्वर के वचन किसी भी समय तुम्हारे सामने प्रकट होंगे, उसकी इच्छा के अनुरूप कार्य करने के लिए तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे और तुम जो भी करते हो, उसमें उसके वचनों का पालन करो। परमेश्वर तुम्हारे हर कार्य में तुम्हारी अगुआई करेगा; तुम कभी भी रास्ते से नहीं भटकोगे और तुम एक नई रोशनी में रहने के काबिल होगे, तुम्हें कहीं अधिक और नया प्रबोधन मिलेगा। क्या करना है, इस पर विचार करने के लिये तुम इंसानी धारणाओं का इस्तेमाल नहीं कर सकते; तुम्हें परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के लिये समर्पित होना चाहिये, एक स्वच्छ हृदय रखना चाहिये, परमेश्वर के सामने शांत रहना चाहिए और गहराई से विचार करना चाहिये। जिसे तुम नहीं समझ पाते हो, उस बात के लिये नाराज़ मत हो; ऐसी बातों को अक्सर परमेश्वर के समक्ष लेकर जाओ और उससे सच्चे दिल से प्रार्थना करो।
3 विश्वास करो कि परमेश्वर तुम्हारा सर्वशक्तिमान है! तुम्हारे पास परमेश्वर के लिये काफ़ी महत्वाकांक्षाएं होनी चाहिये, तुम्हें शैतान के बहानों, इरादों और चालों को अस्वीकार करते हुए तत्परता से खोज करनी चाहिये। निराश मत हो। कमज़ोर मत बनो। दिल की गहराइयों से खोज करो; पूरी लगन से इंतज़ार करो। परमेश्वर के साथ सक्रिय सहयोग करो और अपनी आंतरिक बाधाओं से छुटकारा पाओ।
—परमेश्वर की संगति
भजन सुनकर मैंने जाना कि परमेश्वर की इच्छा से ही मुझे घर जाने का मौका मिला। दरअसल, परमेश्वर में मेरी आस्था ही कमज़ोर थी, मुझे उसकी इच्छा की समझ नहीं थी। पर इससे निकलने के लिए उस पर भरोसा करना ही था, परमेश्वर के वचनों का हिस्सा “विश्वास करो कि परमेश्वर तुम्हारा सर्वशक्तिमान है” मन में बस गया। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था दी। मेरे साथ जो भी होता है, उसकी अनुमति परमेश्वर देता है। जब तक मुझे सचमुच परमेश्वर पर भरोसा है, तो वो इन हालात का सामना करने के लिए मुझे राह दिखाएगा।
जब मैं घर पहुँचा, तो पत्नी ने मुझे अनदेखा कर दिया। मैं जानता था, ऐसा सिर्फ पादरी के भ्रामक प्रभाव की वजह से था। मुझे परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही पर बात करनी ही थी, ताकि उसे सत्य पता चले, और वह पादरी की बातों से गुमराह न हो। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करके राह दिखाने को कहा। फिर सब्र के साथ पत्नी से कुछ दिल से निकली बातें कही, “तुम्हें और माँ को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को जाँचना चाहिए, और उसके वचन सुनने चाहिए। फिर तुम जान जाओगे कि यह परमेश्वर की वाणी है, और यह मानवजाति के लिए उसके वचन हैं। अगर तुम जांचने या परमेश्वर की वाणी सुनने के बजाय, याजक-वर्ग की अफवाहों और झूठों पर ध्यान दोगी, तो प्रभु का स्वागत कैसे करोगी? प्रभु यीशु ने एक बार कहा था : ‘माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा’ (मत्ती 7:7)। प्रभु विश्वसनीय है। अगर हम सचमुच खोजें, तो हम प्रभु की वाणी सुन पाएंगे और उसकी वापसी का स्वागत कर पाएंगे।” मेरी पत्नी ने इस पर कुछ नहीं कहा। मैंने पाया कि वह मेरी बातें बस शांति से सुन रही थी, और उसने पहले की तरह विरोध या बहस नहीं की। इसे परमेश्वर का मार्गदर्शन मान मैंने दिल से उसका धन्यवाद किया, इससे परमेश्वर के कार्य के बारे में और बताने का आत्मविश्वास जगा।
अगले दिन, मैंने परमेश्वर के प्रकटन और कार्य पर अपनी पत्नी और माँ दोनों को गवाही दी। मैंने कहा, “आपको पता है मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को क्यों स्वीकारा? क्योंकि मैंने उसके वचन पढ़े हैं, जाना है कि ये सब सत्य है, परमेश्वर की वाणी है, मुझे यकीन हो गया कि वह लौटकर आया प्रभु यीशु है। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचन बोले हैं, उसने अपनी 6,000 साल की प्रबंधन योजना और बाइबल के सभी रहस्यों से परदा हटाया है, साथ ही बताया है कि कैसे मानवजाति मौजूदा समय तक पहुँची है, कैसे शैतान ने हमें भ्रष्ट किया, कैसे परमेश्वर चरण दर चरण मानवजाति को बचाने का काम करता है, कैसे वह हमारे परिणाम और अंतिम मंज़िलें तय करता है, किस तरह के लोग पूरी तरह बचाए जा सकते हैं, और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे और किसे दंड मिलेगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हम सभी को ये सब रहस्य और सत्य और बहुत कुछ बताया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमें यह सत्य भी बताया है कि कैसे शैतान ने इंसान को भ्रष्ट किया, परमेश्वर के प्रति हमारे विरोध की जड़ क्या है। इतना ही नहीं, उसने वह मार्ग भी दिखाया है जिससे हमारे पाप पूरी तरह स्वच्छ हो जाएंगे। एक-एक शब्द सत्य है, सामर्थ्यवान और अधिकार से परिपूर्ण है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने यह सब हमें शुद्ध करके बदलने के लिए घोषित किया है, ताकि हमें शैतान के प्रभाव से पूरी तरह बचा सके। क्या लगता है, कौन सत्य व्यक्त कर सकता है और रहस्यों को उजागर कर सकता है? कौन लोगों को शुद्ध कर बचा सकता है? सिर्फ परमेश्वर! लोगों के पास सत्य नहीं होता। सिर्फ मसीह ही मार्ग सत्य और जीवन है। तुम्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन अच्छी तरह पढ़ने चाहिए, तब तुम्हें पता चलेगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य बोलता है, परमेश्वर की वाणी है, और यह कि वही लौटकर आया प्रभु यीशु है! अगर तुम किसी से प्रभु के लौटने का प्रसारण सुनती हो, फिर भी उसकी छानबीन न करके, पादरी की बातों में आकर राय बनाती हो और उसकी निंदा करती हो, तो प्रभु का स्वागत करने का मौका गँवा दोगी और परमेश्वर के अनंत उद्धार को गँवा दोगी। ये बड़े शर्म की बात होगी।” यह सुनकर, मेरी माँ ने कहा, “हाँ, तुमने सही कहा। परमेश्वर ने इंसान को बनाया, तो हमें उसकी सुननी चाहिए, लोगों की नहीं।” जब मैंने उन्हें यह कहते सुना, तो मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया। वह आगे बताती गईं, “एक बार मैंने पादरी से हमारे परिवार के लिए प्रार्थना करने को कहा, तो उसने कहा, ‘तेरा बेटा हमारी बात बिल्कुल नहीं सुनता। बिना हमसे पूछे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण किया। तुम लोग हमारा सम्मान नहीं करते, तो परिवार के मामलों में हमसे मदद मत मांगो, इन मामलों को खुद सुलझाओ।’” यह सुनकर मैंने गुस्से में कहा, “याजक-वर्ग के सदस्यों के नाते, प्रभु की वापसी की हर खबर की छानबीन करने में उन्हें भाई-बहनों की अगुआई करनी चाहिए। वे सिर्फ मना नहीं करते, बल्कि हमें धमकाते हैं, और हमें परमेश्वर की वाणी सुनने और प्रभु का स्वागत करने से रोकते हैं। उनकी असली मंशाएं क्या हैं? क्या वे सभी को अपने चंगुल में नहीं जकड़ना चाहते? प्रभु यीशु ने फ़रीसियों को धिक्कारा था : ‘हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो’ (मत्ती 23:13)। जब प्रभु यीशु ने प्रकट होकर कार्य किया, फ़रीसियों ने पागलों की तरह अफवाहें फैलाईं, उसका विरोध किया और निंदा की, ताकि वे अपनी हैसियत और आजीविकाओं पर कब्जा रख सकें। उन्होंने विश्वासियों को गुमराह किया और प्रभु का अनुसरण करने से रोका और अंत में उन्होंने प्रभु यीशु को सलीब पर लटका दिया, जिसके बाद परमेश्वर ने उन्हें शाप देकर दंडित किया। आज का याजक-वर्ग उन फ़रीसियों जैसा ही है। उन्हें डर है कि विश्वासी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करेंगे और वे अपनी हैसियत और आजीविका खो देंगे, इसलिए वे विश्वासियों को प्रभु के वचन को सुनने और उसका स्वागत करने से रोकने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं। वे परमेश्वर के शत्रुओं की तरह काम कर रहे हैं! अंत में उन्हें भी शाप देकर दंडित किया जाएगा।”
फिर मैंने उन्हें संगति दी कि कैसे हमें उसका स्वागत करने के लिए परमेश्वर की वाणी सुननी चाहिए, यही बुद्धिमान कुँवारी बनकर प्रभु का अभिवादन करने का तरीका है। मैंने यह भी कहा, “मुझे पूरी उम्मीद है तुम दोनों सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों की छानबीन करोगे, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को सुनोगे, ताकि जान सको कि वह परमेश्वर की वाणी है। मैं तुम्हें याजक-वर्ग द्वारा गुमराह होकर, उनके काबू में आते नहीं देख सकता। तुम्हें समझ पाने के लिए सीखना होगा।” मेरी माँ ने तब कहा, “तुम सही कहते हो। पहले मैंने हमेशा याजक-वर्ग की सुनी, इस डर से कि तुम गलत मार्ग पर चल रहे हो। इसीलिए तुम्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने से रोकती रही। पर तुम्हारी सहभागिता बाइबल के अनुसार है, चीज़ें दरअसल वैसी नहीं हैं जैसा याजक-वर्ग उन्हें दिखाता है। मैं इस पर गौर करूंगी।” मेरी पत्नी इस दौरान ध्यान से सारी बातें सुनती रही। इसके बाद, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कई वचन पढ़े, फिर परमेश्वर के अनुसरण और इंसान के अनुसरण के बीच अंतर, और परमेश्वर के देह में न्याय कार्य करने के कारण, और देह में उसके अंत के दिनों के न्याय कार्य के अर्थ और अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय कार्य के महत्व जैसी चीजों पर संगति की। संगति के कुछ सत्रों के बाद, उन दोनों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार लिया। जब मैंने उन दोनों को उसके सामने आते देखा, तो मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया।
एक समय, मेरी पत्नी ने सब खुलकर बताया। उसने कहा, “पहले मेरा तुम पर दबाव बनाना, तलाक के लिए मजबूर करना, इसलिए था कि मैं पादरी की बातों में आ गई थी। जब भी मैं कलीसिया जाती, वे कहते कि तुम गलत मार्ग पर हो, तुम्हें वापस लाने को कहते। मुझे लगा वह सही कह रहे हैं, तो मैं लगातार तुमसे झगड़ती रही, तुम्हारी बातें बिल्कुल नहीं सुनी। लेकिन इस दौरान सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर और तुम्हारी सहभागिता सुनकर, मैंने जाना कि यह सब उससे बिल्कुल अलग है, जो पादरी ने बताया था। परमेश्वर के नए कार्य के प्रति अपने पिछले रवैये पर सोचती हूँ तो सच में डर लगता है। मैं उसके ख़िलाफ़ लड़ रही थी, प्रभु के आगमन के स्वागत का मौका भी गँवा दिया था। मुझे पादरी की बातों में नहीं आना चाहिए था और तुम पर दबाव नहीं डालना चाहिए था। मुझे सच में माफ कर दो।” जब मैंने पत्नी के मुँह से यह सुना, तो मेरा दिल भर आया। मैं लगभग रोने ही लगा था और सर्वशक्तिमान परमेश्वर को तहेदिल से धन्यवाद दिया!
उस अनुभव से गुजरकर, मैंने इंसानियत को बचाने के परमेश्वर के हार्दिक प्रयासों को महसूस किया। उसने हमारी भ्रष्टता और कमियों को उजागर करने, और उसमें हमारी आस्था को पूर्ण करने के लिए मुश्किल हालात पैदा किए। हालाँकि कभी-कभी मैंने कष्ट उठाकर कमज़ोर और दुखी महसूस किया, परमेश्वर ने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा, और हमेशा अपने वचनों से राह दिखाई। इससे मैं आस्था को लेकर अपनी गलत सोच को समझने में, शैतान की योजनाओं और गड़बड़ियों को देखने में और कुछ सत्य जान पाने में मदद मिली। इससे परमेश्वर में मेरी आस्था मजबूत हुई। यह सब परमेश्वर का मार्गदर्शन था! धन्यवाद परमेश्वर!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?