कठिन समय में परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था दी

04 फ़रवरी, 2022

झेंग लैन, चीन

उस समय, मेरे साथ और भी कई बहनों को "सश्रम पुनर्शिक्षा" की सज़ा सुनाई गई थी। हमें हर दिन ओवरटाइम काम करना पड़ता था, रोज़ कम से कम 13 घंटे। अगर गार्ड संतुष्ट न होते, तो वे हमें बिजली के डंडे से झटके देते या लात-घूँसे मारते। हमारा हर दिन भयंकर परेशानी में गुज़रता, ब्रेनवॉश की क्लास करनी और वैचारिक रिपोर्ट लिखनी पड़ती थी। इतने लंबे समय तक यातना सहना एक आफ़त थी, मैं परमेश्वर के वचनों के पोषण के लिए तरसती थी। उस दौरान, हमें केवल परमेश्वर के उन्हीं वचनों और भजनों के अंशों का सहारा था जो हमें याद थे। एक बार डिप्टी चीफ गार्ड ने मुझसे कहा कि अगर मैंने कड़ी मेहनत की, तो मेरी सज़ा एक महीने कम हो जाएगी। और सच कहूँ तो मैं श्रमिक शिविर में एक दिन भी नहीं रहना चाहती थी। तो मैंने बहुत ही कठोर श्रम किया। पानी तक मुश्किल से पीती थी, क्योंकि मुझे लगता था कि बाथरूम जाने में समय बर्बाद होगा। मुझे ऐसा काम करना था जिसमें घंटों ट्वीज़र पकड़ने पड़ते थे, जिसकी वजह से अंगूठे में बुरी तरह दर्द होता था, लेकिन दर्द निवारक दवाएँ लेने के अलावा कोई चारा न था। मगर तमाम मेहनत के बावजूद, मेरा नाम कभी भी छूटने वालों की सूची में नहीं आया। धीरे-धीरे मेरे हाथों में इतनी सूजन आ गई कि मैं अपने कपड़े भी नहीं धो पाती थी। श्रमिक शिविर में खराब हालात के चलते, मुझे आंतों की समस्या और गठिया हो गया। फिर भी मुझे काम करना पड़ता था। अगर मैं कम काम करूंगी, तो मुझे डांट पड़ेगी और सज़ा भी कम नहीं होगी। वहाँ मेरी हालत वाकई बहुत खराब थी। बहनों को जब पता चला कि मैं बीमार हूँ, तो उन्होंने मेरी मदद करने और सहारा देने के तरीके खोजे। मुझे याद है एक बार, बहन ली ने सबकी नज़र बचाकर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश सुनाया। "हमारे इर्द-गिर्द के वातावरण से लेकर लोग, विभिन्न मामले और वस्तुएँ, सबकुछ परमेश्वर के सिंहासन की अनुमति से अस्तित्व में हैं। किसी भी वजह से अपने दिल में शिकायतें मत पनपने दो, अन्यथा परमेश्वर तुम्हें अनुग्रह प्रदान नहीं करेगा। बीमारी का होना परमेश्वर का प्रेम ही है और निश्चित ही उसमें उसके नेक इरादे निहित होते हैं। हालाँकि, हो सकता है कि तुम्हारे शरीर को कुछ पीड़ा सहनी पड़े, लेकिन कोई भी शैतानी विचार मन में मत लाओ" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)परमेश्वर के वचन एक जागृति की तरह थे। यह सच है, परमेश्वर ने मुझे बीमार होने दिया था। लेकिन बीमारी के कारण मेरा दुख और अवसाद में जीना परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता नहीं थी। मैंने सोचा कि उस दौरान मैंने कितनी मेहनत की थी, मैं बस यही चाहती थी कि मुझे उस माहौल से मुक्ति मिल जाए, जबकि मेरी गिरफ्तारी तो परमेश्वर की इच्छा से हुई थी, इसलिए मुझे इसका अनुभव करना चाहिए। मेरा छूटना भी परमेश्वर के ही हाथों में था, लेकिन मेरी अपनी ही योजनाएँ और ज़रूरतें थीं, जिनका इस्तेमाल कर शैतान मेरे साथ खेल रहा था। इस तरह के झूठ से बड़ा लाल अजगर हमेशा लोगों को धोखा देता और नुकसान पहुँचाता है। मैंने उसके झूठ पर विश्वास कैसे कर लिया? इन बातों का एहसास होने पर, मैंने अपने तरीके से काम करना बंद कर दिया और अपनी योजनाएँ और ज़रूरतें त्याग दीं, और अपनी रिहाई का मामला परमेश्वर पर छोड़ दिया।

उस समय हमें परमेश्वर के ज़्यादा वचन याद नहीं थे, और काफी समय तक ऐसे दर्दनाक और उदास माहौल में परमेश्वर के वचनों के बिना, मैं बहुत कमज़ोर और दुखी हो गई थी। गिरफ्तारी से पहले का समय याद आता, कैसे मैं जब मन हो परमेश्वर के वचन पढ़ लिया करती थी, परमेश्वर के वचनों से सत्य समझकर, अभ्यास करने का तरीका खोजती थी, और अपने हृदय में प्रकाश और मुक्ति पाती थी। लेकिन उस जेल में, मैं परमेश्वर के वचनों से दूर होने के साथ-साथ, हर यातना भी सह रही थी, समझ में नहीं आता था कि जेल के ये तीन साल कैसे कटेंगे। उस समय बाकी बहनों की भी यही हालत थी। मुझे याद है एक रात, हमने अपना काम खत्म ही किया था कि एक बहन ने धीरे से कहा, "यहाँ रहना बहुत मुश्किल हो रहा है, पता नहीं इसका अनुभव कैसे करना है। अगर परमेश्वर के वचन पढ़ पाती तो अच्छा होता! मुझे अफ़सोस है कि मैंने पहले परमेश्वर के अधिक वचन नहीं पढ़े। काश मुझे और भी वचन याद होते।" मुझे भी ऐसा ही लगा और मैं सोचने लगी कितना अच्छा होता अगर मैं परमेश्वर के वचन फिर पढ़ पाती। उस समय, कई बहनों की तबीयत खराब थी। एक को उच्च रक्तचाप था और वह बड़ी मुश्किल से चल पाती थी, दूसरी को दिल की गंभीर बीमारी थी, और बहन झाओ, मधुमेह की गंभीर बीमारी के बावजूद हर दिन काम करती थी। उस समय, लगता कि काश हमारे पास परमेश्वर के वचन होते, क्योंकि परमेश्वर के वचन ही लोगों को विश्वास और शक्ति दे सकते हैं, मुश्किलों में हमारी अगुवाई कर सकते हैं। एक रात मैं बिस्तर पर प्रार्थना कर रही थी कि तभी मुझे ख्याल आया कि दो बहनें मुलाकात कक्ष में काम करती हैं। उनका संपर्क अक्सर बाहर के लोगों से होता रहता है, शायद उनके पास परमेश्वर के वचन हों। लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि उनसे संपर्क कैसे करूँ। उसके तुरंत बाद ही, परमेश्वर ने मेरे लिए एक मार्ग खोल दिया।

एक दिन, सुरक्षाकर्मियों का मुखिया मुझसे बात करने आया और पूछने लगा कि क्या मुझे "केयरटेकर" बनना है। केयरटेकर सुरक्षाकर्मियों की सेवा करता है। जैसे उनके कपड़े धोना, खाना बनाना, उनका कमरा साफ करना, और जो भी गंदा काम हो, वह केयरटेकर करता है। पहले तो मैंने नहीं करना चाहा, क्योंकि यह मेरे वर्कशॉप के काम से भी ज़्यादा थका देने वाला था। सुरक्षाकर्मियों की सेवा का काम अच्छे से न करने पर बहुत डाँट पड़ती थी। एक बार, एक बहन ने मेरा खराब मूड देखकर मुझसे बात की। उसने कहा, "हर चीज़ में परमेश्वर के इरादे अच्छे होते हैं, इसलिए तुम्हें उसकी इच्छा खोजनी चाहिए।" जब मैंने यह बात सुनी, तो सोचा, "यह बात सही है। मैं परमेश्वर की इच्छा खोजने के बजाय, केवल अपनी भावनाओं की क्यों सोच रही हूँ? केयरटेकर बनी तो मैं बाहर जाकर भी काम कर सकती हूँ। इससे मुझे मुलाकात कक्ष में बहनों से मिलने का भी मौका मिलेगा। क्या यह मार्ग परमेश्वर ने मेरे लिए नहीं खोला है? एक केयरटेकर के तौर पर मैं आज़ादी से आ-जा सकती हूँ। मैं गुप्त रूप से बहनों की संगति करा सकती हूँ, और अगर कोई बात हो गई तो मैं गार्ड्स को संभाल सकती हूँ। क्या यह अच्छी बात नहीं है?" मेरी यूनिट के करीब 200 कैदियों में से, केवल चार केयरटेकर चुने जा सकते थे। यह एक दुर्लभ अवसर था, परमेश्वर की एक अद्भुत व्यवस्था थी।

लेकिन मुलाकात कक्ष में दोनों बहनों से मिलने से पहले ही, हममें से एक को परमेश्वर के वचन मिल गए। एक रात, जब मैं लेटी हुई थी तो एक छोटी बहन झुककर मेरे कान में फुसफुसाई कि बाहर के भाई-बहनों ने हमारे लिए एक पत्र भेजा है, जिसे उसने वर्कशॉप में रख दिया है। उस रात, खुश के मारे मुझे नींद नहीं आई। अगली सुबह, जब मैं वर्कशॉप पहुँची, तो उस बहन ने चुपके से वह पत्र निकाला। पत्र करीब इतना चौड़ा था। पत्र के इस पहले वाक्य को पढ़कर : "जेल में कैद भाई-बहनो..." मेरी आँखों में आँसू आ गए। इन शब्दों ने मेरे दिल को छू लिया। मैंने डबडबाई आँखों से पत्र पढ़ा। पत्र में परमेश्वर के वचनों के बहुत से अंश थे, लेकिन दो अंशों ने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया। परमेश्वर के वचन कहते हैं, "कार्य के इस चरण में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर मानवजाति की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। इस चरण में परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है। लोगों को उस बिंदु तक पहुँचने की आवश्यकता है जहाँ वे सैकड़ों बार शुद्धिकरणों का सामना कर चुके हैं और अय्यूब से भी ज़्यादा आस्था रखते हैं। किसी भी समय परमेश्वर से दूर जाए बिना उन्हें अविश्वसनीय पीड़ा और सभी प्रकार की यातनाओं को सहना आवश्यक है। जब वे मृत्यु तक आज्ञाकारी रहते हैं, और परमेश्वर में अत्यंत विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा हो जाता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'मार्ग... (8)')। "इन अंतिम दिनों में, तुम्हें अवश्य ही परमेश्वर के प्रति गवाही देनी है। इस बात की परवाह किए बिना कि तुम्हारे कष्ट कितने बड़े हैं, तुम्हें अपने अंत की ओर बढ़ना है, अपनी अंतिम सांस तक भी तुम्हें अवश्य ही परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। मैं उस समय उनसे बहुत द्रवित और प्रेरित हुई। मैंने महसूस किया कि परमेश्वर सच में हमारे दिल की बात जानता है, हमारी अवस्था और हालत को अच्छी तरह से समझता है, उसी ने इन भाई-बहनों के ज़रिए हमें अपने वचनों का सिंचन और पोषण भेजा है। यह परमेश्वर का प्रेम था। मैं परमेश्वर के वचनों पर विचार कर समझ गई कि परिवार और करियर को छोड़कर हर हाल में सुसमाचार का प्रचार करना और अपना कर्तव्य निभाना, गवाही है। यातना सहना और परमेश्वर से विश्वासघात न करना भी गवाही है। लंने समय तक यातना झेलने के बाद भी विश्वास रखना और परमेश्वर का अनुसरण करना और भी शानदार गवाही है। शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही देने का मौका मिलना परमेश्वर द्वारा उत्कर्ष और धार्मिकता के लिए और उत्पीड़न सहना था। जब मैं परमेश्वर की इच्छा समझ गई, तो मैंने रोकर उससे प्रार्थना की। मैंने कहा, "परमेश्वर! मेरे लिए तेरा जो प्रेम है, उसके लायक बनूँगी। हालाँकि ये तीन साल बहुत लंबा समय है, पर पुलिस मुझे कितना भी प्रताड़ित करे या कष्ट दे, मैं दृढ़ रहकर तेरी गवाही दूँगी और शैतान को नीचा दिखाऊँगी।" वे भी परमेश्वर के वचन पढ़कर बहुत प्रेरित हुईं। मुझे याद है कि बहन लियू अपने उच्च रक्तचाप को लेकर हमेशा चिंतित रहती थी। उसे डर था कि सही समय पर उपचार न होने से, कहीं वह श्रमिक शिविर में ही न मर जाए, तो वह जल्दी से जल्दी रिहा होना चाहती थी। परमेश्वर के वचन पढ़कर, उसने महसूस किया कि उसमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था और गवाही का अभाव है। उसने यह भी कहा, "मैं समझ गई कि मुझमें बहुत कम आस्था है, मैं परमेश्वर की बहुत ऋणी हूँ। यदि मैं यहाँ (इस श्रमिक शिविर में) मर भी जाऊँ, तो भी मैं दृढ़ रहकर परमेश्वर की गवाही देना चाहती हूँ।" वहाँ बहन गाओ भी थी, उसे डर था कि जेल में रहने के कारण उसके रिश्तेदार और दोस्त उसका मज़ाक उड़ाएँगे और भेदभाव करेंगे, उल्टी-सीधी बातें बनाएँगे। वचन पढ़कर उसे यह समझ आ गया कि परमेश्वर पर विश्वास के कारण जेल होना धार्मिकता के लिए उत्पीड़न सहना है, यह शर्म की बात नहीं, परमेश्वर के लिए कष्ट सहते हुए दृढ़ रहना और गवाही देना मूल्यवान और अर्थपूर्ण है।

इस पर चर्चा करके हमने तय किया कि हम परमेश्वर के इन वचनों को अन्य बहनों तक भी पहुँचाएँगे, ताकि उन्हें भी उसके वचनों का पोषण मिल सके। शिविर के नियम बहुत सख्त थे। हमें दूसरी इकाइयों के कैदियों से बात करने या चीज़ें पहुँचाने की मनाही थी। हम आँख तक नहीं मिला सकते थे। अगर कभी-कभार उनसे भेंट हो भी जाती, तो करीब जाने की अनुमति नहीं थी। जबकि हमें तो सात इकाइयों की करीब 100 बहनों को वचन पहुँचाने थे, यह बहुत ही खतरनाक था। उस पर, गार्ड हर हफ़्ते हमारे बिस्तरों को उलट-पलट कर जाँचते और हमारे शरीर की तलाशी लेते थे। वो हर जगह तलाशी लेते थे। अगर हमारी थोड़ी-सी भी लापरवाही से उन्हें कुछ पता चल जाता, तो जाँच में मेरा नाम आ जाता। एक गार्ड ने तो मुझे चेतावनी भी दी, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन फैलाने की जुर्रत की, तो मैं तुम्हें और तीन साल के लिए महिला जेल में ठोक दूँगी।" एक धार्मिक विश्वासी बाइबल के कुछ अंश पहुँचाते हुए पाई गई थी। पहरेदार उसे हथकड़ी लगाकर घसीटते हुए ले गए। वो उसे काफ़ी देर तक डामर पर घसीटते रहे, उसके सारे कपड़े तार-तार हो गए, त्वचा लहूलुहान हो गई थी। एक दूसरी विश्वासी को दस दिनों से ज़्यादा बिना हिले-डुले कंक्रीट के फ़र्श पर बैठाकर रखा गया। उस समय मुझे लगा, "यह कोई मज़ाक नहीं है। अगर उन्हें पता चल गया, तो मेरी हालत और भी बुरी हो जाएगी।" जितना सोचती उतना ही मुश्किल लगता, थोड़ा डर भी लगा। फिर मुझे परमेश्वर के वचन याद आए, "विश्वास एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है: जो लोग घृणास्पद ढंग से जीवन से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है क्योंकि उसे इस बात का डर है कि हम विश्वास का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जायेंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचनों से मेरा जोश बढ़ गया। क्या पहरेदार भी परमेश्वर के हाथों में ही नहीं हैं? मेरा पकड़ा जाना परमेश्वर के हाथों में था। मेरा मानना था कि परमेश्वर पर भरोसा रखें तो कुछ भी असंभव नहीं है। मेरे मन में ये डरावने विचार इसलिए आए, क्योंकि शैतान मुझे परेशान कर रहा था। क्योंकि मुझे सज़ा और यातना का डर था, शैतान ने मुझे बाधित और परेशान करने के लिए मेरी कमजोरी पकड़ ली थी। अगर सताए जाने के डर से मैंने हार मान ली, तो क्या शैतान की चाल में फँस नहीं जाऊँगी? चूँकि हमारी बहनें उस पीड़ादायक माहौल में थीं, तो यह ज़रूरी था उन्हें परमेश्वर के वचनों की आपूर्ति मिले, इसलिए उन तक वचन पहुँचाना मेरा कर्तव्य था। सामान्य काम के दौरान तो उन बहनों से हमारा मिलना-जुलना नहीं हो पाता था। हम तभी मिल पाते थे जब एक बड़े से हॉल में हम साथ खाना खाते थे। तो उस दौरान हमने वचन उन तक पहुँचाने की योजना बनाई। डाइनिंग हॉल में हर जगह कैमरे लगे हुए थे, और खाने के दौरान हमें बातचीत करने या इधर-उधर घूमने की इजाज़त नहीं थी। हमें पाँच मिनट के अंदर खाना खत्म करना होता था। तो उन्हें परमेश्वर के वचन देना बहुत मुश्किल था। लेकिन, वचन पहुँचाने के काम के दौरान, मैंने परमेश्वर के चमत्कारी कर्म देखे। एक दिन, मैंने 4 और 7 नंबर की इकाई की बहनों को वचन देने का सोचा। बर्तन धोते समय, इकाई 4 की बहन मिन दिखी। संयोग से, उसी समय उसने भी मेरी ओर देखा। मैंने इशारे से उसे आकर बर्तन धोने के लिए कहा। मुझे लगा शायद वो मेरा इशारा समझ न पाए, लेकिन, परमेश्वर का शुक्र है, वह तुरंत समझ गई। हम दोनों बर्तन रखने वाली जगह की ओर एक साथ चल दिये। और मैंने झट से पर्चियाँ निकालकर उसकी जेब में रख दिए। इसमें सिर्फ़ कुछ सेकंड लगे। मैं परमेश्वर का आभार व्यक्त किया।

यह भी एक संयोग ही था कि इकाई 7 की जिस बहन को मैं जानती थी, वह मेरी ही पंक्ति में बैठी थी, मुझसे सिर्फ़ एक मीटर की दूरी पर। श्रमिक शिविर का नियम था कि जब तक हर इकाई का मॉनिटर हमें जाने के लिए न कहे, हम खड़े नहीं हो सकते थे। मुझे यह चिंता सता रही थी कि अगर हमारी दोनों इकाइयाँ एक साथ खड़ी नहीं हुईं, तो मैं उसके करीब नहीं जा पाऊँगी। तो मैं मन ही मन (परमेश्वर से) प्रार्थना करती रही। तभी हमारी दोनों इकाइयों के मॉनिटरों ने हमें एक साथ खड़े होने को कहा। खड़े होते ही, मैंने झट से उस बहन के हाथ में एक पर्ची थमा दी। यह सब पलक झपकते ही हो गया, और पहरेदारों को पता नहीं चला। परमेश्वर का धन्यवाद! मेरी बहनों की मदद से, दूसरी इकाइयों की बहनों को भी परमेश्वर के वचन मिल गए। मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतनी आसानी से मैं परमेश्वर के वचन दूसरी बहनों तक पहुँचा पाऊँगी। मैंने जाना कि परमेश्वर के लिए कुछ भी करना मुश्किल नहीं है। परमेश्वर के वचन पहुँचाने की इस प्रक्रिया से, परमेश्वर में बहनों का विश्वास और भी बढ़ गया।

परमेश्वर के वचन पहुँचाने के पंद्रह दिनों के अंदर ही, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों को आस्था त्यागने का पत्र लिखने को कहा गया। हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास न रखने का वादा करना था। अभी कुछ ही दिन पहले, बहनों ने परमेश्वर के वचन पढ़े थे, इसलिए उनमें दृढ़ रहकर गवाही देने का विश्वास था। हमने एक-दूसरे को शैतान के आगे न झुकने का संकेत और हौसला दिया। लेकिन हफ़्ते भर बाद, मैंने सुना कि दूसरी इकाइयों की बहनों ने आस्था त्यागने का पत्र लिखने से मना कर दिया। उनमें से कुछ को प्रताड़ित किया गया, कुछ को छोटे आकार के पिंजड़ों में उकड़ू बैठाया, और कुछ की जेल की सज़ा बढ़ा दी गई। उस दौरान श्रमिक शिविर का माहौल पहले से कहीं ज्यादा दमनकारी हो गया था। वहाँ हमेशा एक आतंक का माहौल होता था, जैसे कभी भी हम पर आफ़त आ सकती है। क्योंकि पता नहीं था कि यह माहौल कब खत्म होगा या पहरेदार हमें पीड़ा देने के लिए और कौन-से तरीके अपनाएँगे। तो उस समय हर कोई दुखी और उदास था। हम केवल परमेश्वर से प्रार्थना ही कर सकते थे कि वह हमें मार्ग दिखाए। उस समय, सभी बहनों का यह विचार था : हम किसी भी हालत में आस्था त्यागने का पत्र नहीं लिखेंगे, दृढ़ रहकर परमेश्वर के लिए गवाही देंगे। करीब पंद्रह दिनों तक हमारे और हमारी सुरक्षाकर्मी के बीच तनातनी रही, फिर यह देखकर कि उसकी कोई युक्ति काम नहीं आ रही, वह झुक गई। अपने आदेशों का पालन कराने के लिए, वह इस बात पर तैयार हो गई कि हम कुछ भी लिख सकते हैं। हम समझ गए कि परमेश्वर ने हमारे लिए एक मार्ग खोल दिया है, हम सभी परमेश्वर के आभारी थे।

उन तीन वर्षों में, हमने कई बार परमेश्वर के वचनों का प्रचार किया। पहली बार तो हमें परमेश्वर के बहुत कम वचन मिले, समय के साथ, हम फिर से परमेश्वर के वचनों के लिए तरसने लगे। खासकर ऐसे कष्टकारी और निराशाजनक माहौल में जहाँ कुछ भी हो सकता था, हमें परमेश्वर के वचनों के पोषण की और भी जरूरत थी। मुझे याद है एक बार, एक छोटी बहन रोते हुए मेरे पास आकर बोली उसके पिता चाहते हैं कि वह जेल के बाहर अपनी सज़ा काटे, लेकिन पुलिसवालों ने कहा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों को यह हक नहीं। उसने बताया कि वह सिर्फ़ 23 साल की है और उसे एक हज़ार दिन से भी अधिक श्रमिक शिविर में रहना है, वह नहीं जानती थी कि कैसे इससे पार पाएगी। वह बस किसी भी तरह वहाँ से निकलना चाहती थी। उसकी बातें सुनकर मैं बहुत दुखी हुई, तो मैंने उसे परमेश्वर के कुछ वचन सुनाए। परमेश्वर के वचन कहते हैं, "तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : 'क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।' तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचन सुनकर, उसे पीड़ा के मायने समझ में आए, उसमें आस्था का संचार हुआ और फिर कभी उसने वहाँ से निकलने की नहीं सोची। एक बार, मुलाकात के दिन, मैंने देखा कि लोगों के घरवाले उनसे जेल में मिलने आए हैं, मुझे भी अपने परिवार की बहुत याद आई। मैंने अपने बुज़ुर्ग माता-पिता के बारे में सोचा, पता नहीं उनका क्या हाल है। मुझे अक्सर अपने घर की याद आती रहती थी, और जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैं निराश होती चली गई। उसी कोठरी की एक बहन ने जब मुझे निराश देखा, तो उसने धीरे से मेरे कान में परमेश्वर के वचन सुनाए। "मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होता है। तुम स्वयं को नियंत्रित करने में असमर्थ हो : हमेशा अपनी ओर से भाग-दौड़ करते रहने और व्यस्त रहने के बावजूद मनुष्य स्वयं को नियंत्रित करने में अक्षम रहता है। यदि तुम अपने भविष्य की संभावनाओं को जान सकते, यदि तुम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते, तो क्या तुम तब भी एक सृजित प्राणी होते? संक्षेप में, परमेश्वर चाहे जैसे भी कार्य करे, उसका समस्त कार्य केवल मनुष्य के वास्ते होता है। उदाहरण के लिए, स्वर्ग और पृथ्वी और उन सभी चीज़ों को लो, जिन्हें परमेश्वर ने मनुष्य की सेवा करने के लिए सृजित किया : चंद्रमा, सूर्य और तारे, जिन्हें उसने मनुष्य के लिए बनाया, जानवर और पेड़-पौधे, बसंत, ग्रीष्म, शरद और शीत ऋतु इत्यादि—ये सब मनुष्य के अस्तित्व के वास्ते ही बनाए गए हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना)। मैं परमेश्वर के वचनों पर विचार करके समझ गई कि सबकी नियति परमेश्वर के हाथों में है, तो मेरे परिवार की स्थिति परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं पर निर्भर करती है। अगर मैं अपना परिवार परमेश्वर को सौंप दूँ, तो फिर मुझे चिंता किस बात की? मुझे इस बात को लेकर परेशान नहीं होना चाहिए। परमेश्वर के वचनों ने मुझे निराश होने से रोका और मुझे शक्ति दी, मुझे महसूस हुआ कि हम परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के बिना नहीं रह सकते। तो मैंने उससे प्रार्थना करके पूछा कि उसके और वचन हमें कैसे मिलेंगे, मैंने उससे आने वाले समय में राह दिखाने को भी कहा। फिर मुझे मुलाकात कक्ष की दोनों बहनें याद आईं। अगर मैं उनसे मिल सकूँ, तो शायद परमेश्वर के और भी वचन मिल जाएँ। मैंने परमेश्वर से हमें उपयुक्त अवसर प्रदान करने की प्रार्थना की।

एक सुबह, प्रधान सुरक्षाकर्मी ने मुझे बुलाया, "मेरे साथ आओ, तुम्हें मुलाकात कक्ष साफ़ करना है।" मुलाकात कक्ष जाने की बात सुनकर मेरा दिल खिल उठा। मुझे इसी अवसर की तलाश थी। तीन सालों में यह पहला अवसर था जब मैं मुलाकात कक्ष में गई, मुझे पक्का यकीन था कि इस अवसर की व्यवस्था खुद परमेश्वर ने मेरे लिए की थी। वहाँ पहुँचकर, प्रधान सुरक्षाकर्मी दूसरे सुरक्षाकर्मियों के साथ बातचीत में लग गई। और मैं जल्दी से रसोई के पिछले हिस्से में गई। दोनों बहनें खाना बनाने में लगी थीं, मैंने झट से पूछा कुछ खाने के लिए है क्या। वे तुरंत मेरा मतलब समझ गईं और बोलीं, "हाँ है।" फिर, उनमें से एक ने कपड़े के थैले से कागज़ की गेंद निकालकर मुझे दे दी। मुझे लगा आखिरकार लंबे इंतज़ार के बाद परमेश्वर के वचन मिल ही गए, मैं अपने मन की हालत बयाँ नहीं कर सकती। लेकिन मुझे थोड़ी चिंता भी हुई, क्योंकि हाथ से लिखी कागज की गेंद एक बड़े अंडे के आकार की थी। मैंने उसे अपने कपड़ों में छुपाया, लेकिन एक उभार दिख रहा था। पैंट की जेब में रखने की भी कोशिश की, लेकिन बड़ी होने के कारण बाहर गिर गई। जब गेंद छिपाने की कोई जगह नहीं मिली तो मैं घबरा गई। मैंने देखा चारों तरफ़ सुरक्षा कैमरे लगे हुए थे, और मेरी चिंता बढ़ती जा रही थी। अगर पकड़ी गई तो मेरा काम तमाम हो जाएगा। इसके नतीजे भयानक होंगे। लेकिन साथ ही यह भी सोचा, अगर मैं यह मौका चूक गई, तो मुझे परमेश्वर के वचन पाने का मौका नहीं मिलेगा। हमें परमेश्वर के वचनों की बहुत जरूरत थी, उन्हें लौटाने की हिम्मत नहीं हुई। उस वक्त घबराहट के मारे मुझे समझ में नहीं आया कि क्या करूँ। और तभी, परमेश्वर के वचनों की एक पंक्ति मन में आई, "डरो मत, समुदायों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। यह सच है। परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है, तो मेरा पकड़ा जाना भी उसी के हाथों में था। जब परमेश्वर मेरे साथ था, तो फिर मुझे किस बात का डर था? इस बात का एहसास होने पर, मेरा मन शांत हो गया। मैंने परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें लाने-ले जाने वाले भाई-बहनों के बारे में सोचा। बड़े लाल अजगर की कड़ी निगरानी के बावजूद, वे परमेश्वर के वचनों की इतनी सारी पुस्तकें भा‌ई-बहनों को पहुँचाते हैं। क्या वे भी अपने अनुभव के लिए परमेश्वर पर निर्भर नहीं थे? मैंने सोचा, "परमेश्वर पर भरोसा करूँगी, तो वह मेरे लिए रास्ता खोल देगा।" इस बात का ख्याल आने पर, मेरी झिझक जाती रही। मैंने परमेश्वर के वचन अपने साथ ले जाने की ठान ली। मैंने वचनों की कागज़ की गेंद अपने कपड़ों में छुपा ली, कमीज़ नीचे खींची और कमर थोड़ी झुका ली, अब उभार उतना स्पष्ट नहीं था। मैंने सोचा, "पहले जाकर परमेश्वर के वचनों को वर्कशॉप में रखूँगी और फिर वापस आकर सफ़ाई करूँगी।" वर्कशॉप की तरफ़ जाने वाले दरवाज़े पर सेक्शन चीफ झांग का पहरा था। वह मुझसे अपने उल्टे-सीधे काम करवाती थी, तो उसके साथ मेरा तालमेल अच्छा था। उस समय, मुझे साफ़ एहसास हुआ कि यही वह मार्ग है जिसे परमेश्वर ने मेरे लिए खोला है। तो मैं सीधे सेक्शन चीफ झांग के कार्यालय में चली गई और धीमी आवाज़ में उससे कहा, "चीफ झांग, मुझे माहवारी हो रही है। मुझे थोड़ी देर के लिए ऊपर जाना है।" जब उसने सुना कि मैं अकेले ऊपर जाना चाहती हूँ, तो उसके चेहरे का रंग बदल गया। उसने कहा, "नहीं, जिस गार्ड के साथ आई हो, उसी के साथ वापस जाओ। तुम्हारी गार्ड कहाँ है?" उसने हमारी गार्ड को आसपास खोजा। मुझे लगा कुछ बुरा होने वाला है, तो मैं घबरा गई। अगर गार्ड मेरे साथ गई, तो सब कुछ खत्म हो जाएगा। हमारी गार्ड कैदियों के साथ बहुत ही सख्त थी। अगर उसे पता चला कि मैं वापस जाना चाहती हूँ, तो वो तैयार नहीं होगी, साथ में ये भी जाँचेगी कि मुझे सच में माहवारी हो भी रही है या नहीं। और अगर उसे मेरे पास परमेश्वर के वचन मिल गए, तो वह मुझे पीट-पीटकर मार डालेगी। उस पल जैसे मेरा कलेजा मुँह को आ रहा था। मैं परमेश्वर से प्रार्थना कर उसे पुकार रही थी। बस उसी पल, अचानक मुझे याद आया कि मैंने सेक्शन चीफ झांग के लिए कुछ कपड़े के थैले बनाए थे। मैंने तुरंत उससे पूछा, "चीफ झांग, मैंने आपके लिए थैले बनाए थे, वो आपको अच्छे लगे? अगर और कोई काम हो, तो जरूर बताइएगा।" जैसे ही उसने मुझे यह कहते सुना, वह तुरंत नरम पड़ गई। मुझे लगा कि परमेश्वर मेरे लिए कोई रास्ता खोल रहा है। मैंने कहा, "चीफ झांग, चिंता मत कीजिए, मैं बस एक मिनट में वापस आ जाऊँगी।" वो कुछ नहीं बोली, तो मैं लपककर सीढ़ियों से ऊपर भागी। रास्ते में, मुझे याद आया कि वर्कशॉप तक जाने के लिए एक दरवाज़े से होकर जाना होगा। नियमों के अनुसार, आमतौर इसे बंद रखा जाता है, लेकिन इस वक्त, मेरे पास इतना सोचने का दम नहीं था, और मुझे बहुत डर भी नहीं लग रहा था, मुझे लगातार यही लगता रहा कि परमेश्वर मेरे साथ है और वही हर कदम पर मुझे राह दिखा रहा है। उस दरवाज़े के पास जाकर देखा, तो वह खुला था, मैं हैरान रह गई, और दूसरी ओर, गलियारे में कोई पहरेदार नहीं था। मैंने मन ही मन परमेश्वर को धन्यवाद दिया। मैंने जल्दी से वर्कशॉप में जाकर बहन को परमेश्वर के वचन दिए, मुझे लगा जैसे मेरे सिर से कोई भारी बोझ उतर गया हो। यहोवा परमेश्वर ने यहोशू से जो कहा था, उस पर विचार किया, "हियाव बाँधकर दृढ़ हो जा; भय न खा, और तेरा मन कच्‍चा न हो; क्योंकि जहाँ जहाँ तू जाएगा वहाँ वहाँ तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरे संग रहेगा" (यहोशू 1:9)। यह सच है, परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, सब-कुछ उसी के हाथों में है, सभी लोग, मामले और चीजें परमेश्वर के कार्य की सेवा में लगे हैं। इस अनुभव से मैं परमेश्वर के चमत्कारी कर्म देख पाई, मैंने देखा कि हर चीज़ पर परमेश्वर का अधिकार है। मैंने देखा कि किस तरह परमेश्वर ने चतुराई से हर कदम पर चीज़ों को व्यवस्थित किया। जैसे, कैदियों के लिए सेक्शन चीफ झांग से संपर्क करना बहुत मुश्किल काम है। हज़ार से ज़्यादा क़ैदियों में से, उसने मुझे ही अपने काम के लिए चुना। मेरे लिए इन सारी चीज़ों की व्यवस्था परमेश्वर ने ही की। प्रधान सुरक्षाकर्मी जो काम के दौरान हम पर नज़र रखती थी, इस बार नज़र नहीं रख रही थी, और जो दरवाज़ा आमतौर पर बंद रहता था, वह इस बार खुला पड़ा था। कुछ भी सामान्य नहीं था। जैसा कि बाइबल में लिखा है, "राजा का मन नालियों के जल के समान यहोवा के हाथ में रहता है, जिधर वह चाहता उधर उसको मोड़ देता है" (नीतिवचन 21:1)। ये सारे वचन एकदम सत्य हैं! मैं दिल खोलकर परमेश्वर के सामर्थ्य की स्तुति करने लगी। परमेश्वर का धन्यवाद! परमेश्वर के वचनों के तीन नए अध्याय, "तुम लोगों को अपने कर्मों पर विचार करना चाहिए," "परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है," "सर्वशक्तिमान की आह," और सैकड़ों भजन मिले। ऐसे माहौल ने हम आध्यात्मिक रूप से प्यासे थे, तो परमेश्वर का कोई भी वचन देखना अद्भुत लगता था, लेकिन खासकर इस अंश को पढ़ना अच्छा लगा : "इस दुनिया की हर चीज़ तेज़ी से सर्वशक्तिमान के विचारों और उसकी नज़रों तले बदलती है। मानवजाति ने जिन चीज़ों के बारे में कभी नहीं सुना है वो अचानक आ जाती हैं, जबकि माउसके पास जो कुछ लंबे समय से रहा है वो अनजाने में उसके हाथ से फिसल जाता है। सर्वशक्तिमान के ठौर-ठिकाने की थाह कोई नहीं पा सकता, सर्वशक्तिमान की जीवन शक्ति की उत्कृष्टता और महानता का एहसास करने की तो बात ही दूर है। वह इसलिए उत्कृष्ट है कि वह वो समझ सकता है जो मनुष्य नहीं समझ सकता। वह महान इसलिए है कि वह मानवजाति द्वारा त्यागे जाने के बाद भी उसे बचाता है। वह जीवन और मृत्यु का अर्थ जानता है, इसके अतिरिक्त, वह जानता है कि सृजित मानवजाति को अस्तित्व में रहने के किन नियमों का पालन करना चाहिए। वह मानव अस्तित्व की नींव है, वह मानवजाति को फिर से जीवित करने वाला मुक्तिदाता है। वह प्रसन्नचित्त दिलों को दु:ख देकर नीचे लाता है और दुखी दिलों को खुशी देकर ऊपर उठाता है, ये सब उसके कार्य के लिए है, उसकी योजना के लिए है। ... सर्वशक्तिमान ने हुरी तरह से पीड़ित इन लोगों पर दया की है; साथ ही, वह उन लोगों से तंग आ गया है, जिनमें चेतना की कमी है, क्योंकि उसे मनुष्य से जवाब पाने के लिए बहुत लंबा इंतजार करना पड़ा है। वह तुम्हारे हृदय की, तुम्हारी आत्मा की तलाश करना चाहता है, तुम्हें पानी और भोजन देना और तुम्हें जगाना चाहता है, ताकि अब तुम भूखे और प्यासे न रहो। जब तुम थक जाओ और तुम्हें इस दुनिया की बेरंग उजड़ेपन का कुछ-कुछ अहसास होने लगे, तो तुम हारना मत, रोना मत। द्रष्टा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, किसी भी समय तुम्हारे आगमन को गले लगा लेगा। वह तुम्हारी बगल में पहरा दे रहा है, तुम्हारे लौट आने का इंतजार कर रहा है। वह उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा है जिस दिन तुम अचानक अपनी याददाश्त फिर से पा लोगे: जब तुम्हें यह एहसास होगा कि तुम परमेश्वर से आए हो लेकिन किसी अज्ञात समय में तुमने अपनी दिशा खो दी थी, किसी अज्ञात समय में तुम सड़क पर होश खो बैठे थे, और किसी अज्ञात समय में तुमने एक 'पिता' को पा लिया था; इसके अलावा, जब तुम्हें एहसास होगा कि सर्वशक्तिमान तो हमेशा से ही तुम पर नज़र रखे हुए है, तुम्हारी वापसी के लिए बहुत लंबे समय से इंतजार कर रहा है। वह हताश लालसा लिए देखता रहा है, जवाब के बिना, एक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता रहा है। उसका नज़र रखना और प्रतीक्षा करना बहुत ही अनमोल है, और यह मानवीय हृदय और मानवीय आत्मा के लिए है। शायद ऐसे नज़र रखना और प्रतीक्षा करना अनिश्चितकालीन है, या शायद इनका अंत होने वाला है। लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा इस वक्त कहाँ हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह)। परमेश्वर के वचन पढ़कर, कई बहनें तो फूट-फूटकर रोने लगीं। हमने परमेश्वर के वचनों में इंसान के लिए उसके प्रेम और दया को महसूस किया। बस वही हमारी परवाह करता है और हमारे भविष्य और नियति के लिए चिंतित रहता है। ऐसा महान प्रेम और किसका है? उस समय, एक बहन गंभीर रूप से बीमार थी और मैं उसे वचन देने का मौका तलाश रही थी। उसकी हालत काफ़ी खराब थी, परन्तु वह परमेश्वर के वचनों से उसकी इच्छा समझ गई, उसने जान लिया कि अपने कष्टों की शिकायत करना गवाही देना नहीं है, इससे परमेश्वर का दिल दुखता है। उसे अपनी हरकतों पर अफ़सोस हुआ, उसने बीमारी में परमेश्वर की इच्छा खोजने और उसे सुकून देने के लिये गवाही देने की आशा की। जब मैंने परमेश्वर के ये वचन के पढ़े तो मैं बहुत प्रेरित हुई : "जिस क्षण तुम रोते हुए इस दुनिया में आते हो, उसी पल से तुम अपना कर्तव्य पूरा करना शुरू कर देते हो। परमेश्वर की योजना और उसके विधान के लिए तुम अपनी भूमिका निभाते हो और तुम अपनी जीवन-यात्रा शुरू करते हो। तुम्हारी पृष्ठभूमि जो भी हो और तुम्हारी आगे की यात्रा जैसी भी हो, कोई भी स्वर्ग के आयोजनों और व्यवस्थाओं से बच नहीं सकता, और किसी का भी अपनी नियति पर नियंत्रण नहीं है, क्योंकि केवल वही, जो सभी चीज़ों पर शासन करता है, ऐसा करने में सक्षम है। जिस दिन से मनुष्य अस्तित्व में आया है, परमेश्वर ने ब्रह्मांड का प्रबंधन करते हुए, सभी चीज़ों के लिए परिवर्तन के नियमों और उनकी गतिविधियों के पथ को निर्देशित करते हुए हमेशा ऐसे ही काम किया है। सभी चीज़ों की तरह मनुष्य भी चुपचाप और अनजाने में परमेश्वर से मिठास और बारिश तथा ओस द्वारा पोषित होता है; सभी चीज़ों की तरह मनुष्य भी अनजाने में परमेश्वर के हाथ के आयोजन के अधीन रहता है। मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, उसके जीवन की हर चीज़ परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए, मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मेरा परिवार बेटों को तरजीह देता था, मैं बचपन से ही अकेलेपन और भेदभाव की शिकार हुई। मैंने दो असफल विवाह झेले, कई बार आत्महत्या का प्रयास किया। मैंने सोचा, "मानवता के विशाल सागर में से, परमेश्वर ने मुझे अपने घर में आने के लिए चुना। अब मैं समझी कि उसी ने मेरी रक्षा की है। उसके पास मेरे लिए एक आदेश है, और मेरे जीवन का एक लक्ष्य है, मुझे एक भूमिका निभानी है। मैंने सुसमाचार का प्रचार करने के लिए अपना परिवार त्यागा, मुझे गिरफ्तार कर श्रमिक शिविर में कैद कर दिया गया, और फिर केयरटेकर बन गई, यह सब परमेश्वर की इच्छा से ही हुआ है। मुझे यहाँ भी उसके वचनों का प्रचार करने का मौका मिला है, मैं बहनों को सहारा देकर उनकी मदद कर पा रही हूँ। यह दायित्व मुझे परमेश्वर ने दिया है, और यही मेरा लक्ष्य है।" इन बातों पर विचार करके, मुझे अपने दिल में एक गर्मजोशी का एहसास हुआ। मैं भाग्यशाली हूँ जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की अनुयायी हूँ, एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभा रही हूँ, परमेश्वर के कार्यों का अनुभव कर उसके चमत्कारी कार्य देख रही हूँ। मैं सचमुच बहुत धन्य हूँ! मुझे पता था कि परमेश्वर मेरे साथ है। परमेश्वर मेरे भाग्य का स्वामी है, तो मैं और क्या माँगूँ? इन बातों के बारे में सोचा, तो लगा श्रमिक शिविर में रहना इतना मुश्किल भी नहीं है, फिर मुझे अकेलापन महसूस नहीं हुआ।

हमने आपस में परमेश्वर की इच्छा पर संगति की और हम परमेश्वर के प्रेम से प्रेरित हुए। हमने उसका आभार व्यक्त किया, और उसकी गवाही देने का हमारा संकल्प और भी दृढ़ हो गया। फिर हमने तुरंत परमेश्वर के वचनों की प्रतियाँ बनाईं, ताकि और भी बहनों को दी जा सकें। मैं हॉल ड्यूटी के दौरान बहनों के लिए नज़र रख रही थी, ताकि वे निश्चिंत होकर परमेश्वर के वचनों की नकल कर सकें, और कुछ बहनें तो देर रात तक लिखती रहीं। मेरे साथ ड्यूटी पर तैनात दूसरी कैदी को कुछ परवाह नहीं थी। उसने कुछ न देखने का दिखावा किया। तो तीन दिनों में ही, हमने बिना किसी अनहोनी के, वचनों की नकल कर ली, और फटाफट उन्हें दर्जनों दूसरी बहनों तक पहुँचा दिया। उन दिनों, जब बहनें परमेश्वर के वचन साझा कर उन पर संगति कर रही थीं, तो हमने एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया, और उस मुश्किल माहौल में परमेश्वर की गवाही देने के लिए और अधिक विश्वास हासिल किया।

मैं श्रमिक शिविर में परमेश्वर के वचनों का प्रचार करने को हर पल याद करती हूँ। मैं इसे कभी नहीं भूल पाऊँगी। इन व्यावहारिक अनुभवों से, मैंने खुद परमेश्वर के चमत्कारी कार्यों को देखा और अनुभव किया, उसका अधिकार, सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धिमत्ता देखी, और महसूस किया कि परमेश्वर का वचन ही लोगों को जीवन में शक्ति प्रदान करता है। इन बातों के बारे में सोचकर, मैं बहुत भावुक और प्रेरित होती हूँ, परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ और तहेदिल से उसकी स्तुति करती हूँ!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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