परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 81

अपने पुनरुत्थान के बाद यीशु रोटी खाता है और पवित्रशास्त्र समझाता है

लूका 24:30-32 जब वह उनके साथ भोजन करने बैठा, तो उसने रोटी लेकर धन्यवाद किया और उसे तोड़कर उनको देने लगा। तब उनकी आँखें खुल गईं; और उन्होंने उसे पहचान लिया, और वह उनकी आँखों से छिप गया। उन्होंने आपस में कहा, "जब वह मार्ग में हम से बातें करता था और पवित्रशास्त्र का अर्थ हमें समझाता था, तो क्या हमारे मन में उत्तेजना न उत्पन्न हुई?"

चेलों ने यीशु को खाने के लिए भुनी हुई मछली दी

लूका 24:36-43 वे ये बातें कह ही रहे थे कि वह आप ही उनके बीच में आ खड़ा हुआ, और उनसे कहा, "तुम्हें शान्ति मिले।" परन्तु वे घबरा गए और डर गए, और समझे कि हम किसी भूत को देख रहे हैं। उसने उनसे कहा, "क्यों घबराते हो? और तुम्हारे मन में क्यों सन्देह उठते हैं? मेरे हाथ और मेरे पाँव को देखो कि मैं वही हूँ। मुझे छूकर देखो, क्योंकि आत्मा के हड्डी माँस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो।" यह कहकर उसने उन्हें अपने हाथ पाँव दिखाए। जब आनन्द के मारे उनको प्रतीति न हुई, और वे आश्‍चर्य करते थे, तो उसने उनसे पूछा, "क्या यहाँ तुम्हारे पास कुछ भोजन है?" उन्होंने उसे भुनी हुई मछली का टुकड़ा दिया। उसने लेकर उनके सामने खाया।

आगे हम पवित्रशास्त्र के उपर्युक्त अंशों पर नज़र डालेंगे। पहला अंश पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु के रोटी खाने और पवित्रशास्त्र को समझाने का वर्णन करता है, और दूसरे अंश में प्रभु यीशु के भुनी हुई मछली खाने का वर्णन है। ये दो अंश परमेश्वर के स्वभाव को जानने में तुम्हारी किस प्रकार सहायता करते हैं? क्या तुम लोग प्रभु यीशु के रोटी और फिर भुनी हुई मछली खाने के इन विवरणों से प्राप्त तसवीर के प्रकार की कल्पना कर सकते हो? क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि यदि प्रभु यीशु तुम लोगों के सामने रोटी खाता हुआ खड़ा होता, तो तुम लोगों को कैसा महसूस होता? अथवा यदि वह तुम लोगों के साथ एक ही मेज पर भोजन कर रहा होता, लोगों के साथ मछली और रोटी खा रहा होता, तो उस क्षण तुम्हारे मन में किस प्रकार की भावना आती? यदि तुम महसूस करते कि तुम प्रभु के बेहद करीब हो, कि वह तुम्हारे साथ बहुत अंतरंग है, तो यह भावना सही है। यह बिलकुल वही परिणाम है, जो अपने पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु इकट्ठे हुए लोगों के सामने रोटी और मछली खाकर लाना चाहता था। यदि प्रभु यीशु ने अपने पुनरुत्थान के बाद लोगों से सिर्फ बात की होती, यदि वे उसकी देह और हड्डियों को महसूस न कर पाते, बल्कि यह महसूस करते कि वह एक अगम्य पवित्रात्मा है, तो वे कैसा महसूस करते? क्या वे निराश नहीं हो जाते? निराशा अनुभव करके क्या लोग परित्यक्त महसूस न करते? क्या वे अपने और प्रभु यीशु मसीह के बीच एक दूरी महसूस न करते? परमेश्वर के साथ लोगों के संबंध पर यह दूरी किस प्रकार का नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती? लोग निश्चित रूप से भयभीत हो जाते, वे उसके करीब आने की हिम्मत न करते, और उनका उसे एक सम्मानित दूरी पर रखने का रवैया होता। तब से वे प्रभु यीशु मसीह के साथ अपने अंतरंग संबंध को तोड़ देते, और वापस मानवजाति और ऊपर स्वर्ग के परमेश्वर के बीच के संबंध की ओर लौट जाते, जैसा कि अनुग्रह के युग के पहले था। वह आध्यात्मिक देह, जिसे लोग छू या महसूस न कर पाते, परमेश्वर के साथ उनकी अंतरंगता का उन्मूलन कर देती, और वह उस अंतरंगता के अस्तित्व को भी, जो प्रभु यीशु मसीह के देह में रहने के समय स्थापित हुई थी, जिसमें मानवजाति और उसके बीच कोई दूरी नहीं थी, खत्म कर देती। आध्यात्मिक देह से लोगों में केवल डरने, बचने और निःशब्द टकटकी लगाकर देखने की भावनाएँ उभरी थीं। वे उसके करीब आने या उससे बात करने की हिम्मत न करते, उसका अनुसरण करने, उसका विश्वास करने या उसका आदर करने की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर मनुष्यों के मन में अपने लिए इस प्रकार की भावना देखने का इच्छुक नहीं था। वह यह नहीं देखना चाहता था कि लोग उससे बचकर निकलें या अपने आप को उससे दूर हटा लें; वह केवल इतना चाहता था कि लोग उसे समझें, उसके करीब आएँ और उसका परिवार बन जाएँ। यदि तुम्हारा अपना परिवार, तुम्हारे बच्चे तुम्हें देखें लेकिन तुम्हें पहचानें नहीं, और तुम्हारे करीब आने की हिम्मत न करें बल्कि हमेशा तुमसे बचते रहें, और जो कुछ तुमने उनके लिए किया, वे उसे समझ न पाएँ, तो इससे तुम्हें कैसा महसूस होगा? क्या यह दर्दनाक नहीं होगा? क्या इससे तुम्हारा हृदय टूट नहीं जाएगा? बिलकुल ऐसा ही परमेश्वर महसूस करता है, जब लोग उससे बचते हैं। इसलिए, अपने पुनरुत्थान के बाद भी प्रभु यीशु लोगों के सामने मांस और लहू के अपने रूप में ही प्रकट हुआ, और तब भी उसने उनके साथ खाया और पीया। परमेश्वर लोगों को एक परिवार के रूप में देखता है और वह मनुष्यों से भी यही चाहता है कि वे उसे अपने सबसे प्रिय व्यक्ति के रूप में देखें; केवल इसी तरह से परमेश्वर वास्तव में लोगों को प्राप्त कर सकता है, और केवल इसी तरह से लोग वास्तव में परमेश्वर से प्रेम और उसकी आराधना कर सकते हैं। अब क्या तुम लोग पवित्रशास्त्र के इन दो अंशों का उद्धरण देने के मेरे इरादे को समझ सकते हो, जिनमें प्रभु यीशु अपने पुनरुत्थान के बाद रोटी खाता है और पवित्रशास्त्र को समझाता है, और चेले उसे खाने के लिए भुनी हुई मछली देते हैं?

ऐसा कहा जा सकता है कि कार्यों की जो शृंखलाएँ प्रभु यीशु ने अपने पुनरुत्थान के बाद कहीं और कीं, उनमें एक गंभीर विचार रखा गया था। वे उस दयालुता और स्नेह से भरी हुई थीं, जो परमेश्वर मानवजाति के प्रति रखता है, और वे दुलार और सूक्ष्म परवाह से भी भरी हुई थीं, जो वह उस अंतरंग संबंध के प्रति रखता था, जिसे उसने देह में रहने के दौरान मानवजाति के साथ स्थापित किया था। इससे भी अधिक, वे अतीत की उस ललक और लालसा से भी भरी हुई थीं, जो उसने देह में रहने के दौरान अपने अनुयायियों के साथ खाने-पीने के अपने जीवन के लिए महसूस की थी। इसलिए, परमेश्वर नहीं चाहता था कि लोग परमेश्वर और मनुष्य के बीच दूरी महसूस करें, न ही वह यह चाहता था कि मानवजाति स्वयं को परमेश्वर से दूर रखे। इससे भी बढ़कर, वह नहीं चाहता था कि मानवजाति यह महसूस करे कि प्रभु यीशु पुनरुत्थान के बाद वह प्रभु नहीं रहा जो लोगों से बहुत अंतरंग था, कि वह अब मानवजाति के साथ नहीं है क्योंकि वह आध्यात्मिक संसार में लौट गया है, उस पिता के पास लौट गया है जिसे लोग कभी देख नहीं सकते या जिस तक वे कभी पहुँच नहीं सकते। वह नहीं चाहता था कि लोग यह महसूस करें कि उसके और मानवजाति के बीच हैसियत का कोई अंतर पैदा हो गया है। जब परमेश्वर उन लोगों को देखता है, जो उसका अनुसरण करना चाहते हैं परंतु उसे एक सम्मानित दूरी पर रखते हैं, तो उसके हृदय में पीड़ा होती है, क्योंकि इसका मतलब यह है कि उनका हृदय उससे बहुत दूर है और उसके लिए उनके हृदय को पाना बहुत कठिन होगा। इसलिए यदि वह लोगों के सामने एक आध्यात्मिक देह में प्रकट हुआ होता जिसे वे देख या छू न सकते, तो इसने एक बार फिर मनुष्य को परमेश्वर से दूर कर दिया होता, और इससे मानवजाति गलती से यह समझ बैठती कि पुनरुत्थान के बाद मसीह अभिमानी, मनुष्यों से भिन्न प्रकार का और ऐसा बन गया है, जो अब मनुष्यों के साथ मेज पर नहीं बैठ सकता और उनके साथ खा नहीं सकता, क्योंकि मनुष्य पापी और गंदे हैं, और कभी परमेश्वर के करीब नहीं आ सकते। मानवजाति की इन ग़लतफहमियों को दूर करने के लिए प्रभु यीशु ने कई चीज़ें कीं, जिन्हें वह देह में रहते हुए किया करता था, जैसा कि बाइबल में दर्ज है : "उसने रोटी लेकर धन्यवाद किया और उसे तोड़कर उनको देने लगा।" उसने उन्हें पवित्रशास्त्र भी समझाया, जैसा कि वह अतीत में किया करता था। प्रभु यीशु द्वारा की गई इन सब चीज़ों ने हर उस व्यक्ति को, जिसने उसे देखा था, यह महसूस कराया कि प्रभु बदला नहीं है, वह अभी भी वही प्रभु यीशु है। भले ही उसे सूली पर चढ़ा दिया गया था और उसने मृत्यु का अनुभव किया था, किंतु वह पुनर्जीवित हो गया है और उसने मानवजाति को छोड़ा नहीं है। वह मनुष्यों के बीच रहने के लिए लौट आया था, और उसमें कुछ भी नहीं बदला था। लोगों के सामने खड़ा मनुष्य का पुत्र अभी भी वही प्रभु यीशु था। लोगों के साथ उसका व्यवहार और बातचीत का उसका तरीका बहुत परिचित लगता था। वह अभी भी प्रेममय करुणा, अनुग्रह और सहनशीलता से उतना ही भरपूर था—वह तब भी वही प्रभु यीशु था, जो लोगों से वैसे ही प्रेम करता था जैसे वह अपने आप से करता था, जो मानवजाति को सात बार के सत्तर गुने तक क्षमा कर सकता था। उसने हमेशा की तरह लोगों के साथ खाया, उनके साथ पवित्रशास्त्र पर चर्चा की, और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण रूप से, वह पहले के समान ही माँस और लहू से बना था और उसे छुआ और देखा जा सकता था। पहले की तरह के मनुष्य के पुत्र के रूप में उसने लोगों को अंतरंगता महसूस कराई, सहजता महसूस कराई, और किसी खोई हुई चीज़ को पुनः प्राप्त करने का आनंद दिलाया। बड़ी आसानी से उन्होंने बहादुरी और आत्मविश्वास के साथ इस मनुष्य के पुत्र के ऊपर भरोसा और उसका आदर करना आरंभ कर दिया, जो मानवजाति को उनके पापों के लिए क्षमा कर सकता था। वे बिना किसी हिचकिचाहट के प्रभु यीशु के नाम से प्रार्थना भी करने लगे, वे उसका अनुग्रह, उसका आशीष प्राप्त करने के लिए, और उससे शांति और आनंद प्राप्त करने के लिए, उससे देखरेख और सुरक्षा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करने लगे, और प्रभु यीशु के नाम से चंगाई करने लगे और दुष्टात्माओं को निकालने लगे।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III

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