अप्रभावी कार्य का असल कारण
कलीसियाओं के मेरे हाल ही के दौरों में, मैं ने अक्सर अगुवों एवं कार्यकर्ताओं को यह कहते हुए सुना कि कुछ लोग, मेरे साथ संगति में भाग लेने के पश्चात्, नकारात्मकएवं दुर्बल हो गए और उनमें निरन्तर खोज करने की प्रेरणा की कमी हो गई। अन्य लोगों ने महसूस किया कि परमेश्वर में विश्वास करना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण था और उन्होंने परमेश्वर को गलत समझा। कुछ लोगों ने कहा कि मुझ से मिलने से पहले उनकी दशा ठीक थी, परन्तु जैसे ही उन्होंने मुझे देखा, उन्होंने अत्यधिक दबाव एवं बेचैनी का एहसास किया। ... जब मैंने यह सब सुना, तो मेरा हृदय बैठ गया, और मैने महसूस किया कि मेरे साथ बहुत अन्याय हुआ था−हर बारजब मैं उनके साथ संगति करने आई तो मैं कई दिनों तक रहती, और, उनकी समस्याओं को हल करने के लिए, मैं तेजी से आगे बढ़ी और परमेश्वर के वचन के असंख्य अंशों से उद्धरण दिया, और तब तक बात करती रही जब तक मेरा मुँह सूख नहीं गया, और पूरे समय सोचती रही कि मेरे प्रयासों ने अच्छे परिणामों को उत्पन्न किया था। मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि परिस्थितियां ऐसी हो जाएंगी। ऐसा क्यों हुआ? जब मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कीतो मैं ने इस प्रश्न को अपने विचारों में रखा, "ओह परमेश्वर, वह सब जो कुछ हुआ है उसमें निश्चित रूप से मेरी ही गलती है, परन्तु मैं नहीं जानती कि मुझ से कहाँ गलती हो गई। मैं तेरा मार्गदर्शन मांगती हूँ, ताकि मैं अपनी गलतियों के प्रति और भी अधिक जागरूक हो सकूं। मैं तेरे प्रबोधन को प्राप्त करने हेतु प्रतीक्षा करने के लिए तैयार हूँ।"
अपनी प्रार्थना समाप्त करने के पश्चात्, मैने अपने भाइयों एवं बहनों के साथ संगति पर वापस पुन: विचार करना आरम्भ किया: जब उन्होंने काम के इंतज़ामों के साथ जुड़े मामलों को अभिव्यक्त किया तो मैं उनके अहंकारी स्वभाव का विश्लेषण करती और अहंकार के परिणामों को समझाती, यह कहते हुए कि सारे अहंकार को अनिवार्य रूप से दण्डित किया जाएगा। यदि मैंदेखती कि चुनाव प्रक्रिया में समस्याएं उठ रही थीं, तो मैं इस विषय में बात करती कि किस प्रकार गलत लोगों का चुनाव कलीसिया के काम को रोकेगा और हमारे भाइयों एवं बहनों की ज़िन्दगियों को बर्बाद कर देगा। इस रीति से, परमेश्वर हम से घृणा करने लग जायेगा और हमें निष्कासित कर दिया जायेगा। जब मैं भाइयों एवं बहनों को काम पर ढीला पड़ते हुए देखती थी, तो मैं निकाले गए कुछ लोगों को उदाहरणों के रूप में प्रस्तुत करती। मैं उन्हें बताती कि वे कपटी हो रहे थे और यह परमेश्वर से विश्वासघात के बराबर है। यदि उन्होंने अपने तरीकों को नहीं बदला, तो उनकी नियति भी उन लोगों जैसी हो जाएगी जो सफल हो गए। जब वे सुसमाचार को फैलाने के लिए तैयार नहीं थे, तो मैं चर्चा करती कि किस प्रकार ऐसे कार्य परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह एवं उसका प्रतिरोध करते थे। ... ओह परमेश्वर! मैं किस आशय से उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए सत्य का उपयोग कर रहीथी? मैं साफ साफ धमकी का उपयोग कर रही थी! परमेश्वर के मार्गदर्शन के अंतर्गत, मैंने एक उपदेश से निम्नलिखित अंश के विषय में सोचा, "परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा करने के लिए आवश्यक है कि सभी चीज़ों में और सभी मामलों के सम्बन्ध में हमें परमेश्वर की प्रशंसा करनी चाहिए, परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए, परमेश्वर की इच्छा को बताना चाहिए, परमेश्वर के निवेदनों को बताना चाहिए, और दूसरों को परमेश्वर के वचन के अनुसार कार्य करने की अनुमति देनी चाहिए। हमें लोगों को मनुष्य के सिद्धान्तों, नियमों एवं कहावतों के अनुसार कार्य नहीं करवाना चाहिए। आपकी बातचीत को लोगों को परमेश्वर के सामने आने और उसकी इच्छा का पालन करने, परमेश्वर के वचन के अनुसार कार्य करने और, अन्ततः, परमेश्वर को जानने और उसका पालन करने के लिए सक्षम बनाना चाहिए" (ऊपर से संगति)। इस पल, मैंने एक अकस्मात् प्रकाशन का अनुभव किया। परमेश्वर अगुवों को परमेश्वर की प्रशंसा करने, परमेश्वर की गवाही देने, परमेश्वर की इच्छा एवं निवेदनों को बताने, अन्य लोगों को परमेश्वर के निवेदनों के अनुसार कार्य करने की अनुमति देने और, अन्ततः, परमेश्वर को समझने और उसकी आज्ञा को मानने का कार्य सौंपता है। फिर भी, अपने भाइयों एवं बहनों के मुद्दों का समाधान करने में मैंनेपरमेश्वर के निवेदनों, उसकी इच्छा या उसकी अपेक्षाओं के विषय में ने कभीकभार ही बोला था। साथ ही मैंने अपने भाइयों एवं बहनों की स्थितियों के सम्बन्ध में बात करने के लिए भी कभीकभार ही सत्य का उपयोग किया। इसके बजाय, मैंने उनके स्वभाव का और उस रीति का निर्ममता से विश्लेषण किया जिसके अंतर्गत उन्होंने कार्य किया था। मैं उन्हें धमकाने के लिए उनके कार्यों के संभावित परिणामों की चर्चा करती ताकि वे अपने आपको को जान सकें। इस ने मेरे भाइयों एवं बहनों को परमेश्वर की इच्छा का एहसास करने में असमर्थ किया, और उनके पास स्वयं की कोई वास्तविक समझ नहीं रही और वे मानवजाति के लिए परमेश्वर के उद्धार एवं प्रेम के निष्कपट इरादे को देखने में और भी सक्षम नहीं हुए।परिणामस्वरूप, वे सभी प्रकार की असामान्य स्थितियों में रहते थे। सिर्फ इस बिन्दु पर ही मैंने एहसास किया कि मैं अपनी स्वयं की इच्छाओं के प्रति अन्ध भक्ति में काम करती रही थी। मैं परमेश्वर का प्रतिरोध करती रही थी! इस रीति से अपनी बहनों एवं भाइयों की अगुवाई करते हुए, न केवल मैं परमेश्वर को समझने एवं उसका पालन करने हेतु उनकी सहायता करने में असमर्थ थी, बल्कि मैं वास्तव में परमेश्वर को गलत समझने और उसके साथ अधिक से अधिक संघर्ष की स्थिति में लाने के लिए उन्हें उकसा रही थी।इस रीति से, वे परमेश्वर से अलग होकर दूर और दूर होते गए और उन्होंने अधिक से अधिक अपराध किया। इस तथ्य के बावजूद कि मैंने अपनी बहनों एवं भाइयों के मुद्दों को परमेश्वर के वचन के अनुसार सुलझाया और जो भी मैंने कहा वह सच था, किन्तु वास्तविकता में, मैं रचनात्मक ढंग से कार्य नहीं कर रही थी। वास्तव में, जो मैं कर रही थी वह पूर्णतः व्यर्थ था। कार्य करने का यह तरीका कलीसिया के कामके लिए अत्यंत हानिकारक होता। तब मैंने एहसास किया कि अपने भाइयों एवं बहनों का समर्थन करने का सबसे अच्छा तरीका था कि उन्हें अनुमति दी जाए कि वे परमेश्वर के वचन के माध्यम से परमेश्वर की इच्छा को समझें, परमेश्वर के उद्धार के निष्कपट इरादे को महसूस करें, अपने स्वयं के स्वभाव के सार को जानें और, ऐसा करते हुए, स्वयं से घृणा करना सीखें, परमेश्वर के निवेदनों के अनुसार कार्य करें और, अंततः, परमेश्वर को जानें और उसका पालन करें। यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा का सही अर्थ है और केवल इस प्रकार की सेवा ही परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशील है।
मैं परमेश्वर को धन्यवाद अर्पित करती हूँ मुझे असली वजह दिखाने के लिए कि क्यों मेरा काम अप्रभावी रहा था। इसके पश्चात्, मैंने अपने भाइयों एवं बहनों की स्थितियों के अनुसार परमेश्वर की इच्छा एवं निवेदनों को बताने के लिए सचेतता से काम किया। मैंने चर्चा की कि परमेश्वर क्यों उनसे उस रीति से काम करवाना चाहता था जिस रीति से उसने अनुरोध किया था, किस प्रकार उसके निष्कपट इरादे उनकी ज़िन्दगियों में प्रतिबिम्बित हुए और उसने किस प्रकार का प्रभाव को पाने की अपेक्षा की थी। मैंने यह चर्चा भी की कि किस प्रकार वे परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप होने के लिए उस के साथ काम कर सकते थे। ... इस रीति से बातचीत करने के पश्चात्, मैंने सचमुच में परमेश्वर की आशीषों को देखा: मेरे भाइयों एवं बहनों ने परमेश्वर की इच्छा को समझना और परमेश्वर के उद्धार की गवाही देना प्रारम्भ कर दिया। वे समझ गए कि वह कीमत जिसे परमेश्वर ने सभी मनुष्यों के लिए चुकाया है वह समझ से परे है। उन्होंने अपने विद्रोही स्वभाव को समझना आरम्भ कर दिया, और वे सत्य को खोजने के लिए तैयार थे तथा अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए उन्होंने अभिप्रेरित महसूस किया।
जब तथ्यों ने अपने आपको प्रकट किया, तो मुझे परमेश्वर के प्रेम के अत्यंत वास्तविक स्वभाव की गहरी अनुभूति हुई। जब मैं परमेश्वर के प्रति अपनी सेवा में उसका विरोध करते हुएअपनी इच्छा के अनुसार काम करती थी, तो परमेश्वर ने तुरन्त ही मेरी कमियों एवं घटियों को प्रकट किया और मेरे काम में सभी त्रुटियों को ठीक किया। अन्यथा, मैं वाकई नहीं जानती कि मेरे कार्य मेरे भाइयों एवं बहनों को कहाँ ले गए होते या कितने लम्बे समय तक मैंने उन्हें जाल में फंसा कर रखा होता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, तेरे वास्तविक एवं सच्चे कार्य के लिए धन्यवाद, जिसने मुझे तेरे चमत्कारिक कार्यों एवं उद्धार को देखने की अनुमति दी जिन्हें तने मुझ पर किए थे। अब से, मैं सत्य पर और अधिक परिश्रम करने तथा तेरे निवेदनों को पूरा करने का प्रण लेती हूँ, जिससे तेरी इच्छा को खोज और समझ सकूं और तेरी इच्छानुसार सेवा करते हुए सभी चीज़ों में तेरी इच्छा के अनुसार काम करने की क्षमता को हासिल कर सकूं।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?