परमेश्वर के बजाय मनुष्य का अनुसरण करने से मिली कड़वी सीख
जब मैं पहली बार कलीसिया अगुआ बनी, तो मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि कैली मेरे काम की निगरानी करेगी। मैं पहले भी सभाओं में उसकी संगति सुन चुकी थी, परमेश्वर के वचनों की उसकी समझ अच्छी थी, वह स्पष्ट संगति करती थी और आत्म-ज्ञान पर भी अच्छे से बात कर लेती थी। अन्य भाई-बहनों का भी मानना था कि उसमें काबिलियत है और वह सत्य का अनुसरण करती है। इसके अलावा, जब से मैं उसे जानती थी, तब से वह अगुआ थी और मैं उसकी प्रशंसक थी; मुझे लगता था वह सत्य का अनुसरण करती है, उसमें सत्य वास्तविकता है और हर कार्य सिद्धांतों के अनुसार करने की कोशिश करती है। अगर कैली मुझे कोई कार्य सौंपती, तो मैं तुरंत उस काम में लग जाती। लेकिन कुछ समय तक उसके साथ काम करके मुझे लगा कि वह व्यावहारिक काम नहीं करती, वह न तो आमतौर पर हमारे साथ सत्य पर संगति करती और न ही हमसे कभी यह पूछती कि हमें काम में किसी तरह की कोई कठिनाई तो नहीं आ रही। अगर कभी कोई उससे किसी समस्या का जिक्र करता, तो वह या तो हिकारत से कहती कि फलाँ व्यक्ति में काबिलियत नहीं है या फलाँ व्यक्ति का स्वभाव अहंकारी है और वह आज्ञाकारी नहीं है। अगर वह उन्हें डांटकर मुद्दे का समाधान न करती, तो उनका कर्तव्य ही बदल देती। इससे बहुत सारे भाई-बहन उसके हाथों विवश महसूस करते थे। मुझे लगता तो था कि उसके साथ कुछ समस्या है, लेकिन फिर मैं यह सोचकर ज्यादा ध्यान न देती कि वह शायद अपने कर्तव्य में बहुत ज्यादा व्यस्त होने के कारण तनाव में रहती है। चूंकि मैं उसका सम्मान करती थी, उसकी प्रशंसक थी और अपने कार्यों में सत्य नहीं खोजती थी, तो अनजाने में ही मैं भी उसके साथ मिलकर बुराई करने लगी।
एक बार कैली अचानक मेरे पास आकर बोली कि मुझे तुरंत एक महत्वपूर्ण काम करने जाना होगा—कुछ भाई-बहनों ने एक वरिष्ठ अगुआ से शिकायत की थी कि हमारी कलीसिया की एक बहन सिद्धांतहीन तरीके से सुसमाचार साझा कर रही है। कैली ने कहा, “पहले जाकर उसकी काट-छाँट करो और उसके व्यवहार की प्रकृति का विश्लेषण करो फिर उसे किसी दूसरे कर्तव्य में लगा दो।” मैं सोचने लगी कि वह बहन सुसमाचार साझा करना अभी सीख ही रही है, इसलिए समस्या की वजह यह थी कि उसे अभी भी कुछ सिद्धांतों की समझ नहीं थी। इसलिए सीधे तौर पर उसे बर्खास्त कर देना इसका हल नहीं था—क्या हमें संगति करके पहले उसकी मदद नहीं करनी चाहिए? लेकिन यह सोचकर कि कैली लंबे समय से अगुआ है, उसे चीजों की अधिक सटीक समझ होगी, तो कैली की बात मानते हुए मैंने उस बहन को बर्खास्त करने का फैसला कर लिया। एक अन्य अवसर पर जब किसी समूह को अगुआ का चयन करना था, तो कैली ने मुझसे कहा कि कुछ सुरक्षा कारणों से जोएन प्रत्याशी नहीं हो सकती। लेकिन जोएन उस व्यवस्था को स्वीकारने को तैयार नहीं थी और बाद की एक सभा में उसने अपना असंतोष व्यक्त किया। जब कैली को इसका पता चला, तो जोएन के साथ सत्य पर संगति किए बिना ही उसने कह दिया कि उसका स्वभाव अच्छा नहीं है और मुझसे बोली कि मैं तुरंत भाई-बहनों से उसका आकलन लिखने को कहूँ। बाद में, कैली ने कहा कि जोएन इस बात को छोड़ नहीं रही है, वह अगुआओं और कार्यकर्ताओं में मीन-मेख निकाल रही है और आत्मचिंतन या खुद को जानने की कोशिश नहीं कर रही है। इसलिए उसके व्यवहार को देखते हुए, उसके सभाओं में भाग लेने पर रोक लगा देनी चाहिए और उसे घर पर आत्मचिंतन करने देना चाहिए। उस समय तो मुझे भी यही लगा कि जोएन बहुत अहंकारी है, लेकिन मैंने इस बात पर गौर नहीं किया कि क्या वह वाकई हर समय ऐसा व्यवहार करती है, संगति कर उसकी मदद करने की तो बात ही दूर है। मैंने कैली की बात पर भरोसा करके उसे सभाओं में आने से रोक दिया। एक दिन कैली और उसके साथियों ने अचानक मुझे और कुछ अन्य कलीसिया अगुआओं को सामान्य मामलों की प्रभारी, एडलिन का आकलन पढ़ने के लिए बुलाया। उसने कहा कि एडलिन मसीह-विरोधी है, उसने हमसे भी अपनी राय साझा करने को कहा कि क्या हम उसे निष्कासित करने के लिए सहमत हैं। यह सुनकर मुझे झटका लगा। एडलिन के साथ कई बार मेरी बातचीत हुई थी और लगा था कि वह अपने कर्तव्य का भार वहन करती है—वह मसीह-विरोधी कैसे हो सकती है? कैली और उसके साथियों ने कहा कि एडलिन बेहद अहंकारी है, उसका सारा काम सत्ता हासिल करने के लिए होता है। वह अपना काम तो पूरी निष्ठा से करती नहीं, लेकिन अन्य कलीसियाओं के भाई-बहनों के साथ उनके मुद्दे हल करने के लिए हमेशा सत्य पर संगति करती रहती है। कैली ने कहा कि वह सिर्फ लोगों का दिल जीतने की कोशिश करती रहती है, उन्हें गुमराह करने और उनके मन में जगह बनाने के लिए ही ऐसा करती है, वगैरह। एडलिन का यह आकलन सुनकर कि वह अक्सर समस्याओं के समाधान के लिए संगति साझा करती है, मैंने सोचा, “यह तो सामान्य-सी बात लगती है। इससे वह मसीह-विरोधी कैसे हो गई?” लेकिन फिर मैंने सोचा कि मैं तो एडलिन से एक-दो बार ही मिली हूँ, जबकि कैली और उसके सहकर्मी तो अपने कर्तव्य के सिलसिले में लगातार उसके संपर्क में रहते हैं। उनकी समझ जरूर मुझसे बेहतर होगी, चूँकि कैली को सत्य की समझ है, चीजों के बारे में उसका दृष्टिकोण भी अधिक सटीक है और फिर उसने कई सहकर्मियों के साथ इस पर चर्चा करने के बाद ही यह तय किया होगा, तो उसकी बात सही ही होगी। तो बिना कोई खोज किए, मैंने एडलिन को निष्कासित करने के लिए हामी भर दी।
फिर एक दिन अचानक मैंने सुना कि कैली और कुछ अन्य सहकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया है। यह मेरे लिए काफी हैरानी की बात थी, पता नहीं ऐसा क्यों हुआ। जल्दी ही एक वरिष्ठ अगुआ ने मुझे आकर बताया कि कुछ भाई-बहनों ने मेरी भी रिपोर्ट की है। उसने यह भी कहा कि जोएन को सभा में आने से रोकना सिद्धांतों के अनुरूप नहीं था, यह उसे दबाना था। अगुआ ने मुझे उसे वापस कलीसिया में लाने और घटना के बारे में दूसरों के साथ संगति करने के लिए कहा। मुझे आश्चर्य हुआ कि मैंने जोएन के साथ चीजों को गलत तरीके से संभाला, क्योंकि इस पर कैली और अन्य सभी सहमत थे। यह गलत कैसे हो सकता है? यदि ऐसा है, तो क्या यह कलीसिया के कार्य को अस्तव्यस्त और बाधित करना नहीं था? मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं हर दिन अपने कर्तव्य में व्यस्त होकर दौड़-भाग करते हुए भी आखिर में व्यवधान पैदा कर बैठूँगी। मुझे डर, असहजता और बेचैनी हुई। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मुझे इसकी बिल्कुल आशा नहीं थी, मुझे नहीं पता कि इसमें तेरी इच्छा क्या है। मेरा मार्गदर्शन कर ताकि मैं इससे कोई सबक सीख सकूँ।” उस समय मैं खुद को कुछ खास अच्छे से नहीं जानती थी, लेकिन मैंने जोएन के साथ सैद्धांतिक तरीके से व्यवहार नहीं किया था। यह अनुचित और उसे आहत करने वाला था। अगले ही दिन, मैंने जोएन से माफी मांगी और कलीसिया में वापस ले लिया। मैंने बाकी भाई-बहनों के आगे भी अपनी गलती स्वीकार की। एक भाई ने निराश होकर कहा, “तुम कलीसिया अगुआ होकर भी भाई-बहनों की रक्षा नहीं कर पाई, बल्कि तुमने कैली के साथ मिलकर दुष्टता की। तुम विनाश के रास्ते पर हो और अपने साथ हमें भी नरक में ले जाओगी। अब तुम पर भरोसा नहीं रहा।” उसकी बात मेरे दिल में चुभ गई और मैं परेशान हो गई, लेकिन मुझे पता था कि यह स्थिति परमेश्वर की ओर से आई है और मुझे इसके प्रति समर्पित हो जाना है।
मैंने शांति से सोचा : मैंने बुराई करने में कैली का साथ क्यों दिया—समस्या वास्तव में कहाँ थी? मैंने बाद में परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, जिसने मेरी आंखें खोल दीं। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “तुम मसीह की विनम्रता की प्रशंसा नहीं करते, बल्कि विशेष हैसियत वाले उन झूठे चरवाहों की प्रशंसा करते हो। तुम मसीह की मनोहरता या बुद्धि से प्रेम नहीं करते, बल्कि उन व्यभिचारियों से प्रेम करते हो, जो संसार के कीचड़ में लोटते हैं। तुम मसीह की पीड़ा पर हँसते हो, जिसके पास अपना सिर टिकाने तक की जगह नहीं है, लेकिन उन मुरदों की तारीफ करते हो, जो चढ़ावे हड़प लेते हैं और ऐयाशी में जीते हैं। तुम मसीह के साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं हो, लेकिन खुद को उन धृष्ट मसीह-विरोधियों की बाँहों में प्रसन्नता से फेंक देते हो, जबकि वे तुम्हें सिर्फ देह, शब्द और नियंत्रण ही प्रदान करते हैं। अब भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा, उनकी हैसियत, उनके प्रभाव की ओर ही मुड़ता है। अभी भी तुम ऐसा रवैया बनाए रखते हो, जिससे मसीह के कार्य को गले से उतारना तुम्हारे लिए कठिन हो जाता है और तुम उसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होते। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुममें मसीह को स्वीकार करने की आस्था की कमी है। तुमने आज तक उसका अनुसरण सिर्फ इसलिए किया है, क्योंकि तुम्हारे पास कोई और विकल्प नहीं था। बुलंद छवियों की एक शृंखला हमेशा तुम्हारे हृदय में बसी रहती है; तुम उनके किसी शब्द और कर्म को नहीं भूल सकते, न ही उनके प्रभावशाली शब्दों और हाथों को भूल सकते हो। वे तुम लोगों के हृदय में हमेशा सर्वोच्च और हमेशा नायक रहते हैं। लेकिन आज के मसीह के लिए ऐसा नहीं है। तुम्हारे हृदय में वह हमेशा महत्वहीन और हमेशा भय के अयोग्य है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण है, उसका बहुत ही कम प्रभाव है और वह ऊँचा तो बिल्कुल भी नहीं है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो?)। परमेश्वर ने अपने वचनों में जो प्रकट किया उससे मुझे यह पता चला कि भले ही मैं विश्वासी हूँ, लेकिन मेरे हृदय में परमेश्वर का कोई स्थान नहीं है। मैं रुतबे, सत्ता, एक अच्छी छवि और वाक्पटु व्यक्ति को पूजती थी। शुरू में मैंने देखा कि कैली प्रतिभाशाली और स्पष्टवक्ता है, अच्छी संगति कर सकती है और लंबे समय से अगुआ रही है, तो मुझे भ्रम हो गया कि वह सत्य समझती है और उसमें सत्य वास्तविकता है, तो वह जो कुछ भी करती है, वह सिद्धांतों के अनुरूप ही होगा। इसलिए जब भी वह मुझे कोई कार्य देती, तो मैं बिना-सोचे समझे और बिना सत्य सिद्धांत खोजे वह कार्य करने लग जाती। मैंने उसे कभी जानने-समझने की कोशिश ही नहीं की। कहने को तो, मैं हर दिन परमेश्वर के वचन पढ़ती थी और सुबह से रात तक कर्तव्य करती थी, लेकिन चीजों के मूल्यांकन के लिए मैं अपने कर्तव्य में जो सिद्धांत लागू करती थी और मेरे मानक, परमेश्वर के वचनों पर आधारित नहीं थे। बल्कि मैं कैली की बात मानकर वही करती जो वह कहती। जैसे, जब मैं सुसमाचार साझा कर रही बहन का मामला देख रही थी, तो मुझे लगा कि सीधे तौर पर उसे खारिज करना उचित नहीं है, लेकिन चूंकि वह कैली की व्यवस्था थी, तो मैंने अपने मन की बात न सुनकर आँख मूँदकर उसकी बात मान ली। जोएन के मामले में भी मैंने सत्य सिद्धांत नहीं खोजे, बल्कि वही किया जो कैली चाहती थी, और उसे सभाओं में आने से रोक दिया। एक दूसरा मामला एडलिन के निष्कासन पर वोटिंग का था। कैली का मानना था कि एडलिन मसीह-विरोधी है, हालांकि यह बात मुझे समझ नहीं आई और मामला संदिग्ध लगा, लेकिन मैंने सोचा कि कैली में मेरे मुकाबले लोगों और चीजों की समझ और अंतर्दृष्टि अधिक है। इसके अलावा, इस बात को उसने और बाकी सहकर्मियों ने संगति करके तय किया था, तो मुझे नहीं लगा कि वे गलत हो सकते हैं। किसी को निकाल देने जैसे बड़े मामले में भी मैंने कैली के साथ मिलकर बुराई की; मैं एडलिन को कलीसिया से निष्कासित करने के लिए तैयार हो गई, जिससे उसके उद्धार का मौका बर्बाद ही हो जाता। मुझे बाद में पता चला कि एडलिन में धार्मिकता की भावना है, उसने कैली और उसके गिरोह के बुरे कामों को उजागर और रिपोर्ट किया था। लेकिन उन्होंने इस बात को स्वीकार नहीं किया, बल्कि बदला लेने के लिए गुप्त रूप से उसके खिलाफ काम किया और उसे कलीसिया से निकलवाने की कोशिश की। मैं उनकी तरह एडलिन को जानबूझकर सजा नहीं दे रही थी, लेकिन यह भी सच है कि मैंने सत्य नहीं खोजा। मैंने जो रुख अपनाया उससे सीधे तौर पर कैली और दूसरों को बदला लेने और एडलिन को नुकसान पहुंचाने में मदद मिली। उनकी बुराई में मेरा भी हिस्सा था। अपनी आस्था में, मेरे हृदय में परमेश्वर या उसके वचनों के लिए कोई जगह न थी; मैं सिर्फ प्रतिभा, अनुभव, सत्ता और रुतबे की पूजा करती थी। मैं उन सभी की बात सुनती थी जिनके पास रुतबा और अधिकार होता, मैं अनुचरों की तरह उनके चारों ओर घूमती थी। मैं बिल्कुल भी सच्ची विश्वासी नहीं थी। परमेश्वर एक ऐसा परमेश्वर है जो बुराई से घृणा करता है, मैं परमेश्वर में विश्वास तो रखती थी, लेकिन मैं पूजा और अनुसरण इंसान का करती थी, यहाँ तक कि बुराई करने और परमेश्वर के खिलाफ जाने में भी उसका साथ दे सकती थी। तब मुझे एहसास हुआ कि यह तो मेरी एक गंभीर समस्या है, अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया, तो निश्चित रूप से परमेश्वर मुझे अस्वीकार कर निष्कासित कर देगा। मुझे बाद में पता चला कि कैली और उसके सहकर्मी व्यावहारिक काम नहीं करते थे, वे उतावले और निरंकुश थे, मनमाने ढंग से लोगों को दबाते उन पर गुस्सा उतारते थे। उन्होंने एडलिन को निष्कासित करने के लिए भाई-बहनों के आकलन में मनमाने बदलाव किए, झूठी बातें गढ़ीं, झूठे सबूत बनाए, ताकि उन्हें उजागर कर उनकी रिपोर्ट करने वाली एडलिन को निष्कासित करवा सकें। वे गुप्त जोड़-तोड़ के जरिये चुनावों को नियंत्रित करते थे, लोगों को इच्छानुसार पदोन्नत और बर्खास्त करते थे। उन्होंने भयंकर दुष्टता की थी; यह तय किया गया कि वे मसीह-विरोधी हैं और उन्हें कलीसिया से हमेशा के लिए निष्कासित कर दिया गया। फिर अगुआ ने अन्य भाई-बहनों से उनकी राय पूछी कि मेरे साथ क्या किया जाए। मेरे कर्तव्य-निर्वहन और कार्यों की पृष्ठभूमि के मद्देनजर, उन्होंने कहा कि मुझे गुमराह किया गया था, वे मुझे पश्चात्ताप करने और कलीसिया में बने रहकर कर्तव्य करने का मौका देने के लिए सहमत हो गए। मैं बहुत आभारी थी। मैं सत्य की खोज किए बिना कार्य कर रही थी, बुराई में मसीह-विरोधियों का साथ दे रही थी, लेकिन कलीसिया ने मुझे निष्कासित नहीं किया। मुझे पश्चात्ताप करने का अवसर दिया गया। मुझ पर दया करने के लिए मैं परमेश्वर की आभारी थी।
बाद में मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े जिन्होंने मुझे कैली और उसके गिरोह के सार के बारे में समझ दी। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “जब कोई मसीह-विरोधी किसी विरोधी पर आक्रमण करके उसे निकाल देता है, तो उसका मुख्य उद्देश्य क्या होता है? वे लोग कलीसिया में एक ऐसी स्थिति पैदा करने का प्रयास करते हैं जहाँ उनकी आवाज के विरोध में कोई आवाज न उठे, जहाँ उनकी सत्ता, उनकी अगुआई का दर्जा और उनके शब्द सब सर्वोपरि हों। सभी को उनकी बात माननी चाहिए, भले ही उनमें मतभेद हो, उन्हें इसे व्यक्त नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे अपने दिल में पकने देना चाहिए। जो कोई भी उनके साथ खुले तौर पर असहमत होने का साहस करता है, वह मसीह-विरोधी का दुश्मन बन जाता है, वे सोचते रहते हैं कि किसी भी तरह उनके लिए हालात को मुश्किल बना दिया जाए और उन्हें निकाल बाहर करने के लिए बेचैन रहते हैं। यह उन तरीकों में से एक है जिसके जरिए मसीह विरोधी अपने रुतबे को मजबूत करने और अपनी सत्ता की रक्षा के लिए विरोध करने वालों पर हमला कर उन्हें अलग-थलग कर देते हैं। वे सोचते हैं, ‘तुम्हारी राय मुझसे अलग हो सकती है, लेकिन तुम उसके बारे में मनचाही बातें नहीं बना सकते, मेरी सत्ता और हैसियत को जोखिम में तो बिल्कुल नहीं डाल सकते। अगर कुछ कहना है, तो मुझसे अकेले में कह सकते हो। यदि तुम सबके सामने कहकर मुझे शर्मिंदा करोगे तो मुसीबत को बुलावा दोगे, और मुझे तुम्हारा ध्यान रखना पड़ेगा!’ यह किस प्रकार का स्वभाव है? मसीह-विरोधी दूसरों को खुलकर नहीं बोलने देते। अगर उनकी कोई राय होती है—फिर वह चाहे मसीह-विरोधी के बारे में हो या किसी और चीज के बारे में—तो वे खुद उसे यूँ ही सामने नहीं ला सकते; उन्हें मसीह-विरोधी के चेहरे के भावों का ख्याल रखना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया, तो मसीह-विरोधी उन्हें शत्रु घोषित कर देगा, और उन पर आक्रमण कर उन्हें बाहर कर देगा। यह किस तरह की प्रकृति है? यह एक मसीह विरोधी की प्रकृति है। और वे ऐसा क्यों करते हैं? वे कलीसिया में किसी अन्य की आवाज नहीं उठने देते, वे कलीसिया में अपने विरोधी को नहीं रहने देते, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को खुले तौर पर सत्य की संगति और लोगों की पहचान नहीं करने देते। वे सबसे ज्यादा इस बात से डरते हैं कि कहीं लोग उन्हें पहचानकर उजागर न कर दें; वे लगातार अपनी सत्ता और लोगों के दिलों में अपनी हैसियत को मजबूत करने की कोशिश में लगे रहते हैं, उन्हें लगता है हैसियत हमेशा बनी रहनी चाहिए। वे ऐसी कोई चीज बरदाश्त नहीं कर सकते, जो एक अगुआ के रूप में उनके गौरव, प्रतिष्ठा या हैसियत और मूल्य को धमकाए या उस पर असर डाले। क्या यह मसीह-विरोधियों की दुर्भावनापूर्ण प्रकृति की अभिव्यक्ति नहीं है? वे पहले से मौजूद अपनी ताकत से संतुष्ट नहीं होते, वे उसे भी मजबूत और सुरक्षित बनाकर शाश्वत सत्ता चाहते हैं। वे केवल लोगों के व्यवहार को ही नियंत्रित नहीं करना चाहते, बल्कि उनके दिलों को भी नियंत्रित करना चाहते हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे मसीह-विरोधी के शातिर स्वभाव के बारे में थोड़ी समझ हासिल हुई। वे लोग अपना पद सुरक्षित रखने के लिए उन लोगों को शत्रु समझते हैं जो उन्हें पहचान जाते हैं, उन्हें सुझाव देने और उजागर करने में सक्षम होते हैं, वे उन पर हमला करने और उनका दमन करने में भी नहीं चूकते। यहाँ तक कि वे उन पर सभी प्रकार की गलत काम करने का झूठा आरोप लगाकर उन्हें कलीसिया से हटाना चाहते हैं ताकि वे कलीसिया में अपनी सत्ता पर काबिज होने का लक्ष्य हासिल कर सकें। यह मसीह-विरोधियों का बेहद कपटी और द्वेषपूर्ण पहलू होता है। मैं जान गई कि मसीह-विरोधी शातिर मानवता, उग्र स्वभाव, सत्य और सभी सकारात्मक चीजों से घृणा करने वाले होते हैं। कैली और अन्य लोगों का व्यवहार ठीक वैसा ही था जैसा परमेश्वर ने वर्णन किया है। जब कुछ भाई-बहनों ने उन्हें पहचानकर उन्हें सुझाव दिए या उनकी रिपोर्ट की, तो उन्होंने इसे परमेश्वर की ओर से स्वीकारने और आत्मचिंतन करने के बजाय, बुरी तरह से उनका दमन किया और उन्हें निष्कासित करवा दिया। एडलिन ने देख लिया कि वे अपने कार्यों में सिद्धांतों का उल्लंघन कर रहे हैं, तो उसने उनकी रिपोर्ट कर दी और उन्हें उजागर कर दिया, उसके बाद उन्होंने उसे दबाना शुरू कर दिया, उसे कलीसिया से निष्कासित करने के लिए सामग्री तैयार करनी शुरू कर दी। लेकिन उनके साक्ष्य अपर्याप्त थे और कलीसिया ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, बल्कि एडलिन से छुटकारा पाने के प्रयास में उन्होंने एडलिन के दूसरों द्वारा किए गए आकलन में भी बदलाव कर दिए, चीजों को बढ़ा-चढ़कर और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया, उन्होंने दावा किया कि एडलिन का संगति करना और दूसरों की मदद करना एक मसीह-विरोधी गतिविधि है जो लोगों को गुमराह कर रही है। उन्होंने उस पर तरह-तरह के लाँछन लगाकर उसकी मनमानी निंदा की; वे तब तक चैन से नहीं बैठे जब तक उन्होंने एडलिन को कलीसिया से निकलवा नहीं दिया। ये मसीह-विरोधी बड़े लाल अजगर की तरह थे, जो उनसे असहमत होते, वे उन पर अत्याचार करते, हमला करते, उन्हें फंसाते और बस अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए उन्हें नुकसान पहुँचाते। जिस कलीसिया पर उनका कब्जा था, वहाँ पर वे किसी को भी आवाज नहीं उठाने देते और अगर कोई उन्हें सुझाव देता, तो उसे दंडित करते। कलीसिया का एक अन्य सदस्य, कारसन अक्सर उन्हें कार्य से संबंधित सुझाव देता था और उनकी समस्याएँ बताता था, तो वे गुप्त रूप से उसके खिलाफ काम करने लगे, उसे आत्मचिंतन के लिए अलग-थलग कर दिया और उसे कर्तव्य करने से रोक दिया। आगबबूला होते हुए उन्होंने यहाँ तक कहा कि भले ही वह घर पर अलग-थलग पड़ा है, फिर भी वे उसे नहीं छोड़ेंगे, वे उसे कलीसिया से निष्कासित करने पर अड़े रहे और जब तक इसमें कामयाब नहीं हो गए, तब तक वे चैन से नहीं बैठे। एक और कलीसिया अगुआ थी, जिसे उन्होंने दंडित कर सताया, क्योंकि कारसन के निष्कासन को लेकर उसकी राय उनसे अलग थी—उन्होंने उसे कर्तव्य से ही बर्खास्त कर दिया।
मैं जान गई कि कैली और उसका मसीह विरोधी गुट कितना शातिर है, वे अपने पद पर कब्जा बनाए रखने की खातिर भाई-बहनों को चोट पहुँचाने के लिए हर तरह के अमानवीय कुकर्म करते थे। वे मानव थे ही नहीं। मैंने अपने आपसे पूछा : मैं ऐसी कपटी और मसीह-विरोधी की चापलूसी और अनुसरण करते हुए उसकी दुष्टता में भागीदार कैसे हो गई? एक विश्वासी होकर भी मैं अभी तक भी एक इंसान की पूजा और उसका अनुसरण क्यों कर रही हूँ? मैंने इतनी बुराई करने वाले एक मसीह-विरोधी को आदर्श कैसे मान लिया? बाद में प्रार्थना और खोज के जरिये, मैं अपनी असफलता के मूल को जान पाई। मैंने परमेश्वर के वचनों में यह पढ़ा : “कुछ लोग कठिनायाँ सह सकते हैं; वे कीमत चुका सकते हैं; उनका बाहरी आचरण बहुत अच्छा होता है, वे बहुत आदरणीय होते हैं; और लोग उनकी सराहना करते हैं। क्या तुम लोग इस प्रकार के बाहरी आचरण को, सत्य को अभ्यास में लाना कह सकते हो? क्या तुम लोग कह सकते हो कि ऐसे लोग परमेश्वर के इरादों को संतुष्ट कर रहे हैं? लोग बार-बार ऐसे व्यक्तियों को देखकर ऐसा क्यों समझ लेते हैं कि वे परमेश्वर को संतुष्ट कर रहे हैं, वे सत्य को अभ्यास में लाने के मार्ग पर चल रहे हैं, और वे परमेश्वर के मार्ग पर चल रहे हैं? क्यों कुछ लोग इस प्रकार सोचते हैं? इसका केवल एक ही स्पष्टीकरण है। और वह स्पष्टीकरण क्या है? स्पष्टीकरण यह है कि बहुत से लोगों को, ऐसे प्रश्न—जैसे कि सत्य को अभ्यास में लाना क्या है, परमेश्वर को संतुष्ट करना क्या है, और यथार्थ में सत्य वास्तविकता से युक्त होना क्या है—ये बहुत स्पष्ट नहीं हैं। अतः कुछ लोग अक्सर ऐसे लोगों के हाथों धोखा खा जाते हैं जो बाहर से आध्यात्मिक, कुलीन, ऊँचे और महान प्रतीत होते हैं। जहाँ तक उन लोगों की बात है जो वाक्पटुता से शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल सकते हैं, और जिनकी कथनी-करनी सराहनीय लगती है, तो जो लोग उनके हाथों धोखा खा चुके हैं उन्होंने उनके कार्यकलापों के सार को, उनके कर्मों के पीछे के सिद्धांतों को, और उनके लक्ष्य क्या हैं, इसे कभी नहीं देखा है। उन्होंने यह कभी नहीं देखा कि ये लोग वास्तव में परमेश्वर का आज्ञापालन करते हैं या नहीं, वे लोग सचमुच परमेश्वर का भय मानकर बुराई से दूर रहते हैं या नहीं। उन्होंने इन लोगों के मानवता सार को कभी नहीं पहचाना। बल्कि, उनसे परिचित होने के साथ ही, थोड़ा-थोड़ा करके वे उन लोगों की तारीफ करने, और आदर करने लगते हैं, और अंत में ये लोग उनके आदर्श बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ लोगों के मन में, वे आदर्श जिनकी वे उपासना करते हैं, मानते हैं कि वे अपने परिवार एवं नौकरियाँ छोड़ सकते हैं, और सतही तौर पर कीमत चुका सकते हैं—ये आदर्श ऐसे लोग हैं जो वास्तव में परमेश्वर को संतुष्ट कर रहे हैं, और एक अच्छा परिणाम और एक अच्छी मंजिल प्राप्त कर सकते हैं। उन्हें मन में लगता है कि परमेश्वर इन आदर्श लोगों की प्रशंसा करता है” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का स्वभाव और उसका कार्य जो परिणाम हासिल करेगा, उसे कैसे जानें)। “लोगों के ऐसे अज्ञानता भरे कार्य और दृष्टिकोण का, या एकतरफा दृष्टिकोण और अभ्यास का केवल एक ही मूल कारण है, आज मैं तुम लोगों को उसके बारे में बताऊँगा : कारण यह है कि भले ही लोग परमेश्वर का अनुसरण करते हों, प्रतिदिन उससे प्रार्थना करते हों, और प्रतिदिन परमेश्वर के कथन पढ़ते हों, फिर भी वे परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते। और यही समस्या की जड़ है। यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर के हृदय को समझता है, और जानता है कि परमेश्वर क्या पसंद करता है, किस चीज से वो घृणा करता है, वो क्या चाहता है, किस चीज को वो अस्वीकार करता है, किस प्रकार के व्यक्ति से परमेश्वर प्रेम करता है, किस प्रकार के व्यक्ति को वो नापसंद करता है, लोगों से अपेक्षाओं के उसके क्या मानक हैं, मनुष्य को पूर्ण करने के लिए वह किस प्रकार की पद्धति अपनाता है, तो क्या तब भी उस व्यक्ति का व्यक्तिगत विचार हो सकता है? क्या वह यूँ ही जा कर किसी अन्य व्यक्ति की आराधना कर सकता है? क्या कोई साधारण व्यक्ति लोगों का आदर्श बन सकता है? जो लोग परमेश्वर की इच्छा को समझते हैं, उनका दृष्टिकोण इसकी अपेक्षा थोड़ा अधिक तर्कसंगत होता है। वे मनमाने ढंग से किसी भ्रष्ट व्यक्ति की आदर्श के रूप में आराधना नहीं करेंगे, न ही वे सत्य को अभ्यास में लाने के मार्ग पर चलते हुए, यह विश्वास करेंगे कि मनमाने ढंग से कुछ साधारण नियमों या सिद्धांतों के मुताबिक चलना सत्य को अभ्यास में लाने के बराबर है” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का स्वभाव और उसका कार्य जो परिणाम हासिल करेगा, उसे कैसे जानें)। “अगुआ और कार्यकर्ता, चाहे वे किसी भी श्रेणी के हों, फिर भी आम लोग ही होते हैं। अगर तुम उन्हें अपना निकटतम वरिष्ठ समझते हो, अगर तुम्हें लगता है कि वे तुमसे श्रेष्ठ हैं, तुमसे ज़्यादा सक्षम हैं, उन्हें तुम्हारी अगुआई करनी चाहिए, वे हर तरह से बाकी सबसे बेहतर हैं, तो तुम गलत हो—यह एक भ्रम है। और इस भ्रम के तुम पर क्या परिणाम होंगे? यह तुम्हें अनजाने ही अपने अगुआओं को उन अपेक्षाओं के बरक्स मापने के लिए प्रेरित करेगा जो वास्तविकता के अनुरूप नहीं हैं; और तुम्हें उनकी समस्याओं और कमियों से सही तरह से पेश आने में असमर्थ बना देगा, साथ ही, तुम्हें पता भी नहीं चलेगा और तुम उनके हुनर, खूबियों और क्षमताओं की ओर गहराई से आकर्षित भी होने लगोगे, इस हद तक कि तुम्हें पता भी न चलेगा और तुम उनकी आराधना कर रहे होगे, और वे तुम्हारे परमेश्वर बन जाएँगे। वह मार्ग, जबसे वे तुम्हारे आदर्श और तुम्हारी आराधना के पात्र बनना शुरू होते हैं, तबसे उस समय तक जब तुम उनके अनुयायियों में से एक बन जाते हो, तुम्हें अनजाने ही परमेश्वर से दूर ले जाने वाला मार्ग होगा। धीरे-धीरे परमेश्वर से दूर जाते हुए भी, तुम यह विश्वास करोगे कि तुम परमेश्वर का अनुसरण कर रहे हो, तुम परमेश्वर के घर में हो, तुम परमेश्वर की उपस्थिति में हो, जबकि वास्तव में, तुम्हें शैतान के नौकरों, मसीह-विरोधियों ने उससे दूर कर दिया होगा। तुम्हें इसका पता भी नहीं चलेगा। यह एक बहुत खतरनाक स्थिति है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद छह)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी भ्रामक सोच को उजागर कर दिया। लोग सत्य का अनुसरण करते हैं या नहीं, इसका मूल्यांकन मैंने बस उनके बाहरी व्यवहार के आधार पर किया, लेकिन मैंने उनके प्रकृति सार की पहचान नहीं की या उनके कार्यों के पीछे उनके लक्ष्य और प्रेरणाएँ नहीं देखीं। मुझे लगा कि यदि कोई व्यक्ति त्याग कर सकता है, खुद को खपा सकता है, परमेश्वर के वचनों की अपनी समझ पर संगति कर सकता है, वह खुद को जानता है, बहुत ही आध्यात्मिक व्यक्ति प्रतीत होता है, तो वह ऐसा व्यक्ति है जो सत्य का अनुसरण करता है और उसमें सत्य वास्तविकता है। इसलिए जब मैंने कैली के साथ बातचीत के दौरान देखा कि वह अच्छी संगति करती है, बोलचाल में अच्छी है, सभाओं में जैसी समझ साझा करती है वह बहुत सार्थक लगती है, तो मुझे लगा कि वह सत्य का अनुसरण करती है और उसमें सत्य वास्तविकता है। इससे भी बुरा यह है कि मैंने भ्रमवश यह मान लिया कि अगुआ होने का मतलब है कि वह सत्य का अनुसरण करती है। इन तमाम भ्रामक दृष्टिकोणों के कारण, मैं उसे न जानकर भी उसकी प्रशंसा कर उसे पूजने लगी, अंततः मैं भी उसके साथ मिलकर बुराई करने लगी। मैंने परमेश्वर के वचनों के अनुसार उसका मूल्यांकन करने या उसके सार को समझने की कोशिश नहीं की, बल्कि मैं अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार चलती रही। एक विश्वासी होकर भी, मैंने एक इंसान की पूजा और उसका अनुसरण किया। मैं एक मसीह-विरोधी का अनुसरण करते हुए इतनी दुष्टता करती रही। मैं एकदम संवेदनहीन और मूर्ख थी! जब मैंने एडलिन को कलीसिया से निकालने के लिए समर्थन दिया, तो ऐसा नहीं था कि मुझे कुछ पता ही नहीं था। मुझे कुछ संदेह तो हुआ था, लेकिन मैंने पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन से चलते हुए सत्य की खोज नहीं की। बल्कि यह सोचकर मैंने अपनी धारणाओं और कल्पनाओं का अनुसरण किया कि अगुआ और कार्यकर्ता सत्य समझते हैं और उनमें सत्य वास्तविकता है और वे मुद्दों को सही ढंग से देख समझ सकते हैं। तो बिना विवेक का इस्तेमाल किए, मैंने आँख मूँदकर कैली की बात मान ली और एडलिन को निष्कासित करने को तैयार हो गई। ऐसे बड़े मामले में जिसमें सीधे तौर पर यह बात शामिल हो कि किसी व्यक्ति का उद्धार हो सकता है या नहीं, किसी को अनुचित तरीके से हटाना उसे उद्धार के अवसर से वंचित रखना है—यह एक जघन्य पाप है! मैं उसके जीवन से ऐसे पेश आई, मानो वह तुच्छ हो, मैं बिना सोचे उसके निष्कासन के लिए सहमत हो गई थी। वह एक सच्ची विश्वासी थी, लेकिन मैंने उसे कलीसिया से लगभग निकाल ही दिया था। कितना बड़ा अपराध है! मैं उसकी कर्जदार तो थी ही, मैंने परमेश्वर को भी नाराज कर दिया था। मैं जानबूझकर बुराई कर एडलिन को दंडित नहीं कर रही थी, लेकिन लापरवाही से सहमत होकर मैं उसे मसीह-विरोधी कैली के साथ मिलकर नुकसान पहुँचा रही थी—मैं मसीह-विरोधी की साथी थी। हालाँकि यह मात्र एक राय जाहिर करने के अलावा कुछ नहीं था, लेकिन इसने मेरी बेहद शातिर प्रकृति का खुलासा कर दिया और यह दिखा दिया कि मुझमें औरों के लिए प्रेम नहीं है। एडलिन जैसे अन्य भाई-बहन, जिनमें धार्मिकता की भावना होती है और जो कलीसिया के कार्य को बनाए रखने में सक्षम होते हैं, उन्हें सुरक्षा मिलनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर उन लोगों को बचाता है जो सत्य का अनुसरण करते हैं और धार्मिकता की भावना रखते हैं। लेकिन मैं शैतान की अनुचर की तरह काम करते हुए, उसके निष्कासन का समर्थन कर रही थी। इस ढंग से कार्य करते हुए, मैं परमेश्वर के विरुद्ध कार्य कर मसीह-विरोधी दुष्टात्माओं के पक्ष में खड़ी थी। एक कलीसिया अगुआ के नाते मुझे सभी बातों में कलीसिया के हितों को कायम रखना चाहिए था, भाई-बहनों को मसीह-विरोधी और कुकर्मियों के नुकसान से बचाना चाहिए था। लेकिन मैंने निर्दयतापूर्वक बुराई और लोगों पर अत्याचार कर उन्हें कलीसिया से निकाल रहे लोगों का साथ दिया। यह भाई-बहनों के लिए हानिकारक था। मेरे लिए यह देखना भयावह था कि मैंने ऐसे बुरे काम किए थे। मैंने सत्य नहीं खोजा, न ही मेरे पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय था; मुझे पता ही नहीं था कि मैं इतनी भयंकर दुष्टता कर रही हूँ, बल्कि यह सोच रही थी कि मैं कलीसिया के काम को कायम रख रही हूँ। मैं कितनी भ्रमित और घिनौनी थी! यह वैसा ही था जैसा उस भाई ने कहा था, कि मैं विनाश के रास्ते पर चलकर अपने साथ औरों को नरक में घसीट रही थी। मेरे व्यवहार को देखते हुए, मुझे बर्खास्त करना और कलीसिया से हटाना कोई ज्यादती नहीं थी, लेकिन परमेश्वर ने मुझे पश्चात्ताप करने का मौका दिया, कलीसिया में कर्तव्य करते रहने का अवसर दिया। मैं परमेश्वर की दया और उद्धार के लिए आभारी थी। साथ ही मैं यह भी समझ गई कि बाहरी प्रतिभा और काबिलियत पर ध्यान देना, आँख मूँदकर किसी भी अगुआ को पूजना, सत्ता की पूजा करना और समस्याएँ आने पर सत्य न खोजना वाकई एक खतरनाक चीज है। ऐसे में मसीह-विरोधी और दुष्ट लोग मुझे कभी भी गुमराह कर मेरा इस्तेमाल कर सकते हैं। सार में, किसी व्यक्ति को पूजकर और उसका अनुसरण करके मैं शैतान का अनुसरण कर रही थी और परमेश्वर की शत्रु बन रही थी। अगर मैंने अभी भी पश्चात्ताप नहीं किया, तो परमेश्वर मुझे अस्वीकार कर त्याग देगा। जितना सोचा उतना ही मुझे लगा कि मेरी यह विफलता महज थोड़ी भ्रष्टता दिखाना या कोई गलती करना नहीं था—यह एक भयंकर दुष्टता थी और मैंने खुद का काम लगभग तमाम कर ही लिया था।
बाद में मैंने परमेश्वर के और भी वचन पढ़े, जिन्होंने मुझे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के प्रति सही दृष्टिकोण दिखाया। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “जब कोई व्यक्ति भाई-बहनों द्वारा अगुआ के रूप में चुना जाता है या परमेश्वर के घर द्वारा कोई निश्चित कार्य करने या कोई निश्चित कर्तव्य निभाने के लिए उन्नत किया जाता है, तो इसका यह मतलब नहीं कि उसकी कोई विशेष हैसियत या पहचान है या वह जिन सत्यों को समझता है, वे अन्य लोगों की तुलना में अधिक गहरे और संख्या में अधिक हैं—तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि यह व्यक्ति परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में सक्षम है और उसे धोखा नहीं देगा। स्वाभाविक तौर पर, इसका यह मतलब भी नहीं है कि ऐसे लोग परमेश्वर को जानते हैं और परमेश्वर का भय मानते हैं। वास्तव में उन्होंने इसमें से कुछ भी हासिल नहीं किया है; उन्नति और विकास का सीधे-सीधे अर्थ केवल उन्नति और विकास ही है, यह परमेश्वर के विधान या उसके द्वारा सही ठहराए जाने के समतुल्य नहीं है। उनकी उन्नति और विकास का सीधा-सा अर्थ है कि उन्हें उन्नत किया गया है, और वे विकसित किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। और इस विकसित किए जाने का अंतिम परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि क्या यह व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है और क्या वह सत्य के अनुसरण का रास्ता चुनने में सक्षम है। इस प्रकार, जब कलीसिया में किसी को अगुआ बनने के लिए उन्नत और विकसित किया जाता है, तो उसे सीधे अर्थ में उन्नत और विकसित किया जाता है; इसका यह मतलब नहीं कि वह पहले से ही योग्य अगुआ है, या सक्षम अगुआ है, कि वह पहले से ही अगुआ का काम करने में सक्षम है, और वास्तविक कार्य कर सकता है—ऐसा नहीं है। ज्यादातर लोगों को इन चीजों के बारे में स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देता, और वे इन पदोन्नत लोगों की कल्पनाओं पर भरोसा करते हुए उनका सम्मान करते हैं, पर यह एक भूल है। जिन्हें उन्नत किया जाता है, उन्होंने चाहे कितने ही वर्षों से विश्वास रखा हो, क्या उनके पास वास्तव में सत्य वास्तविकता होती है? ऐसा जरूरी नहीं है। क्या वे परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं को साकार करने में सक्षम हैं? अनिवार्य रूप से नहीं। क्या उनमें जिम्मेदारी की भावना है? क्या उनमें प्रतिबद्धता है? क्या वे परमेश्वर के प्रति समर्पित हैं? जब उनके सामने कोई समस्या आती है, तो क्या वे सत्य की खोज करते हैं? यह सब अज्ञात है। क्या इन लोगों के अंदर परमेश्वर का भय मानने वाले हृदय हैं? और परमेश्वर का भय मानने वाले उनके हृदय कितने विशाल हैं? क्या काम करते समय उनके द्वारा अपनी इच्छा का पालन करने की संभावना रहती है? क्या वे परमेश्वर की खोज करने में समर्थ हैं? अगुआ का कार्य करने के दौरान क्या वे परमेश्वर की इच्छा की खोज करने के लिए नियमित रूप से और अकसर परमेश्वर के सामने आते हैं? क्या वे लोगों का सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए मार्गदर्शन करने में सक्षम हैं? निश्चय ही वे तुरंत ऐसी चीजें कर पाने में अक्षम होते हैं। उन्हें प्रशिक्षण नहीं मिला है और उनके पास बहुत थोड़ा अनुभव है, इसलिए वे ये चीजें नहीं कर पाते। इसीलिए, किसी को उन्नत और विकसित करने का यह मतलब नहीं कि वह पहले से ही सत्य को समझता है, और न ही इसका अर्थ यह है कि वह पहले से ही अपना कर्तव्य संतोषजनक ढंग से करने में सक्षम है। ... मेरे यह कहने का क्या मतलब है? सभी को यह बताना कि उन्हें परमेश्वर के घर में विभिन्न प्रकार की प्रतिभाओं को बढ़ावा दिए जाने और विकसित किए जाने को सही तरह से लेना चाहिए, और इन लोगों से अपनी अपेक्षाओं में कठोर नहीं होना चाहिए। स्वाभाविक रूप से, लोगों को उनके बारे में अपनी राय में अयथार्थवादी भी नहीं होना चाहिए। उनकी अत्यधिक सराहना या सम्मान करना मूर्खता है, तो उनके प्रति अपनी अपेक्षाओं में अत्यधिक कठोर होना भी मानवीय या यथार्थवादी नहीं है। तो उनके साथ व्यवहार कार्य करने का सबसे तर्कसंगत तरीका क्या है? उन्हें सामान्य लोगों की तरह ही समझना, और जब कोई ऐसी समस्या आए जिसे खोजने की आवश्यकता हो, तो उनके साथ संगति करना और एक-दूसरे की क्षमताओं से सीखना और एक-दूसरे का पूरक होना। इसके अतिरिक्त, अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य कर रहे हैं या नहीं, वे समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य का इस्तेमाल करते हैं या नहीं, इस पर नजर रखना सभी की जिम्मेदारी है; अगुआ या कार्यकर्ता मानक स्तर का है या नहीं, इसे मापने के ये मानक और सिद्धांत हैं। अगर कोई अगुआ या कार्यकर्ता आम समस्याओं से निपटने और उन्हें सुलझाने में सक्षम हैं, तो वह सक्षम हैं। लेकिन अगर वे साधारण समस्याओं से भी निपट नहीं सकते, उन्हें हल नहीं कर सकते, तो वे अगुआ या कार्यकर्ता बनने के योग्य नहीं हैं, और उन्हें फौरन बर्खास्त कर देना चाहिए। किसी दूसरे को चुन लो, और परमेश्वर के घर के काम में देरी न करो। परमेश्वर के घर के काम में देरी करना खुद को और दूसरों को चोट पहुँचाना है, इसमें किसी का भला नहीं है” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5))। मैंने परमेश्वर के वचनों से जाना कि अगर किसी को अगुआ या कार्यकर्ता चुना जाता है या उसे पदोन्नत किया जाता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसमें सत्य वास्तविकता है, वह परमेश्वर के प्रति समर्पित है या उसका भय मानता है। यदि वह सत्य का अनुसरण नहीं करेगा, तो वह झूठा अगुआ या मसीह-विरोधी बन जाएगा और उसे उजागर कर त्याग दिया जाएगा। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास अभ्यास करने और परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने के लिए ज्यादा भार वहन करने के अधिक अवसर होते हैं। लेकिन उनमें से कोई भी पूर्ण नहीं बनाया गया है—उनका स्वभाव भी औरों की तरह ही भ्रष्ट होता है, इसलिए इससे पहले कि वे सत्य प्राप्त कर अपने स्वभाव में परिवर्तन लाएँ, वे भी अपने कार्य में दुराग्रही होकर सिद्धांतों के विरुद्ध जा सकते हैं। उन्हें भी परमेश्वर के न्याय, प्रकाशन, और काट-छाँट के साथ ही दूसरों की निगरानी से गुजरना आवश्यक होता है। यदि अगुआ और कार्यकर्ता सत्य सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करते हैं और कलीसिया के कार्य को बनाए रखते हैं, तो परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उनका समर्थन और उनके कार्य में सहयोग करना चाहिए। यदि वे सिद्धांतों के विरुद्ध जाते हैं, गलत रास्ता अपनाते हैं और व्यावहारिक कार्य नहीं करते, तो उनकी काट-छाँट कर उन्हें उजागर करना चाहिए, यह देखना चाहिए कि क्या वे सत्य स्वीकारने और पश्चात्ताप कर बदलने को तैयार हैं। यदि वे पश्चात्ताप कर बदलने को तैयार हैं, तो इसका अर्थ है कि वे सही लोग हैं और सत्य स्वीकार सकते हैं। लेकिन अगर वे ऐसा नहीं करते, दूसरों पर क्रोध कर उन पर अत्याचार करते हैं, तो वे सही लोग नहीं हैं और उनकी रिपोर्ट कर उन्हें उजागर करना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ केवल इस तरह पेश आना, उनके साथ सत्य सिद्धांतों के अनुसार व्यवहार करना परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है। लेकिन पहले मैं परमेश्वर के वचनों के आधार पर चीजों को नहीं देखती थी। मुझे कैली और अन्य लोगों के बारे में कोई समझ नहीं थी, मैं बस आँख मूँदकर उन्हें पूजती थी, जिससे मैं मसीह-विरोधियों का अनुसरण कर भयंकर बुराई कर रही थी। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे अभ्यास का मार्ग मिला और तब से मैं सभी चीजों में सत्य सिद्धांत खोजने पर ध्यान देना, चीजों और लोगों को परमेश्वर के वचनों के अनुसार देखना चाहती थी, मैं पहले की तरह मूर्ख और अज्ञानी होना और आँख मूँदकर लोगों का अनुसरण करना नहीं चाहती थी।
बाद में मैंने देखा कि जब एक वरिष्ठ अगुआ कलीसिया अगुआओं के चुनाव पर हमारे साथ संगति करती तो वह सत्य सिद्धांतों पर संगति किए बिना ही काम करने को बेचैन रहती। एक बार जब वह किसी के कर्तव्य को समायोजित करने पर एक सभा में संगति कर रही थी, तो उसने कलीसिया के आधे सदस्यों के आने से पहले ही अपनी संगति खत्म कर ली और फिर उसने हमसे हमारी राय माँगी। चूँकि आधे लोगों ने उसकी संगति सुनी ही नहीं थी और उन्हें प्रासंगिक सत्य सिद्धांतों की जानकारी नहीं थी, तो उनके पास कहने को कुछ था ही नहीं कि उनकी राय क्या है। सभा जारी नहीं रखी जा सकी और एक अजीब-सा माहौल बन गया। मैंने देखा कि वह सत्य सिद्धांतों में प्रवेश करने के लिए भाई-बहनों की अगुआई नहीं कर रही थी, बल्कि उसे मामले को निपटाने और उसे जैसे-तैसे खत्म करने की जल्दी थी। मुझे एक मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह किए जाने, और आँख मूंदकर उसका अनुसरण करने के नतीजे का अपना अनुभव याद आ गया। मैं सिद्धांतों पर स्पष्टता हासिल करने से पहले यूं ही किसी की हाँ में हाँ मिलाना नहीं चाहती थी। इसलिए इस मामले पर मिलकर खोज करने के लिए मैंने कुछ बहनों से बातचीत की। एक ने कहा कि इस अगुआ ने सिद्धांतों का पालन न करते हुए अन्य कलीसियाओं में भी इसी तरह चुनाव करवाए थे। मैंने सोचा कि चूंकि यह अगुआ दूसरों का समर्थन लिए बिना ही काम कर रही है, इसका मतलब उसके साथ कोई समस्या है। एक अगुआ के रूप में, सत्य में प्रवेश करने में हमारा मार्गदर्शन करने में उसका नाकाम रहना पूरी कलीसिया को प्रभावित करेगा, तो मुझे उसे उसकी समस्याएँ बतानी चाहिए। लेकिन फिर मुझे लगा, अगर मैंने सुझाव दिया तो कहीं वह मुझे दबा न दे। लेकिन फिर यह सोचकर कि मैं पहले मसीह-विरोधी का साथ देकर बुराई कर चुकी हूँ, इसलिए मुझे डर लगा कि फिर से किसी व्यक्ति का आँख मूँदकर अनुसरण न करने लगूँ और कलीसिया के हितों को कायम रखने में असफल न हो जाऊँ। मैं सच में दुविधा में थी। मैंने अभ्यास का मार्ग खोजते हुए परमेश्वर के समक्ष आकर प्रार्थना की। उसके बाद मैंने परमेश्वर के वचन में यह देखा : “किसी अगुआ या कार्यकर्ता के साथ पेश आने के तरीके के संबंध में लोगों का क्या रवैया होना चाहिए? कोई अगुआ या कार्यकर्ता जो करता है, अगर वह सही और सत्य के अनुरूप हो, तो तुम उसका आज्ञापालन कर सकते हो; अगर वह जो करता है वह गलत है और सत्य के अनुरूप नहीं है, तो तुम्हें उसका आज्ञापालन नहीं करना चाहिए और तुम उसे उजागर कर सकते हो, और उसका विरोध कर एक अलग राय रख सकते हो। अगर वह व्यावहारिक कार्य करने में असमर्थ हो या कलीसिया के काम में बाधा डालने वाले कुकर्म करता हो, और पता चल जाता है कि वह एक नकली अगुआ, नकली कार्यकर्ता या मसीह-विरोधी है, तो तुम उसे पहचानकर उजागर कर सकते हो और उसकी रिपोर्ट कर सकते हो” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे व्यवहार में लाने के लिए सिद्धांत प्रदान किए। यदि कोई अगुआ या कार्यकर्ता अनुचित व्यवहार कर रहा है, तो तुम उसकी सहायता करने के लिए उसके साथ प्रेम से सत्य पर संगति कर सकते हो—यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है। अपनी पिछली असफलताओं के बारे में सोचने पर यह एकदम स्पष्ट हो गया कि यह मेरे लिए सत्य को व्यवहार में लाने का एक मौका है। मुझे परमेश्वर के वचनों के अनुसार कार्य करना चाहिए और दबाव के डर से अपने सुझाव देने से बचना नहीं चाहिए। मैंने उस अगुआ से संपर्क कर उसे उन सारी समस्याओं के बारे में बता दिया जो मैंने उस दौरान उसके काम में देखी थीं; उसने मेरी सारी बातें मान लीं। कुछ दिनों बाद एक सभा में, मैंने उसकी संगति सुनी जिसमें वह कह रही थी कि उसे अपने कर्तव्य के लिए कलीसिया के सदस्यों से कुछ सुझाव और मदद मिली है और आत्मचिंतन से उसने समझा कि हाल में जिस रास्ते पर वह चल रही थी और जो कार्य कर रही थी, उसमें समस्या थी। जिन मुद्दों और खामियों के बारे में मैंने उसे बताया था, वे उसके चिंतन का हिस्सा थे, उन बातों से उसने सिद्धांतों को समझने की कोशिश की और जान गई कि इस तरह की समस्याओं को संभालने और देखने का तरीका क्या है। मैं वाकई खुश थी, सत्य के अभ्यास के लिए मेरा मार्गदर्शन करने के लिए मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया। मुझे अपने दिल में बहुत शांति का एहसास हुआ।
मैंने इन अनुभवों से महसूस किया कि एक विश्वासी के रूप में मैंने सत्य की खोज को कोई महत्व नहीं दिया, बल्कि आँख मूँदकर लोगों की चापलूसी और अनुसरण किया, तो ऐसे में पूरी संभावना थी कि मैं कभी भी बुराई और परमेश्वर के विरुद्ध कार्य कर सकती हूँ। मैं परमेश्वर की बुद्धि भी देख सकी; वह कलीसिया में मसीह-विरोधियों को आने देता है ताकि हम समझ विकसित कर सकें, शैतान की ताकतों को त्याग सकें और फिर कभी मसीह-विरोधियों के हाथों गुमराह और नियंत्रित न हों। एक बार जब हम मसीह-विरोधी को पहचानकर आँखें मूँदकर उसकी पूजा करना बंद कर देते हैं, तो उन मसीह-विरोधियों की सेवा पूरी हो जाती है और उन्हें कलीसिया से बाहर किया जा सकता है। हालाँकि मैंने कुछ असफलताओं का अनुभव किया और ठोकर खाई, मेरे लिए उनके बारे में सोचना मार्मिक था, इन गलत कदमों के जरिये मैं अपनी गलत सोच और दृष्टिकोण को बदलने में कामयाब हो पाई, जिसके कारण मैंने आँख मूँदकर लोगों को पूजना और उनका अनुसरण करना बंद कर दिया। कोई बात होने पर मैं सत्य सिद्धांत खोजकर सच में परमेश्वर का अनुसरण करने वाली इंसान बनने की कोशिश कर पाई। यह सब परमेश्वर के मार्गदर्शन से ही हासिल हो सका। मैं परमेश्वर को धन्यवाद देती हूँ!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?