पैसे और हैसियत ने मेरे लिए किया ही क्या?
मैं एक टूटे हुए परिवार में पैदा हुई थी। मैं गर्भ में ही थी, जब मेरे पिता दूसरी औरत के साथ भाग गए। मेरी माँ ने बहुत कष्टों से छह बच्चों को पाला-पोसा, मैं हर रात अपनी माँ को रोते-सिसकते हुए सुनती थी। उसे इस तरह फूट-फूटकर रोते देख मैं शादी और रिश्तों को लेकर बहुत नकारात्मक हो गई। मैंने मन ही मन कहा, "किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता। किसी पर भरोसा मत करना। जीवन में सिर्फ खुद पर और अपने कमाए पैसे पर ही भरोसा किया जा सकता है।" उसी क्षण से मैं सोचने लगी कि पैसा कैसे कमाया जाए। हाई स्कूल में, जब बाकी सभी अपनी छुट्टियों में मौज करते, मेरी माँ और मैं सड़क-किनारे खाने का स्टॉल लगाया करते। लेकिन उस समय हम जो पैसा कमाते, वह हमारी बुनियादी जरूरतों में ही लग जाता। हाई स्कूल के दूसरे वर्ष फीस न दे पाने के कारण मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसके बाद मैं स्टॉल चलाती रही। मैं रोज सुबह चार-पाँच बजे खाना बनाने के लिए उठती और छह बजे तक स्टॉल चली जाती। तीन साल बाद, मैंने इतने पैसे बचा लिए कि किसी बड़े शहर जा सकूँ। मैं रोज जल्दी उठती कड़ी मेहनत करती, लेकिन कमाई ज्यादा न होती, इससे मैं संतुष्ट नहीं थी। इसलिए, अपने बॉयफ्रेंड की मदद से, मैंने अपनी बचत लगाकर एक छोटी-सी दुकान खोल ली। दो साल बाद, हमने कुछ पैसे कमा लिए और हमारे बच्चे हो गए। हमारी शादी होने ही वाली थी, कि मेरे बॉयफ्रेंड ने धोखा देकर मेरा सब-कुछ हड़प लिया। सारे पैसे लेकर दूसरी औरत के साथ रहने लगा। उनका एक बच्चा भी था। मेरी सारी मेहनत की कमाई चली गई, मैं उदास और दुखी रहने लगी। मेरी माँ के साथ जो हुआ, उसके बाद से मुझे लगता था कि पुरुष भरोसे के लायक नहीं हैं, मुझे अपने बच्चे पालने के लिए पैसे कमाने पर ध्यान देना होगा। लेकिन मैं बहुत दबाव में थी, मेरे पास अपनी दुकान चलाने की ताकत नहीं थी, और मैं बीमार थी। मैं अब इस शहर में नहीं रहना चाहती थी। बाद में, जब मेरे बॉयफ्रेंड के पिता को पता चला, तो उन्होंने मुझे यूके का वीजा लेने के लिए पैसे दे दिए। चार साल बाद, मुझे निवास-परमिट मिल गया और मैंने विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया। ज्यादा पैसा कमाने के लिए मैंने व्यवसाय प्रबंधन पाठ्यक्रम चुना। 2011 में मुझे छात्रवृत्ति मिली, तो उस पैसे से मैंने शहर में एक अफ्रीकी खाद्य भंडार खोल लिया।
शुरुआत में, चूँकि स्टोर छोटा था, इसलिए मैंने सिर्फ एक व्यक्ति काम पर रखा। मैं स्टोर पर काम करने के लिए हर सुबह पाँच बजे उठती और काम खत्म होने के बाद स्कूल जाती। कक्षा के बाद मैं साफ-सफाई, सामान पहुँचाने और खाते सँभालने के लिए स्टोर पर लौट आती। व्यवसाय करना, विश्वविद्यालय में पढ़ना और साथ ही बच्चे भी पालना बहुत कठिन रहा होगा। लेकिन जब मैं हरेक को अपनी तारीफ करते सुनती, और उनकी प्रशंसात्मक और ईर्ष्यालु आँखें देखती, तो बहुत संतुष्टि महसूस करती। उस समय, स्टोर अच्छा चल रहा था, मैंने जितना सोचा नहीं था उससे भी ज्यादा पैसा कमा लिया, लेकिन मुझे वह काफी नहीं लगा। मैंने सोचा कि मुझे इतना अमीर होना चाहिए कि मैं बैंक खरीद सकूँ, ताकि दूसरे मेरी प्रशंसा करें और मुझसे ईर्ष्या करें। मैं वास्तव में यही चाहती थी। ज्यादा सम्मान और प्रशंसा पाने और यह साबित करने के लिए कि मैं मजबूत हूँ, अपने बच्चे पालने, शानदार जीवन जीने और ज्यादा पैसा कमाने के लिए मैंने अपनी दुकान बढ़ा ली। तीन साल बाद, मेरी छोटी-सी दुकान एक बड़ी दुकान में बदल गई, जिसमें विभिन्न अफ्रीकी देशों का खाना बिकता था। मुझे शहर के एकमात्र अफ्रीकी उद्यमी के रूप में भी जाना जाता था। हाई स्कूल और कॉलेज के शिक्षकों ने मुझे यूके में प्रवासी युवाओं को प्रेरित करने के लिए अपनी महत्वाकांक्षाओं और सफलता के बारे में बोलने के लिए आमंत्रित किया, और उन्होंने मुझे एक ट्रॉफी दी। जब मैं ट्रॉफी लेकर भाषण देने गई, तो सभी ने मुझे पहचान लिया। मुझे लगा, जैसे मेरी सारी मेहनत और वर्षों की तकलीफ सफल रही, और मैंने अपने जीवन के लक्ष्य प्राप्त कर लिए। लेकिन मैंने पैसा कमाना बंद नहीं किया, क्योंकि हैसियत होने पर काम करना और पैसा कमाना आसान हो जाता है, और मेरी प्रसिद्धि पाने की चाह भी बढ़ गई। लेकिन इस समय तक मुझे शरीर में बेचैनी महसूस होने लगी थी। मैं ज्यादा देर खड़ी न रह पाती थी। डॉक्टर ने कहा कि मुझे गठिया, फाइब्रोमायल्जिया और साइटिका है, जिसका मतलब है कि मेरी पूरी रीढ़ में दर्द था। डॉक्टर ने कहा कि मुझे स्वस्थ होने में समय लगेगा, और मैं अब काम नहीं कर सकती, लेकिन मैंने अपनी बीमारी को गंभीरता से नहीं लिया। मुझे लगा, व्यायाम से ठीक हो जाऊँगी। फिर, स्टोर इतना अच्छा चल रहा था कि उसे छोड़ना नहीं चाहती थी, इसलिए मैं काम करती रही।
2014 आते-आते मेरी हालत और खराब हो गई, पूरे शरीर में दर्द रहने लगा। लगा, जैसे मेरा पूरा शरीर जल रहा हो, मानो आग लग गई हो। मेरे पैर ज्यादातर समय सूजे रहते, लगता जैसे कूल्हे की हड्डी टूट- गई हो, रीढ़ नरम पड़ गई हो। उसे सीधा रखने के लिए मुझे पट्टी बाँधनी पड़ती। जब मैं चेकअप कराने गई, तो डॉक्टर ने कहा कि मुझे गठिया तो है ही, लेकिन अक्सर कसाई की दुकान के फ्रीजर में जाने के कारण ठंड मेरी हड्डियों तक पहुँच गई है, इसलिए किसी भी समय स्थायी रूप से लकवा मार सकता है। उस समय मैं बहुत घबरा गई थी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बाद में, मैं हिल भी न पाती, तो मेरे पास दुकान बंद करने के अलावा कोई चारा न रहा। शहर के दूसरे लोगों ने मेरी नकल करते हुए अपनी दुकानें खोल लीं। मुझे जलन हो रही थी, और मैं अपनी हालत से बहुत दुखी भी थी। मैं इतनी गंभीर रूप से बीमार क्यों थी? चौबीसों घंटे दर्द होता रहता, ऐसा कोई दिन न जाता जब मैं चैन से सो पाती। ऐसा लगता, जैसे मेरे दिल में आग जल रही हो, मेरी शारीरिक और मानसिक पीड़ा विशेष रूप से कष्टप्रद थी। तब, मैंने वाकई चीजों पर विचार करने लगी। मैंने जो पैसा कमाया था, वह मेरी बीमारी का इलाज नहीं कर पाया, तो उसका क्या फायदा? उस समय, मैं असुरक्षित और असहाय महसूस कर रही थी। मुझे अपने बच्चों की चिंता थी, क्योंकि सिर्फ मैं ही उनका परिवार थी। मैं अब पैसे और प्रसिद्धि के बारे में नहीं सोचना चाहती थी। बस यही चाहती थी कि मेरा दर्द खत्म हो और मैं शांति से अपने बच्चे पाल सकूँ। एक साल से ज्यादा समय से बिस्तर पर पड़े हुए मैं खुद से पूछा करती, "लोगों को इतना कष्ट क्यों होता है? हम बीमार क्यों पड़ते हैं?" दुख और निराशा में, मैंने अपने दर्द से बचने में मदद करने के लिए प्रभु को पुकारा।
मई 2019 में, एक बार, दस दिनों के उपवास और प्रार्थना के बाद, मैं भजन सुनना चाहती थी। मैंने ऑनलाइन खोजा, तो मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की वेबसाइट मिली। मैंने उस पर कुछ फिल्में देखीं, कहाँ है मेरा घर नामक फिल्म ने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी। उसमें दिखाई गई नन्ही-सी बच्ची का जीवन मेरे बचपन का प्रतिबिंब था, उसकी माँ का अनुभव बिलकुल मेरी माँ के अनुभव जैसा। पूरी रात मेरे सीने में दिल जोरों से धड़कता रहा, अगले दिन मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को फोन किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे यकीन हो गया कि वह लौटकर आया हुआ प्रभु यीशु है। मैंने खुशी से सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकार लिया, ऑनलाइन सभाओं में भाग लेने लगी। एक बार मैंने एक भजन सुना और बहुत प्रभावित हुई। "यदि परमेश्वर ने मुझे बचाया न होता, तो मैं संसार में अब तक भटक रहा होता, पापों के दलदल में जूझ रहा होता, और निराशा में जी रहा होता। यदि परमेश्वर ने मुझे न बचाया होता, दुष्ट आत्माएँ मुझे अब तक कुचलतीँ, पाप के सुखों को भोगते हुए, न जानते हुए कि मानव-जीवन की राह है कहाँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेरे प्रति दयालु है, उसके वचन मुझे पुकारते हैं, मैं सुनता हूँ परमेश्वर की आवाज़, उसके सिंहासन के सामने मैं उठाया गया हूँ। परमेश्वर के वचनों को रोज खाता-पीता हूँ, कई सत्यों को समझता हूँ, मैं देखता हूँ कितनी भ्रष्ट है मानवजाति, हमें वास्तव में परमेश्वर के उद्धार की ज़रूरत है। परमेश्वर का सत्य मुझे शुद्ध करता और बचाता है। निरंतर होते न्याय और शुद्धि से, मेरा जीवन स्वभाव कुछ बदला है, परमेश्वर की धार्मिकता और पवित्रता का अनुभव कर, उसका प्यारापन मैंने समझा है। मैं परमेश्वर का भय मान सकता हूँ, बुराई से दूर रह सकता हूँ, अब इंसानों की तरह थोड़ा-बहुत जी सकता हूँ" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ, यदि परमेश्वर ने मुझे बचाया न होता)। इस गीत ने मेरा जीवन बहुत अच्छे से स्पष्ट कर दिया। अतीत में, मैं हमेशा अपने हाथों से एक खुशहाल जीवन बनाना चाहती थी, और मुझे विश्वास था कि मैं अपने बल पर बचपन के सपने और इच्छाएँ पूरी कर सकती हूँ, लेकिन अंत में, मैं आहत हुई, मैं दुख में बेसहारा जी रही थी। परमेश्वर ही था, जो मुझे अपने सामने लाया, मेरी पीड़ा शांत की, मुझे दुनिया के अँधेरे से बचाया, अपने वचन पढ़ने दिए, न्याय और शुद्धिकरण स्वीकारने का मौका दिया। परमेश्वर के उद्धार के लिए उसका धन्यवाद! उस समय, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचन पढ़ने के लिए मैं बेचैन थी, क्योंकि मुझे लगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में कई प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं।
बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। "मनुष्य जीवन-भर जन्म, मृत्यु, बीमारी और वृद्धावस्था के कारण जो सहता है उसका स्रोत क्या है? किस कारण लोगों को यह कष्ट झेलना पड़ा? जब मनुष्य को पहली बार सृजित किया गया था तब यह नहीं था। है ना? तो फिर, यह कष्ट कहाँ से आया? यह कष्ट तब अस्तित्व में आया जब शैतान ने इंसानों को प्रलोभन दिया और वे शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिए गए और पतित हो गए। मानवीय देह की पीड़ा, उसकी यंत्रणा और उसका खोखलापन साथ ही मानवीय दुनिया की दयनीय दशा, ये सब तभी आए जब शैतान ने मानवजाति को भ्रष्ट कर दिया। जब मनुष्य शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया, तब वह उसे यंत्रणा देने लगा। परिणामस्वरूप, मनुष्य अधिकाधिक अपभ्रष्ट हो गया। मनुष्य की बीमारियाँ अधिकाधिक गंभीर होती गईं, और उसका कष्ट अधिकाधिक घोर होता गया। मनुष्य, मानवीय दुनिया के खोखलेपन, त्रासदी और साथ ही वहाँ जीवित रहने में अपनी असमर्थता को ज्यादा से ज्यादा महसूस करने लगा, और दुनिया में जीवित रहना अधिक से अधिक निराशा से भर गया। इस प्रकार, यह दुःख मनुष्य पर शैतान द्वारा लाया गया था और यह तभी हुआ जब शैतान ने मनुष्यों को भ्रष्ट कर दिया और उनका पतन हो गया" (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर द्वारा जगत की पीड़ा का अनुभव करने का अर्थ)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई, कि उसने रोग, पीड़ा और मृत्यु से रहित संसार की रचना की थी। जब शैतान ने लोगों को परमेश्वर को धोखा देने और उससे दूर रहने के लिए ललचाया, तो लोग पतित और भ्रष्ट होने लगे, और बीमारी और मृत्यु भी मानव-जाति पर आ पड़ी। उसके बाद, जीवन और ज्यादा दयनीय हो गया। छह वर्षों में मैं बीमारी से पीड़ित रही, यहाँ तक कि आत्महत्या तक करनी चाही। मेरा जीवन व्यर्थ और दर्द से भरा था। लेकिन अब मुझे अपने दर्द का स्रोत समझ आ गया : शैतान ने मुझे भ्रष्ट किया और मैं परमेश्वर से दूर हो गई, सिर्फ प्रसिद्धि और दौलत के लिए जीने लगी। शैतान के प्रभुत्व में रहते हुए, मैं सिर्फ और दर्द महसूस कर सकती थी, मेरा जीवन व्यर्थ हो जाना था। परमेश्वर के वचन पढ़ने से मेरा दिल उजला होता गया, उन्होंने मेरी सूखी हुई आत्मा को पोषित किया। मैं ऐसा महसूस कर रही थी, मानो बुरे सपनों से जाग गई हूँ।
बाद में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचन पढ़े। "'पैसा दुनिया को नचाता है' यह शैतान का एक फ़लसफ़ा है और यह संपूर्ण मानवजाति में, हर मानव-समाज में प्रचलित है। तुम कह सकते हो कि यह एक रुझान है, क्योंकि यह हर एक व्यक्ति के हृदय में बैठा दिया गया है। बिलकुल शुरू से ही, लोगों ने इस कहावत को स्वीकार नहीं किया, किंतु फिर जब वे जीवन की वास्तविकताओं के संपर्क में आए, तो उन्होंने इसे मूक सहमति दे दी, और महसूस करना शुरू किया कि ये वचन वास्तव में सत्य हैं। क्या यह शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने की प्रक्रिया नहीं है? शायद लोग इस कहावत को समान रूप से नहीं समझते, बल्कि हर एक आदमी अपने आसपास घटित घटनाओं और अपने निजी अनुभवों के आधार पर इस कहावत की अलग-अलग रूप में व्याख्या करता है और इसे अलग-अलग मात्रा में स्वीकार करता है। क्या ऐसा नहीं है? चाहे इस कहावत के संबंध में किसी के पास कितना भी अनुभव हो, इसका किसी के हृदय पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है? तुम लोगों में से प्रत्येक को शामिल करते हुए, दुनिया के लोगों के स्वभाव के माध्यम से कोई चीज प्रकट होती है। यह क्या है? यह पैसे की उपासना है। क्या इसे किसी के हृदय में से निकालना कठिन है? यह बहुत कठिन है! ऐसा प्रतीत होता है कि शैतान का मनुष्य को भ्रष्ट करना सचमुच गहन है! शैतान लोगों को प्रलोभन देने के लिए धन का उपयोग करता है, और उन्हें भ्रष्ट करके उनसे धन की आराधना करवाता है और भौतिक चीजों की पूजा करवाता है। और लोगों में धन की इस आराधना की अभिव्यक्ति कैसे होती है? क्या तुम लोगों को लगता है कि बिना पैसे के तुम लोग इस दुनिया में जीवित नहीं रह सकते, कि पैसे के बिना एक दिन जीना भी असंभव होगा? लोगों की हैसियत इस बात पर निर्भर करती है कि उनके पास कितना पैसा है, और वे उतना ही सम्मान पाते हैं। गरीबों की कमर शर्म से झुक जाती है, जबकि धनी अपनी ऊँची हैसियत का मज़ा लेते हैं। वे ऊँचे और गर्व से खड़े होते हैं, ज़ोर से बोलते हैं और अंहकार से जीते हैं। यह कहावत और रुझान लोगों के लिए क्या लाता है? क्या यह सच नहीं है कि पैसे की खोज में लोग कुछ भी बलिदान कर सकते हैं? क्या अधिक पैसे की खोज में कई लोग अपनी गरिमा और ईमान का बलिदान नहीं कर देते? क्या कई लोग पैसे की खातिर अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर का अनुसरण करने का अवसर नहीं गँवा देते? क्या सत्य प्राप्त करने और बचाए जाने का अवसर खोना लोगों का सबसे बड़ा नुकसान नहीं है? क्या मनुष्य को इस हद तक भ्रष्ट करने के लिए इस विधि और इस कहावत का उपयोग करने के कारण शैतान कुटिल नहीं है? क्या यह दुर्भावनापूर्ण चाल नहीं है? जैसे-जैसे तुम इस लोकप्रिय कहावत का विरोध करने से लेकर अंततः इसे सत्य के रूप में स्वीकार करने तक की प्रगति करते हो, तुम्हारा हृदय पूरी तरह से शैतान के चंगुल में फँस जाता है, और इस तरह तुम अनजाने में इस कहावत के अनुसार जीने लगते हो। इस कहावत ने तुम्हें किस हद तक प्रभावित किया है? हो सकता है कि तुम सच्चे मार्ग को जानते हो, और हो सकता है कि तुम सत्य को जानते हो, किंतु उसकी खोज करने में तुम असमर्थ हो। हो सकता है कि तुम स्पष्ट रूप से जानते हो कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, किंतु तुम सत्य को पाने के लिए क़ीमत चुकाने का कष्ट उठाने को तैयार नहीं हो। इसके बजाय, तुम बिलकुल अंत तक परमेश्वर का विरोध करने में अपने भविष्य और नियति को त्याग दोगे। चाहे परमेश्वर कुछ भी क्यों न कहे, चाहे परमेश्वर कुछ भी क्यों न करे, चाहे तुम्हें इस बात का एहसास क्यों न हो कि तुम्हारे लिए परमेश्वर का प्रेम कितना गहरा और कितना महान है, तुम फिर भी हठपूर्वक अपने रास्ते पर ही चलते रहने का आग्रह करोगे और इस कहावत की कीमत चुकाओगे। कहने का तात्पर्य यह है कि यह कहावत पहले ही तुम्हारे विचारों के साथ छल कर चुकी है और उन्हें नियंत्रित कर चुकी है, यह पहले ही तुम्हारे व्यवहार को नियंत्रित कर चुकी है, और तुम धन की खोज छोड़ने के बजाय इसे अपने भाग्य पर शासन करने दोगे। लोग इस प्रकार कार्य कर सकते हैं कि उन्हें शैतान के शब्दों द्वारा नियंत्रित और प्रभावित किया जा सकता है—क्या इसका यह अर्थ नहीं कि उन्हें शैतान द्वारा बरगलाया और भ्रष्ट किया गया है? क्या शैतान के दर्शन, उसकी मानसिकता और उसके स्वभाव ने तुम्हारे दिलों में जड़ें नहीं जमा ली हैं? जब तुम आँख मूँदकर धन के पीछे दौड़ते हो, और सत्य की खोज छोड़ देते हो, तो क्या शैतान ने तुम्हें बरगलाने का अपना उद्देश्य प्राप्त नहीं कर लिया है? ठीक यही मामला है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद ही मुझे समझ आया कि "पैसा ही सब-कुछ नहीं है, किंतु उसके बिना आप कुछ नहीं कर सकते" और "दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है" जैसी चीजें, जिन पर मैं हमेशा विश्वास करती थी, असल में शैतानी फलसफे हैं। उन्होंने मेरे दिल में जड़ें जमा ली थीं, मेरे दिमाग पर कब्जा कर लिया था, जिससे मुझे पैसे से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं लगता था। उसे मैंने जीने की एकमात्र वजह माना, मुझे लगा कि इससे मुझे खुशी और सम्मान मिलेगा, इसलिए मैं बेतहाशा पैसे के पीछे दौड़ी। ज्यादा पैसे कमाने, ईर्ष्या और आदर का पात्र बनने, एक अच्छा जीवन जीने के लिए, शरीर की परवाह किए बिना मैं कड़ी मेहनत करती रही, लकवाग्रस्त होकर अपनी जान गँवाने वाली थी। यह मेरे द्वारा शैतान के फलसफे स्वीकार कर उनसे नियंत्रित होने का नतीजा था। हालाँकि मुझे पता था कि परमेश्वर है, पर मुझमें उसका अनुसरण कर जीवन के सच्चे मार्ग पर चलने की ताकत नहीं थी, क्योंकि शैतान के वचन और फलसफे मुझे नियंत्रित कर रहे थे। उन्होंने मुझे परमेश्वर से दूर कर सिर्फ देह की तृप्ति के लिए जीने को बाध्य किया। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से मैं जान गई कि मैं गलत रास्ते पर हूँ।
बाद में, मैंने एक और अंश पढ़ा और मुझे पीड़ा से निकलने का रास्ता मिल गया। परमेश्वर के वचन कहते है, "क्योंकि लोग परमेश्वर के आयोजनों और परमेश्वर की संप्रभुता को नहीं पहचानते हैं, इसलिए वे हमेशा अवज्ञापूर्ण ढंग से, और एक विद्रोही दृष्टिकोण के साथ भाग्य का सामना करते हैं, और इस निरर्थक उम्मीद में कि वे अपनी वर्तमान परिस्थितियों को बदल देंगे और अपने भाग्य को पलट देंगे, हमेशा परमेश्वर के अधिकार और उसकी संप्रभुता तथा उन चीज़ों को छोड़ देना चाहते हैं जो उनके भाग्य में होती हैं। परन्तु वे कभी भी सफल नहीं हो सकते हैं; वे हर मोड़ पर नाकाम रहते हैं। यह संघर्ष, जो किसी व्यक्ति की आत्मा की गहराई में चलता है, ऐसी गहन पीड़ा देता है जो किसी को अंदर तक छलनी कर देती है, इस बीच व्यक्ति अपना जीवन व्यर्थ में नष्ट कर देता है। इस पीड़ा का कारण क्या है? क्या यह परमेश्वर की संप्रभुता के कारण है, या इसलिए है क्योंकि वह व्यक्ति अभागा ही जन्मा था? स्पष्ट है कि दोनों में कोई भी बात सही नहीं है। वास्तव में, लोग जिस मार्ग पर चलते हैं, जिस तरह से वे अपना जीवन बिताते हैं, उसी कारण से यह पीड़ा होती है। ... अपने आपको इस स्थिति से मुक्त करने का एक बहुत ही आसान तरीका है जो है जीवन जीने के अपने पुराने तरीके को विदा कहना; जीवन में अपने पुराने लक्ष्यों को अलविदा कहना; अपनी पुरानी जीवनशैली, जीवन को देखने के दृष्टिकोण, लक्ष्यों, इच्छाओं एवं आदर्शों को सारांशित करना, उनका विश्लेषण करना, और उसके बाद मनुष्य के लिए परमेश्वर की इच्छा और माँग के साथ उनकी तुलना करना, और देखना कि उनमें से कोई परमेश्वर की इच्छा और माँग के अनुकूल है या नहीं, उनमें से कोई जीवन के सही मूल्य प्रदान करता है या नहीं, यह व्यक्ति को सत्य को अच्छी तरह से समझने की दिशा में ले जाता है या नहीं, और उसे मानवता और मनुष्य की सदृशता के साथ जीवन जीने देता है या नहीं। जब तुम जीवन के उन विभिन्न लक्ष्यों की, जिनकी लोग खोज करते हैं और जीवन जीने के उनके अनेक अलग-अलग तरीकों की बार-बार जाँच-पड़ताल करोगे और सावधानीपूर्वक उनका विश्लेषण करोगे, तो तुम यह पाओगे कि उनमें से एक भी सृजनकर्ता के उस मूल इरादे के अनुरूप नहीं है जिसके साथ उसने मानवजाति का सृजन किया था। वे सभी, लोगों को सृजनकर्ता की संप्रभुता और उसकी देखभाल से दूर करते हैं; ये सभी ऐसे जाल हैं जो लोगों को भ्रष्ट बनने पर मजबूर करते हैं, और जो उन्हें नरक की ओर ले जाते हैं। जब तुम इस बात को समझ लेते हो, उसके पश्चात्, तुम्हारा काम है जीवन के अपने पुराने दृष्टिकोण को अपने से अलग करना, अलग-अलग तरह के जालों से दूर रहना, परमेश्वर को तुम्हारे जीवन को अपने हाथ में लेने देना और तुम्हारे लिए व्यवस्थाएं करने देना; तुम्हारा काम है केवल परमेश्वर के आयोजनों और मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करने का प्रयास करना, अपनी कोई निजी पसंद मत रखना, और एक ऐसा इंसान बनना जो परमेश्वर की आराधना करता है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझा दिया कि पैसे के नियंत्रण से मुक्त होने का तरीका है, वे लक्ष्य छोड़ना जिन्हें मैं पहले पाना चाहती थी, अपने प्रयास से प्रसिद्धि और दौलत पाने के पीछे न दौड़ना, और परमेश्वर को अपने जीवन का निर्णय और व्यवस्था करने देना। मुझे परमेश्वर के आयोजन मानने, उसकी अपेक्षाओं के अनुसार अभ्यास करने, और उसकी आराधना करने वाला बनना है। मैं उसकी हृदय से आभारी थी। जीवन में पहली बार मैंने परमेश्वर का मार्गदर्शन महसूस किया। लगा जैसे वह सीधे मुझसे बात कर अभ्यास का मार्ग दिखा रहा हो। सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने के बाद मैं कलीसिया में कर्तव्य निभाना चाहती थी, लेकिन उस समय मैं एक ऑनलाइन दुकान चलाती थी। मैंने बहुत पैसा लगाया था, पर फायदा नहीं हुआ। और ज्यादा नुकसान के डर से, हर समय ऑनलाइन ऑर्डर देखती रहती थी, दिन की सभाओं के दौरान भी मैसेज आते रहते थे, इसलिए मैं अपने दिल को बिलकुल शांत नहीं कर पाती थी, मैं अभी भी सोचा करती थी कि कैसे निवेश कर ज्यादा पैसे बनाए जाएँ। दिन में ऑनलाइन स्टोर चलाना थकाऊ था, इसलिए कभी-कभी, शाम की सभाओं में, पूरे शरीर में दर्द के कारण, मैं खुद को सँभालने के लिए दवा लेकर लेट जाती, दवा से नींद आ जाती और मैं सभाओं के दौरान सो जाती थी। मैं ईमानदारी से परमेश्वर की आराधना करना चाहती थी। अपना पुराना जीवन नहीं जीना चाहती थी। इसलिए, मैंने ऑनलाइन दुकान बंद कर दी। बाद में, मेरी एक सहेली ने कहा कि वह ईंट-गारे का स्टोर खोलना चाहती है, चूँकि मैंने व्यवसाय प्रबंधन की पढ़ाई की थी, इसलिए मैंने योजना बनाने में उसकी मदद कर दी। उसे वह बहुत पसंद आया, तो बोली कि वह मेरे साथ काम करना चाहती है। वह चाहती थी मैं पैकेजिंग करूँ और वह शिपिंग, और पैसा बराबर बाँट लें। मैं ललचा गई। मुझे लगा कि यह पैसा कमाने का अच्छा मौका है, मेरे दिमाग में तुरंत बहुत सारे विचार आए। उस रात, जब मैंने अपनी स्थिति पर सोचने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की, तो लगा कि मैं फिर से पैसे के लिए लालच दिखा रही हूँ। मुझे पहले की अपनी तमाम तकलीफें याद आ गईं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने के बाद मेरी आत्मा अब पीड़ित नहीं थी। मैंने शांति और दृढ़ता का आनंद लिया था, और मेरे शरीर का दर्द दवा लिए बिना ही बहुत बेहतर था। यह मेरे लिए परमेश्वर की सुरक्षा और उद्धार था। परमेश्वर ही था, जिसने मुझे प्रसिद्धि और दौलत की पीड़ा से बचने में मदद की थी, लेकिन मैं लाभ और प्रसिद्धि के पीछे दौड़ते रहना चाहती थी। क्या मैं फिर से शैतान के फंदे में नहीं फँस रही थी? मैं समझ गई कि मुझे अपनी सहेली का प्रस्ताव ठुकरा देना चाहिए, लेकिन अभी भी इसे पूरी तरह से नहीं छोड़ पाई। बाद में, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े और अभ्यास का मार्ग पाया। परमेश्वर के वचन कहते है, "लोग अपना जीवन धन-दौलत और प्रसिद्धि का पीछा करते हुए बिता देते हैं; वे इन तिनकों को यह सोचकर कसकर पकड़े रहते हैं, कि केवल ये ही उनके जीवन का सहारा हैं, मानो कि उनके होने से वे निरंतर जीवित रह सकते हैं, और मृत्यु से बच सकते हैं। परन्तु जब मृत्यु उनके सामने खड़ी होती है, केवल तभी उन्हें समझ आता है कि ये चीज़ें उनकी पहुँच से कितनी दूर हैं, मृत्यु के सामने वे कितने कमज़ोर हैं, वे कितनी आसानी से बिखर जाते हैं, वे कितने एकाकी और असहाय हैं, और वे कहीं से सहायता नही माँग सकते हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि जीवन को धन-दौलत और प्रसिद्धि से नहीं खरीदा जा सकता है, कि कोई व्यक्ति चाहे कितना ही धनी क्यों न हो, उसका पद कितना ही ऊँचा क्यों न हो, मृत्यु के सामने सभी समान रूप से कंगाल और महत्वहीन हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि धन-दौलत से जीवन नहीं खरीदा जा सकता है, प्रसिद्धि मृत्यु को नहीं मिटा सकती है, न तो धन-दौलत और न ही प्रसिद्धि किसी व्यक्ति के जीवन को एक मिनट, या एक पल के लिए भी बढ़ा सकती है। लोग जितना अधिक इस प्रकार महसूस करते हैं, उतनी ही अधिक उनकी जीवित रहने की लालसा बढ़ जाती है; लोग जितना अधिक इस प्रकार महसूस करते हैं, उतना ही अधिक वे मृत्यु के पास आने से भयभीत होते हैं। केवल इसी मोड़ पर उन्हें वास्तव में समझ में आता है कि उनका जीवन उनका नहीं है, और उनके नियंत्रण में नहीं है, और किसी का इस पर वश नहीं है कि वह जीवित रहेगा या मर जाएगा—यह सब उसके नियंत्रण से बाहर है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि लोग सोचते हैं कि पैसे से चिपके रहना जीवन बढ़ा सकता और मरने से बचा सकता है, लेकिन मृत्यु के कगार पर उन्हें एहसास होता है कि पैसा उन्हें नहीं बचा सकता, अनंत जीवन नहीं दे सकता, स्वस्थ होने में मदद नहीं कर सकता। क्या मौत आने पर जागने से बहुत देर नहीं हो जाती? मैं भी ऐसी ही थी, शरीर की परवाह छोड़ आँख मूँदे पैसे के पीछे दौड़ रही थी। डॉक्टर ने मुझे आराम करने और स्वस्थ होने के लिए कहा, लेकिन इस डर से कि अगर मैं घर पर रही तो पैसे नहीं कमा पाऊँगी, मैंने बीमारी में भी काम किया। मुझे लगता था कि मैं अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकती हूँ, लेकिन मृत्यु के कगार पर, मुझे एहसास हुआ कि मेरे नियंत्रण में कुछ भी नहीं है। परमेश्वर के कारण मुझे उसके वचन सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं समझ गई कि लोगों के भाग्य पर परमेश्वर की संप्रभुता है, और मुझे उसकी व्यवस्थाओं का पालन करना चाहिए, भाग्य से नहीं लड़ना चाहिए। अगर मैंने पैसा कमाना चुना, तो मैं फिर से दुखी हो जाऊँगी। मैं पैसे के लिए खुद को थका डालूँगी, और शैतान मुझे नियंत्रित कर पीड़ा देता रहेगा। तभी मैं जान पाई कि यह मेरे लिए शैतान का प्रलोभन था। एक सहेली मेरे पास एक बिजनेस-आइडिया लेकर आई, उसने निवेश किया और आमदनी बराबर बाँटने के लिए तैयार थी। प्रस्ताव बहुत लुभावना था। शैतान इसका इस्तेमाल मुझे पैसे और प्रसिद्धि के जाल में फँसाने के लिए कर रहा था, मैं मूर्खता करके दुख और पीड़ा भरे अपने पुराने जीवन में लौटना चाहती थी। क्या यह सिर्फ शैतान की चाल में फँसना नहीं था? मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, कहा कि मैं प्रसिद्धि और लाभ छोड़ कर्तव्य निभाना चाहती हूँ। इसके बाद मुझे बहुत आराम महसूस हुआ। यह एक भारी बोझ से मुक्त होने जैसा था। अगले तीन दिन तक खुद को प्रसिद्धि और लाभ के भँवर से बचाने के लिए मैंने रोज ज्यादा गहनता से प्रार्थना की। मैंने अपनी सहेली के साथ काम करने से मना करने का साहस जुटाया, लेकिन उसने मुझे मनाने की कोशिश की, "अब तुम सरकारी सहायता पर जीती हो। यह तुम्हारे लिए काफी नहीं है। तुम वो नीना नहीं हो, जिसे मैं जानती हूँ।" मैंने कहा, "यह सच है, मैं वो नहीं हूँ जो हुआ करती थी। मैंने परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार किया है, कुछ सत्य समझा है। परमेश्वर ही था, जिसने मुझे मेरी पीड़ा से बचाया। पहले, अस्पताल ने यह कहकर मेरे बचने की उम्मीद छोड़ दी थी कि मेरी बीमारी लाइलाज है। दर्द की दवा से भी दर्द कम नहीं होता था। लेकिन परमेश्वर के वचन पढ़ने से मेरा दर्द अपने आपकम हो गया। अगर मैं परमेश्वर का घर छोड़कर वापस दुनिया में आई, तो मैं अभी भी दर्द में जीऊँगी। मैं इस तरह जीते नहीं रहना चाहती।" मैंने उससे यह भी कहा : "तुम किसी और को साझेदार बना लो। मदद की जरूरत हुई तो मैं तुम्हें कुछ सलाह दे दूँगी।" बाद में, वह कई बार मेरे पास आई, जब तक कि यकीन नहीं हो गया कि मुझे मनाया नहीं जा सकता।
अब मैं कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाती हूँ, आजादी और शांति महसूस करती हूँ। मेरा शारीरिक दर्द 60-70 फीसदी कम हो गया है, अब मैं चल-फिर सकती हूँ, खाना बना सकती हूँ। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात, मैं कलीसिया में अपना कर्तव्य निभा सकती हूँ। मुझे पैसे के नियंत्रण से बचाने और मेरे जीवन की दिशा बदलने के लिए मैं परमेश्वर की आभारी हूँ। मैं अब समझ गई हूँ कि परमेश्वर की संप्रभुता जानना, uसकी आराधना करना, उसके वचनों और अपेक्षाओं के अनुसार अभ्यास करना जीवन की सबसे सार्थक और मूल्यवान चीज है। हालाँकि मेरी बीमारी ने मुझे बहुत दर्द दिया है, लेकिन यह मेरे लिए वरदान भी है। इससे मुझे परमेश्वर के पास लौटने और उसका उद्धार पाने का मौका मिला, जिसे कितने भी पैसे से खरीदा नहीं जा सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?