म्यांमार की एक ईसाई का मौत के बाद नर्क देखने का अनुभव

01 अप्रैल, 2023

डैनी, म्यांमार

बचपन से ही मुझे ईसाई धर्म में दिलचस्पी थी, पर मेरा परिवार बौद्ध था, इसलिए मैं ईसाई नहीं बन सकी। मैंने तब नर्क के बारे में सुना था, पर मैं उस पर यकीन नहीं करती थी।

अप्रैल 2022 में एक दोस्त ने मुझे ऑनलाइन सभा में बुलाया, जहाँ मैंने पहली बार सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन ऐसे थे मानो स्वर्गिक सृष्टिकर्ता खुद मानवजाति से बात कर रहा हो। उसके बाद मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत-से वचन ऑनलाइन पढ़े। मैंने जाना कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही सच्चा परमेश्वर है, और वह मानवता को बचाने के लिए धरती पर आया है। परिवार वालों की रोक-टोक और अपनी सांसारिक चाहतों के कारण भी, मैंने नियमित रूप से सभाओं में हिस्सा नहीं लिया और कुछ समय के लिए सभा समूह छोड़ तक दिया।

फिर, 3 फरवरी 2023 को सुबह 9:30 बजे के आसपास, एक सभा के बाद मैं थक-सी गई, इसलिए आराम करने के लिए लेट गई। बाद में मेरे छोटे भाई ने बताया कि परिवार वाले भरसक कोशिश करके भी मुझे उस नींद से नहीं जगा पाए, इसलिए आपात स्थिति में मुझे फौरन अस्पताल ले गए। डॉक्टर ने जाँच के बाद कहा कि मेरी सांसें थम चुकी हैं, लिहाजा मेरा मृत्यु प्रमाणपत्र जारी कर दिया। परिवार के पास मुझे घर लाने के सिवाय कोई चारा नहीं था। उन्होंने रिश्तेदारों और पड़ोसियों को खबर देकर तीन दिन बाद मेरे अंतिम संस्कार की तैयारी कर ली।

मुझे कुछ पता नहीं था कि तब घर में क्या हो रहा है। बस इतना जानती थी कि मैं किसी दूसरी दुनिया में चली गई हूँ। मैं सफेद पोशाक पहने थी और छोटे-से अँधेरे, धुंधले रास्ते पर अकेली चली जा रही थी। मैं न आसमान देख पा रही थी, न अपने सामने कुछ और। वह रास्ता पहाड़ी ढलानों वाला, उबड़-खाबड़, गड्ढों से भरा, खुरदरा और घुमावदार था। मुझे दोनों तरफ हर तरह के अजीब पौधे दिख रहे थे, जो मैंने कभी नहीं देखे थे, वे काँटों से भरे थे। हर तरफ जानवरों की आवाजें भी सुनाई दे रही थीं...। उस रास्ते पर नंगे पाँव चलने से मेरे पैरों में चुभन हो रही थी। मेरा पूरा शरीर तप रहा था और मैं बुरी तरह हाँफ रही थी। चलते-चलते मेरा सामना काले कपड़े पहने एक राक्षस से हुआ। वह सिर से पैर तक सारा काला था—मैं उसका चेहरा या पैर भी नहीं देख पाई। उसने कहा, “मेरे साथ आओ!” उसकी आवाज बहुत भयानक थी। मैंने डरते-डरते कहा, “मुझे कहाँ लेकर जा रहे हो? मैं कभी नहीं गई—मैं नहीं जाऊँगी। मुझे घर जाना है।” मैं भाग जाना चाहती थी। तभी, काले-नीले कपड़े पहने चार-पाँच राक्षस वहाँ आ गए और मुझे पकड़कर बोले, “तुम मर चुकी हो—वापस नहीं जा सकती। तुमने अपने जीवन में बहुत सारे पाप किए हैं और अब तुम्हें उनकी सजा दी जाएगी।”

फिर वो मुझे एक बड़े दरवाजे के सामने ले आये, जहाँ कई राक्षस पहरा दे रहे थे। वे काफी लंबे थे, उनकी आँखें और कान बड़े थे, उनमें से कुछ के पैने दाँत बाहर निकले थे, जिन्हें देख मैं चौंक गई। उनके हाथों में हथियार थे, वे कमर से ऊपर नंगे थे, उन्होंने इंसानी हड्डी-खोपड़ियों की मालाएँ पहन रखी थीं। उनके शरीर पर जख्मों के निशान थे। जैसे ही दरबानों ने दरवाजा खोला, मुझे बहुत-सी दर्दनाक चीखें सुनाई दीं। दूर-दूर तक, भयानक पीड़ा से तड़पने की आवाजें आ रही थीं। वहाँ शरीर जला देने वाली भीषण गर्मी थी। मैं बहुत डरी हुई थी, मैंने राक्षसों से पूछा, “मैंने क्या गलत किया? मुझे यहाँ नहीं होना चाहिए।” वे एक-एक करके मेरे जीवन के सभी पाप दिखाने लगे, मैंने किस दिन, किस घड़ी, किस मिनट और सेकंड में ये पाप किए थे, उन्होंने सब कुछ मुझे दिखाया। छोटे-से-छोटे झूठ का भी उनके पास सारा हिसाब-किताब था, जो मैं सोच भी नहीं सकती थी। उदाहरण के तौर पर, 5 सितंबर 2022 को, भाई-बहनों ने एक सभा में बुलाने के लिए मुझे कॉल किया, पर परिवार के दबाव के कारण मैं उस सभा में नहीं गई। 10 सितंबर 2022 को, मैंने एक सभा छोड़ दी और भाई-बहनों का फ़ोन तक नहीं उठाया, मैं उनसे मिलना ही नहीं चाहती थी। 5 अक्टूबर 2022 को, मैंने सभी सभा समूह छोड़ दिए और कलीसिया के अन्य सदस्यों से संपर्क तोड़ लिया। 6 अक्टूबर 2022 को, मैं सांसारिक रुझानों और मौज-मस्ती के लिए परमेश्वर से दूर हो गई। मैं बहुत हैरान थी। यह देखकर बहुत डर गई कि मैंने कितने सारे पाप किये थे।

म्यांमार की एक ईसाई का मौत के बाद नर्क देखने का अनुभव

फिर जिस राक्षस ने काले कपड़े पहने थे वह मुझे ऐसी जगह ले गया जहाँ लकड़ी का एक निशान बना था, उस पर लिखा था जो परमेश्वर को धोखा देते हैं, उसकी आलोचना या निंदा करते हैं उन्हें यहीं दंड दिया जाता है। सबसे कड़े दंड यहीं दिए जा रहे थे। पहला दंड ऐसा था जिसमें दंडित किये जा रहे लोगों के मुँह और चमड़ी के अंदर से कीड़े निकलकर उन्हें काट रहे थे, कीड़े उन्हें जगह-जगह से काट रहे थे—यह बहुत भयानक था। दूसरे प्रकार के दंड में, दंडित किये जा रहे लोग निर्वस्त्र थे, उन्हें एक-एक करके एक बड़े-से तख्त पर ले जाया जा रहा था, जहाँ एक साथ 10 लोगों को दंडित किया जा सकता था। उन्हें घुटनों के बल बिठा दिया जाता, और हाथ पीठ के पीछे बाँधकर ठुड्डी तख्त पर टिका दी जाती थी। उनके गलों में रस्सियाँ बंधी थीं, और जब रस्सियाँ खींची जातीं तो उनकी जीभ बाहर निकल आती थी। सिर पर लंबे सींगों वाला एक भयानक राक्षस तख्त पर दंडित किये जा रहे लोगों की जीभ में हुक फँसाकर निकाल रहा था, फिर उन्हें जोर से झटके देकर खींचता; इससे कुछ लोगों की जीभ दोगुने आकार में बाहर निकल आती। फिर, वह राक्षस कलम जितनी लंबी कीलों से उनकी जीभ को तख्त पर ठोक देता, जिसके नीचे आग जली होती थी। वह राक्षस बिना रुके उनकी जीभ पर खौलता पानी डालता जा रहा था। यह खौलता पानी दूर के किसी तालाब से लाकर सभी राक्षसों को दिया जा रहा था। जब यह पानी किसी की जीभ पर डलता तो वह पूरी तरह जल जाती। कुछ लोगों की आँखें बाहर निकल आई थीं। फिर, वे राक्षस खौलता पानी डालकर उनका सारा शरीर जला देते। दंडित किये जा रहे लोग मौत आने तक दर्द से चीखते रहते। यह बेहद भयानक दृश्य था। कुछ लोग पीड़ा सह न पाने से जल्दी मर जाते, पर अगर उन्हें अन्य पापों के लिए और दंड भोगना होता तो फिर से जिंदा करके दंड दिया जाता। सजा पूरी हो जाने के बाद भी जब वे नहीं मरते, तो उनके शरीर से कीड़े बाहर निकलकर उन्हें खाने लगते, फिर वे दोबारा जिंदा होते और उन्हें दूसरे तरीके से दंडित किया जाता था।

तीसरा दंड था आग के ताल में फेंक दिया जाना। मैंने वहाँ लोहे का विशाल गोल तवा देखा, जिस पर चार रस्सियाँ लगी थीं। सौ-दो सौ लोग दंड देने की दूसरी जगह से कुछ ही क्षणों में तवे पर आ गये। वे बिना कपड़ों के थे और उस भयानक जलते तवे पर घुटने टेककर बैठ गए, उनके हाथों और धड़ों पर कांटेदार रस्सियां अपने-आप लिपट गईं। ये दूसरे धर्मों और जातियों के लोग थे। कुछ परमेश्वर में विश्वास न करने वाले तो कुछ ईसाई या बौद्ध थे। उन्हें परमेश्वर का नया कार्य न स्वीकारने, उसकी आलोचना और निंदा करने के कारण दंड दिया जा रहा था। उनमें से कुछ ने परमेश्वर का नया कार्य तो स्वीकारा था, पर उनकी आस्था सतही थी, वे परमेश्वर के प्रति लापरवाह और धूर्त थे। परमेश्वर भी ऐसे लोगों को दंड देता है। वे सब अपनी-अपनी आस्था से जुड़े परमेश्वर को पुकार रहे थे। कोई एक परमेश्वर को पुकारता, तो कोई दूसरे को। वहाँ बहुत अधिक शोर था, मैं उनकी बातें अच्छे से सुन नहीं पाई। वे चाहे जितनी चीख-पुकार मचाते, उन्हें कोई जवाब नहीं मिलता। उसके बाद उन लोगों को एक विशाल तालाब में ले जाया गया, जिसमें भयानक आग का दरिया था। उनकी रस्सियाँ अपने आप ढीली हो गईं, लोहे का तवा तिरछा हुआ और वे सभी उस तालाब में गिर गए। उन्हें उबाला और तला जा रहा था, इस हद तक कि वे भयानक पीड़ा से चीख रहे थे। कुछ लोग किनारे पर थे, तालाब से निकलने की भरसक कोशिश कर रहे थे, मगर फिर उसी दरिया में गिर गए। जल्द ही चीखें-चिल्लाहटें थम गईं। सभी लोग मर गए थे, आग के दरिया की सतह पर सबकी लाशें तैर रही थीं। जब सभी मर गए तो एक बहुत बड़े जाल ने उन्हें बाहर निकाला, और वे अगली सजा के लिए दोबारा जिंदा हो गए।

फिर मुझे कहीं और ले जाया गया। यहाँ वे लोग थे जिन्हें अपने माता-पिता, बड़ों या शिक्षकों का अपमान करने के कारण हर तरह से दंडित किया जा रहा था। उनमें से कुछ लोग निर्वस्त्र थे, उनके गले, हाथ और पैर कँटीली जंजीरों से बंधे थे। उन पर इतनी जोर से कोड़े बरसाए जा रहे थे कि शरीर से खून और मांस के लोथड़े रिसने लगे थे। वे दर्द के मारे बुरी तरह बिलख रहे थे। नर्क के राक्षसों ने कुल्हाड़ी से उनके हाथ-पैर काट डाले, और किसी हथौड़े जैसी चीज से उसका कीमा बना डाला। दंडित किये जाते हुए उनसे पूछा गया, “क्या तुमने उस समय यह पाप न करने के बारे में सोचा था?” वे पश्चात्ताप करना चाहते थे, पर उन्हें कोई नहीं बचा सकता था और उन्हें यातना देकर मार डाला गया। इसके बाद, वे फिर से जिंदा होकर अगले दंड के लिए तैयार हो गए। कुछ लोगों को जिंदा दफनाया गया था। वहाँ की जमीन तेजी से घूम और खदबदा रही थी, और मिट्टी में आग जल रही थी। जिन्हें दंड मिला था वे धीरे-धीरे जमीन के अंदर धँसे जा रहे थे, जब तक उनकी मौत न हो जाती।

फिर मुझे वहाँ ले जाया गया जहाँ व्यभिचारियों को दंडित किया जा रहा था। वे अपना जीवन बचाने के लिए भाग रहे थे। कुछ लोगों को तीर चलाकर मार दिया गया तो कुछ को चाकू से। कुछ लोगों को खतरनाक जानवरों ने पीछा करके काट खाया। अंत में कोई नहीं बच पाया, हर एक की मौत हो गई। जो मर गए थे वे अगली सजा पाने के लिए दोबारा जिंदा हो गए।

मैंने एक और जगह देखी जो दूसरों के खिलाफ बुरे इरादे रखने वाले और धोखेबाज लोगों को दंडित करने के लिए थी, इन लोगों ने दूसरों का फायदा उठाया था, नफे-नुकसान की परवाह की थी या उनसे ईर्ष्या करते थे। वहाँ लकड़ी का झूलता पुल था जिसके दोनों तरफ कांटेदार रस्सियाँ लगी थीं। कांटेदार रस्सी पकड़ने से खून बहता था, लेकिन उसे नहीं पकड़ने पर लोग नीचे गिर जाते, और नीचे आग का दरिया था। अगर वे उसमें नहीं गिरते, तो आगे उन्हें मांस पीसने वाली मशीन में पिसना पड़ता, और फिर वे आग के दरिया में गिर जाते।

कुछ लोग सिर्फ अपनी वेश-भूषा और अच्छे कपड़े पहनने की चिंता में अपना समय बर्बाद करते, पर परमेश्वर में विश्वास नहीं करते थे, यहाँ तक कि उन्होंने उसकी आलोचना और निंदा भी की थी। उनके चेहरे कीड़े कुतरकर खा रहे थे। इनके अलावा, कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्हें दूसरों को कोसने, चोरी करने जैसे पापों की सजा मिल रही थी। लोगों के पापों के आधार पर उन्हें एक के बाद दूसरी तरह की सजा देकर बार-बार दंडित किया जा रहा था। यह सब नजारा देखकर मेरा पूरा शरीर डर से काँपने लगा। असल में इस तरह से दंडित किया जाना बहुत भयानक होगा! मुझे मेरे पापों पर पछतावा हो रहा था, पर मैं नहीं जानती थी कि किसे पुकारूँ, कौन मुझे बचाने आएगा। तब, मैंने घबराते हुए कुछ सूत्रों का पाठ किया, पर न तो मुझे कोई जवाब मिला और न ही मेरा डर कम हुआ। अचानक मुझे याद आया कि मैंने एक सच्चे परमेश्वर—सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास किया था। मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की एक बात याद आई। “अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में तुम्हारे सामने जो भी कठिनाइयाँ आएँ, तुम्हें परमेश्वर के सामने आना चाहिए; पहली चीज जो तुम्हें करनी चाहिए वह है प्रार्थना में परमेश्वर के सामने घुटने टेकना, यही सबसे महत्वपूर्ण है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर पर विश्वास करने में सत्य प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण है)। मैं जानती थी कि हर चीज पर परमेश्वर का राज है, और मेरे साथ जो हो रहा था उसकी अनुमति से हो रहा था, इसलिए मुझे उसे ही पुकारना चाहिए। मैंने अपने पापों के बारे में सोचा। मैंने परमेश्वर के प्रति लापरवाही और उसकी उपेक्षा की। मैं जब अच्छा महसूस करती, तभी आस्था का अभ्यास करती और सभाओं में हिस्सा लेती थी, बुरे वक्त में मैं सभा में नहीं आती थी। ईसाई होने के बाद भी मुझे परमेश्वर में सच्ची आस्था नहीं थी। मैं उसके प्रति लापरवाह और धूर्त थी। मैं मौज-मस्ती में समय बर्बाद करके खुश थी, मगर परमेश्वर की आराधना में बिल्कुल भी समय नहीं दिया। यह सब सोचकर मुझे बहुत पछतावा हुआ और मैंने दिल-ही-दिल में प्रार्थना की, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैंने बहुत-से पाप किये हैं। मैंने तुम्हारे साथ घटिया और रूखा व्यवहार किया, मैं पाप करके और अपना कर्तव्य अच्छे से न निभाकर खुश रही। अब मुझे बहुत डर लग रहा है और पछतावा हो रहा है। मैं यहाँ पर उन पापों के लिए दंडित नहीं होना चाहती। मैं पश्चात्ताप के लिए तैयार हूँ—मुझे बस एक मौका दे दो। मैं तुम्हारी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होकर सब कुछ तुम्हारी इच्छा अनुसार करना चाहती हूँ।” मैंने बार-बार इस तरह से प्रार्थना की और अपनी गलती मानी, एक-एक करके मैंने अपने सारे पापों के लिए परमेश्वर से पश्चात्ताप किया। धीरे-धीरे मैं शांत हुई और मेरा डर भी कम हो गया। बाद में, मुझे ऐसा लगा जैसे कोई आवाज मेरा नाम पुकार रही हो। फिर मैंने एक रोशनी की किरण देखी, उस किरण से एक आवाज आई और मुझसे कहा, “डेनी, क्या तुमने पश्चात्ताप किया? तुमने बहुत-से पाप किये हैं। तुम्हें परमेश्वर पर आश्रित होकर ये पाप करना बंद करना होगा—तुम पश्चात्ताप के लिए दंडित किये जाने तक इंतजार नहीं कर सकती। परमेश्वर के वचनों को अपने दिल में उकेर लो और सत्य खोजो। तुम्हारी समझ और अभ्यास सही होनी चाहिए। यह तुम्हारे लिए आखिरी मौका है, अगली बार तुम्हें दोबारा उद्धार का मौका नहीं मिलेगा। जब तक तुम जिंदा हो, अपना कर्तव्य निभाओ और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश के लिए कड़ी मेहनत करो। अपने पापों या गलतियों को मत दोहराओ, और ऐसी चीजें मत करो जिनका तुम्हें पछतावा हो। क्योंकि तुमने अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया है, तुम अभी नहीं मरोगी। तुम आपदा में गिरने वालों को बचाओगी।”

मैं उस आवाज को बिल्कुल नहीं पहचान पाई। वह आवाज हवा की आवाज के साथ मिलकर आ रही थी। आवाज स्पष्ट नहीं थी, पर मैं बात समझ गई। वे शब्द भले ही कठोर थे, पर मुझे उनसे सीख मिली और मैं शांत हो गई। वे वचन स्नेह से भरे थे और उनमें सुरक्षा का भाव था। मुझे ऐसी खुशी का एहसास हुआ जो पहले कभी नहीं हुई थी। मैं जानती थी परमेश्वर मुझे बचा रहा है, जीवन में दूसरा मौका दे रहा है। यह आवाज सुनकर मुझे धीरे-धीरे होश आ गया।

होश आने पर, मैं काँप रही थी, अब भी बहुत ज्यादा डरी हुई थी। इतने सारे पाप करने का मुझे बहुत पछतावा हुआ और बुरा लगा। मैं जानती थी यह मेरे लिए परमेश्वर की चेतावनी थी। परमेश्वर की हर एक बात सच थी। मुझे उसकी बात पर विश्वास करके उसका पालन करना था। मैं उसकी उपेक्षा कर उसके प्रति लापरवाह बनी नहीं रह सकती थी। परमेश्वर ने मुझे जो मौका दिया, मैं उसे गँवा नहीं सकती थी। मैंने अपने छोटे भाई से कहा, “मैं बहन समर से बात करना चाहती हूँ।” बहन समर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में एक सिंचनकर्ता थी, जिसने कई बार मेरे साथ ऑनलाइन सभा की थी। मेरी हालत के बारे में जानकर बहन समर ने मुझे परमेश्वर के कुछ वचन भेजे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “परमेश्वर प्रत्येक मनुष्य के जीवन के लिए ज़िम्मेदार है और वह बिलकुल अंत तक ज़िम्मेदार है। परमेश्वर तुम्हारे लिए पोषण प्रदान करता है, यहाँ तक कि अगर शैतान द्वारा नष्ट किए गए इस परिवेश में तुम बीमार या प्रदूषित या संकटग्रस्त हो जाते हो, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता; परमेश्वर तुम्हारे लिए पोषण प्रदान करेगा और तुम्हें जीवित रखेगा। तुम लोगों को इस पर विश्वास होना चाहिए। परमेश्वर मनुष्य को ऐसे ही मरने नहीं देगा(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VII)। “जब तुम्हारा जन्म हुआ, तब से लेकर अब तक परमेश्वर ने तुम पर बहुत कार्य किया है, लेकिन वह तुम्हें हर उस चीज का विस्तृत विवरण नहीं देता, जो उसने की है। परमेश्वर ने तुम्हें इसे नहीं जानने दिया, न ही उसने तुम्हें बताया। लेकिन परमेश्वर द्वारा की जाने वाली हर चीज मानवजाति के लिए महत्वपूर्ण है। जहाँ तक परमेश्वर का संबंध है, यह ऐसी चीज है जो उसे अवश्य करनी चाहिए। उसके हृदय में कुछ महत्वपूर्ण चीज है, जो उसे करने की आवश्यकता है, जो इनमें से किसी भी चीज से कहीं बढ़कर है। अर्थात्, जब व्यक्ति पैदा होता है, उस समय से लेकर आज तक, परमेश्वर को उसकी सुरक्षा की गारंटी अवश्य देनी चाहिए। ... इस ‘सुरक्षा’ का अर्थ यह है कि तुम शैतान द्वारा निगले नहीं जाओगे। क्या यह महत्वपूर्ण है? शैतान द्वारा निगला न जाना—यह तुम्हारी सुरक्षा से संबंधित है या नहीं? हाँ, यह तुम्हारी व्यक्तिगत सुरक्षा से संबंधित है, और इससे अधिक महत्वपूर्ण कुछ नहीं हो सकता। जब तुम शैतान द्वारा निगल लिए जाते हो, तो तुम्हारी आत्मा और तुम्हारा शरीर परमेश्वर के नहीं रह जाते। अब परमेश्वर तुम्हें नहीं बचाएगा। परमेश्वर उन आत्माओं और लोगों को त्याग देता है, जो शैतान द्वारा निगले जा चुके होते हैं। इसलिए मैं कहता हूँ कि सबसे महत्वपूर्ण चीज जो परमेश्वर को करनी होती है, वह है तुम्हारी इस सुरक्षा की गारंटी देना, इस बात की गारंटी देना कि तुम शैतान द्वारा निगले नहीं जाओगे। यह बहुत महत्वपूर्ण है, है न?(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर मैंने सुरक्षित महसूस किया, लगा जैसे मेरे पास कोई सहारा था। इस अनुभव से मैं साफ तौर पर यह देख पाई कि जन्म से लेकर इस पल तक, परमेश्वर हमें मार्ग दिखाता आ रहा है, उसने हर पल हमारा ध्यान रखा और हमारी रक्षा की है। मुझे परमेश्वर की शरण में आकर अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, उसके असीम अनुग्रह का कर्ज चुकाना चाहिए। मुझे यह गवाही देनी थी कि परमेश्वर वाकई सभी चीजों पर राज करता है, उस आध्यात्मिक दुनिया पर भी जिसे हम अपनी आँखों से नहीं देख सकते। वह वास्तव में मौजूद है। मैंने नर्क के दंड की पीड़ा का अनुभव नहीं किया, पर मैंने नर्क में दंडित किये जा रहे लोगों का भयानक दृश्य देखा। मेरे आस-पास ऐसे कई लोग हैं जो सांसारिक रुझानों के पीछे भागते हैं, शैतान का अनुसरण करते हैं। वे परमेश्वर की शरण में नहीं आये हैं। मुझे उनकी बहुत चिंता है, और मैं उन लोगों को नर्क में कष्ट सहते नहीं देखना चाहती जिन्हें मैं जानती हूँ। चाहे वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारें या नहीं, मैं अपनी जिम्मेदारी निभाऊँगी और उनके सामने गवाही दूंगी कि नर्क वास्तव में है, और परमेश्वर का अधिकार भी वास्तव में है। सिर्फ सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही हमें नर्क की पीड़ा से बचा सकता है। मैं उन लोगों के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ना चाहूँगी जो अब तक उसकी शरण में नहीं आये हैं, और जिन्होंने उसे स्वीकारा तो है पर उसके उद्धार को नहीं संजोया।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “मेरा अंतिम कार्य केवल मनुष्यों को दंड देने के लिए ही नहीं है, बल्कि मनुष्य की मंजिल की व्यवस्था करने के लिए भी है। इससे भी अधिक, यह इसलिए है कि सभी लोग मेरे कर्म और कार्य स्वीकार करें। मैं चाहता हूँ कि हर एक मनुष्य देखे कि जो कुछ मैंने किया है, वह सही है, और जो कुछ मैंने किया है, वह मेरे स्वभाव की अभिव्यक्ति है। यह मनुष्य का कार्य नहीं है, और उसकी प्रकृति तो बिलकुल भी नहीं है, जिसने मानवजाति की रचना की है, यह तो मैं हूँ जो सृष्टि में हर जीव का पोषण करता है। मेरे अस्तित्व के बिना मानवजाति केवल नष्ट होगी और आपदा का दंड भोगेगी। कोई भी मानव फिर कभी सुंदर सूर्य और चंद्रमा या हरे-भरे संसार को नहीं देखेगा; मानवजाति केवल शीत रात्रि और मृत्यु की छाया की निर्मम घाटी देखेगी। मैं ही मानवजाति का एकमात्र उद्धार हूँ। मैं ही मानवजाति की एकमात्र आशा हूँ, और इससे भी बढ़कर, मैं ही वह हूँ जिस पर संपूर्ण मानवजाति का अस्तित्व निर्भर करता है। मेरे बिना मानवजाति तुरंत अवरुद्ध हो जाएगी। मेरे बिना मानवजाति तबाही झेलेगी और सभी प्रकार के भूतों द्वारा कुचली जाएगी, इसके बावजूद कोई मुझ पर ध्यान नहीं देता। मैंने वह काम किया है जो किसी दूसरे के द्वारा नहीं किया जा सकता, और मैं केवल यह आशा करता हूँ कि मनुष्य कुछ अच्छे कर्मों से मुझे प्रतिफल दे सके। यद्यपि कुछ ही लोग मुझे प्रतिफल दे पाए हैं, फिर भी मैं मनुष्यों के संसार में अपनी यात्रा पूरी करूँगा और प्रकटन के अपने कार्य का अगला कदम आरंभ करूँगा, क्योंकि इन अनेक वर्षों में मनुष्यों के बीच मेरे आने-जाने की सारी भागदौड़ फलदायक रही है, और मैं अति प्रसन्न हूँ। मैं जिस चीज की परवाह करता हूँ, वह मनुष्यों की संख्या नहीं, बल्कि उनके अच्छे कर्म हैं। किसी भी स्थिति में, मैं आशा करता हूँ कि तुम लोग अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करोगे। तब मुझे संतुष्टि होगी; अन्यथा तुम लोगों में से कोई भी उस आपदा से नहीं बचेगा, जो तुम लोगों पर पड़ेगी। आपदा मेरे साथ उत्पन्न होती है और निश्चित रूप से मेरे द्वारा ही आयोजित की जाती है। यदि तुम लोग मेरी नजरों में अच्छे दिखाई नहीं दे सकते, तो तुम लोग आपदा भुगतने से नहीं बच सकते(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)

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